Sunday, August 26, 2018

क्या था रक्षाबंधन और क्या हो गया ? ------ विजय राजबली माथुर

 




' ब्रह्मसूत्रेण पवित्रीकृतकायाम् ' यह लिखा है कादम्बरी में सातवीं शताब्दी में आचार्य बाणभट्ट ने। अर्थात  महाश्वेता ने जनेऊ पहन रखा है, तब तक लड़कियों का भी उपनयन होता था। (अब तो सबका उपहास अवैज्ञानिक कह कर उड़ाया जाता है)। श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षा - बंधन पर उपनयन क़े बाद नया विद्यारम्भ होता था। लेकिन कालांतर में पोंगा-पंडितों ने अपने निजी स्वार्थ में इस रक्षा-सूत्र-बंधन  अर्थात जनेऊ धारण करने के पावन-पर्व को राखी बांधने-बँधवाने तथा बहन-भाई के बीच सीमित कर दिया । 
 उपनयन अर्थात जनेऊ के लाभों से साधारण जनता को छल पूर्वक वंचित कर दिया गया है। 
 उपनयन अर्थात जनेऊ क़े तीन धागे तीन महत्वपूर्ण बातों क़े द्योतक हैं-
१ .-माता,पिता,तथा गुरु का ऋण उतारने  की प्रेरणा। 
२ .-अविद्या,अन्याय ,आभाव दूर करने की जीवन में प्रेरणा। 
३ .-हार्ट,हार्निया,हाईड्रोसिल (ह्रदय,आंत्र और अंडकोष - गर्भाशय )संबंधी नसों का नियंत्रण ;इसी हेतु कान पर शौच एवं मूत्र विसर्जन क़े वक्त धागों को लपेटने का विधान था। आज क़े तथा कथित पश्चिम समर्थक विज्ञानी इसे ढोंग, टोटका कहते हैं क्या वाकई ठीक कहते हैं ?
विश्वास- सत्य द्वारा परखा  गया तथ्य ,
अविश्वास- सत्य को स्वीकार न  करना,
 अंध-विश्वास-- विश्वास अथवा अविश्वास पर बिना सोचे कायम रहना ,
विज्ञान- किसी भी विषय क़े नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं। 
इस प्रकार जो लोग साईंस्दा होने क़े भ्रम में भारतीय वैज्ञानिक तथ्यों को झुठला रहे हैं वे खुद ही घोर अन्धविश्वासी हैं। वे तो प्रयोग शाळा में बीकर आदि में केवल भौतिक पदार्थों क़े सत्यापन को ही विज्ञान मानते हैं। यह संसार स्वंय ही एक प्रयोगशाला है और यहाँ निरन्तर परीक्षाएं चल रहीं हैं। परमात्मा एक निरीक्षक (इन्विजीलेटर)क़े रूप में देखते हुए भी नहीं टोकता, परन्तु एक परीक्षक (एक्जामिनर) क़े रूप में जीवन का मूल्यांकन करके परिणाम देता है। इस तथ्य को विज्ञानी होने का दम्भ भरने वाले नहीं मानते यही समस्या है। 

