महामहिम प्रणब मुखर्जी साहब की शपथ कुंडली का विश्लेषण भी।
"मैं इंदिरा जी के कहने पर झाड़ू भी लगाने को तैयार हूँ "--1982 मे तब के गृह मंत्री ज्ञानी ज़ैल सिंह जी ने उनको राष्ट्रपति पद के लिए नामित किए जाने पर यह कहा था। 1987 मे इन्दिरा जी के पुत्र राजीव गांधी को धमकी दी थी कि यदि उनकी आलोचना करने वाले प्रोफेसर के के तिवारी को मंत्री मण्डल से न बर्खास्त किया तो वह वेंकट रमन जी के राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार कर देंगे और अंततः प्रो तिवारी हटाये गए थे। जन मोर्चा नेता वी पी सिंह आदि ने वेंकट रमन जी से भेंट कर आश्वासन ले लिया था कि निर्वाचन के बाद वह राजीव गांधी को अनावश्यक समर्थन नहीं देंगे और विपक्ष की सरकार बनवाने मे मदद देंगे।
वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी साहब ने अपनी राजनीति की शुरुआत 'बांग्ला कांग्रेस' से की थी। राजीव गांधी जी के अंतिम कार्यकाल मे आपने एक बार फिर कांग्रेस छोड़ कर अपनी 'समाजवादी कांग्रेस' बनाई थी जिसका विलय 1989 के चुनावों के समय पुनः कांग्रेस मे कर दिया था किन्तु राजीव जी बहुमत न प्राप्त कर सके। मुखर्जी साहब ने भी मुलायम सिंह आदि विपक्षी नेताओं को वेंकट रमन जी जैसा ही आश्वासन दे दिया था जिसके बाद उनको विपक्ष का भी व्यापक समर्थन मिला और वह बड़े बहुमत से विजयी हुये। आइये देखें क्या कहती है उनकी शपथ कुंडली-
समाचार पत्रों मे प्रकाशित खबरों के अनुसार मुखर्जी साहब ने राष्ट्रपति पद की शपथ नई दिल्ली मे ,25 जूलाई 2012 की प्रातः 11-20 पर ग्रहण की। उस दिन विक्रमी संवत के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी (तुलसी दास जयंती)थी। तिथि -सप्तमी ,दिन-बुधवार,नक्षत्र-चित्रा और लग्न-कन्या तथा 'सिद्धि योग' सभी शपथ ग्रहण हेतु शुभ थे। मुखर्जी साहब की नाम राशि 'कन्या' है और कन्या लग्न मे ही शपथ ग्रहण हुआ है चंद्र के भी वहीं रहने से राशि भी 'कन्या' ही थी। कन्या राशि का स्वामी 'बुध'-ज्ञान-बुद्धि-विवेक का होता है।
प्रथम भाव (लग्न)-कन्या जिसमे चंद्र,शनि,मंगल स्थित हैं।
तृतीय भाव-वृश्चिक का राहू।
नवे भाव मे-'वृष' के 'गुरु',शुक्र,केतू हैं।
एकादश भाव मे-'कर्क' के सूर्य और बुध।
मुखर्जी साहब ने अपने नाम के अनुकूल लग्न और राशि का तो चयन शपथ ग्रहण हेतु कर लिया किन्तु वहाँ उपस्थित 'चंद्रमा' उनके मस्तिष्क पर कार्यकाल के दौरान निरंतर भारी दबाव बनाए रखेगा। शनि-मंगल की युति उनको द्वंद मे फंसाए रहेगी। परंतु लग्न बुध की होने और बुध के सूर्य के साथ मजबूत स्थिति मे होने से वह समस्याओं पर बखूबी नियंत्रण प्राप्त कर लेंगे।
द्वितीय भाव 'जनता' का भाव होता है जिसमे 'तुला' राशि है और उसका स्वामी 'शुक्र' शुभ स्थान नवे मे अपनी ही 'वृष' राशि मे स्थित है जिसका अभिप्राय यह है कि मुखर्जी साहब को जनता का स्नेह व समर्थन पर्याप्त मिलेगा। हालांकि गुरु की ओर से झंझट भी खड़े हो सकते हैं परंतु गुरु का विरोधी शुक्र सबल होने से वह गुरु को काबू कर लेगा।
तृतीय भाव 'पराक्रम' और 'जनमत' का होता है जहां राजनीति का कारक 'राहू' बैठा है जो वृश्चिक राशि है जिसका स्वामी 'मंगल' लग्न मे बैठ कर शत्रुओं का संहार कर रहा है। इसका आशय यह है कि विवाद की स्थिति मे राष्ट्रपति महोदय दृढ़ता पूर्वक 'ठोस' निर्णय लेकर 'जनमत' का समर्थन प्राप्त कर लेंगे।
चतुर्थ भाव 'लोकप्रियता' व 'मान-सम्मान' का होता है। यहाँ गुरु की धनु राशि है और गुरु शुभ नवे स्थान मे बैठ कर लग्न ,तृतीय और पंचम स्थानों पर दृष्टिपात कर रहा है जो महामहिम के लिए शुभ हैं। अतः उनको पर्याप्त लोकप्रियता व मान-सम्मान मिलने के अच्छे योग हैं।
