Friday, September 28, 2012

श्रद्धा,विश्वास और ज्योतिष (पुनर्प्रकाशन) ------ विजय राजबली माथुर


सोमवार, 6 दिसम्बर 2010


श्रद्धा,विश्वास और ज्योतिष

यह कौतूहल का विषय हो सकता है कि, जब ज्योतिष विज्ञान है और इसके द्वारा निरूपित सिद्धांत खगोलीय गणनाओं पर आधारित होते हैं तो श्रद्धा और विश्वास का क्या मतलब ? जब  ज्योतिष की गणनाओं क़े माध्यम से किसी समस्या की तह तक पहुँच जाते हैं,तब उसके समाधान हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया यदि श्रद्धा व विश्वास से रहित की जाती है तो निरर्थक रह जाती है.इस प्रकार ज्योतिषीय आंकलन को ही संदेह क़े घेरे में ले लिया जाता है. हाई स्कूल में पढी इंग्लिश की एक कहानी का ज़िक्र करना प्रासंगिक रहेगा.उस कहानी क़े अनुसार एक बार सूखे से त्रस्त जनता ने चर्च में बारिश क़े लिए प्रार्थना करने का निर्णय लिया. एक छोटा बच्चा छाता लेकर गया जबकि बाक़ी लोग बिना छाते क़े गाए थे ,लोगों ने उस बच्चे से छाता साथ ले जाने का कारण पूछा -बच्चे ने सहज भाव से उत्तर दिया -"हमारी प्रार्थना सुन कर भगवान् (GOD) बारिश करेंगे तो उससे बचने क़े लिए ही  छाता ले जा रहा हूँ .अधिकाँश लोग बच्चे की बुद्धि पर हँस दिए.पर बच्चा अडिग रहा और छाता साथ लेकर ही गया .चर्च में प्रार्थना समाप्त कर वापिस चलते ही मूसलाधार बारिश हुयी और उस छोटे बच्चे को छोड़ कर सभी लोग बारिश में भीगते हुए ही घर लौटे.ज़ाहिर सी बात है कि,लोग प्रार्थना करने तो गये थे परन्तु न तो उन्हें भगवान् पर श्रद्धा थी और न ही विश्वास कि ,उनकी प्रार्थना से बारिश होगी ही,परिणामस्वरूप सभी को भीगना पड़ा जबकि वह छोटा बच्चा श्रद्धा व विश्वास क़े कारण ही वर्षा से अपना बचाव कर सका.

व्यक्ति क़े जन्मकालीन ग्रह नक्षत्रों की गणना पर आधारित महादशा व अन्तर्दशा तथा गोचर -ग्रहों क़े चलन क़े आधार पर उस कारण को ज्ञात करके कि ,कोई समस्या या कष्ट क्यों है ? उसका समाधान बताया जाता है.व्यवहार में आजकल अधिकाँश ज्योतिषी जो उपाय बताते हैं,वे शुद्ध आस्था का प्रतीक हैं और उनका न तो कोई वैज्ञानिक महत्त्व है न ही तर्क .उदाहरणस्वरूप शनि से पीड़ित व्यक्ति द्वारा शनि की प्रतिमा पर तिल  व तेल चढ़ाना अथवा पीपल वृक्ष  की जड़ में तेल का दीपक जलवाना आदि.इस पद्धति से जो भी लाभ प्राप्त होता है ,वह विशुद्ध मनोवैज्ञानिक़ आस्था का परिणाम होता है.


वायु द्वारा उन परमाणुओं क़े ५० प्रतिशत भाग को नासिका क़े माध्यम से हवन पर बैठे लोगों क़े रक्त में सीधे घुलनशील कर दिया जाता है.५० प्रतिशत भाग वायु द्वारा (बोले गये मन्त्रों की शक्ति से )सम्बंधित ग्रह लोक तक पहुंचा दिया जाता है और इस प्रकार उस ग्रह क़े प्रकोप से उस व्यक्ति -विशेष को राहत मिल जाती है.अब यदि मन्त्रोच्चारण अथवा आहुतियाँ श्रद्धा व विश्वास क़े साथ नहीं दी गई हैं तो वांछित -अनुकूल परिणाम नहीं मिल सकेगा.जिस प्रकार फोन का नं .डायल करने में जरा सी चूक क़े कारण सही नं .नहीं लग पाता है.उसी प्रकार मन्त्रोच्चारण व आहुतियों में की गई चूक सम्बंधित ग्रह तक संवाद स्थापित करने में विफल रहती है.व्यक्ति इसे अपनी श्रद्धा व विश्वास में कमी क़े रूप में नहीं लेकर ज्योतिष विज्ञान की कमी या विफलता मानता है जो ज्योतिष - क्षेत्र की एक विकट त्रासदी ही है.कुछ उदाहरणों  से आपको स्पष्ट हो जाएगा कि किस प्रकार श्रद्धा व विश्वास -पूर्वक किये गये उपायों द्वारा लोगों ने भरपूर लाभ उठाया है.


लगभग नौ वर्ष पूर्व आगरा में जी .जी .आई .सी.की एक शिक्षिका अपनी एक रिश्तेदार क़े माध्यम से मेरे पास आईं

और टूटने की कगार पर पहुँच चुकी अपनी गृहस्थी का समाधान चाहा. मुझसे पूर्व वह कई स्थापित व विख्यात ज्योतिषियों से मिल चुकी थीं जिन्होंने काफी खर्चीले उपाए बताये थे.एक ने तो २२ हज़ार कीमत क़े रत्न जड्वाकर पहनने को कहा था.परन्तु उन सबसे उक्त शिक्षिका महोदय को निराशा ही हाथ लगी.मेरे द्वारा उन्हें मात्र कुछ मन्त्र पाठ करने को दिए गये व हवन करने को कहा गया.मात्र सप्ताह भर क़े प्रयोग से उन्हें काफी लाभ हुआ और न केवल उनकी गृहस्थी सानन्द चल रही है बल्कि उसके बाद उन्हें एक और कन्या रत्न की प्राप्ति भी हुई है.कम खर्च में सटीक लाभ उन शिक्षिका द्वारा श्रद्धा व विश्वास क़े साथ मन्त्रों का पाठ करने से ही संभव हो सका.हमारे बताये उपायों को अपनाने से उन्हें एक और भी लाभ यह हुआ कि वह पहले एक मकान खरीदने फिर उसके बाद दूसरा मकान बनवाने में कामयाब रहीं.दोनों मकानों का गृह-प्रवेश   हवन  उन्होंने मुझसे ही करवाए. मेरे आगरा छोड़ने क़े छः  माह बाद उन्होंने फोन पर सूचित किया कि अब उन्होंने कार भी ले ली है. उनके पति जो एक मल्टीनेशनल कं .में जू .एकाउंटेन्ट हैं भी मेरे पास अपने भाई -बहनों की समस्याएँ लेकर आते रहते थे.यदि उन लोगों ने नियमतः पालन किया तो निश्चित रूप से लाभ भी उन्हीं लोगों को हुआ .मुझे भी संतोष रहा कि मेरी सलाह कामयाब रही.
दूसरा उदाहरण एक ऐसे शिक्षक महोदय का है जिनका सम्प्रदाय ज्योतिष को मान्यता नहीं देता है.उन्हें समस्या -समाधान हेतु जो पाठ दिए गये थे ,उन्होंने आधे -अधूरे ढंग से और बेमन से किये.परिणामस्वरूप उन्हें लाभ भी अधूरा ही मिल पाया. लगभग ८ वर्ष पूर्व पुत्र -वधु को लेकर लौटती बरात में दूल्हा -दुल्हन क़े वाहन में सामने से टक्कर लगी;वाहन का काँच टूट गया.परन्तु किसी सवारी को खरोंच भी न लगने से उन्हें मन्त्रों पर पूर्ण विश्वास हो गया. वर्ष २००३  क़े प्रारम्भ में उन्होंने हवन क़े माध्यम से अपने पुत्र क़े ग्रहों की हल्की शान्ति करा ली थी,जिसका सुपरिणाम भी उन्हें उसी अनुरूप मिला.३१ मार्च २००३ को उनके पौत्र का जन्म हुआ ,यह प्रीमैच्योर डिलीवरी थी.यदि उस दिन चार घंटे बाद बच्चे का जन्म होता तो वह शनि की ढैय्या क़े प्रभाव में होता. उक्त शिक्षक महोदय द्वारा २६ .१ .२००३ को ही श्रद्धा व विश्वास पूर्वक हवन क़े माध्यम से ग्रहों की शान्ति करने का परिणाम सुखद रहा.

