भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 88वे स्थापना दिवस पर विशेष -----
हिंदुस्तान,लखनऊ,16-12-2012 मे राजेन्द्र जी के इस कार्टून ने एक बार फिर से 'साम्यवाद' को विदेशी अवधारणा सिद्ध करने का प्रयास किया है और इसके लिए सिर्फ उनको ही दोष नहीं दिया जा सकता है। हमारे अपने देश के साम्यवादी विद्वान खुद-ब-खुद अपने को 'मार्कसवाद' का अंध-भक्त बताने हेतु भारतीय वांगमय की निंदा करना अपना नैतिक धर्म समझते हैं। इनकी खसूसियत यह है कि ये खुद अपने को 'धर्म विरोधी' होने का फतवा जारी करते हैं और बिना सोचे-विचारे धर्म की निर्मम आलोचना करते हैं। कभी 'धार्मिक भटकाव' तो कभी 'संस्थागत धर्म' जैसे मुहावरों को गढ़ते और प्रचारित करते रहते हैं।
धर्म=जो मानव शरीर और मानव सभ्यता को धारण करने हेतु आवश्यक है। जैसे-सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। अब जब मार्क्स वादी होने की धुन मे धर्म की आलोचना की जाएगी तो स्पष्ट है कि इन सद्गुणों से दूर रहने को कहा जा रहा है। खुद को महान चिंतक सिद्ध करने की हवस मे ये विद्वान खुद-ब-खुद अपने दृष्टिकोण को ध्वस्त करते व प्रतिपक्षी को फतह हासिल करने के लिए खुला मैदान छोडते जाते हैं।
रोज़ी -रोटी के लिए खड़ी की गई दुकानों को ये विद्वान 'धर्म' की संज्ञा देते हैं। जबकि जनता को वास्तविक धर्म समझा कर उनसे दूर रखा जा सकता था। हमारे विद्वानों यथा-कबीर,रेदास,दयानन्द,विवेकानंद आदि के विचारों द्वारा हम अपनी बात को ज़्यादा अच्छे ढंग से जनता को समझा सकते हैं और जनता मानेगी भी। जब खुराफात को साम्यवादी विद्वान ही धर्म की संज्ञा देंगे तब जनता तो उनके प्रति आकृष्ट होगी ही। शोषक-उत्पीड़क वर्ग के हित मे शासन -सत्ता से मिल कर जिन तत्वों ने वास्तविक धर्म को जनता से ओझल करके धन कमाई की तिकड़मे की हैं उन ही लोगों को हमारे अपने इन विद्वानों से बल मिलता है। आज का समय 'आत्मालोचना' का है की,1952 की संसद का मुख्य विपक्षी दल अब दलों के दल-दल मे मे कैसे फंसा है और गुड़ से चिपके चीटों की तरह लुटेरे कैसे सत्ता पर हावी हैं?कहने की आवश्यकता नही है कि इसके लिए ऐसे अहंकारी साम्यवादी विद्वान ही उत्तरदाई हैं। 'साम्यवाद' मूलतः भारतीय अवधारणा है और यहीं से मेक्समूलर साहब की मार्फत जर्मनी पहुंची है जिसके जर्मन भाषा मे अनुवाद पर कार्ल मार्क्स साहब ने अपना सिद्धान्त प्रतिपादित किया था। उन्होने विश्लेषण मे जो गलती की वह इंग्लैण्ड और जर्मनी की सामाजिक व्यवस्था पर आधारित है। हमे भारत मे उस गलती को क्यों दोहराना चाहिए?
और फिर खुद कामरेड जोसेफ स्टालिन का मानना था कि भारत मे 'साम्यवाद' का रास्ता तथा तौर-तरीका वह नहीं होना चाहिए था जैसा कि सोवियत रूस मे था। निम्नलिखित संदर्भ से इस बात की पुष्टि की जा सकती है---
Taken down by V. Grigor’yan 10.II.51.
(Signed) V. Grigor’yan Typescript.
RGASPI F. Op. 11 D. 310, LL. 71-86.
Published with the kind permission of the authorities of the Russian State Archive of Social and Political History.
