Thursday, March 31, 2016

प्राकृतिक असंतुलन को एक न्यौता : नारी भ्रूण हत्या (समाजशास्त्रीय विश्लेषण ) ------ विजय राजबली माथुर







प्रस्तुत लिंक पर चार साल की बच्ची के साथ उसके माता-पिता की उत्पीड़नात्मक कारवाई को देखा जा सकता है। 
http://hindi.eenaduindia.com/News/TopNews/2016/03/29181625/Parents-tied-hand-of-their-daughter-in-Aligarh.vpf



आवश्यकता आविष्कार की जननी है। विज्ञान ने नित्य नए-नए आविष्कारों द्वारा समाज में क्रांतिकारी बदलाव ला दिये हैं। विश्व के एक क्षेत्र में घटित घटना की सूचना न केवल दूसरे क्षेत्रों में तत्काल पहुँच जाती है वरन उस पर प्रतिक्रिया भी त्वरित होती है। ये सब विज्ञान के ही चमत्कार हैं कि, घर बैठे हम सम्पूर्ण विश्व से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। चिकित्सा क्षेत्र में विज्ञान के नए अन्वेषणों ने कई असाध्य रोगों को साध्य बना दिया है। अब टी बी और कैंसर जैसे रोग भी लाइलाज नहीं रहे । अल्ट्रा साउंड के आविष्कार ने अल्सर पथरी आदि कितने  ही भयानक रोगों के उपचार में अमूल्य योगदान दिया है। किन्तु खेद की बात है कि, यही मानवोपयोगी अल्ट्रा साउंड मानव जाति के विनाश के दानव के रूप में अब सामने आ रहा है। अल्ट्रा साउंड द्वारा गर्भ के तीन माह बाद लिंग निर्धारण संभव होने से नारी भ्रूणों की हत्या एक आम रिवाज बनता जा रहा है। 

नारी भ्रूण की हत्या क्यों? : 


नारी भ्रूण की हत्या के पीछे जहां समाज में बेटे के प्रति विशिष्ट आकर्षण का भाव है वहीं गरीबी व दहेज की कुप्रथा भी इसके मूल में है। हालांकि अनेक सामाजिक संगठन और सरकारी संचार माध्यम लड़का-लड़की एक समान का थोथा ढ़ोल तो पीटते रहते हैं परंतु व्यवहार मेंआज भी समाज लड़के और लड़की में भेद ही करता आ रहा है। जहां एक ओर बालक को कमाऊ पूत समझा जाता है वहीं कन्या के जन्मते ही उसके विवाह में दिये जाने वाले दहेज की चिंता उसके माता-पिता को सताने लगती है। आर्थिक दृष्टि से गरीब माता-पिता इस कुप्रथा के दुष्प्रभाव में अपनी बेटी के अविवाहित रह जाने की आशंका से गर्भ में ही नारी भ्रूण का समापन करना उचित समझते हैं जिससे उनको भावी कष्टों से निजात मिल जाये। 


दहेज क्यों? :


शुरू-शुरू में जब दहेज प्रथा का समाज में चलन हुआ तो यह समृद्ध व्यक्तियों द्वारा अपनी कुरूप कन्याओं को विवाहित देखने के उद्देश्य से दिया जाने वाला अनुग्रह- दान था । कालांतर में इस प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया और आज तो यह दहेज एक दानव ही है। दहेज की बलिवेदी पर असंख्य कुआँरी कन्याओं एवं नव - विवाहिताओं ने अपनी आहुति  चढ़ा दी है। परंतु दहेज दानव के संतुष्ट होने का  सवाल कहाँ? यह तो और भी विकराल रूप धारण करता जा रहा है। भौतिकता की चकाचौंध और आधुनिक सुविधाओं को पाने की होड में मनुष्य चरित्र इतना गिर चुका है कि, वह पुत्र के विवाह पर अधिक से अधिक सुविधाएं कन्या पक्ष से झटक लेना चाहता है। आज कन्यादान एक पुण्य दान न होकर वर पक्ष को संतुष्ट करने करने का एक ऐसा यज्ञ बन चुका है जिसमें कन्या के जीवन तक की आहुति दे दी जाती है। 