कुछ लोग उपाय तो करते हैं ,परन्तु अस्थिर चित्त से और बगैर पूर्ण श्रद्धा क़े उन्हें समुचित अनुकूल परिणाम भी नहीं मिल पाते.एक प्रख्यात ज्योतिर्विद ने अपने गुरु (अवकाश प्राप्त शिक्षक )की पुत्री क़े विवाह हेतु ऐसे उपाए बताये जिनका कुल खर्च २५ /२६ हज़ार रु .आता था ,जिसे करने में वह असमर्थ थे.परन्तु मेरे बताये पूर्ण वैज्ञानिक हवन -पद्धति द्वारा उपाए करने में उन्हें विश्वास नहीं था.अतः वह मेरे ज्योतिषीय सुझावों का कोई लाभ न उठा सके.उनकी पुत्री को विलम्ब से विवाह क़े अतिरिक्त सुसराल में भी परेशानी का ही सामना करना पड़ा -पोंगा पंडितों क़े चक्कर में पड़ कर.

आगरा क़े एक प्रख्यात चिकित्सक की पुत्री क़े विवाह हेतु भी अन्य जानकारों ने सोलह हज़ार का खर्च वाला नुस्खा बताया था,जिसे शायद वह करते भी.परन्तु मेरे द्वारा तार्किक उपायों की जानकारी दिए जाने पर कम खर्च क़े उपाए उन्होंने पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से किये और अब उनकी पुत्री का विवाह हुए ८ वर्ष हो चुके हैं.
                      श्रद्धा व विश्वास का अभाव
श्रद्धा और विश्वास का अभाव हो तथा ज्योतिष पर पूर्ण आस्था भी न हो तब ऐसे लोग किस गति को प्राप्त करते हैं;मात्र दो -तीन उदाहरणों से सिद्ध हो जायेगा.सतीश चन्द्र शर्मा ने अपने गृह क़े S . W . में हैण्ड -पम्प लगवा लिया ,उत्तर दिशा में रसोई पहले से थी ही.परिणामस्वरूप शराब का व्यय अत्यधिक बढ़ गया,उसकी पत्नी व बेटा उसे अकेला छोड़ कर भाग गये.यह क्षेत्र रहू -केतु का होता है और यहाँ कूप आदि बनवाने का दुष्परिणाम गृह -स्वामी या उसके ज्येष्ठ पुत्र की मृत्यु क़े रूप में ही सामने आता है.१९९६ में दशहरे पर किडनी बर्स्ट से उसकी मृत्यु हो गई.

वेदप्रकाश गुप्ता ने अपने मकान में स्वंय आने क़े बाद दो गलत निर्माण करवा डाले.एक तो ईशान में सीढ़ियों का निर्माण ,दूसरा द.प .में दुकान का खोलना.परिणाम यह रहा कि,इस व्यक्ति का दिवाला पिट  गया और इसे मकान बेचना और अन्यत्र जाना पड़ा.इसके उत्तरवर्ती ने भी मकान तोड़ कर दो गलत निर्माण करा डाले. एक तो रसोई उत्तर दिशा में स्थानांतरित करा ली और दूसरे पूर्व दिशा को पश्चिम से ऊंचा करा लिया.फलतः इनके व्यापार में भी कर्मचारियों द्वारा चोरी व लूट की घटनाएं होते -होते साझीदार से अलगाव हो गया.अब इन्होने तेल में मिलावाट बड़े पैमाने पर शुरू की जिस पर डा .बी .पी .अशोक (एस .पी .सिटी ) ने अपने आगरा कार्यकाल क़े दौरान इनकी फर्म पर छापा डाल कर फर्म स्वामी और उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया.ले -देकर छूट तो गये पर मुकदमे  में
फंस गये.


अवकाश प्राप्त इ .विनोद बाबू शर्मा ने ऊपरी मंजिल क़े ईशान में रसोई बना दी और उत्तर दिशा बंद करा दी.परिणामस्वरूप उनके पहले किरायेदार व तीसरे किरायेदार क़े पुत्र की मृत्यु हो गई.दूसरे तथा चौथे किरायेदार दिवालिया हो गये.कई साल मकान खाली रहा -कौन जान -बूझ कर मौत को गले लगाना चाहता है?

ये वे लोग हैं जो एक ओर तो अल्ट्रामाडर्न हैं -धनाढ्य हैं और दूसरी ओर पोंगा -पंथी ,दकियानूसीवाद क़े अनुयायी हैं.इनके लिए ज्योतिष क़े वैज्ञानिक सिद्धांतों में विश्वास करना संभव नहीं है.पोंगापंथी इन्हें उलटे उस्तरे से मूढ़ते  रहते हैं और वे उसी में प्रसन्न  भी रहते हैं.

सुख -दुःख जीवन में यदि सुख आते हैं तो दुःख भी आते है. दुःख आने पर घबराना नहीं चाहिए.ऐसी स्थिति में ज्योतिष आपको वैज्ञानिक कारण व उपाए बताने में सक्षम है ,उनका पालन करके तथा परमात्मा से प्रार्थना करके दुखों को समाप्त अथवा कम तो अवश्य ही किया जा सकता है.श्रद्धा व विश्वास पूर्वक की गई प्रार्थना परमात्मा सुनता है और पीड़ित को प्रकोप से मुक्ति मिल जाती है अतः ज्योतिष का श्रद्धा व विश्वास क़े साथ अभिन्न सम्बन्ध है और विवेकी व्यक्ति इसका भर -पूर लाभ भी उठाते हैं . क्या आप भी उनमें से एक हैं ?




