ऊपर आप दो चित्रों को देख रहे हैं । एक मे उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री और देश के पूर्व रक्षामंत्री एक तथाकथित सन्यासी से आशीर्वाद ग्रहण कर रहे हैं और इन रक्षामंत्री के पूर्व सलाहकार और पूर्व राष्ट्रपति दूसरे चित्र मे दूसरे सन्यासियों से।
जब ऐसी प्रक्रियाएं सार्वजनिक रूप से होती हैं तो आम जनता भी इनकी देखा-देखी इन लोगों के पीछे भागती और ठगी जाती है। ये लोग अपनी मार्केटिंग के तहत राजनीतिज्ञों को फँसाते हैं और उन्हें आशीर्वाद देकर उनके कृत्यों को ईमानदारी के प्रमाण पत्र जारी करते हैं। आज देश और दुनिया के सामने जितने भी भयंकर संकट खड़े हैं सब के सब इन पुरोहितवादियो की गलत धार्मिक व्याख्याओं के कारण ही टिके और खड़े हैं।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम जरूर ईमानदारी पर चल कर ही ऊपर उठे थे न कि ऐसे साधू -सन्यासियों के आशीर्वाद से!इसी प्रकार अखिलेश यादव भी जनता के वोटों से ही मुख्यमंत्री बने हैं न कि रामदेव जी के आशीर्वाद से।
फिर क्या वजह है जो ये शक्तिशाली राजनीतिज्ञ सन्यासियों के चक्कर लगाते हैं। ये सन्यासी धन उन लोगों के दान से प्राप्त करते हैं जो गरीब मजदूर-किसान के शोषण हेतु जिम्मेदार हैं। शोषण द्वारा बटोरे धन का एक भाग बतौर कमीशन 'दान' के आवरण मे ऐसे धार्मिकों को भेंट किया जाता है और बदले मे ये धार्मिक दानदाताओं का गुण गाँन करते हैं। धर्म की गलत व्याख्याएँ प्रस्तुत करते हैं जिनसे शोषण व्यवस्था और मजबूत होती है।
आज जरूरत है 'मानव द्वारा मानव के शोषण से मुक्त 'समाज स्थापित करने की जिसमे ऐसे सन्यासियों को महिमा मंडित करना बाधक बंनता है। कुछ कमी उन लोगों की तरफ से भी है जिन्होने 'धर्म' का विरोध करने के नाम पर 'धर्म' की गलत व्याख्याएँ करने की छूट दे रखी है। आज आवश्यकता है जनता को वास्तविक 'धर्म' समझाने की न कि 'धर्म' का थोथा विरोध करने की। जब तक शोषण विहीन समाज स्थापित करने के अलमबरदार 'धर्म' को शोषकों के चंगुल से नहीं मुक्त कराते ,ढोंग-पाखंड का ठोस विरोध नहीं करते तब तक शोषण विहीन समाज स्थापित करने की बात कहना बेमानी ही है।
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