Translated from the Russian by Vijay Singh
स्टालिन साहब ने कहा था- Stalin’s understanding of the problems before the CPI exerted a profound effect on the course of the history of the party as it led to the recasting of the party approach to the understanding of the character of the Indian state, the stage of revolution, the path of revolution, and the nature of armed revolution and armed struggle, the role of the working class and the peasantry in the revolutionary process in India. This found its expression in the formulation of the new party documents which were drafted in 1951 shortly after the Moscow meetings between the representatives of the CPI and the CPSU
लेकिन हमारे तब के नेताओं ने स्टालिन साहब के सुझावों को स्थाई रूप से स्वीकार नहीं किया- The resolution of the questions of the Indian revolution worked out in 1951, however, proved to be short-lived. With the changes in the Soviet Union after 1953 and the 20th Congress of the CPSU three years later there occurred a corresponding change in the programmatic and tactical perspectives of the CPI: the stage of people’s democratic revolution was dropped in favour of a national democratic revolution which would have an enhanced role for the national bourgeoisie, and revolutionary strategies were replaced by peaceful and parliamentary ones.
परिणामस्वरूप 1964 मे तेलंगाना आंदोलन की लाईन को सही मानने और चीन की पद्धति पर अमल करने व चीन को आक्रांता न मानने के कारण एक तबका अलग हो गया जिसे आज CPM के नाम से जाना जाता है। 1967 मे पश्चिम बंगाल मे कामरेड ज्योति बासु के उप मुख्यमंत्री व गृह मंत्री रहते हुये 'नक्सल बाड़ी आंदोलन'को कुचले जाने के कारण CPM से फिर एक तबका अलग हो गया और अब तो उस तबके के अलग-अलग आठ-दस और तबके हो चुके हैं।
चाहे जितने तबके व गुट हों सबमे एक ज़बरदस्त समानता है कि वे 'साम्यवाद' को खुद भी विदेशी अवधारणा मानते हैं। 'Man has created the GOD for his Mental Security only'-मार्क्स साहब का यह वाक्य सभी के लिए 'ब्रह्म वाक्य' है इस कथन को कहने की परिस्थियों व कारणों की तह मे जाने की उनको न कोई ज़रूरत है और न ही समझने को तैयार हैं। उनके लिए धर्म अफीम है। वे न तो धर्म का मर्म जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। वस्तुतः धर्म=जो मानव शरीर एवं मानव सभ्यता को धरण करने हेतु आवश्यक है जैसे ---
'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य'। अब इन सद्गुणों की मुखालफत करके हम समाज से शोषण और उत्पीड़न को कैसे समाप्त कर सकते हैं?और यही वजह है कि इन सद्गुणों को ठुकराने के कारण सोवियत रूस मे साम्यवाद उखड़ गया और जो चीन मे चल रहा है वह वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी के संरक्षण मे चल रहा 'पूंजीवाद' ही है।
प्रकृति में जितने भी जीव हैं उनमे मनुष्य ही केवल मनन करने के कारण श्रेष्ठ है,यह विशेष जीव ज्ञान और विवेक द्वारा अपने उपार्जित कर्मफल को अच्छे या बुरे में बदल सकता है.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म का फल अच्छा,दुष्कर्म का फल बुरा होता है.परन्तु सब से महत्वपूर्ण अ-कर्म होता है जिसका अक्सर लोग ख्याल ही नहीं करते हैं.अ-कर्म वह कर्म है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.अक्सर लोगों को कहते सुना जाता है कि हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों होता है.ऐसे लोग कहते हैं कि या तो भगवान है ही नहीं या भगवान के घर अंधेर है.वस्तुतः भगवान के यहाँ अंधेर नहीं नीर क्षीर विवेक है परन्तु पहले भगवान को समझें तो सही कि यह क्या है--किसी चाहर दिवारी में सुरक्षित काटी तराशी मूर्ती या नाडी के बंधन में बंधने वाला नहीं है अतः उसका जन्म या अवतार भी नहीं होता.भगवान तो घट घट वासी,कण कण वासी है उसे किसी एक क्षेत्र या स्थान में बाँधा नहीं जा सकता.भगवान क्या है उसे समझना बहुत ही सरल है-भ-अथार्त भूमि,ग-अथार्त गगन,व्-अथार्त वायु, I -अथार्त अनल (अग्नि),और न-अथार्त-नीर यानि जल,प्रकृति के इन पांच तत्वों का समन्वय ही भगवान है जो सर्वत्र पाए जाते हैं.इन्हीं के द्वारा जीवों की उत्पत्ति,पालन और संहार होता है तभी तो GOD अथार्त Generator,Operator ,Destroyer इन प्राकृतिक तत्वों को किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसलिए ये खुदा हैं.
