Tuesday, August 31, 2010

जज से वकील नाराज़


आंध्र में गुंटूर जिले के न्यायाधीश जे.वी.वी.सत्यनारायण मूर्ती ने एक दिन में १११ मामलों का निपटारा कर के लोगों को रहत क्या पहुचाई कि,वकील उनके विरुद्ध इसलिए नाराज़ हो गए कि मुकदमा लम्बा चलने पर उन्हें जो आमदनी होती उस का नुक्सान हुआ.इस बात से यह भी मतलब निकलता है कि वकील अपनी आमदनी के चक्कर में मुकदमों को लम्बा खिचवाकर आम जनता की जेबें ढीली करते हैं.लखनऊ में मेडिकल प्रमाणपत्र बनवाने के विवाद में वकीलों ने सी.ऍम.ओ.कार्यालय में तोड़-फोड़ कर के रास्ता जाम कर दिया.कानून के जानकारों द्वारा क़ानून तोड़ने कि दूसरी मिसाल और क्या हो सकती है.६० वर्षों से अधिक समय तक अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद का मुकदमा चला अब फैसला आने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तय्यारी शुरू हो गयी है.मतलब यह कि मुकदमे चलते रहें और वकीलों की जेबें भरती रहें और जनता अन्याय सहती रहे -यह कैसी न्याय व्यवस्था है.१९९२ में डाक्टर आंबेडकर की पत्नी सविता आंबेडकर इलाहबाद उच्च न्यायलय में याचिका दायर कर यह बताना चाहती थीं कि अयोध्या में न तो मंदिर था न मस्जिद वह तो एक बौद्ध मठ था किन्तु इलाहबाद के दोनों पक्षों के वकीलों ने एकजुट हो कर सविता आंबेडकर का बहिष्कार कर दिया कोई वकील उनकी याचिका दायर करने को तैयार नहीं हुआ वह निराश होकर लौट गयीं.यदि वह याचिका दायर हो जाती तो एक दबी हुई सच्चाई सामने आ जाती लेकिन वकीलों के हठ के कारन सच्चाई का खात्मा हो गया।

जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि यदि सब लोग अपने दायित्वों का पालन करने लगें तो लोगों को अपने अधिकार की प्राप्ति अपने आप ही हो जाएगी.लेकिन आज सब अपने अधिकार की बात करते हैं अपने दायित्व को कोई पूरा नहीं करता.एक जज ने अपने दायित्व का पालन किया है तो उन्हें सम्मानित करने की जरूरत है.वकीलों को उनका विरोध नहीं समर्थन करना चाहिए.इससे अदालतों और वकीलों दोनों का मान बढेगा.

Saturday, August 28, 2010

खुशवंत सिंह द्वारा ज्योतिष की खिल्ली

वयोवृद्ध खुशवंत सिंह जी ने पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब की जो तारीफें की हैं वे तो ठीक हैं किन्तु वर्तमान राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल की आलोचना सिर्फ इसलिए की है कि,वह ज्योतिष पर विशवास करती हैं सरासर गलत है।

ज्योति का मतलब है रौशनी या प्रकाश.ज्योतिष अँधेरे से रौशनी की और लेजाने वाला विज्ञान है.ज्योतिष मानव जीवन को सुन्दर सुखद और सम्रद्ध बनाने का मार्ग प्रस्तुत करता है.खुशवंत सिंह जी देश को खुशहाल भी बनाना चाहते हैं और ज्योतिष का विरोध भी करते हैं -यह गहरा विरोधाभास है.ज्योतिष पढने वाले बच्चों को किस विषय में सफलता मिल सकती है या किस रोजगार या व्यापार में सफलता प्राप्त कर सकते हैं बताने में कारगर हो सकता है.रोगों के उपचार में भी गृह नक्षत्रों से सहायता मिलती है.हाँ ज्योतिष के नाम पर ढोंग और पाखण्ड करने वालों का खुशवंत सिंह विरोध करते तो उचित होता.कुछ गलत करने वालों की वजह से पूरे ज्योतिष विज्ञान को गलत ठहराना अज्ञान की पराकाष्ठा है.ज्योतिषीय आंकलन गढ़ित(Mathes) पर आधारित हैं जो सटीक होते हैं.गृह नक्षत्रों की चाल के आधार पर सूर्य,चन्द्र ग्रहण आदि का हजारों साल पहले पता चल जाता है जो ठीक बैठता है.२+२=४ होता है लेकिन अगर कोई पौने चार या सवा चार बता दे तो बताने वाला गलत है,इसमें गढ़ित (mathes)और ज्योतिष विज्ञान की गलती कहाँ है?विभिन्न छोटे साप्ताहिक अखबारों में तथा तिमाही पत्रिकाओं में भी मेरे लेख छपे हैं और अब ब्लॉग के माध्यम से भी गलत बातों का विरोध कर रहा हूँ.साइन्स के मुताबिक़ ज्योतिष के कथन सटीक और सही होते हैं जो मनुष्य मात्र के भले के काम आ सकते हैं -शर्त यही है कि मनुष्य किसी गलत बात के भटकावे में न आये.एक बार जो भटक गया तो और भटकता ही रहेगा।

