Wednesday, October 2, 2019

वसुंधरा फाउंडेशन के तत्वाधान में "सुराज,स्वदेशी और महात्मा गांधी'' पर विचार गोष्ठी ------ विजय राजबली माथुर

समस्त फोटो सौजन्य से राकेश श्रीवास्तव साहब 

वसुंधरा फाउंडेशन के तत्वाधान में गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर दिनांक 01 अक्तूबर 2019 की साँय राष्ट्रीय पुस्तक मेला सभागार, मोतीमहल, लखनऊ   में   एक विचार गोष्ठी "सुराज,स्वदेशी और महात्मा गांधी'' विषय पर राम किशोर जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई जिसका कुशल संचालन राकेश श्रीवास्तव ने किया । प्रारम्भ में   राकेश श्रीवास्तव ने  संक्षेप में बताया कि , 12 अप्रैल 2010 को स्थापित वसुंधरा फाउंडेशन गांधी जी की अंतिम आदमी के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर कार्यरत है।जिसके द्वारा  बिना सरकारी सहायता के  सरकारी स्कूलों में शिक्षारत गरीब बच्चों की सहायता और पर्यावरण संरक्षण हेतु अभियान चलाये गए हैं। 
राकेश श्रीवास्तव जी ने बच्चों को प्रेरित करने वाला गांधी जी का एक प्रसंग विशेष रूप से उल्लेख किया। एक बार एक बच्चा गांधी जी को एक ही धोती में देख कर अपने घर से अपनी गुल्लक ला कर गांधी जी को देते हुये बोला ' बाबा इन पैसों से आप अपने लिए कपड़े बनवा लेना। ' इस पर गांधी जी ने उस बच्चे को बड़े प्यार से कहा ' बेटा मेरा परिवार बहुत बड़ा है जब सबके लिए कपड़े बन जाएँगे तब मैं भी बनवा लूँगा , यह तुम अपने पास ही रखो। ' 
(मेरे विचार से यह तथ्य देश के हर बच्चे को बताया जाना चाहिए )

