Wednesday, February 23, 2011

सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्..

यह हमारी वह वैदिक प्रार्थना है जिसमे संसार के प्रत्येक प्राणी -मात्र के कल्याण की कामना की गयी है,जैसा कि इसके भावानुवाद से स्पष्ट ही है-

सब का भला करो भगवान् ,सब पर दया करो भगवान् .
 सब पर कृपा करो भगवान् ,सब का सब विधि हो कल्याण..
 हे ईश सब सुखी हों ,कोई न हो दुखारी .
सब हों निरोग भगवन ,धन-धान्य के भंडारी..
सब भद्र भाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों.
दुखिया न कोई होवे ,सृष्टि में प्राण धारी..

अनादिकाल से हम भारतीय बिना किसी देश-काल के भेद-भाव के संसार के समस्त प्राणियों का भला चाहते रहे हैं.यह हमारी परंपरा बन गयी थी.मथुरा  के आर्य भजनोपदेशक श्री विजय सिंह जी यह प्रवचन देते रहे हैं-

जो निर्बल निर्धन भाई हैं,हरिजन मुस्लिम ईसाई हैं .
इस देश के सभी सिपाही हैं,सब एक राह के राही हैं..
                          समता का सूर्य उगाना है.
वेदों को पढ़े पढ़ाएंगे ,यज्ञों को करें करायेंगे.
तप, दान शील अपनाएंगे,ऋषियों के नियम निभायेंगे.
बन 'विजय'वीर दिखलाना है..

अब जरा गौर फरमाइए इस प्रोफाईल पर -



यह सज्जन उस भारत सरकार के उच्चाधिकारी हैं जिसके राष्ट्रीय संविधान में देश को 'धर्मनिरपेक्ष ' घोषित किया गया है.यह महाशय खुद को '...............' का अलमबरदार घोषित किये हुए हैं और निर्बाध सरकारी सेवा में डटे हुए हैं. कोई इनकी संविधान विरोधी घोषणा पर कारवाई करने वाला नहीं है.इनके विभाग की मंत्री धर्म-निरपेक्ष पार्टी की नेता हैं.यह सज्जन महिलाओं /नारियों के प्रति घोर उपेक्षा भाव रखते हैं,जैसा कि
इन्होने 'सीता का विद्रोह' पर अपनी टिप्पणी से उजागर किया है.इन्हें सीता का स्वाभिमान तथा राष्ट्र -भक्ति बुरी तरह से अखर गयी है जो इनकी शब्दावली से स्पष्ट है.यह पता नहीं किस संस्कृति की बात करते हैं जो इस देश की नहीं है.वैदिक संस्कृति में सारे  विश्व को एक माना गया है जबकि यह साम्राज्यवादी कुत्सित षड्यंत्र से ग्रसित दुर्भावना को सर-माथे पर बिठाए हुए हैं.ऐसे लोगों ने ही देश को धर्म,जाति,सम्प्रदाय आदि विभिन्न खेमों में बाँट रखा है और देशवासियों को शोषण,उत्पीडन ,भ्रष्टाचार ,मंहगाई आदि का शिकार बना रखा है.आज से चौबीस वर्ष पूर्व अर्थात २२फरवरी १९८७ के 'मुक्ति संघर्ष'में शमीम आजमी की यह कविता छपी थी-

"बचाओ भारत,बदलो भारत"
जात धर्म के नाम पे हमको दुश्मन ने ललकारा है 
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है .
          भ्रष्टाचार बढ़ा जाता है पूंजीवादी शासन में
         होती है सरे -आम मिलावट दूध और राशन में
        अगली सदी की बात है राजीव गांधी के भाषण में 
भ्रष्ट व्यवस्था ने जनता के पेट में घूँसा मारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.
       कितना लम्बा कितना मंहगा है इन्साफ अदालत का
      मुंसिफ को एहसास नहीं है मजबूरों की हालत का 
      क्या होगा इन्साफ यहाँ ,जब होगा काम तिजारत का

गर्दिश में इस देश का यारों जैसे आज सितारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.
      मंदिर-मस्जिद के बारे में आज भी होते झगडे हैं 
     भ्रष्ट व्यवस्था भ्रष्ट प्रशासन के यह सारे रगड़े हैं
    धर्म,सियासत है जिनकी,वो अक्ल से लूले लंगड़े हैं 
देश के टुकड़े-टुकड़े करने का यह कोई इशारा है 
 बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है 
खुशहाली के दुश्मन देखो सरहद के उस पार खड़े हैं
भारत को कमजोर बनाने की खातिर तैयार खड़े हैं
हमला करने की नीयत से लेकर वो हथियार खड़े हैं
लेकिन आंच न आने देंगे ,देश ये जान से प्यारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.
          भाई के हाथों भाई का खून न अब हम होने देंगे
         अब न किसी माँ की आँखों को हरगिज नम होने देंगे
        हमको इस धरती की कसम है अब न सितम होने देंगे
गौर से सुन लें अमन के दुश्मन,ये ऐलान हमारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है .
       आओ हम विश्वास जगायें,एक नया माहौल बनायें 
      देश की उन्नति कैसे होगी जनता को वह बात बताएं
     सीने में हर छात्र -युवा के परिवर्तन की आग जलाएं

देकर खून शहीदों ने कैसे धरती को संवारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.


