Tuesday, November 4, 2014

वैज्ञानिक समझ 'सत्य ' को नकार कर नहीं बन सकती ---विजय राजबली माथुर


"पाछे पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत " :
 वीरेंद्र यादव जी के उपरोक्त विचार हैं तो महत्वपूर्ण किन्तु समय रहते उन पर गौर नहीं किया गया और अब भी सही ढंग से विरोध नहीं किया जा रहा है। वर्तमान प्रधानमंत्री जिस संगठन के प्रति निष्ठावान हैं उसका कार्य ही अफवाहें फैलाना है। लेकिन ऐसी अफवाहों को तभी बल मिलता है जब सच्चाई को अस्वीकार कर दिया जाता है। सच्चाई तो यह है कि :
*शिव- यह हमारा देश भारत ही शिव है । आप भारत का नक्शा और शिव के रूप की तुलना कर लीजिये स्वतः सिद्ध हो जाएगा। शिव के माथे पर अर्द्ध चंद्रमा भारत भाल पर हिमाच्छादित हिमालय पर्वत ही तो है।जटाओं से निकलती गंगा यही तो संकेत दे रही हैं कि भारत के मस्तक -तिब्बत स्थित 'मानसरोवर' झील से गंगा का उद्गम हुआ है।  शिव का नंदी बैल भारत के कृषि-प्रधान देश होने का प्रतीक है। विभिन्न परस्पर विरोधी जीवों के आभूषण का अभिप्राय है-भारत विविधता में एकता वाला देश है। 
परंतु प्रगतिशील लोग जब एथीज़्म के नाम पर इसका विरोध करेंगे तो अफवाह फैलाने वाला संगठन उसका सरलता से दुरूपयोग करेगा ही जैसा कि अस्पताल के उदघाटन पर किया है। 

* गणेश - गण + ईश = जन-नायक = राष्ट्रपति / राजनेता 
अर्थात जनता का शासक ऐसा होना चाहिए जैसे सूप जैसे कान रखने वाला अभिप्राय यह है कि जन-नायक को सुननी सब की चाहिए। सूंढ जैसी नाक अर्थात जन-नायक की घ्राण शक्ति तीव्र होनी चाहिए और वह अपनी मेधा से जन-आकांछाओ को समझने वाला होना चाहिए। कुप्पा जैसा पेट अर्थात जन-नायक में परस्पर विरोधी बातों को हजम करने की क्षमता होनी चाहिए। चूहे की सवारी अर्थात पञ्च-मार्गियों/आतंक वादियों को कुचल कर रखने वाला हमारा शासक होना चाहिए। 
पुनः प्रगतिशीलों का एथीज़्म इस तथ्य को स्वीकार न करके अफवाह फैलाने वालों को मन-मर्ज़ी मुताबिक व्याख्या करने की खुली छूट देता है। 

यदि मैं अपने ब्लाग्स के माध्यम से 'ढोंग-पाखंड-आडंबर-पोंगा-पंडितवाद' आदि का पर्दाफाश करता हूँ तो साम्यवादियों में घुसपैठ किए हुये पोंगा-पंडित तिलमिला जाते हैं और मुझ पर प्रहार करते हुये 'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब दे डालते हैं। :







  'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब देने की एक वजह इन्दिरा जी का फोटो एक स्टेटस पर लाईक कर देना भी है,लेकिन जब बड़े पदाधिकारी इन्दिरा जी की प्रशंसा करें तो:


जो साहब 'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब देरहे हैं खुद डिप्टी जेनरल मेनेजर हैं और इस प्रकार हजारों मजदूरों का शोषण करने के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं। जिन करात साहब की पैरोकारी में वह ऐसा कर रहे हैं उसके कारण ये हैं :

 उत्तर-प्रदेश भाकपा के अधिकृत ब्लाग में वर्द्धन जी व अतुल अंजान साहब के विचार प्रकाशित कर देने के कारण ही मुझे उसकी एडमिनशिप व आथरशिप से हटा दिया गया था। अतः मैंने http://communistvijai.blogspot.in/  'साम्यवाद(COMMUNISM) ब्लाग बना कर उसमें इन वरिष्ठ नेताओं के विचार प्रकाशित कर दिये। जो लोग खुद को उनसे श्रेष्ठ समझते हैं उनके लिए तो मैं किसी भी खेत की मूली नहीं हूँ फिर भी 'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब देरहे हैं।

केंद्र में जिन शक्तियों ने इस सरकार को सत्तासीन किया है उनको करात साहब व उनके भाकपाई  हमदर्द गण  भी सराहते रहे हैं। 26 दिसंबर 2010 को प्रदेश पार्टी कार्यालय में आयोजित गोष्ठी में मुख्य अतिथि अतुल अंजान साहब के बोल चुकने के बाद उनके भाषण के समय पधारे केजरीवाल साहब को बुलवा कर अपने ही राष्ट्रीय सचिव का अपमान किया गया था और 26 दिसंबर 2013 को दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की प्रशंसा प्रदेश सचिव महोदय ने  समारोह के मुख्य अतिथि वीरेंद्र यादव जी  के समक्ष ही की थी। केजरीवाल साहब अफवाह फैलाने वाले संगठन की ही उपज हैं :
 
 केजरीवाल को भाकपा के प्रदेश कार्यालय में राष्ट्रीय सचिव अंजान साहब  से भी अधिक महत्व देने वाले गोष्ठी संचालक महोदय लखनऊ के प्रदेश की ओर से नियुक्त सुपर जिलामंत्री भी हैं, उनकी ओर से अप्रैल 2014 में मोहम्मद अकरम साहब ने मेरे घर पर आकर कहा था कि उनको हटाया नहीं जा सकता है अतः मुझको हटा दिया जाएगा। फिर 16 सितंबर 2014 को मतगणना -स्थल पर उनकी ओर से ही एनुद्दीन साहब ने कहा था कि उनको नहीं हटाया जा सकता अतः मुझे हटाया जाना अब तय है। विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि 23 नवंबर 2014 को प्रस्तावित ज़िला सम्मेलन से पूर्व कागजात में फेर-बदल करके मुझे हटाया जा रहा है। हालांकि मैं पार्टी में रह कर कोई निजी लाभ नहीं उठा रहा हूँ जो मुझे हटाये जाने पर मुझको  उन लोगों की भांति कोई हानि होगी जो पार्टी पदाधिकारी रह कर अपने व्यवसाय में लाभ उठा रहे हैं या जो रु-550/-प्रतिमाह लेवी देकर और सुबह-शाम 2-2 घंटे का समय लगा कर पार्टी पोस्ट के बल पर मार्केट व बैंक मेनेजर्स से 6-7 हज़ार रु की वसूली कर रहे हैं। 

परंतु फिर भी यह बात समझने के लिए काफी है कि कम्युनिस्ट पार्टी क्यों जनता में लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर पा रही है या कि केंद्र सरकार कैसे अवैज्ञानिक व्याख्याएँ करके जनता को मूर्ख बना रही है क्योंकि पार्टी को सीधी सच्ची बात कहने वालों की कोई ज़रूरत ही नहीं है। 
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  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

3 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना बुधवार 05 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Bharat Bhushan said...

आपने इस पोस्ट में काफी कुछ समेट लिया है. हमारी पौराणिक सोच एक दिन में निर्मित नहीं हुई. कई बिंबों के जुड़ने से हुई है. एक ही सावधानी की जरूरत है कि यह हमारे आज की वास्तविकता और वस्तु सत्य पर हावी न होने पाए.

Unknown said...

Bahut hi sunder prastuti ....