हमारे देश में एक कुधारणा फैला दी गयी है कि श्री राम को वनवास उनकी विमाता कैकेयी के कुचक्र के कारण हुआ था.तमाम विद्वानों ने माता कैकेयी को बहुत बुरा-भला लिखा है.आम लोगों में कैकेयी की छविअच्छी नहीं मानी जाती है.मैंने राम-विषयक अपने कई लेखों के माध्यम से कैकेयी के आर्ष चरित्र और राष्ट्र-सेवा की और इंगित किया है.आज यहाँ उन राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख करना चाहूँगा जिनके कारण राम को वनवास दिलाना अनिवार्य एवं अपरिहार्य हुआ.'विद्रोही स्व-स्वर में'उल्लेख कर चुका हूँ कि १९६७-६८ में शाहजहांपुर में अपने नानाजी के साथ मैं भी सन्त श्याम जी पाराशर को सुनने जाता था जो केवल राम मंदिरों में ही प्रवचन देते थे.उनकी पुस्तक'रामायण का ऐतिहासिक महत्त्व' ने मुझे बेहद प्रभावित किया है और उसी के आधार पर मैंने-'रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना'तथा 'सीता का विद्रोह'नामक आलेख इसी ब्लॉग में दिए थे जो आगरा के सप्तदिवा साप्ताहिक तथा ब्रह्मपुत्र समाचार में क्रमशः काफी पहले छप भी चुके थे.यहाँ दिए जा रहे निष्कर्ष भी मुख्यतः उसी पुस्तक से ही प्रेरित हैं जिन्हें राष्ट्र-हित में सार्वजनिक करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ जिससे व्याप्त भ्रान्ति का उन्मूलन हो सके एवं महान राष्ट्रवादी माता कैकेयी के तप-त्याग तथा बलिदान को सही परिप्रेक्ष्य में लिया जाए एवं नाहक उनका अपमान किया जाना बंद किया जाए.
परमात्मा कभी भी नस और नाडी के बन्धन में नहीं बंधता है और न ही कभी अवतार लेता है चाहें कितने भी वीभत्स अत्याचारी का विनाश करना हो.विध्वंस बहुत सरल है और निर्माण कठिन.जब अत्याचारी का निर्माण करने परमात्मा पृथ्वी पर नहीं आता तो उसे नष्ट करने क्योकर आने लगा?एक छोटे से उदाहरण से समझें-एक घड़ी के निर्माण में ट्रेंड इंजीनियर और कुशल कारीगर लगते हैं जब की एक अबोध बच्चा भी उसे फेंक कर नष्ट कर देता है.फिर किसी अत्याचारी को नष्ट करने परमात्मा क्यों धरती पर आये ?जो ऐतिहासिक पुरुष या नारियां देश-समाज के हित में अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं उनका सम्मान करना और गुण गान करना हमारा कर्तव्य होता है.और उसी के अनुरूप जब हम राम को मानते हैं तो कैकेयी और सीता को मानने में ऐतराज क्या है?क्या उनका महिला या नारी होना ?
विदेशी आक्रान्ताओं एवं शासकों ने जान-बूझ कर हमारे अपने ही बिकाऊ विद्वानों द्वारा हमारा अपना इतिहास विकृत करा दिया तो क्या हम अपनी पैनी निगाहों से भूतकाल के अंतराल में प्रविष्ट होकर तथ्य के मोतियों को नहीं चुन सकते ?यदि नहीं तो क्यों ?आइये सबसे पहले नौ लाख वर्ष पूर्व राम के जन्म के समय की भू-राजनीतिक परिस्थितियों का अवलोकन करें.-
जिस समय राम का जन्म हुआ भारत भूमि छोटे -छोटे राज्य-तंत्रों में बंटी हुयी थी और ये राजा परस्पर प्रभुत्व के लिए आपस में लड़ते थे.उदाहरण के लिए कैकेय(वर्तमान अफगानिस्तान)प्रदेश के राजाऔर जनक के राज्य मिथिला (वर्तमान बिहार का एक अंचल)से अयोध्या के राजा दशरथ का टकराव था.इसी प्रकार कामरूप (आसाम),ऋक्ष प्रदेश (महाराष्ट्र),वानर प्रदेश(आंध्र)के शासक परस्पर कबीलाई आधार पर बँटेहुए थे.वानर राजा बाली ने तो विदेशी साम्राज्यवादी रावणसे 'सन्धि'कर रखी थी कि,वे परस्पर एक-दुसरे की रक्षा करेंगें.ऐसी स्थिति में आवश्यकता थी सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोकर साम्राज्यवादी ताकतों- जो रावण के नेतृत्व में दुनिया भर का शोषण कर रही थीं -का सफाया करने की.लंका का शासक रावण,पाताल लोक(वर्तमान यूं.एस.ए.)का शासक ऐरावण और साईबेरिया (जहाँ ६ माह की रात होती थी )का शासक कुम्भकरण सारी दुनिया को घेर कर उसका शोषण कर रहे थे,उनमें आपस में साम्राज्यवादी -भाईचारा था.
