Tuesday, July 10, 2012

जनता की दुर्दशा के लिए उत्तरदाई कौन?









हाल ही में मथुरा में बाबा जयगुरूदेव का निधन हुआ है। ये स्वभाव से संत थे। इनके गुरू घूरेलाल मल्लाह थे। मेरे मथुरा स्थित घर में घूरेलाल का बराबर आना जाना था। मथुरा में हमारे घाट हैं 3 पैतृक।उनमें से एक घाट पर घूरे अपनी नाव लगाता था और सवारियां उठाता था। यमुना के उस पार वह झोंपड़ी बनाकर रहता था और वहीं पर बाबा जयगुरूदेव आरंभ में उनके पास ही रहते थे। बाबा जयगुरूदेव के पास आरंभ में कोई संपत्ति नहीं थी। लेकिन उनके मरने के बाद आज दैनिक भास्कर ने छापा है कि बाबा बेशुमार संपत्ति छोड़कर मरे हैं। लिखा है-
"ब्रह्मलीन हुए बाबा जय गुरुदेव की संपत्ति का हिसाब-किताब लगाया जा रहा है तो आंखें चौंधिया जा रही हैं। शुरुआती आकलन के मुताबिक बाबा 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का साम्राज्‍य छोड़ गए हैं। बाबा टाट के वस्‍त्र धारण करने की नसीहत देते थे, लेकिन उनकी संपत्ति से ठाठ का अंदाज लगाया जा सकता है। और अब यह संपत्ति उत्‍तराधिकार विवाद को गहरा सकती है।
संपत्ति में क्‍या-क्‍या बाबा के ट्रस्ट के मथुरा में आधा दर्जन से ज्यादा बैंक शाखाओं में खाते और एफडीहैं। एसबीआइ मंडी समिति ब्रांच के चालू खाते में एक अरब रुपए जमा बताए जाते हैं। कई अरब रुपए की एफडी भी हैं। अचल संपत्ति में ज्यादातर मथुरा-दिल्ली हाईवे पर एक तरफ साधना केंद्र से जुड़ी जमीनें हैं, तो दूसरी तरफ बाबा का आश्रम है। तीन सौ बीघे जमीन पर एक आश्रम इटावा के पास खितौरा में बन रहा है। एक आकलन के मुताबिक बाबा के ट्रस्ट के पास चार हजार एकड़ से ज्यादा जमीन है। जय गुरुदेव के ट्रस्ट के नाम से मथुरा में स्कूल और पेट्रोल पंप भी हैं। बाबा के आश्रम में दुनिया की सबसे महंगी गाड़ियों का लंबा काफिलाहै। इसमें पांच करोड़ से ज्यादा कीमत की लिमोजिन गाड़ी भी है। करोड़ों की प्लेमाउथ, ओल्ड स्कोडा, मर्सडीज बेंज और बीएमडब्ल्यू सहित तमाम गाडियों की कीमत 150 करोड़ के आसपास आंकी जा रही है।
दान से आय: आश्रम को हर महीने दस-बारह लाख रुपये का दान मिलता है। इसमें पूर्णिमा, गुरू पूर्णिमा और होली के आयोजनों पर आने वाला दान शामिल नहीं है। "
 ·  ·  · 52 minutes ago · 


    • Narendra Tomar धर्म और आध्‍यात्‍म की दुकान लगाने से बढिया धंघा और कोई नहीं है, और दुनिया भर के उपदेशों के बावजूद घोर लोभ लालच में फंसे हम आम 
      हिंदुस्‍तानियों को इन बाबा वैरागियों के हाथे लुटने में कोई हर्ज नही ल्गता है।
      19 minutes ago ·  ·  


'धर्म'और 'अध्यात्म' का जब विद्वान लोग ही गलत अर्थ ले रहे हैं तब आम जनता को क्या दोष दिया जाये?इसी ब्लाग के माध्यम से एक नहीं अनेकों बार स्पष्ट किया है कि-

धर्म=जो शरीर को धारण करने के लिए आवश्यक हो वही 'धर्म' है बाकी सब 'ढोंग-पाखंड और आडंबर।' 

अध्यात्म=अधययन +आत्मा=अपनी आत्मा का अध्ययन। 

अब ज़रा इन ढोंगियों के आचरण पर गौर करें तो स्वतः स्पष्ट हो जाएगा कि इंनका 'धर्म' और 'अध्यात्म ' से कोई संबंध है ही नहीं। इंनका उद्देश्य तो 'रोटी खाओ घी शक्कर से,दुनिया लूटो मक्कर से' होता है। जो लोग इन पाखंडियों का महिमामंडन करते हैं वे अपने निहित स्वार्थों के कारण ही ऐसा करते है न कि किसी 'परमार्थ'की भावना से। उत्तर-प्रदेश मे नए समाजवादी  मुख्यमंत्री और उनके पिता श्री को शाल ओढ़ाने आए RSS समर्थक सन्यासी जो सलवार-कुर्ता मे भाग खड़े हुये थे को सम्मान देना हो या उपरोक्त वर्णित सन्यासी महोदय के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण करना हो सत्ताधारी नेताओं ने अपनी जाति-बिरादरी मे अपनी साख बनाने के हितार्थ किया। किन्तु इससे जनता मे गलत संदेश जाता है कि जब इतने बड़े और प्रभावशाली नेता इनको इतना मान-सम्मान दे रहे हैं तो ये वाकई पहुंचे हुये विद्वान होंगे और वह भी उनके पीछे लुटने चली जाती है। 