गांधी जी के चित्र पर अध्यक्ष द्वारा माल्यार्पण के पश्चात सभागार में उपस्थित सभीजनों ने गांधी जी को अपनी पुष्पांजली अर्पित की उसके बाद मंचस्थ विद्व्जनो  ने दीप प्रज्वलित किया तत्पश्चात गोष्ठी का प्रारम्भ हुआ। 
सर्वप्रथम अखिलेश श्रीवास्तव ' चमन ' ने प्रभावोत्पादक रूप से विषय की व्याख्या प्रस्तुत की। उनके अनुसार ' सुराज ' के संबंध में गांधी जी की धारणा थी अपने लोगों द्वारा अपने लिए शासन व्यवस्था। इस दृष्टिकोण से आज स्वराज के बाद भी सुराज नहीं है क्योंकि समाज का अंतिम आदमी आज भी वहीं है जहां तब था। आज स्वराज एक भ्रम मात्र है क्योंकि आज परिस्थितियाँ पहले से भी बदतर हैं । अंग्रेजों के जमाने में न्याय त्वरित और वास्तविक होता था जो अब नहीं है तथा ' जस्टिस डिलेयड इज़ जस्टिस डिनाईड।
' स्वदेशी ' से गांधी जी का अभिप्राय कुटीर उद्योगों के विकास से था जिसके द्वारा अनेकों लोगों को रोजगार मिलने की संभावना होती है। इस व्यवस्था में परस्पर सौहार्द बना रहता था जिसके समाप्त होने से गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता गया है। 
महात्मा गांधी का अस्त्र - शस्त्र अहिंसा और सत्याग्रह थे । सत्य को दबाया और झुठलाया नहीं जा सकता तथा अहिंसा से भयंकर से भयंकर हथियार की धार को भी भोथरा किया जा सकता है और यही गांधी जी ने देश को आज़ादी दिलाने में प्रयोग किया। 
द्वितीय वक्ता के रूप में शीला पाण्डे ने बताया कि गांधी जी के दर्शन की आधार शिला 'न्याय ' थी। वह मनुष्य व मनुष्यता के उपासक थे। सत्य और अहिंसा भारत देश की ऐतिहासिक परंपरा में थे उनको ही गांधी जी द्वारा अपनाया गया था। गांधी जी के अनुसार आर्थिक संस्कृति ही जीवन संस्कृति का निर्माण करती है , इस प्रकार किसानी ही भारत की संस्कृति है। 
1932 में हुआ गोलमेज़ सम्मेलन यद्यपि असफल हो गया था परंतु फिर भी गांधी जी इस अवसर का लाभ उठा कर वहाँ अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे। एक तो जार्ज पंचम के उन पर अराजकता फैलाने के इल्जाम के जवाब में गांधी जी ने कहा मैं जनता को अहिंसा द्वारा सत्याग्रह करने के लिए प्रेरित कर रहा हूँ। दूसरे पत्रकारों द्वारा सलीके से कपड़े न धारण करने पर गांधी जी ने जवाब दिया मेरे हिस्से का कपड़ा आपके सम्राट ने पहन रखा है मेरे पास बचा ही नहीं है। 
इसी अवसर पर अभिनेता चार्ली चैपलिन ने गांधी जी से मुलाक़ात में पूछा कि आप मशीनों के प्रति शंकालू और विरोधी क्यों हैं। गांधी जी ने उनको जवाब दिया कि मशीन के हवाले एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का शोषण करता है वह उसके खिलाफ हैं । चार्ली चैपलिन का चार वर्ष बाद हृदय परिवर्तन हुआ और इसी समस्या पर दृश्यों को 1936 में बनी अपनी फिल्म ' माडर्न टाईम्स ' में शामिल किया। 
अर्चना श्रीवास्तव और विपिन मलीहाबादी  ने अपने -अपने काव्यात्मक उद्बोधन में गांधी महात्म्य पर प्रकाश डाला। 
ओ पी सिन्हा ने बताया कि अपनी पुस्तक ' हिन्द स्वराज ' में गांधी जी ने कहा है राजसत्ता दमन का यंत्र है। समाज सुधार के लिए सरकार की नहीं सुधारकों की भूमिका होती है। इस दृष्टि से गांधी जी ने 1-जाति-प्रथा का विरोध,2-हिन्दू -मुस्लिम एकता का  समर्थन,3-श्रम ( विशेष रूप से शारीरिक श्रम ) को  महत्व देने पर बल, 4-अपरिग्रह  और अहिंसा अपनाने पर ज़ोर दिया। 
विजय राजबली माथुर ने प्रोफेसर सिंहासन राय ' सिद्धेश ' को उद्धृत करते हुये कहा- 
' धरा जब जब विकल होती  ,        मुसीबत का समय आता   । 
 किसी न किसी रूप में कोई न कोई महामानव चला आता । । ' 
अपने कथ्य व कृत्य के कारण ही गांधी जी को महात्मा कहा गया है।  आज जब पूर्व वक्ता गणों ने इंगित किया है कि गांधी जी के विचारों का ठीक उल्टा हो रहा है।  लेकिन आज से 52 वर्ष पूर्व 1967 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशित एक लेख द्वारा डॉ सम्पूर्णानन्द ने कहा था - " हमारे देश में भी गांधी नाम का एक पागल पैदा हुआ था , संविधान के पन्नों पर उसका एक भी छींटा देखने को नहीं मिलेगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल तथा संविधानसभा के सदस्य रहे एक विद्वान का यह व्यंग्य नहीं उनके अपने प्रशासनिक अनुभवों से उपजी पीड़ा थी। 
1857 की सशस्त्र क्रान्ति की विफलता के चलते जिसमें भारतीयों ने ही अपने साथियों को कुचलने में विदेशियों का साथ दिया था गांधी जी ने ' सत्याग्रह ' व ' अहिंसा ' का मार्ग अपनाया और सामाजिक सौहार्द व एकता पर बल दिया जिसमें वह सफल भी रहे उनके आह्वान पर नर- नारी बगैर किसी भेदभाव के विदेशी शासन के विरुद्ध उठ खड़े हुये। इसीलिए एक कवि को कहना पड़ा -
'चल पड़े दो डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर । 
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि गड़ गए कोटि दृग उसी ओर । । '
मधूलिका श्रीवास्तव ने बताया राम राज्य गांधी जी की परिकल्पना थी जिससे उनका आशय था सत्ता का विकेन्द्रीकरण । असमानता को दूर करने के लिए 1905 के बंग - भंग के बाद गांधी जी ने अंग्रेजों के व्यापार पर चोट करने के लिए स्वदेशी का प्रयोग किया। भारत के किसानों से सस्ता कपास खरीद कर ब्रिटिश मिलों में बना मंहगा सूती कपड़ा बिकता था जिसकी बाज़ारों में गांधी जी ने होली जलवाई और तकली व चरखा चलवाया। 
अमिता दूबे ने वसुंधरा फाउंडेशन को यह कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बधाई दी। 
श्रीमती मीनू श्रीवास्तव जी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात रामकिशोर जी ने उपसंहार  करते हुये कहा अच्छी और सच्ची बात सुनने के लिए आज कोई तैयार नहीं है , आज गांधी जी के हत्यारे पूजे जा रहे हैं जो शर्मनाक है। 



 

~विजय राजबली माथुर ©