Wednesday, November 26, 2014

एक परिवार का प्रदर्शन बन कर रह गया पी पी पी सम्मेलन --- विजय राजबली माथुर



पूर्व घोषणा के अनुसार विगत 23 नवंबर 2014 को भाकपा, लखनऊ का 22 वां ज़िला सम्मेलन आयोजित हुआ। प्रारम्भ में प्रदेश की ओर से पर्यवेक्षक महोदय ने इसका उदघाटन उद्बोद्धन दिया। अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रांतीय परिस्थितियों का सवा घंटे उल्लेख कर जब वह ज़िले की परिस्थितियों पर आए तो उनके असंतोष व आक्रोश का प्रस्फुटन हुआ।खुद बारह वर्ष लखनऊ के ज़िला सचिव व आठ वर्ष प्रदेश के सचिव रह चुके पर्यवेक्षक महोदय  जिलामंत्री जी से काफी खिन्न थे और उनकी सांगठानिक कार्य प्राणाली की तीखी भर्त्सना कर डाली। उनके द्वारा इंगित किया गया कि यह ज़िला सम्मेलन बगैर शाखाओं व मध्यवर्ती कमेटियों के सम्मेलन करवाए हो रहा है। उनके द्वारा यह भी उद्घाटित किया गया कि वह लखनऊ के ही हैं और यहीं रहने के कारण यहाँ की हर गतिविधि से बखूबी वाकिफ भी हैं। इस क्रम में उनके द्वारा साफ शब्दों में कहा गया कि वह मलीहाबाद और लखनऊ पूर्व से रहे प्रत्याशियों से काफी असंतुष्ट हैं क्योंकि उन दोनों ने संगठन के विस्तार पर कोई ध्यान ही नहीं दिया है। अपने गुस्से को और आगे बढ़ाते हुये कठोर शब्दों में इन दोनों को चेतावनी देते हुये उन्होने कहा कि जिस प्रकार प्रदेश के किसान सभा नेता और खेत मजदूर यूनियन नेता कम्युनिस्ट पार्टी की रोटियाँ तोड़ रहे हैं वैसा ही ज़िले में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा भले ही ज़िले में ये संगठन बनें या न बनें। किन्तु उनके द्वारा महिला फेडरेशन के किए कार्यों का विशद गुण गान किया गया। उनके बाद बोलने आए इप्टा के राकेश जी व प्रलेस के शकील सिद्दीकी साहब उनके लंबे भाषण का ज़िक्र करना न भूले। अध्यक्ष मण्डल के सदस्य शिव प्रकाश तिवारी जी ने उनके विपरीत ज़िले से प्रत्याशी रहे दोनों युवा साथियों की भूरी-भूरी प्रशंसा की कि वे सुप्तप्राय पार्टी का झण्डा-बैनर लेकर जनता के बीच गए और उन दोनों ने पार्टी को पुनर्जीवित कर दिया। शिव प्रकाश जी ने किसान नेताओं की भी प्रशंसा करते हुये विशेष रूप से अतुल अंजान साहब के योगदान को याद दिलाया। जिला मंत्री की कमियों के बावजूद उनके धैर्य व संयम की भी शिव प्रकाश जी ने सराहना की।  

अन्य वक्ताओं ने तो अपनी-अपनी बात रखी परंतु उन्नाव के ज़िला मंत्री रह चुके कामरेड रामगोपाल शर्मा जी ने ज़िला मंत्री द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की न केवल भाषाई अशुद्धियों की ओर सबका ध्यान खींचा बल्कि पार्टी संविधान के अनुसार कार्य न होने की ओर भी इंगित किया।राम गोपाल जी द्वारा कुल 168 सदस्यों  द्वारा पार्टी से अलग होने को सोचनीय करार दिया गया। रामगोपाल शर्मा जी ने यह भी याद दिलाया कि 30 दिसंबर 2013 को गठित 'नगर कमेटी' का उल्लेख तक इस रिपोर्ट में नहीं किया गया है।  आय-व्यय विवरण का उल्लेख व प्रस्तुतीकरण न होने को उनके द्वारा गंभीर चूक बताया गया फिर भी संशोधनों के किए जाने पर उन्होने रिपोर्ट का समर्थन किया। शर्मा जी के बयान की कान्ति मिश्रा जी ने हल्की व मधुकर मौर्या तथा ओ पी सिंह द्वारा कटु एवं गहन आलोचना की गई। 

संचालक महोदय ने ज़िला मंत्री की ओर से नई ज़िला काउंसिल हेतु 21 सदस्यीय कमेटी का प्रस्ताव व 20 नामों को पेश किया जिसे पर्यवेक्षक महोदय द्वारा 23 सदस्यीय काउंसिल में परिवर्तित कर दिया गया। दो सदस्यों के नाम बढ़ा कर कुल 22 नाम तय किए गए व एक स्थान 'रिक्त' रखा गया। 

10 बजे के स्थान पर 12 बजे शुरू हुआ सम्मेलन एक घंटे के भोजन-  अवकाश सहित साँय 05-45 पर अंधेरा हो चुकने के कारण अध्यक्ष मण्डल की सदस्या आशा मिश्रा जी द्वारा समाप्त घोषित कर दिया गया और पर्यवेक्षक महोदय के निर्देश पर वर्तमान ज़िला मंत्री को नई काउंसिल के साथ नए जिला मंत्री के निर्वाचन तक  यथावत कार्य  करते रहने को कहा गया।

