Thursday, March 22, 2012

संवत 2069 आप सब को मंगलमय हो

क्रांतिकारी भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव जी 






हिंदुस्तान-लखनऊ-19 मार्च 2012



क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु,सुखदेव जी का बलिदान दिवस 23 मार्च प्रत्येक भारतीय को 'कर्तव्य दिवस'के रूप मे मनाना चाहिए। इन नौजवानों ने हँसते-हँसते अपने जीवन को देश की आजादी के संघर्ष मे कुर्बान कर दिया था। आज हम आजाद देश के प्रति कितने निष्ठावान हैं यह खुद से सवाल उठाने की बात है न कि दूसरों के कर्तव्यों को याद दिलाने की। अपनी कर्तव्यहीनता को छिपाने के वास्ते लोग धूर्तता का सहारा लेते हैं कि राजनीति और राजनेताओ ने देश को रसातल मे डुबो दिया है। वस्तुतः ढ़ोंगी-पाखंडी अधार्मिक लोगों ने ही 'धर्म' के नाम पर इतना जबर्दस्त जहर बो दिया है जो देश और इसकी जनता के लिए कहर बन गया है। इस वर्ष
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ,शुक्रवार  23 मार्च ,2012 से विक्रमी संवत 2069 प्रारम्भ हो रहा है। इसी दिन से सार्वजनिक नव रात्र भी प्रारम्भ हो रहे हैं। आप देखेंगे कि लोग तरह तरह के ढोंग-पाखंड द्वारा नौ दिन स्वांग रचेंगे।14 अक्तूबर 2010 मे दिये विचारों को एक बार फिर दोहरा कर ही उपरोक्त सम्पाद्कीय के संबंध मे विचार दूंगा-

"आज   देश के हालात कुछ  वैसे हैं :-मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों -२ दवा की.करम खोटे हैं तो ईश्वर  के गुण गाने से क्या होगा ,किया  परहेज़ न कभी  तो दवा खाने से क्या होगा.. आज की युवा शक्ति को तो मानो सांप   सूंघ  गया है वह कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है और हो भी क्यों ? जिधर देखो उधर ओसामा बिन लादेन बिखरे पड़े हैं, चाहें वह ब्लॉग जगत ही क्यों न हो जो हमारी युवा शक्ति को गुलामी की प्रवृत्तियों से चिपकाये रख कर अपने निहित स्वार्थों की पूर्ती करते रहते हैं.अफगानिस्तान हो ,कश्मीर हो ,देश भर में फैले नक्सलवादी हों या किसी भी तोड़ -फोड़ को अंजाम देने वाले आतंकवादी हों सब के पीछे कुत्सित मानसिकता वाले बुर्जुआ लोग ही हैं .वैसे तो वे बड़े सुधारवादी ,समन्वय वादी बने फिरते हैं,किन्तु यदि उनके ड्रामा को सच समझ कर उनसे मार्ग दर्शन माँगा जाये तो वे गुमनामी में चले जाते हैं,लेकिन चुप न बैठ कर युवा चेहरे को मोहरा बना कर अपनी खीझ उतार डालते हैं .
ऐसा नहीं है कि यह सब आज हो रहा है.गोस्वामी तुलसीदास ,कबीर ,रैदास ,नानक ,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद जैसे महान विचारकों को अपने -२ समय में भारी विरोध का सामना करना पड़ा था .१३ अप्रैल २००८ के हिंदुस्तान ,आगरा के अंक में नवरात्र की देवियों के सम्बन्ध में किशोर चंद चौबे साहब का शोधपरक लेख प्रकाशित हुआ था ,आपकी सुविधा के लिए उसकी स्केन प्रस्तुत कर रहे हैं :



बड़े सरल शब्दों में चौबेजी ने समझाया है कि ये नौ देवियाँ वस्तुतः नौ औषधियां  हैं जिनके प्राकृतिक संरक्षण तथा चिकित्सकीय प्रयोग हेतु ये नौ दिन निर्धारित किये गए हैं जो सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन रहते दो बार सार्वजानिक रूप से पर्व या उत्सव के रूप में मनाये जाते हैंलेकिन हम देखते हैं कि ये पर्व अपनी उपादेयता खो चुके हैं क्योकि इन्हें मनाने के तौर -तरीके आज बिगड़ चुके हैं .दान ,गान ,शो ,दिखावा ,तड़क -भड़क ,कान -फोडू रात्रि जागरण यही सब हो रहा है जो नवरात्र पर्व के मूल उद्देश्य से हट कर है । "