(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

9 टिप्‍पणियां:

  1. श्रद्धा और विश्वास के बिना किसी चीज़ का कोई असर नहीं हो सकता..... ज्ञानवर्धक और उपयोगी पोस्ट
  2. bahut badhiya lekha...shraddhaa--vishwas our jyotish ko achhe dhang se link kiya hai.
  3. अत्यंत उपयोगी लगी आपकी पोस्ट आभार.
  4. बहुत उपयोगी है आपकी यह पोस्ट ,,,...बहुत बहुत शुक्रिया
  5. सही कहा आपने ,श्रद्धा और विश्वास ज्योतिष के अभिन्न अंग हैं। श्रद्धा और विश्वास से मनुष्य में आत्मबल उत्पन्न होता है और यही आत्मबल मनोवांछित कार्यसिद्धि में सहायक होता है।
    एक महत्वपूर्ण और उपयोगी आलेख के लिए बधाई, माथुर जी।
  6. कल 21/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!
  7. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।
  8. बेहतरीन उपयोगी लेखन....
    सादर....

Friday, September 21, 2012

ज्योतिष और अंधविश्वास (पुनर्प्रकाशन)



शनिवार, 4 दिसम्बर 2010

ज्योतिष और अंधविश्वास

पिछले कई अंकों में आपने जाना कि,ज्योतिष व्यक्ति क़े जन्मकालीन ग्रह -नक्षत्रों क़े आधार पर भविष्य कथन करने वाला विज्ञान है और यह कि ज्योतिष कर्मवादी बनाता  है -भाग्यवादी नहीं. इस अंक में आप जानेंगे कि ,अंधविश्वास ,ढोंग व पाखण्ड का ज्योतिष से कोई सरोकार नहीं है.

कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने ज्योतिष -विज्ञान का दुरूपयोग करते हुए इसे जनता को उलटे उस्तरे से मूढ्ने का साधन बना डाला है.वे लोग भोले -भाले एवं धर्म -भीरू लोगों को गुमराह करके उनका मनोवैज्ञानिक ढंग से दोहन करते हैं और उन्हें भटका देते हैं.इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति ज्योतिष को अंधविश्वास मानने लगता है और इससे घृणा करनी शुरू कर देता है.ज्योतिष -ज्ञान क़े आधार पर होने वाले लाभों से वंचित रह कर ऐसा प्राणी घोर भाग्यवादी बन जाता है और कर्म विहीन रह कर भगवान् को कोसता रहता है.कभी -कभी कुछ लोग ऐसे गलत लोगों क़े चक्रव्यूह में फंस जाते हैं जिनके लिए ज्योतिष गम्भीर विषय न हो कर लोगों को मूढ्ने का साधन मात्र होता है.इसी प्रकार कुछ कर्मकांडी भी कभी -कभी ज्योतिष में दखल देते हुए लोगों को ठग लेते हैं.साधारण जनता एक ज्योतषीऔर ढोंगी कर्मकांडी में विभेद नहीं करती और दोनों को एक ही पलड़े पर रख देती है .इससे ज्योतिष विद्या क़े प्रति अनास्था और अश्रद्धा उत्पन्न होती है और गलतफहमी में लोग ज्योतिष को अंध -विश्वास फ़ैलाने का हथियार मान बैठते हैं .जब कि सच्चाई इसके विपरीत है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाना ही वस्तुतः ज्योतिष का अभीष्ट है

७ वर्ष पूर्व २००३ ई .क़े नवरात्रों में एक ढोंगी व पाखंडी कर्मकांडी द्वारा कमला नगर ,आगरा निवासी एक व्यवसायी की माता की निर्मम हत्या व लूट -पाट तथा उसकी पत्नी को घायल कर दिया गया.पुलिस प्रशासन द्वारा पाखंडी को बचाने हेतु नाटक रचा गया और पीड़ित परिवार का चरित्र हनन किया गया.इस हरकत की जनता में उग्र प्रतिक्रिया हुई .फलस्वरूप दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित होना पड़ा.इतने वीभत्स और कारुणिक काण्ड पर एक प्रतिष्ठित मिशनरी विद्द्यालय क़े प्रतिष्ठित शिक्षक की प्रतिक्रिया थी कि,उस कर्मकांडी क़े बयान में कुछ सच्चाई है और कि पुलिस अधिकारी निष्पक्ष व ईमानदार हैं.क्या आप जानना चाहेंगे कि,एक तथा -कथित सभ्रांत शिक्षक क़े ऐसे उदगार क्यों हैं ?नितांत आर्थिक आधार.अतीत में कभी पीड़ित परिवार का कोई बच्चा उक्त शिक्षक से पंद्रह दिन ट्यूशन पढ़ा था और बाद में उनका पारिश्रमिक भुगतान इसलिए नहीं किया गया था कि,उस बच्चे पर कोई तवज्जो नहीं दी गई थी .बस इतने मात्र से उक्त पीडिता को दोषी कहने में इन शिक्क्षक महोदय ने कोई संकोच नहीं किया .
आइये ,इन शिक्षक महोदय की ऐसी सोच का ज्योतिषीय विश्लेषण करें.यह शिक्षक एक ऐसे सम्प्रदाय (गायत्री परिवार )क़े अनुयायी हैं जो ज्योतिष को अन्धविश्वासी मानता है और इसी कारण इन महोदय ने अपने आवास पर इस प्रकार निर्माण -परिवर्तन कराया है जो ज्योतिष और वास्तु क़े विपरीत है.वास्तु ज्योतिष का ही एक अंग है और ग्रह नक्षत्रों की स्थिति क़े आधार पर गृह -निर्माण की विधि बताता है.संदर्भित शिक्षक महोदय ने अपने आवास क़े ईशान में दोनों मंजिलों पर शौचालय निर्मित करा लिए;उत्तर दिशा में रसोई स्थानांतरित कर ली ,जो कि वास्तु -शास्त्र क़े अनुसार (दोनों कृत्य) बुद्धि -विपर्याय क़े सूचक हैं.ईशान दिशा बृहस्पति का क्षेत्र है जो कि ज्ञान -विज्ञान ,बुद्धि -प्रदाता ग्रह है.इस क्षेत्र को नियमानुसार खाली या हल्का रखते हैं अथवा पूजा -स्थल का वहां निर्माण कराते हैं.जिससे  बुद्धि व ज्ञान का संचार सुचारू रूप से होता रहे.प्रस्तुत उदाहरण में शिक्षक महोदय ने ज्ञान क़े देवता को (शौचालय निर्मित कर ) मल -मूत्र से आवृत करके अपनी बुद्धि पर कुठाराघात कर लिया और इस अंध विश्वास से ग्रस्त हैं कि ,ज्योतिष ही अंध विश्वास का वाहक है.इस निर्माण कार्य को ७ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और वहां बुद्धि -विभ्रम का बहुत कुछ खेल हो चुका है (जिसका वर्णन वास्तु दोष एक प्रेक्टिकल उदाहरण में भी हुआ है और "श्रधा ,विश्वास और ज्योतिष "में भी आगे होगा ).