सम्पूर्ण कार्यवाही के सम्पन्न होने के साथ ही यह भी उजागर हो गया कि पर्यवेक्षक महोदय का सारा असंतोष व आक्रोश प्रदीप प्रायोजित सुनियोजित रण-नीति का अहम हिस्सा था। पर्यवेक्षक महोदय राज्य की ओर से उनकी श्रीमती जी अध्यक्ष मण्डल की ओर से प्रभावी थे ही उनकी साली साहिबा को महिला फेडरेशन की ज़िला अध्यक्ष होने के नाते फेडरेशन की   ओर से बोलने का हक दिया गया जबकि फेडरेशन की जिलमंत्री को भी यह हक दिया जा सकता था। प्रदीप साहब का दावा रहा है कि वह ही अकेले दम पर प्रदेश पार्टी को चलाते हैं। अपने कद व रुतबे को बढ़ाने हेतु प्रदीप साहब  जो खुद लखनऊ के सदस्य होते हुये भी प्रदेश की ओर से ज़िला इंचार्ज भी हैं ने कोई तेरह वर्ष पूर्व इन पर्यवेक्षक महोदय के प्रदेश सचिव रहते हुये लखनऊ के तत्कालीन  जिलामंत्री (जो राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट  पार्टी से होते हुये अब भाजपा सांसद हैं )  को उनसे भिड़वा कर पार्टी में विभाजन करा दिया था। उससे पूर्व भी 1994 में प्रदेश पार्टी विभाजित हो चुकी थी। 'राष्ट्रीय मान्यता' समाप्त होने के कगार पर पहुँचते ही पार्टी को और संकुचित करने के निर्णय की घोषणा पर्यवेक्षक महोदय द्वारा की गई। उनके द्वारा लखनऊ की सभी विधायिका सीटों पर चुनाव लड़ाने से साफ-साफ इंकार कर दिया गया। अपने परिवार को प्रदीप पाकेट पार्टी (पी पी पी ) से मिले सम्मान से पर्यवेक्षक महोदय गदगद नज़र आए। उनका ध्यान पार्टी संविधान के उल्लंघन की ओर गया ही नहीं। 2011 के सम्मेलन में जिला मंत्री महोदय द्वारा घोषित किया गया था कि छह वर्ष पूर्ण हो चुकने के कारण पार्टी संविधान के अनुसार उनका यह लगातार निर्वाचन का अंतिम कार्यकाल होगा। किन्तु इस सम्मेलन में संचालक महोदय ने इस वर्ष छह वर्षों को पूर्ण होना घोषित किया अर्थात एक और कार्यकाल का लाभ वर्तमान जिलामंत्री महोदय को देने की भूमिका प्रस्तुत कर दी।पर्यवेक्षक महोदय ने कार्यवाही रजिस्टर के पृष्ठ फाड़े जाने और उनको गोंद से चिपकाए जाने की ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया। 

वर्तमान जिलामंत्री महोदय का इस बात के लिए आभार व्यक्त किया जा सकता है कि प्रदीप साहब के प्रबल विरोध के बावजूद अंततः सम्मेलन में मुझे प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान कर दिया। वैसे उनको इस बात के लिए भी धन्यवाद दिया जा सकता है कि उन्होने अपने दो विश्वस्त लोगों के माध्यम से यह संदेश बहुत पहले ही भिजवा दिया था कि प्रदीप साहब की कमियाँ उजागर करने के कारण नई काउंसिल में मुझे स्थान नहीं दिया जा सकता है। 

प्रदेश पार्टी के प्रमुख व उप प्रमुख कार्यकर्ताओं का ध्यान सम्मेलन की इन विसंगतियों से हटाने हेतु अनावश्यक अभियान चलाये हुये हैं जिससे जनता में पार्टी की दूरी और भी बढ़ेगी तथा उसका शोषण-उत्पीड़न चरम पर पहुँच जाएगा क्योंकि सत्तारूढ़ दल हमारी पार्टी के विरुद्ध इन बयान बाजियों का भरपूर लाभ उठाएगा। 'अनुशासन ' के डंडे से कार्यकर्ताओं को तो भयभीत किया जा सकता है परंतु जन-समर्थन नहीं हासिल किया जा सकता ।









ज़्यादा पुराना इतिहास नहीं है कि राजा राम मोहन राय ने भारत में अग्रेज़ी भाषा पढ़ाये जाने का इसलिए समर्थन किया था कि 'अग्रेज़ी साहित्य' के माध्यम से भारतवासी ब्रिटेन के आज़ादी के लिए किए गए संघर्षों की गाथा भी पढ़ेंगे और अपने देश की आज़ादी के लिए उठ खड़े होंगे और ऐसा ही हुआ भी।
अच्छा हो कि जन-जन को 'संस्कृत भाषा' का ज्ञान हो जाये जिससे प्रत्येक भारतवासी सुगमता से समझ सके कि हजारों-हज़ार वर्षों से पोंगापंडितों ने जो उलट बासियाँ चला रखी हैं उनका उल्लेख 'वेदों' में है ही नहीं वे पौराणिक दंतकथाएँ तो शोषकों-उतपीडकों के सहायक ब्राह्मण वादियों के द्वारा गढ़ी गई चालाकियाँ हैं।
एथीस्टवादी वस्तुतः पोंगापंथ,ढोंग-पाखंड-लूट को प्रश्रय देने के उद्देश्य से जनता को वस्तु-स्थिति से परिचित न होने देकर उनको शोषण के कुचक्र से बाहर ही नहीं आने देना चाहते हैं। एथीस्टवादी धर्म (सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। ) का तो विरोध करते हैं किन्तु ढोंगियों-पाखंडियों को साधू,महात्मा,बापू,संत की संज्ञा से नवाजते हैं। वे भगवान,खुदा,गाड का विरोध तो करते हैं परंतु जनता को यह नहीं समझाना चाहते कि -भगवान =भ (भूमि-ज़मीन )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी)
चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं।
इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं।
सीधी बात है कि एथीस्टवादी संप्रदाय भी दूसरे संप्रदायों की तरह ही साधारण जनता को ज्ञान-विज्ञान से वंचित रख कर उसके शोषण-उत्पीड़न में सहायक बना हुआ है । यही वजह है कि 'साम्यवाद' जो वस्तुतः भारत के 'सर्वे भवन्तु सुखिन :' पर आधारित है भारतवासियों के लिए दूर की कौड़ी बना हुआ है और साम्राज्यवाद के सहायक सांप्रदायिक तत्व अपने लूट के खेल के लिए खुला मैदान पा कर खुश हैं।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/788874434507868?