एक निदान भारी भूल : 

इस प्रकार आज के तेज़ी से दौड़ते समाज में पिछड़ने से बचने और संभावित दहेज -दुष्चक्र से निदान पाने हेतु अधिकांश लोग नारी भ्रूण समापन का सहारा लेने लगे हैं। हमारे समाज सुधारकों का ध्यान अब इस भारी भूल की ओर गया है कि, नारी भ्रूण समापन की प्रक्रिया के चलते आज समाज में पुरुषों की अपेक्षा नारियों की स्थिति 20 प्रतिशत कम हो गई है। यह समाज में स्त्री-पुरुष संतुलन बिगड़ने का संकेत है। जब लड़कों की अपेक्षा 80 लड़कियां ही उपलब्ध होंगी तो 20 लड़कों को कुआँरा ही रहना पड़ेगा। इससे समाज में पहले से ही व्याप्त यौन अपराध और भीषण गति से बढ़ेंगे। विवाहित और अविवाहितों के बीच बढ़ता हुआ अनुपात समाज में नारी जाति की दुर्दशा को और बढ़ाने वाला ही होगा। नारी का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। असंतृप्त पुरुष यौन -पिपासा शांत करने हेतु नारी चाहे वह कुआँरी  कन्या हो अथवा विवाहित वधू पर उसी प्रकार झपटेगा जिस प्रकार भूखा बाघ अपने शिकार पर झपट्ता है। यौन अपराध एक फैशन बन जाएगा। 

नारी स्वातंत्र्य पर आघात : 

नारी -मुक्ति आंदोलन आज भी सफल नहीं हो सका है। परंतु नारी भ्रूण समापन से होने वाले भावी यौन अपराधों की विभीषिका नारी की स्वतन्त्रता का सम्पूर्ण समापन कर देगी। आज हर क्षेत्र में नारियां जो बढ़-चढ़ कर भाग ले रही हैं आने वाले समय में घर में कैद होकर रह जाएंगी। क्योंकि बाहर निकलते ही भूखे यौन पिपासू भेड़िये उन पर घात  लगाने की टोह में घूम रहे होंगे। कई-कई पुरुषों के मध्य एक ही स्त्री से विवाह करने की कुप्रथा का भी कहीं-कहीं उदय हो सकता है। इससे संतान के पिता की पहचान की व उस पर पुरुष अधिकार की समस्या भी उठ खड़ी होगी। 

भ्रूण परीक्षण / गर्भ समापन पर प्रतिबंध लगे :

समाज में स्त्री-पुरुष अनुपात में होने वाले प्राकृतिक  असंतुलन को रोकने, नारी की दुर्गति की संभावना को टालने व यौन अपराधों पर नियंत्रण हेतु शीघ्र ही सरकार को भ्रूण परीक्षण पर  ही प्रतिबंध लगा कर इसे दंडनीय अपराध घोषित कर देना चाहिए। भ्रूण चाहे वह नर हो या मादा उसका समापन करने वाले डॉ व नर्सिंग होम का लाइसेन्स छीन लिया जाये और उनको कड़ी सज़ा दी जाये । इसके अतिरिक्त इन सभी खतरों का प्रचार कर जनता को भ्रूण परीक्षणों के विरुद्ध जागृत किया जाये तभी नारी भ्रूण हत्या की कुरीति से निदान मिल सकता है और प्रकृति में होने वाली भीषण विभीषिका को टाला जा सकता है। 

(1 ) प्रकृति की अनमोल सृष्टि है यह मानव जात । 
      नर औ ' नारी के बिना अधूरी है कोई बात । । 

(2 ) दहेज ही है मानव-जीवन का अभिशाप। 
      भ्रूण- परीक्षण, गर्भ समापन है महापाप। । 

(3 ) जन-जन को है हमारा यह संदेश   । 
      छोड़ो नारी से विभेद, राग और द्वेष । ।    
~विजय राजबली माथुर ©
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Tuesday, March 22, 2016

