भाजपा और कांग्रेस का विकल्प केवल वामपंथ.................................................. वामपंथी दलों और उसमें विशेषकर भाकपा का पूरे देश में संगठन है।"
एक ओर जहां यह शख्स भाजपा,उ प्र के प्रभारी ओम माथुर को प्रसन्न करने हेतु भाकपा को जन-प्रिय बनाने के मेरे सुझावों की भर्त्सना करता है वहीं दूसरी ओर कल्याण सिंह समर्थक व्यापारियों व हिन्दू परिषद के लोगों की भाकपा में घुसपैठ करा रहा है जैसा कि उपरोक्त तीनों फोटो से साफ ज़ाहिर होता है (डिस्ट्रीब्यूटर व हिन्दू परिषद के लोग इसी शख्स के संरक्षण वाले AISF, यू पी में सम्मानित पदों पर विराजे गए हैं )। ऐसे ही लोगों के लिए CPM नेता की पुत्री व निर्भीक पत्रकार सुश्री मनीषा पांडे जी ने लिखा है-
https://www.facebook.com/manisha.pandey.564/posts/10205667154182873
राइट-लेफ्ट होना और
बात है और अच्छा इंसान होना बिलकुल दूसरी बात। वाम मार्ग से तनिक भी सो
कॉल्ड विचलन देखकर आपका घर-खानदान, जीवन गालियों से तौल देने वाले वाम
सिपाही भी बहुत क्रूर, तंगदिल मनुष्य हो सकते हैं। बल्कि हैं ही।
एक तरफ अपने फेसबुक स्टेटस द्वारा इसी शख्स ने लोगों को भ्रमित करने की बातें लिखी हैं दूसरी तरफ यही शख्स अपनी ही पार्टी भाकपा को खोखला करने में लगा हुआ है। लखनऊ ज़िले का सदस्य होते हुये भी यही ज़िला इंचार्ज भी बना हुआ है तथा अपने गुरु को पर्यवेक्षक बनवा कर भिजवाया था तथा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को मखौल बना कर रख दिया था। यथा---
लखनऊ का 22वा ज़िला सम्मेलन :23 नवंबर 2014
("--
पार्टी संविधान की धारा 22 की उप धारा 9 (घ ) के अंतर्गत राज्य सम्मेलन के
लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करना था जो वास्तव में नहीं हुआ।
-उप धारा 9
(ड़.) ज़िला हिसाब जांच आयोग की रिपोर्ट पर विचार करना और उसके संबंध में
फैसले करना चाहिए था जो नहीं हुआ। कोई आय-व्यय विवरण प्रस्तुत ही नहीं किया
गया था। 27 नवंबर 2011 के 21 वे सम्मेलन के समय रिपोर्ट न पेश करने के साथ
आश्वासन दिया गया था कि बाद में ज़िला काउंसिल में पेश की जाएगी जो कि विगत
तीन वर्षों में कभी भी नहीं प्रस्तुत की गई। इस बार न तो ऐसा कुछ भी
बताया गया था न ही न बताने का कारण दिया गया था।
-ज़िला काउंसिल के
निर्वाचन हेतु संविधान की धारा 16 की उप धारा (च) में वर्णित " गुप्त मतदान
द्वारा तथा एक-एक वित्तरणशील वोट के तरीके से मत लिया जाएगा " की
प्रक्रिया का अनुपालन न करके ज़िला काउंसिल के लिए प्रस्तवित 21 की संख्या
को बढ़ा कर 23 कर के दो बढ़ाए हुये नामों को शामिल किया गया। एक स्थान रिक्त
भी रखा गया।
-पार्टी संविधान की धारा 24 की उप धारा 3 (च ) का पिछली
ज़िला काउंसिल में कभी भी पालन नहीं किया गया था-"ज़िले के आय-व्यय पर
नियंत्रण रखना ")
इन साहब की मेहरबानी से लखनऊ में तीन वर्षों के दौरान 168 सदस्य पार्टी से अलग हो चुके हैं और अब भाजपा समर्थकों को भाकपा में भर कर यह जनाब भाकपा को ध्वस्त करने की प्रक्रिया को तेज़ करने लगे हैं। इनको व इनके गुरु को यदि उत्तर प्रदेश में ऐसी ही मनमानी छूट मिली रही तो ये लोग अपने मंसूबों में कामयाब भी हो सकते हैं। विगत में प्रदेश में भाकपा को दो-दो बार विभाजित कराने में इन दोनों की ही महती भूमिका रही है।
आज जब साम्राज्यवाद/सांप्रदायिकता देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने की लगातार कोशिशों में जुटे हुये हैं 'एथीस्टवाद' के मकड़-जाल से बाहर निकल कर सांप्रदायिकता के आधार को समाप्त करने की नितांत आवश्यकता है। जनता के समक्ष सच्चाई बता कर ही हम कामयाब हो सकते हैं कि,:
"समस्या की जड़ है-ढोंग-पाखंड-आडंबर को 'धर्म' की संज्ञा देना तथा हिन्दू,इसलाम ,ईसाईयत आदि-आदि मजहबों को अलग-अलग धर्म कहना जबकि धर्म अलग-अलग
कैसे हो सकता
है? वास्तविक 'धर्म' को न समझना और न मानना और ज़िद्द पर अड़ कर पाखंडियों के
लिए खुला मैदान छोडना संकटों को न्यौता देना है। धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
भगवान =भ (भूमि-ज़मीन )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी)
चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा
हैं।
इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं।"
परंतु इस सच्चाई को बताना इस शख्स और इस जैसे लोगों को अखरता व नागवार लगता है जिसका पूरा-पूरा लाभ सांप्रदायिक शक्तियों को मिलता है और वे पाखंड तथा ढोंग को ही 'धर्म' के नाम पर परोस कर जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़्ती रहती हैं जो कि पूंजीवाद/साम्राज्यवाद का अभीष्ट है। अतः इस प्रकार 'एथीस्टवाद' ढोंग-पाखंड रूपी अधर्म व पूंजीवाद/साम्राज्यवाद का ही सहायक सिद्ध होता है।
No comments:
Post a Comment