Wednesday, November 26, 2014

एक परिवार का प्रदर्शन बन कर रह गया पी पी पी सम्मेलन --- विजय राजबली माथुर



पूर्व घोषणा के अनुसार विगत 23 नवंबर 2014 को भाकपा, लखनऊ का 22 वां ज़िला सम्मेलन आयोजित हुआ। प्रारम्भ में प्रदेश की ओर से पर्यवेक्षक महोदय ने इसका उदघाटन उद्बोद्धन दिया। अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रांतीय परिस्थितियों का सवा घंटे उल्लेख कर जब वह ज़िले की परिस्थितियों पर आए तो उनके असंतोष व आक्रोश का प्रस्फुटन हुआ।खुद बारह वर्ष लखनऊ के ज़िला सचिव व आठ वर्ष प्रदेश के सचिव रह चुके पर्यवेक्षक महोदय  जिलामंत्री जी से काफी खिन्न थे और उनकी सांगठानिक कार्य प्राणाली की तीखी भर्त्सना कर डाली। उनके द्वारा इंगित किया गया कि यह ज़िला सम्मेलन बगैर शाखाओं व मध्यवर्ती कमेटियों के सम्मेलन करवाए हो रहा है। उनके द्वारा यह भी उद्घाटित किया गया कि वह लखनऊ के ही हैं और यहीं रहने के कारण यहाँ की हर गतिविधि से बखूबी वाकिफ भी हैं। इस क्रम में उनके द्वारा साफ शब्दों में कहा गया कि वह मलीहाबाद और लखनऊ पूर्व से रहे प्रत्याशियों से काफी असंतुष्ट हैं क्योंकि उन दोनों ने संगठन के विस्तार पर कोई ध्यान ही नहीं दिया है। अपने गुस्से को और आगे बढ़ाते हुये कठोर शब्दों में इन दोनों को चेतावनी देते हुये उन्होने कहा कि जिस प्रकार प्रदेश के किसान सभा नेता और खेत मजदूर यूनियन नेता कम्युनिस्ट पार्टी की रोटियाँ तोड़ रहे हैं वैसा ही ज़िले में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा भले ही ज़िले में ये संगठन बनें या न बनें। किन्तु उनके द्वारा महिला फेडरेशन के किए कार्यों का विशद गुण गान किया गया। उनके बाद बोलने आए इप्टा के राकेश जी व प्रलेस के शकील सिद्दीकी साहब उनके लंबे भाषण का ज़िक्र करना न भूले। अध्यक्ष मण्डल के सदस्य शिव प्रकाश तिवारी जी ने उनके विपरीत ज़िले से प्रत्याशी रहे दोनों युवा साथियों की भूरी-भूरी प्रशंसा की कि वे सुप्तप्राय पार्टी का झण्डा-बैनर लेकर जनता के बीच गए और उन दोनों ने पार्टी को पुनर्जीवित कर दिया। शिव प्रकाश जी ने किसान नेताओं की भी प्रशंसा करते हुये विशेष रूप से अतुल अंजान साहब के योगदान को याद दिलाया। जिला मंत्री की कमियों के बावजूद उनके धैर्य व संयम की भी शिव प्रकाश जी ने सराहना की।  

अन्य वक्ताओं ने तो अपनी-अपनी बात रखी परंतु उन्नाव के ज़िला मंत्री रह चुके कामरेड रामगोपाल शर्मा जी ने ज़िला मंत्री द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की न केवल भाषाई अशुद्धियों की ओर सबका ध्यान खींचा बल्कि पार्टी संविधान के अनुसार कार्य न होने की ओर भी इंगित किया।राम गोपाल जी द्वारा कुल 168 सदस्यों  द्वारा पार्टी से अलग होने को सोचनीय करार दिया गया। रामगोपाल शर्मा जी ने यह भी याद दिलाया कि 30 दिसंबर 2013 को गठित 'नगर कमेटी' का उल्लेख तक इस रिपोर्ट में नहीं किया गया है।  आय-व्यय विवरण का उल्लेख व प्रस्तुतीकरण न होने को उनके द्वारा गंभीर चूक बताया गया फिर भी संशोधनों के किए जाने पर उन्होने रिपोर्ट का समर्थन किया। शर्मा जी के बयान की कान्ति मिश्रा जी ने हल्की व मधुकर मौर्या तथा ओ पी सिंह द्वारा कटु एवं गहन आलोचना की गई। 

