Sunday, November 28, 2010

१८० दिन तथा इदं न मम

ब श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमार तुंगा ने अपनी माँ सिरीमावो भंडारनायके को प्रधान मंत्री पद की शपथ दिलाई थी तो मीडिया ने कहा था ,जिस माँ ने उंगली पकड़ कर चलना सिखाया उसी माँ को पुत्री ने शपथ दिलाई है.यह तो लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में हुआ था.कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ.मई क़े अंतिम सप्ताह में मैंने पुत्र को साइबर कैफे खुलवा दिया.पहली जून से उसने अपना ब्लाग "जो मेरा मन कहे" प्रारम्भ किया और उसी ने मुझे भी ब्लाग प्रारम्भ करने को प्रेरित किया. दो जून से मेरा ब्लाग "क्रांति स्वर" व दो माह बाद "विद्रोही स्वर" प्रारम्भ हुए.चूंकि  मैं कंप्यूटर सञ्चालन से अनभिज्ञ था ,अतः टाइपिंग से लेकर पब्लिकेशन  तक सम्पूर्ण मेरा कार्य उसी क़े जिम्मे था. तीन माह बाद टाईप तो मैं करने लगा परन्तु अभी भी शेष कार्य संपादन करना उसी द्वारा होता है.कुल ब्लाग -लेखन को प्रारम्भ हुए १८० दिन पूर्ण हो गये हैं.इसका पूर्णांक नौ है.नौ सबसे बड़ा अंक होता है और ज्योतिष में इसका बहुत महत्त्व है.कुल ब्रह्मांड (खगोलीय वृत्त ) -३६० डिग्री है और सूर्य की ६० कलाएं हैं.इस प्रकार :-
३६० गुणक ६० =२१६०० एवं सूर्य वर्ष में १४ जन .से १५ जूलाई  तक उत्तरायण तथा १६ जुलाई  से १३ जनवरी तक दक्षिणायन रहता है.अतः २१६०० भाग २ =१०८०० और बाद क़े शून्य का महत्त्व नहीं है.इसी लिए १०८ को बड़ी सं माना जाता है और माला में मनके भी १०८ ही रखे गये हैं.१२ राशियाँ और ९ ग्रह का गुणनफल भी १०८ है तथा २७ नक्षत्रों और इनके चार चरणों का गुणनफल भी १०८ ही है.३६० डिग्री का अर्धव्यास १८० डिग्री होता है और हम लोगों क़े ब्लाग लेखन क़े १८० दिन बीत गये है तो विचार आया कि क्यों न अपने अनुभवों को सार्वजनिक रूप से आप सब क़े साथ बाँट लिया जाये.


सर्व -प्रथम तो यह कि,यशवन्त तो जो उसके मन में आ जाता है उसकी भावाभिव्यक्ति कर देता है और विद्रोही स्वर में मेरे संघर्षों की कुछ झलक है."क्रन्तिस्वर "में व्यक्त विचार मेरे नहीं हैं -इदं न मम.मैंने अपने बुजुर्गों ,शिक्षकों ,विद्वानों आदि से जो सुना या पुस्तकों में जो पढ़ा और मुझे ठीक से याद रहा अपनी भाषा -शैली में व्यक्त कर देता हूँ.शब्द -विन्यास मेरे होते हुए भी भाव और विचार विद्वानों क़े होते हैं.मैं तो डाकिये की भांति उन विचारों को ब्लाग -लेखन क़े माध्यम से बाँट रहा हूँ जो मेरे नहीं हैं.या कह लीजिये विद्युत् तार में बहते करंट की तरह विद्वानों क़े विचारों का सम्प्रेषण मात्र कर रहा हूँ.मेरा उद्देश्य सिर्फ समाज में व्याप्त ढोंग व पाखण्ड का विरोध करके उनका उन्मूलन करना है.इसी लिए जिन ब्लाग्स पर उत्पीडन ,ढोंग व पाखण्ड का विरोध होता है चाहे वे पद्य में हों ,गद्य में हों या व्यंग्य में अपनी सहमति व समर्थन दर्ज करा देता हूँ.मेरे लिए टिप्णी करना लेन -देन नहीं है.फिर भी जो लोग मेरे ब्लाग पर समर्थन व्यक्त कर रहे हैं उनका मैं ह्रदय से आभारी हूँ.परन्तु खेद है कि बीच में माडरेशन की दीवार खडी करनी पड़ गई है क्योंकि पुष्कर ,राजस्थान क़े एक पोंगापंथी जी मेरे दोनों ब्लाग पर टिप्णी क़े रूप में अपना पूरा का पूरा पाखण्ड आलेख छाप गये थे -दोनों ब्लाग्स से उनके ढोंगी लेख को हटा कर तत्काल माडरेशन लागू करना पड़ा.मैं अपने ब्लाग को युद्ध का अखाड़ा बना कर एक -दूसरे पर छींटाकशी  नहीं करवाना चाहता था इसीलिये मजबूरन माडरेशन की बैसाखी थामनी पडी.