ज्योतिष और वास्तु के सहारे भारत पहले सोने की चिरिया कहा जाता था,लेकिन आज उधार और कर्ज के नीचे डूबा हुआ है ये सब ज्योतिष और वास्तु को ठुकराने के कारन ही है। अगर हम फिर से ज्योतिष और वास्तु के नियमों का पालन करने लगें -साइन्स के उपायों पर ही चलें ढोंग और पाखण्ड को न मिलाएं तो हम फिर से वही मंजिल हासिल कर सकते हैं।

नोट-रोमन से हिंदी में टाइप होने के कारन कहीं-कहीं वर्तनी की गलतियाँ हो सकतीं हैं,पाठक यथास्थान कृपया सुधार कर लें।

Typist-Yashwant

Monday, August 23, 2010

जननी माँ और माता



१९६७ में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री शाहजहांपुर में संत श्याम जी पराशर को सुनने के मौके मिले.वो राम मंदिरों में ही प्रवचन देते थे.उन्होंने अपनी पुस्तक ''रामायण का एतिहासिक महत्त्व'' में लिखा है:-एक व्यापारी का बेटा छात्र यूनियन का अध्यक्ष था उसे पिता ने व्यापार में हाथ न बटाने पर एक थप्पड़ मार दिया.वो थोड़ी देर में एक जुलूस लेकर पहुंचा जिसमें नारे लग रहे थे --लाला थपेड़ू मल मुर्दाबाद,छात्र एकता जिंदाबाद.सचिव ने लाला से पूछा हमारे अध्यक्ष को थप्पड़ क्यों मारा?लाला ने ज़वाब दिया हमने पैदा किया,हमने मारा तुम से क्या मतलब? उनके बेटे ने कहा -मैं तो आपके मनोरंजन में एक्सीडेंटली पैदा हो गया था,पैदा किया होता तो ठीक से व्यवहार करते.संत पराशर लिखते हैं सिर्फ पैदा करने से ही माता पिता नहीं हो जाते हैं. 
डाक्टर सोमदेव शास्त्री लिखते हैं:-जनम देने वाली जननी होती है,अगर वह ममता दे तो माँ और निर्माण करे तो माता होती है.

इन बातों से साफ़ होता है की जननी माँ और माता अलग भी हो सकती हैं जैसे कृष्ण की जननी तो देवकी थीं और माता यशोदा.जनक वासुदेव थे और पिता नन्द.जो लोग अपनी संतान के भविष्य का ख्याल किये बगैर अपनी दोस्ती या भाई-चारा निभाते हैं वे लोग जननी-जनक तो हो सकते हैं माता या पिता नहीं हैं.

मेरे पास ऐसे बहुत से मामले आते हैं जिनमे जनक-जननी ने अपनी संतान के बारे में गलत फैसले किये और उनकी संतान को बाद में कष्ट उठाने पड़े.बैंक मेनेजर बी बी सक्सेना ने बोलते नामों से जन्मपत्री मिलवाकर अपने इंजीनियर बेटे की शादी कर दी बाद में अमेरिका में उनकी संतान को बेहद कष्ट उठाना पड़ा.एच.ऍम.टी .के जनरल मेनेजर मनोज माथुर ने अपनी बेटी के गृह शांत करवाए बिना शादी कर दी.बाद में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ा.बी.पी.आयल मिल आगरा के एक कर्मचारी की शादी १३ गुणों परदोनों पति-पत्नी बहुत परेशान रहते थे। 14 गुणो पर हुई एक शादी में पत्नी की मौत बहुत जल्दी हो हो गयी.अभी केल्विनेटर के पुराने कर्मचारी और उनकी शिक्षिका पत्नी अपनी बेटी की शादी मात्र ११ गुणों पर करने जा रहे हैं क्योंकि लड़का-लड़की की जननियाँ बचपन की सहेलियां हैं दोनों अपने अपने बेटा-बेटी का भविष्य नहीं देख रहे हैं और संतानों के लिए गड्ढा खोद रहे हैं।*
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*नोट : -29 अप्रैल 2011 को सम्पन्न हुई इस शादी के बारे में लड़की के सगे ताउजी का कहना है कि जब पैसों की कमी होती है तो कहीं तो 'कंप्रोमाईज़'करना ही पड़ता है। लड़के के एक पैर में कुछ 'विकार' होने के कारण ऐसा उनका कथन था।




