27/02/2012 --हिंदुस्तान लखनऊ |
अन्ना हज़ारे को अगुआ बना कर अरविंद केजरीवाल एक लंबे समय से शोषकों -उतपीडकों का बचाव करने हेतु भ्रष्टाचार का राग आलाप रहे है। पढे-लिखे मूरखों को अपना पिछलग्गू बनाने मे मिली कामयाबी के आधार पर वह फूले नहीं समा रहे हैं और जोश मे होश खो बैठे हैं। उन्होने अपने विभाग से हड़पे नौ लाख रुपए प्रधानमंत्री कार्यालय को लौटाए थे जो उनकी और प्रधानमंत्री जी की अंतरंगता का ज्वलंत प्रतीक है। अन्ना साहब को निजी अस्पताल मे पी एम साहब ने पुष्प गुच्छ भिजवा कर उनके आंदोलन को अपना मूक समर्थन प्रदान किया था।
इसी ब्लाग मे एक नहीं अनेक पोस्ट के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि अन्ना-आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन गुट/आर एस एस/देशी-विदेशी NGOs का भरपूर समर्थन था । रामदेव का आंदोलन आर एस एस /विदेशी समर्थन पर आधारित था। इसीलिए अन्ना-आंदोलन रामदेव के आंदोलन पर बढ़त कायम कर सका। परंतु दोनों का उद्देश्य एक ही था भारत मे संसदीय लोकतन्त्र को नष्ट करके 'अर्द्ध सैनिक तानाशाही' स्थापित करना।
1974 मे चिम्मन भाई पटेल की गुजरात सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध मे लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन मे पहली बार नानाजी देशमुख की अगुआई मे आर एस एस ने घुसपैठ की थी और अपार सफलता प्राप्त थी।1977 की जनता पार्टी सरकार मे अटल बिहारी बाजपाई ने विदेश विभाग मे तथा एल के आडवाणी ने सूचना एवं प्रसारण विभाग मे आर एस एस के लोगो की घुसपैठ करा दी थी। 1980 मे आर एस एस के सहयोग से इंदिरा गांधी की कांग्रेस पूर्ण बहुमत प्राप्त कर सकी थी। यह आर एस एस की बहुत बड़ी उपलब्धि थी। वी पी सिंह के 'बोफोर्स कमीशन विरोधी आंदोलन' मे घुस कर आर एस एस ने संतुलंनकारी भूमिका निभा कर अपनी शक्ति मे अपार वृद्धि कर ली थी और 'राम मंदिर आंदोलन' की आड़ मे पिछड़े वर्ग के हित मे लागू 'मण्डल कमीशन' रिपोर्ट की धज्जिये उड़ा दी थी। देश को साम्राज्यवादियों के अस्त्र 'सांप्रदायिकता' से दंगो मे फंसा कर अपार जन-धन की क्षति की गई थी।
1998 -2004 के राजग शासन काल मे गृह मंत्रालय और विशेष कर खुफिया विभागो मे आर एस एस की ज़बरदस्त पैठ बना दी गई। इनही तत्वो ने रामदेव को सहानुभूति दिलाने हेतु राम लीला मैदान कांड अंजाम दिलाया। लेकिन रामदेव की मूर्खताओ के कारण जनता मे उनकी कलई खुल गई। अतः अन्ना हज़ारे को आगे खड़ा किया गया। जो कुछ हुआ और हो रहा है सब की आँखों के सामने है। जो लोग व्यापारियों,उद्योगपतियों,ब्यूक्रेट्स के शोषण -उत्पीड़न को ढकने हेतु भ्रष्टाचार का जाप कर रहे थे और जनता को उल्टा भड़का रहे थे उनके मास्टर माइंड हीरो अरविंद केजरीवाल 'मतदान' ही नहीं करना चाहते थे और वह मतदाता तक न बने थे जो उनके 'लोकतन्त्र विरोधी' होने और 'तानाशाही समर्थक' होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।
अभी अभी मनमोहन सरकार के वरिष्ठ मंत्री वीरप्पा मोइली ने खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह ने हड़बड़ी मे 'उदारवाद' अर्थात आर्थिक सुधार लागू किए थे जिनसे 'भ्रष्टाचार' मे अपार वृद्धि हुई है।
तो यह वजह है कि मनमोहन सिंह जी ने आर एस एस को ताकत पहुंचाने हेतु अन्ना हज़ारे के आंदोलन को बल प्रदान किया था। सिर्फ और सिर्फ तानाशाही ही भ्रष्टाचार को अनंत काल तक संरक्षण प्रदान कर सकती है और इसी लिए इन आंदोलनकारियों ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को नष्ट करने का बीड़ा उठा रखा है। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत भर कर ये लोग जनता को लोकतन्त्र से दूर करना चाहते हैं।