जब भगवान,गाड और खुदा एक ही हैं तो झगड़ा किस बात का?परन्तु झगड़ा है नासमझी का,मानव द्वारा मनन न करने का और इस प्रकार मनुष्यता से नीचे गिरने का.इस संसार में कर्म का फल कैसे मिलता है,कब मिलता है सब कुछ एक निश्चित प्रक्रिया के तहत ही होता है जिसे समझना बहुत सरल है किन्तु निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा जटिल बना दिया गया है.हम जितने भी सद्कर्म,दुष्कर्म या अकर्म करते है उनका प्रतिफल उसी अनुपात में मिलना तय है,परन्तु जीवन काल में जितना फल भोग उसके अतिरिक्त कुछ शेष भी बच जाता है.यही शेष अगले जनम में प्रारब्ध(भाग्य या किस्मत) के रूप में प्राप्त होता है.अब मनुष्य अपने मनन द्वारा बुरे को अच्छे में बदलने हेतु एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा समाधान कर सकता है.यदि समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो सुफल परन्तु यदि ढोंग-पाखंड विधि से किया जाये तो प्रतिकूल फल मिलता है.
लेकिन अफसोस यही कि इस वैज्ञानिक सोच का विरोध प्रगतिशीलता एवं वैज्ञानिकता की आड़ मे साम्यवाद के विद्वानों द्वारो भी किया जाता है और पोंगापंथी ढ़ोंगी पाखंडियों द्वारा भी। अतः नतीजा यह होता है कि जनता धर्म के नाम पर व्यापारियो/उद्योगपतियों/शोषकों के बुने जाल मे फंस कर लुटती रहती है। साम्यवाद-समाजवाद के नारे लगते रहते हैं और नतीजा वही 'ढाक के तीन पात'।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
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हिंदुस्तान,लखनऊ,16-12-2012 मे राजेन्द्र जी के इस कार्टून ने एक बार फिर से 'साम्यवाद' को विदेशी अवधारणा सिद्ध करने का प्रयास किया है और इसके लिए सिर्फ उनको ही दोष नहीं दिया जा सकता है। हमारे अपने देश के साम्यवादी विद्वान खुद-ब-खुद अपने को 'मार्कसवाद' का अंध-भक्त बताने हेतु भारतीय वांगमय की निंदा करना अपना नैतिक धर्म समझते हैं। इनकी खसूसियत यह है कि ये खुद अपने को 'धर्म विरोधी' होने का फतवा जारी करते हैं और बिना सोचे-विचारे धर्म की निर्मम आलोचना करते हैं। कभी 'धार्मिक भटकाव' तो कभी 'संस्थागत धर्म' जैसे मुहावरों को गढ़ते और प्रचारित करते रहते हैं।
धर्म=जो मानव शरीर और मानव सभ्यता को धारण करने हेतु आवश्यक है। जैसे-सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। अब जब मार्क्स वादी होने की धुन मे धर्म की आलोचना की जाएगी तो स्पष्ट है कि इन सद्गुणों से दूर रहने को कहा जा रहा है। खुद को महान चिंतक सिद्ध करने की हवस मे ये विद्वान खुद-ब-खुद अपने दृष्टिकोण को ध्वस्त करते व प्रतिपक्षी को फतह हासिल करने के लिए खुला मैदान छोडते जाते हैं।