  ~विजय राजबली माथुर ©
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Tuesday, November 18, 2014

नरेंद्र मोदी को ग़रीब किसान और मजदूर की चिंता नही है-----ए बी बर्धन / अतुल कुमार अंजान


Bhagawan Vishwanath ki nagari Kashi Banaras me khet majadoor union ki railly me aye 20 hajar se adhik khetihar majdooron ko desh aur duniya ke jane mane comounist leader AB Bardhan aur Atul Kumar Anjaan ne kaha ki PM Narendr Modi ko garib kisan aur majdoor ki chita nahi hai.PM desh aur dunia ke pujipatiyon ko khush karane me lage huye hain. Manarega kanoon khatam karne ja rahe hai. Maitinational companiyon ko khoosh karane ke liye labour kanoon ko rhil kar rahe hai. Bank aur bima ko niji hath me de rahe hain. Left leadero ne desh ke sabhi khet majdooron ko user banjar aur sarkari jamino ko dene ke liye ekjut hokar dangharsh me utarane ko kaha.


 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1503337213259070&set=a.1503355409923917.1073741828.100007484169701&type=1
सुदर्शन कुमार अंजान :
भगवान विश्वनाथ  की नगरी काशी बनारस मे खेत मजदूर यूनियन की रैली मे आए 20 हज़ार से अधिक खेतिहर मजदूरों को देश और दुनिया के जाने माने कम्युनिस्ट लीडर ए बी  बर्धन और अतुल कुमार अंजान ने कहा की पी एम नरेंद्र मोदी को ग़रीब किसान और मजदूर की चिंता  नही है.पी एम देश और दुनिया के पूजिपतियों को खुश करने मे लगे हुए हैं. मनरेगा क़ानून ख़तम करने जा रहे है. मल्टीनेशनल कम्पनियों को खुश  करने के लिए लेबर क़ानून को ढीले  कर रहे है. बैंक  और बीमा को निजी हाथ मे दे रहे हैं. लेफ्ट लीडरों  ने देश के सभी खेत मजदूरों को यूज़र बंजर और सरकारी ज़मीनो को देने के लिए एकजुट होकर संघर्ष  मे उतरने को कहा.



15/11/2014 को up खेत मजदूर यूनियन द्वारा वाराणसी मे आयोजित रैली मे यूनियन व सी पी आई के नेताओ ने वर्तमान केंद्र  सरकार को जन -विरोधी सरकार बताते हुये किसानो ,मजदूरो दस्तकारो को 3000रू पेंशन व खेत खनन मजदुरो के लिए केन्र्दीय कानून बनाने ,और देश मे बढ रही गरीबी रोकने का ठोस उपाय किए जाने की मांग पर आवाज बुलन्द किया......
इस रैली मे पूर्वाचंल के हजारो की तादाद  मे खेत मजदूरो ने लाल झण्डे से लैस होकर के अपनी उपस्थिती दर्ज कराई...
सोनभद्र जनपद के भी यूनियन के लगभग 600 कार्यकर्ता  डा० आर० के० शर्मा के नेतृत्व मे पहुच कर खेत मजदुरो की इस विशाल रैली मे अपनी उपस्थिती दर्ज कराई!!!
रैली को प्रमुख रूप से भाकपा के वरिष्ठ नेता का० ए बी बर्धन ,का० अतुल कुमार अंजान,का० डा० गिरीश शर्मा,खेत मजदुर युनियन के नेता फूल चन्द यादव आदि ने सम्बोधित किया..
  ~विजय राजबली माथुर ©
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Friday, November 14, 2014

बाल दिवस तो मनाते हैं पर बच्चो की परवाह नहीं करते---विजय राजबली माथुर



Hindustan-Lucknow-12/10/2011





उपरोक्त स्कैन से स्पष्ट हो जाएगा कि भीड़-भरी ,प्रदेश की राजधानी की सड़क पर गिरी साहब के बेटे का दर्दनाक एक्सीडेंट हुआ जिसमे उसे अपनी जान गवानी पड़ी। अपराधी को गिरफ्त मे लाने हेतु उन्हे खुद किस प्रकार जनता की गुहार करनी पड़ी और किसी भी प्रत्यक्ष-दर्शी  का सहयोग न मिला। पुलिस तो अपनी ड्यूटी कभी भी पूरी करती ही नहीं है। मैंने एक लेख-'युवाओ जीवन अनमोल है इसकी रक्षा करो' शीर्षक से इसी हादसे को इंगित करते हुये इसी ब्लाग मे दिया था और यात्रा के दौरान सुरक्षा हेतु 'सप्तजीवी स्तुति' भी प्रस्तुत की थी।
किन्तु लगता है ब्लागर्स बंधु इन स्तुतियों से लाभ उठाना नहीं चाहते क्योंकि बेंगलोर के एक इंजीनियर ब्लागर साहब के सुझाव पर मैंने 'जन हित मे' शीर्षक से एक ब्लाग प्रारम्भ किया है जिसमे जीवनोपयोगी स्तुतिया जो प्राचीन ऋषि-मुनियो द्वारा रचित है अपनी आवाज मे देता जा रहा हू ,परंतु ब्लागर्स उनकी उपेक्षा कर रहे हैं।

इस एक्सीडेंट के बाद वाराणासी मे एक और छात्र का बाईक से एक्सीडेंट हुआ कामा मे रहने के बाद उसका भी निधन हो गया। वह छात्र हमारे एक क्लाइंट जो यू पी सेक्रेटेरिएट मे अधिकारी हैं का भांजा था मैंने उनके द्वारा 'सप्तजीवी स्तुति' इन्टरनेट के माध्यम से भिजवाई थी परंतु उससे पूर्व ही उसने संसार छोड़ दिया। जब युवा इस प्रकार समाज से उऋण हुये ही संसार छोड़ देते हैं तो वह स्थिति संसार के लिए उत्तम नहीं है। परंतु हमारे देश मे ढोंग -पाखंड और पोंगा-पंडितवाद इतना प्रबल है कि लोगोंकों सच्चाई स्वीकार नहीं होती।

फिर भी अपना कर्तव्य समझ कर मै प्रयास करता रहता हूँ कि शायद जैसे रस्सी की रगड़ से कुएं की घिर्री और मन  तक घिस जाती है कभे-न-कभी मानव मन भी घिसे और सत्य को स्वीकार कर सन्मार्ग पर चल कर अपना तथा समाज का भला कर सके।