कानपुर की एक ब्लागर ने ब्लाग जगत पर धर्म -युद्ध की निंदा की है,मैंने उनका समर्थन कर दिया है.मैं उनके इसानियत क़े धर्म वाली बात से पूर्ण सहमत हूँ मेरी पत्नी पूनम ने भी "मानवता की सेवा "शीर्षक से इसी इंसानियत की अपील की है.अपने ब्लाग में सम्पूर्ण विश्व क़े मानव -कल्याण हेतु विचारों को ही अग्रसारित करता हूँ .कुछ ब्लागर्स की व्यक्तिगत समस्या पर उनके ई .मेल पर उन्ही की सहमति लेकर उनके हितार्थ वांछित स्तुति भी इसी उद्देश्य से भेज दीं कि सब का हित होना चाहिए."सब क़े भला में हमारा भला "


डा .दराल सा :ने अपने पिताजी क़े निधन क़े बाद एक महत्वपूर्ण समस्या समाज में कुरीतियों की उठाई-वहां भी मैंने न केवल ढोंग व पाखण्ड का विरोध किया वरन ज्योतिष क़े आधार पर उपलब्ध ज्ञान सार्वजनिक करने का प्रयास किया.मेरे  समान विचार वाले कम ही निकले,अधिकाँश "जो चलता है ,चलने दो "की मानसिकता क़े ही हैं.कुछ ने आर्थिक क्षमता या सामर्थ्य की बात सामने राखी.मेरा फ़र्ज़ बनता है कि बता दूँ -सूर्य की किरणें पशु,पक्षी ,मनुष्य में ही भेद नहीं करतीं,तो मनुष्यों में गरीब -अमीर का भेद भी नहीं करतीं ,वर्षा का जल भी गरीब -अमीर का भेद नहीं करता फिर समाज में गरीब और अमीर क़े लिए अलग -अलग मान्यताएं चलने का क्या औचित्य होगा ?जो गलत है वह गरीब क़े लिए भी गलत है और अमीर क़े लिए भी गलत है.गलत प्रथा का प्रचलन तो मानव मात्र  हित में समाप्त होना ही चाहिए हर हाल में और जल्दी से जल्दी ही. //


एक ब्लॉगर सा :ने मेरी एक पोस्ट पर विचारों का समर्थन तो किया लेकिन मेरी किसी भी पोस्ट से ताल्लुक न रखने वाला एक वाक्य -A make new friends but remember old ,New are silver old are gold - भी लिख दिया.इसका क्या आशय है वह ही जानें ;परन्तु निजी जीवन में मैंने किसी को मित्र नहीं बनाया है और शत्रु तो कोई भी बन जाये उसी क़े अनुरूप उससे व्यवहार हो सकता है.मित्र तो सुग्रीव और राम थे या फिर सुदामा और कृष्ण थे ,इनके अलावा कौन किसका मित्र था मेरे संज्ञान में नहीं है.जब कोई मेरा मित्र ही नहीं है तो नया या पुराना होने का प्रश्न भी नहीं है .फिर भी यदि किसी को मित्र बताना ज़रूरी ही हो तो मैं सिर्फ अपनी पत्नी पूनम (जो स्व बिलास्पति सहाय जी )की पुत्री हैं को ही बता सकता हूँ ,अन्य कोई मेरा मित्र नहीं हो सकेगा.यदि उन ब्लागर सा : का इशारा ब्लाग्स फालो /अनफौलो करने से हो तो इतना ही कहना चाहूँगा कि जो ब्लॉग अनफौलो  किया उसका कारण उस ब्लाग पर एक अभद्र टिप्णी जो अन्य टिप्णी कारों क़े बारे में एक काबिल -ए -आज़म टिप्णीकार ने मधुमक्खी ,तितली और डरपोक कह कर की उसका पुरजोर समर्थन उस ब्लागर ने खुद किया था;अतः उस ब्लाग से स्वंय को असम्बद्ध करना ही एक -मात्र विकल्प था.
पहले भी स्पष्ट कर चुका हूँ "स्वान्तः सुखाय ,सर्वजन हिताय "ब्लाग लेखन प्रारम्भ किया है ,उसी पर चलता रहूँगा.सहमति ,असहमति,समर्थन या विरोध से कोई फर्क नहीं है क्योंकि,मैं सिर्फ माध्यम हूँ,कोई विचार मेरे नहीं हैं.परमात्मा और प्रकृति प्रदत्त जो ज्ञान विद्वानों ने उपलब्ध कराया है,उसी में से चुन -चुन कर प्रस्तुत कर देता हूँ.आप चाहें तो यह भी कह लें -"कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा ,भानुमती ने कुनबा जोड़ा."
"जीवन परिचय " ब्लाग द्वारा यशवन्त ने ब्लाग -लेखकों से अपना -अपना जीवन -परिचय कि वे कैसे लेखन क्षेत्र में आये ?और उनके लेखन का उद्देश्य क्या है ?उस ब्लाग में लिखने की अपील की थी.मेरा आप सब से अनुरोध है कि ,यशवन्त क़े उत्साह -वर्धन हेतु उस ब्लाग पर अपने विचार प्रकाशित करने का कष्ट करें.