पाठक कृपया ध्यान दे--रोमन से अंग्रेजी में टाइप होने के कारन उपरोक्त आलेख में वर्तनी की त्रुटियाँ होना संभावित है.यथा स्थान कृपया सुधार करलें।



Typist-yashwant

Monday, August 16, 2010

काल सर्प योग क्या है?

अभी नाग पंचमी पर देश भर में काल-सर्प योग की शान्ति के विधान हुए होंगे.कहीं जीवित नाग छोड़े गए होंगे तो कहीं सोने या चांदी के नाग दान दिए गए होंगे.पंडित लोग नाग द्वारा शापित किया जाना काल सर्प योग का कारण बताते हैं जो कि वैज्ञानिक आधार पर सही नहीं है।असल में हमारी धरती जो २३.५ डिग्री अपनी धुरी पर झुकी हुई है उसके उत्तरी ध्रुव को राहू तथा दक्षिणी ध्रुव को केतु के रूप में ज्योतिष में शामिल किया गया है.जब किसी का जन्म अपनी धरती के दोनों ध्रुवों के बीच सारे ग्रहों के होने पर होता है तो उसकी कुंडली में यह काल सर्प योग बनता है.काल का मतलब समय-(टाइम) से है और सर्प का मतलब उस समय के बंधन से है जिसमें सब गृह राहू-केतु के बीच में यानी १८० डिग्री के बीच आ गए होते हैं।

सावन के महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी और फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को काल-सर्प योग की शान्ति के लिए ज्योतिष में वैज्ञानिक आधार पर सही माना गया है.इसलिए समाधान भी वैज्ञानिक आधार पर ही किया जाना चाहिएन की,दान-पुन के आडम्बर से इसे जोड़ा जाना चाहिए.अगर कोई गरीब इंसान सोना या चांदी या जीवित नाग का इंतजाम नहीं कर सकता तो क्या पोंगा पंथ में उसके काल-सर्प योग की शान्ति होगी ही नहीं?लेकिन वैज्ञानिक हवन प्रणाली से उसका भी समाधान उन ही होगा जितना किसी अमीर का.वैज्ञानिक उपायों में गरीब-अमीर का भेद नहीं होता और न ही लूट-खसोट की गुंजाइश होती है।
ऋग्वेद के मंडल ७ सूक्त ३५ मन्त्र ११ का विद्वान् कवी द्वारा किया गया अनुवाद देखें :-

भू -नभ अंतर्गत पदार्थ मंगलदायक हो जावें।
विज्ञानी प्रकृति के सारे गूढ़ रहस्य बतावें। ।

प्रकृति के नियमों का नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्ययन ही विज्ञान है और ज्योतिषीय विज्ञान का मूल उद्देश्य मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और सम्रद्ध बनाना ही है। आज ज्योतिष के नाम पर ज़्यादातर जो हो रहा है वह विज्ञान सम्मत नहीं है। भोली जनता उसी में भटक कर परेशान हो रही है । सच कडुआ होता है और उसे कोई सुनना भी नहीं चाहता है.इसीलिए सच बोलने वालों की आवाज़ नक्कार खाने में तूटी की आवाज़ सिद्ध हो रही है । लेकिन जन -कल्याण सच पर ही टिके रहकर ही हो सकता है .ढोंग पाखण्ड में फंसकर भला किसी का भी नहीं होता है .आर्थिक सम्पन्नता समृद्धि का प्रतीक नहीं है जिस कारण धनवान भी परेशान होते हैं पर सच को अपनाना नहीं चाहते.जब लोग सुधरना ही न चाहें तो सुधार कैसे????