वे अपनी बात बंदूक के बल पर मनवाना चाहते हैं ------ जितेंद्र वर्मा



कुछ लोगों के लिए देशप्रेम का मतलब कोयल की कूक , नदियों का कलकल - छलछल , झरना का झर- झर , सूर्योदय, सूर्यास्त , पहाड, अतीत का झूठा महिमामंडन आदि है और भूख ,शिक्षा ,स्वस्थ, बराबरी, न्याय ,शोषण -मुक्ति ,अवसर की समानता जैसे मुद्दों का मतलब देशद्रोह है l इन मुद्दों पर से ध्यान हटाने के लिए जोर - जोर से चिल्लाना उनके लिए देशप्रेम है l 


Jitendra Verma

जेएनयू संकट : संकट की आहट
हाल में जेएनयू के घटना – क्रम ने पूरे देश को उद्धेलित किया है l विदेश में भी भारत की छवि बदरंग हुई है l यह विश्वविद्यालय अपने स्थापना काल से बहस , नए विचार , तर्क आदि का केंद्र रहा है l 
जेएनू का ताजा प्रकरण छात्र – संघ के अध्यक्ष कन्हैया की गिरफ्तारी से शुरू हुआ l उनपर आरोप था कि उन्होंने अपने भाषण में काश्मीर की आजादी के और अफजल के पक्ष में नारा लगाया था l भाषण के विडीयो रेकार्डिग के जांच में यह आरोप गलत साबित हुआ l इसी आधार पर कन्हैया को जमानत मिली l 
इस विवाद में एक तरफ भारत सरकार है तो दुसरी तरफ जेएनयू के छात्र हैं l जबसे केंद्र में मोदी सरकार बनी है तबसे भाजपा जेएनयू के खिलाफ बोल रहें हैं l पिछले दिनों भाजपा के मुख – पत्र पाचजन्य और ऑर्गनाइजर में एक रिपोर्ट छपी जिसमें कहा गया कि जेएनयू में देशद्रोही पैदा होते हैं , वह देशद्रोहियों का अड्डा है l आज इस विश्वविद्यालय से निकले लगभग छ हजार आई ए एस , आई पी एस देश में कार्यरत हैं l बिहार के वर्तमान मुख्य सचिव इसी विश्वविद्यालय की उपज हैं l तो यह मान लिया जाय कि अभी देश को देशद्रोही चला रहें हैं ! 
जेएनयू शुरू से नए विचारों का केंद्र रहा है l वहाँ नए विचारों को पूर्वग्रह मुक्त नजरिये से देखा जाता है l ऐसा नहीं है कि वहाँ सिर्फ वामपंथी विचारों के अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है l वहाँ हर कोई अपना विचार रख सकता है l भाजपा के विधार्थी परिषद की शाखा वहां काम कर रही है , छात्र – संघ के चुनाव में कई पदों पर उसके उम्मीदवार जीते भी हैं l कांग्रेस के शासनकाल में( 22 दिसम्बर 1966) स्थापित यह विश्वविद्यालय वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है l यह अन्य विश्वविद्यालयों से थोडा भिन्न है l यहाँ नोकरी के लिए पड़ना अच्छा नहीं माना जाता है l यहाँ का लक्ष्य ज्ञान प्राप्त करना माना गया है l इंग्लैंड का कैम्बिज और अमेरिका का हार्वड इसके आदर्श हैं l ऐसे विश्वविद्यालय का नाम जवाहरलाल नेहरु के नाम पर होना स्वाभाविक है l यह मानविकी , समाज विज्ञान , अन्तरराष्ट्रीय अध्धयन में उच्चस्तरीय शिक्षा एवं शोध के लिए बना है l 
चिन्तन की प्रक्रिया आग्रह मुक्त होती है l किसी भी विचार , सिद्धांत , धारणा ,मान्यता आदि पर प्रश्नचिन्ह लगाना नए चिन्तन की पहली शर्त होती है l पहले के विचार , सिद्धांत , धारणा , मान्यता आदि का परीक्षण बुरा नहीं होता है l पर कमजोर विचार  वार्लों को हरदम डर बना रहता है कि कही उनकी पोल खुल नहीं जाए l वे अपनी बात बंदूक के बल पर मनवाना चाहते हैं l जेएनयू में किसी भी मुद्दे पर बहस , विचार – विमर्श की पर्याप्त जगह रहती है पर ठस दिमागवालों को थोड़ी भी मतभिन्नता , असहमति बर्दाश्त नहीं होती है l
कुछ लोगों के लिए देशप्रेम का मतलब कोयल की कूक , नदियों का कलकल - छलछल , झरना का झर- झर , सूर्योदय, सूर्यास्त , पहाड, अतीत का झूठा महिमामंडन आदि है और भूख ,शिक्षा ,स्वस्थ, बराबरी, न्याय ,शोषण -मुक्ति ,अवसर की समानता जैसे मुद्दों का मतलब देशद्रोह है l इन मुद्दों पर से ध्यान हटाने के लिए जोर - जोर से चिल्लाना उनके लिए देशप्रेम है l 
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के बहाने जो घटनाएँ घट रहीं है उससे साफ़ है कि आज देश में भाजपा . आर . एस . एस . से असहमति , मतान्तर के लिए कोई जगह नहीं है l भाजपा और आर . एस . एस . से असहमति का एकमात्र अर्थ देशद्रोह है l यह विडम्बना ही है कि जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजो का साथ दिया , गाँधी जी की हत्या की , राष्ट्रध्वज , राष्ट्रगीत को हरदम बदलने की मांग की वे आज देशभक्ति का प्रमाण पत्र बाँट रहें हैं ! 