इस ब्लाग के माध्यम से भारतीय -राष्ट्रीय संस्कृति के तहत लोगों से जागरूक रह कर समता -आधारित समाज के निर्माण हेतु कार्य-व्यवहार की अपेक्षा की जाती रही है,इसी श्रंखला में पूर्व घोषित आश्वासन के अनुसार 'सीता का विद्रोह'जो ब्रह्मपुत्र समाचार ,आगरा के ३१ जूलाई-०६ अगस्त २००३ अंक में पूर्व प्रकाशित  था  (स्कैन कापी 'कलम और कुदाल' में)यहाँ प्रस्तुत किया गया था .उस का तीव्र विरोध करने वाले और उसे मूर्खता पूर्ण कथा कहने वाले सरकारी शल्य -चिकित्सक की विचार-धारा के लोग एक और जिस  बात  पर हो-हल्ला मचाते हैं वह भी देश-द्रोही है ,जानिये कैसे?:-


धारा ३७० का महत्त्व


जब-जब चुनाव होते हैं अथवा जब-जब मजहबी उन्माद उठता है कुछ ख़ास बुद्धिजीवी और राजनेता भारतीय संविधान की धारा३७० को समाप्त करने की बात करते हैं यह जानते हुए भी कि यह जम्मू-कश्मीर को भारत में बनाये रखने की एक-मात्र गारन्टी है .विश्व हिन्दू परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.कर्ण सिंह  के  पिता महाराजा हरी सिंह ने कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र (अंग्रेजों की शह पर)घोषित कर दिया था.तब उन्हीं के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला  (जो पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला के पिता थे और वर्तमान मुख्यमंत्री के बाबा).ने भारतीय उप-प्रधानमंत्री सरदार पटेल से सहायता प्राप्त कर महाराजा हरी सिंह को भारत में शामिल होने पर दबाव डाला था. उडीसा के वर्तमान मुख्यमंत्री के पिता श्री विजयेन्द्र उर्फ़ बीजू पटनायक हवाई जहाज चला कर ले गए थे और उसमें गए थे तत्कालीन गृह-सचिव किदवई सा :जो श्री रफ़ी अहमद किदवई के भाई थे.किदवई सा :और शेख अब्दुल्ला सा :के प्रयास से सरदार पटेल एवं हरी सिंह में बनी सहमती के आधार पर भारतीय संविधान में धारा ३७० का समावेश किया गया था जिसके अंतर्गत गैर-कश्मीरियों को कश्मीर में जमीन-जायदाद खरीदने से प्रतिबन्ध किया गया है और इसी प्रकार धारा ३६९ तथा ३७१ भी हिमाचल-प्रदेश तथा पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में लागू हैं.ब्रिटेन,अमेरिका आदि विदेशी शक्तियां पाकिस्तान को उकसा कर कश्मीर को विवादित बनाने का प्रयास करती हैं.भारत में उन विदेशी शक्तियों से प्रभावित लोग अपने आकाओं को खुश करने हेतु उनके मंसूबे पूरे करने हेतु धारा ३७० को हटाने का हो-हल्ला करते रहते हैं.


श्री नगर से लेह जाने हेतु जोजीला दर्रे पर सुरंग बनाने का कनेडियन और जर्मन कम्पनियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रस्ताव किया था और एक ने नाम-मात्र मूल्य पर और दूसरी ने निशुल्क सुरंग मार्ग बनाने का वायदा किया था परन्तु उनकी शर्त 'मलवा' अपने देश ले जाने की थी,जिसे राष्ट्र के व्यापक हितों की रक्षा हेतु इंदिराजी ने स्वीकार नहीं किया था .यदि वह सुरंग मार्ग बन जाता तो श्री नगर से लेह सड़क मार्ग द्वारा मात्र छै घंटों में पहुंचा जा सकता था किन्तु मलवे में दबा पड़ा प्लेटिनम जो स्वर्ण से भी अधिक मूल्यवान है और युरेनियम निर्माण में सहायक है विदेशों में पहुँच जाता.यदि भारतीय संविधान में धारा ३७० का प्राविधान न किया गया होता तो कश्मीर में आज विदेशी कम्पनियों का प्रभुत्व होता और हमारी अमूल्य खनिज-सम्पदा विदेशों को पहुँच चुकी होती.