आज 'बाल-दिवस' पर मै कुछ बालको (लड़का-लड़की दोनों) के हित की रचनाएँ प्रस्तुत कर रहा हू जो ' नित्य कर्म विधि' पुस्तक से साभार ली गई हैं। 'आर्य कुमार गीतांजली' शीर्षक से तीन गीत 'तपोभूमि',मथुरा के संपादक प्रेम भिक्षुक वानप्रस्थ जी ने प्रस्तुत किए हैं ,उन्हे ही उद्धृत किया जा रहा है-


 (1)

बाल विनय

हे प्रभी! आनंद-दाता  ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये। ।
लीजिये हमको शरण मे,हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक ,वीर व्रतधारी बने। ।
कार्य जो हमने उठाए आपकी ही आस से ।
 ऐसी कृपा करिए प्रभों!सब पूर्ण होवे दास से। ।


धर्म-रक्षक=वह नही है जैसा पुरोहितवादी बताते हैं। बल्कि इसका अभिप्राय 'धारण करने' से है। उसके बाद-

(2)


 तब वन्दन हे नाथ करे हम ।


तब चरणों की छाया पाकर,शीतल सुख उपभोग करे हम। ।
भारत माता की सेवा का  व्रत भारी हे नाथ!करे हम।
माँ के हित की रक्षा के हित न्योछावर निज प्राण करे हम। ।
पाप-शैल को तोड़ गिरावे वेदाज्ञा निज शीश धरे हम।
राग-द्वेष को दूर हटा कर प्रेम-मंत्र का जाप करे हम । ।
फूले दयानंद फुलवारी विद्द्या-मधु का पान करे हम।
प्रातः साँय तुझको ध्यावे तेरा ही गुणगानकरे हम। ।


अब देखिये गलत  उपासना पद्धतियों ने टकराव और द्वेष को धर्म के नाम पर भड़का रखा है और भारत-माता की चिंता कहाँ और कैसे हो आजकल तो अपने माता-पिता की ही चिंता नहीं हो रही है। पहले तो बालक भगवान से क्या प्रार्थना करते थे ज़रा गौर फरमाये-

(3)


हम बालकों की ओर भी भगवान तेरा ध्यान हो ।


हो दूर सारी मूर्खता कलयांणकारी ज्ञान हो। ।
हम ब्रह्मचारी,वीर,व्रतधारी,सदाचारी बने।
हमको हमारे देश भारत पर सदा अभिमान हो। ।
होकर बड़े कुछ कर दिखाने के लिए तैयार हो।
मन मे हमारे देश सेवा का भरा अरमान हो। ।
हो नौजवानो की कभी जो मांग प्यारे देश को।
तो मातृवेदी पर प्रथम रखा हमारा प्राण हो । ।
संसार का शिरमौर होकर 'देश' हमसे कह सके-
हे वीर बालक!धन्य तुम मेरे सफल संतान हो। ।

पहले हमारे देशवासी ऐसी शिक्षा अपनी-अपनी संतानों को दिलवाते थे और आज -माता -पिता अपने बच्चों को भूत-प्रेतों के मेले मे घुमाते हैं। मंहगी और ढकोसले वाली शिक्षा ग्रहण कराते है फिर अपने व देश के लिए उनसे बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ रखते हैं। भला बच्चों का क्या दोष वे कहाँ से और कैसे इन अपेक्षाओं को पूरा करे? जबकि उनके अभिभावकों ने उन्हे उचित शिक्षा से खुद ही वंचित रखा है। सरकार ने शिक्षा बजट को बेहद कम करके बाजारू बना दिया है। यदि समय रहते देशवासी नहीं चेते तो, देश के भावी कर्ण धार आज के बालक आने वाले समय मे आज की पीढ़ी को जम कर कोसेंगे।

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Tuesday, November 11, 2014

जनता और जन कवियों के बिना ही 'भव्य जन -क्रांति ' का आह्वान ! ---विजय राजबली माथुर

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#Avadhnama कार्यक्रम के संचालक शहर के सम्मानित संस्कृतिकर्मी आदियोग ने शाद की नज्म से इस कार्यक्रम की शुरुआत की.


वहीं श्री वर्मा ने ‘कविता: 16 मई के बाद’ नामक आयोजन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद जो फासीवादी निज़ाम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस देश में आया है और उसके बाद इस देश में जैसी राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियां बनी हैं, उसमें एक अहम सांस्कृतिक हस्तक्षेप की ज़रूरत आन पड़ी है. ऐसे में ज़रूरी है कि कविता को राजनीतिक औज़ार बनाकर एक प्रतिपक्ष का निर्माण किया जाए.

कविताओं की शुरुआत करते हुए शहर के प्रतिष्ठित संपादक और कवि सुभाष राय ने अपनी एक लंबी कविता सुनाई. इसके बाद कवि अजय सिंह ने अपनी बहुचर्चित कविता ”राष्ट्रपति भवन में सुअर” का पाठ किया.

कवि चंद्रेश्वर ने अफ़वाहों के फैलने पर एक ज़रूरी कविता सुनाई. मंच पर मौजूद ब्रजेश नीरज, हरिओम, ईश मिश्र, किरन सिंह, नरेश सक्सेना, नवीन कुमार, प्रज्ञा पाण्डेय, पाणिनी आनंद, रंजीत वर्मा, राहुल देव, राजीव प्रकाश गर्ग ’साहिर’, संध्या सिंह, सैफ बाबर, शिवमंगल सिद्धान्तकर, तश्ना आलमी, उषा राय, अभिषेक श्रीवास्तव ने अपनी सशक्त कविताओं के माध्यम से अपना-अपना प्रतिरोध दर्ज करवाया. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने की . 

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10-11-2014   :-

 
ये कलाकार साबित करता है कि बुद्धिजीवी होने का तमगा के लिए आपको अन्य सभी जगह शिक्षा की जरूरत हो सकती है मगर बिहार और पूर्वांचल का बच्चा बच्चा बुद्धिजीवी पैदा होता है, अशिक्षित मजदूर या फिर ट्रेन में मांगने वाला भिखाड़ी भी बौधिक रूप से कैसे समृद्ध होता है.

