Monday, November 8, 2010

तोड़-फोड़ और प्लास्टिक पिरामिड वास्तविक समाधान नहीं

भारतीय भवन की निर्माण विधि ही वास्तु -कला है जो संसार -प्रसिद्द रही है .लेकिन चीन  की फेंगशुई से प्रभावित वर्तमान वास्तु -शास्त्र महज एक पाखण्ड क़े रूप में सामने आया है .आज क़े वास्तु -शास्त्री या तो तोड़ -फोड़ का सहारा ले रहे हैं या समाधान क़े रूप में प्लास्टिक क़े बने पिरामिडों या विशेष मिरर का प्रयोग करवा कर लोगों को उलटे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं.आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग भी ऐसे ही पम्प एन्ड शो वैज्ञानिकों क़े द्वार खटखटाते हैं फिर चाहे वे ऊंची दुकानऔर फीका पकवान ही क्यों न निकलें .याद रखिये मानव जीवन अमूल्य है और यह ५० प्रतिशत भाग्य अर्थात प्रारब्ध तथा ५० प्रतिशत वास्तु पर निर्भर करता है.यदि भवन -कला में वास्तु का ध्यान न रक्खा जाये तो वह शून्य होती है और आज की सिविल इंजीनियरिंग तथा आर्किटेक्ट ऐसी ही विधाएं हैं.वास्तु -शास्त्र में धर्म तथा ज्योतिष का ध्यान रक्खा जाता है जबकि इंजीनियरिंग व आर्किटेक्ट में इन दोनों को  कोई स्थान नहीं दिया जाता है .आज की इंजीनियरिंग ,आर्किटेक्ट और फेंगशुई विधाएं विदेशों से आयी हैं और इनके प्रति लोगों में तीव्र ललक है .अपने देश की गरिमामय और श्रेष्ठत्तम वास्तु कला को बहुत कम लोग जानते व महत्त्व देते हैं .पंजाब की एक प्रसिद्द लोक कहावत है -
ने ड़ो तीर्थ गाँव गुरु ,गलियों हंदा देव .
इत्तरा ही महिमा नहीं ,संत भाखै सहदेव ..

अर्थात अपने गाँव क़े नजदीकी तीर्थ का गाँव में कोई महत्त्व नहीं होता.अपनी जाति एवं गाँव क़े विद्वान का उसकी जाति एवं उसके गाँव में कोई महत्त्व नहीं होता .बहुत सटीक है यह पंजाबी कहावत जो मेरे निजी अनुभव में पूरी खरी उतरती है .मुझे -केमिस्ट्री में पी .एच .डी.किये हुए डा .उपाध्याय ,जूलाजी में पी .एच .डी .किये हुए डा .तिवारी ,मर्चेंट नेवी क़े अधिकारी श्री पालीवाल ,शिक्षक नेता और पी .सी .सी .सदस्य श्री द्विवेदी  क़े घरों पर हवन कराने का अवसर प्राप्त हुआ है जो उनकी पूर्ण संतुष्टि क़े साथ संपन्न हुए हैं और उन लोगों ने उनका भरपूर लाभ उठाया है जबकि अपनों क़े बीच स्थिति एक बेगाने जैसी है .
संक्षेप में वास्तु शास्त्र से सम्बंधित कुछ सूत्र बताना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ यदि जिनका पालन किया जाये तो लाभ प्राप्त हो सकता है ;जैसे -
जल -बोरिंग ईशान (N .E .),उत्तर (N .) ,पूर्व (E .),पश्चिम (W .) में तो कराना ठीक है .इसी प्रकार जल का कनेक्शन इन दिशाओं में ठीक है .आग्नेय (S .)में पत्नी का नाश ,वावव्य  (S .W .)में शत्रु द्वारा पीड़ा तथा घर क़े मध्य में कराने पर सग्रहित धन का नाश करता है .
पाट ,गाडर बीम -क़े नीचे बैठना मृत्यु को दावत देना ,आयु को क्षीण करना एवं अशुभ को आमंत्रित करना है.
मुख्य द्वार -यदि मुख्य द्वार सही है तो घर में ऋद्धी-सिद्धी सब प्रकार क़े मंगल कार्यों की वृद्धी होती है .घर क़े सदस्यों की रक्षा होती है एवं वंश बेल आगे बढ़ती है .निम्नलिखित तथ्य द्वार -वेध की श्रेणी क़े हैं जो विपरीत फल देते हैं ,यथा मुख्य द्वार खोलते ,बंद करते समय किसी प्रकार की अप्रिय आवाज़ का आना ,किसी पेड़ या पौधे का होना ,दीवार का कोना ,खम्बा ,खाई ,कुआँ ,कीचड ,गली ,मंदिर की छाया ,पीपल की छाया ,कब्र ,लम्बोतर गली ,किसी प्रकार का बंद होना द्वार वेध है .