पाँचवाँ भाव 'लोकतन्त्र' का होता है जहां 'मकर' राशि है जिसका स्वामी 'शनि' अपने मित्र ग्रह की राशि मे लग्न मे बैठा है। 'शनि' खुद ही जनता का कारक है और न्याय का भी। अर्थात समयानुकूल जनता के पक्ष मे ही महामहिम मुखर्जी साहब निर्णय लेकर 'लोकतन्त्र' को और मजबूत ही करेंगे।
सातवाँ भाव नेतृत्व का होता है जहां मीन राशि स्थित है जिसका स्वामी 'गुरु' नवे शुभ भाव मे है। यह स्थिति देश के भीतर और बाहर दोनों जगह मुखर्जी साहब के नेतृत्व को सराहना प्रदान करेगी।
वर्तमान हालात
इस समय देश मे कन्या के शनि-मंगल विग्रह,अग्निकांड,उपद्रव, हिंसा,तोड़-फोड़,जन-संहार की स्थिति उत्पन्न किए हुये हैं। केंद्र सरकार 'जनाक्रोश' के भी केंद्र मे है। राष्ट्रपति पद के चुनाव मे अपने-अपने हितों के संरक्षण हेतु यू पी ए के प्रत्याशी को समर्थन देने वाले दल अब चुनाव के बाद यू पी ए को आँखें दिखा रहे हैं और 'मध्यावधि चुनावों' की संभावनाएं व्यक्त कर रहे हैं। ग्रह भी अराजकता की स्थिति बनाए हुये हैं। चुनावों की स्थिति मे एन डी ए और यू पी ए से कुछ दल टूट कर तीसरे गैर कांग्रेसी/गैर भाजपाई गुट के साथ आ जाएँगे। इस तीसरे गुट को बहुमत न भी मिले तो भी कांग्रेस को मजबूरन इसे ही समर्थन देना होगा और राष्ट्रपति महोदय भी चुनाव अभियान के दौरान इस गुट के नेताओं को दिये गए अपने आश्वासन को पूर्ण करेंगे। अतः नए महामहिम के आगमन को केंद्र मे गैर कांग्रेस/भाजपा सरकार के गठन की मुहिम के रूप मे भी देखा जा सकता है।
"मैं इंदिरा जी के कहने पर झाड़ू भी लगाने को तैयार हूँ "--1982 मे तब के गृह मंत्री ज्ञानी ज़ैल सिंह जी ने उनको राष्ट्रपति पद के लिए नामित किए जाने पर यह कहा था। 1987 मे इन्दिरा जी के पुत्र राजीव गांधी को धमकी दी थी कि यदि उनकी आलोचना करने वाले प्रोफेसर के के तिवारी को मंत्री मण्डल से न बर्खास्त किया तो वह वेंकट रमन जी के राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार कर देंगे और अंततः प्रो तिवारी हटाये गए थे। जन मोर्चा नेता वी पी सिंह आदि ने वेंकट रमन जी से भेंट कर आश्वासन ले लिया था कि निर्वाचन के बाद वह राजीव गांधी को अनावश्यक समर्थन नहीं देंगे और विपक्ष की सरकार बनवाने मे मदद देंगे।
वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी साहब ने अपनी राजनीति की शुरुआत 'बांग्ला कांग्रेस' से की थी। राजीव गांधी जी के अंतिम कार्यकाल मे आपने एक बार फिर कांग्रेस छोड़ कर अपनी 'समाजवादी कांग्रेस' बनाई थी जिसका विलय 1989 के चुनावों के समय पुनः कांग्रेस मे कर दिया था किन्तु राजीव जी बहुमत न प्राप्त कर सके। मुखर्जी साहब ने भी मुलायम सिंह आदि विपक्षी नेताओं को वेंकट रमन जी जैसा ही आश्वासन दे दिया था जिसके बाद उनको विपक्ष का भी व्यापक समर्थन मिला और वह बड़े बहुमत से विजयी हुये। आइये देखें क्या कहती है उनकी शपथ कुंडली-
समाचार पत्रों मे प्रकाशित खबरों के अनुसार मुखर्जी साहब ने राष्ट्रपति पद की शपथ नई दिल्ली मे ,25 जूलाई 2012 की प्रातः 11-20 पर ग्रहण की। उस दिन विक्रमी संवत के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी (तुलसी दास जयंती)थी। तिथि -सप्तमी ,दिन-बुधवार,नक्षत्र-चित्रा और लग्न-कन्या तथा 'सिद्धि योग' सभी शपथ ग्रहण हेतु शुभ थे। मुखर्जी साहब की नाम राशि 'कन्या' है और कन्या लग्न मे ही शपथ ग्रहण हुआ है चंद्र के भी वहीं रहने से राशि भी 'कन्या' ही थी। कन्या राशि का स्वामी 'बुध'-ज्ञान-बुद्धि-विवेक का होता है।
