Monday, September 3, 2012

वास्तु दोष एक प्रेक्टिकल उदाहरण (पुनर्प्रकाशन)




मैंने ८ .११ .१० की पोस्ट -"तोड़ फोड़ और प्लास्टिक पिरामिड वास्तविक समाधान नहीं" द्वारा अपने पूर्व प्रकाशित लेख क़े माध्यम से बताया था की किस प्रकार हम अपने भवन क़े वास्तु दोषों से बच सकते हैं.कुछ पाठक ब्लागर्स ने जानकारी क़े प्रति कृतज्ञता  प्रकट की थी.उन सब की और अधिक जानकारी क़े लिए "अग्रमंत्र",आगरा में अगस्त ०४ से जन.०५ क़े दो त्रैमासिकों में प्रकाशित पूर्व  लेखों को पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ   वास्तु  शास्त्री पंकज अग्रवाल क़े विचार जो की राष्ट्रीय सहारा क़े २४ .८ .१९९९ क़े अंक में प्रकाशित हुए थे ,उनकी भी स्कैन कापी आप सब की जानकारी क़े लिए उपलब्ध करा रहा हूँ.:-

उत्तर की रसोई -गृहणी रोगिणी होई
सोई घर किसी भी भवन का मुख्य अंग है.यही वह स्थान है जहाँ से सम्पूर्ण परिवार का स्वास्थ्य सञ्चालन होता है.यह रसोई पकाने वाले पर निर्भर करता है कि वह सदस्यों को स्वस्थ एवं जीवंत रखने लायक भोजन उपलब्ध कराये.परन्तु रसोई की मालकिन गृहणी का स्वास्थ्य रसोई की दिशा  पर निर्भर करता है.वास्तु शास्त्र क़े अनुसार रसोई घर भवन की दक्षिण -पूर्व दिशा (S . E .) अर्थात आग्नेय कोण में स्थित होना चाहिए. ऐसे स्थान पर पकाया गया भोजन सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक होता है तथा गृहणी का स्वास्थ्य भी उत्तम रखता है.आग्नेय कोण दिशा का स्वामी शुक्र ग्रह होता है और शुक्र स्त्रियों का कारक ग्रह है.आजकल लोग वास्तु शास्त्र क़े अज्ञान से तथा अन्य कारणों से मन चाहे  स्थानों पर रसोई निर्मित करा लेते हैं परिणाम स्वरूप गृहणी पर उसका दुष्प्रभाव भी पड़ सकता है.

उत्तर दिशा धन क़े देवता कुबेर की होती है.इस स्थान पर रसोई घर बनाने से धन का अपव्यय होता है.उत्तर दिशा पुरुष कारक वाली है अतः स्त्री का स्वास्थ्य क्षीण होता है.उत्तर दिशा की रसोई वाली गृहणियां अल्पायु में ही वीभत्स रोगों का शिकार हो जाती हैं.३० -३५ आयु वर्ग की गृहणियां गम्भीर ऑपरेशनों  का सामना कर चुकी हैं. प्रौढ़ महिलाएं ,अल्सर /कैसर से पीड़ित हैं.जिन लोगों ने बाद में उत्तर दिशा में रसोई स्थानांतरित कर दी है उनमे से एक गृहिणी  आये दिन अस्पताल क़े चक्कर काटने लगी है. एक साधन सम्पन्न परिवार की गृहिणी  जिनके घर क़े  ईशान कोण (N E ) में शौचालय क़े कारण पुरुष वर्ग प्रभावित था ही उत्तर में रसोई कर दिए जाने क़े बाद कमर व घुटनों क़े दर्द तथा मानसिक अवसाद से पीड़ित रहने लगी है.
सारांश यह कि उत्तर की रसोई न केवल गृहणी हेतु वरन सम्पूर्ण परिवार क़े लिए हानिदायक होती है.


उदाहरण  एक अहंकारी का
 मारे प्राचीन ऋषी -मुनियों ने अपने असीम ज्ञान से भवन -निर्माण कला को प्रस्तुत किया था जो वास्तु कला क़े नाम से जानी जाती है.लगभग एक हज़ार वर्षों की गुलामी ने हमारी इस प्राचीन विद्या को विलुप्तप्राय सा कर दिया है. इधर दस बारह (अब तक १५ -१७ ) वर्षों से चीन से आयातित फेंगशुई और उसी की तर्ज़ पर वास्तु -शास्त्र का प्रचलन  बढ़ा है.परन्तु पाश्चात्य आर्किटेक्चर तथा चीन की फेंगशुई हमारी प्राचीन वास्तु कला क़े पर्यायवाची नहीं हैं और इनसे मनुष्य की न तो भौतिक समस्यायों का हल  निकल पा रहा है और न ही यह मोक्ष -प्राप्ति क़े मार्ग में सहायक है.वास्तु शास्त्र क़े नियमों की अवहेलना अथवा अधूरे परिपालन से आज का मानव किस प्रकार दुखी है किसी से छिपी बात नहीं है और बाज़ार में उपलब्ध वास्तु -शास्त्र की पुस्तकें तथा समाधान मात्र व्यावसायिक हैं उनसे मानव -कल्याण संभव नहीं है .अतः सत्य घटनाओं एवं काल्पनिक नामों क़े द्वारा हम निम्न -लिखित उदाहरण प्रस्तुत कर अपने पाठकों को वास्तु -दोषों क़े दुष्परिणामों से सचेत करना चाहते हैं.:-