लगभग सभी बाम- पंथी विद्वान सबसे बड़ी गलती यही करते हैं कि हिन्दू को धर्म मान लेते हैं फिर सीधे-सीधे धर्म की खिलाफत करने लगते हैं। वस्तुतः 'धर्म'= शरीर को धारण करने हेतु जो आवश्यक है जैसे-सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,और ब्रह्मचर्य।  इंनका  विरोध करने को आप कह रहे हैं जब आप धर्म का विरोध करते हैं तो। अतः 'धर्म' का विरोध न करके  केवल अधार्मिक और मनसा-वाचा- कर्मणा 'हिंसा देने वाले'= हिंदुओं का ही प्रबल विरोध करना चाहिए। 
विदेशी शासकों की चापलूसी मे 'कुरान' की तर्ज पर 'पुराणों' की संरचना करने वाले छली विद्वानों ने 'वैदिक मत'को तोड़-मरोड़ कर तहस-नहस कर डाला है। इनही के प्रेरणा स्त्रोत हैं शंकराचार्य। जबकि वेदों मे 'नर' और 'नारी' की स्थिति समान है। वैदिक काल मे पुरुषों और स्त्रियॉं दोनों का ही यज्ञोपवीत संस्कार होता था। आचार्य बाणभट्ट  ने महाश्वेता द्वारा 'जनेऊ' धारण करने का उल्लेख किया है।  नर और नारी समान थे। पौराणिक हिंदुओं ने नारी-स्त्री-महिला को दोयम दर्जे का नागरिक बना डाला है। अपाला,घोषा,मैत्रेयी,गार्गी आदि अनेकों विदुषी महिलाओं का स्थान वैदिक काल मे पुरुष विद्वानों से  कम न था। अतः वेदों मे नारी की निंदा की बात ढूँढना हिंदुओं के दोषों को ढकना है। वस्तुतः 'हिन्दू' कोई धर्म है ही नही।बौद्धो के विरुद्ध क्रूर हिंसा करने वालों , उन्हें उजाड़ने वालों,उनके मठों एवं विहारों को जलाने वाले लोगों को 'हिंसा देने' के कारण बौद्धों द्वारा 'हिन्दू' कहा गया था। फिर विदेशी आक्रांताओं ने एक भद्दी तथा गंदी 'गाली' के रूप मे यहाँ के लोगों को 'हिन्दू' कहा।साम्राज्यवादियों के एजेंट खुद को 'गर्व से हिन्दू' कहते हैं। ढोंगवाद धर्म नहीं है---
महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'दास केपिटल'एवं 'कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो'की रचना की। महात्मा हेनीमेन ने 'होम्योपैथी' की खोज की और डॉ शुसलर ने 'बायोकेमी' की। होम्योपैथी और बायोकेमी हमारे आयुर्वेद पर आधारित हैं और आयुर्वेद आधारित है 'अथर्ववेद'पर। अथर्ववेद मे मानव मात्र के स्वास्थ्य रक्षा के सूत्र दिये गए हैं फिर इसके द्वारा नारियों की निंदा होने की कल्पना कहाँ से आ गई। निश्चय ही साम्राज्यवादियो के पृष्ठ-पोषक RSS/भाजपा/विहिप आदि के कुसंस्कारों को धर्म मान लेने की गलती का ही यह नतीजा है कि, कम्युनिस्ट और बामपंथी 'धर्म' का विरोध करते हैं । मार्क्स महोदय ने भी वैसी ही गलती यथार्थ को समझने मे कर दी। यथार्थ से हट कर कल्पना लोक मे विचरण करने के कारण कम्युनिस्ट जन-समर्थन प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। नतीजा यह होता है कि शोषक -उत्पीड़क वर्ग और-और शक्तिशाली होता जाता है। 


आज समय की आवश्यकता है कि 'धर्म' को व्यापारियों/उद्योगपतियों के दलालों (तथाकथित धर्माचार्यों)के चंगुल से मुक्त कराकर जनता को वास्तविकता का भान कराया जाये।संत कबीर, दयानंद,विवेकानंद,सरीखे पाखंड-विरोधी भारतीय विद्वानों की व्याख्या के आधार पर वेदों को समझ कर जनता को समझाया जाये तो जनता स्वतः ही साम्यवाद के पक्ष मे आ जाएगी। काश साम्यवादी/बामपंथी विद्वान और नेता समय की नजाकत को पहचान कर कदम उठाएँ तो सफलता उनके कदम चूम लेगी। 
~विजय राजबली माथुर ©
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Thursday, August 23, 2018