हमारा बिहारी लाल फतुहा का अनिल कुमार ट्रेन में गीत गा कर मांग कर जीवन यापन करता है और व्यंग्य की पराकाष्ठ का ये गीत खुद गढ़ता है, आँख से अँधा मगर आखं वाले के बौधिक ज्ञान पर भारी है इसका ज्ञान जो बिना पढ़े लिखे दुनिया समाज और राजनीति पर व्यंगात्मक गीत की ये लड़ी पिरो सकता है, आप इसे मांगने वाला कह सकते हैं मैं इसे अपने भिखाड़ी ठाकुर और बैद्यनाथ मिश्र यात्री जैसे लाल की कड़ी में एक मोती मानता हूँ,

पूरा गीत सुनिए शायद आप भी सहमत हों कि हमारे बिहार और पूर्वांचल में बौधिक खान के बीच कैसे कैसे और कहाँ कहाँ हीरा मिलता है !!!
जन कवि का वीडियो---

बड़े ज़ोर-शोर से प्रचारित किया गया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय में "कविता को राजनीतिक औज़ार बनाकर एक प्रतिपक्ष का निर्माण  " करने  हेतु  कार्यक्रम होगा और हुआ भी। लेकिन भाकपा के साधारण सदस्यों तो क्या ज़िला काउंसिल सदस्यों तक को इस कार्यक्रम की पार्टी की ओर से कोई सूचना नहीं प्रसारित की गई थी। पूंजीवादी जर्मनी के रेडियो-'डायचेवेले' के पेंशनर  तथा वर्तमान साम्राज्यवाद के सरगना 'ओबामा' की तुलना नौ लाख वर्ष पूर्व साम्राज्यवाद के पुरोधा 'रावण' को परास्त करने वाले जन-नायक 'राम' के साथ करने वाले 'ईश मिश्रा' जैसे लोग भी काव्य पाठ करने वालों में शामिल थे। अपवाद स्वरूप एक-दो को छोड़ कर सभी काव्य पाठी  समृद्ध वर्ग से थे। 

कार्यक्रम सार्वजनिक स्थान पर नहीं था लेकिन जन-क्रांति का आह्वान किया जा रहा था । छोटे-छोटे बच्चों के दफ्ती की तलवारों पर सफ़ेद चमकीला कागज चिपका कर युद्ध का अभिनय करने जैसे ऐसे कार्यक्रम जनता को लामबंद कभी भी नहीं कर सकते हैं  बस केवल आभिजात्य वर्ग का क्षणिक मनोरंजन ही कर सकते हैं।  वामपंथ और साम्यवाद की जनता में एक विकृत छवी कौन बना रहा है? देखिये तो ज़रा :

फासीवादी सत्ता को मजबूती देने का पोंगा-पंडितवादी तरीका है यह न कि वामपंथी-साम्यवाद ---
"देश में बढ़ते पूंजीवाद, आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, फासीवाद, आतंकवाद, बेरोजगारी और महंगाई का नया वामपंथी इलाज - किस ऑफ़ लव ! अपने लोगों का मिज़ाज और सांस्कृतिक जड़ें समझे बगैर चीन और रूस का मॉडल लागू करने का सपना पालने वाले छद्म वामपंथ का अंततः यही हश्र होना था। देश में कभी भी कायदे का राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक प्रतिरोध खड़ा न कर सकने वाले इन हवा हवाई वामपंथी बुद्धीजीवियों ने पहले कविता और दूसरी कला विधाओं को लोहा, इस्पात और हथियार बनाने की जिद में कविता और कलाओं को मार डाला। अब ये प्रेम जैसी नितांत वैयक्तिक, निजी और कोमल भावना को सरेबाज़ार नीलाम करने की कोशिश में लगे हैं। उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर मलमूत्र त्याग और प्रेम जैसी आंतरिक अनुभूति का सार्वजनिक प्रदर्शन बिल्कुल एक जैसा कृत्य लगता है। माना कि प्रेम के प्रति फासीवादी संघी और खाप विचारधारा के विरोध की सख्त ज़रुरत है, मगर यह विरोध अपनी सांस्कृतिक जड़ों को काटकर नहीं किया जा सकता। अगर इन वामपंथी युवाओं को चुंबन का घृणास्पद सार्वजनिक तमाशा जायज़ लगता है तो ये लोग अपनी बीवियों, बहनों, बेटियों को लेकर सड़को पर क्यों नहीं उतरते ? आखिर उन्हें भी तो 'मुक्ति' के मार्ग पर चल निकलने की छूट मिलनी चाहिए ! ज़ाहिर है, ये लोग विरोध के नाम पर सड़कों पर मौज-मजे की तलाश में निकले हुए यौन-विकृत लोग है।
वामपंथियों ने देश में अपनी कब्र तो कबकी खोद ली थी, अब इनका दफ़न होना भर बाकी है !"


यह सब और कुछ नहीं केवल और केवल 'एथीस्टवादी संप्रदाय'का फासीवाद को पुख्ता करने का खेल है। 

जब तक भारतीय संदर्भों व प्रतीकों द्वारा जनता को साम्यवाद के बारे में नहीं समझाया जाएगा वह अपने शोषकों के जाल में फँसती रहेगी। ईश मिश्रा व डायचेवेले के पेंशनर तथा प्रदीप तिवारी सरीखे लोग जनता को साम्यवाद से सदैव दूर ही रखेंगे तो फिर जनता के सहयोग के बगैर जन-क्रान्ति कैसे होगी। सशस्त्र क्रान्ति के समर्थक युवा साम्यवादी बेवजह फासीवादियों के सफाये का शिकार होते रहेंगे। 

 

जंन - तान्त्रिक पद्धति से तभी  संसद व सत्ता पर साम्यवादी विचार धारा बहुमत हासिल कर सकती है जबकि साम्यवाद  व वामपंथ को 'एथीस्टवादी संप्रदाय'के चंगुल से मुक्त कराकर जनोन्मुखी बना लिया जाये। 

  ~विजय राजबली माथुर ©
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Friday, November 7, 2014

कालेधन के न्यायिक बटवारे के लिए जंनता को लामबंद कर युद्ध की घोषणा करें-----राम प्रताप त्रिपाठी

Frenh kisano ne aalu ka dam na mil pane k karan Peris krepublic square paer aalu ka dher laga diya hai
Bhartiy kisano ko bhi larna sikhana prega

— with Atul Kumar Singh Anjan and Archana Upadhyay.