अब आइये ,इन्हीं की तर्ज़ पर हू -ब -हू निर्मित एक पुलिस अधिकारी क़े आवास से इस वास्तु दोष को समझते हैं,जिनके निर्माण काल को अब ११ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और उस भवन क़े निवासियों पर समस्त वास्तु दोष सिर पर चढ़ कर बोल रहे हैं.उत्तर की रसोई और ईशान क़े दोनों मंजिलों वाले शौचालय युक्त आवास क़े निवासी पुलिस अधिकारी पब्लिक में तो सौम्य व विनम्र अधिकारी क़े रूप में जाने जाते हैं (अब रिटायर्ड ),परन्तु घर में अब उनका नियंत्रण समाप्त हो गया है.उनके बेटे -बेटियां पिता को कुछ समझते ही नहीं हैं और कहते हैं कि ,पुलिसिया डंडा घर में नहीं चलेगा. इनकी पत्नी इन्हें देखते ही गुर्राने लगती हैं.अधिकारी महोदय भी अपनी शिक्षिका पत्नी को कुछ महत्त्व नहीं देते हैं.फलतः इनका घर भानुमती का कुनबा बनकर रह गया है. इस ईशान -दोष ने बेटे -बेटियों क़े विवाह में अनावश्यक बाधाएं खडी कीं (गुण मिल जाने क़े बावजूद लड़के वाले बाद में बिदक जाते थे और कभी इन्ही क़े किसी रिश्तेदार की बेटी से विवाह करके इन अधिकारी महोदय को धोखा खिला देते थे;उपाए करने क़े बाद ही उन बच्चों का विवाह हो सका ).यही नहीं ,इस ईशान -दोष ने अधिकारी महोदय को रक्त -चाप का मरीज़ बना कर रख दिया है.घर में घुसते ही यह चिडचिडे बन जाते हैं.इनकी शिक्षिका पत्नी को गठिया रोग ने घेर लिया है और अब घर क़े कार्यों से भी लाचार हो गई हैं और पुत्रियों फिर बहुओं पर निर्भर होकर रह गई हैं.इस परिवार की बुद्धि इतनी विकृत हो गई है कि,किसी भी प्रकार का उपचार व निराकरण भी सम्यक रूप से करने को कोई तैयार नहीं है और अपनी अकर्मण्यता को छिपाने हेतु भगवान् की मर्जी को ढाल बना लेते हैं.

"अंधविश्वास "से ग्रस्त लोग ज्योतिष और वास्तु को ठुकरा कर किस प्रकार अपना अहित कर लेते हैं,इसका एक और उदाहरण उक्त शिक्षक महोदय क़े सलाहकारों पर एक नज़र डालने से मिल जाएगा .इनके एक सलाहकार बचपन क़े सहपाठी और
अब दूरसंचार अधिकारी कहते हैं कि,आज विज्ञान क़े युग में ज्योतिष को केवल मूर्ख -लोग ही मानते हैं.(उन्हीं महोदय को अपनी पुत्री नीलम क़े विवाह की अडचने दूर करने हेतु मेरा परामर्श मानने पर मजबूर होना पड़ा और समुचित उपाय  करने क़े बाद ही उसका विवाह सम्पन्न हो सका ).इनके दूसरे सलाहकार चुनावों में परास्त एक छुट -भैय्ये नेता का कहना है-भाग्य में जो होना है वह हो कर रहता है और ज्योतिष का कोई लाभ नहीं है.उनके अपने निवास में जो वास्तु दोष हैं उनका उपचार वह करना नहीं चाहते और बेटे -बेटियों की बढ़ती उम्र क़े बावजूद शादी न होने से हताश हैं और  भगवान् को कोसते रहते हैं. "ऐसे  अन्धविश्वासी लोगों क़े लिए बस यही कहा जा सकता है -जो होना है ,सो होना है.फिर  किस बात का रोना है.."

ज्योतिष को अंधविश्वास का प्रतीक मानने वाली एक महिला राजनेता का रसोई घर तो पहले से ही द.-प .(S .W .)में था जो कलह की जड़ था ही;अब उसी क्षेत्र में नल -कूप भी लगवा लिया है.परिणामस्वरूप पहली छमाही  क़े भीतर ही ज्येष्ठ पुत्र को आपरेशन का शिकार होना पड़ गया.

इसी प्रकार कान्वेंट शिक्षा प्राप्त लोग प्रतीक चिन्हों का उपहास उड़ाते हैं जबकि छोटा सा चिन्ह भी गूढ़ वैज्ञानिक रहस्यों को समेटे हुए है.उदाहरण स्वरूप इस स्वास्तिक चिन्ह को देखें और इस मन्त्र का अवलोकन करें :-
            (कृपया स्कैन को इनलार्ज कर पढ़ें इसी आलेख का भाग है )


१ .चित्रा-२७ नक्षत्रों में मध्यवर्ती तारा है जिसका स्वामी इंद्र है ,वही इस मन्त्र में प्रथम निर्दिष्ट है.
२ .रेवती -चित्रा क़े ठीक अर्ध समानांतर १८० डिग्री पर स्थित है जिसका देवता पूषा है.नक्षत्र विभाग में अंतिम नक्षत्र होने    क़े कारण इसे मन्त्र में विश्ववेदाः (सर्वज्ञान युक्त )कहा गया है.
३ .श्रवण -मध्य से प्रायः चतुर्थांश ९० डिग्री की दूरी पर तीन ताराओं से युक्त है.इसे इस मन्त्र में तार्क्ष्य (गरुण )है.
४ .पुष्य -इसके अर्धांतर पर तथा रेवती से चतुर्थांश ९० डिग्री की दूरी पर पुष्य नक्षत्र है जिसका स्वामी बृहस्पति है जो मन्त्र क़े पाद में निर्दिष्ट हुआ है.