(नोट:रोमन से हिंदी में टाइप होने के कारण वर्तनी की कुछ गलतियां संभव हैं;यथा स्थान कृपया शुद्ध कर पढ़ें।)



Typist-Yashwant

Friday, August 13, 2010

समस्या धर्म को न समझना ही है

स्त्री अधिकार संगठन की अंजलि सिन्हा जी ने जोगिनियों…..की राह''.नामक लेख में देवदासी प्रथा वाली जोगिनियों की समस्या को उठाया है और उसे धर्म के साथ जोड़ा है..उन्होंने लिखा है’’हिन्दू धर्म कि परम्पराओं के अनुसार देवदासियों का विवाह हो चुका होता हैऔर वे मंदिर में उनकी सेवा तथा नाचने गाने का काम करती हैं.’’सच तो यह है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है,भारत में इरानी हमलावरों के आने के बाद यह शब्द सामने आया जो उस देश की भाषा फ़ारसी का है.इस शब्द के मतलब बहुत गंदे हैं जो फ़ारसी भाषा की dictionary से समझे जा सकते हैं.विदेशी हमलावरों ने नफरत के तौर पर भारतियों को हिन्दू कहा था जिसे लोगों ने सर- माथे पर ले लिया और बड़े गर्व से आज नारा लगाते हैं।


भारत में प्राचीन काल से वैदिक मत या धर्म चलन में था जिसके मूल तत्व –सत्य ,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रहाम्चार्य हैं.धर्म धारण करना सिखाता है.अन्य बातें धर्म नहीं हैं,वे तो ढोंग पाखण्ड व् आदम्बर हैं जो जनता को उलटे उस्तरे से मूढ़टी हैं.देवदासी या जोगिनी कुप्रथा भी शोषण और उत्पीडन का नतीजा है जो केवल धनवानों द्वारा गरीबों का किया जाता है.केवल गरीब माँ-बाप ही अपनी कन्याओं को बेचते होंगे,दबाव और मजबूरी में ही।

भगवान् तो प्रकृति के पंचतत्वों के मेल का नाम है.भूमि का भ,गगन का ग,अनल (अग्नि)का,T,नीर (जल)का ,न मिल कर भगवान् बनता है.भगवान् की पूजा किसी मंदिर या मूर्ती द्वारा नहीं हो सकती उसके लिए हवन (यज्ञ)की वैज्ञानिक पद्धति ही अपनानी होगी.महाभारत काल के बाद धर्म का पतन होने लगा और परिणामस्वरूप कुप्रथाएँ पनपती गयीं जिनका आज भारी बोल बाला है.
अंजलि सिन्हा जी से पूर्व प्रमोद जोशी जी व अरुण त्रिपाठी जी भी धार्मिक सामाजिक समस्याओं को उठा चुके हैं.लेकिन जब तक धर्म के नाम पर हो रहे अधर्म को बंद नहीं किया जाता जब तक अमीर कि पूजा होगी ढोंग-पाखण्ड चलता रहेगा।





Typist -Yashwant




Thursday, August 12, 2010

दान और भगवान

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने सावन में शिव दर्शन के बहाने से दान और भगवान् को खुश करने की प्रचलित परंपरा पर सवाल उठाया है जो बिलकुल सही है.उम्मीद है कि लोग उनकी भावना को समझ कर उस पर अब अमल करने की सोचेंगे.अपने लेख ‘’आये देखें ……….सपने’’ में इस बात को भी सामने रखा है कि भारत में लोग खुद अपने या खानदान के नाम को अमर करने के लिए दान करते हैं जबकि अमेरिका के एक व्यापार समूह के प्रमुख ने अपनी 85 % संपत्ति दुसरे ट्रस्ट को दान करदी अपने नाम का भी लोभ नहीं रखा.यह अनुकरनीय उदाहरण है.लेकिन अभी कुछ समय पहले सर्वोच्च अदालत द्वारा प्रतिबन्ध लगाने से पहले हमारे यहाँ गणेश,लक्ष्मी आदि देवी देवताओं के नाम पर आयकर बचाने का धंधा चल रहा था.हमारे देश में दान देने पर विशेष जोर दिया जाता है परन्तु गृह नक्षत्रों के आधार पर सब को सब तरह का दान नहीं करना चाहिए वर्ना हानि होती है.जिन्हें मंदिर में और मंदिर के पुजारी को कुछ भी दान नहीं देना चाहिए ऐसी ही एक शिक्षिका ने झाँसी के एक मंदिर में rs. ११००/- दान दिए –शिला पट पर उनका नाम अंकित हुआ.परिणामस्वरूप ड्यूटी से लौटते में उनकी कार में विपरीत दिशा से आती मोटर साइकिल ने गलत turn लेकर टक्कर मार दी.कार तो छतिग्रस्त हुई ही आठ सालों से आज भी मुकदमा चल रहा है.लाखों रु.का नुक्सान हो गया।