जो देता है ,वह देवता होता है.परमात्मा और प्रकृति मानव मात्र को निशुल्क सब कुछ देते हैं .हम जो मूल्य देते हैं वह एक मानव द्वारा दूसरे मानव को दिया जा रहा है,परमात्मा या प्रकृति को नहीं .परमात्मा और प्रकृति को उनके दिए हुए उपकार क़े बदले में देने क़े लिए "हवन "की वैज्ञानिक पद्धति को पुनः अपनाये जाने पर बार  -बार जोर देता हूँ .एक विद्वान क़े शब्दों को सुनें और समझें ;-





 (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

6 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

"..और उसी ने मुझे भी ब्लाग प्रारम्भ करने को प्रेरित किया...."

पर पापा! बचपन से मुझे लिखने को तो आप ही प्रेरित करते आ रहे हैं.

महेन्‍द्र वर्मा said...

आपके विचार अनुकरणीय हैं।...पाखंड और कुरीतियों का उन्मूलन होना ही चाहिए।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सतत लेखन की शुभकामनाओं के साथ बधाई.....
यशवंत की रचनाओं की नियमित पाठक हूँ.... इस लिए उसके बारे में भी यहाँ जानकर अच्छा लगा

arvind said...

aapko subhakaamanaaye.....aap ki lekhni me jo dhaar hai vah adbhut our preranadaayee hai......bahut badhiya post.

BrijmohanShrivastava said...

सर मैने तो आपके विचारों से सहमत होते हुये कि पुरानी संस्कृति को अपनाना होगा और बुजुर्ग आज की समस्या के लिये उत्तर दायी है नौ जवानों को आगे आना होगा तो आपके ओल्ड इस गोल्ड से प्रभावित होकर बहुत पहले सुना याद आया वाक्य लिख दिया । यध्यपि संबंधित नहीं था जब याद आगया था तो लिख दिया ’’ मैने सोचा ये कि नौ जवानों को भी आज की संस्कृति:?ः छोड कर पुरानी कुछ:सभी नहीं: कुछ अपनाना चाहिये क्योंकि नई उघाडू संस्कृति यदि चांदी है तो पुरानी पुनीत संस्कृति स्वर्ण है ।
जहां तक आज के इस लेख का ताल्लुक है दाराल साहब ने बात तो सही की है यदि मौका लगे तो गरुण पुराण पढें यूं कि मजा आजायेगा जिन्दगी का इसी लिये मैने पुरानी कुछ के आगे सभी नहीं में ब्रेकिट लगादिया है। आपके ब्लाग को 180 दिन पूर्ण होने पर वधाई ।आपका कहना है कि विचारों का आप संप्रषण मात्र कर रहे है तो तुलसी बाबा ने भी कहा था नाना पुरान निगमागम और यह भी कहा कि बचपन से सुनी थी तब मै रहउ अचेत तो जो उन्हे याद रहा लिख दिया ।यह तो आपका बढप्पन है अन्यथा तो लोग न जाने कहां कहां से चुराकर अपनी भाषा में तव्दील कर अपनी रचना बता देते है मेरे ब्लाग पर मैने एक लेख भी इस वाबत लिखा था ’’साहित्य चोरी चोरी न भवति’ असंबध्द लाइन के लिये मै हार्दिक रुप से क्षमा प्रार्थी हूं

vijai Rajbali Mathur said...

यशवंत -जैसे मुझे बाबूजी -बउआ ने यहीं लखनऊ में उस समय ५ पै.का स्वतंत्र भारत प्रति इतवार दिला कर और लायब्रेरी से अखबार ,मैग्जींस आदि दिला कर प्रोत्साहित किया था उसी प्रकार तुम्हें प्रोत्साहित करना मेरा फ़र्ज़ था.
महेंद्र वर्माजी -आपने भी पाखण्ड व कुरीतियों का विरोध किया है,धन्यवाद .
मोनिकाजी -आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद .
अरविन्द जी -शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद;परन्तु मुझे पुदीने की फुनगी पर न चढ़ाएं .
बृजमोहन जी -आपकी बढ़ायी के लिए धन्वाद और आपने उस वाक्य को संस्कृति का प्रतीक बताया ,मान लेते हैं.परन्तु स्पष्ट करना चाहते हैं की पुरातन से मतलब महाभारत -काळ से पूर्व है न क़ि,गुलाम भारत में कुरान की तर्ज़ पर विदेशी शासकों के हितार्थ लिखे गए पुराणों से ,अतः गरुड़ पुराण का जो आपने उल्लेख किया उससे मेरा आशय कतई नहीं है.
१७ .१२ २००९ का आपका "साहित्यिक चोरी " पढ़ा और वहां पं .नेहरु के प्रभाव का उल्लेख कर दिया है.वैसे तो अल्पना वर्माजी एवं रंजनाजी ने भी सही तर्क दिया है.