1959 मे बनी 'सुजाता' फिल्म मे बचपन के दिनों को कितना सुहाना बताया गया था लेकिन आज -----
हिंदुस्तान,लखनऊ,04 फरवरी,2013 |
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"अनुत्तरित प्रश्न"http://alpana-verma.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
पर 'अल्पना वर्मा जी' ने एक 30 वर्षीय युवती जो 12 वर्षीय पुत्र की माँ थी द्वारा आत्म-हत्या किए जाने पर कुछ प्रश्न उठाए थे जिन पर डॉ दराल साहब ने आत्म-हत्या को अपनी टिप्पणी मे 'कायरपन'कहा है जो कि पागलपन है। ऊपर पहले फोटो से ज्ञात होता है कि,एक और 30 वर्षीय युवती जो 12 वर्षीय पुत्र तथा 09 एवं 04 वर्षीय पुत्रियों कुल तीन बच्चों की माँ थी ने भी आग लगा कर आत्म-हत्या कर ली जिसे बचाने के प्रयास मे उसका 35 वर्षीय पति भी मृत हो गया और बच्चे माँ-बाप विहीन हो गए। प्रथम-द्रष्ट्या तो ये और ऐसे ही मामले पागलपन ही प्रतीत होते हैं।
किन्तु हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक 04 फरवरी,2013 को 'ऋतु सारस्वत जी'ने अपने लेख के माध्यम से उन परिस्थितियों एवं कारणों पर प्रकाश डाला है जिनके कारण बच्चे अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं और उन्होने अपनी तरफ से इसके निदान हेतु पुरातन 'संयुक्त परिवार' प्रणाली को अपनाए जाने का भी सुझाव दिया है । साथ ही साथ माँ-बाप द्वारा बच्चों पर अधिक व्यक्तिगत ध्यान दिये जाने की भी आवश्यकता बतलाई है।
ऊपर जो गाना आप लोगों ने सुना उसमे 'बचपन' को 'स्वर्ग'की भांति बताया गया है और आज का सच भी आँखों के सामने है। 'ऋतु सारस्वत' जी का आंकलन तो सही है ही साथ-साथ यह भी एक हकीकत है कि आज केवल 'धनार्जन' पर ध्यान दिया जा रहा है और मानवीय गुणों की अवहेलना लगातार की जा रही है। किसी -किसी परिवार मे माँ-बाप दोनों कमाई कर रहे हैं तो कहीं दोनों ही बेरोजगार हैं। आर्थिक असमानता तो है किन्तु बच्चों के सामने व्यवहारिक 'अन्तर'उनको उद्वेलित कर देता है और 'बाल अपराध' भी बढ़ गया है।
आज 'धर्म' के नाम पर तरह-तरह के 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को मान्यता मिली हुई है और वास्तविक 'धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य' को अफीम कह कर ठुकरा दिया गया है अथवा तथाकथित 'आस्था' के नाम पर भुला दिया गया है। 'हवन' पद्धति को ठुकरा कर काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा को धर्म बताया जा रहा है। इन सब खुराफ़ातों का ही स्व्भाविक परिणाम हैं इस प्रकार की 'दुर्घटनाएँ'।
'हवन' मे 'भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)'की वास्तविक पूजा हो जाती थी। डाली गई जड़ी-बूटियों की आहुतियाँ बोले गए मंत्रों की शक्ति से 'भगवान'के पांचों देवताओं तक वायु द्वारा पहुंचा दी जाती थीं जिनको अग्नि द्वारा अणुओं=ATOMS मे विभाजित किया गया था,यह 'पदार्थ विज्ञान'=material science पर आधारित पद्धति पूर्णता : 'शुद्ध' और सही थी।'देवता' वह होता है जो देता है और लेता नहीं है ----जैसे-वृक्ष,वायु,अग्नि,आकाश,भूमि,जल(नदी,तालाब,समुद्र,कुआं आदि)। इंसान के गढ़े हुये पत्थर के टुकड़े न देवता हैं न ही भगवान। किन्तु आज IBN7 के कारिंदा जो 'भ्रष्ट-धृष्ट-निकृष्ट'पूना प्रवासी ब्लागर का चमचा है 'ज्योतिष एक मीठा जहर' कह कर 'हवन' की कटु आलोचना करके लोगों को इससे वंचित रखने का अभियान चलाये हुये है। यू पी की एक वैज्ञानिक संस्था का अध्यक्ष ज्योतिष को 100 प्रतिशत झूठा बता कर लोगों को बचाव के उपायों से दूर रहने को प्रेरित कर रहा है PP ब्लागर के ही मंसूबों को पूरा करना उसका भी अभीष्ट है।
ऐसी परिस्थितियों मे प्रश्नों का अनुत्तरित रहना और समाज मे पागलपन का दौर चलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जब आप वास्तविक समाधान नहीं अपनाएँगे तो रोने-गाने से कुछ होने वाला नहीं है।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
2 comments:
मेरा तो इन बातों पर पूरा यकीन है कि हवन से वातावरण की शुद्धि होती है और नकारात्मक उर्जा नष्ट होती है ,अरब देश में भी लोबान सुबह और शाम जलाया जाता है जिस का उद्देश्य भी यही होता है.इसे धर्म से जोड़ें या न जोड़ें लेकिन यह सत्य है कि आधुनिक समय में परिवार में अपनी सभ्यता और संस्कृति से दूर होते जाना भी परिवारों में /संबंधों में बढ़ते असंतोष का कारण है जिस के परिणाम स्वरूप हत्या /आत्महत्या आदि होती हैं,.
बहुत सही बात कही है आपने
.सार्थक प्रस्तुति राजनीतिक
सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने
हैं ?
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