( फ्रेंच किसानों ने आलू का दाम ना मिल पाने क कारण पेरिस  के रिपब्लिक  स्क्वेर पर आलू का ढेर लगा दिया है
भारतीय किसानों  को भी लड़ना सीखना पड़ेगा )

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 Akhil Bhartih Kisan sabha ki rastriy parishd ki Chandi Garh me kisano k lhilaf ho rahe faislo jaise plannig commission kp khatm karna bhumiadhigrahan kanoon 2013 ko badalna FCI ko badalna aadi k khilaf convention karna parlient par anischit kalin dharna aur april me jailbharo kiya jayega

(अखिल भारतीय  किसान सभा की राष्ट्रीय परिषद् की चंडीगढ़  में किसानों के खिलाफ हो रहे फ़ैसलो जैसे प्लानिंग कमीशन को  ख़त्म करना भूमि अधिग्रहण क़ानून 2013 को बदलना एफ सी आई  को बदलना आदि के खिलाफ कन्वेन्शन करना,  पार्लियामेंट पर अनिश्चित कालीन धरना  और एप्रिल मे जेल भरो आंदोलन  किया जाएगा )
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Ab yah to hona hi tha ab chor-chor mausere bhai ka khel shuru kaun kisko saja dega jab hamam me sabhi nange hain kala dhan wapas aya aur desh drohiyon ko saja hui to prajatantr k lutere rajnaitic dalon ko agali bar loot kliye kale dhan se chanda kaun fir imandar communiston kabhay(fobia) bhi sata raha hai wam ko chahiye ki is kaledhan k nyayik batware kliye jantako lamband ker yudh ki ghosna karen---
India Today

(अब यह तो होना ही था अब चोर-चोर मौसेरे भाई का खेल शुरू कौन किसको सज़ा देगा जब हमाम मे सभी नंगे हैं . काला धन वापस आया और देश द्रोहियों को सज़ा हुई तो प्रजातंत्र के  लुटेरे राजनैतिक दलों को अगली बार लूट  के लिये  काले धन से चंदा कौन देगा?
 फिर ईमानदार कम्युनिस्टों  का भय(फोबिया) भी सता रहा है वाम  को चाहिए की इस कालेधन के  न्यायिक बटवारे के लिए  जंनता को लामबंद कर युद्ध  की घोषणा करें--- )



  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

Tuesday, November 4, 2014

वैज्ञानिक समझ 'सत्य ' को नकार कर नहीं बन सकती ---विजय राजबली माथुर


"पाछे पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत " :
 वीरेंद्र यादव जी के उपरोक्त विचार हैं तो महत्वपूर्ण किन्तु समय रहते उन पर गौर नहीं किया गया और अब भी सही ढंग से विरोध नहीं किया जा रहा है। वर्तमान प्रधानमंत्री जिस संगठन के प्रति निष्ठावान हैं उसका कार्य ही अफवाहें फैलाना है। लेकिन ऐसी अफवाहों को तभी बल मिलता है जब सच्चाई को अस्वीकार कर दिया जाता है। सच्चाई तो यह है कि :
*शिव- यह हमारा देश भारत ही शिव है । आप भारत का नक्शा और शिव के रूप की तुलना कर लीजिये स्वतः सिद्ध हो जाएगा। शिव के माथे पर अर्द्ध चंद्रमा भारत भाल पर हिमाच्छादित हिमालय पर्वत ही तो है।जटाओं से निकलती गंगा यही तो संकेत दे रही हैं कि भारत के मस्तक -तिब्बत स्थित 'मानसरोवर' झील से गंगा का उद्गम हुआ है।  शिव का नंदी बैल भारत के कृषि-प्रधान देश होने का प्रतीक है। विभिन्न परस्पर विरोधी जीवों के आभूषण का अभिप्राय है-भारत विविधता में एकता वाला देश है। 
परंतु प्रगतिशील लोग जब एथीज़्म के नाम पर इसका विरोध करेंगे तो अफवाह फैलाने वाला संगठन उसका सरलता से दुरूपयोग करेगा ही जैसा कि अस्पताल के उदघाटन पर किया है। 

* गणेश - गण + ईश = जन-नायक = राष्ट्रपति / राजनेता 
अर्थात जनता का शासक ऐसा होना चाहिए जैसे सूप जैसे कान रखने वाला अभिप्राय यह है कि जन-नायक को सुननी सब की चाहिए। सूंढ जैसी नाक अर्थात जन-नायक की घ्राण शक्ति तीव्र होनी चाहिए और वह अपनी मेधा से जन-आकांछाओ को समझने वाला होना चाहिए। कुप्पा जैसा पेट अर्थात जन-नायक में परस्पर विरोधी बातों को हजम करने की क्षमता होनी चाहिए। चूहे की सवारी अर्थात पञ्च-मार्गियों/आतंक वादियों को कुचल कर रखने वाला हमारा शासक होना चाहिए। 
पुनः प्रगतिशीलों का एथीज़्म इस तथ्य को स्वीकार न करके अफवाह फैलाने वालों को मन-मर्ज़ी मुताबिक व्याख्या करने की खुली छूट देता है। 

यदि मैं अपने ब्लाग्स के माध्यम से 'ढोंग-पाखंड-आडंबर-पोंगा-पंडितवाद' आदि का पर्दाफाश करता हूँ तो साम्यवादियों में घुसपैठ किए हुये पोंगा-पंडित तिलमिला जाते हैं और मुझ पर प्रहार करते हुये 'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब दे डालते हैं। :







  'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब देने की एक वजह इन्दिरा जी का फोटो एक स्टेटस पर लाईक कर देना भी है,लेकिन जब बड़े पदाधिकारी इन्दिरा जी की प्रशंसा करें तो:


जो साहब 'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब देरहे हैं खुद डिप्टी जेनरल मेनेजर हैं और इस प्रकार हजारों मजदूरों का शोषण करने के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं। जिन करात साहब की पैरोकारी में वह ऐसा कर रहे हैं उसके कारण ये हैं :

