Thursday, December 18, 2014

कलम और कागज के जरिये 'क्रांति' का पैगाम --- विजय राजबली माथुर


#gulzaar:गुलज़ार साहब के ये वाक्य यथार्थ की अभिव्यक्ति हैं। एक प्रकार से 'अकबर इलाहाबादी ' साहब के इस कथन का समर्थन भी इन पंक्तियों द्वारा हो जाता है :
''न खींचो तीर कमानों को , न तलवार निकालो।
जब तोप मुक़ाबिल हो    तो अखबार  निकालो । । "

वस्तुतः 'विद्रोह' या 'क्रांति' कोई ऐसी चीज़ नहीं होती कि जिसका विस्फोट एकाएक अचानक होता है। बल्कि इसके अनंतर 'अंतर' के तनाव को बल मिलता रहता है। अखबार निकालने की क्षमता तो मुझ में न थी न है परंतु मैं 1973 से ही विभिन्न अखबारों में अपने लेख भेजता रहा और छ्पते भी रहे हैं। एक साप्ताहिक पत्र व एक त्रैमासिक पत्रिका में सह-संपादक के रूप में कार्य करने का अवसर भी मिल चुका है अब जून 2010 से ब्लाग्स के माध्यम से लेखन जारी रखे हुये हूँ।
06 दिसंबर 2014 : को फेसबुक पर यह स्टेटस दिया था-




 मेरे लेखन के कटु आलोचक व प्रबल विरोधी द्वारा दिया गया निम्नांकित  फेसबुक स्टेटस देख कर बेहद हैरानी हुई कि यह शख्स कितने दोहरे चरित्र का आदमी है। 26 दिसंबर 2010 को भाकपा के प्रदेश कार्यालय में पार्टी के एक जन-प्रिय  राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान साहब के 'मुख्य वक्ता' के रूप में बोल चुकने के उपरांत उस गोष्ठी के संचालक के रूप में इसी शख्स ने अरविंद केजरीवाल को बोलने का अवसर दिया था। यह शख्स कल्याण सिंह और सी बी गुप्ता का भी प्रशंसक है।खुद को  एथीस्ट घोषित करने के बावजूद 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' तथा हज़ारे-केजरीवाल-मोदी के विरुद्ध लिखे मेरे लेखों की खिल्ली उड़ाता है। बर्द्धन जी व अंजान साहब के पोस्ट्स पार्टी ब्लाग में लगा देने के कारण इसी शख्स ने मुझे उस ब्लाग की आथरशिप व एडमिनशिप से हटा दिया था। तब 'साम्यवाद (COMMUNISM ) ' नामक अलग ब्लाग बना कर मैं बर्द्धन जी व अंजान साहब के पोस्ट्स भी उसमें निकालने लगा तो मुझे लखनऊ भाकपा की ज़िला काउंसिल से भी हटवा दिया। जन-हितैषी और ईमानदार कार्यकर्ताओं के शत्रु इस शख्स के  उद्धृत स्टेटस पर कतई विश्वास नहीं किया जा सकता जिसकी 'कथनी और करनी' में भारी अंतर है जो नीचे दिये गए इन तीन फोटो से स्पष्ट हो जाएगा।  

16 dec.2014 
· 
भाजपा और कांग्रेस का विकल्प केवल वामपंथ.................................................. वामपंथी दलों और उसमें विशेषकर भाकपा का पूरे देश में संगठन है।"





 एक ओर जहां यह शख्स भाजपा,उ प्र के प्रभारी ओम माथुर को प्रसन्न करने हेतु भाकपा को जन-प्रिय बनाने के मेरे सुझावों की भर्त्सना करता है वहीं दूसरी ओर कल्याण सिंह समर्थक  व्यापारियों व हिन्दू परिषद के लोगों की भाकपा में घुसपैठ करा रहा है जैसा कि उपरोक्त तीनों फोटो से साफ ज़ाहिर होता है (डिस्ट्रीब्यूटर व हिन्दू परिषद के लोग इसी शख्स के संरक्षण वाले AISF, यू पी में सम्मानित पदों पर विराजे गए हैं )। ऐसे ही लोगों के लिए CPM नेता की पुत्री व निर्भीक पत्रकार सुश्री मनीषा पांडे जी ने लिखा है-

https://www.facebook.com/manisha.pandey.564/posts/10205667154182873
  राइट-लेफ्ट होना और बात है और अच्‍छा इंसान होना बिलकुल दूसरी बात। वाम मार्ग से तनिक भी सो कॉल्‍ड विचलन देखकर आपका घर-खानदान, जीवन गालियों से तौल देने वाले वाम सिपाही भी बहुत क्रूर, तंगदिल मनुष्‍य हो सकते हैं। बल्कि हैं ही।