जेएनयू के खिलाफ एक आरोप यह लगाया जा रहा है कि वहाँ के छात्र करदाताओं के पैसे से ऐयाश्शी करते हैं l ऐसे लोगों को शिक्षा पर होने वाला व्यय बेकार लगता है l यही वजह है कि मोदी सरकार अपने बजट में शिक्षा के व्यय पर कटैती कर रही है l भाजपा के विधायक ने बड़े परिश्रम से गिना कर बताया कि जेएनयू में प्रतिदिन कितने कंडोम , कितने शराब की बोतल , कितने सिगरेट के टुकडे , कितने मुर्गे की हड्डी , कितने मुर्गी की हड्डी मिलते हैं ! इस विश्वविद्यालय की व्यवस्था हरदम रफ एंड टफ रही है l कैंटीन में ग्लास नहीं रहता , सभी जग से ही पानी पीते हैं l जींस और कुर्ता यहाँ का सदाबहार ड्रेस है l यहाँ के छात्र रात – रात भर पढने के लिए जाने जाते हैं l ऐसी जगह पर सेना को तैनात करना शर्मनाक है l भारत इतना कमजोर नहीं है कि किसी के कहने या भाषण से टूट जाएगा l

Jitendra Verma


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 ~विजय राजबली माथुर ©
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Saturday, March 19, 2016

हमारी लड़ाई सीधे तौर पर तानाशाही के खिलाफ है ------ कन्हैया कुमार


कन्हैया का मोदी सरकार पर वार, आप अंग्रेज है तो हम भगत सिंह के सिपाही
मार्च 19, 2016 भारत
JNUSU president Kanhaiya Kumar

केंद्र की मोदी सरकार पर एक बार फिर हमला बोलते हुए जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने कहा कि वे तानाशाही के खिलाफ सीधी लड़ाई छेड़ेंगे। कन्हैया ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश भर के विश्वविद्यालयों को निशाना बना रही है। उन्होंने सभी लोकतांत्रिक ताकतों का समर्थन मांगते हुए कहा कि यह देश को बचाने की मुहिम है।

