Friday, June 28, 2013

असल में मार्क्स के स्वयंभू ठेकेदारों से ही सबसे ज्यादा नुकसान मार्कसिज़्म को पहुंचा है ---प्रस्तुतकर्ता : विजय राजबली माथुर



25 june 2013 
 Sudhakar Reddy Suravaram
Tuesday
Follow the official facebook page of CPI for updates on progressive movements across India and the globe. Request you to post your suggestions for the party. Debates on issues will be more dynamic with your participation.


भाकपा महासचिव कामरेड सुधाकर रेड्डी की यह अपील पार्टी के अधिकृत पेज पर प्रसारित हुई है। लेकिन कुछ ऐसे भी पदाधिकारी हैं जो यह कहते हैं कि,फेसबुक,ट्विटर और ब्लाग्स से कुछ नहीं होता है। वस्तुतः जड़ बुद्धि और संकीर्ण मनोवृत्ति के लोग पार्टी को प्रगतिशील नहीं बनने देना चाहते हैं। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को गलत ठहरा कर ऐसे लोग खुद को खुदा तो समझ सकते हैं लेकिन पार्टी को क्षति पहुंचा रहे हैं। इसी प्रकार कुछ लोग खुद को पार्टी सिद्धांतों का पैरोकार बताते हैं,NRI हैं,विदेशी संचार माध्यमों के मुलाज़िम रहे हैं और फेसबुक पर ऐलान करते हैं कि जो 'नास्तिक' नहीं है वह कम्युनिस्ट नहीं हो सकता ,कम्युनिस्ट होने का मतलब ही 'नास्तिक' होना है। 

पार्टी और इसकी सदस्यता के संबंध में धारा 1 से 13 तक विषद विवेचन 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का संविधान' में दिया हुआ है। इसमें कहीं भी उल्लेख नहीं है कि कम्युनिस्ट होने के लिए 'नास्तिक' होना एक शर्त है। संविधान की प्रस्तावना के अंतिम अनुच्छेद में स्पष्ट कहा गया है-"पूंजीवाद से समाजवाद में संतरण के इस नए युग में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तथा इसके सभी सदस्यों का कर्तव्य है कि वे सफलता में दृढ़ विश्वास के साथ राष्ट्रीय जनवादी क्रान्ति के कर्तव्यों को,जैसा कि पार्टी के कार्यक्रम में बताया गया है,पूरा करने तथा जनता को समाजवाद व कम्युनिज़्म के पाठ पर अग्रसर करने के लिए सक्रियता से कार्य करें। " 





रायगढ़ की  इस कार्यशाला में बोलते हुये कामरेड अनिल  राजिम वाले ने कहा-" बुद्धिजीवी का यह कर्तव्य हो सकता है, होना चाहिए कि वह झंडे लेकर जुलूस में शामिल हो, और नारे लगाए ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ के, लेकिन मैं यह नहीं समझता हूँ कि इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगा देने से ही बुद्धिजीवी क्रांतिकारी हो जाता है। क्रांति की परिभाषा ये है - औद्योगिक क्रांति ने जो सारतत्व हमारे सामने प्रस्तुत किया कि क्या हम परिवर्तन को समझ रहे हैं! समाज एक परिवर्तनशील ढाँचा है, प्रवाह है।".................................................... 
" बुद्धिजीवियों की भूमिका इतिहास में घटी नहीं है, बल्कि बढ़ी है, उनकी संख्या बढ़ी है। विज्ञान और तकनीक के विकास में, अर्थतंत्र और अर्थशास्त्र के विकास ने हमारे सामने नए तथ्य लाए हैं। इन तथ्यों का अध्ययन करना बुद्धिजीवियों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। और इसीलिए विचारधारा की लड़ाई चलती है।"........................ 
 "पिछले दस वर्षों में भारत बदल चुका है। अगर हम प्रगतिशील हैं (प्रगतिशील वह है, जो सबसे पहले परिवर्तनों को पहचानता है) तो शर्त यह है कि इस परिवर्तन को हमें समझना पड़ेगा। यह परिवर्तन चीन में हो रहा है, नेपाल में हो रहा है, वेनेजुएला में, ब्राजील, क्यूबा में हो रहा है और योरोप और अमेरिका में तो हो ही रहा है। इसीलिए आज के आंदोलनों का चरित्र दूसरा है। आज मध्यम वर्ग बड़ी तेज़ी से बेहिसाब फैल गया है। इसलिए पुराने सूत्रों को ज्यों का त्यों लागू करना सही नहीं होगा। उसमें परिवर्तन, सुधार, जोड़-घटाव करना पड़ेगा।"................................................................................................................... 
" आज हमारे यहाँ कितने प्रगतिशील दैनिक अखबार निकलते हैं? कितने चैनल्स हैं, कितने ब्लॉग्स हैं? कितने ई-मेल और ई-स्पेस पर हमारा दखल है? हम प्रगतिशील साहित्य को कितने लोगों तक पहुँचा रहे हैं? या लोगों तक केवल त्रिशूल ही पहुँच रहा है? क्योंकि हमने जगह खाली छोड़ रखी है त्रिशूल पहुँचाने के लिए, कि पहुँचाओ भाई त्रिशूल! जतिवाद करने के लिए खुला मैदान छोड़ा हुआ है, इसकी जिम्मेदारी हमारे ऊपर भी है।"
http://iptanama.blogspot.in/2013/05/blog-post_31.html 

कामरेड अनिल राजिम वाले का यह विस्तृत व्याख्यान 'इप्टानामा'  पर लिपिबद्ध रूप से उपलब्ध है। लेकिन खुद को खुदा समझने वाले  जड़ मति लोग 'नास्तिक' होना कम्युनिज़्म की पहचान है जैसे संकीर्ण  कुतर्कों के सहारे 'त्रिशूल'वालों के लिए जगह खाली रखना चाहते हैं। 'तर्क' को समझने की बुद्धि उनमें है नहीं और तर्कों को 'मूर्खता'कह कर उपहास उड़ाते हैं। ऐसे लोगों के संबंध में एक प्रगतिशील पत्रकार ने 25 जूलाई 2012 को बताया था कि,"Asal men Marx ke swaymbhoo thekedaron se hee sabse jyada nuksan marxism ko pahuncha hai."