संचालक महोदय ने ज़िला मंत्री की ओर से नई ज़िला काउंसिल हेतु 21 सदस्यीय कमेटी का प्रस्ताव व 20 नामों को पेश किया जिसे पर्यवेक्षक महोदय द्वारा 23 सदस्यीय काउंसिल में परिवर्तित कर दिया गया। दो सदस्यों के नाम बढ़ा कर कुल 22 नाम तय किए गए व एक स्थान 'रिक्त' रखा गया। 

10 बजे के स्थान पर 12 बजे शुरू हुआ सम्मेलन एक घंटे के भोजन-  अवकाश सहित साँय 05-45 पर अंधेरा हो चुकने के कारण अध्यक्ष मण्डल की सदस्या आशा मिश्रा जी द्वारा समाप्त घोषित कर दिया गया और पर्यवेक्षक महोदय के निर्देश पर वर्तमान ज़िला मंत्री को नई काउंसिल के साथ नए जिला मंत्री के निर्वाचन तक  यथावत कार्य  करते रहने को कहा गया।

सम्पूर्ण कार्यवाही के सम्पन्न होने के साथ ही यह भी उजागर हो गया कि पर्यवेक्षक महोदय का सारा असंतोष व आक्रोश प्रदीप प्रायोजित सुनियोजित रण-नीति का अहम हिस्सा था। पर्यवेक्षक महोदय राज्य की ओर से उनकी श्रीमती जी अध्यक्ष मण्डल की ओर से प्रभावी थे ही उनकी साली साहिबा को महिला फेडरेशन की ज़िला अध्यक्ष होने के नाते फेडरेशन की   ओर से बोलने का हक दिया गया जबकि फेडरेशन की जिलमंत्री को भी यह हक दिया जा सकता था। प्रदीप साहब का दावा रहा है कि वह ही अकेले दम पर प्रदेश पार्टी को चलाते हैं। अपने कद व रुतबे को बढ़ाने हेतु प्रदीप साहब  जो खुद लखनऊ के सदस्य होते हुये भी प्रदेश की ओर से ज़िला इंचार्ज भी हैं ने कोई तेरह वर्ष पूर्व इन पर्यवेक्षक महोदय के प्रदेश सचिव रहते हुये लखनऊ के तत्कालीन  जिलामंत्री (जो राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट  पार्टी से होते हुये अब भाजपा सांसद हैं )  को उनसे भिड़वा कर पार्टी में विभाजन करा दिया था। उससे पूर्व भी 1994 में प्रदेश पार्टी विभाजित हो चुकी थी। 'राष्ट्रीय मान्यता' समाप्त होने के कगार पर पहुँचते ही पार्टी को और संकुचित करने के निर्णय की घोषणा पर्यवेक्षक महोदय द्वारा की गई। उनके द्वारा लखनऊ की सभी विधायिका सीटों पर चुनाव लड़ाने से साफ-साफ इंकार कर दिया गया। अपने परिवार को प्रदीप पाकेट पार्टी (पी पी पी ) से मिले सम्मान से पर्यवेक्षक महोदय गदगद नज़र आए। उनका ध्यान पार्टी संविधान के उल्लंघन की ओर गया ही नहीं। 2011 के सम्मेलन में जिला मंत्री महोदय द्वारा घोषित किया गया था कि छह वर्ष पूर्ण हो चुकने के कारण पार्टी संविधान के अनुसार उनका यह लगातार निर्वाचन का अंतिम कार्यकाल होगा। किन्तु इस सम्मेलन में संचालक महोदय ने इस वर्ष छह वर्षों को पूर्ण होना घोषित किया अर्थात एक और कार्यकाल का लाभ वर्तमान जिलामंत्री महोदय को देने की भूमिका प्रस्तुत कर दी।पर्यवेक्षक महोदय ने कार्यवाही रजिस्टर के पृष्ठ फाड़े जाने और उनको गोंद से चिपकाए जाने की ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया। 