प्रथम भाव (लग्न)-कन्या जिसमे चंद्र,शनि,मंगल स्थित हैं।
तृतीय भाव-वृश्चिक का राहू।
नवे भाव मे-'वृष' के 'गुरु',शुक्र,केतू हैं।
एकादश भाव मे-'कर्क' के सूर्य और बुध।
मुखर्जी साहब ने अपने नाम के अनुकूल लग्न और राशि का तो चयन शपथ ग्रहण हेतु कर लिया किन्तु वहाँ उपस्थित 'चंद्रमा' उनके मस्तिष्क पर कार्यकाल के दौरान निरंतर भारी दबाव बनाए रखेगा। शनि-मंगल की युति उनको द्वंद मे फंसाए रहेगी। परंतु लग्न बुध की होने और बुध के सूर्य के साथ मजबूत स्थिति मे होने से वह समस्याओं पर बखूबी नियंत्रण प्राप्त कर लेंगे।
द्वितीय भाव 'जनता' का भाव होता है जिसमे 'तुला' राशि है और उसका स्वामी 'शुक्र' शुभ स्थान नवे मे अपनी ही 'वृष' राशि मे स्थित है जिसका अभिप्राय यह है कि मुखर्जी साहब को जनता का स्नेह व समर्थन पर्याप्त मिलेगा। हालांकि गुरु की ओर से झंझट भी खड़े हो सकते हैं परंतु गुरु का विरोधी शुक्र सबल होने से वह गुरु को काबू कर लेगा।
तृतीय भाव 'पराक्रम' और 'जनमत' का होता है जहां राजनीति का कारक 'राहू' बैठा है जो वृश्चिक राशि है जिसका स्वामी 'मंगल' लग्न मे बैठ कर शत्रुओं का संहार कर रहा है। इसका आशय यह है कि विवाद की स्थिति मे राष्ट्रपति महोदय दृढ़ता पूर्वक 'ठोस' निर्णय लेकर 'जनमत' का समर्थन प्राप्त कर लेंगे।
चतुर्थ भाव 'लोकप्रियता' व 'मान-सम्मान' का होता है। यहाँ गुरु की धनु राशि है और गुरु शुभ नवे स्थान मे बैठ कर लग्न ,तृतीय और पंचम स्थानों पर दृष्टिपात कर रहा है जो महामहिम के लिए शुभ हैं। अतः उनको पर्याप्त लोकप्रियता व मान-सम्मान मिलने के अच्छे योग हैं।
पाँचवाँ भाव 'लोकतन्त्र' का होता है जहां 'मकर' राशि है जिसका स्वामी 'शनि' अपने मित्र ग्रह की राशि मे लग्न मे बैठा है। 'शनि' खुद ही जनता का कारक है और न्याय का भी। अर्थात समयानुकूल जनता के पक्ष मे ही महामहिम मुखर्जी साहब निर्णय लेकर 'लोकतन्त्र' को और मजबूत ही करेंगे।
सातवाँ भाव नेतृत्व का होता है जहां मीन राशि स्थित है जिसका स्वामी 'गुरु' नवे शुभ भाव मे है। यह स्थिति देश के भीतर और बाहर दोनों जगह मुखर्जी साहब के नेतृत्व को सराहना प्रदान करेगी।
वर्तमान हालात
इस समय देश मे कन्या के शनि-मंगल विग्रह,अग्निकांड,उपद्रव, हिंसा,तोड़-फोड़,जन-संहार की स्थिति उत्पन्न किए हुये हैं। केंद्र सरकार 'जनाक्रोश' के भी केंद्र मे है। राष्ट्रपति पद के चुनाव मे अपने-अपने हितों के संरक्षण हेतु यू पी ए के प्रत्याशी को समर्थन देने वाले दल अब चुनाव के बाद यू पी ए को आँखें दिखा रहे हैं और 'मध्यावधि चुनावों' की संभावनाएं व्यक्त कर रहे हैं। ग्रह भी अराजकता की स्थिति बनाए हुये हैं। चुनावों की स्थिति मे एन डी ए और यू पी ए से कुछ दल टूट कर तीसरे गैर कांग्रेसी/गैर भाजपाई गुट के साथ आ जाएँगे। इस तीसरे गुट को बहुमत न भी मिले तो भी कांग्रेस को मजबूरन इसे ही समर्थन देना होगा और राष्ट्रपति महोदय भी चुनाव अभियान के दौरान इस गुट के नेताओं को दिये गए अपने आश्वासन को पूर्ण करेंगे। अतः नए महामहिम के आगमन को केंद्र मे गैर कांग्रेस/भाजपा सरकार के गठन की मुहिम के रूप मे भी देखा जा सकता है।
5 comments:
उम्मीद है जो भी बदलाव हों , सकारात्मक और आमजन के भले के लिए होगा......
सब कुछ अच्छा ही होगा बशर्ते मंहगाई पर अंकुश लग सके.....
जो भी हो देश के सभी जन के लिए शुभ हो. यही मामना है.
कुल मिला कर जो भी होना होगा हो जाएगा
और हर हालत में निम्न-मध्यम वर्ग ही मारा जाएगा
देखें अब आगे क्या होता है ... बस आम जनता को कुछ राहत मिले
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