वस्तुतः कार्ल मार्क्स ने जिस सन्दर्भ में 'धर्म' की आलोचना की है और भगत सिंह ने जिस सन्दर्भ में 'नास्तिक' शब्द का प्रयोग किया है वह यह है कि इन दोनों महान विद्वानों ने तत्कालीन तथाकथित धर्म को वास्तविक समझ लिया है जो कि वस्तुतः 'अधर्म' है न कि 'धर्म' । हमें इन विद्वानों के 'मर्म' को समझते हुये हुये जनता को 'धर्म' का 'मर्म' समझाना होगा यदि हम सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो। अन्यथा इन कूप मंडूकों की बातों को तवज्जो देने का मतलब है कि विरोधियों के लिए खुला मैदान छोड़ देना। जो कामरेड रेड्डी और कामरेड राजिम वाले के प्रयासों पर पानी फेरने के समान ही होगा। 

इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

Thursday, June 27, 2013

मानवता के शत्रु हैं 'ज्योतिष' विरोधी ---विजय राज बली माथुर

इसी ब्लाग के माध्यम से समय-समय पर ज्योतिषीय विश्लेषणों के माध्यम से जनता को आगाह करने के प्रयास किए गए हैं जिनकी खिल्ली ढ़ोंगी-पोंगापंथियों ने  तो उड़ाई ही है क्योंकि उनकी लूट के मंसूबे बाधित होते हैं। लेकिन दुखद बात यह है कि खुद को साम्यवादी विद्वान और मार्क्स वाद का शिक्षक बताने वाले लोग भी ज्योतिष की खिल्ली वाहियात ढंग से उड़ाते हैं। ...............
ज्योतिष क्या है?क्यों है?कैसे है?का वर्णन कई-कई बार इसी ब्लाग में किया गया है कुछ के लिंक्स इसके द्वारा मिल जाएँगे- 
 http://vijaimathur.blogspot.in/2013/06/blog-post_25.html 

ऐसे लोगों के बारे में 25 जूलाई 2012 को एक पत्रकार महोदय ने सूचित किया था कि" Asal men Marx ke swaymbhoo thekedaron se hee sabse jyada nuksan marxism ko pahuncha hai."

अधार्मिक संगठन जो खुद को धार्मिक बताते हैं और हमारे प्रगतिशील विद्वान भी उनको ही धार्मिक बताते है भी 'ज्योतिष' का विरोध करते हैं क्योंकि यदि ज्योतिष के माध्यम से मानव अपना कल्याण करने में सक्षम हो जाये तो उनको 'चंदा' या 'दान' देना तो दूर 'घास' भी नहीं डालेगा। इन ढोंगियों को शोषक -लुटेरे उद्योगपति/कारपोरेट घराने आदि 'पुदीने की फुंगी' पर चढ़ाये रहते हैं।  इनके भ्रष्टाचार के संरक्षक तथाकथित नए-नवेले राजनेता बने रहते हैं जिनके संबंध में भाकपा,उ .प्र.के राज्य सचिव महोदय ने 27 जून 2013 को फेसबुक पर यह टिप्पणी दी है-
  DrGirish Cpi :और इसी भ्रष्टाचार के धन से केदारनाथ मन्दिर के निर्माण की होड़ लगी है,जनता आस्था के सागर में डूबी रहे और ये उसे लूटते रहें-एहि धर्म सनातनः |


 आइये पोंगापंथी ढोंगियों एवं स्वम्भू मार्क्स वादी विद्वानों की परवाह किए बगैर इन संकेतों पर विचार करें जो 'चंड-मार्तण्ड निर्णयसागर' पंचांग के पृष्ठ 36 से 39 पर प्रकाशित हैं। यह पंचांग दिसंबर 2012 में ही मैंने खरीद लिया था जिससे यह अनुमान लगाना सहज है कि कितना पहले ही इन ज्योतियों ने गणना द्वारा ज्ञात करके सार्वजनिक कर दिया था।( फिर भी फूहड़ किस्म के लोग प्रगतिशीलता/साम्यवाद की आड़ लेकर शोषकों-उतपीडकों को लाभ पहुंचाने हेतु 'ज्योतिष' की आलोचना करते नहीं थकते हैं। कभी 'ज्योतिष एक मीठा जहर' लेख लिख कर IBN7 का कारिंदा ब्लागर लोगों को गुमराह करता है तो कभी 'डायचे वेले' से पुरुसकृत वैज्ञानिक ब्लागर 'ज्योतिष' पर आग उगलता है और साम्यवादी विद्वान का चोला ओढ़े 'डायचे वेले' का पुराना कारिंदा उसी स्वर में अलग राग तांनता है। ): 

"चलन कलरवि भौम का,लक्षण कष्ट निवेश । 
यान खान घटना विविध,ऋतु विषम संदेश। । 
युति योग मंगल रवि,राजतंत्र अधिभार। 
मद सत्ता धारक सभी,तंत्र लोक अभिसार। । 
............................................................
चार पाँच ग्रह का बने,युति चार -गतिचार । 
वर्षा अथवा द्वंद से,आंदोलित संसार। । "

यह स्थिति 24 जून 2013 से 22 जूलाई 2013 के लिए घोषित की हुई है। सम्पूर्ण संसार की घटनाओं को तौल लें जिनमे अपने देश के हेलीकाप्टर,ट्रक,कारें,लोडर आदि की दुर्घटनाएँ भी साफ दिख जाएंगी। 

23 जूलाई से 21 अगस्त 2013 तक के संबंध में वर्णन देखिये: 
"मा पूर्णिमा भौमवती,सुखद नहीं प्रतिचार । 
ऋतु कोप की आमना,पशु जन कष्ट निहार। । 
क्रूर वार तेजी करें,मावस भौम कुसंग। 
मंदी से तेजी बने, वस्तु विविध प्रसंग। । "

इस माह में 06 अगस्त -मंगलवार को अमावस्या तथा 20 अगस्त 2013 -मंगलवार को रक्षा बंधन की पूर्णिमा है। बुधवार 21 अगस्त को सूर्योदय प्रातः 06-17 पर और पूर्णिमा की समाप्ती 07-14 पर है किन्तु ढ़ोंगी-पाखंडी 'दान-पुण्य'के नाम पर बुधवार को अपनी कमाई की खातिर पूर्णिमा मनाने को कहेंगे तो क्या ग्रहों की चाल को भी थाम सकेंगे? 