अतः राष्ट्र-भक्त लोगों को समझना चाहिए कि धारा ३७० हटाने की मांग करने वालों के मंसूबे वास्तव में क्या हैं?उन्हें पहचानना चाहिए और उनसे गुमराह हो कर राष्ट्र-द्रोही स्वर में स्वर कम से कम बुद्धिजीवियों को तो नहीं ही मिलाना चाहिए.राष्ट्रीय एकता ,अखंडता और कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने के लिए धारा ३७० भारत-हित में है और इसके विरोधी वस्तुतः मात्र राष्ट्र-द्रोही ही हो सकते हैं.


ऊपर वर्णित रेलवे के सरकारी शल्य-चिकित्सक द्वारा 'सीता का विद्रोह'पर अनर्गल विरोधात्मक टिप्पणी वस्तुतः उनकी साम्राज्यवाद -हितैषी मनोवृत्ति का परिचायक मात्र है.क्षुद्र मानसिकता और कुत्सित प्रवृत्ति के ऐसे लोग अपनी सोर्स तथा फ़ोर्स से सरकारी ओहदों पर काबिज होकर जन-विरोधी कार्यों में संलग्न रहते हैं और आम जनता सरकारों को कोसती रहती है.ये लोग अहम् से ग्रसित रहने के कारण दूसरों को तुच्छ समझते तथा उनकी तौहीन करने में आनंद की अनुभूति करते हैं.ऐसे लोग जन-विरोधी होते है तथा हर उस प्रयास का विरोध करते हैं जिनसे जनता के जागरूक होने का भय उन्हें सताता है.लेकिन हमारा दायित्व है -जनता को जागरूक करते रहना और हम वैसा करते भी रहेंगे.

['Hindustan'-Lucknow-24/02/2011 page-15]


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6 comments:

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

हिन्दू या यु कहें सनातन धर्म की वैदिक व्याख्या अच्छी लगी....और सही बात ये है की यही वास्तविक मानवता है. लेकिन एक अजीब सा माहौल भी बना है कुछ कट्टरवाद की वजह से और कुछ मीडिया की क्षद्म धर्मनिरपेक्षता के कारण जिससे की "हिन्दू" बोलते ही बोलने वाले को साम्प्रदायिक समझा जाने लगता है....ज़रा सा लाल या केसरिया रंग का टी-शर्ट पहनते हे लोग पूछ बैठते हैं....क्या किसी पार्टी को मानने लगे हो...क्या हिन्दू होना या खुद को हिन्दू कह देना सम्प्रादिक होना होता है???
ऐसा मानने वाले ही क्षद्म धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार हैं....ठीक नहीं है....
आपकी व्याख्या अच्छी लगी

vijai Rajbali Mathur said...

राजेश जी!
आपने व्याख्या पसंद की बहुत बहुत धन्यवाद!
आपने महत्वपूर्ण प्रश्न “हिंदू”शब्द के सम्बन्ध में उठाया-हिंदू शब्द विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा दिया गया है और फारसी भाषा में इसके बहुत गलत मतलब हैं उन्होंने उसी मतलब में हमारे देशवासियों को ‘’हिंदू’’ कहा था.जो लोग इस शब्द को ओढ़े फिरते हैं उन्हें जानना चाहिए कि हमारे देश को पहले आर्यावर्त ही कहा जाता था.’आर्य’ शब्द ‘आर्ष’ से बना है जिसका अर्थ है श्रेष्ठ.जब हम आर्य थे तो श्रेष्ठ थे जब से ‘हिंदू’शब्द चला उसी के अनुरूप आचरण भी हो चला.पूर्व सी. बी. आई. निदेशक माधवन जी के सुपुत्र आचार्य धर्म बंधू इस शब्द की सही व्याख्या बताते हुए उसका प्रचलन छोड़ने का आग्रह करते हैं और भारत के लोगों को पुनः आर्य कहलाने की प्रेरणा देते हैं.कृणवन्तो विश्व्मार्यम की अवधारणा है जिसमे सम्पूर्ण विश्व के वासी सामान रूप से श्रेष्ठ बनें यही कामना है.अब आप ही फैसला करें कि आप विदेशियों द्वारा दिए नाम को ढोए रखना चाहते हैं या अपने मूल आदर्श को पुनः अपनाना चाहते हैं?

मनोज कुमार said...