कैकेयी और भारत का एकीकरण
भारतीय राजनीति के तत्कालीन विचारकों (ऋषि-मुनियों) ने बड़ी चतुराई के साथ कैकेय प्रदेश की राजकुमारी कैकेयी के साथ अयोध्या के राजा दशरथ का विवाह करवाकर दुश्मनी को समाप्त करवाया.रावण अपने प्रतिद्वंदी बड़े भाई कुबेर को पकड़ने हेतु जब दक्षिण मार्ग को बाली की वजह से छोड़ कर पश्चिमोत्तर भारत की और से घुसना चाहता था तो भीषण लंबा देवासुर संग्राम भारत की धरती पर चला और उसमें रावण को अकेले शिकस्त देना केवल कैकेय प्रदेश के राजा के बूते की बात नहीं थी.अतः आपसी टकराव को भूल कर राष्ट्रीय हितों की रक्षा हेतु दशरथ,जनक आदि सभी राजा अपने-अपने दल-बल के साथ कैकेय प्रदेश में जमे हुए थे. वीरांगना और राजनीति तथा कूटनीति की विदुषी राजकुमारी कैकेयी को राजा दशरथ की सलाह एवं सहायता हेतु ऋषि-योजनानुकूल लगाया गया था. महाराजा दशरथ वहां अकेले ही थे और उनकी गृहस्थ -रूपी गाडी के दुसरे पहिये की भूमिका भी कैकेयी ने पूरी की जिस कारण अंततः युद्ध की समाप्ति पर महाराज दशरथ ने राजकुमारी कैकेयी का वरण अपनी पत्नी के रूप में कर लिया और विजेता के रूप में लौटने पर अयोध्या में उनका मय कैकेयी के भव्य स्वागत हुआ. महारानी कौशल्या ने भी कैकेयी को अपनी बहन वत मान-सम्मान दिया.अब कैकेयी ,दशरथ की राजनीतिक सलाहकार भी थीं.
पुत्रेष्टि यज्ञ के माध्यम से जब राम-भरत आदि हुए तो कौशल्या से अधिक राम को कैकेयी ही देखतीं थीं और राम पर उनका काफी गहरा प्रभाव भी था.कौशल्या भी भरत और राम को एक समान ही मानतीं थीं.कैकेयी ही एकमात्र राजपरिवार की वह सदस्य थीं जिन पर ऋषि-मुनियों को पूर्ण विशवास था और जिनको पूरे भरोसे में लेकर वे अपनी रण-नीति को लागू करते थे.इसका कारन कैकेयी का विदुषी होने के साथ-साथ धैर्यवान होना तथा राष्ट्र के प्रति प्रबल समर्पण भाव का होना था. यदि राजा दशरथ को ज्ञात हो जाता तो वह अपनी सैन्य ताकत के बल पर साम्राज्यवादियों से टकराने खुद ही आगे आ जाते और तब भारत -भूमि भी युद्ध के चपेटे में आ जाती जो हमारे ऋषि-मुनि नहीं चाहते थे.अतः महाराज दशरथ से सम्पूर्ण रण-नीति को गोपनीय रखा गया परन्तु कैकेयी से नहीं और कैकेयी का राष्ट्र हित में अपने पति से भी इन रहस्यों को गोपनीय रखना स्तुत्य है घृणास्पद नहीं.कैकेयी ने राष्ट्र हित में ही अपने पिता के विरोधी राजा दशरथ
को उस समय सहारा दिया था जब उनको वैसी आवश्यकता थी. यह कैकेयी का ही मानसिक सम्बल था जो राजा दशरथ युद्ध में विजेता के रूप में सफल हो सके. एक बार फिर कैकेयी पर ही वह भार था कि राष्ट्र को अपनी धरती पर युद्ध से बचाते हुए साम्राज्यवादियों का संहार करने में अपना योगदान दें.