उत्तर प्रदेश सरकार के एक उपक्रम में executive इंजिनियर साहब ने वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर में दर्शन करने के बाद दो भूखे लोगों को भरपेट भोजन कराया जब की उन्हें अन्न और मिठाई का दान करना हानिकारक था.नतीजा यह हुआ की आगरा शहर में पहुचते- पहुचते उनका और उनकी पत्नी का सारा कैश और गहना लूट लिया गया.इस घटना के बाद से अब उन्होंने दान करना बंद किया है और वे सुखी हैं.पहले वैष्णो देवीn के दर्शन के समय भी उनकी पत्नी के कंगन और कुंडल लुटे थे तब तक वह दान करने के आदि थे.आरा के एक extension ऑफिसर साहब महियर देवी के दर्शन करने गए और .१०१/-मंदिर में चढ़ाए उनकी माता जी को भी भारी का सामना करना पड़ा क्यों की उन्हें भी मंदिर में और पुजारी को दान नहीं देना चाहिए था जो उन्होंने दिया.जिस व्यक्ति के जन्म के समय जो गृह उच्च के अथवा स्वग्राही होते हैं उसे आजीवन उस गृह से सम्बंधित पदार्थों का दान भूल कर भी नहीं करना चाहिए वर्ना कुछ न कुछ नुक्सान जरूर होगा ही होगा.दान देने के इच्छुक लोगों को अपना जनमपत्र जरूर चेक करा लेना चाहिए यदि वे किसी हानि से बचना चाहते हों तो.उसी दान का अच्छा फल मिलता है जो बगैर किसी स्वार्थ के और गैर संपर्क के व्यक्ति को दिया जाये और वह व्यक्ति उस दान के लिए सुपात्र हो।

भगवान् के बारे में भी लोगों को भ्रम है की वह यहाँ या वहां है जबकि भगवान् तो घट-घट वासी कण-कण वासी है.इसे समझना बहुत ही सरल है.भूमि का ,गगन का ,वायु का व् अनल का T, नीर का मिलकर भगवान् शब्द बनता है.भूमि,गगन ,वायु,अग्नि और जल ये पंचतत्व ही समस्त प्राणियों और वनस्पतियों के जीवन उसके पालन के लिए जरूरी हैं और इनके कुपित होने पर जीवन का संहार होता है इसलिए इन्हें ही G O D- Generator,Operator,Destroyer कहा जाता है और चूंकि ये खुद ही बने हैं इसलिए इन्हीं को खुदा भी कहा जाता है.

आज लोग धर्म की गलत व्याख्या करके दान और भगवान् के बारे में ग़लतफ़हमी पाले हुए हैं इसीलिए झगडे और नुक्सान हो रहे हैं.प्रकृति की मार सहनी पर रही है.भगवान् की पूजा का साधन केवल हवन है और माध्यम दिखावा और ढोंग पाखण्ड हैं जिनका आज बोल-बाला है.हमारी प्राचीन पूजा पद्धति यज्ञ की दुर्दशा है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और सम्रद्ध बनाने के लिए प्राचीन हवन -पूजा पद्धति को अपनाना होगा।