वर्तमान जिलामंत्री महोदय का इस बात के लिए आभार व्यक्त किया जा सकता है कि प्रदीप साहब के प्रबल विरोध के बावजूद अंततः सम्मेलन में मुझे प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान कर दिया। वैसे उनको इस बात के लिए भी धन्यवाद दिया जा सकता है कि उन्होने अपने दो विश्वस्त लोगों के माध्यम से यह संदेश बहुत पहले ही भिजवा दिया था कि प्रदीप साहब की कमियाँ उजागर करने के कारण नई काउंसिल में मुझे स्थान नहीं दिया जा सकता है। 

प्रदेश पार्टी के प्रमुख व उप प्रमुख कार्यकर्ताओं का ध्यान सम्मेलन की इन विसंगतियों से हटाने हेतु अनावश्यक अभियान चलाये हुये हैं जिससे जनता में पार्टी की दूरी और भी बढ़ेगी तथा उसका शोषण-उत्पीड़न चरम पर पहुँच जाएगा क्योंकि सत्तारूढ़ दल हमारी पार्टी के विरुद्ध इन बयान बाजियों का भरपूर लाभ उठाएगा। 'अनुशासन ' के डंडे से कार्यकर्ताओं को तो भयभीत किया जा सकता है परंतु जन-समर्थन नहीं हासिल किया जा सकता ।









ज़्यादा पुराना इतिहास नहीं है कि राजा राम मोहन राय ने भारत में अग्रेज़ी भाषा पढ़ाये जाने का इसलिए समर्थन किया था कि 'अग्रेज़ी साहित्य' के माध्यम से भारतवासी ब्रिटेन के आज़ादी के लिए किए गए संघर्षों की गाथा भी पढ़ेंगे और अपने देश की आज़ादी के लिए उठ खड़े होंगे और ऐसा ही हुआ भी।
अच्छा हो कि जन-जन को 'संस्कृत भाषा' का ज्ञान हो जाये जिससे प्रत्येक भारतवासी सुगमता से समझ सके कि हजारों-हज़ार वर्षों से पोंगापंडितों ने जो उलट बासियाँ चला रखी हैं उनका उल्लेख 'वेदों' में है ही नहीं वे पौराणिक दंतकथाएँ तो शोषकों-उतपीडकों के सहायक ब्राह्मण वादियों के द्वारा गढ़ी गई चालाकियाँ हैं।
एथीस्टवादी वस्तुतः पोंगापंथ,ढोंग-पाखंड-लूट को प्रश्रय देने के उद्देश्य से जनता को वस्तु-स्थिति से परिचित न होने देकर उनको शोषण के कुचक्र से बाहर ही नहीं आने देना चाहते हैं। एथीस्टवादी धर्म (सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। ) का तो विरोध करते हैं किन्तु ढोंगियों-पाखंडियों को साधू,महात्मा,बापू,संत की संज्ञा से नवाजते हैं। वे भगवान,खुदा,गाड का विरोध तो करते हैं परंतु जनता को यह नहीं समझाना चाहते कि -भगवान =भ (भूमि-ज़मीन )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी)
चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं।
इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं।
सीधी बात है कि एथीस्टवादी संप्रदाय भी दूसरे संप्रदायों की तरह ही साधारण जनता को ज्ञान-विज्ञान से वंचित रख कर उसके शोषण-उत्पीड़न में सहायक बना हुआ है । यही वजह है कि 'साम्यवाद' जो वस्तुतः भारत के 'सर्वे भवन्तु सुखिन :' पर आधारित है भारतवासियों के लिए दूर की कौड़ी बना हुआ है और साम्राज्यवाद के सहायक सांप्रदायिक तत्व अपने लूट के खेल के लिए खुला मैदान पा कर खुश हैं।
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  ~विजय राजबली माथुर ©
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