Thursday, August 24, 2023

सटीक एवं सही विश्लेषण सिद्धांत सहगल साहब का

ज्योतिष मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाने वाला विज्ञान था।लेकिन आजकल सत्तारूढ़ दल तथा इसके नायक की सफलता का आख्यान करने वालों को सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी घोषित करने संबंधित एक लेख हिंदुस्तान अखबार ने स्वाति कुमारी के नाम से छाप कर जनता से कहा है उन तीन ज्योतिषियों से सलाह लेनी चाहिए।
इनके अलावा भी डंके की चोट पर नायक की सफलता का गुणगान करने वाले तमाम ज्योतिषी आन लाइन प्रचार में संलग्न हैं।
2014 में भी शशि शेखर चतुर्वेदी के संपादकत्व वाला हिंदुस्तान राज तिलक की करो तैयारी जैसे शीर्षकों से अपने अखबार को रंग रहा था।
जिस अखबार को घनश्याम दास बिड़ला ने देश के स्वाधीनता संग्राम को गति देने के लिए शुरू किया था और जिसके प्रथम संपादक महात्मा गांधी थे वह आज अधिनायकवाद का इतना प्रबल समर्थक हो गया है जिसके पीछे उसके वर्तमान आर्थिक हित निहित हैं।

  ~विजय राजबली माथुर ©

बेहद सटीक एवं सही विश्लेषण ,ध्यान दिया जाना चाहिए।

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Sidhant Sehgal
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7 February 2021
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कुछ ऐसे फलादेश जो आज मैं करने जा रहा हूँ -- स्क्रीन शॉट लेकर फ्रेम में सजा कर घर पर टाँग लीजियेगा - भविष्य में बच्चो के काम आएगा ये फलादेश 
१--- भारतवर्ष हिन्दू राष्ट्र कभी नहीं बनेगा -- और ये डैमेज इस नकली हिन्दू हृदय सम्राट ने ही किया हैं। 
२--- भारतवर्ष में हिंदुत्व के नाम पर शायद ही कोई सरकार वापस केंद्र में आये -- आई भी तो २०६०-७० के बाद बाद आएगी वो भी अपूर्ण बहुमत के साथ बैशाखियों पर तिकी हुई। 
३--- भारतवर्ष की खूबसूरती ही ''अनेकता में एकता'' हैं इसलिए वर्तमान सरकार का झूठा हठ  एक देश एक कानून -- भारतवर्ष को २० टुकड़ो में बाँट देगा। (वैसे ये लोग एक देश  एक कानून मूर्खो को मुर्ख बनाने के लिए बोलते हैं - हकीकत इन्हे भी मालूम है)
४--- वर्तमान शासक के गद्दी से हटने के बाद लोगों को पता चलेगा कि इस देश को किस चक्रव्यूह में डाल दिया था इन्होने  - इतिहास का सबसे बदनाम शासक के तौर पर इतिहास में नाम दर्ज होगा। (जो अभूतपूर्व समर्थन और प्यार इनको मिला था ये चाहते तो सचमुच भारतवर्ष की किस्मत बदल कर दोबारा सोने की चिड़िया बना सकते थे - पर इन्होने विदेशियों और उद्योगपतियों के इशारे पर आम जनता का खून चूसने में ज्यादा दिलचस्पी दिखलाई - ये आत्मकेन्द्रिक और दम्भी व्यक्ति को अपनी इमेज के आगे कुछ नजर  ही नहीं आया - फुलाए हुए गुब्बारे वाली लोकप्रियता और झूठी बनाई हुई खरीदी हुई प्रसिद्धि को ये सत्य मान बैठे। 
५--- फ़र्ज़ी बिमारी इस देश में लादने के लिए विदेशी खुर्राटों ने इनका इस्तेमाल कर लिया और अब चूसे हुए आम की तरह फेंक चुके है -क्योंकि इतना ही इस्तेमाल था इनका उनकी नजर -- नकली चाणक्य -विदेशी चालो में फँस कर भारतवर्ष का सत्यानाश कर बैठे। 
सबकुछ रेत की तरह तेजी से फिसल रहा है -- कर्मो के फल इसी तरह सामने आते हैं।