सत्यपाल मलिक और कश्मीर समस्या ------ विजय राजबली माथुर





विभिन्न अखबारों व टी वी चेनलों पर श्री सत्यपाल मलिक के बिहार से जम्मू व कश्मीर स्थानांतरण का कारण उनका प्रधानमंत्री से नजदीकी होना बताया जा रहा है। NDTV पर साक्षात्कार में श्रीनगर के पत्रकार गौहर गिलानी ने उनको भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का करीबी कहा है। 
वस्तु स्थिति का आंकलन नहीं कर पाये हैं ये विश्लेषक। बिहार में राज्यपाल रहते हुये वह   वहाँ के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में शिक्षा माफिया के विरुद्ध  तमाम धमकियों के बावजूद भी अभियान छेड़े हुये थे । जैसा उनका स्वभाव है और उन्होने एक वक्तव्य में कहा भी था कि , वह कानून सम्मत किसी भी कारवाई को करने में किसी से भी नहीं डरेंगे इससे वहाँ का शिक्षा माफिया जो भाजपा के बहुत नजदीक है बहुत घबराया हुआ था। उस तबके के हितों की रक्षा के लिए श्री मलिक का बिहार में बने रहना असुविधाजनक था। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने शिक्षा माफिया के बजाए आतंकवाद से मुक़ाबला करने के लिए श्री मलिक को कश्मीर स्थानान्तरित करवा  दिया है।
श्री मलिक को खबरों में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का भी करीबी बताया जा रहा है जबकि वह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के अनुयाई और समर्थक रहे थे। मौलिक रूप से श्री सत्यपाल मलिक अपने छात्र जीवन में  समाजवादी युवजन सभा (SYS) से जुड़े हुये थे  तथा डॉ राम मनोहर लोहिया व मधु लिमये के समर्थक थे। राय बरेली में इन्दिरा जी को परास्त करने वाले राजनारायन सिंह से भी वह प्रभावित थे। 
जिस वर्ष श्री सत्यपाल मलिक ने मेरठ कालेज, मेरठ में प्रवेश लिया था उसी वर्ष मेरठ कालेज छात्र संघ की ओर से आयोजित ' संसद ' में उन्होने राजनारायन की भूमिका का निर्वहन किया था जिसकी भूरी - भूरी प्रशंसा प्रत्यक्ष दर्शक के रूप में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह ने भी की थी जिसे हमारे पोलिटिकल साईन्स के प्रोफेसर कैलाश चंद्र गुप्ता 1969 में हम नए छात्रों को बड़े गर्व से सुनाते थे। मैंने 1969 में मेरठ कालेज में प्रवेश लिया था जबकि श्री मलिक ने उसी वर्ष कालेज छोड़ा था। पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष के नाते वह कालेज आते रहे। लाहोर में भारतीय विमान जलाए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन में कालेज प्राचार्य डॉ बी भट्टाचार्य के साथ उन्होने भी नेतृत्व किया था। समाजशास्त्र परिषद की ओर से आयोजित बांगला देश को मान्यता संबन्धित गोष्ठी में समस्त छात्रों व अध्यापकों के एकमत के विपरीत मैंने बांगलादेश को मान्यता दिये जाने का विरोध किया था। इसकी सूचना श्री मलिक के साथ छात्रसंघ उपाध्यक्ष रहे राजेन्द्र सिंह यादव द्वारा उनको दिये जाने पर उन्होने मुझसे कहा था कि, वह मेरे मत से तो सहमत नहीं हैं लेकिन आम राय के विरुद्ध अपनी बात को मजबूती से रखने के मेरे प्रयास की सराहना करते हैं और मुझसे आगे भी इसी प्रकार की दृढ़ता बनाए रखने को उन्होने कहा था। (ठीक इसी तरह उस गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे बानिज्य विभाध्यक्ष डॉ खान ने उसी गोष्ठी में अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था )। 
श्री सत्यपाल मलिक कश्मीर में तब राज्यपाल के रूप में पहुंचे हैं जब वहाँ ' ज़ोजिला ' दर्रे पर सुरंग निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है उनको वहाँ के स्थानीय नागरिकों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करके इसके मलवे में ' प्लेटिनम ' होने की जानकारी हासिल करके उसे भारत के बाहर जाने से रोकने की कारवाई भी करनी चाहिए , यदि वह इसमें कामयाब रहे तब कश्मीर समस्या का समाधान भी कर सकेंगे।    
जोजीला दर्रा का प्लेटिनम है कश्मीर समस्या की जड़ ------

