Wednesday, July 24, 2019

विचारों से समृद्ध एवं प्रारब्ध के धनी : कन्हैया कुमार ------ विजय राजबली माथुर




  

इस साक्षात्कार में कन्हैया कुमार की परिपक्वता का जो परिलक्षण हुआ है उसका अनुमान लगाते हुये 18 मार्च 2016 को एक लेख दिया था उसे पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है , पहले उनको भाकपा की राष्ट्रीय परिषद में और अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल कर लिया गया है जो पूर्व - व्यक्त अनुमानों का ही  स्पष्ट पुष्टीकरण है।  












Friday, 18 March 2016
प्रारब्ध के धनी व विचारों से समृद्ध कन्हैया कुमार ------ विजय राजबली माथुर
https://communistvijai.blogspot.com/2016/03/blog-post_18.html






वह वैचारिक प्रचलित आधार पर खुद को 'नास्तिक ' कहते हैं , किन्तु स्वामी विवेकानंद के अनुसार 'नास्तिक' वह है जिसका खुद अपने ऊपर विश्वास न हो जबकि 'आस्तिक' वह है जिसका अपने ऊपर पूर्ण विश्वास हो ।  जो लोग खुद पर नहीं किसी अदृश्य पर विश्वास करते हैं वे नास्तिक अथवा ढ़ोंगी हैं। हम स्वामी विवेकानंद की परिभाषा के अनुसार कन्हैया को 'पूर्ण आस्तिक' कह सकते हैं। वह पूर्ण आध्यात्मिक भी हैं क्योंकि अध्यात्म का अर्थ है अध्यन + आत्मा अर्थात अपनी आत्मा का अध्यन ; कन्हैया ने प्रत्येक भाषण में खुद अपने अनुभवों की अभिव्यक्ति करने की बात कही है। स्पष्ट है वह अपना आत्मावलोकन करके ही वेदना व्यक्त कर रहे हैं।  जो लोग पाखंड और आडंबर को अध्यात्म बताते हैं वे भी वस्तुतः ढ़ोंगी ही हैं।

मानव जीवन को 'सुंदर, सुखद व समृद्ध' बनाने का मार्ग बताने वाला विज्ञान ही ज्योतिष है और इसका 'रेखा गणितीय' विश्लेषण 'हस्त रेखा विज्ञान' कहलाता है। जो लोग बाएँ हाथ को स्त्रियों  का व दायें को पुरुषों का बता कर विश्लेषण करते हैं वे पूर्णत :  सही विश्लेषण प्रस्तुत नहीं करते हैं। इसी प्रकार जो लोग बाएँ हाथ को बेरोजगारों व दायें हाथ को सरोजगारों के लिए निर्धारित करते हैं वे भी अपूर्ण निष्कर्ष तक ही पहुँचते हैं।

वस्तुतः स्त्री-पुरुष एवं रोजगार-बेरोजगार का विभेद किए बगैर बाएँ हाथ से किसी भी मनुष्य के  जन्मगत 'प्राब्ध'/भाग्य/LUCK का ज्ञान प्राप्त होता है और उसके दायें हाथ से व्यावहारिक तौर पर  कर्मगत उसने जो प्राप्त/अर्जित किया है उसका ज्ञान होता है। उपरोक्त चित्रों में कन्हैया का बायाँ हाथ जितना स्पष्ट है उतना ही दायाँ हाथ भी स्पष्ट है। उनकी भाग्य रेखा दोनों हाथों में मणिबन्ध से प्रारम्भ होकर शनि पर्वत तक स्पष्ट पहुँच रही है। उसकी एक शाखा की पहुँच गुरु पर्वत पर भी है। हस्तरेखा विज्ञान में ऐसी भाग्यरेखा 'सर्व-श्रेष्ठ' होती है। लाल बहादुर शास्त्री जी के हाथों में भी ऐसी ही भाग्यरेखा थी। ऐसी भाग्यरेखा के संबंध में डॉ नारायण दत्त श्रीमाली का निष्कर्ष है  :
" ऐसा व्यक्ति अपने देश की भलाई में अपने आप को न्योछावर कर देता है। यह व्यक्ति सबका प्रिय, स्वाभिमानी, दानी, सबकी सुनने वाला होता है। यह व्यक्ति उन्मुक्त सिंह की तरह अपने विचार धड़ल्ले के साथ व्यक्त करने वाला होता है। "

उनके प्रत्येक भाषण से डॉ श्रीमाँली के इस निष्कर्ष की स्पष्ट परिपुष्टि हो रही है। बड़ी बेबाकी के साथ उन्होने गाँव से लेकर समाज,राष्ट्र व विश्व की वृहद चर्चा की है और शक्तिशाली व बर्बर सरकार के उत्पीड़न की परवाह किए बगैर अपने विचारों को सुस्पष्ट तौर पर रखा है।