12 अगस्त 2013 को पंचमी/षष्ठी रहेंगी। उदय तिथि की षष्ठी का क्षय है। परिणाम जानिए : 

"शुक्ल पक्ष श्रावण कभी, किसी तिथि का नाश।
     शासी नेता आपदा,भावी तीनों मास। । " 

अर्थात यह स्थिति 20 नवंबर 2013 तक के लिए बहुत पहले ही  घोषित की जा चुकी है। अब बजाए सुरक्षात्मक उपाय करने के 'ज्योतिष' पर थोथा आरोप लगा कर इसकी आलोचना करने वालों की बुद्धि का उनके पैर के तलवों में निवास समझिए। जिसकी बुद्धि उसी के पैरों तले कुचली हुई हो उसकी बातों का क्या भरोसा?

    

     



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Friday, June 21, 2013

"कौन गिराए बम बच्चों पर ?कौन उजाड़े उनके घर ?? "- 'आन्या' --- प्रस्तुति : विजय राजबली माथुर

 प्रेरक एवं सम्मानीय बालिका-आन्या


यह हैं कु.आन्या (अंशु )सुपुत्री श्री प्रांशु मिश्रा। आन्या अभी चार वर्ष पूर्ण कर पांचवें वर्ष में चल रही हैं और 'ला मार्टीनियर कालेज' की 'प्रीपेटरी' कक्षा की छात्रा हैं। आन्या के दादाजी कामरेड अशोक मिश्रा जी  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में राष्ट्रीय -स्तर के जाने-माने वरिष्ठ नेता हैं और उत्तर प्रदेश भाकपा के राज्य सचिव भी रह चुके हैं। आन्या की दादी जी   कामरेड आशा मिश्रा जी भी पार्टी की राष्ट्रीय -स्तर की नेत्री हैं जो 'महिला फेडरेशन', उत्तर प्रदेश की महासचिव भी हैं।

'अमर उजाला' सिटी परिशिष्ठ ,लखनऊ-5 जून,2013


 उपरोक्त चित्र में अग्रिम पंक्ति में बाएँ से दूसरे बैठी हुई  आन्या की दादी जी 4 जून को सम्पन्न 'महिला उत्पीड़न विरोधी' धरने का नेतृत्व कर रही हैं और आन्या पीछे खड़ी हुई हैं। यह घरेलू माहौल का ही असर है कि नन्ही बालिका आन्या अपनी दादी जी के साथ-साथ महिलाओं के आंदोलनों में भाग लेती हैं। सबसे ऊपर चित्र में 'आन्या'धरने  को संबोधित करते हुये एक क्रांतिकारी गीत का पाठ कर रही हैं। कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : 

"कौन गिराए बम बच्चों पर  ?
कौन उजाड़े     उनके     घर   ?  
चलो पकड़ कर    लाएँ  उनको। 
मुर्गा अभी हम बनाएँ  उनको। । " 

हमारा सम्पूर्ण परिवार इस नन्ही बालिका के प्रति नत-मस्तक है। हम लोग आन्या की सर्वांगीण सफलता  एवं स्वस्थ-दीर्घायुष्य की मंगल - कामना करते हैं।

हमारे दृष्टिकोण से आन्या का व्यक्तित्व प्रेरक व सम्मान के योग्य है अन्य दूसरे  बच्चों को भी उनके अभिभावक यदि प्रेरित करें तो वे भी आन्या की भांति अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन हेतु आगे आ सकते हैं। इस बच्ची के जज़्बे को देखते हुये बच्चों की क्षमता का आंकलन करता हुआ यह गीत याद आ गया।



Tuesday, June 18, 2013

'हवन -विज्ञान' ---विजय राजबली माथुर

 कुछ लोग फेसबुक आदि पर उत्तराखंड,दिल्ली आदि में वर्षा-बाढ़ की तबाही से चिंता प्रकट कर रहे हैं किन्तु समय रहते बचाव के उपाय करना उन्ही लोगों को पसंद नहीं हैं। अभी 14 जून तक 'सूर्य' और 'मंगल' वृष राशि में थे जिस का भी प्रभाव रहा और इसके अलावा 8 मई शनिवार को 'अमावस्या' एवं 23 जून रविवार को 'पूर्णिमा' पड़ने का ही यह प्रभाव है। आजकल वैज्ञानिक 'हवन'-'यज्ञ'पद्धति को ठुकरा कर 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को धर्म के नाम पर महिमामंडित करने का यह प्राकृतिक पुरस्कार है। चाहे सहर्ष स्वीकार करें अथवा चिंतित होकर जब उपाय नहीं करेंगे तो पीड़ा तो होगी ही।
जब तक हवन पद्धति प्रचालन में रही प्राकृतिक प्रकोप नियंत्रण में रहे क्योंकि अब मनुष्य प्रकृति के स्थान पर 'जड़' की पूजा करता है तो प्रकृति की कृपा कहाँ से?कैसे हो?