कानपुर मे एक बार उत्तम चंद मल्होत्रा नामक एक व्यक्ति ने फूल बाग मे बहुत बड़ी सभा यह कह कर आयोजित की थी कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रकट होने वाले हैं और इन बाबा जय गुरुदेव को मंच पर पेश कर दिया था। जनता ने उत्तम चंद मल्होत्रा को पकड़ कर खूब पीटा भी था। लेकिन इस सब से जय गुरुदेव की दूकानदारी खूब चमक उठी जैसा कि अब अखबार बता रहे हैं। इन लोगों को बढ़ाने और उठाने मे भ्रष्ट व्यापारी,उद्योगपति,इन लोगों की जाति के राजनेता आदि खूब योगदान देते हैं । पूर्व मुख्यमंत्री  कल्याण सिंह ने भी अपनी जाति के एक सन्यासी को चमकाने और संसद मे पहुंचाने मे बड़ी भूमिका निभाई थी। एक ओर तो ये जातियाँ 'ब्राह्मणवाद' की तिक्त एवं कटु आलोचना करती हैं और जब इंनका ही कोई जाति-बंधु उसी 'ब्राहमनवाद' के जरिये सामने आता है तो उसका महिमामंडन भी बखूबी करती हैं। इस दोहरे आचरण से जनता का उत्पीड़न और शोषण बेहद मजबूत होता जाता है। यही मुख्य समस्या है 'समृद्ध भारत' की जनता की गरीबी की। 






सरकार द्वारा अनाज भंडारण की कुव्यवस्था 


आदमी भूख से मरता है और गेहूँ सड़ता है.....
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हमारे देश में सामाजिक ढांचा आज भी धार्मिक-सत्ता से शासित है....धार्मिक सत्ता पारंपरिक है.....उसका खुद का स्वरूप लोकतांत्रिक नहीं है। जनता को सरकार चुनने का हक तो मिल गया है....किन्तु लोकतांत्रिक मशीनरी को चलाने की शिक्षा उसे नहीं मिली है| वह कौन है जो आज भी आम आदमी को जाहिल बनाए रखना चाहता है। सामंती शासन में .....शिक्षा का अधिकार आम जनता को न था। आजादी के बाद अधिकार तो मिला.....किन्तु प्रभावकारी शैक्षिक-व्यवस्था आज भी लागू न हो सकी। लोकतंत्र की गाड़ी येनकेनप्रकारेण धर्म-तंत्र के ड्राइवर के हाथों में रहती है। अपरोक्ष रूप से वे उसे अपनी तरह.....से चलते हैं| यह सब असमानतावादी कुप्रबंधन और पाखंड की देन है। बहु-संख्यक जनता के अशिक्षित होने के परिणाम सबके सामने हैं| भारतीय लोकतंत्र का दिनोदिन दागदार इसी कारण होता जा रहा है| आदमी भूख से मरता है और गेहूँ सड़ता है।

उपरोक्त चित्र देख कर आदरणीय 'डंडा लखनवी ' जी ने लोकतान्त्रिक -सामंती व्यवस्था का जो हेतु बताया है वह भी यही इशारा कर रहा है कि प्रचलित धार्मिक व्यवस्था ही भूख,गरीबी और शोषण के लिए उत्तरदाई है। 


मैंने जन-जागरण के उद्देश्य से ही यह ब्लाग तथा 'जन-हित मे' प्रारम्भ किए थे। किन्तु हमारे फेसबुक धुरंदर एवं  ब्लागर्स शूर-वीर अपनी आत्म-प्रशंसा मे डूब कर मेरे विचारों को कुचलने का कार्य  फेसबुक और ब्लाग के माध्यम से करते रहते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि आम जनता जागरूक हो। लेकिन जब कोई इस प्रकार की घटना घटित हो जाती है तो घड़ियाली आँसू बहा कर जन-हितैषी होने का स्वांग अवश्य ही भरते हैं। आवश्यकता है -'धर्म,अध्यात्म आदि की सही व्याख्या जनता को समझाने की न कि धर्म और अध्यात्म की आलोचना करने की। हाँ आत्मालोचना करने की नितांत आवश्यकता है तभी ढोंगियों के पाखंड से जनता को बचाना संभव हो सकेगा। 

5 comments:

रविकर said...

यह है बुधवार की खबर ।

उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।

आइये-

सादर ।।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

समस्या यही है जनता के हालातों का उत्तरदायित्व तो कोई लेना ही नहीं चाहता .....जन साधारण को जागरूक होना होगा....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

जनता गूंगी हो गई, है संसद भी मौन
अंधी है सरकार भी, देखन वाला कौन,,,,

RECENT POST...: दोहे,,,,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जनता की है दुर्दशा, जन-जीवन बेहाल।
कूड़ा-कर्कट बीनते,भारत माँ के लाल।।

Bharat Bhushan said...

तथाकथित धर्म/अध्यात्म और ज़मीनी सच्चाई का संघर्ष बहुत पुराना है. शिक्षा के साथ जागरूकता आएगी तब बात बनेगी.