कन्हैया के दोनों हाथों में सभी ग्रहों के पर्वत उन्नत हैं अतः उनको पूर्ण फल प्राप्त होगा। मूल भाग्यरेखा के साथ-साथ चंद्र पर्वत से एक और सहायक भाग्यरेखा भी आ रही है अर्थात विवाहोपरांत उनका भाग्य और गति प्राप्त करेगा। उनकी हृदय रेखा स्पष्टतः गुरु पर्वत के नीचे पहुँच रही है जिसका फल उनकी इस सहृदयता में सबके सामने है कि, वह अपने आक्रांताओं के प्रति भी निर्मम नहीं उदार हैं।
हालांकि उन पर शारीरिक व मानसिक रूप से निष्ठुर प्रहार किए गए हैं उनको 'देशद्रोही' तक कह  कर उनके प्रति घृणा को प्रचारित किया गया है। परंतु उन्होने अपना संयम नहीं खोया है। स्वामी विवेकानंद का कहना है कि प्रारम्भ में जिस व्यक्ति या  पदार्थ का जितना तीव्र विरोध होता है कालांतर में वह व्यक्ति या पदार्थ उतना ही 'लोकप्रिय ' होता है। 
15 मार्च 2016 के संसद मार्च व जनसभा  में भाकपा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड डी राजा साहब ( अब राष्ट्रीय महासचिव ) व माकपा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सीताराम येचूरी साहब की उपस्थिती कन्हैया की जनप्रियता के ही कारण थी। प्रख्यात लेखिका अरुंधति राय जी व अन्य महानुभाव उनके वैचारिक महत्व के कारण ही शामिल हुये हैं। 
उनके हाथों में मस्तिष्क रेखा स्पष्ट व गहरी है और चंद्र पर्वत की ओर ढलवां झुकी हुई है जो एक आदर्श रूप में उपस्थित है और इसी के कारण वह प्रत्येक बात को गहराई से अध्यन  करके सुस्पष्ट रूप में सार्वजनिक रूप से रखने में समर्थ रहते हैं। इसी कारण शक्तिशाली सर्वोच्च सत्ता से टकरा कर उनकी जनप्रियता उच्च सोपान को छू सकी है। 

उनकी गिरफ्तारी के समय की प्रश्न कुंडली प्राप्त करने पर ज्ञात होता है कि, उस समय नौ में से सात ग्रह उनके अनुकूल थे। केवल सूर्य तथा शनि ग्रह उनके प्रतिकूल थे। सूर्य की प्रतिकूलता के कारण उनका 'मान-भंग' हुआ जो उन पर 'देशद्रोह' का झूठा आरोप थोपा गया और शनि की प्रतिकूलता के कारण उनको कारागार की यात्रा करनी पड़ी। जैसा की न्यूज़ लाउंड्री को दिये साक्षात्कार में उन्होने बताया भी है कि 'जांच में सहयोग' करने के नाम पर धोखे में रख कर उनको गिरफ्तार किया गया यह भी शनि का ही प्रकोप रहा है। शुक्र व बुध ग्रहों के शक्तिशाली होने के कारण उनका बुद्धि,ज्ञान,विवेक संतुलित रहा एवं उनको कानूविदों का भी सहयोग प्राप्त हुआ जिससे वह अन्तरिम रूप से ही सही रिहा हो सके। शनि के स्त्रीकारक ग्रह होने के कारण जहां उनकी गिरफ्तारी में महिला मंत्री का हाथ रहा वहीं रिहाई में भी महिला न्यायाधीश का हाथ रहा है। स्त्रीकारक ग्रह शुक्र  के सर्वाधिक शक्तिशाली होने व माँ के भाव में होने के कारण सर्वप्रथम उनको अपनी माता जी का पूर्ण आशीर्वाद मिला है। उनकी अनुपस्थिति में महिला उपाध्यक्ष ने ही कुशलतापूर्वक उनके कार्यों का निष्पादन व आंदोलन का संचालन किया है। गुरु,राहू और केतू ग्रह भी उनको सुख दिलाने व हमलों से बचाने में समर्थ रहे हैं बल्कि यदि कहें कि सरकार का दांव सरकार को ही उल्टा पड़ने में इन सब ग्रहों की प्रमुख भूमिका रही है तो गलत न होगा । 
सिर्फ यह कह देने से कि हम नहीं मानते ग्रहों के प्रभाव से अछूता नहीं रहा जा सकता है। कन्हैया का इस समय जनता पर अनुकूल प्रभाव है और यदि वह जनता को सामाजिक रूप से जागरूक करने को कहें कि सरकार और उसके समर्थक अधार्मिक तत्व हैं जबकि वह जनता के धर्म की रक्षा का युद्ध लड़ रहे हैं। वस्तुतः 'धर्म' शब्द की व्युत्पति 'धृति' धातु से हुई है जिसका अर्थ है धारण करना। अर्थात मानव शरीर व समाज को धारण करने हेतु आवश्यक तत्व ही 'धर्म' हैं , यथा-
सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। इनका पालन ही धर्म है बाकी सब ढोंग-पाखंड-आडंबर है। 
यही उपयुक्त समय है जब जनता को समझाया जा सकता है कि, 'कृणवनतो विश्वमार्यम ' अर्थात सम्पूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाने वाला समष्टिवाद ही आज का साम्यवाद है जो विश्व के  मेहनतकशों  को एकजुट करने की बात उठाता है और उसका विरोध करने वाले ही वस्तुतः देशद्रोही हैं। 