 नीचे कुछ हाल के और कुछ पहले छ्पे समाचारों व चित्रों की स्कैन कापियाँ प्रस्तुत हैं जिनसे यह स्पष्ट है कि प्रकृति की मार कितनी संघातक होती है। वस्तुतः मानव जीवन के विकास की कहानी प्रकृति के साथ उसके संघर्षों की कहानी है। जहां-जहां प्रकृति ने राह दी वहीं-वहीं वह आगे बढ़ गया और जहां प्रकृति की विषमताओं ने रोका वहीं वह रुक गया। किन्तु दुर्भाग्य यह है कि अब मनुष्य खुद को प्रकृति का मालिक समझ बैठा है और प्रकृति के साथ भद्दा खिलवाड़ कर रहा है जिसका परिणाम हैं ये प्राकृतिक प्रकोप। इन सब का समाधान केवल और केवल 'हवन-यज्ञ' की वैज्ञानिक पद्धती को अपनाए जाने में है। एक बार फिर से इस महत्व का दोहराव कर रहा हूँ यह जानते हुये भी कि खुद को 'प्रगतिशील',वामपंथी,विज्ञान प्रेमी आदि-आदि घोषित करने वाले लोग इसका विरोध करके पोंगा-पंथ को संरक्षण प्रदान करेंगे।   

 




'हिंदुस्तान'-मुख्य पृष्ठ -18 जून 2013

हिंदुस्तान,11 मार्च,2013

हिंदुस्तान,19 फरवरी,2013

                                        यज्ञ  माहात्म्य

लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की।
जो वस्तु अग्नि मे जलाई,हल्की होकर वो ऊपर उड़ाई।
करे वायु से मिलान,जाती है रस्ता गगन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 1 । ।

फिर आकाश मण्डल मे भाई,पानी की होत सफाई।
वृष्टि होय अमृत समान,वृद्धि होय अन्न और धन की।
लिखा वेदों मे विधान,अद्भुत है महिमा हवन की। । 2 । ।

जब अन्न की वृद्धि होती है,सब प्रजा सुखी होती है।
न रहता दु : ख का निशान ,आ जाती है लहर अमन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 3 । ।

जब से यह कर्म छुटा है,भारत का भाग्य लुटा है।
'सुशर्मा'करते बयान सहते हैं मार दु :खन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 4 । ।

जनाब 'हवन' एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। कैसे? Material  Science (पदार्थ विज्ञान ) के अनुसार अग्नि मे जो भी चीजें डाली जाती हैं उन्हे अग्नि परमाणुओ (Atoms) मे विभक्त कर देती है और वायु उन परमाणुओ को बोले गए मंत्रों की शक्ति से संबन्धित ग्रह अथवा देवता तक पहुंचा देती है।

देवता=जो देता है और लेता नहीं है जैसे-अग्नि,वायु,आकाश,समुद्र,नदी,वृक्ष,पृथ्वी,ग्रह-नक्षत्र आदि।(पत्थर के टुकड़ों तथा कागज पर उत्कीर्ण चित्र वाले नहीं )। 

मंत्र शक्ति=सस्वर मंत्र पाठ करने पर जो तरंगें (Vibrations) उठती हैं वे मंत्र के अनुसार संबन्धित देवता तक डाले गए पदार्थों के परमाणुओ को पहुंचा देती हैं।

अतः हवन और मात्र हवन (यज्ञ ) ही वह पूजा या उपासना पद्धति है जो कि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक सत्य पर आधारित है। बाकी सभी पुरोहितों द्वारा गढ़ी गई उपासना पद्धतियेँ मात्र छ्ल हैं-ढोंग व पाखंड के सिवा कुछ भी नहीं हैं। चाहे उनकी वकालत प्रो . जैन अर्थात 'ओशो-रजनीश' करें या आशा राम बापू,मुरारी बापू,अन्ना/रामदेव,बाल योगेश्वर,आनंद मूर्ती,रवी शंकर जैसे ढ़ोंगी साधू-सन्यासी। 'राम' और 'कृष्ण' की पूजा करने वाले राम और कृष्ण के शत्रु हैं क्योंकि वे उनके बताए मार्ग का पालन न करके ढ़ोंगी-स्वांग रच रहे हैं। राम को तो विश्वमित्र जी 'हवन'-'यज्ञ 'की रक्षा हेतु बाल -काल मे ही ले गए थे। कृष्ण भी महाभारत के युद्ध काल मे भी हवन करना बिलकुल नहीं भूले। जो लोग उनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग 'हवन 'करना छोड़ कर उन्हीं की पूजा कर डालते हैं वे जान बूझ कर उनके कर्मों का उपहास उड़ाते हैं। राम और कृष्ण को 'भगवान' या भगवान का अवतार बताने वाले इस वैज्ञानिक 'सत्य ' को स्वीकार नहीं करते कि 'भगवान' न कभी जन्म लेता है न उसकी मृत्यु होती है। अर्थात भगवान कभी भी 'नस' और 'नाड़ी' के बंधन मे नहीं बंधता है क्योंकि,-

भ=भूमि अर्थात पृथ्वी।
ग=गगन अर्थात आकाश।
व=वायु।
I=अनल अर्थात अग्नि (ऊर्जा )।
न=नीर अर्थात जल।

प्रकृति के ये पाँच तत्व ही 'भगवान' हैं और चूंकि इन्हें किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसी लिए ये 'खुदा' हैं। ये पांचों तत्व ही प्राणियों और वनस्पतियों तथा दूसरे पदार्थों की 'उत्पत्ति'(GENERATE),'स्थिति'(OPERATE),'संहार'(DESTROY) के लिए उत्तरदाई हैं इसलिए ये ही GOD हैं। पुरोहितों ने अपनी-अपनी दुकान चमकाने के लिए इन को तीन अलग-अलग नाम से गढ़ लिया है और जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं। इनकी पूजा का एकमात्र उपाय 'हवन' अर्थात 'यज्ञ' ही है और कुछ भी कोरा पाखंड एवं ढोंग।

                                         यज्ञ महिमा

होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से।
जल्दी प्रसन्न होते हैं भगवान यज्ञ से। ।

1-ऋषियों ने ऊंचा माना है स्थान यज्ञ का।
करते हैं दुनिया वाले सब सम्मान यज्ञ का।
दर्जा है तीन लोक मे-महान यज्ञ का।
भगवान का है यज्ञ और भगवान यज्ञ का।
जाता है देव लोक मे इंसान यज्ञ से। होता है ...........

