हिंदुस्तान ,लखनऊ,29 अगस्त 2002,पृष्ठ-08
"हमे पकड़ने के बाद तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कथित माओवादी खात्मे के नाम पर आठ हजार करोड़
का पेकेज लिया "---सीमा आज़ाद
"एक दो नहीं हमे लगता है कि सारे कानून काले हैं"---विश्वविजय (मानवाधिकार कार्यकर्ता और सीमा आज़ाद के पति)
"अनेक राज्यों मे आंदोलनों को कुचलने के लिए सेना का इस्तेमाल किया जाता है। सेना के साथ अगर हैं तो देश भक्त हैं ... अगर नहीं हैं तो राष्ट्र द्रोही । "---आलोचक वीरेंद्र यादव
एक साक्षात्कार मे सीमा आज़ाद ने यह भी बताया -सरकारें जल-जंगल-जमीन हड़पने के लिए कानून बना रही हैं ,जिसका लोग कडा विरोध कर रहे हैं। उनका साथ हमारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता दे रहे हैं । ऐसे मे राज्य के खिलाफ माहौल बन रहा है। उस पर काउंटर करने के लिए राज्य आक्रामक हो रहा है और लोकतन्त्र की धज्जियां उड़ा रहा है। उन्होने यह भी बताया कि पहले राज्य आम लोगों के लिए कार्य करता था । अब उसकी पहली प्राथमिकता मे प्राकृतिक संसाधनों की लूट करने वाले कारपोरेट घराने हैं। इसमे रोड़ा बनने वालों को दबाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं।
भुक्तभोगी जुझारू कार्यकर्ताओं एवं आलोचक-विश्लेषक विद्वान के उपरोक्त कथनों के संबंध मे यदि ऐतिहासिक विवेचन किया जाये तो हम पाते हैं कि 65 वर्ष पूर्व जब भारत वर्ष स्वाधीन हुआ था तो यहाँ सुई भी नहीं बनती थी और आज हमारे यहाँ वायु यान ही नही,अस्त्र-शस्त्र ही नहीं राकेट,मिसाईल,परमाणु बम तक बन रहे हैं। आज़ादी के बाद कल-कारखानों का विकास हुआ है। किन्तु जनता की सुख-सुविधाएं पहले से भी ज़्यादा घटी हैं।'आसमान से टपका -खजूर मे अटका' की तर्ज पर सम्पूर्ण विकास का लाभ कुछ चुनिन्दा लोगों तक ही सिमट कर रह गया है और शेष जनता वैसे ही त्राही-माम,त्राही-माम करने को विवश है। हमारी शासन व्यवस्था राजनीतिक रूप से लोकतान्त्रिक है परंतु जब शोषित -दमित जनता एक जुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा की बात करती है तब चुनी हुई सरकारें ही भ्रष्ट-व्यापारियों,उद्योगपतियों,देशी-विदेशी निवेशकों,कारपोरेट घरानों के इशारे पर आम जनता का दमन करने हेतु पुलिस और सेना का सहारा लेती हैं। एक बहाना गढ़ लिया गया है माओवादी आतंकवाद का। सच्चाई यह है कि CIA अमेरिकी कारपोरेट हितों की रक्षा के लिए कुछ प्रशिक्षित आतंकवादियों को धन व शस्त्र मुहैया कराकर पुलिस व सेना पर आघात कराती है जिससे सरकारों को उनके सफाये के नाम पर गरीब असहाय जनता का दमन करने हेतु पुलिस व सेना का प्रयोग करना जायज ठहराया जा सके।
शोषक कारपोरेट घरानों का विरोध करने के कारण ही सीमा आज़ाद और उनके पति को ढाई वर्ष तक जेल मे बंद रखा गया और उनको आजीवन कैद की सजा सुना दी गई परंतु अलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसी माह की छह तारीख को निर्णय दिया कि विपरीत विचार रखने के कारण किसी को जेल मे नहीं रखा जा सकता और दोनों को जमानत पर रिहा कर दिया। ऐसे लगभग दस हजार कार्यकर्ता पूरे देश मे जेलों मे बंद हैं। क़ानूनों का खुला दुरुपयोग किया गया है और सभी मुकदमा लड़ते हुये हाई कोर्ट तक नहीं पहुँच पाते उनकी जिंदगी जेलों मे सड़ जाती है। बाकी लोग भय से चुप रह जाते हैं।
जल-जंगल-ज़मीनों की लूट मे एक दूसरा पहलू पर्यावरण का भी है उसकी भी अनदेखी की जा रही है। प्रकृति की निर्मम लूट का दुष्परिणाम मौसम पर भी पड़ता है जिससे फसलों को क्षति पहुँचती है। खाद्यान का आभाव हो जाता है और मुनाफाखोर व्यापारी जनता का और अधिक शोषण करते हैं। मुश्किल और मुसीबत यह है कि जनता को यह सब समझाये कौन?