कन्हैया ने कहा कि संविधान की बात करने वालों को राजद्रोह के उस मामले में कानून को अपना काम करने देना चाहिए जिसमें उनके साथ-साथ जेएनयू के छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को भी आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया गया था। कन्हैया ने कहा कि सड़क पर इंसाफ करना स्वीकार्य नहीं है। इंडिया टुडे कॉनक्लेव में कन्हैया ने कहा, ‘हो सकता है कि आप मेरी राजनीति से सहमत न हों। यह सिर्फ जेएनयू की बात नहीं है। देश भर में विश्वविद्यालयों को निशाना बनाया जा रहा है। अब हमारी लड़ाई सीधे तौर पर तानाशाही के खिलाफ है। सभी लोकतांत्रिक ताकतों को साथ आना होगा। देश में इस एकता की जरूरत है’।

कन्हैया ने कहा कि लोगों के सामने आज सबसे बड़ा सवाल देश को बचाने का है, लेकिन जेएनयू विवाद में मामले को देशभक्त बनाम देशद्रोही का रंग दे दिया गया। उन्होंने कहा कि देशभक्त का काम यह नहीं होता कि अपने ही देश के लोगों, युवाओं और छात्रों के खिलाफ राजद्रोह जैसे काले कानून का इस्तेमाल करे। उन्होंने कहा, ‘आप ऐसे बर्ताव कर रहे हैं जैसे आप अंग्रेज बन गए हैं और हम भगत सिंह के सिपाही हैं। यदि आपको राजद्रोह जैसे काले कानून के इस्तेमाल में कोई हिचक नहीं है तो हमें भी भगत सिंह का सिपाही बनने में कोई दिक्कत नहीं है।

इस मौके पर जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष शहला राशिद शोरा ने कहा कि सबको साथ लेकर चलने वाला भारत का विचार आज खतरे में है। शहला ने कहा, ‘चूंकि राजनीति हमारा भविष्य तय करती है, ऐसे में हम ही अपनी राजनीति तय करेंगे । विश्वविद्यालय लोकतांत्रिक स्थान होते हैं। हमें उन्हें आरएसएस से बचाना होगा’।


जम्मू-कश्मीर की रहने वाली शहला ने कहा कि वे भारत की बेहद हिंसक छवि देखते हुए पली-बढ़ी हैं, लेकिन जेएनयू ने उन्हें लोकतांत्रिक जगह मुहैया कराई। इससे पहले, कन्हैया ने राजद्रोह कानून को निरस्त करने के लिए लड़ाई छेड़ने का संकल्प जताया। इसी कानून के तहत एक विवादास्पद कार्यक्रम के सिलसिले में पिछले महीने कन्हैया और विश्वविद्यालय के दो अन्य पीएचडी छात्रों को गिरफ्तार किया गया था। उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को जमानत दिए जाने का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि सभी पार्टियों और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले लोगों को ब्रिटिश युग के कानून को खत्म करने की मांग को लेकर आगे आना चाहिए।
साभार :

http://www.hindkhabar.in/india/1536-kanhaiya-war-british-and-bhagat-singh-soldiers

सौजन्य से :

Sindhu Khantwal

कामरेड कन्हैया के अभियान को निम्नांकित लेख भी पुष्ट करता है -------



 ~विजय राजबली माथुर ©
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Friday, March 18, 2016

देशहित में नहीं मानवाधिकारों का बड़ा उल्लंघन है आधार परियोजना ------ गोपाल कृष्ण/ रोहित जोशी


'आधार बना देगा नागरिकों को कैदियों से बदतर'

राज्यसभा की ओर से दिए गए सुझावों को अस्वीकार करते हुए आधार विधेयक 2016 को संसद में पास कर दिया गया है. विपक्ष के अलावा सिविल सोसाइटी से जुड़े कुछ बुद्धिजीवी भी इसका विरोध करते रहे हैं.
यूआईडी आधार के खिलाफ काम कर रहे कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ​इसे 'संविधान पर हमला' मानते हैं. डॉयचे वेले से बात करते हुए गोपाल कृष्ण इस विधेयक को एक छद्म विधेयक बताते हुए कहते हैं, ''2010 में आधार बिल डायरेक्ट तरीके से पास नहीं हो पाया तो सरकार ने इंडायरेक्ट तरीके से इसे मनी बिल के बतौर पेश किया. इस पूरे विधेयक का हम लोगों ने अध्ययन किया है. उसके अध्ययन से भी ये स्पष्ट होता है कि ये धन विधेयक नहीं है. साथ ही ये नागरिकों के अधिकारों पर हमला है और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है.''