रोज़ी -रोटी के लिए खड़ी की गई दुकानों को ये विद्वान 'धर्म' की संज्ञा देते हैं। जबकि जनता को वास्तविक धर्म समझा कर उनसे दूर रखा जा सकता था। हमारे विद्वानों यथा-कबीर,रेदास,दयानन्द,विवेकानंद आदि के विचारों द्वारा हम अपनी बात को ज़्यादा अच्छे ढंग से जनता को समझा सकते हैं और जनता मानेगी भी। जब खुराफात को साम्यवादी विद्वान ही धर्म की संज्ञा देंगे तब जनता तो उनके प्रति आकृष्ट होगी ही। शोषक-उत्पीड़क वर्ग के हित मे शासन -सत्ता से मिल कर जिन तत्वों ने वास्तविक धर्म को जनता से ओझल करके धन कमाई की तिकड़मे की हैं उन ही लोगों को हमारे अपने इन विद्वानों से बल मिलता है। आज का समय 'आत्मालोचना' का है की,1952 की संसद का मुख्य विपक्षी दल अब दलों के दल-दल मे मे कैसे फंसा है और गुड़ से चिपके चीटों की तरह लुटेरे कैसे सत्ता पर हावी हैं?कहने की आवश्यकता नही है कि इसके लिए ऐसे अहंकारी साम्यवादी विद्वान ही उत्तरदाई हैं। 'साम्यवाद' मूलतः भारतीय अवधारणा है और यहीं से मेक्समूलर साहब की मार्फत जर्मनी पहुंची है जिसके जर्मन भाषा मे अनुवाद पर कार्ल मार्क्स साहब ने अपना सिद्धान्त प्रतिपादित किया था। उन्होने विश्लेषण मे जो गलती की वह इंग्लैण्ड और जर्मनी की सामाजिक व्यवस्था पर आधारित है। हमे भारत मे उस गलती को क्यों दोहराना चाहिए?
और फिर खुद कामरेड जोसेफ स्टालिन का मानना था कि भारत मे 'साम्यवाद' का रास्ता तथा तौर-तरीका वह नहीं होना चाहिए था जैसा कि सोवियत रूस मे था। निम्नलिखित संदर्भ से इस बात की पुष्टि की जा सकती है---
Record of the Discussions of J.V. Stalin with the Representatives of the C.C. of the Communist Party of India Comrades, Rao, Dange, Ghosh and Punnaiah
9th February 1951
Taken down by V. Grigor’yan 10.II.51.
(Signed) V. Grigor’yan Typescript.
RGASPI F. Op. 11 D. 310, LL. 71-86.
Published with the kind permission of the authorities of the Russian State Archive of Social and Political History.
Translated from the Russian by Vijay Singh
स्टालिन साहब ने कहा था- Stalin’s understanding of the problems before the CPI exerted a profound effect on the course of the history of the party as it led to the recasting of the party approach to the understanding of the character of the Indian state, the stage of revolution, the path of revolution, and the nature of armed revolution and armed struggle, the role of the working class and the peasantry in the revolutionary process in India. This found its expression in the formulation of the new party documents which were drafted in 1951 shortly after the Moscow meetings between the representatives of the CPI and the CPSU
लेकिन हमारे तब के नेताओं ने स्टालिन साहब के सुझावों को स्थाई रूप से स्वीकार नहीं किया- The resolution of the questions of the Indian revolution worked out in 1951, however, proved to be short-lived. With the changes in the Soviet Union after 1953 and the 20th Congress of the CPSU three years later there occurred a corresponding change in the programmatic and tactical perspectives of the CPI: the stage of people’s democratic revolution was dropped in favour of a national democratic revolution which would have an enhanced role for the national bourgeoisie, and revolutionary strategies were replaced by peaceful and parliamentary ones.