Typist-Yashwant

Wednesday, August 4, 2010

गलत व्याख्याओं का खेल

अरुण कुमार त्रिपाठी जी ने अपने लेख ‘’उदार समाज की कट तर ताएँ’’में जो सच्ची और बेबाक बातें कही हैं उससे असहमत होने का सवाल ही नहीं है.दर असल जिन बातों की पीड़ा उजागर हुई है वे सिद्दांतों और परिभाषाओं की गलत व्यख्यओंके घाल मेल से उपजी है.उदहारण के तौर पर देखें तो अश्व अथार्त पांच साल पुराने उस जौ की आहुति देने को कहा गया है जो दोवारा नहीं उग सकता.अश्व का अर्थ घोडा से लेकर यज्ञ में उसकी आहुति देना शुरू कर दिया गया जो की बिलकुल गलत था.धर्म के अहिंसा तत्व को नकार कर जीव हिंसा को धर्म में शामिल कर दिया गया और उसका परिणाम हुआ की महात्मा बुद्ध ने यज्ञ –हवन को ही मूढ़ता करार देकर उसका विरोध कर दिया.तमाम अच्ची बातें गलत अर्थ निकले जाने के कारन गलत अपने जा रहीं थीं उन्हें बुद्ध मत में पूरी तौर पर ठुकरा दिया गया.जब की बुद्ध के विरोधियों ने गलत बातों में सुधार किये बगैर बौद्ध मत का खंडन और विरोध कर दिया.बौद्ध मठों और विहारों को उजाड़ा व् जलाया गया.अतः बौद्ध मत भारत से बहार तो पनपा ,यहीं उप्पेक्षित हो गया और पहले की तरह दकियानूस वाद चल पड़ा जिसके चलते भारत में विदेशी शासन की स्थापना हुई.धर्म की मूल धारणा को भुला दिया गया और मानव द्वारा मानव के शोषण को धर्म का जमा पहना दिया गया.पाखंड और ढोंग का समय समय पर विरोध होता रहा परन्तु मध्य युगीन भक्ति आन्दोलन ने उस पर करार प्रहार किया.संत कबीर ने दो टूक कहा है-
दुनिया ऐसी बावरी की पत्थर पूजन जाये,
घर की चकिया कोई न पूजे जे ही का पीसा खाय.
कंकर पत्थर जोर कर लायी मस्जिद बनाय ,
ता पर चढ़ी मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय ।

कबीर,गुरु नानक आदि अनेकों संत-महात्माओं ने जनता को सन्मार्ग पर लाने का प्रयास किया,आधुनिक युग में स्वामी दयानंद,विवेकानंद,रजा राम मोहन राय आदि ने सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया;किन्तु आज ये कुरीतियाँ दिन दूनी रत चौगुनी बढती जा रही हैं.तमाम लोगों ने खुद को भगवान् या अवतार घोषित कर दिया है और जनता को गुमराह कर रहे हैं.समाजवाद के झंडाबरदार और वाम पंथी भी पूँजी वाद के विरोध का राग आलापते हुए पूँजी वाद को ही मजबूत कर रहे हैं.खुद को वाम पंथी कहलाने वाले एक दल के एक राष्ट्रीय नेता शासकीय अधिकारीयों से धन उगाही कर रहे हैं और गरीब – किसान मजदूरों के नाम पर नेतागिरी चमका कर उन्हीं का शोषण करा रहे हैं.सदी गली सामाजिक मान्यताओं और धर्म की शोषण मूलक रीतियों का प्रचार वे ही वाम पंथी तुच्छ धन प्राप्ति के लिए कर रहे हैं जिन्हें इनके विरोध में खड़ा होना चाहिए था.वाम पंथी झुकाव वाले मोर्चे के नेता भी इसकी अनदेखी कर के क्रांति का नारा लगा रहे हैं.विद्रोह या क्रांति कोई ऐसी चीज़ नहीं होती जिसका विस्फोट एकाएक अचानक हो,बल्कि इसके अंतर में –अंतर के तनाव को बल मिलता रहता है.आज हमारे देश में विकराल अंतर हैऔर इसका तनाव भी है तथा धर्म का गुमराह भी है जो लोग कुरीतियों के विरोध में और सुधार के समर्थक हैं वे एकजुट नहीं बिखरे हुए हैं जैसा की त्रिपाठी जी ने स्पष्ट लिख दिया है.धर्म के मर्म को समझने वाले और कुरीति विरोधी समाज-सुधारकों को सम्मिलित होकर धर्म के नाम पर हो रहे ढोंग व् पाखण्ड पूर्ण आदम्बर का पुर जोर विरोध करना चाहिए.इसमें जनता को सहज आक्रष्ट करने में भक्ति आन्दोलन के संतों की सूक्तियां बेहद सहायक रहेंगी.धर्म की वैज्ञानिक व्याख्या में स्वामी दयानंद का शोध असरकारक रहेगा.उत्पादन और वितरण के साधनों पर समाज का स्वामित्व चाहने वाले सच्चे समाजवादियों को इसका समर्थन चाहिए.परन्तु दुर्भाग्य है की ये सब परस्पर विरोध में खड़े हैं और इसीलिए भोली जनता ठगी जा रही है.यदि तहे दिल से समाज सुधार करना है तो आर्य समाजियों,समाजवादियों तथा साम्यवादियों को एकजुट हो कर कबीर ,नानक,आदि भक्ति आन्दोलन के पुरोधाओं का आसरा लेना ही होगा.