२७ अप्रैल-०३ मई १९८३ के सप्तदिवा,आगरा में पूर्व प्रकाशित लेख पुनः प्रस्तुत है.
एक समय था जब बाबू सुभाष चन्द्र बोस को नेताजी के नाम से जाना जाता था.वस्तुतः वह भारतीय जन के नेता ही थे.लेकिन आज यत्र-तत्र-सर्वत्र नेताओं की तमाम फ़ौज मिल जायेगी .ये भी नेता हैं अपने-अपने क्षेत्र के .दरअसल ये नेता इसलिए हैं कि सफल अभिनेता हैं और सच में आज आप सफल नेता तभी माने जायेंगें जब कि आप एक सफल अभिनेता भी हों.सुविख्यात दार्शनिक अरस्तु अथवा एरिस्टाटल यानी कि अफलातून का कहना है कि एक सफल नेता वह है जो प्रातः किसी शिक्षालय का उदघाटन करते समय सुविग्यशिक्षाविद माना जा सके ,दोपहर लौंड्री के उदघाटन के समय सफल रसायनग्य सिद्ध हो सके और सायंकाल किसी क्लब का उदघाटन करते समय एक अच्छा ऐय्याश भी हो सके.हमारे आज के नेता सही मायनों में अरस्तु द्वारा परिभाषित नेता की कसौटी पर खरे उतरते हैं.अरस्तु के गुरु प्लूटो यानी कि सुकरात ने कहा था कि मनुष्य जन्म से ही एक राजनीतिक प्राणी है.अतः यह सिद्ध हुआ कि समाज में जन्मते ही व्यक्ति की राजनीति शुरू हो जाती है.राजनीति -आंग्ल भाषा में प्रयुक्त ग्रीक शब्द पालिटिक्स का पर्यायवाची है.
पालिटिक्स शब्द =पाली+ट्रिक्स का संधियोग जिसके अर्थ क्रमशः मल्टी-ट्रिक्स अर्थात अनेकों चालाकियां हैं .अब बताइये हमारा कोई भी नेता जब बहुद्देशीय मनसूबों को लेकर जब कोई नया शगूफा छोड़ता है तो कोई गुनाह करता है,तो क्या ?जी नहीं नेता वही करता है जो नेताबाजी में होना चाहिए.बाबू सुभाष चन्द्र बोस कोई नेता थोड़े ही थे ,वह तो राष्ट्रीय स्वातन्त्र्य संग्राम के कर्मठ योद्धा थे.उन्हें नेताजी कह कर और नेताबाजी के लिए आदर्श मान कर हम आज के अपने नेताओं की तौहीन करना चाहते हैं!आप कहीं भी कुछ भी हों आप तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक आपको नेता का वरद-हस्त प्राप्त न हो.आप योग्य,ईमानदार और कर्मठ प्रशासक हैं ,तब क्या ?अजी जनाब आपने शान्ति पूर्वक अपना कार्य संचालन कर लिया तब आप मूर्ख माने जायेंगें .आप श्रेष्ठ प्रशासक तब हैं जब आप किसी या कई नेता लोगों की कृपा से उपद्रव और अशान्ति कराएं फिर उसका दृढतापूर्वक सामना करें और आपके पक्ष-विपक्ष में खूब हंगामा हो जाए.फिर आप नेताओं की एक आपात बैठक बुलायेंगें उसमें अपनी लच्छेदार भाषा में अमन -शान्ति पर एक वृहत वक्तत्ता जारी करेंगे और अपनी दबंगता का हवाला देंगे .सच मानिये आप शीघ्रातिशीघ्र उन्नत्ति के नवीनतम आयामों को चूमते चले जायेंगे.बीस-पच्चीस (अब ५३वर्श)वर्ष पूर्व बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार श्री ताराशंकर बंदोपाध्याय ने अपने एक उपन्यास 'पात्र-पात्री'में बड़ी जायकेदार भाषा में इस विषय पर प्रकाश डाला है.'पात्र-पात्री'में एक डी.जी.एल.(डायरेक्टर जेनरल लिटरेचर )का जिक्र है जो बहुत ईमानदार ,योग्य और कर्मठ हैं परन्तु इसी ईमानदारी के कारण उनकी शिक्षा मंत्री से नहीं बनती जो वस्तुतः विदुषी नहीं हैं.डी .जी.एल.सा :को 'गुड की भेली'पर लिखने को कहानी दीगयी क्योंकि संसद में इसकी चर्चा उठी थी.सा :के हौसले पस्त हो गये क्योंकि विभाग में नेताबाजी का बोल-बाला था और योग्यता का सर्वथा अभाव .अंततः एक ठेकेदार ने ठेके पर लिख कर उन्हें कहानी दी.
इसी उपन्यास के दुसरे भाग में नेताबाजी के एक और पहलू को भी उजागर किया गया है .अब एक वयोवृद्ध नेताजी का कमाल देखिये जिन्होंने मंत्री पद सम्हालते ही एक अप्सरा सामान युवा संसद -सदस्या को अपने आधीन उप-मंत्री पद दिलवाया और कुछ समय बाद विशेष सर्वेक्षण के लिय विदेश जाते समय उपमंत्री जी क भी साथ ले गये जिससे यात्रा सुखद रह सके.
ऐसा नहीं है कि यह सब उपन्यास की बातें हों दरअसल व्यवहार में जैसी नेताबाजी चलती है उसी की अनुभूति हमें तत्कालीन साहित्य में मिल जाती है.कहते ही हैं कि-' साहित्य समाज का दर्पण होता है'.खैर अब तो असली अभिनेता ही सही नेता हो सकेंगे,दक्षिणांचल यही संकेत दे रहा है.फिर वही बात आती है कि कौन ज्यादा करतब दिखा सकता है.आइये आज हम संकल्प करें कि ईश्वर हम सभी को इस कलाबाजी में निपुण करें जिससे हमारी नेताबाजी भी चमक सके.नेता बनो !नेताबाजी सफलता की कुंजी है.
9 comments:
पालिटिक्स शब्द =पाली+ट्रिक्स का संधियोग जिसके अर्थ क्रमशः मल्टी-ट्रिक्स अर्थात अनेकों चालाकियां हैं .
इस नए शब्द की जानकारी बढ़ाने के लिए धन्यावद , ज्ञानवर्धक लेख की आपका आभार
सच में आज आप सफल नेता तभी माने जायेंगें जब कि आप एक सफल अभिनेता भी हों....
-आपने सही लिखा।
सार्थक लेख के लिए हार्दिक बधाई।
एकदम सटीक और तर्कसंगत बात कही आपने.....
सही है माथुर साहब नेता वाजी का ही बोलवाला है। अच्छा व्यंग्य
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तरी की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तरी की जाये उतनी कम होगी
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
सशक्त लेख .... विचारणीय
सटीक लेखन .....ऐसे ही आगे बढ़े
prabhavshali kataksh ....sadar abhar.
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