2-करना हो यज्ञ प्रकट हो जाते हैं अग्नि देव।
डालो विहित पदार्थ शुद्ध खाते हैं अग्नि देव।
सब को प्रसाद यज्ञ का पहुंचाते हैं अग्नि देव।
बादल बना के भूमि पर बरसाते हैं अग्निदेव।
बदले मे एक के अनेक दे जाते अग्नि देव।
पैदा अनाज होता है-भगवान यज्ञ से।
होता है सार्थक वेद का विज्ञान यज्ञ से। होता है ......

3-शक्ति और तेज यश भरा इस शुद्ध नाम मे ।
 साक्षी यही है विश्व के हर नेक काम मे।
 पूजा है इसको श्री कृष्ण-भगवान राम ने।
होता है कन्या दान भी इसी के सामने।
मिलता है राज्य,कीर्ति,संतान यज्ञ से।
सुख शान्तिदायक मानते हैं सब मुनि इसे। होता है .....

4-वशिष्ठ विश्वमित्र   और नारद मुनि इसे।
इसका पुजारी कोई पराजित नहीं होता।
भय यज्ञ कर्ता को कभी किंचित नहीं होता।
होती हैं सारी मुश्किलें आसान यज्ञ से। होता है ......

5-चाहे अमीर है कोई चाहे गरीब है।
 जो नित्य यज्ञ करता है वह खुश नसीब है।
हम सब मे आए यज्ञ के अर्थों की भावना।
'जख्मी'के सच्चे दिल से है यह श्रेष्ठ कामना।
होती हैं पूर्ण कामना--महान यज्ञ से । होता है ....  



भोपाल गैस कांड के बाद यूनियन कारबाईड ने खोज करवाई थी कि तीन परिवार सकुशल कैसे बचे? निष्कर्ष मे ज्ञात हुआ कि वे परिवार घर के भीतर हवन कर रहे थे और दरवाजों व खिड़कियों पर कंबल पानी मे भिगो कर डाले हुये थे। ट्रायल के लिए गुजरात मे अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 'प्लेग' के कीटाणु छोड़ दिये। इसका प्रतिकार करने हेतु राजीव गांधी सरकार ने हवन के पैकेट बँटवाए थे और 'हवन' के माध्यम से उस प्लेग से छुटकारा मिला था।अमेरिकी मनोवैज्ञानिक मिसेज पेट्रिसिया हेमिल्टन ने भोपाल के उप नगर (15 किलो मीटर दूर ) बेरागढ़ के समीप माधव आश्रम मे स्वीकार किया था कि'होम -चिकित्सा'अमेरिका,चिली और पोलैंड मे प्रासंगिक हो रही है। राजधानी वाशिंगटन (डी सी ) मे "अग्निहोत्र विश्वविद्यालय"की स्थापना हो चुकी है ।   बाल्टीमोर मे तो 04 सितंबर 1978 से ही लगातार  'अखंड हवन' चल रहा है और जो ओजोन का छिद्र अमेरिका के ऊपर था वह खिसक कर दक्षिण-पूर्व एशिया की तरफ आ गया है। लेकिन भारत के लोग ओशो,मुरारी और आशाराम बापू ,रामदेव,अन्ना हज़ारे,गायत्री परिवार जैसे ढोंगियों के दीवाने बन कर अपना अनिष्ट कर रहे हैं । परिणाम क्या है  एक विद्वान ने यह बताया है-


परम पिता से प्यार नहीं,शुद्ध रहे व्यवहार नहीं। 
इसी लिए तो आज देख लो ,सुखी कोई परिवार नहीं। । परम ... । । 

फल और फूल अन्य इत्यादि,समय समय पर देता है। 
लेकिन है अफसोस यही ,बदले मे कुछ नहीं लेता है। । 
करता है इंकार नहीं,भेद -भाव तकरार  नहीं। 
ऐसे दानी का ओ बंदे,करो जरा विचार नहीं। । परम ....। । 1 ।  ।

मानव चोले मे ना जाने कितने यंत्र लगाए हैं। 
कीमत कोई माप सका नहीं,ऐसे अमूल्य बनाए हैं। । 
कोई चीज बेकार नहीं,पा सकता कोई पार नहीं । 
ऐसे कारीगर का बंदे ,माने तू उपकार नहीं। । परम ... । । 2 । । 

जल,वायु और अग्नि का,वो लेता नहीं सहारा है। 
सर्दी,गर्मी,वर्षा का अति सुंदर चक्र चलाया है। । 
लगा कहीं दरबार नहीं ,कोई सिपाह -सलारनहीं। 
कर्मों का फल दे सभी को ,रिश्वत की सरकार नहीं। । परम ... । । 3 । । 

सूर्य,चाँद-सितारों का,जानें कहाँ बिजली घर बना हुआ। 
पल भर को नहीं धोखा देता,कहाँ कनेकशन लगा हुआ। । 
खंभा और कोई तार नहीं,खड़ी कोई दीवार नहीं। 
ऐसे शिल्पकार का करता,जो 'नरदेव'विचार नहीं। । परम .... । । 4 । । 

"सीता-राम,सीता-राम कहिए ---जाहि विधि रहे राम ताही विधि रहिए।"-यह निष्कर्ष 35 वर्ष आर एस एस मे रह कर और उससे दुखी होकर अलग होने वाले  सोरो निवासी आचार्य राम किशोर जी(पूर्व प्राचार्य ,संस्कृत महाविद्यालय,हापुड़)का है।  

आलसी और अकर्मण्य लोग राम को दोष दे कर बच निकलना चाहते हैं।  राम ने जो त्याग किया  और कष्ट देश तथा देशवासियों के लिए खुद व पत्नी सीता सहित सहा उसका अनुसरण करने -पालन करने की जरूरत है । राम के नाम पर आज फिर से देश को तोड़ने और बांटने की साजिशे हो रही हैं जबकि राम ने पूरे 'आर्यावृत ' और 'जंबू द्वीप'को एकता के सूत्र मे आबद्ध किया था और रावण के 'साम्राज्य' का विध्वंस किया था । राम के नाम पर क़त्लो गारत करने वाले राम के पुजारी नहीं राम के दुश्मन हैं जो साम्राज्यवादियो के मंसूबे पूरे करने मे लगे हुये हैं । जिन वेदिक नियमों का राम ने आजीवन पालन किया आज भी उन्हीं को अपनाए जाने की नितांत आवश्यकता है।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