हमारी शुभकामनायें  सदैव  कामरेड कन्हैया कुमार के साथ हैं। 



~विजय राजबली माथुर ©
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Friday, July 19, 2019

बैंक,सार्वजनिक कम्पनियां, स्कूल , कॉलेज , यूनिवर्सिटियां बिकेंगी ------ हेमंत कुमार झा

Hemant Kumar Jha
55 mins (19-07-2019 )
वे अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे खुशनुमा दौर से गुजर रहे हैं। अपेक्षाओं से भी अधिक जनसमर्थन मिला है उन्हें। केंद्र के साथ ही अधिकतर राज्यों में उन्हीं की सरकारें हैं। फिर...वे इतने हलकान क्यों हैं? न्यूनतम राजनीतिक शुचिता और लोकलाज को भी ताक पर रख वे क्यों खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने में लगे हैं?

आखिर क्यों...?

क्या ये कुछ और राज्यों में महज सत्ता हासिल करने के लिये है?

उन्हें क्या हासिल हो जाएगा अगर वे तमाम राजनीतिक नैतिकताओं को दरकिनार कर कर्नाटक में भी अपनी सरकार बना लें? या...भविष्य में इसी खेल के सहारे मध्य प्रदेश या राजस्थान में?

दरअसल, इसे सिर्फ भाजपा की राजनीति से जोड़ना इस खेल के बृहत्तर उद्देश्यों को समझने में चूक करना है। भाजपा नामक राजनीतिक दल को ऐसे फूहड़ और अनैतिक कृत्यों से तात्कालिक तौर पर जो कुछ लाभ हो जाए, दीर्घकालिक तौर पर नुकसान ही है। आखिर...खुद को "पार्टी विद डिफरेंस" कहते हुए ही इसने जनता के दिलों में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की थी।

भाजपा को जब इतिहास से साक्षात्कार करना होगा तो आज की उसकी राजनीतिक दुरभिसन्धियों और अनैतिकताओं पर उसे जवाब देते नहीं बनेगा।

लेकिन, बात भाजपा की नहीं रह गई है। पार्टी तो नेपथ्य में चली गई है और उसके पारंपरिक थिंक टैंक सदस्य 'साइलेंट मोड' में हैं या अप्रासंगिक बना दिये गए हैं।

जो प्रभावी भूमिका में हैं उनके उद्देश्य कुछ और हैं। इन उद्देश्यों तक पहुंचने के लिये साधनों की शुचिता का उनके लिये कोई मतलब नहीं। क्योंकि...उनके उद्देश्य भी शुचिता के धरातल पर कहीं नहीं ठहरते।

वे और ताकतवर...और ताकतवर होना चाहते हैं। जितने राज्यों में उनकी सरकारें होंगी, उनकी ताकत उतनी बढ़ेगी। इसके लिये लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की प्रतीक्षा करने का धैर्य उनमें नहीं।

वे कैसे धैर्य रख सकते हैं? वे जानते हैं कि पार्टी कल भी रहेगी, परसों भी रह सकती है, लेकिन वे कल नहीं रहेंगे।

जो करना है अभी करना है।

भारत को दुनिया की सर्वाधिक मुक्त अर्थव्यवस्था बनाना है। वक्त कम है, उद्देश्य बड़ा है। इसके लिये अधिक से अधिक ताकतवर बनना है, चाहे जैसे भी हो।

लोकतंत्र में ताकत की परिभाषा संख्याबल से निर्धारित होती है तो...हम चुनाव से ही नहीं, थैली खोल कर भी संख्या बल बढाएंगे। धमकियों से, षड्यंत्रों से, पैसों से...जब जहां जो प्रभावी हो जाए।

कौन है वे लोग जो इनके लिये थैलियां खोल कर बैठे हैं?