Monday, April 10, 2023

चुनाव 2024 वास्ते




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  ~विजय राजबली माथुर ©

Sunday, January 8, 2023

वरुण गांधी और कांग्रेस


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दीपक शर्मा और आनंद वर्धन सिंह की वार्ता में उठे प्रश्नों का जवाब तो राहुल पहले ही उनसे पूछे गए सवालों के जवाब में दे चुके थे।राहुल ने कहा था वरुण का स्वागत है लेकिन वह बी जे पी में हैं तो उनको दिक्कत होगी इसका साफ मतलब था कि वरुण को भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में आना होगा।
मानेका गांधी को पूर्व भाजपा उपाध्यक्ष विजय राजे सिंधिया ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध खड़ा किया था,सोनिया गांधी के विरुद्ध नहीं। ( विजय राजे सिंधिया ने तत्कालीन मुख्यमंत्री , मध्य - प्रदेश द्वारिकानाथ मिश्र के विरुद्ध इंदिरा जी के सहयोग न मिलने पर कांग्रेस छोड़ दी थी और संविद के जरिए उनकी सरकार गिर दी थी गोविंद नारायण सिंह को सी एम बनवा कर )। 
मानेका गांधी उस वक्त  " सूर्या "  नामक एक मैगजीन की संपादक थीं जिसे विजय राजे सिंधिया ने  सरदार आंग्रे  को आगे रख कर खरीद लिया था। 
उनके इशारे पर ही संजय विचार मंच बना था जो लटूरी सिंह को मारे जाने के बाद स्वतंत्र रूप से नहीं चल पाया 1980 में संघ के समर्थन से सत्ता वापिसी की कीमत संजय को खो कर इंदिरा जी को चुकानी पड़ी थी , और संजय विचार मंच के विफल रहने पर  वी पी सिंह के जनता दल से होते हुए  मानेका भाजपा में पहुंच गई,वरुण तो स्वभाविक रूप से वहां इसीलिए रहे।
सोनिया गांधी के राजयोग व्यतीत होने के बाद , जिसका उपभोग राजीव गांधी कर चुके थे और राहुल,प्रियंका के पी एम योग न होने तथा मानेका एवं वरुण के प्रबल राजयोग होने के कारण दोनों का कांग्रेस में आना कांग्रेस के लिए तो फायदेमंद रहेगा हो।देश का संविधान,लोकतंत्र भी सुरक्षित हो जाएगा जो इस समय की जबरदस्त मांग है। 





  ~विजय राजबली माथुर ©
 

Sunday, December 4, 2022

प्रणय रॉय की शुरुआती टीम का पॉल‍िट‍िकल और ब्‍यूरोक्रैट‍िक कनेक्‍शन—---- CM Jain /Kailash Prakash Singh

