सुख और दुःख परस्पर विरोधी अवस्थाओं का भान कराने वाले शब्द हैं.वैसे यदि दुःख न हो तो सुख की अनुभूति या उसे प्राप्त करने की इच्छा भी नहीं हो सकती.मर्यादा पुरुषोत्तम राम व जानकी माता तथा योगीराज श्री कृष्ण को भी दुखों का सामना करना ही पड़ा था.यहाँ एक ऐसे शख्स का उल्लेख कर रहे हैं,जिन्हें एक ही ग्रह मंगल ने सुख और दुःख दोनों अलग-अलग प्रकार से प्रदान किये.ऐसा न केवल उनके जन्म-कालीन ग्रहों क़े आधार पर हुआ बल्कि,गोचर-कालीन मंगल की कुद्रष्टि ने भी उन्हें पीड़ित किया.
उनके जन्मांग में चतुर्थ भावस्थ मंगल उनको भूमि व वाहन लाभ दिलाने में पूर्ण समर्थ रहा है,उनके कई अपने निजी मकान हैं और कई उत्तम वाहनों क़े भी वह स्वामी हैं;जहाँ इतनी सुख-सुविधाएं उन्हें मंगल ग्रह क़े कारण मिल रही हैं-वहीं यही मंगल उन्हें पीड़ा देने में भी अग्रणी है.पत्नी भाव का स्वामी होकर सुख भाव में प्रबल शत्रु-ग्रह शुक्र क़े साथ मंगल की उपस्थिति ही उनकी पत्नी क़े स्वास्थ्य को क्षीण करने का कारण बनी है.विवाह क़े बाद लगातार उनकी पत्नी कुछ न कुछ रुग्ण रही हैं और लगभग ७ वर्ष पूर्व उन्हें बड़ा आपरेशन कराना पड़ा है.ऐसा मंगल क़े गोचर-कालीन प्रभाव और जातक क़े जन्मांग में स्थिति दोनों क़े फलस्वरूप घटित हुआ है.जातक को स्वंय २० जूलाई २००३ को दुर्घटना का शिकार होना पड़ा-पटना में रात्री पौने आठ क़े उपरान्त उनको बदमाशों ने किसी दूसरे क़े धोखे में गोली मार दी जो उनके पेट में घुस कर पीछे कमर से निकल गई.जातक को आपरेशन कराना पड़ा और लम्बे समय तक चिकित्सा-अवकाश पर रहना पड़ा.जातक क़े जन्मांग तथा गोचर काल में जब गोली दोनों स्थितियों में शनि उनके शत्रुओं क़े लिये संहारक स्थिति में था.शनि मंगल का प्रबल शत्रु भी है,अतः स्पष्ट है कि,शनि ने मंगल क़े आघात से जातक की प्राण-रक्षा की है,परन्तु ऊँची दुकान फींका पकवान वाले पं.जी ने जातक को शनि ग्रह घातक बताया था और गोली लगने का हेतु भी शनि को बताया था.जबकि अध्ययन काल में भी जातक वाहन दुर्घटना का शिकार मंगल क़े प्रकोप से हो चुके थे और तब भी उन्हें शनि गृह ने ही बचाया था.अन्ततः जातक ने मुझसे संपर्क किया और तब मैंने उन्हें समझाया कि उन्हें मंगल गृह की शांति करानी चाहिए तथा जो रत्न उन पं.जी ने पहनाया है उन्हें उतार देना चाहिए .जातक ने मेरे बताये अनुसार वैसा ही किया और राहत प्राप[त की.उनके घर का माहौल भी पहले की अपेछा ठीक हो गया.जातक क़े जन्मांग में सिर्फ मंगल का ही कोप नहीं था,वरन जहाँ वह तब निवास कर रहे थे उस सरकारी मकान में ईशान में रसोई-घर बना हुआ था.जातक और उनकी पत्नी दोनों ही ब्लड प्रेशर से ग्रसित थे और इस वस्तु-दोष ने भी उन्हें दुर्घटना का शिकार बनाया .उन्हें वास्तु-दोष क़े निराकरण हेतु भी सुझाव व उपाय दिये जिन्हें उन्होंने स्वीकार व अंगीकार किया तथा उसका लाभ भी उन्हें मिला और जो भय व कष्ट उन्हें सता रहे थे उनसे राहत मिल गई.यह जातक रसायन शास्त्र(केमिस्ट्री)में पी. एच.डी.हैं.अतः इन्हें हवन की वैज्ञानिक पद्धति से उपचार की बात तर्क सांगत लगी और उन्होंने उसका सहारा लेकर लाभ भी प्राप्त किया.