वही...जिन्हें सरकारी संपत्ति खरीदनी है।

प्रतीक्षा कीजिये...वे सब खरीद लेंगे, ये सब बेच देंगे।

संविधान के अनेक प्रावधानों को बदलने में विधान सभाओं की भी भूमिकाएं होती हैं, राज्यसभा में संख्या बल बढाने के लिये विधान सभाओं में मजबूत होना जरूरी है।

तो...चाहे जिस रास्ते हो, वे विधानसभाओं को एक-एक कर अपने नियंत्रण में लेते जा रहे हैं।

असीमित शक्ति...एक डरावना सच। यह लोकतंत्र नहीं है।

नहीं, उनकी छाया में लम्पटों के कुछ समूह शोर चाहे जितना करें उत्पात चाहे जितना मचाएं, उन्हें हिदुत्व आदि से कोई लेना देना नहीं। चुनाव जीतने के लिये हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, पाकिस्तान आदि थे। चुनाव खत्म...अब ये मुद्दे उनके एजेंडा में नहीं।

बस...आर्थिक उद्देश्य हैं उनके। देश को कारपोरेट राज के हवाले करना है उन्हें।

कोई और भी आता तो कारपोरेट शक्तियों के आगे दुम ही हिलाता। लेकिन, इनकी बात ही अलग है। इनमें दुर्धर्ष साहस है, अनहद बेशर्मी है, झूठ को सच और सच को झूठ बना कर जनता को भ्रमित कर देने का असीमित कौशल है।

इसलिये...ये कारपोरेट को बहुत प्यारे हैं। इसलिये, विधायको, सांसदों की खरीद-फरोख्त के लिये थैलियां खुली हैं, बोलियां लग रही हैं। आज कर्नाटक, कल बंगाल, परसों मध्यप्रदेश, फिर राजस्थान...फिर और कहीं।

अच्छा है। इनके राज में मीडिया ने दिखा दिया कि वह कितना गिर सकता है, अनेक संवैधानिक शक्तियों ने दिखा दिया कि वे कितने पालतू हो सकते हैं और...नेता लोग भी दिखा रहे हैं कि बाजार के आलू-बैंगन और उनमें कितना फर्क रह गया है।
इस दौर के अनैतिक खोखलेपन को उजागर करने के लिये इनका राज याद किया जाएगा।

खुली थैलियों के आगे कौन कितनी देर ठहर सकता है? कसौटी पर है भारतीय राजनीति, समाज, संवैधानिक प्रतिमान।

कारपोरेट उत्साह में है। थैलियों का मुंह खुला है।

क्योंकि...दांव पर बहुत कुछ है।

भूल जाइये कि रेल मंत्री ने संसद में कहा कि रेल का निजीकरण नहीं करेंगे। ये सब तो...बातें हैं बातों का क्या।स्कूल बिकेंगे, कॉलेज बिकेंगे, यूनिवर्सिटियां बिकेंगीस्कूल बिकेंगे, कॉलेज बिकेंगे, यूनिवर्सिटियां बिकेंगी

बैंक बिकेंगे, सार्वजनिक क्षेत्र की तमाम कम्पनियां बिकेंगी। नई शिक्षा नीति आ रही है। देखते जाइये...स्कूल बिकेंगे, कॉलेज बिकेंगे, यूनिवर्सिटियां बिकेंगी। देश के बेशकीमती संसाधन औने-पौने दामों पर बिकेंगे। आप रामधुन गाते रहिये। टीवी स्क्रीन पर बिके हुए बेगैरत एंकरों को हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान आदि पर डिबेट करते-कराते देखते रहिये।

आपकी आंखों के सामने देश का आर्थिक स्वत्व छीना जा रहा है। हम सबको कारपोरेट का गुलाम बनाने की कवायद जोर-शोर से जारी है।

रेलवे कारपोरेट के निशाने पर है। इसकी नसों में जहर का इंजेक्शन दिया जा रहा है। धीरे-धीरे खुद ब खुद भरभरा कर गिर जाएगा यह और...संभालने के लिये कारपोरेट की शक्तियां आ जाएंगी।

कौन सी कम्पनी वास्तविक तौर पर कितने की थी, कितने में बिकी...कौन जान सकता है? वे जो बताएंगे, हम वही सुनेंगे।

वे अपने अभियान पर हैं। वे न थक रहे, न रुक रहे। उनके उद्देश्य नितांत जनविरोधी हैं, लेकिन उनके अथक प्रयत्नों की तारीफ तो बनती ही है। खास कर तब...जब विपक्ष के तमाम कर्णधार शीतनिद्रा में हों।











 ~विजय राजबली माथुर ©