एक तरफ अपने फेसबुक स्टेटस द्वारा इसी शख्स ने लोगों को भ्रमित करने की बातें लिखी हैं दूसरी तरफ यही शख्स अपनी ही पार्टी भाकपा को खोखला करने में लगा हुआ है। लखनऊ ज़िले का सदस्य होते हुये भी यही ज़िला इंचार्ज भी बना हुआ है तथा अपने गुरु को पर्यवेक्षक बनवा कर भिजवाया था तथा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को मखौल बना कर रख दिया था। यथा---
लखनऊ का 22वा ज़िला सम्मेलन :23 नवंबर 2014

("-- पार्टी संविधान की धारा 22 की उप धारा 9 (घ ) के अंतर्गत राज्य सम्मेलन के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करना था जो वास्तव में नहीं हुआ।
-उप धारा 9 (ड़.) ज़िला हिसाब जांच आयोग की रिपोर्ट पर विचार करना और उसके संबंध में फैसले करना चाहिए था जो नहीं हुआ। कोई आय-व्यय विवरण प्रस्तुत ही नहीं किया गया था। 27 नवंबर 2011 के 21 वे सम्मेलन के समय रिपोर्ट न पेश करने के साथ आश्वासन दिया गया था कि बाद में ज़िला काउंसिल में पेश की जाएगी जो कि विगत तीन वर्षों में कभी भी नहीं प्रस्तुत की गई। इस बार न तो ऐसा कुछ भी  बताया गया था न ही न बताने का कारण दिया गया था।
-ज़िला काउंसिल के निर्वाचन हेतु संविधान की धारा 16 की उप धारा (च) में वर्णित " गुप्त मतदान द्वारा तथा एक-एक वित्तरणशील वोट के तरीके से मत लिया जाएगा " की प्रक्रिया का अनुपालन न करके ज़िला काउंसिल के लिए प्रस्तवित 21 की संख्या को बढ़ा कर 23 कर के दो बढ़ाए हुये नामों को शामिल किया गया। एक स्थान रिक्त भी रखा गया।
-पार्टी संविधान की धारा 24 की उप धारा 3 (च ) का पिछली ज़िला काउंसिल में कभी भी पालन नहीं किया गया था-"ज़िले के आय-व्यय पर नियंत्रण रखना ")
इन साहब की मेहरबानी से लखनऊ में तीन वर्षों के दौरान 168 सदस्य पार्टी से अलग हो चुके हैं और अब भाजपा समर्थकों  को  भाकपा में भर कर यह जनाब भाकपा को ध्वस्त करने की प्रक्रिया को तेज़ करने लगे हैं। इनको व इनके गुरु को यदि उत्तर प्रदेश में ऐसी ही मनमानी छूट मिली रही तो ये लोग अपने मंसूबों में कामयाब भी हो सकते हैं। विगत में प्रदेश में भाकपा को दो-दो बार विभाजित कराने में इन दोनों की ही महती भूमिका रही है। 
आज जब साम्राज्यवाद/सांप्रदायिकता देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने की लगातार कोशिशों में जुटे हुये हैं 'एथीस्टवाद' के मकड़-जाल से बाहर निकल  कर सांप्रदायिकता के आधार को समाप्त करने की नितांत आवश्यकता है। जनता के समक्ष सच्चाई बता कर ही हम कामयाब हो सकते हैं कि,:


"समस्या की जड़ है-ढोंग-पाखंड-आडंबर को 'धर्म' की संज्ञा देना तथा हिन्दू,इसलाम ,ईसाईयत आदि-आदि मजहबों को अलग-अलग धर्म कहना जबकि धर्म अलग-अलग कैसे हो सकता है? वास्तविक 'धर्म' को न समझना और न मानना और ज़िद्द पर अड़ कर पाखंडियों के लिए खुला मैदान छोडना संकटों को न्यौता देना है। धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। भगवान =भ (भूमि-ज़मीन )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी) चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं।"



परंतु इस सच्चाई को बताना इस शख्स और इस जैसे लोगों को अखरता व  नागवार  लगता है जिसका पूरा-पूरा लाभ सांप्रदायिक शक्तियों को मिलता है और वे पाखंड तथा ढोंग को ही 'धर्म' के नाम पर परोस कर जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़्ती रहती हैं जो कि पूंजीवाद/साम्राज्यवाद का अभीष्ट है। अतः इस प्रकार 'एथीस्टवाद' ढोंग-पाखंड रूपी अधर्म व पूंजीवाद/साम्राज्यवाद का ही सहायक सिद्ध होता है।
  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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