जिस प्रकार रस्सी की रगड़ से कुएं की मन और घिर्री भी घिस जाती है उसी प्रकार एक ही बात को बार-बार दोहराते रहने से मानव मन भी शायद सच्ची बात से धंस ही जाये यही सोच कर प्रयास जारी रखे हुये हूँ। WHO-विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वोच्च अधिकारी द्वारा व्यक्त विचारों के आधार पर हिंदुस्तान,लखनऊ के  सम्पादकीय मे उठाई  चिंता पर गंभीर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। 


वस्तुतः एलोपैथी चिकित्सक अपने सम्पूर्ण घमंड के साथ भारतीय चिकित्सा पद्धततियों का घिनौना मखौल उड़ाते हैं।(मै अपनी तरफ से डॉ तारीफ साहब को अपवाद की श्रेणी मे रखता हूँ जैसे विचार उनके ब्लाग मे पढ़ने को मिलते हैं उनके आधार पर। )  एलोपैथी तो सिर्फ इतना भर जानती और मानती है कि,रोग का कारण बेक्टीरिया होते हैं और उन्हें नष्ट करने से उपचार हो जाता है। अब इसी पद्धति के विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि न तो सभी बेक्टीरिया को नष्ट करना चाहिए और न ही अब एंटी बायोटिक दवाओ का असर रह गया है। पंचम वेद -'आयुर्वेद' मे 'वात-कफ-पित्त' के बिगड़ने को सभी रोगों का मूल माना है और यह निष्कर्ष पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। 


भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु)+I (अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)-इन पाँच तत्वों से मिल कर सम्पूर्ण सृष्टि बनती है जिसमे वनस्पतियाँ और प्राणी सभी शामिल हैं। 


1-वात=आकाश +वायु 
2-कफ=भूमि +जल 
3-पित्त=अग्नि 


'आयुर्वेद' मे पाँच तत्वों को उनके यौगिकों के आधार पर तीन तत्वों मे समायोजित कर लिया गया है। इसी लिए 'वैद्य' रोगी के हाथ की कलाई पर स्थित 'नाड़ी' पर अपने हाथ की तीन अंगुलियाँ रख कर इन तीन तत्वों की उसके शरीर मे स्थिति का आंकलन करते हैं। (1 )वात का प्रभाव 'तर्जनी',(2 )कफ का -'अनामिका',(3 )पित्त का 'मध्यमा' अंगुली पर ज्ञात किया जाता है। 


अंगुष्ठ के तुरंत बाद वाली उंगली 'तर्जनी' है जो हाथ मे ब्रहस्पति -गुरु ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। 'गुरु'ग्रह गैसों का पिटारा है। वायु भी गैसों का संग्रह ही है। 


तर्जनी के बाद की सबसे बड़ी उंगली ही 'मध्यमा' है जो शनि का प्रतिनिधित्व करती है। शनि को ज्योतिष मे 'आयु' का कारक ग्रह माना गया है और आयुर्वेद मे इसकी उंगली पित्त -ऊर्जा की स्थिति की सूचक है। 


मध्यमा के तुरंत बाद की उंगली 'अनामिका' है जो हाथ मे सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। ज्योतिष मे सूर्य को 'आत्मा' का कारक मानते हैं और हाथ मे यह उंगली आयुर्वेद के अनुसार  कफ की द्योतक है।


इन तीन उँगलियों पर पड़ने वाली नाड़ी की धमक वैद्य को रोगी के शरीर मे न्यूनता अथवा अधिकता का भान करा देती है जिसके अनुसार उपचार किया जाता है। जिस तत्व की अधिकता रोग का कारक है उसके शमन हेतु उसके विपरीत गुण वाले तत्व की औषद्धिया दी जाती हैं। जिस तत्व की न्यूनता होती है उसकी वृद्धि हेतु उसी तत्व वाले गुण की औषद्धिया दी जाती हैं। हमारे आयुर्वेद मे 'बेक्टीरिया' से रोग की उत्पत्ति मानने की सनक नहीं होती है,यह विशुद्ध प्राकृतिक  और वैज्ञानिक रूप से रोग की खोज करके उपचार करता है इसी लिए इसे आयु का विज्ञान =आयुर्वेद कहते हैं। 'आयुर्वेद' मे 'शल्य'चिकत्सा =सर्जरी का व्यापक महत्व था। गौतम बुद्ध के समय तक 'मस्तिष्क' तक की शल्य चिकित्सा होती थी और सिर दर्द का इलाज भी इस विधि से संभव था। 'बौद्ध' मत के विरोध की आंधी मे पोंगा-पंथियों ने मूल पांडु लिपियों और अनेक ग्रन्थों को जला डाला जिसका परिणाम यह हुआ कि  आगे से  आयुर्वेद मे शोद्ध होना बंद हो गया। उसके बाद 1100 वर्षों की गुलामी मे 'पौराणिकों' ने और ज्यादा ढोंग-पाखंड का कहर बरपाया । संत कबीर आदि ने इस ढोंग-पाखंड का विरोध उस काल मे किया और आधुनिक काल मे स्वामी दयानंद,स्वामी विवेकानंद आदि ने। किन्तु आचार्य श्री राम शर्मा आदि ने इनके प्रयासों पर पानी फेर दिया और ढोंग-पाखंड का आज इतना बोल बाला है कि अनेकों ढोंगियों ने खुद को आज भगवान घोषित कर दिया है। देखिये 21 मार्च को फेसबुक पर व्यक्त विद्वानो के विचार-