इस प्रकार हम देखते हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों में स्वास्तिक निर्माण व स्वस्ति मन्त्र का वाचन पूर्णतयः ज्योतिष -सम्मत है.धर्म का अर्थ ही धारण करना है अर्थात ज्ञान को धारण करने वाली प्रक्रिया ही धर्म है.इस छोटे से स्वस्ति -चिन्ह और छोटे से मन्त्र द्वारा सम्पूर्ण खगोल का खाका खींच दिया जाता है.  अब  जो लोग इन्हें अंधविश्वास कह कर इनका उपहास उड़ाते हैं वस्तुतः वे स्वंय ही अन्धविश्वासी लोग ही हैं जो ज्ञान (Knowledge ) को धारण नहीं करना चाहते.अविवेकी मनुष्य इस संसार में आकर स्वम्यवाद अर्थात अहंकार से ग्रस्त हो जाते हैं.अपने पूर्व -संचित संस्कारों अर्थात प्रारब्ध में मिले कर्मों क़े फलस्वरूप जो प्रगति प्राप्त कर लेते हैं उसे भाग्य का फल मान कर भाग्यवादी बन जाते हैं और अपने भाग्य क़े अहंकार से ग्रसित हो कर अंधविश्वास पाल लेते हैं.उन्हें यह अंधविश्वास हो जाता है कि वह जो कुछ हैं अपने भाग्य क़े बलबूते हैं और उन्हें अब किसी ज्ञान को धारण करने की आवश्यकता नहीं है.जबकि यह संसार एक पाठशाला है और यहाँ निरंतर ज्ञान की शिक्षा चलती ही रहती है.जो विपत्ति का सामना करके आगे बढ़ जाते हैं ,वे एक न एक दिन सफलता का वरन कर ही लेते हैं.जो अहंकार से ग्रसित होकर ज्ञान को ठुकरा देते हैं,अन्धविश्वासी रह जाते हैं.ज्योतिष वह विज्ञान है जो मनुष्य क़े अंधविश्वास रूपी अन्धकार का हरण करके ज्ञान का प्रकाश करता है.

शक  ओ  शुबहा -अब सवाल उस संदेह का है जो विद्व जन व्यक्त करते हैं ,उसके लिए वे स्वंय ज़िम्मेदार हैं कि वे अज्ञानी और ठग व लुटेरों क़े पास जाते ही क्यों हैं ? क्यों नहीं वे शुद्ध -वैज्ञानिक आधार पर चलने वाले ज्योत्षी से सम्पर्क करते? याद रखें ज्योतिष -कर्मकांड नहीं है,अतः कर्मकांडी से ज्योतिष संबंधी सलाह लेते ही क्यों है ? जो स्वंय भटकते हैं ,उन्हें ज्योतिष -विज्ञान की आलोचना करने का किसी भी प्रकार हक नहीं है. ज्योतिष भाग्य पर नहीं कर्म और केवल कर्म पर ही आधारित शास्त्र है.  




(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही तार्किक ढंग से आपने बात रखी है। अच्छी पोस्ट।
  2. बहुत ही अच्छी जानकारी मिली
  3. ज्योतिष के बारे में आपने बड़ी गूढ़ बातें बताई हैं ।
    इस निष्पक्ष लेखन के लिए बधाई ।
  4. बहुत पुख्ता जानकारी है .......शुक्रिया
  5. सार्थक एंव उपयोगी जानकारी,
    आपका आभार,

    नोट-

    ज्योतिष संबन्धित इन लेखों के पुनर्प्रकाशन की श्रंखला इसलिए शुरू की गई है क्योंकि 'रेखा' के राजनीति मे आने संबंधी मेरे विश्लेषण के 26 अप्रैल 2012 को सही सिद्ध होते ही 27-04-2012 को IBN 7 के एक कर्मचारी ब्लागर ने 'ज्योतिष' ,'हवन' आदि का मखौल उड़ाना और अपने पिछलग्गुओं से मेरे विरुद्ध प्रचार कराया जा रहा है। पढ़ने वाले ही यह निर्णय करें कि मेरा लेखन कितना गलत है?जैसा कि कारपोरेट पोंगापंथी कह रहे हैं।
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Thursday, September 20, 2012

फर्जीवाड़ा क्यों ?



 फर्जीवाड़ा क्यों समझने के लिए यह विवरण देखें-



मेरे इस लिंक पर प्रस्तुत लेख- http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/09/blog-post_14.html
पर 'एंटी वाइरस' नाम से किसी अज्ञात ने टिप्पणी दी जबकि टिप्पणी बाक्स के साथ स्पष्ट घोषणा है की,-


"ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है."
जब दिये गए प्रोफाईल को देखा और जो जानकारी मिली वहीं मैंने क्या सूचित किया और उसका क्या जवाब दिया गया(और वही फिर उस ब्लाग पर भी टिप्पणी मे लिखा गया) नीचे प्रस्तुत है-



2 comments:

  1. जनाब एंटी वाइरस साहब आप बिना इंसानी नाम के कमेन्ट लिख कर आए हैं अतः वह बेनामी हुआ और हम उसे नहीं छाप सकेंगे। आपको इंसानी नाम और हुलिये से लिखना होगा तभी छपेगा।
  2. विजय ! इंसानी नाम रखने से ही कोई इन्सान हो जाता है क्या ?
    बात तो बात है . इंसान कहे या कोई अन्य.
    आध्यात्मिक पुरुष कहने वाले को देखने के बजाय यह देखते हैं कि क्या कहा जा रहा है ?
    अपने कमेन्ट के दर्पण में देखो कि तुम अभी नाम व रूप में ही उलझे पड़े हो.
    तुम्हारे अन्दर से जो बाहर आता है, वह बताता है कि अपनी यात्रा में तुम कहाँ तक पहुंचे .

    आगे जाना हो तो यह न कहो कि मैं उचित तथ्य को सामने न आने दूंगा.


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स्पष्ट रूप से इस प्रकार बनाया गया प्रोफाईल और फर्जी नाम से दी गई टिप्पणियाँ 'बेनामी' के अंतर्गत आती हैं और यह ज़िद्द की जाये कि,ऐसी टिप्पणियों को छापा जाए तो उसके क्या निहितार्थ निकलते हैं बताने की आवश्यकता नहीं है।


27 अप्रैल 2012 से IBN 7 के एक पत्रकार अपने ब्लाग द्वारा और अपने 'ठग' एवं उसके 'जासूस' ब्लागर्स द्वारा मेरे विरुद्ध अभियान चलाये हुये हैं। उनका उद्देश्य पोंगा-पंडितवाद का संरक्षण करना,कारपोरेट घरानों के खेल को निर्बाध ढंग से सम्पन्न कराना है और चूंकि मैं 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' का विरोध और आलोचना करता  हूँ इसलिए उन्होने मुझे निशाना बना रखा है यह टिप्पणीदाता भी उसी खेल का उनका ही कोई मोहरा प्रतीत होता है। उक्त पत्रकार मुझे अपने परिचितों द्वारा फोन पर सपरिवार उड़ाने की धमकी  भी दे चुके हैं। अतः यदि हमारे यहाँ किसी के साथ कोई 'हादसा' होता है तो IBN 7 के वही पत्रकार और उनके लगगे-बझझे ही उत्तरदाई होंगे।

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Sunday, September 16, 2012

ज्योतिष की खिल्ली उड़ाना आसान है? -पुनर्प्रकाशन



शनिवार, 16 जून 2012

ज्योतिष की खिल्ली उड़ाना आसान है?