 उत्तर-प्रदेश भाकपा के अधिकृत ब्लाग में वर्द्धन जी व अतुल अंजान साहब के विचार प्रकाशित कर देने के कारण ही मुझे उसकी एडमिनशिप व आथरशिप से हटा दिया गया था। अतः मैंने http://communistvijai.blogspot.in/  'साम्यवाद(COMMUNISM) ब्लाग बना कर उसमें इन वरिष्ठ नेताओं के विचार प्रकाशित कर दिये। जो लोग खुद को उनसे श्रेष्ठ समझते हैं उनके लिए तो मैं किसी भी खेत की मूली नहीं हूँ फिर भी 'डांगेईस्ट' /'डांगेकरण ' का खिताब देरहे हैं।

केंद्र में जिन शक्तियों ने इस सरकार को सत्तासीन किया है उनको करात साहब व उनके भाकपाई  हमदर्द गण  भी सराहते रहे हैं। 26 दिसंबर 2010 को प्रदेश पार्टी कार्यालय में आयोजित गोष्ठी में मुख्य अतिथि अतुल अंजान साहब के बोल चुकने के बाद उनके भाषण के समय पधारे केजरीवाल साहब को बुलवा कर अपने ही राष्ट्रीय सचिव का अपमान किया गया था और 26 दिसंबर 2013 को दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की प्रशंसा प्रदेश सचिव महोदय ने  समारोह के मुख्य अतिथि वीरेंद्र यादव जी  के समक्ष ही की थी। केजरीवाल साहब अफवाह फैलाने वाले संगठन की ही उपज हैं :
 
 केजरीवाल को भाकपा के प्रदेश कार्यालय में राष्ट्रीय सचिव अंजान साहब  से भी अधिक महत्व देने वाले गोष्ठी संचालक महोदय लखनऊ के प्रदेश की ओर से नियुक्त सुपर जिलामंत्री भी हैं, उनकी ओर से अप्रैल 2014 में मोहम्मद अकरम साहब ने मेरे घर पर आकर कहा था कि उनको हटाया नहीं जा सकता है अतः मुझको हटा दिया जाएगा। फिर 16 सितंबर 2014 को मतगणना -स्थल पर उनकी ओर से ही एनुद्दीन साहब ने कहा था कि उनको नहीं हटाया जा सकता अतः मुझे हटाया जाना अब तय है। विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि 23 नवंबर 2014 को प्रस्तावित ज़िला सम्मेलन से पूर्व कागजात में फेर-बदल करके मुझे हटाया जा रहा है। हालांकि मैं पार्टी में रह कर कोई निजी लाभ नहीं उठा रहा हूँ जो मुझे हटाये जाने पर मुझको  उन लोगों की भांति कोई हानि होगी जो पार्टी पदाधिकारी रह कर अपने व्यवसाय में लाभ उठा रहे हैं या जो रु-550/-प्रतिमाह लेवी देकर और सुबह-शाम 2-2 घंटे का समय लगा कर पार्टी पोस्ट के बल पर मार्केट व बैंक मेनेजर्स से 6-7 हज़ार रु की वसूली कर रहे हैं। 

परंतु फिर भी यह बात समझने के लिए काफी है कि कम्युनिस्ट पार्टी क्यों जनता में लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर पा रही है या कि केंद्र सरकार कैसे अवैज्ञानिक व्याख्याएँ करके जनता को मूर्ख बना रही है क्योंकि पार्टी को सीधी सच्ची बात कहने वालों की कोई ज़रूरत ही नहीं है। 
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  ~विजय राजबली माथुर ©
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Saturday, November 1, 2014

ऐसे लोगों के कारण ही साम्यवाद भारत में सफल नहीं हो पा रहा है ---विजय राजबली माथुर

 http://communistvijai.blogspot.in/2014/10/blog-post_31.html
PT-1:

 http://communistvijai.blogspot.in/2014/10/blog-post_8.html
PT-2 :

d g -p :


जिस रूप में मानव आज है वह 10 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया है ऐसा वैज्ञानिक खोजों से सिद्ध हो चुका है। मतभेद केवल इस बात पर है और वह वैज्ञानिकों के मध्य भी है कि पहले 'नर ' की उत्पत्ति हुई या फिर 'मादा ' की। तथाकथित विभिन्न धर्म जो वस्तुतः संप्रदाय/मजहब/रिलीजन हैं 'धर्म' नहीं के द्वारा मनगढ़ंत और परस्पर विरोधी कहानियाँ प्रचलित है।
पृथिवी के निर्माण के बाद जब यह ठंडी हुई तो काफी समय तक यहाँ विभिन्न गैसों की बारिश होती रही और अंततः 'हाइड्रोजन '-2 भाग तथा 'आक्सीजन '-1 भाग के विलियन से 'जल ' की उत्पत्ति हुई जिससे बाद में वनस्पतियाँ अस्तित्व में आईं। सबसे पहले जल-जीव और कालांतर में अन्य जीवों की उत्पत्ति हुई। वैज्ञानिकों का एक वर्ग जल-जीव-मछली से मनुष्य तक की कल्पना करता है । इस सिद्धान्त को प्रिंस डि ले मार्क ने 'व्यवहार और अव्यवहार ' का संबोद्धन दिया है।  यदि इसी को सत्य मान भी लें तो भी पहले 'नर ' या 'मादा ' का प्रश्न अनुत्तरित रह जाएगा।
महर्षि कार्ल मार्क्स और शहीद सरदार भगत सिंह का नाम जप-जप कर साम्यवादी विद्वान भी पाश्चात्य वैज्ञानिकों के सुर में सुर मिला कर 'एथीस्ट वाद ' की आड़ में 'सत्य ' को स्वीकार नहीं करते हैं। जबकि दोनों महान विभूतियों ने प्रचलित मजहबों/संप्रदायों/रिलीजन को तथाकथित धर्म मानते हुये निष्कर्ष दिये थे और कभी भी उन दोनों ने वास्तविक धर्म का विरोध नहीं किया है। :



" वास्तविक धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।

भगवान =भ (भूमि-ज़मीन  )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी)


चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। 


इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं।"



युवा नर और युवा मादा की उत्पत्ति एक साथ :