जो लोग और पार्टियां जन-हितैषी हैं उनको एक भूत सवार है कि वे 'नास्तिक' हैं और 'धर्म' तथा 'भगवान' को नहीं मानते। दूसरी ओर सांप्रदायिक लोग (सांप्रदायिकता और साम्राज्यवाद सहोदरी हैं) धर्म की व्याख्या व्यापारियों -लुटेरों के हित मे प्रस्तुत करके उसी गरीब-शोषित जनता को उनके विरुद्ध कर देते हैं जो उनके हकों की लड़ाई लड़ रहे होते हैं। इसलिए भी माओवाद के नाम का सहारा लिया जाता है।
फिर क्या हो?
होना यह चाहिए कि जनवादी शक्तियों को एकजुट होकर आम जनता को यह समझाना चाहिए कि 'धर्म' वह नही है जो ढ़ोंगी पोंगा-पंथी बता रहे हैं। बल्कि धर्म वह है जो शरीर को धारण करने हेतु आवश्यक है,जैसे-'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
भगवान कभी भी नस और नाड़ी के बंधन मे नहीं बधता है इसलिए वह भगवान या उसका अवतार नही है जिसे पोंगापंथी लुटेरे बताते हैं। भ (भूमि-प्रथिवी )+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल) का समुच्य ही भगवान है और चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं किसी ने बनाए नहीं हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। इंका काम प्राणी मात्र का सृजन,पालन और संहार है =G(जेनरेट)+O (आपरेट)+D(डेसट्राय) अतः ये ही GOD हैं।
समस्या की जड़ यहीं है कि 'मार्क्स भगवान' कह गए हैं कि man has created the GOD for his mental security only तब उनके अंध-भक्त मार्क्सवादी-साम्यवादी कैसे जनता को 'धर्म' और 'भगवान' की वास्तविकता समझाएँ?
जनता लुटती-पिटती रहेगी ,सीमा आज़ाद उनके पति विश्वविजय और हजारों निरीह कार्यकर्ता बेकसूर जेलों मे बंद किए जाते रहेंगे। सांप्रदायिक तत्व धर्म के नाम पर धोखा परोस कर व्यापारियों,उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाते रहेंगे। काश जनवादी-साम्यवादी-बामपंथी समय की पुकार को समझ सकें?
"हमे पकड़ने के बाद तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कथित माओवादी खात्मे के नाम पर आठ हजार करोड़
का पेकेज लिया "---सीमा आज़ाद
"एक दो नहीं हमे लगता है कि सारे कानून काले हैं"---विश्वविजय (मानवाधिकार कार्यकर्ता और सीमा आज़ाद के पति)
"अनेक राज्यों मे आंदोलनों को कुचलने के लिए सेना का इस्तेमाल किया जाता है। सेना के साथ अगर हैं तो देश भक्त हैं ... अगर नहीं हैं तो राष्ट्र द्रोही । "---आलोचक वीरेंद्र यादव
एक साक्षात्कार मे सीमा आज़ाद ने यह भी बताया -सरकारें जल-जंगल-जमीन हड़पने के लिए कानून बना रही हैं ,जिसका लोग कडा विरोध कर रहे हैं। उनका साथ हमारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता दे रहे हैं । ऐसे मे राज्य के खिलाफ माहौल बन रहा है। उस पर काउंटर करने के लिए राज्य आक्रामक हो रहा है और लोकतन्त्र की धज्जियां उड़ा रहा है। उन्होने यह भी बताया कि पहले राज्य आम लोगों के लिए कार्य करता था । अब उसकी पहली प्राथमिकता मे प्राकृतिक संसाधनों की लूट करने वाले कारपोरेट घराने हैं। इसमे रोड़ा बनने वालों को दबाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं।
भुक्तभोगी जुझारू कार्यकर्ताओं एवं आलोचक-विश्लेषक विद्वान के उपरोक्त कथनों के संबंध मे यदि ऐतिहासिक विवेचन किया जाये तो हम पाते हैं कि 65 वर्ष पूर्व जब भारत वर्ष स्वाधीन हुआ था तो यहाँ सुई भी नहीं बनती थी और आज हमारे यहाँ वायु यान ही नही,अस्त्र-शस्त्र ही नहीं राकेट,मिसाईल,परमाणु बम तक बन रहे हैं। आज़ादी के बाद कल-कारखानों का विकास हुआ है। किन्तु जनता की सुख-सुविधाएं पहले से भी ज़्यादा घटी हैं।'आसमान से टपका -खजूर मे अटका' की तर्ज पर सम्पूर्ण विकास का लाभ कुछ चुनिन्दा लोगों तक ही सिमट कर रह गया है और शेष जनता वैसे ही त्राही-माम,त्राही-माम करने को विवश है। हमारी शासन व्यवस्था राजनीतिक रूप से लोकतान्त्रिक है परंतु जब शोषित -दमित जनता एक जुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा की बात करती है तब चुनी हुई सरकारें ही भ्रष्ट-व्यापारियों,उद्योगपतियों,देशी-विदेशी निवेशकों,कारपोरेट घरानों के इशारे पर आम जनता का दमन करने हेतु पुलिस और सेना का सहारा लेती हैं। एक बहाना गढ़ लिया गया है माओवादी आतंकवाद का। सच्चाई यह है कि CIA अमेरिकी कारपोरेट हितों की रक्षा के लिए कुछ प्रशिक्षित आतंकवादियों को धन व शस्त्र मुहैया कराकर पुलिस व सेना पर आघात कराती है जिससे सरकारों को उनके सफाये के नाम पर गरीब असहाय जनता का दमन करने हेतु पुलिस व सेना का प्रयोग करना जायज ठहराया जा सके।