परिणामस्वरूप 1964 मे तेलंगाना आंदोलन की लाईन को सही मानने और चीन की पद्धति पर अमल करने व चीन को आक्रांता न मानने के कारण एक तबका अलग हो गया जिसे आज CPM के नाम से जाना जाता है। 1967 मे पश्चिम बंगाल मे कामरेड ज्योति बासु के उप मुख्यमंत्री व गृह मंत्री रहते हुये 'नक्सल बाड़ी आंदोलन'को कुचले जाने के कारण CPM से फिर एक तबका अलग हो गया और अब तो उस तबके के अलग-अलग आठ-दस और तबके हो चुके हैं।
चाहे जितने तबके व गुट हों सबमे एक ज़बरदस्त समानता है कि वे 'साम्यवाद' को खुद भी विदेशी अवधारणा मानते हैं। 'Man has created the GOD for his Mental Security only'-मार्क्स साहब का यह वाक्य सभी के लिए 'ब्रह्म वाक्य' है इस कथन को कहने की परिस्थियों व कारणों की तह मे जाने की उनको न कोई ज़रूरत है और न ही समझने को तैयार हैं। उनके लिए धर्म अफीम है। वे न तो धर्म का मर्म जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। वस्तुतः धर्म=जो मानव शरीर एवं मानव सभ्यता को धरण करने हेतु आवश्यक है जैसे ---
'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य'। अब इन सद्गुणों की मुखालफत करके हम समाज से शोषण और उत्पीड़न को कैसे समाप्त कर सकते हैं?और यही वजह है कि इन सद्गुणों को ठुकराने के कारण सोवियत रूस मे साम्यवाद उखड़ गया और जो चीन मे चल रहा है वह वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी के संरक्षण मे चल रहा 'पूंजीवाद' ही है।
प्रकृति में जितने भी जीव हैं उनमे मनुष्य ही केवल मनन करने के कारण श्रेष्ठ है,यह विशेष जीव ज्ञान और विवेक द्वारा अपने उपार्जित कर्मफल को अच्छे या बुरे में बदल सकता है.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म का फल अच्छा,दुष्कर्म का फल बुरा होता है.परन्तु सब से महत्वपूर्ण अ-कर्म होता है जिसका अक्सर लोग ख्याल ही नहीं करते हैं.अ-कर्म वह कर्म है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.अक्सर लोगों को कहते सुना जाता है कि हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों होता है.ऐसे लोग कहते हैं कि या तो भगवान है ही नहीं या भगवान के घर अंधेर है.वस्तुतः भगवान के यहाँ अंधेर नहीं नीर क्षीर विवेक है परन्तु पहले भगवान को समझें तो सही कि यह क्या है--किसी चाहर दिवारी में सुरक्षित काटी तराशी मूर्ती या नाडी के बंधन में बंधने वाला नहीं है अतः उसका जन्म या अवतार भी नहीं होता.भगवान तो घट घट वासी,कण कण वासी है उसे किसी एक क्षेत्र या स्थान में बाँधा नहीं जा सकता.भगवान क्या है उसे समझना बहुत ही सरल है-भ-अथार्त भूमि,ग-अथार्त गगन,व्-अथार्त वायु, I -अथार्त अनल (अग्नि),और न-अथार्त-नीर यानि जल,प्रकृति के इन पांच तत्वों का समन्वय ही भगवान है जो सर्वत्र पाए जाते हैं.इन्हीं के द्वारा जीवों की उत्पत्ति,पालन और संहार होता है तभी तो GOD अथार्त Generator,Operator ,Destroyer इन प्राकृतिक तत्वों को किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसलिए ये खुदा हैं.
जब भगवान,गाड और खुदा एक ही हैं तो झगड़ा किस बात का?परन्तु झगड़ा है नासमझी का,मानव द्वारा मनन न करने का और इस प्रकार मनुष्यता से नीचे गिरने का.इस संसार में कर्म का फल कैसे मिलता है,कब मिलता है सब कुछ एक निश्चित प्रक्रिया के तहत ही होता है जिसे समझना बहुत सरल है किन्तु निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा जटिल बना दिया गया है.हम जितने भी सद्कर्म,दुष्कर्म या अकर्म करते है उनका प्रतिफल उसी अनुपात में मिलना तय है,परन्तु जीवन काल में जितना फल भोग उसके अतिरिक्त कुछ शेष भी बच जाता है.यही शेष अगले जनम में प्रारब्ध(भाग्य या किस्मत) के रूप में प्राप्त होता है.अब मनुष्य अपने मनन द्वारा बुरे को अच्छे में बदलने हेतु एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा समाधान कर सकता है.यदि समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो सुफल परन्तु यदि ढोंग-पाखंड विधि से किया जाये तो प्रतिकूल फल मिलता है.
