मेरे 'सीता का विद्रोह ' पर मूर्खतापूर्ण कथा कह कर उपहास उड़ाने वाले फासिस्ट ब्लॉगर भाषा को तोड़-मरोड़ कर जनता को गुमराह करते रहते हैं .इस प्रकार के भ्रमजाल से लोगों को बचाने हेतु ही मैंने इससे पूर्व इसी शीर्षक से वेदों में प्रयुक्त शब्दों का विद्वानों की नजर में क्या मतलब होता है बताने का प्रयास किया था.२३ मार्च २०११ को एक अन्य ब्लाग पर टिप्पणी के माध्यम से इन फासिस्ट ब्लागर ने उन दुसरे फासिस्ट ब्लागर (जिनके विरुद्ध २७ जनवरी को खुद अपने ब्लाग में आग उगल चुके थे)से साठ-गाँठ करके मुझे दयानन्द विरोधी सिद्ध करने का प्रयास क्यों किया है? ,उसका अभीष्ट उस दुसरे ब्लॉगर द्वारा अपने ब्लॉग पर ०७ मार्च २०११ को 'दयानंद जी ने क्या खोजा क्या पाया?'शीर्षक से महर्षि स्वामी दयानन्द की जम कर खिल्ली उड़ाने के कृत्य से स्पष्ट हो जाता है.ये फासिस्ट कितनी निकृष्ट मनोवृत्ति के हैं पहले फासिस्ट की दूसरी टिप्पणी से स्पष्ट होता है जिसमें उसने 'सौम्य एवं सुलझे दिमाग वाले'डा. टी. एस. दराल सा :जो उसके हम पेशा भी है के विरुद्ध सिर्फ इसलिए टिप्पणी कर दी क्योंकि डा.दराल सा :ने आर्य समाज को उचित मान दिया था.
वेदों में संस्कृत के कैसे अर्थ किये जाने चाहिए और किन विद्वानों ने गलत तथा किन ने सही अर्थ बताये हैं -आर्य समाज सांताक्रुज,मुम्बई के मुख-पत्र 'निष्काम परिवर्तन'के सम्पादक डॉ.सोमदेव शास्त्री के सम्पादकीय लेख "वेदार्थ प्रक्रिया"में स्पष्ट किया गया है.नीचे स्कैन कापी देखें-
इसी अंक में पृष्ठ ११ एवं १२ पर "वेदार्थ प्रक्रिया एवं वेद भाष्यकार" लेख द्वारा आचार्य महेंद्र शास्त्री ने भी स्वीकार्य और अस्वीकार्य विद्वानों का वर्णन किया है.उसकी स्कैन कापी नीचे देखें-
इन दो आर्य विद्वानों के आलेखों से सभी जनों को यह समझने में बहुत आसानी होगी कि ये दो फासिस्ट ब्लागर और विदेश में बैठा इनका सहयोगी क्यों मेरे लेखों का विरोध करते हैं ,ताकि लोगों के समक्ष यदि सच्चाई आ जायेगी तो इन लुटेरे-शोषकों की पूंछ खुद ब खुद कम हो जायेगीजो गलत लोगों के भाष्यों के आधार पर मुझे गलत घोषित कर रहे हैं..इस प्रकार समाज में विभ्रम,ढोंग एवं पाखण्ड फैलाकर ये साम्राज्यवादियों के हितचिन्तक आतंकवादी ब्लागर चील-कौओ की भांति झपट्टा मारकर अपनी चोचों द्वारा सत्य एवं समाज-हितैषी तथ्यों के चीथड़े उड़ा देते हैं.अब यह दायित्व ब्लॉगर समाज का है कि वह तथ्य के मोतियों को चुन कर ग्रहण करे न कि चमकीले पत्थरों को.वैसे दिल्ली के परम आर्य जी अपनी 'वेद तोप' से ऐसे लोगों को माकूल जवाब दे रहे हैं.
8 comments:
माथुर साहब , आजकल समय की कमी की वजह से अधिक समय ब्लॉग को नहीं दे पा रहा ! और चुकीं आप मेरे से बहुत सीनियर है इसलिए कोई राय तो नहीं दे सकता मगर इतना जरूर कहूंगा कि आप इन लफड़ों में न ही पड़े, और निर्वाद रूप से अपने लेखन ध्यान केन्द्रित रखे ! क्योंकि मेरा अपना अनुभव यह कहता है कि जितना इन पचड़ों में पड़ो, अपने ही को मानसिक थकान मिलती है ! ..... कबीरा इस संसार में भांति-भांति के लोग ....
गोदियाल साहब,
बहुत बहुत धन्यवाद आपके अमूल्य सुझाव के लिए.
माथुर साहब!
आप मेरे लिए नमनीय हैं.. गोदियाल साहब की बात से पूर्णतः सहमत हूँ मैं भी. आपका लेखन बिना समझे जो आलोचना करते हैं उनको जवाब देकर आप व्यर्थ अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं!!
सलिल जी आपकी और गोदियाल जी की बातें अक्षरशः सही हैं.परन्तु न तो मैंने अपनी ही न आप सब की ही ऊर्जा नष्ट की है.केवल 'शठे शाठ्यम समचारेत'का पालन करते हुए 'नन्द लाल 'जी के इस कथन पर अमल किया है-
जो खेला है तलवारों से और अग्नि के अंगारों से .
रन भूमी में पीछे ज्जके वह कदम हटाना क्या जाने?
मैं किसी का निरादर या अपमान नहीं करता हूँ तो आतंवादियों -हमलावरों द्वारा किये गए आक्रमण का जवाब क्यों न दूं जबकि वे खुल्लम-खुल्ला गलत हैं.गलत तथा अन्याय का विरोध न करना भी गलती और जुल्म को प्रोत्साहित ही करना है,आप दोनों यह बखूबी जानते भी हैं.उन अहंकारियों को भी ऐसा एहसास करने की आवश्यकता है.हो सकता है वे धूर्त कातिलाना हरकतें भी करें ,परन्तु क्या कायरों की भांति चुप-चाप मौत को गले लगा लेना चाहिए?
माथुर साहब , विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक सा है । लेकिन किसी को भी उत्तेजित नहीं होना चाहिए ।
आप भी कृपया रिएक्ट न करें । गोदियाल जी ने सही कहा कि अपना काम करते रहें ।
एक और विनती है --लेखन के विषयों में थोड़ी विविधता अवश्य लायें ।
धन्यवाद!डाक्टर साहब .
आपके सार्थक लेखों को पढना अच्छा लगता है..... कृपया इन्हें जारी रखें
मैं भी गोदियाल जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ।
आप सुविज्ञ हैं...
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