Wednesday, June 12, 2013

एलोपैथी के दुष्परिणाम और बचाव का उपाय---विजय राजबली माथुर

हिंदुस्तान-लखनऊ-28/03/2012 
भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल) और क्योंकि प्रकृति के ये पाँच-तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं एवं इंनका कार्य  =G( सृष्टि-जेनरेट)+O(पालन-आपरेट)+D(संहार-डेसट्राय) होने के कारण ये ही गाड(GOD)हैं।
उपरोक्त स्कैन किया समाचार तो प्रतीक है एलोपैथी चिकित्सा के दुष्परिणामों पर प्रकाश डालने का। त्वरित राहत के नाम पर लोगों की भीड़ एलोपैथी चिकित्सा की ओर आकर्षित होती है और एलोपैथी चिकित्सक मजबूर रोगी का जम कर दोहन करते और अपने महल सजाते हैं। एक समय जर्मनी के डॉ हेनीमेन ने इस लूट से क्षुब्ध होकर एक नई चिकित्सा प्रणाली का आविष्कार किया था जिसे उनके नाम पर आज 'होम्योपैथी' के नाम से जाना जाता है। यह पद्धती हमारी 'आयुर्वेदिक' पद्धति के सादृश्य है। 

आयुर्वेद को पंचम वेद भी माना जाता है जो कि 'अथर्ववेद'पर आधारित है। आयुर्वेद में 'वात','कफ़','पित्त' को महत्व दिया जाता है जब तक ये शरीर को धारण करने के योग्य रहते हैं इनको 'धातु' कहा जाता है जब ये विकृत होने लगते हैं तब इनको 'दोष' और जब मलिन हो जाते हैं तब 'मल' कहा जाता है। 

'वायु' +'आकाश'-गगन तत्व = वात 
'भूमि'+'जल'तत्व= कफ़ 
'अग्नि' तत्व=पित्त 

'भगवान' के ये पांचों तत्व 'धातु' के रूप में 'सृष्टि व 'पालन'करते हैं तथा 'दोष' होकर 'मल'बन जाने पर संहार कर देते हैं। इसी लिए हमारे वैज्ञानिक ऋषियों ने 'हवन'='यज्ञ' का आविष्कार किया था। हवन या यज्ञ में जब जड़ी-बूटियों से निर्मित सामग्री को अग्नि मे डाला जाता है तो अग्नि अपने गुण के अनुसार डाले गए पदार्थों को परमाणुओं =एटम्स में विभाजित कर देती है एवं सर्वत्र व्यापक वायु उन परमाणुओं को सर्वत्र फैला देती है। इससे न केवल 'पर्यावरण' शुद्ध रहता है बल्कि मनुष्य स्वस्थ व दीर्घजीवी रहता है। ब्लड प्रेशर आदि जिन रोगों में घी खाने से परहेज करना बताया जाता है उन रोगों में भी 'हवन' पद्धति में घी के संस्कारित परमाणु नासिका के जरिये शरीर में प्रविष्ट होकर 'रक्त' में घुल कर शरीर को सबल बनाते हैं और 'हड्डियों' को मजबूती प्रदान करते हैं। यदि पहले की ही तरह 'बाल्यकाल' से ही हवन करने की आदत डाली जाये तो बुढ़ापे मे जाकर हड्डियों के कमजोर होने की नौबत ही नहीं आने पाये अतः 'फ्रेक्चर' आदि का सवाल ही न उठे। किन्तु आज कारपोरेट कल्चर में हवन संस्कृति को अपनाने को कोई तैयार ही नहीं है तब तो एलोपैथी चिकित्सकों द्वारा लूटे जाने के सिवा कोई दूसरा उपाय भी नहीं है।

Friday, June 7, 2013

पेरिन दाजी और जेनी मार्क्स ---विजय राजबली माथुर

कुछ विद्वानों का दृष्टिकोण है कि कम्युनिस्ट नेताओं एवं विद्वान अध्येताओं ने अतीत में अपने बारे में व्यक्तिगत रूप से कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया है अतः अब भी वही परंपरा कायम रहनी चाहिए। किन्तु अब कुछ नेताओं एवं अध्येताओं के बारे में उनके परिजन व अन्य विद्वजन सार्वजनिक रूप से प्रकाश डाल रहे हैं और मैं समझता हूँ कि ऐसा पहले ही किया जाना चाहिए था। कामरेड होमी दाजी के जीवन चरित्र पर उनकी जीवन संगिनी कामरेड पेरिन दाजी ने 'यादों की रोशनी में' पुस्तक की रचना की है जिसके विमोचन से संबन्धित सारिका श्रीवास्तव द्वारा प्रेषित विवरण  'पार्टी जीवन' में प्रकाशित हुआ था। -