Kailash Prakash Singh


प्रणय रॉय की शुरुआती टीम का पॉलिटिकल और ब्यूरोक्रैटिक कनेक्शन—
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प्रणय रॉय की शुरुआती टीम में सोनिया वर्मा (अब सोनिया सिंह), विक्रम चंद्रा, बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई, श्रीनिवासन जैन, विष्णु सोम और माया मीरचंदानी जैसे कई नामी पत्रकार रहे। इनमें से कई आज भी एनडीटीवी के प्रमुख चेहरे हैं। इनमें से ज्यादातर ‘एलीट क्लास’ से ही आते हैं।
शुरुआती टीम में शामिल विक्रम चंद्र सिविल एविएशन के पूर्व डायरेक्टर जनरल योगेश चंद्र के बेटे थे। योगेश चंद्र खुद कर्नाटक के राज्यपाल गोविंद नारायण के दामाद हैं। गोविंद नारायण पूर्व गृह और रक्षा सचिव भी रह चुके हैं।
एनडीटीवी के टॉप बिजनेस हेड में से एक केवीएल नारायण राव सेना के पूर्व जनरल केवी कृष्ण राव के बेटे थे। कृष्ण राव जम्मू और कश्मीर और अन्य राज्यों के राज्यपाल भी रह चुके थे।
राजदीप सरदेसाई अपने जमाने के दिग्गज क्रिकेटर दिलीप सरदेसाई के बेटे और दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर घोष के दामाद हैं। बरखा दत्त की मां प्रभा दत्त वरिष्ठ पत्रकार थीं।
अर्नब गोस्वामी भी एनडीटीवी का हिस्सा थे। वह एक सेना अधिकारी और भाजपा नेता मनोरंजन गोस्वामी के बेटे हैं। मनोरंजन के भाई दिनेश गोस्वामी वीपी सिंह सरकार में केंद्रीय कानून मंत्री थे।
श्रीनिवासन जैन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री देवकी जैन और जाने-माने एक्टिविस्ट एलसी जैन के बेटे हैं, जो योजना आयोग के सदस्य और दक्षिण अफ्रीका में भारत के उच्चायुक्त के रूप में भी काम कर चुके हैं।
निधि राजदान भी एनडीटीवी की शुरुआती कर्मचारियों में से एक हैं। वह प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के प्रधान संपादक रह चुके एमके राजदान की बेटी हैं। विष्णु सोम पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हिमाचल सोम के बेटे हैं।
एनडीटीवी में सीनियर मैनेजिंग एडिटर चेतन भट्टाचार्जी पूर्व कैबिनेट सचिव और पंजाब के राज्यपाल निर्मल मुखर्जी के पोते हैं। इन शुरुआती कर्मचारियों में शामिल सभी महिला पुरुष को “रॉयज़ बॉयज़” कहा जाता था।
० संयोग या सहयोग?
कृष्ण कौशिक ने कारवां के लिए लिखे अपने विस्तृत लेख में रॉय की शुरुआती टीम का जिक्र किया है। साथ ही, उन्होंने एनडीटीवी के पूर्व कर्मचारी संदीप भूषण से बातचीत के हवाले से भी एक जानकारी लिखी है। संदीप एक दशक तक एनडीटीवी का हिस्सा रहे हैं। वह कृष्ण कौशिक की रिपोर्ट में बताते हैं कि सन् 2000 के आसपास उन्होंने चैनल के साथ काम करने के लिए आवेदन किया था। उनका इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ था। लेकिन उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। बाद में उन्होंने एक ब्यूरोक्रेट के रेफरेंस से उसी पद के लिए आवेदन किया और इस बार उन्हें नौकरी पर रख लिया गया।
० दूरदर्शन के लिए प्रोग्राम बनाने से हुई थी NDTV की शुरुआत
एक चौथाई सदी से भी अधिक पुराने इस चैनल की स्थापना साल 1988 में राधिका रॉय और प्रणय रॉय ने की थी। तब एनडीटीवी दूरदर्शन के लिए कार्यक्रम बनाया करता था। इसके लिए दूरदर्शन की तरफ से एनडीटीवी को दो लाख रुपये प्रति एपिसोड मिलता था। बाद में एनडीटीवी ने पैसे देकर अपने प्रोग्राम्स को दूरदर्शन पर चलवाने लगा और सीधे विज्ञापन से पैसे कमाने लगा।
स्टार के साथ 24×7 चैनल की शुरुआत
1998 में एनडीटीवी ने स्टार न्यूज के साथ मिलकर भारत का पहला 24 घंटे का समाचार चैनल शुरू किया। आजादी बाद लंबे समय तक टीवी न्यूज़ चैनल सरकार के अधीन का काम किया करते थे। बाद में निजी चैनल भी खुले और उदारीकरण के बाद उनमें विदेशी निवेश भी हुए। इससे एनडीटीवी भारत का सबसे सशक्त प्राइवेट न्यूज़ चैनल के रूप में उभरा।
० स्टार का पैसा, एनडीटीवी का कंटेंट
