दूसरों की हिफाजत के लिए 24 घंटे सजग रहने वाले पुलिस कर्मियों की पीड़ाओं का भी आकलन होना चाहिए।
21 October 1959 का दिन पुलिस के लिए सर्वाधिक ऐतिहासिक महत्व का है,जब लद्दाख की सीमा पर स्थित भारतीय पुलिस के 20 जवानों की एक टुकडी पर चीन की सेना ने घात लगाकर हमला किया था जिसमें सीआरपीएफ के सब इन्स्पेक्टर करमसिंह और उसके साथियों ने पूरी बहादुरी से मुकाबला किया और 10 पुलिस के जवानों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी।
इसी स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए उनके शहादत को श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतू 21 अक्टूबर को पूरे देश मे पुलिस शहीद दिवस मनाया जाता है।
21 Oct.1959 से आज तक लगभग 35000 से ज्यादा पुलिस कर्मी शहीद हुए है।
पुलिस हमारी आंतरिक सुरक्षा की पहली दीवार है।जब भी कोई आतंकी या नक्सली हमला हो या संप्रदायिक दंगे या लूटपाट की घटनाएं, हिसंक भीड से जानमाल की हिफाजत की बात हो या हमला चाहे देश की संसद पर हो,पठानकोट और उड़ी के हमले हों या वीरप्पन की गोलियों से, स्वार्थी नक्सलियों पर लगाम लगाते समय न जाने कितने पुलिस वाले शहीद हुए हैं।
अगर आतंकवाद और नक्सलवाद पर देश की सेना और पुलिस ने अपनी बहादुरी से नियंत्रण रखा है तो इनका श्रेय सेना और पुलिस के जवानों को ही.... मिलना चाहिए। हर रोज ड्यूटी पर इस देश मे पुलिस कर्मी शहीद होते है, बहुत कम होती है वे आंखें, जो नम होती है। इस देश के लिए दी गयी शहादत कमतर नहीं है,और शहादत मे फर्क भी नहीं किया जाना चाहिए।
सरकारी कार्यालय मे मात्र पुलिस थाना ही ऐसा भवन है, जिसके नसीब मे न तो सुबह और न ही शाम को ताला होता है।
साल के 365 दिन 24 घंटे ड्यूटी पर माने जाने वाले पुलिस कर्मी के लिए न तो छुट्टी का दिन मुकर्रर है और न ही ड्यूटी के घंटे।पुलिस की दीवाली इसी में है कि लोगों के दियों की रोशनी न बुझे।
पुलिस की होली भी इसी में है कि लोगों के रंग में खलल न पडे।
किंतु शायद ही कहीं कोई थाने मे धन्यवाद देने आता हो।
अगर कहीं छोटी-सी भी घटना या दुर्घटना हो जाए तो लोग आसमान सिर पर उठा लेते हैं। पुलिस सर्वाधिक विषम परिस्थितियों मे काम करती है,लेकिन उसे बदले मे चारों तरफ से ताने, उपहास, अपमान और आलोचना ही झेलने पडते हैं।
दूसरों की हिफाजत के लिए 24 घंटे सजग रहने वाले पुलिस कर्मियों की पीड़ाओं का भी आकलन होना चाहिए।
''बंद हो थाने के पट,ऐसा कभी होता नहीं, शहर सोए चैन से,बस इसलिए सोता नहीं।कर्मपथ में है मिले, मुझको मगर कांटे बहुत, आदमी हूं कैसे कह दूं,मैं कभी रोता नहीं।''
शहीद पुलिस जन को सादर श्रद्धा सुमन अर्पण।
साभार :
https://www.facebook.com/shekhar.vk/posts/1467431093272318
~विजय राजबली माथुर ©
VK Shekhar
21 October 1959 का दिन पुलिस के लिए सर्वाधिक ऐतिहासिक महत्व का है,जब लद्दाख की सीमा पर स्थित भारतीय पुलिस के 20 जवानों की एक टुकडी पर चीन की सेना ने घात लगाकर हमला किया था जिसमें सीआरपीएफ के सब इन्स्पेक्टर करमसिंह और उसके साथियों ने पूरी बहादुरी से मुकाबला किया और 10 पुलिस के जवानों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी।
इसी स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए उनके शहादत को श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतू 21 अक्टूबर को पूरे देश मे पुलिस शहीद दिवस मनाया जाता है।
21 Oct.1959 से आज तक लगभग 35000 से ज्यादा पुलिस कर्मी शहीद हुए है।
पुलिस हमारी आंतरिक सुरक्षा की पहली दीवार है।जब भी कोई आतंकी या नक्सली हमला हो या संप्रदायिक दंगे या लूटपाट की घटनाएं, हिसंक भीड से जानमाल की हिफाजत की बात हो या हमला चाहे देश की संसद पर हो,पठानकोट और उड़ी के हमले हों या वीरप्पन की गोलियों से, स्वार्थी नक्सलियों पर लगाम लगाते समय न जाने कितने पुलिस वाले शहीद हुए हैं।
अगर आतंकवाद और नक्सलवाद पर देश की सेना और पुलिस ने अपनी बहादुरी से नियंत्रण रखा है तो इनका श्रेय सेना और पुलिस के जवानों को ही.... मिलना चाहिए। हर रोज ड्यूटी पर इस देश मे पुलिस कर्मी शहीद होते है, बहुत कम होती है वे आंखें, जो नम होती है। इस देश के लिए दी गयी शहादत कमतर नहीं है,और शहादत मे फर्क भी नहीं किया जाना चाहिए।
सरकारी कार्यालय मे मात्र पुलिस थाना ही ऐसा भवन है, जिसके नसीब मे न तो सुबह और न ही शाम को ताला होता है।
साल के 365 दिन 24 घंटे ड्यूटी पर माने जाने वाले पुलिस कर्मी के लिए न तो छुट्टी का दिन मुकर्रर है और न ही ड्यूटी के घंटे।पुलिस की दीवाली इसी में है कि लोगों के दियों की रोशनी न बुझे।
पुलिस की होली भी इसी में है कि लोगों के रंग में खलल न पडे।
किंतु शायद ही कहीं कोई थाने मे धन्यवाद देने आता हो।
अगर कहीं छोटी-सी भी घटना या दुर्घटना हो जाए तो लोग आसमान सिर पर उठा लेते हैं। पुलिस सर्वाधिक विषम परिस्थितियों मे काम करती है,लेकिन उसे बदले मे चारों तरफ से ताने, उपहास, अपमान और आलोचना ही झेलने पडते हैं।
दूसरों की हिफाजत के लिए 24 घंटे सजग रहने वाले पुलिस कर्मियों की पीड़ाओं का भी आकलन होना चाहिए।
''बंद हो थाने के पट,ऐसा कभी होता नहीं, शहर सोए चैन से,बस इसलिए सोता नहीं।कर्मपथ में है मिले, मुझको मगर कांटे बहुत, आदमी हूं कैसे कह दूं,मैं कभी रोता नहीं।''
शहीद पुलिस जन को सादर श्रद्धा सुमन अर्पण।
साभार :
https://www.facebook.com/shekhar.vk/posts/1467431093272318
~विजय राजबली माथुर ©