लेकिन अफसोस यही कि इस वैज्ञानिक सोच का विरोध प्रगतिशीलता एवं वैज्ञानिकता की आड़ मे साम्यवाद के विद्वानों द्वारो भी किया जाता है और पोंगापंथी ढ़ोंगी पाखंडियों द्वारा भी। अतः नतीजा यह होता है कि जनता धर्म के नाम पर व्यापारियो/उद्योगपतियों/शोषकों के बुने जाल मे फंस कर लुटती रहती है। साम्यवाद-समाजवाद के नारे लगते रहते हैं और नतीजा वही 'ढाक के तीन पात'।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
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4 comments:
फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणियाँ---
Seema Chandra --Vijai RajBali Mathur nice article.....sumwat agree wid u...!!
6 hours ago ·
Seema Chandra --thnx fr dis article sir......!
मैं पहले से विजय राज बली माथुरजी की पोस्ट पढ़ा करता हूँ और मुझे यह ब्लॉग पोस्ट भी पढ़ने योग्य लगी. अच्छी जानकारी और समझ के साथ लिखा गया हैं. सहमत या असहमत होना दूसरी बात हो सकती हैं . मेरे लिए जानकारी प्राप्त करना, पढना, समझना और सीखना यंहा उचित लगा !
फेसबुक ग्रुप 'जनवादी जन मंच' में प्राप्त टिप्पणी : -
Iliyas Khan : mathur ji badi achhi bat kahi h aapne kya is desh ke leader is kaam ko shuru nai kar sakte kyuki modi n advani jese pata nai kitne aise leader h jo is desh ko dharm n jaati me bantna chahte h ya to aap unka bahiskar kare ya fir unko election ladne se roka jaye jab tak aisa nai hoga hum sabke bich me jagah apne aap banti jayegi h aur ye log iska fayada uthayenge is se desh ka nuksan hoga agar aap sab aisi sampardayik party ka virodh nai karenge tab tak kuchh nai hoga jai hind
फेसबुक ग्रुप-communist party of india में प्राप्त कमेन्ट और उसका उत्तर ---
Gulshan Kumar Ajmani: dharam aur rjaati ki rajneeti ne sarvadhik nuksaan communist ko aur phir congress ko bhi pahunchaya hai. Shiva sena, BSP, samajvadi party, BJP vagarah dharam ya jaati ke adhaar par janmat ko prabhavit karate hain. Ab BJP ne dharm aur dharmik prateekon ke adhaar par bhavanayen failakar chahe chhhipe taur par hi, satta hathiya lee. communist na to dharam ki rajneeti kar sakate hain na jaati ki, voh ganga maa ki aarati bhi nahi utaar sakate. In paristhititon men voh pichhhad gaye. Unka koi aur dosh to nazar nahin aata.
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Vijai RajBali Mathur: पंडित आजमानी जी आप सिर्फ ढोंग-पाखंड-आडंबर को पोंगापंडितों के स्वर में स्वर मिला कर मानते हैं। जबको वह सब खुराफात अधर्म है धर्म नहीं। आप सरीखे लोग अधर्म को धर्म कह कर बढ़ावा देते रहते हैं इसलिए कम्युनिस्ट पिछड़ते रहते हैं। जिस दिन इस सत्य को स्वीकार लेंगे कि धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा- वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य है और ढोंग-पाखंड-आडंबर मात्र अधर्म है उसी दिन से कम्युनिस्ट सफलता की ओर कदम बढ़ा देंगे। आप जब तक खुद नहीं समझेंगे तो जनता को गलत समझाएँगे और जनता वैसा समझाएगी जैसा इन चुनावों में । मोदी को सत्ता में पहुंचाने वाले लोगों में ऐसे ही वामपंथियों का बहुत बड़ा योगदान है । यदि सही धर्म जनता को कम्युनिस्ट समझाते तो जनता अधर्म को धर्म न मानती। पर क्या करें जब आप सारीखे परम ज्ञानी ही अधर्म को धर्म मानते हैं?
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