गोपाल कृष्ण कहते हैं, ''जिस तरह से आधार के तहत ​अंगुलियों के निशान और आंखों की तस्वीरें ली जा रही हैं वे नागरिकों को कैदियों की स्थिति से भी बदतर हालत में खड़ा कर देता है. क्योंकि कैदी पहचान कानून के तहत ये प्रावधान है कि कैदी अगर बाइज्जत बरी होता है या सजा काट लेता है तो उसके अंगुलियों के निशान को नष्ट कर दिया जाता है. आधार के मामले में ये कभी नष्ट नहीं होगा.''

वित्तमंत्री अरूण जेटली ने आधार के जरिए जुटाए जा रहे बायोमेट्रिक आंकड़ों को पूरी तरह सुरक्षित बताया है. राज्यसभा में उन्होंने कहा ''ये केवल खास मकसद से है और सटीक तरीका भी इसके लिए बनाया गया है. ये कहना कि इस जानकारी का वैसे इस्तेमाल किया जाएगा जैसे नाजी लोगों को टार्गेट करने के लिए इस्तेमाल करते थे. मुझे ये लगता है कि ये महज एक राजनैतिक बयान है. ये ठीक नहीं है.''
लेकिन गोपाल कृष्ण वित्तमंत्री अरूण जेटली पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि वे तथ्यों को गलत ढंग से पेश कर रहे हैं, ''हम लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत वे कॉन्ट्रेक्ट एग्रीमेंट निकाले हैं.. उसमें स्पष्ट लिखा गया है कि ऐक्सेंचर, साफ्रान ग्रुप, एर्नेस्ट यंग नाम की ये कंपनियां भारतवासियों के इन संवेदनशील बायोमेट्रिक आंकड़ों को सात साल के लिए अपने पास रखेगी.''


गोपाल कृष्ण दूसरे देशों का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ''दूसरे देशों ने इस तरह की परियोजनाओं पर जो कदम उठाए उनके अनुभवों को दरकिनार करके ये विधेयक लाया गया है. यूरोप में जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन के अलावा अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस तरह की परियोजनाओं को रोक दिया गया है.''

गोपाल कृष्ण इस परियोजना को विदेशी बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी कंपनियों के मुनाफे के लिए बनाई गई योजना बताते हुए कहते हैं, ''आधार परियोजना में हर एक पंजीकरण पर 2 रूपया 75 पैसा खर्च हो रहा है. भारत की आबादी लगभग 125 करोड़ के आस पास है. ना सिर्फ पंजीकरण के समय बल्कि ​ज​ब जब इसे इस्तेमाल किया जाएगा, डिडुप्लिकेशन के नाम पर इन कंपनियों को ये मुनाफा पहुंचाया जाएगा. इन बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए ये सब​ किया जा रहा है. गोपाल मानते हैं कि ये देशहित में नहीं है और ये मानवाधिकारों का बड़ा उल्लंघन है.''


http://m.dw.com/hi/%E0%A4%86%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%A4%E0%A4%B0/a-19123469

~विजय राजबली माथुर ©
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Saturday, March 12, 2016

वर्तमान बहस को विकल्पों पर विचार की तरफ ले जाया जाए ------ सत्येंद्र रंजन

कन्हैया के भाषण को आधुनिक भारत के सपने का समर्थन
March 6, 2016, 3:22 PM IST सत्येंद्र रंजन in प्रतिपक्ष | सोसाइटी, राजनीति, देश-दुनिया