वस्तुतः 'जल' और 'वनस्पतियों' की उत्पत्ति के बाद पहले अन्य जीवों की उत्पत्ति उनके युवा नर एवं युवा मादा के रूप में हुई है जिनसे उनकी वंश वृद्धि होती रही है और प्रिंस डि ले मार्क के  'व्यवहार और अव्यवहार ' सिद्धांतानुसार उनका विकास-क्रम चला है। अब से लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व 'मनुष्य ' की उत्पत्ति भी 'युवा नर ' और 'युवा मादा ' के रूप में एक साथ हुई है जिसे न तो कोई एथीस्ट और न ही तथा-कथित आधुनिक वैज्ञानिक और न ही थोथे - धर्म (सप्रदाय/मजहब/रिलीजन ) स्वीकार करने को तैयार हैं । 
युवा 'नर ' और 'मादा ' मनुष्यों की उत्पत्ति एक साथ अफ्रीका,एशिया और यूरोप में कुल तीन स्थानों पर हुई है। भौगोलिक व पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुरूप इन तीनों स्थानों के मानवों का विकास-क्रम चला है। 'एशिया' में मानव उद्भव जिस स्थान पर हुआ वह था-'त्रिवृष्टि ' अर्थात आज का 'तिब्बत' । परिस्थितिजन्य अनुकूलता के कारण यहाँ का मानव तीव्र विकास कर सका जबकि अफ्रीका व यूरोप का मानव पीछे रह गया था। यहाँ के मानव ने खुद को 'श्रेष्ठ '='आर्ष '='आर्य ' संबोद्धन दिया और सम्पूर्ण विश्व को 'आर्य' बनाने का बीड़ा उठाया । जनसंख्या वृद्धि के कारण यहाँ के आर्य दक्षिण में हिमालय पार कर के 'निर्जन' स्थान पर भी बसने लगे जिसे उन्होने 'आर्यावृत ' नाम दिया। लेकिन तथाकथित प्रगतिशील और आज  विकसित यूरोपीय लोगों ने प्रचारित कर दिया कि आर्यों ने भारत के मूल निवासियों को उजाड़ कर आक्रांता के रूप में  कब्जा किया था। जबकि वास्तविकता यह है कि भारत से आर्य पश्चिम में आर्यनगर-एरयान-ईरान होते हुये यूरोप और अफ्रीका गए थे। पूर्व में साईबेरिया के 'ब्लाडीवोस्टक ' से होते हुये अमरीका के 'अलास्का ' होकर  'तक्षक '-टेक्सास व मय'-मेक्सिको पहुंचे थे। 
दक्षिण दिशा से आस्ट्रेलिया  में पहुँचने वाले आर्य श्रेष्ठता के मार्ग से भटक गए थे और इनके वंशज रावण ने आज की श्री लंका को केंद्र बना कर विश्व-व्यापी साम्राज्य स्थापित कर लिया था । आज के यू एस ए (पाताल लोक ) का शासक एरावन तथा साईबेरिया का शासक कुंभकर्ण  रावण के सहयोगी थे। रावण ने जंबू द्वीप के प्रमुख व शक्तिशाली शासक बाली से अनाक्रमण संधि कर रखी थी । अतः अब से नौ लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर प्रथम साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष हुआ था जिसमें साम्राज्यवादी परास्त हुये थे। किन्तु पाश्चात्य प्रभुत्व के कारण हमारे साम्यवादी विद्वान हकीकत को नकार देते हैं जिसका प्रतिफल यह है कि आज के साम्राज्यवादी उन्हीं राम का नाम लेकर जनता का दमन व शोषण कर रहे हैं जिनहोने सर्व-प्रथम साम्राज्यवाद को इस धरती पर परास्त किया था।
इसी प्रकार अब से लगभग पाँच हज़ार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण ने समानता पर आधारित गण राज्य की स्थापना करके आदर्श प्रस्तुत किया था किन्तु प्रगतिशीलता व एथीज़्म के नाम पर इस तथ्य से आँखें फेर ली जाती हैं और बजाए कृष्ण का सहारा लेने के उनकी निंदा व आलोचना की जाती है जिसका लाभ पुनः सांप्रदायिक व साम्राज्यवाद समर्थक शक्तियाँ उठा लेती हैं। 
नानक,कबीर, रेदास,दयानन्द, विवेकानंद आदि के दृष्टिकोण साम्यवाद के निकट हैं किन्तु साम्यवादी विद्वान उसी एथीज़्म के वशीभूत होकर इनका सहारा लेने की जगह उनकी आलोचना करते हैं।

 PT-1 और PT-2 के खलनायक ने d g -p के नायक को भ्रमित कर रखा है जैसा कि उन टिप्पणियों से सिद्ध होता है। नायक साहब ने जिस पुलिस अधिकारी के बचाव में बयान जारी किया है उसे वकील कामरेड ने 'चोर' व 'उच्चका ' बताया है। नायक साहब के निर्णय 80 प्रतिशत खलनायक से प्रभावित रहते हैं। ऐसे में उत्तर-प्रदेश में भाकपा के सुदृढ़ होने का प्रश्न ही नहीं है। उत्तर-प्रदेश,बिहार समेत हिन्दी प्रदेशों में जब तक भाकपा या अन्य साम्यवादी दल जनता का विश्वास नहीं हासिल कर लेते  हैं  तब तक किताबी ज्ञान व इतिहास  के भरोसे लोकतन्त्र के जरिये सत्ता नहीं मिलने वाली है। 'सशस्त्र क्रांति' रूस में विफल हो चुकी है तो चीन में अपना अर्थ खो चुकी है। यदि साम्यवादी दल और वामपंथ राम के साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को कोरी कल्पना कह कर उपहास उड़ाने की जगह उससे प्रेरणा लेकर तथा कृष्ण के उदाहरण सामने रख कर अपनी नीतियाँ निर्धारित करें तो जनता का विश्वास भी हासिल कर लेंगे और साम्राज्यवाद समर्थक सांप्रदायिक शक्तियों को भी बेनकाब कर के धराशायी कर सकेंगे। लेकिन खलनायक PT सरीखे  पोंगापंथी लोग क्या साम्यवाद को संकीर्ण जकड़न से निकल कर प्रगतिशील होने देंगे? जब तक ऐसा नहीं होता तब तक सारी कसरत व कवायद अपनी ही आँखों में धूल झोंकने वाली रहेगी। 
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  ~विजय राजबली माथुर ©
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