आज कल बाज़ार में उपलब्ध वास्तु विद्या  क़े ग्रन्थ एवं उनके अनुसार लोगों को दिशा देने वाले लब्ध -प्रतिष्ठित  वास्तु वैज्ञानिक भारतीय वास्तु -शास्त्र क़े ज्ञान से अनभिज्ञ होने क़े कारण अथवा धन क़े लोभ में लोगों को भ्रमित कर रहे हैं.भारतीय वैदिक वास्तु -विज्ञान की कसौटी पर वही जीवन श्रेष्ठ होता है जो ग्रह स्वामी हेतु किसी भी परिस्थिति में अधिक सुरक्षा ,अधिक स्वस्थ वातावरण तथा अधिक सुविधा प्रदान करता है .ऐसे भवन में निवास करने वाले व्यक्ति सभी विपदाओं से मुक्त रहते हुए ,सुक्ख -पूर्वक शीघ्र ही जीवन क़े मुख्य उद्देश्य धर्म ,अर्थ ,काम एवं मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं .परन्तु इसके विपरीत इन तीनो गुणों  से विहीन व्यक्ति को शारीरिक ,मानसिक तथा प्राकृतिक पीडाओं से दुखी रहना पड़ता है .प्राचीन वास्तु विज्ञान क़े स्थान पर वर्तमान में प्रचलित पाखंडपूर्ण वास्तु विद्या  से ऐसी ही दुर्गति हो रही है .आज क़े वास्तु -विशेषज्ञ या तो तोड़ -फोड़ को वरीयता देते हैं अर्थात रसोई ,शौचालय आदि को तोड़ कर बदलने का सुझाव देते हैं अथवा प्लास्टिक क़े पिरामिड या विशेष मिरर लगाने को कहते हैं .तोड़ -फोड़ किसी समस्या का समाधान नहीं है .प्लास्टिक एक ताप कुचालक (Bad conductor of heat )है जो ग्रह -नक्षत्रों से आने वाली रश्मियों (Rays )को परावर्तित कर देता है अतः उसका प्रयोग करना अथवा न करना एक बराबर है .यदि आपके भवन में दोष है और उनका आसान विकल्प तोड़ -फोड़ नहीं है तो आप वास्तु दोष निवारणार्थ वास्तु यन्त्र  तथा वास्तु हवन का सहारा ले सकते हैं .हवन पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति है जिसमे डाले गए पदार्थों को अग्नि परमाणुओं (Atoms ) में विभक्त कर देती है और वायु उन परमाणुओं को बोले गए मन्त्रों की शक्ति से सम्बंधित ग्रह -नक्षत्रों तथा देवताओं तक पहुंचा देती है जो आपके वास्तु -दोषों का शमन कर आपको राहत देते हैं.अतएव हवन -पद्धति अपना कर आप तोड़ -फोड़ व कृत्रिम उपाय क़े निष्फल से बच सकते हैं.


नोट -यह लेख अग्र मन्त्र ,फरवरी २००४ में आगरा में छप  चुका है ,इसे ब्लॉग जगत क़े बुद्धिमान लोगों क़े भले हेतु पुनः प्रकाशित किया जा रहा है.


 (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

2 comments:

arvind said...

bahut hi tathyaparak jaankaripurn lekh...aadhunik engineers or architetcures ko bhi vaastu v jyotish ko dhyaan me rakhna chaahiye.

पूनम श्रीवास्तव said...

aapke aalekh ko padh kar vastav me bahut si aisi jankariyan mili jisse ham anbhigy the.aapne vaastu shastra ke baare me bhi bahut hi achhi jankari di hai.vastav me aaj kal log yahi kar rahe hai ,purn jankari ke abhav me jisne jo bataya usi par vishwaas kar lete hain .par galti unki bhi nahi hai kyon ki jab vykti pareshaniyo se buri tarah grasit hota hai to kuchh samajh nahi pata ,fir jo jaisa batata hai vah usi ke aadhar par kary karne ya karvane ko majbur ho jaata hai.
bahut hi gyan -vardhak aalekh ke liye dhanyvaad.
poonam