कन्हैया कुमार ने अपनी रिहाई के बाद जेएनयू में जो भाषण दिया, वह बहुचर्चित हो चुका है। उसके बाद अलग-अलग टीवी चैनलों को उन्होंने कई इंटरव्यू दिए। मीडिया की चर्चाओं में स्वाभाविक रूप से उनके वक्तव्यों के उन हिस्सों की ज्यादा चर्चा हुई, जिनमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक पर निशाना साधा। यह हमला इतना तीखा था कि उससे भारतीय जनता पार्टी विचलित हुई। इसकी मिसाल उसके नेताओं के बयान हैँ। संघ खेमे की की प्रतिक्रिया तो उसके अपेक्षा के अनुरूप ही हिंसक बयानबाजी रही।
लेकिन इनसे अलग कन्हैया कुमार ने कुछ ऐसा भी कहा, जिसका संदर्भ दूरगामी है। उन्होंने कहा कि इस वक्त संघर्ष की रेखाएं साफ खिंची हुई हैँ।kanhaiya इसमें एक तरफ आरएसएस और उसकी सोच से सहमत ताकतें हैं और दूसरी तरफ प्रगतिशील शक्तियां। कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में भारत के मुख्य सामाजिक अंतर्विरोध के बारे में किसी और नेता ने ऐसी साफ समझ बेहिचक सार्वजनिक रूप से सामने नहीं रखी है। इसीलिए कन्हैया ने एक स्वर में सीताराम येचुरी से लेकर राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और उन तमाम लोगों का आभार जताया जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय तथा राजद्रोह के मामले में उनके समर्थन में सामने आए। इस सिलसिले में कन्हैया कुमार ने यह महत्त्वपूर्ण बात बार-बार कही कि इस लड़ाई में कई दायरे टूटे हैँ। इस पर उन्होंने संतोष जताया। इसे भविष्य की उम्मीद बताया।
यह दायरा टूटने की ही झलक थी कि जेएनयू के मुद्दे पर दिल्ली में निकले बहुचर्चित जुलूस में एनएसयूआई, एसएफआई, एआईएसएफ, आइसा तथा दूसरे छात्र संगठन एक साथ शामिल हुए। किसी पार्टी या संगठन से ना जुड़े हजारों नौजवानों एवं बुद्धिजीवियों-कलाकारों की वहां उपस्थिति राष्ट्रवाद की भगवा समझ थोपने की एनडीए सरकार की कोशिशों से फैलती उद्विग्नता और आक्रोश का प्रमाण थी। इस सिलसिले में एक घटना खास उल्लेखनीय है।
30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन राहुल गांधी हैदराबाद में रोहित वेमुला की आत्महत्या के खिलाफ छात्रों के विरोध कार्यक्रम में शामिल हुए। शाम को उन्होंने वहां मौजूद नौजवानों को संबोधित किया। उपस्थित श्रोताओं में अंबेडकरवादी व्यक्तियों की बहुसंख्या थी। मगर वहां राहुल गांधी ने अपना भाषण गांधीजी को श्रद्धांजलि देते हुए शुरू किया। गुजरे दशकों में गांधी के प्रति अंबेडकरवादी समूहों का कड़ा आलोचनात्मक रुख जग-जाहिर रहा है। लेकिन वहां राहुल गांधी के भाषण के बीच कोई टोका-टाकी नहीं हुई। अबेंडकरवादी श्रोता समूह ने धीरज और सहिष्णुता के साथ गांधी की तारीफ में कहे गए शब्द सुने।
कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद राहुल गांधी जेएनयू पहुंचे तो वहां श्रोता समूह में बहुसंख्या वाम रुझान वाले छात्रों-शिक्षकों की थी। राहुल गांधी सीताराम येचुरी और डी राजा जैसे नेताओं के साथ बैठे। फिर भाषण दिया। एक बार फिर सबका ध्यान मुद्दे पर रहा। आपसी राजनीतिक मतभेद वहां गौण हो गए।