शोषक कारपोरेट घरानों का विरोध करने के कारण ही सीमा आज़ाद और उनके पति को ढाई वर्ष तक जेल मे बंद रखा गया और उनको आजीवन कैद की सजा सुना दी गई परंतु अलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसी माह की छह तारीख को निर्णय दिया कि विपरीत विचार रखने के कारण किसी को जेल मे नहीं रखा जा सकता और दोनों को जमानत पर रिहा कर दिया। ऐसे लगभग दस हजार कार्यकर्ता पूरे देश मे जेलों मे बंद हैं। क़ानूनों का खुला दुरुपयोग किया गया है और सभी मुकदमा लड़ते हुये हाई कोर्ट तक नहीं पहुँच पाते उनकी जिंदगी जेलों मे सड़ जाती है। बाकी लोग भय से चुप रह जाते हैं।
जल-जंगल-ज़मीनों की लूट मे एक दूसरा पहलू पर्यावरण का भी है उसकी भी अनदेखी की जा रही है। प्रकृति की निर्मम लूट का दुष्परिणाम मौसम पर भी पड़ता है जिससे फसलों को क्षति पहुँचती है। खाद्यान का आभाव हो जाता है और मुनाफाखोर व्यापारी जनता का और अधिक शोषण करते हैं। मुश्किल और मुसीबत यह है कि जनता को यह सब समझाये कौन?
जो लोग और पार्टियां जन-हितैषी हैं उनको एक भूत सवार है कि वे 'नास्तिक' हैं और 'धर्म' तथा 'भगवान' को नहीं मानते। दूसरी ओर सांप्रदायिक लोग (सांप्रदायिकता और साम्राज्यवाद सहोदरी हैं) धर्म की व्याख्या व्यापारियों -लुटेरों के हित मे प्रस्तुत करके उसी गरीब-शोषित जनता को उनके विरुद्ध कर देते हैं जो उनके हकों की लड़ाई लड़ रहे होते हैं। इसलिए भी माओवाद के नाम का सहारा लिया जाता है।
फिर क्या हो?
होना यह चाहिए कि जनवादी शक्तियों को एकजुट होकर आम जनता को यह समझाना चाहिए कि 'धर्म' वह नही है जो ढ़ोंगी पोंगा-पंथी बता रहे हैं। बल्कि धर्म वह है जो शरीर को धारण करने हेतु आवश्यक है,जैसे-'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
भगवान कभी भी नस और नाड़ी के बंधन मे नहीं बधता है इसलिए वह भगवान या उसका अवतार नही है जिसे पोंगापंथी लुटेरे बताते हैं। भ (भूमि-प्रथिवी )+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल) का समुच्य ही भगवान है और चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं किसी ने बनाए नहीं हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। इंका काम प्राणी मात्र का सृजन,पालन और संहार है =G(जेनरेट)+O (आपरेट)+D(डेसट्राय) अतः ये ही GOD हैं।
समस्या की जड़ यहीं है कि 'मार्क्स भगवान' कह गए हैं कि man has created the GOD for his mental security only तब उनके अंध-भक्त मार्क्सवादी-साम्यवादी कैसे जनता को 'धर्म' और 'भगवान' की वास्तविकता समझाएँ?
जनता लुटती-पिटती रहेगी ,सीमा आज़ाद उनके पति विश्वविजय और हजारों निरीह कार्यकर्ता बेकसूर जेलों मे बंद किए जाते रहेंगे। सांप्रदायिक तत्व धर्म के नाम पर धोखा परोस कर व्यापारियों,उद्योगपतियों और कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाते रहेंगे। काश जनवादी-साम्यवादी-बामपंथी समय की पुकार को समझ सकें?
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होना यह चाहिए कि जनवादी शक्तियों को एकजुट होकर आम जनता को यह समझाना चाहिए कि 'धर्म' वह नही है जो ढ़ोंगी पोंगा-पंथी बता रहे हैं। बल्कि धर्म वह है जो शरीर को धारण करने हेतु आवश्यक है,जैसे-'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
सच है.... वैचारिक पोस्ट
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