देशभक्त जनता से विनम्र अपील है कि वह अन्ना/रामदेव/केजरीवाल सरीखे भ्रष्टाचारियों के संरक्षकों को कोई अहमियत न दे और 'लोकतन्त्र' तथा लोकतान्त्रिक मूल्यों की प्राण-पण से रक्षा करें।
पुनश्च :
डॉ डंडा लखनवी जी के विचारों पर ध्यान देने की सख्त ज़रूरत है-
Danda Lakhnavi
इसी ब्लाग मे एक नहीं अनेक पोस्ट के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि अन्ना-आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन गुट/आर एस एस/देशी-विदेशी NGOs का भरपूर समर्थन था । रामदेव का आंदोलन आर एस एस /विदेशी समर्थन पर आधारित था। इसीलिए अन्ना-आंदोलन रामदेव के आंदोलन पर बढ़त कायम कर सका। परंतु दोनों का उद्देश्य एक ही था भारत मे संसदीय लोकतन्त्र को नष्ट करके 'अर्द्ध सैनिक तानाशाही' स्थापित करना।
1974 मे चिम्मन भाई पटेल की गुजरात सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध मे लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन मे पहली बार नानाजी देशमुख की अगुआई मे आर एस एस ने घुसपैठ की थी और अपार सफलता प्राप्त थी।1977 की जनता पार्टी सरकार मे अटल बिहारी बाजपाई ने विदेश विभाग मे तथा एल के आडवाणी ने सूचना एवं प्रसारण विभाग मे आर एस एस के लोगो की घुसपैठ करा दी थी। 1980 मे आर एस एस के सहयोग से इंदिरा गांधी की कांग्रेस पूर्ण बहुमत प्राप्त कर सकी थी। यह आर एस एस की बहुत बड़ी उपलब्धि थी। वी पी सिंह के 'बोफोर्स कमीशन विरोधी आंदोलन' मे घुस कर आर एस एस ने संतुलंनकारी भूमिका निभा कर अपनी शक्ति मे अपार वृद्धि कर ली थी और 'राम मंदिर आंदोलन' की आड़ मे पिछड़े वर्ग के हित मे लागू 'मण्डल कमीशन' रिपोर्ट की धज्जिये उड़ा दी थी। देश को साम्राज्यवादियों के अस्त्र 'सांप्रदायिकता' से दंगो मे फंसा कर अपार जन-धन की क्षति की गई थी।
1998 -2004 के राजग शासन काल मे गृह मंत्रालय और विशेष कर खुफिया विभागो मे आर एस एस की ज़बरदस्त पैठ बना दी गई। इनही तत्वो ने रामदेव को सहानुभूति दिलाने हेतु राम लीला मैदान कांड अंजाम दिलाया। लेकिन रामदेव की मूर्खताओ के कारण जनता मे उनकी कलई खुल गई। अतः अन्ना हज़ारे को आगे खड़ा किया गया। जो कुछ हुआ और हो रहा है सब की आँखों के सामने है। जो लोग व्यापारियों,उद्योगपतियों,ब्यूक्रेट्स के शोषण -उत्पीड़न को ढकने हेतु भ्रष्टाचार का जाप कर रहे थे और जनता को उल्टा भड़का रहे थे उनके मास्टर माइंड हीरो अरविंद केजरीवाल 'मतदान' ही नहीं करना चाहते थे और वह मतदाता तक न बने थे जो उनके 'लोकतन्त्र विरोधी' होने और 'तानाशाही समर्थक' होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।
अभी अभी मनमोहन सरकार के वरिष्ठ मंत्री वीरप्पा मोइली ने खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह ने हड़बड़ी मे 'उदारवाद' अर्थात आर्थिक सुधार लागू किए थे जिनसे 'भ्रष्टाचार' मे अपार वृद्धि हुई है।
तो यह वजह है कि मनमोहन सिंह जी ने आर एस एस को ताकत पहुंचाने हेतु अन्ना हज़ारे के आंदोलन को बल प्रदान किया था। सिर्फ और सिर्फ तानाशाही ही भ्रष्टाचार को अनंत काल तक संरक्षण प्रदान कर सकती है और इसी लिए इन आंदोलनकारियों ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को नष्ट करने का बीड़ा उठा रखा है। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत भर कर ये लोग जनता को लोकतन्त्र से दूर करना चाहते हैं।
देशभक्त जनता से विनम्र अपील है कि वह अन्ना/रामदेव/केजरीवाल सरीखे भ्रष्टाचारियों के संरक्षकों को कोई अहमियत न दे और 'लोकतन्त्र' तथा लोकतान्त्रिक मूल्यों की प्राण-पण से रक्षा करें।
पुनश्च :
डॉ डंडा लखनवी जी के विचारों पर ध्यान देने की सख्त ज़रूरत है-
Danda Lakhnavi
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