राम वनवास -कैकेयी का राष्ट्र प्रेम
ऋषि -योजनानुकूल राम से सीता का विवाह हुआ जिससे दशरथ और जनक रिश्तों में बंध गए और सम्पूर्ण उत्तर-भारत एकता के सूत्र में आबद्ध हो गया. अब समस्या अपने दश के दक्षिण-भाग अर्थात जम्बू द्वीप को भी रावण के मित्र बाली के चंगुल से छुडाने और उसे भी एक साथ लाने की थी. पहले ही गुरु विश्वमित्र जी के प्रयासों और उनकी शिक्षा से राम को वन में रह कर गोपनीय ढंग से गुरिल्ला युद्ध द्वारा शत्रु को नष्ट करने की ट्रेनिंग दी जा चुकी थी.अतः राम और लक्ष्मण ही के साथ-साथ सीता (जो विद्वानों-विदुषियों के वीर्य-रज अर्थात ऋषियों के रक्त से मुनि विश्वमित्र की प्रयोग शाला में टेस्ट ट्यूब बेबी के रूप में जन्मीं थीं और जिन्हें विशेष ट्रेनिंग दी गयी थी )को इस कार्य के उपयुक्त समझा गया.
गुरु वशिष्ठ,विश्वमित्र एवं मुनि भारद्वाज (जो रावण के भाई कुबेर के नाना थे) की योजना के अनुसार कैकेयी ने दशरथ द्वारा विवाह के समय दिए जाने वाले दो वरदानों (जिन्हें ऋषियों की सलाह पर तब कैकेयी ने स्थगित कर दिया था) के माध्यम से राम को वनवास और भरत के लिए राज्य माँगा था. कैकेयी के मन में कोई दुर्भावना या भेद-भाव नहीं था उनके लिए राष्ट्र-हित सर्वोपरि था. यदि उस समय भरत वहां होते तो माँ-बेटा में संग्राम हो जाता. इसलिए उन्हें चतुराई से ननिहाल भिजवाया गया था जो ऋषियों की ही रण-नीति थी.
बाल्मीकी जी ने अपनी रामायण में काव्यात्मक रूप में सम्पूर्ण योजना का निरूपण किया है. गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी रामचरित मानस में तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर अवधी में पद्यात्मक वर्णन किया है. व्याख्याकारों ने अपनी संकीर्ण सोच तथा विदेशी साम्राज्यवादी शासकों द्वारा विकृत रूप में प्रस्तुतीकरण को ध्यान में रख कर माता कैकेयी के साथ बहुत बड़ा अन्याय उनका चरित्र-हनन करके किया है.
'रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना में' सविस्तार उल्लेख कर चुका हूँ कि,किस प्रकार राम ने रावण के मित्र बाली का गुपचुप संहार करके और १४ वर्षों के वनवास में सैन्य तैयारियां करके अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली थी. इसी परिप्रेक्ष्य में हम दृढतापूर्वक कहना चाहते हैं कि कैकेयी के माध्यम से राम को वनवास दिलाना हमारे राजनीतिक-विद्वानों का वह करिश्मा था जिसके द्वारा साम्राज्यवाद के शत्रु राम को साम्राज्यवाद की धरती पर सुगमता से पहुंचा कर धीरे-धीरे सारे देश में युद्ध की चुप-चाप तैयारी की जा सके और इसकी गोपनीयता भी बनी रह सके.अस्तु कैकेयी का राम को वनवास दिलाने का साहसी कार्य राष्ट्र-भक्ति में राम के संघर्ष से भी ज्यादा श्रेष्ठ है क्योंकि कैकेयी ने स्वंय भी विधवा बन कर और जनता की प्रकट नजरों में गिर कर अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को बलिदान करके राष्ट्र -हित में कठोर निर्णय लागू करवाया.अब समय आ गया है कि राम के क्रांतिकारी क़दमों की सराहना के साथ-साथ माता कैकेयी और महारानी सीता का भी नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाए.बहुत हो चुका अन्याय,अब कैकेयी की भर्तस्ना बिलकुल बन्द की जाए और राष्ट्र -हित में किये गए उनके अमर बलिदानों को स्तुत्य,अनुकरणीय और शिक्षास्पद बनाया जाए.
6 comments:
पहले क्रांति स्वर पर पर इस क्रांति लेख के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं माथुर जी को प्रेषित हों. दूसरी बात वर्तमान काल को परौनिक संधर्भ में समझाते हुए आपने अनुपन कार्य किया है.
काफी दिलकश और नया नजरिया है ..
काश इस क्रान्तिकारी विचारधारा को लोग समझ पाते।
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देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
इस बारे में एकदम नयी जानकारी ... आभार
काफी दिलकश और नया नजरिया है|धन्यवाद|
mai ramashray rajbhar banaras hindu university sanskrit ka student hu...mai bhi kaikeyi charactar par karya kar raha....
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