 (सिकन्दरा,आगरा मे अक्तूबर 1993 मे लिए सामूहिक चित्र से 'शालिनी माथुर' )
18 वर्ष बाद प्रथम बार लिपिबद्ध श्रद्धांजली-

04 जनवरी 1959 को साँय 06 बजे मैनपुरी मे जन्मी शालिनी की मूल जन्म पत्री तो कभी दिखाई ही नहीं गई ,बताया गया कि खो गई है परंतु जो हस्त-लिखित प्रतिलिपि हमारे यहाँ भेजी गई थी उसका विवरण यह है-

रविवार,कृष्ण पक्ष दशमी,पूष मास,विक्रमी संवत 2015,'स्वाती नक्षत्र'।
लग्न-मकर और उसमे 'शुक्र'।
तृतीय भाव मे- 'मीन' का केतू।
चतुर्थ भाव मे -मेष का मंगल।
नवे भाव मे-कन्या का राहू।
दशम भाव मे -तुला का चंद्र।
एकादश भाव मे-वृश्चिक के बुध व गुरु।
द्वादश भाव मे -धनु के सूर्य व शनि।

ग्रहों का विश्लेषण देने से पूर्व यह भी बताना ज़रूरी है कि शालिनी के पिताजी और के बी माथुर साहब (डॉ शोभा के पति) के पिताजी 'रेलवे' के साथी थे और उनही के माध्यम और उनकी सिफ़ारिश पर विवाह हुआ था। जन्म कुंडली डॉ रामनाथ जी ने मिलाई थी ,14 गुण मिलने पर विवाह नहीं हो सकता था अतः उन्होने 28 गुण मिल रहे हैं बताया था। शालिनी के भाई 'कुक्कू' के बी माथुर साहब के पुराने मित्र थे । इससे निष्कर्ष निकाला कि डॉ रामनाथ को खरीद लिया गया था और उन्होने हमारे साथ विश्वासघात किया था। इस धोखे के बाद ही खुद 'ज्योतिष' का गहन अध्यन किया और तमाम जन्म-कुंडलियों का विश्लेषण व्यवहारिक ज्ञानार्जन हेतु किया। (  रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावनालेख 19 अप्रैल 2012 को दिया था और 26 अप्रैल 2012 को वह 'राज्य सभा' मे नामित हो गईं। )

शालिनी के एंगेजमेंट के वक्त जब कुक्कू साहब की पत्नी मधू (जो के बी माथुर साहब की भतीजी भी हैं) ने गाना गाया तब के बी साहब ने स्टूल को तबला बना कर उनके साथ संगत की थी। इस एंगेजमेंट के बाद कुक्कू के मित्र वी बी एस टामटा ने टूंडला से इटावा जाकर शालिनी का हाथ देख कर उनके 35 वर्ष जीवित रहने की बात बताई थी और इसका खुलासा खुद शालिनी ने किया था। यह भी शालिनी ने ही बताया था कि कुक्कू उनको मछली के पकौड़े खूब खिलाते थे। कुक्कू अश्लील साहित्य पढ़ने के शौकीन थे और पुस्तकें बिस्तर के नीचे छिपा कर रखते थे। यह भी रहस्योद्घाटन खुद शालिनी ही ने किया था।

05 जनवरी 1981 से 10 दिसंबर 1981 तक शालिनी की 'गुरु' महादशा मे 'मंगल' की अंतर्दशा थी। यह काल भूमि लाभ दिलाने वाला था। इसी बीच 25 मार्च 1981 को एंगेजमेंट और 08 नवंबर 1981 को मेरे साथ विवाह हुआ । अर्थात विवाह होते ही वह स्वतः मकान स्वामिनी हो गई।

11 दिसंबर 1981 से 04 मई 1984 तक वह 'गुरु' महादशांतर्गत 'राहू' की अंतर्दशा मे थीं जो समय उनके लिए हानि,दुख,यातना का था। नतीजतन उनका प्रथम पुत्र 24 नवंबर 1982 को टूंडला मे प्रातः 04 बजे जन्म लेकर वहीं उसी दिन साँय 04 बजे दिवंगत भी हो गया।
इसी काल मे 1983 मे 'यशवन्त' का भी जन्म हुआ जो बचपन मे बहुत बीमार रहा है।

05 मई 1984से 07 मई 1987 तक का कार्यकाल  'शनि' की महादशांतर्गत 'शनि' की ही अंतर्दशा का उनके लिए लाभदायक था। परंतु   इसी काल मे 24/25 अप्रैल  1984 को मुझे होटल मुगल शेरेटन ,आगरा से सस्पेंड कर दिया गया क्योंकि मैंने इंटरनल आडिट करते हुये पौने 06 लाख का घपला पकड़ा था तो बजाए मुझे एवार्ड देने के घपलेबाजों को बचाने हेतु यही विकल्प था मल्टी नेशनल कारपोरेट घराने के पास। (यही कारण है कारपोरेट घरानों के मसीहा 'अन्ना'/'रामदेव' का मैं प्रबल विरोधी हूँ)।
लेकिन 01 अप्रैल 1985 से मुझे हींग-की -मंडी ,आगरा मे दुकानों मे लेखा-कार्य मिलना प्रारम्भ होने से कुछ राहत भी मिल गई।

26 फरवरी  1991 से 25 अप्रैल 1994 तक 'शनि' मे 'शुक्र' की अंतर्दशा का काल उनके लिए श्रेष्ठतम था। इस बीच मुझे कुछ नए पार्ट टाईम जाब भी मिलने से थोड़ी राहत बढ़ गई थी। इसी बीच 11 अप्रैल 1994 को लखनऊ के रवींद्रालय मे प्रदेश भाकपा के सपा मे विलय के  समय मैं भी आगरा ज़िला भाकपा के कोषाध्यक्ष पद को छोड़ कर सपा मे आ गया था। किन्तु नवंबर 1993 मे अपनी माँ के घर खाना खा कर शालिनी बुखार से जो घिरीं वह बिलकुल ठीक न हुआ।

26 अप्रैल 1994 से अक्तूबर तक 'शनि'महादशांतर्गत 'सूर्य'की अंतर्दशा उनके लिए सामान्य थी। किन्तु 16 जून 1994 को साँय 04 बजे से 05 बजे के बीच उनका प्राणान्त हो गया। 

इस समय के अनुसार शालिनी की जो मृत्यु कुंडली बनती है उसका विवरण यह है-

ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी,संवत-2051 विक्रमी,पूरवा फाल्गुनी नक्षत्र।
लग्न तुला और उसमे-गुरु व राहू।
पंचम भाव मे -कुम्भ का शनि।
सप्तम भाव मे-मेष के केतू व मंगल।
नवे भाव मे -मिथुन के सूर्य और बुध।
दशम भाव मे-कर्क का शुक्र।
एकादश भाव मे -सिंह का चंद्र।

अब इस मृत्यु कुंडली का ग्रह-गोचर फल इस प्रकार होता है -
गुरु भय और राहू हानि दे रहे हैं। शनि पुत्र को कष्ट दे रहा है। केतू कलह कारक है और 'मंगल' पति को कष्ट दे रहा है। बुध पीड़ा दे रहा है तो 'सूर्य' सुकृत का नाश कर रहा है और शुक्र भी दुख दे रहा है। जब सुकृत ही शेष नहीं बच रहा है तब जीवन का बचाव कैसे हो?