 * वस्तुतः 1857 की प्रथम क्रान्ति के बाद से ही ब्रिटिश साम्राज्यवादी फूट डालो और शासन करो की जिस नीति पर चलते आ रहे थे उसके बावजूद जब 1942 के भारत-छोड़ो आंदोलन, एयर-फोर्स व नेवी में विद्रोह तथा आज़ाद हिन्द फौज की गतिविधियों के कारण जब उनका टिके रहना मुश्किल हो गया तब नए साम्राज्यवादी सरगना यू एस ए ने भारत-विभाजन का सुझाव दिया जिस पर मेजर लार्ड ऐटली ने अपने प्रधान मंत्रित्व काल में अमल करते हुये पाकिस्तान व भारत दो स्वतंत्र देशों को सत्ता सौंप दी थी। पाकिस्तान तो तत्काल अमेरिकी प्रभुत्व में चला गया था किन्तु नेहरू जी ने गुट-निरपेक्ष आंदोलन के बैनर तले अमेरिका से दूरी बनाए रखी थी जिस कारण वह पाकिस्तान के माध्यम से भारत को परेशान करता रहा था। 1947 के बाद 1965 का संघर्ष भी उसी कड़ी में था और 1971 का बांग्लादेश व 1999 का कारगिल संघर्ष भी ।

** इस वक्त पाकिस्तान को झुका कर यू एस ए भारत में मोदी की हैसियत को मजबूत करना चाहता है जिनकी सरकार का लोकप्रिय होना दीर्घकालीन अमेरिकी हितों के अनुरूप होगा। निकट भविष्य में पाकिस्तान के स्थान पर कई छोटे-छोटे देश सृजित करवा कर अमेरिका भारत की बहुसंख्यक जनता के दिलों में अपना राज जमा कर अपने देश के व्यापारिक हितों को ही साधेगा जबकि यहाँ की जनता को लगेगा कि वह यहाँ कि बहुसंख्यक जनता का हितैषी है और यह सब मोदी व उनकी सरकार के चलते संभव हुआ है।

*** प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण में भी होता है.कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम.सम्पूर्ण द्रास क्षेत्र प्लेटिनम का अपार भण्डार है.अगर संविधान में सरदार पटेल और रफ़ी अहमद किदवई ने अनुच्छेद  '३७०' न रखवाया  होता  तो कब का यह प्लेटिनम विदेशियों के हाथ पड़ चुका होता क्योंकि लालच आदि के वशीभूत होकर लोग भूमि बेच डालते और हमारे देश को अपार क्षति पहुंचाते। 

**** अनुच्छेद 370 को समाप्त कराने की मांग उठाते रहे लोग जब सत्ता में मजबूती से आ गए हैं तब बिना पाकिस्तान के अस्तित्व के ही 'जोजीला'दर्रे में स्थित 'प्लेटिनम' जो 'यूरेनियम' के उत्पादन में सहायक है यू एस ए को देर सबेर हासिल होता दीख रहा है । अड़ंगा चीन व रूस की तरफ से हो सकता है और उस स्थिति में भारत-भू 'तृतीय विश्वयुद्ध' का अखाड़ा भी बन सकती है। देश और देश कि जनता का कितना नुकसान तब होगा उसका आंकलन वर्तमान सरकार नहीं कर सकती है। 

***** बाजपेयी सरकार में मंत्री रहे जगमोहन जब जम्मू कश्मीर के गवर्नर थे तब उनकी विभेदकारी नीति के अंतर्गत उनकी ही प्रेरणा से कश्मीरी पंडितों को घाटी से खदेड़ा गया था और ऐसा सांप्रदायिक रंगत देने के लिए किया गया था जो अब पूरा गुल खिला रहा है। 



   ~विजय राजबली माथुर ©














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Monday, August 20, 2018

देश में दबा दिया गया जनमत विश्व जनमत बन कर सामने आयेगा ------ बाल मुकुन्द

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~विजय राजबली माथुर ©