मार्क्स का तप और त्याग  "हालांकि एक गरीब परिवार में जन्में और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा,परन्तु मार्क्स ने हार नहीं मानी,उन्होंने अपने कठोर तपी जीवन से गहन अध्ययन किया.समाज के विकास क्रम को समझा और भावी समाज निर्माण के लिए अपने निष्कर्षों को निर्भीकता के साथ समाज के सम्मुख रखा.व्यक्तिगत जीवन में अपने से सात वर्ष बड़ी प्रेमिका से विवाह करने के लिए भी उन्हें सात वर्ष तप-पूर्ण प्रतीक्षा करनी पडी.उनकी प्रेमिका के पिता जो धनवान थे मार्क्स को बेहद चाहते थे और अध्ययन में आर्थिक सहायता भी देते थे पर शायद अपनी पुत्री का विवाह गरीब मार्क्स से न करना चाहते थे.लेकिन मार्क्स का प्रेम क्षण-भंगुर नहीं था उनकी प्रेमिका ने भी मार्क्स की तपस्या में सहयोग दिया और विवाह तभी किया जब मार्क्स ने चाहा.विवाह के बाद भी उन्होंने एक आदर्श पत्नी के रूप में सदैव मार्क्स को सहारा दिया.जिस प्रकार हमारे यहाँ महाराणा प्रताप को उनकी रानी ने कठोर संघर्षों में अपनी भूखी बच्चीकी परवाह न कर प्रताप को झुकने नहीं दिया ठीक उसी प्रकार मार्क्स को भी उनकी पत्नी ने कभी निराश नहीं होने दिया.सात संतानों में से चार को खोकर और शेष तीनों बच्चियों को भूख से बिलखते पा कर भी दोनों पति-पत्नी कभी विचलित नहीं हुए और आने वाली पीढ़ियों की तपस्या में लीरहे.देश छोड़ने पर ही मार्क्स की मुसीबतें कम नहीं हो गईं थीं,इंग्लैण्ड में भी उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था.लाईब्रेरी में अध्ययनरत मार्क्स को समय समाप्त हो जाने पर जबरन बाहर निकाला जाता था।" http://krantiswar.blogspot.in/2012/05/blog-post_05.html

अभी हाल ही में एक विद्वान द्वारा जेनी मार्क्स द्वारा कार्ल मार्क्स को दिये योगदान के बारे में इस प्रकार वर्णन किया है जबकि पूर्व में मैंने भी महर्षि कार्ल मार्क्स से संबन्धित पोस्ट में उपरोक्त उद्धृण दिया था।- 
"वह जेनी ही थी जो धनी माता-पिता की पुत्री होने के बावजूद मार्क्स के साथ भीषण गरीबी और अभाव का जीवन जीती रही. कभी उफ् तक न की. खुद तंगहाली में रहते हुए वह बल्कि कदम-दर-कदम उसका हौसला बढ़ाती रही.
मार्क्स के लंदन के दिनों का उल्लेख जेनी ने इन शब्दों में किया है—

‘मैंने फ्रैंकफर्ट जाकर चांदी के बर्तन बेच दिए और कोलोन में फर्नीचर बेचना पड़ा. लंदन के महंगे जीवन में हमारी सारी जमा-पूंजी जल्द ही समाप्त हो गई. हमारा सबसे छोटा बच्चा जन्म से ही बीमार रहता था. एक दिन मैं स्वयं छाती के दर्द से पीड़ित थी कि अचानक मकान-मालकिन किराये के बकाया पाउंड मांगने के लिए आ धमकी. उस समय हमारे पास उसको देने के लिए कुछ भी नहीं था. वह अपने साथ दो सिपाहियों को लेकर आई थी. उसने हमारी चारपाई, कपड़े, बिछौने, दो छोटे बच्चों के पालने तथा दोनों लड़कियों के खिलौने तक कुर्क कर लिए. सर्दी से ठिठुर रहे बच्चों को लेकर मैं कठोर फर्श पर पड़ी हुई थी. अगले दिन हमें घर से निकाल दिया गया. उस समय पानी बरस रहा था और बेहद ठंड थी. पूरे वातावरण में मनहूसियत छायी हुई थी…’

और ऐसे विकट समय में दवावाले, राशनवाले और दूधवाला अपना-अपना बिल लेकर उसके सामने खड़े हो गए. उनका बिल चुकाने के लिए जेनी को बिस्तर आदि घर का बचा-कुचा सामान भी बेचना पड़ा. इसके बावजूद वह महान स्त्री मार्क्स को कदम-कदम ढांढस बंधाती रही. मार्क्स घर की गरीबी देखकर जब भी खिन्न होता, जेनी का जवाब होता था—

‘दुनिया में सिर्फ हम लोग ही कष्ट नहीं झेल रहे हैं.’http://omprakashkashyap.wordpress.com/2010/03/07/कार्ल-मार्क्स-वैज्ञानिक/#comment-168

हिंदुस्तान,लखनऊ,09 मई 2013
इसी वर्ष लखनऊ में कैफी/शौकत आज़मी के संबंध में उनके पुत्री/दामाद द्वारा सार्वजनिक रूप से नाटक-मंचन द्वारा प्रकाश डाला गया है। 

यह एक अच्छी परंपरा और चलन है कि अब महान कम्युनिस्ट  नेताओं  एवं विद्वानों के बारे में जनता को जानकारी हासिल हो सकेगी कि उनको किन संघर्षों से गुजरना पड़ा परंतु फिर भी वे झुके नही।   

इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

Sunday, June 2, 2013

चतुर्थ वर्ष में ब्लाग,कुछ अनुभूतियाँ ---विजय राजबली माथुर

यों तो ब्लाग-लेखन किस प्रकार प्रारम्भ हुआ इसका वर्णन 'विद्रोही स्व-स्वर में'हो चुका है-http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/05/blog-post_28.html 
परंतु कुछ लोगों के मन में उठ रहे अनेक संदेहों के निवारणार्थ निम्नाकित बातों को पुनः कहना चाहता हू :-
(1 )- पत्रकार स्व .शारदा पाठक ने स्वंय अपने लिए जो पंक्तियाँ लिखी थीं ,मैं भी अपने ऊपर लागू समझता हूँ :-


लोग कहते हम हैं काठ क़े उल्लू ,हम कहते हम हैं सोने क़े .
इस दुनिया में बड़े मजे हैं  उल्लू   होने   क़े ..

(2 ) ऐसा इसलिए समझता हूँ जैसा कि सरदार पटेल क़े बारदौली वाले किसान आन्दोलन क़े दौरान बिजौली में क्रांतिकारी स्व .विजय सिंह 'पथिक 'अपने लिए कहते थे मैं उसे ही अपने लिए दोहराता रहता हूँ :-

यश ,वैभव ,सुख की चाह नहीं ,परवाह नहीं जीवन न रहे .
इच्छा है ,यह है ,जग में स्वेच्छाचार  औ दमन न रहे ..