रूरी सिंह एक मकान में किरायेदार क़े रूप में वर्षों से निवास कर रहा था .मकान में कोई वास्तु दोष न था.अतः उसके परिवार ने अच्छी खासी तरक्की कर ली .उसके बच्चे भी पढ़ाई में होशियार निकले .परन्तु अपने मकान -मालिक को नाजायज दबा कर यह मकान बहुत सस्ता खरीद लिया .मकान अपना निज का हो जाने क़े बाद गरूरी ने उसमें कुछ अतिरिक्त निर्माण कार्य कराये .ईशान कोण में गरूरी ने शौचालयों का निर्माण करा लिया.बस,यहीं से इस परिवार की बुद्धि का विनाश होता चला गया.सर्वप्रथम तो स्वंय गरूरी को दिल का हल्का दौरा पड़ा.बुद्धि क्षय का परिणाम यह हुआ कि उसने रसोई -घर को उत्तर दिशा में परिवर्तित करा लिया .इस प्रकार उसकी पत्नी घमंडना को भी ब्लड -प्रेशर की शिकायत हो गई.घुटनों व कमर में दर्द रहना प्रारम्भ हो गया तथा क्रोध की मात्रा बढ़ गई.चूंकि ईशान का शौचालय पुरुष वर्ग पर भारी होता है ,अतः साथ रहने वाला गरूरी का अनुज -पुत्र भी लगातार दो वर्षों तक एक ही कक्षा में अनुत्तीर्ण होता रहा.बुद्धि -विपर्याय का ही यह परिणाम था कि,गरूरी ने एक बार जो निर्माण कराया था उसे तुड़वाकर पुनः नये -सिरे से बनवाया (लेकिन कोई दोष मिटाया नहीं बल्कि दोषों को और बढ़ाया ही ).इसमें उत्तर की रसोई -जो व्ययकारी होती है - का भी योगदान रहा.१६  सितम्बर २००३  को सांय गरूरी और घमंडना में ज़बरदस्त वाकयुद्ध हुआ और पहले शान्त रहने वाली गृहणी घमंडना उत्तर की रसोई क़े प्रभाव से अत्यंत उत्तेजित हुयी जो दूर -दूर तक चर्चा का विषय बना.ईशान क़े शौचालय ने गरूरी की बुद्धी को नष्ट कर चरित्र भी गिरा दिया.सड़क छाप लोगों से मित्रता करके गरूरी एक क़े बाद एक गलतियों पर गलतियाँ करता चला जा रहा हैऔर अपने सच्चे हितैषियों को खोता चला जा रहा है. कुछ उत्तर की रसोई का प्रभाव है और कुछ ईशान क़े शौचालय का बुद्धि -विकार घमंडना भी अपने परिवार का हित -अहित सोचना भूल गई है.अब यह परिवार शनै : शनै :अपने विनाश की ओर बढ़ रहा है.इस परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने पैरों पर स्वंय ही कुल्हाड़ी चलाने लगा है .कुछ ही वर्षों क़े अंतराल पर दुनिया इस परिवार का शीराज़ा बिखरते देखेगी .गलत आचरण क़े लोगों से मित्रता करके यह परिवार शीघ्र ही उलटे उस्तरे से मूढा जाने वाला है उस पर भी तुर्रा यह कि जो कोई भी उनके हित की बात कहता है उससे इस परिवार क़े सदस्य सम्बन्ध तोड़ लेते हैं.सर्वप्रथम अपने उत्तर दिशा क़े पडौसी जिसे स्वंय गरूरी ने ही अपने पडौस में बसाया था सम्बन्ध ख़राब कर लिए उसके पश्चात पूर्व दिशा क़े पडौसी से सम्बन्ध तोड़ लिए.दक्षिण दिशा क़े पडौसी से तो सम्बन्ध कभी ठीक थे ही नहीं.आग्नेय क़े कबाड़ी परिवार से आजकल गरूरी की खूब छन रही है.एक और महानुभाव जिनकी भूमिका अपने छोटे भाई को विधायकी क़े चुनाव में हरवाने में प्रमुख थी गरूरी क़े शुभचिंतक बने हुए हैं.यह नैरत्य (S W ) दिशा  क़े पडौसी कहे जा सकते हैं.



उपरोक्त लेख छपने क़े तीन वर्ष बाद २००८ ई .की जन . में गरूरी की इ .बेटी ने गरूरी पर दबाव बना कर दूसरी जाति क़े अपने सहपाठी रहे इ . से विवाह कर लिया. परन्तु इससे पूर्व पूरा परिवार तनाव -अशान्ति और बाहरी हस्तक्षेप से गुज़रा.घमंडना को सीवियर   बी .पी .अटैक पड़ा,गरूरी को इलाज क़े लिए उत्तर की पडौसी और अपनी पुरानी शिष्या गायनोलोजिस्ट को ही बुलाना पड़ा जिनसे सम्बन्ध बिगाड़ लिए थे.पुत्र -पुत्रवधु लन्दन छोड़ कर आ ही नहीं रहे,अब समाज में उनकी दबी -छिपी चर्चा खूब होने लगी है.
बेहतर है कि ,दूसरों की गलतियों से सबक लेकर औरों को अपना बचाव पहले ही कर लेना चाहिए.विशेषज्ञ वास्तु -शास्त्री श्री पंकज अग्रवाल क़े विचार इस स्कैन कापी में देखें.;-



दि तोड़ -फोड़ व्यवहारिक न हो तो हमारी प्राचीन वास्तु -शास्त्र विद्या में वास्तु दोषों क़े निवारणार्थ हवन की विधि उपलब्ध है. जिसका प्रति वर्ष वास्तु -हवन कराकर लाभ उठाया और दोषों का शमन किया जा सकता है.परन्तु जब बद्धि ही न काम करे तब ?


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