Tuesday, September 30, 2014

'मंगल ग्रह राख़ एवं चट्टानों का ढेर है। ':कुंभकर्ण --- -- विजय राजबली माथुर

 अब 'मंगल' पर फतह :


तब  समाज-कल्याण में पिछड़े क्यों?:


Yesterday at 12:24pm(27-09-2014 ) ·

जी हाँ अब से नौ लाख वर्ष पूर्व साईबेरिया के शासक व महान वैज्ञानिक 'कुंभकर्ण' ने अपने अन्वेषण के बाद घोषणा कर दी थी कि,'मंगल ग्रह राख़ एवं चट्टानों का ढेर है। '---
भारतीय मंगल यान से प्राप्त मंगल बाबा की उबड़-खाबड़ और बदसूरत तस्वीर देखकर महसूस हुआ कि चांद की तरह वे भी किस्से-कहानियों में ही अच्छे लगते रहे थे। भ्रम टूटा तो अपनी हरी-भरी, सुजला, खूबसूरत पृथ्वी के लिए ह्रदय श्रद्धा से भर आया। अनंत काल से अपनी कोटि-कोटि संतानों को पालने वाली अपनी पृथ्वी का ही कितना दर्द समझ पाए हमलोग ? उलटे अपनी बेमतलब ज़रूरतों के लिए उसका निरंतर दोहन कर उसे नंगा करने की कोशिशों में लगे रहे हैं। मंगल ग्रह पर जाकर हम क्या पा लेंगे ? क्या कहा, ज्ञान ? अपने जीवन में अपने गांव-शहर और उसके लोगों के सुख-दुख के बारे में ही कितना जान पाते हैं आप ?
हमारी स्वार्थपरता के कारण विनाश के कगार पर खड़ी पृथ्वी के बाद अब बर्बाद होने की बारी मंगल की है !




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प्रकृति,धर्म और विपत्ति :
पाश्चात्य साम्राज्यवादियो से प्रभावित और उनके समर्थक मानते हैं कि वेद गड़रियों के गीत हैं और उनमें अश्लीलता की भरमार है। ऐसे लोगों ने मूल निवासी आंदोलन के नाम पर साम्राज्यवाद समर्थकों की ऐसी फौज खड़ी कर दी है जो कि मूलतः शोषित-उत्पीड़ित है और उसे साम्राज्यवाद के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए था। परंतु भारतीय राजनीति की यही विडम्बना है कि साम्यवाद समर्थक 'एथीस्टवाद' के नाम पर पोंगापंथी-ढोंग,पाखंड,आडंबर को धर्म की संज्ञा दे कर महिमामंडित कर देते हैं जिसका पूरा-पूरा लाभ सांप्रदायिक शक्तियों (साम्राज्यवाद व सांप्रदायिकता सहोदरी हैं) को मिलता है जिनसे शोषक व उत्पीड़क लाभान्वित होते हैं और इस प्रकार एथीस्ट्वाद सांप्रदायिक शक्तियों के कवच का काम करता है।


धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।

भगवान =भ (भूमि-ज़मीन  )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी) ।

और चूंकि भगवान (पांचों तत्व ) खुद ही बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है इसीलिए ये ही 'खुदा ' हैं । 

इन पांचों तत्वों का कार्य प्राणियों व वनस्पतियों की उत्पत्ति (GENERATE ),पालन (OPERATE ) और संहार (DESTROY ) है इसलिए ये ही GOD हैं। 

लेकिन शोषकों व लुटेरों की सांप्रदायिक शक्तियों के कर्ता-धर्ताओं की भांति ही साम्यवादी भी 'एथीस्ट वाद' की आड़ में वास्तविक धर्म की आलोचना तथा ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म घोषित करते रह कर  गौरान्वित होते हैं। परिणामतः प्रकृति इस लूट व शोषण का दंड अवश्य ही देती है ,यथा---





यदि अब भी समय रहते 'एथीस्ट वाद ' अथवा 'मूल निवासी आंदोलन ' के नाम पर 'वेदों' का मखौल न उड़ा कर उनमें अंतर्निहित ज्ञान व विज्ञान का भरपूर लाभ उठा लिया जाये तो धन-जन-श्रम का अपव्यय रोका जा सकता है और उसे समस्त मानवता के कल्याण में लगाया जा सकता है क्योंकि वेद सम्पूर्ण पृथिवी के वासियों को आर्य=आर्ष=श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं। पश्चिम द्वारा गलत प्रचारित आर्य कोई जाति नहीं है,न ही तथाकथित सांगठनिक धर्म । वेद प्रकृति के नियमानुसार चलने के दर्शन का उपदेश हैं। 
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  ~विजय राजबली माथुर ©
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1 comment:

Dr. Rajeev K. Upadhyay said...

अच्छी प्रस्तुति। आपकी इस प्रस्तुति को चर्चामंच पर परंपराओं 4 अक्टूबर 2014 शनिवार को चर्चा हेतु रखी जाएगी। आप भी पधारें। http://charchamanch.blogspot.in/ स्वयं शून्य