 आज से तीन वर्ष पूर्व इस ब्लाग का प्रारम्भ किया गया था मेरा उद्देश्य तो 'स्वांत: सुखाय,सर्वजन हिताय' ही था। किन्तु उच्च सरकारी पदों पर आसीन कुछ ब्लागर्स ने 'टिप्पणी' को विषय बना कर इसका मखौल भी खूब उड़ाया। आज फिर एक राजनीतिक ब्लागर् साहब की बात सामने आ चुकी है कि,बिना किसी महत्वाकांक्षा के कोई भी कोई कार्य नहीं करता है।एक और राजनीतिक ब्लागर साहब कहते हैं बिना किसी स्वार्थ के आज कल कोई भी किसी को एक ग्लास पानी को भी नहीं पूंछता है।  यदि कोई 'महत्वाकांक्षा'मुझे है तो वह यह है कि मृत्योपरांत लोग मुझे सद्कार्यों हेतु याद रखें। बस इससे अधिक किसी धन या मान प्राप्ति की महत्वाकांक्षा मुझे नहीं है। किसी स्वार्थ-वश मैं लेखन क्षेत्र में नहीं हूँ जैसा कि कुछ धृष्ट-भृष्ट-निकृष्ट धन-लोलुप  ब्लागर्स किए हुये है । 

परंतु पता नही क्यों लोग अपने जैसा ही मुझे भी समझते हैं। मैं खुद को भीड़ में शामिल करके 'भेड़-चाल'का हिस्सा नहीं बनना चाहता। मेरा लेखन इस तथ्य का साक्षी है। मैं 2+2 =4 ही कहता हूँ इसे पौने चार या सवा चार कहने की चालबाजी मैं नहीं कर सकता जैसा की अक्सर लोग करते और फिर फँसते हैं।  

1972 में नौकरी शुरू करने के बाद उस संपर्क के माध्यम से मेरठ में एक स्थानीय साप्ताहिक पत्र में मेरे लेख 1973 से ही छ्प रहे थे। फिर 1980 से आगरा के एक साप्ताहिक पत्र में लेख छ्पते रहे, जिसमें बाद में मुझे पहले सहायक सम्पादक और फिर उपसंपादक की हैसियत भी दी गई। दूसरे साप्ताहिक पत्रों ने भी लेख मुझसे लेकर छापे और इनके आधार पर वैश्य समुदाय की एक त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादक ने  जातिसूचक शब्द हटा कर  मुझे उपसंपादक की हैसियत से उसमें मुझे मेरे लेखन के आधार पर ही जोड़ा था जिनसे कोई पूर्व परिचय भी न था। 

लेकिन जब दो राजनीतिक ब्लागर्स अपनी विपरीत राय देते हैं तो वह वैसे ही अंनजाने में कुछ नहीं कहते हैं। वस्तुतः शुरू-शुरू से ही हमारी छोटी भांजी जो अब पूना में बस गई है ने ब्लाग्स में प्राप्त टिप्पणियों के माध्यम  से टिप्पणी दाताओं की प्रोफाईल खोजते-खोजते कुछ ब्लागर्स को चुना और उसके पिता हमारे बहनोई साहब ने उन ब्लागर्स को हमारे विरुद्ध उकसाया। दो वर्ष पूर्व तक उनकी कारगुजारियाँ छिपी रहीं और घरेलू रिश्ता भी चलता रहा। किन्तु अब वह स्थिति नहीं है। वे लोग मेरे साथ-साथ यशवन्त को भी तबाह करना चाहते हैं और पूनम तो शुरू से ही उनके निशाने पर रही हैं। बल्कि इसीलिए पटना से संबन्धित श्रीवास्तव ब्लागर (जो अब पूना प्रवासी है)का चयन किया गया था। दरियाबाद और पटना से संबन्धित श्रीवास्तव ब्लागर्स ने ही ब्लाग जगत में हमारे विरुद्ध लामबंदी कर रखी है। इन ब्लागर्स  ने अपने रिश्ते व संपर्कों के आधार पर राजनीतिक ब्लागर्स को गुमराह कर रखा है जो वे अनर्गल राय प्रकट करते हैं। छोटे मियां तो छोटे मियां बड़े मियां सुभान अल्लाह की तर्ज़ पर एक दूसरे दल के प्रादेशिक राजनेता  श्रीवास्तव साहब जो दरियाबाद  से संबन्धित ब्लागर के रिश्तेदार भी हैं और उनके भाईयों के मोहल्लेदार भी ने तो हद ही कर दी कि यशवन्त से मुफ्त या कन्सेशनल काम करवाते हुये भी हमारे परिवार के तीनों सदस्यों पर नाहक तोहमत भी लगा दी। आस-पास के वकीलों और अपने रिशतेदारों को हमारी खुफियागिरी करने के लिए तैनात कर दिया। जबकि पूना प्रवासी ब्लागर की भांति ही (जिसने चार-चार जन्मपत्रियों का निशुल्क विश्लेषण प्राप्त किया था) यह साहब भी दो जन्मपत्रियों का मुझसे निशुल्क विश्लेषण प्राप्त कर चुके हैं  तब भी एहसान फरामोशी की इंतिहा कर दी ,अंततः मुझे अपने घर  पर उनके आने को प्रतिबंधित ही करना पड़ा है। 

अध्यन-लेखन का बचपन से शौक होने के कारण ब्लाग्स के माध्यम से लेखन जारी रखे हुये हूँ जिस आधार पर कुछ सार्वजनिक सहयोग की भी मुझसे अपेक्षा की गई है और मैंने निस्वार्थ भाव से उसे सहर्ष स्वीकार भी कर लिया है। हो सकता है कि इससे मेरा निजी लेखन कुछ प्रभावित हो किन्तु समाप्त नहीं होगा,इस ब्लाग के चतुर्थ वर्ष में प्रवेश के अवसर पर आज मेरा यही संकल्प है। 


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