kanhaiyaकन्हैया कुमार ने अपनी रिहाई के बाद जब मीडिया को दिए इंटरव्यू में मार्क्स, अंबेडकर, पेरियार, फुले, गांधी, नेहरू के नाम एक क्रम में लिए, तो जाहिर है उनके ध्यान में देश में होता वही ध्रुवीकरण रहा होगा, जो इस वक्त का तकाजा है। आधुनिक भारत का विचार इन तमाम और अन्य कई (मसलन, बिरसा मुंडा) विरासतों का साझा परिणाम है। भारत के इस विचार के जन्म और आगे बढ़ने का इतिहास 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से शुरू होता है। इस विचार के सार-तत्व को एक वाक्य में कहना हो तो वो यह होगा कि भारतीय भूमि पर जन्मा हर व्यक्ति भारतीय है और उसका दर्जा समान है। सबके आर्थिक हित समान हैं, विचारों का खुलापन, एक-दूसरे की जीवन-शैली के प्रति सहिष्णुता, लोकतंत्र, सामाजिक-आर्थिक न्याय और प्रगति का एजेंडा भारतीय राष्ट्रवाद की इस विचारधारा के आधार हैँ।
धर्म आधारित राष्ट्रवाद के विचार से उपरोक्त भारतीय राष्ट्रवाद का संघर्ष स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों से जारी है। 2014 के आम चुनाव में उभरे जनादेश से हिंदू राष्ट्रवाद का विचार देश की केंद्रीय सत्ता पर काबिज हो गया। इससे न्याय एवं स्वतंत्रता की दिशा में हुई वह तमाम प्रगति खतरे में पड़ गई है, जो भारतीय जनता ने अपने लंबे संघर्ष से हासिल की। इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखें तो कन्हैया कुमार की बातों का महत्त्व स्वयंसिद्ध हो जाता है।
यह संकट का समय है, लेकिन उम्मीद की किरण यह है कि भारतीय जन के एक बड़े हिस्से ने समय रहते इसकी पहचान कर ली है। सांप्रदायिक राष्ट्रवाद के बरक्स न्याय और प्रगति की विचारधाराओं से प्रेरित राष्ट्रवाद की शक्तियां जाग्रत हो रही हैँ। कन्हैया कुमार से जुड़े घटनाक्रम ने इस विश्वास को मजबूती दी है। कन्हैया के भाषणों को मिली लोकप्रियता मिसाल है कि आधुनिक भारत के सपने को नया जन-समर्थन मिल रहा है।
रोहित वेमुला और कन्हैया कुमार के मामलों से सामाजिक विषमता एवं विभाजनों पर परदा डालकर अन्याय और गैर-बराबरी की व्यवस्था को कायम रखने के प्रयोजन बेनकाब हुए हैँ। जेएनयू में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तीन नेताओं का अपने संगठन से इस्तीफा इसकी ही मिसाल था। वे तीनों मनुस्मृति जलाना चाहते थे, लेकिन उनके संगठन ने उसकी इजाजत नही दी। यह घटना बताती है कि हिंदुत्व के नाम पर जातीय (प्रकारांतर में आर्थिक) शोषण को मजबूत रखने की कोशिशों का सफल होना आज कठिन है। बाबा साहेब अंबेडकर के सपनों और उद्देश्य को नाकाम करने के लिए उनकी जय बोलने का पाखंड ज्यादा देर तक नहीं चल सकता।   

फिर भी यह एक लंबी राजनीतिक लड़ाई है। बेशक इसका तात्कालिक परिणाम आने वाले सभी चुनाव नतीजों से तय होगा। मगर इसके साथ उस आधार पर प्रहार करना भी जरूरी है जिस वजह से पुराने आधिपत्य को कायम रखने पर आमादा ताकतें आधुनिक समय में भी अपनी चुनाव प्रणाली के अंदर राजनीतिक बहुमत बना लेने में सफल हो जाती हैँ। यह आधार वर्ग-विभाजन, जातिवाद और अज्ञानता के कारण कायम है। इस बुनियाद तो तोड़ना तभी संभव है जब वर्तमान बहस को विकल्पों पर विचार की तरफ ले जाया जाए। कन्हैया कुमार ने इसमें योगदान किया है। रोहित वेमुला और जेएनयू प्रकरणों से इस दिशा में आगे बढ़ने की संभावना बनी है।
साभार  : 
http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/satyendraranjan/support-to-kanhaiyas-speech-indicates-to-modern-india/

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14-03-2016 




 ~विजय राजबली माथुर ©
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