द कारवां की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि सन् 2002 में एनडीटीवी ने प्रति वर्ष 20 मिलियन डॉलर का इंतजाम किया था। इस 20 मिलियन डॉलर का एक बड़ा हिस्सा स्टार न्यूज से आता था। तब तक आज-तक और ज़ी जैसे चैनल मार्केट में आ चुके थे।
स्टार के पैसों ने एनडीटीवी को नए प्राइवेट चैनलों से मुकाबले के लिए तैयार किया। चैनल ने पैसों से बेहतर उपकरण खरीदने, आकर्षक ग्राफिक्स बनाने और सबसे महत्वपूर्ण सर्वश्रेष्ठ टैलेंट को अपने पास लाने का काम किया।
साल 1999 की बात है। उसी दौरान अरुण जेटली के रिप्लेसमेंट के तौर पर नरेंद्र मोदी पहली बार 1999 में एनडीटीवी के दफ्तर पहुंचे थे। वह बतौर पैनलिस्ट भाजपा का पक्ष रखने के लिए एनडीटीवी के शो ‘रविवार’ में शामिल हुए थे।
० कैसे हुई थी NDTV की शुरुआत?
साल 1988 की बात है। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। समाचार चैनल पर आधिकारिक रूप से सरकार का कंट्रोल हुआ करता था। कोई निजी न्यूज चैनल नहीं चला सकता था। न्यूज़ देखने का एकमात्र माध्यम दूरदर्शन था। कारवां पर प्रकाशित कृष्ण कौशिक के आर्टिकल के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दूरदर्शन के महानिदेशक भास्कर घोष को टीवी न्यूज को नए टैलेंट और विचार के साथ आकर्षक बनाने का काम सौंपा।
ठीक इसी वर्ष अर्थशास्त्री डॉ. प्रणय रॉय और उनकी पत्रकार पत्नी राधिका रॉय ने एनडीटीवी की शुरुआत की थी। NDTV यानी ‘न्यू दिल्ली टेलीविजन’ (New Delhi Television)। घोष ने दूरदर्शन के एक नए साप्ताहिक कार्यक्रम ‘द वर्ल्ड दिस वीक’ (The World This Week) के लिए प्रणय रॉय और राधिका रॉय को काम पर रखा। इसके लिए उन्हें दो लाख रुपये प्रति एपिसोड भुगतान किया जाता था।
० क्यों हिट हुआ ‘द वर्ल्ड दिस वीक’?
‘द वर्ल्ड दिस वीक’ खूब पॉपुलर हुआ। साथ ही प्रसिद्ध हुए शो के एंकर प्रणय रॉय। स्लेटी रंग के सूट और चमकदार टाई पहन जब पहली बार प्रणय रॉय टीवी स्क्रीन की दिखे थे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि वह इंडियन टीवी न्यूज चैनल्स का भविष्य साबित होंगे।
प्रणय रॉय का शैली को लोगों ने पसंद किया। इस कार्यक्रम के शुरू होने से पहले दर्शकों ने केवल दूरदर्शन के बुलेटिन देखे थे। उसमें कठिन सरकारी हिंदी या अंग्रेजी में एंकर समाचार पढ़ा करते थे। विजुअल का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता था। कभी-कभी कुछ सेकंड के लिए तस्वीरों का इस्तेमाल हो जाया करता था।
लेकिन प्रणय रॉय का कार्यक्रम आम न्यूज बुलेटिन से बिलकुल अलहदा होता था। द वर्ल्ड दिस वीक के माध्यम से ही एनडीटीवी ने पहली बार भारतीय दर्शकों को अंतरराष्ट्रीय टीवी न्यूज़ चैनल की शैली से रूबरू कराया, जिसमें प्रत्येक न्यूज को एंकर आसान और बातचीत की भाषा में पेश करता था, विजुअल के साथ-साथ वॉयस-ओवर और अच्छी तस्वीरों का उपयोग कर एक प्री-पैकेज्ड स्टोरी चलाई जाती थी।
1988 में एनडीटीवी की शुरुआत दूरदर्शन के लिए शो बनाने से हुई थी, जिसके लिए उन्हें पैसे मिलते थे। लेकिन अगले ही वर्ष एनडीटीवी इतना बड़ा बना गया कि अपना शो दूरदर्शन पर पैसे देकर चलवाने लगा और सीधा विज्ञापन से पैसे कमाने लगा। यहीं से प्रणय रॉय और राधिका रॉय के मीडिया उद्यमी बनने की शुरुआत हुई थी।
० जब दर्ज हुआ पहला मामला
साल 1997 में एक संसदीय समिति ने दूरदर्शन के वित्तीय दस्तावेजों की जांच की। जांच में दूरदर्शन और एनडीटीवी के रिलेशन में कुछ ‘अनियमितताएं’ पायी गयीं। मुख्य रूप से दो कथित अनियमितताएं समाने आयी थीं। पहला यह कि दूरदर्शन अपनी टेक्नॉलॉजी का एक्सेस एनडीटीवी को दे रहा था। दूसरी अनियमितता विज्ञापन के दरों से जुड़ी थी।
1998 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने प्रणय और दूरदर्शन के अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। FIR में 1993 से 1996 तक दूरदर्शन के महानिदेशक रहे रितिकांत बसु का नाम भी शामिल था। हालांकि, साल 2013 में सीबीआई द्वारा एक अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दायर करने के बाद सभी आरोपों को खारिज कर दिया गया था।
(CM Jain)


  ~विजय राजबली माथुर ©