  • सुना तो होगा आप लोंगों ने भी .कोई रविशंकर महाराज कहलाते हैं .बोलते हैं तो आवाज स्त्री की लगती है .कल जय पुर में बयान दिया की सरकारी स्कूल बंद करदेने चाहिए सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही नक्सलबादी बनते हैं .अब लीजिये नया फंडा ,न जाने कौन संस्था रोज एक महाराज ,एक साधू पैदा करती है पहले चोरी चोरी धन कमाते हैं जब फ़ैल जाते हैं तो नाटक करते हैं .जितने इस प्रकार के लोग हैं उन्हें ,धर्मभीरु लोग ही बढ़ाते हैं ,रविशंकर .निर्मल बाबा ,आशा राम बापू ,मुरारी बापू,रामदेव .और पता नहीं कितने डेरा सच्चा सौदा आदि आदि .उसी में हजारे को भी जोड़ देना चाहिए .इन्ही को देश शौंप देना चाहिए ,संबिधान हटा देना चाहिए ,अन्यथा ऐसी ब्यवस्था हो की इनके चोंच बंद हों ,दुखदाई हैं
  • Ramji Tiwari ये अभी बलिया में भी आये थे ...देखकर और सुनकर मन क्षोभ से भर उठा ...ऐसे लोगों को कैसे समाज के दिग्दर्शक बनने का दावा करने लगते है , जिन्हें रत्ती भर भी समझ नहीं ...
  • Pankaj Chaturvedi फिर बाबाजी यह भी कहेंगे मंदिर अंधविश्वासी बनाते हें उनको गिरा दो और बाबाजी के ही मंदिर बनादो, साडी चदौत उनको ही दे दो



चैत्र और शरद नव रात्रों मे ढ़ोंगी-पाखंडी ढ़ोल-नगाड़ों से खुराफात करते हैं और खुद को देवी-भक्त घोषित करते हैं। ये नौ देवियाँ क्या हैं?चौबे साहब ने अच्छे और सरल ढंग से समझाया है किन्तु आम जनता की कौन कहे ?हमारे इंटरनेटी विद्वान भी मानने को तैयार न होंगे। 


इन बदलते मौसमो मे उपरोक्त वर्णित औषद्धियों के सेवन से मानव मात्र को स्वस्थ रखने की कल्पना की गई थी। इन औषद्धियों से नौ दिन तक विशेष रूप से हवन करते थे जो 'धूम्र चिकित्सा' का वैज्ञानिक आधार है। लेकिन आज क्या हो रहा है?भगवान =GOD=खुदा के दलालों (पुरोहितवादियों) ने मानव-मानव को लड़ा कर अपनी-अपनी दुकाने चला रखी हैं और मानव 'उल्टे उस्तरे' से उनके द्वारा ठगा जा रहा है। 'साईं बाबा','संतोषी माता','वैभव लक्ष्मी' नामक ठगी के नए स्तम्भ और ईजाद कर लिए गए हैं। जितना विज्ञान तरक्की कर रहा बताया जा रहा है उतना ही ज्यादा ढोंग-पाखंड का प्रचार होता जा रहा है जो पूर्णतः'अवैज्ञानिक' है। 'जनहित' मे मैंने प्रार्थना-स्तुति के द्वारा भी स्वास्थ्य-लाभ (उपचार) प्राप्त करने का मार्ग बताया है जिसे लोग अपनाना नहीं चाहते और मंहगे उपचार मे फंस कर अपना अहित करते रहते हैं। 


संवत 2069 सम्पूर्ण मानव जाति के लिए मंगलमय हो इस शुभकामना के साथ मै इस नारे को दोहराना चाहूँगा-


'धरती बांटी,अंबर बांटा ,बाँट दिया भगवान को । 
दुनिया की खुशहाली चाहो-अब न बांटो इंसान को । । '

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