जन्म कुंडली मे 'बुध' ग्रह की स्थिति भाई-बहनों से लाभ न होने के संकेत दे रही है तो 'क्रोधी' भी बना रही है । 'केतू' की स्थिति अनावश्यक झगड़े मोल लेने की एवं पारिवारिक स्थिति सुखद न रहने की ओर संकेत कर रही है।  'ब्रहस्पति' की स्थिति पुत्रों से दुख दिलाने वाली है।



कैंसर -

हालांकि डॉ रामनाथ ने शालिनी को टी बी होने की बात कही थी  जो TB विशेज्ञ की जांच मे सिद्ध न हो सकी। 

बाद मे 1994 मे ही  डॉ रमेश चंद्र उप्रेती ने बताया था कि आँतें सूज कर लटक चुकी हैं एक साल इलाज से लाभ न हो तो आपरेशन करना पड़ेगा। उनकी मृत्यु के उपरांत जन्म-कुंडली की ओवरहालिंग से जो तथ्य ज्ञात हुये उनके अनुसार उनको आंतों का' कैंसर ' रहा होगा जिसे किसी भी मेडिकल डॉ ने डायगनोज नहीं किया। इसी लिए सही इलाज भी नही दिया। 
ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह का कुंडली के 'प्रथम'-लग्न भाव और 'अष्टम' भाव से संबंध हो तथा साथ ही साथ 'मंगल' ग्रह से 'शनि' का संबंध हो तो निश्चय ही 'कैंसर' होता है। 
शालिनी की जन्म कुंडली मे प्रथम भाव मे 'मकर' लग्न है जो 'शनि' की है। यह 'शनि' अष्टम  (सिंह राशि  )भाव के स्वामी 'सूर्य' के साथ द्वादश भाव मे स्थित है। द्वादश भाव (धनु राशि) का स्वामी ब्रहस्पति  एकादश भाव मे 'मंगल' की वृश्चिक राशि मे स्थित है। 

अनुमानतः 16-17 वर्ष की उम्र से शालिनी की आंतों मे विकृति प्रारम्भ हुई होगी जो मछली के पकौड़े जैसे पदार्थों के सेवन से बढ़ती गई होगी। चाय का सेवन अत्यधिक मात्रा  मे वह करती थीं जिससे आँतें निरंतर शिथिल होती गई होंगी। डॉ उप्रेती ने तले-भुने,चिकने पदार्थ और चाय से कडा परहेज बताया था फिर भी उनकी माता ने डॉ साहब के पास से लौटते ही मैदा की मठरी और एक ग्लास चाय उनको दी। इस व्यवहार ने ही रोग को असाध्य बनाया होगा।
मेडिकल विशेज्ञों की लापरवाही और खुद को उस वक्त ज्योतिष का गंभीर ज्ञान न होने के कारण ग्रहों की शांति या 'स्तुति' प्रयोग न हो सका। इसी कारण अब 'जन हित मे' स्तुतियों को सार्वजनिक करना प्रारम्भ किया है जिससे जागरूक लोग लाभ उठा कर अपना बचाव कर सकें। लेकिन अफसोस कि 'पूना' स्थित 'चंद्र प्रभा',ठगनी प्रभा' और 'उर्वशी उर्फ बब्बी' की तिकड़ी ब्लाग जगत मे भी मेरे विरुद्ध दुष्प्रचार करके लोगों को इनके लाभ उठाने से वंचित कर रही है। 
शालिनी अपने पुत्र यशवन्त की 'माँ' और 'माता' तो न बन सकीं किन्तु 'जननी' तो थी हीं। जिस प्रकार हम अपने बाबूजी और बउआ की मृत्यु की कैलेंडर तारीख को 'हवन' मे सात विशेष आहुतियाँ देते हैं उसी प्रकार शालिनी हेतु भी उन विशेष आहुतियों से उनकी 'आत्मा' की शांति की प्रार्थना करते हैं। किसी 'ढ़ोंगी' का पेट धासने  की बजाए वैज्ञानिक विधि से हवन करना हमे उचित प्रतीत होता है। 


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अधिक तो मैं नहीं जानता लेकिन मनोचिकित्सा विज्ञान और अपराधविज्ञान इस बात को मानता है कि पूर्णमा के दिन कई लोग आवेगातिरेकी हो जाते हैं. अपराध बढ़ जाते हैं. चंद्रमा के प्रभाव को सागर के ज्वार के रूप में तो देख सकते हैं. मानव शरीर में में भी 2/3 पानी की मात्रा है जिसमें एक ज्वार आता है. अमावस्या के दिन कई लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं. इसे भाटा कह सकते हैं.
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  2. आपके लेख को बहुत ही उत्सुकता से पढता हूँ .मेरे लिए यह बहुत ही अद्भुत अनुभव होता है ....बस इतना ही कहना चाहूँगा ...बधाई
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  3. बिना किसी विषय को जाने उसे कम भी क्यूँ आँका जाये ..... ? मुझे तो यह लगता है
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  4. maine aaj pahli baar aapke lekh ko pada bahut accha laga, adbhut laga...... ek baat aur janana chahti hoon ki ye lekh stya tha yaa kalpnik mera kahne ka matlab ye hai ki isme aaye naam sataya the yaa kalpnik... saadar
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    उत्तर


    1. सोनिया जी!

      न तो यह कोई लेख है न काल्पनिक। आपने ध्यान से देखा हो तो स्पष्ट है की वह मेरी पहली पत्नी (यशवन्त की जननी माँ )की जन्म कुंडली का विश्लेषण है। उसे आपने किस प्रकार काल्पनिक मानने की कल्पना की?