एक विश्लेषणात्मक आलेख, अच्छा लगा।

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

मुझे ये व्याख्या इतनी विस्तृत रूप में नहीं पता थी हिन्दू शब्द की...मैं आर्यावर्त के बारे में जानता हूँ. लेकिन क्या आर्य कहने से द्रविड़ों और मंगोलियों को कष्ट नहीं होगा...जो की सनातन धर्म को मानते हैं. मैं अपनी जानकारी के लिए पूछ रहा हूँ...अपने धर्म के बारे में जानने की जिज्ञासा रहती है....आपसे कुछ सीखने का मौका मिल रहा है....
एक बात और मैं जानता था की आर्ष, ऋषी से बना है....मतलब ऋषी का विशेषण आर्ष होता है (जैसा की शब्द "आर्ष-वाणी" में प्रयोग हुआ है)...इसका मतलब श्रेष्ठ भी होता है नहीं मालूम था.
प्रणाम...आपके आशीष का इच्छुक. इस बात का सन्दर्भ भी मिल जाता तो अच्छा रहता...वैसे आवश्यक नहीं है.

vijai Rajbali Mathur said...

राजेश जी
आपकी उत्सुकता वाजिब है.वैसे इस ब्लाग में पहले कई बार धर्म आदि के सम्बन्ध में विद्वानों के विचार उद्धृत किये हैं ,आपकी सलाह सिरोधार्य करते हुए एक बार फिर -
धर्म-जो शरीर को धारण करने के लिए आवश्यक है.उपासना पद्धतियाँ धर्म नहीं हैं.
सनातन-जो अतीव पुराना है अर्थात हमारा आर्ष या आर्य मत.अन्य कुछ नहीं.
मंगोल,द्रविण या अन्य जो भी हमारे देश में आये यहाँ श्रेष्ठ बन गये अर्थात आर्य हो गये.
ब्रिटिश इतिहासकारों यथा-लेन पूल,विन्सेंट स्मिथ,कर्नल टाड आदि तथा हमारे रमेश चन्द्र माजुम्दार आदि जो उनसे प्रभावित थे योजनाबद्ध तरीके से आर्य को जाति सिद्ध करते रहे जिसका अनुसरण शल्य-चिकित्सक सरीखे विदेशियों के अनुयायी आज भी बड़ी बेशर्मी से कर रहे हैं.वे विदेशी धन के बल पर अपने देश को विग्रह की भट्टी में झोंक कर अपने साम्राज्यवादी आकाओं को खुश रखना चाहते हैं.कृपया आज के हिंदुस्तान ,लखनऊ के अंक में पृष्ठ १५ पर कालम एक का अवलोकन करके देखें.भरी अदालत में श्री युगल किशोर सरन शास्त्री ने कहा है -सी.आई.ए.और विदेशी कं.के धन से ढांचा गिराया गया था.उन्होंने कं. का नाम नहीं लिया जो कार बनाने वाली प्रसिद्द कं.फोर्ड है,जिसने बाकायदा 'फोर्ड फौन्डेशन'के जरिये विश्व हिन्दू परिषद् को भारी चंदा अपनी बेलेंस शीट में दिखाते हुए दिया.उसी धन से देश में दंगे हुए और वह ढांचा गिराया गया जो कभी प्रसिद्द बौध विहार था एवं बौधों के स्वैच्छिक मतान्तरण के बाद बाबरी मस्जिद में परिवर्तित हुआ था.यह सम्राट हर्ष-वर्धन द्वारा स्थापित 'साकेत ' नगर में था जिसे जबरिया (ब्रिटिश धूर्त नीति के तहत) राम की जनम भूमि अयोद्ध्या कह कर प्रचारित किया गया.
ब्रिटेन ने चूंकि सत्ता मुगलों से छीनी थी शुरू में मुसलमानों को दबाया और उनके दिए नाम वाले हिदुओं को उभारा.१८५७ की क्रांति के बाद फूट डालो व राज करो नीति के तहत पहले १९०५ में बंगाल का विभाजन किया और असफल रहने के बाद ढाका के नवाब मुश्ताक अहमद को भड़का कर १९०६ में मुस्लिम लीग तथा १९२० में हिन्दू महासभा का गठन कुच्छ कांग्रेस नेताओं को तोड़ कर करवाया. १९२५ में हिन्दू महासभा का मिलिटेंट संगठन आर.एस.एस.बना.देश हिन्दू-मुस्लिम दंगों में न केवल झुलसा बल्कि टूट भी गया. यही साम्राज्यवादी खेल आज भी जारी है.

उम्मीद है आप ऐतिहासिक तर्कों को झुठलायेंगे नहीं जैसा कि भ्रमित शल्य-चिकित्सक आदि करते हैं

vijai Rajbali Mathur said...

बहुत-बहुत आभार मनोज कुमार जी का ,आपके सकारात्मक सद्भाव -अभिव्यक्ति के लिए.
विशेष धन्यवाद राजेश कुमार 'नचिकेता' जी को अपने स्वस्थ प्रश्नों द्वारा सदियों पुराने ढोंग-पाखण्ड (जो देशी दिमागी तौर पर दिवालिये एवं विदेशी साम्राज्यवादियों के नापाक गठबंधन से पनपा है ) का पर्दाफाश कराने के लिए.