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Wednesday, September 5, 2012

रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना (पुनर्प्रकाशन)---विजय राजबली माथुर





बृहस्पतिवार, 19 अप्रैल 2012


रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा'
हिंदुस्तान,आगरा,03 जून 2007 मे प्रकाशित 'रेखा'की जन्म कुंडली 

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता 'जेमिनी' गनेशन ने उनकी माता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री पुष्पावल्ली से विधिवत विवाह नहीं किया था। उन्हें पिता का सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही पिता का धन ही प्राप्त हुआ। कुल-खानदान से भी लाभ नहीं मिला और समाज से भी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा। इतनी जानकारी पत्र-पत्रिकाओं मे छ्पी है। किन्तु ऐसा क्यों हुआ हम ज्योतिष के आधार पर देखेंगे।

धनु लग्न और कुम्भ राशि मे जन्मी रेखा घोर 'मंगली'हैं और उनके द्वादश भाव मे 'शुक्र'ग्रह स्थित है जिसने उन्हे परिवार व समाज से लाभ नहीं प्राप्त होने दिया है। उनके दशम भाव मे जो पिता,कर्म व राज्य का हेतु होता है -कन्या राशि का सूर्य है। इस भाव मे सूर्य की स्थिति उनकी माता और पिता के विचारों मे असमानता का द्योतक है। इसी सूर्य ने उनकी माता को उनके पिता से अलग रखा और इसी सूर्य ने उन्हें खुद को पिता,परिवार व कुल से लाभ नहीं मिलने दिया। तृतीय भाव मे चंद्र ने बैठ कर कुटुंब सुख को और कम किया तथा पति भाव-सप्तम मे बैठ कर 'केतू' ने पति-सुख से वंचित रखा। द्वादश भाव मे 'शुक्र' मंगल की वृश्चिक राशि मे स्थित है जो जीवन भर 'उपद्रव'कराने वाला है और इसी ने उन्हें व्यसनी भी बनाया।

लग्न मे बैठे 'मंगल' की दृष्टि ने वैवाहिक सुख तो नहीं मिलने दिया किन्तु कला-ज्ञान और धन की प्रचुरता उसी ने उपलब्ध कारवाई। लग्न मे ही बैठे 'राहू' ने उन्हें शारीरिक 'स्थूलता' प्रदान की थी जिसे उन्होने अपने प्रयासों से नियंत्रित कर लिया है। यही 'राहू'  उन्हें छोटी परंतु पैनी आँखें ,संकरा तथा अंदर खिचा हुआ सीना,चालाकी तथा ऐय्याशी भी प्रदान कर रहा है।

तृतीय भाव मे बैठा चंद्र 'रेखा' को अल्पभाषी,व मृदुल व्यवहार वाला भी बना रहा है जिसके प्रभाव से वह कम से कम बोल कर अधिक से अधिक कार्य करके दिखा सकी हैं। अष्टम भाव मे उच्च का ब्रहस्पति उन्हें दीर्घायु भी प्रदान कर रहा है तथा धनवान व स्वस्थ भी रख रहा है।

राज योग 

दशम भाव मे कन्या राशि का सूर्य 'रेखा' को 'राज्य-भंग ' योग भी प्रदान कर रहा है। इसका अर्थ हुआ कि पहले उन्हें 'राज्य-सुख 'और 'राज्य से धन'प्राप्ति होगी फिर उसके बाद ही वह भंग हो सकता है। लग्न मे बैठा 'राहू' भी उन्हें राजनीति-निपुण बना रहा है। एकादश भाव मे बैठा उच्च का 'शनि' उन्हें 'कुशल प्रशासक' बनने की क्षमता प्रदान कर रहा है। नवम  भाव मे 'सिंह' राशि का होना जीवन के उत्तरार्द्ध मे सफलता का द्योतक है। अभी वह कुंडली के दशम भाव मे 58 वे वर्ष मे चल रही हैं और आगामी जन्मदिन के बाद एकादश भाव मे 59 वे वर्ष मे प्रवेश करेंगी। समय उनके लिए अनुकूल चल रहा है।

राज्येश'बुध' की महादशा मे 12 अगस्त 2010 से 23 फरवरी 2017 तक की अंतर्दशाये भाग्योदय कारक,अनुकूल सुखदायक और उन्नति प्रदान करने वाली हैं। 24 फरवरी 2017 से 29 जून 2017 तक बुध मे 'सूर्य' की अंतर्दशा रहेगी जो लाभदायक राज्योन्नति प्रदान करने वाली होगी।

अभी तक रेखा के किसी भी राजनीतिक रुझान की कोई जानकारी किसी भी माध्यम से प्रकाश मे नहीं आई है ,किन्तु उनकी कुंडली मे प्रबल राज्य-योग हैं। जब ग्रहों के दूसरे परिणाम चरितार्थ हुये हैं तो निश्चित रूप से इस राज्य-योग का भी लाभ मिलना ही चाहिए। हम 'रेखा' के राजनीतिक रूप से भी सफल होने की मंगलकामना करते हैं।
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हिंदुस्तान,लखनऊ के 27-04-2012 अंक मे प्रकाशित सूचना-


शुभ समय ने अपना असर दिखाया और 'रेखा' जी को राज्य सभा मे पहुंचाया। हम उनकी सम्पूर्ण सफलता की कामना करते है और उम्मीद करते हैं कि वह 'तामिलनाडू' की मुख्य मंत्री पद को भी ज़रूर सुशोभित करेंगी।

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8 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रवारीय चर्चा-मंच पर

    आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

    charchamanch.blogspot.com
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  2. छोटी सी भूल- रेखा के पिता का सही नाम जेमिनी गणेशन है ना की शिवाजी गणेशन.
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  3. आपके संकेत के अनुसार शिवाजी के स्थान पर 'जेमिनी'किया जा रहा है।
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  4. मै रेखा जी फैन् हूँ और चाहता हूँ कि वे राजनीति में बढ़ चढ़ कर भाग ले..
    निश्चित रूप से सफल रहेगीं,....

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,

    WELCOME TO MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  5. "मै रेखा जी फैन् हूँ और चाहता हूँ कि वे राजनीति में बढ़ चढ़ कर भाग ले..
    निश्चित रूप से सफल रहेगीं,...." धीरेन्द्र जी जब आप ऐसा सोचते हैं तो कृपया दिग्विजय सिंह जी जो आप ही के प्रदेश और ब्रादरी के हैं उनसे कहें कि तमिलनाडू मे अपनी पार्टी मे 'रेखा 'जी को सक्रिय करें। मैंने यह लेख उनकी और राहुल जी की फेसबुक वाल पर लगा दिया था किन्तु कहने की स्थिति मे आप हैं।
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  6. आपकी भविष्यवाणी सफल हुई . रेखा अब राज्य सभा मै . आपको साधुवाद
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  7. शुभ समय ने aapkaa असर दिखाया :)


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नोट-'ज्योतिष'के लेखों के पुनर्प्रकाशन की श्रंखला इसलिए शुरू करनी पड़ी है क्योंकि भ्रष्ट सरमायेदार,पोंगा-पंथी,ढ़ोंगी,लोगों तथा कारपोरेट चेनल के सिपहसालारों के भरमावे पर निशुल्क ज्योतिषीय परामर्श ले चुके पूना प्रवासी ब्लागर,उसके जासूस और चापलूसों द्वारा मेरे विरुद्ध अनर्गल ,असत्य,आधारहीन एवं एहसानफरामोशी का तीव्र अभियान चलाया जा रहा है।  


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