परन्तु ऐसे इंजीनियर परिवारों से भी साबका पड़ा जिन्हें विज्ञान-सम्मत तर्क समझ में नहीं आते और वे उन उपायों को करने की बजाये पोंगा-पंडितों क़े बताये उल-जलूल उपायों को ही अपनाते हैं.एक इं.सा :अपने घर क़े वास्तु-दोष क़े कारण अपनी बाईपास सर्जरी करा चुके थे. उनके पहले किरायेदार की मौत इसी दोष क़े कारण हो गई,तीसरे किरायेदार क़े बड़े पुत्र का दुर्घटना में दुखांत हो गया,उनके दूसरे और चौथे किरायेदार दिवालिया हो गये.पांचवां किरायेदार एक फ्राड था जो कुछ दिन रह कर भाग गया.लेकिन इंजीनियरी क़े नशे में उन साहब को अपने मकान क़े वास्तु-दोषों का निराकरण करने की आवश्यकता नहीं है.एक और परिवार में तीन सदस्य इंजीनियर हैं यह भी एक आधुनिक परिवार है इनके ईशान में शौचालय और उत्तर में रसोई बनी हुई है.तमाम वास्तु दोष इन्हें परेशान तो कर रहे हैं परन्तु ये लोग इस तथ्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.वैज्ञानिक विधि क़े उपायों का भी उनकी निगाह में कोई महत्त्व नहीं है.इं दोषों का ही परिणाम था कि परिवार क़े मुखिया को हार्ट प्राब्लम का भी सामना करना पड़ा था और इसी परिवार में रहने वाले बालक को दो बार एक ही कक्षा में रुकना पड़ा और तीसरी बार प्रयास करना पड़ा.इस बालक को मेरे द्वारा जो उपाए बताये गये थे उन्हें इन लोगों ने नहीं माना और न ही अमल किया गया .इस बालक को भी मंगल ग्रह की शांति करने को कहा गया था,परन्तु साईंसदा परिवार ने वैज्ञानिक उपायों को ठुकरा दिया और इस प्रकार अपना ही अहित कर डाला.इस बुद्धि विपर्याय का कारण भी इस परिवार का वास्तु-दोष को ठुकरा कर उनका परिष्कार न करना ही है.जब ईशान में शौचालय होते हैं तो सबसे पहले बुद्धि ही भ्रष्ट होती है,उसके बाद धीरे-धीरे अन्य विकार जन्म लेते जाते है. वैसे ग्रहों ने धन-सम्पदा भी प्रदान की है जिसका वे दुरूपयोग ही करते हैं.एक अन्य परिवार जो धन-संपत्ति की दृष्टि से सम्पन्न है ऐसे निवास में रह रहा है जिसके नैरित्य(South West) में रसोई है और आग्नेय (South East) में शौचालय .इस परिवार क़े बच्चे व गृहणी रुग्ण चलते रहते हैं.परिवार क़े मुखिया उच्च शिक्षित ,उच्चाधिकारी और ठाकुर परिवार से सम्बंधित हैं.उन्होंने हमसे संपर्क किया ,उन्हें भी वैज्ञानिक विधि क़े उपाए बताये.उन्होंने सहर्ष समझा और स्वीकार ही नहीं किया वरन उन पर अमल भी शुरू कर दिया.वास्तु-दोष का निवारण तथा हवन-विधि से ग्रहों को शान्त कराया.स्वभाविक रूप से वैज्ञानिक उपायों क़े महत्त्व को समझा और सबसे पहले वास्तु-दोष का निरावरण कराया और लाभ उठाया.उनके विपरीत इंजीनियर सदस्यों वाले ठाकुर परिवार में वैज्ञानिक उपायों को दकियानूसी व बेकार का समझा गया,जिस कारण वे उनका लाभ उठाने से वंचित रहे.परिणाम स्वरूप बुद्धि-विभ्रम भी नहीं समझ सके-यही है ग्रहों का वैज्ञानिक खेल जो सुख और दुःख दोनों प्रदान कर रहा है.
सुख और दुःख -स्वास्थ्य क़े पैमाने से -
सुख की इच्छा करने से ,सुख न पावे कोय.
तन की रक्षा करने से,दुःख भी सुखमय होय..
A Healthy Mind In a Healthy Body
विद्वानों क़े ये कथन निरर्थक नहीं हैं .हमारे यहाँ पहले एक प्रार्थना प्रचलित थी 'जीवेम शरदः शतम' जो अब विलुप्त प्राय हो गई है और यही कारण है कि अब हमारे यहाँ स्वस्थ मनुष्य नहीं हैं.किसी को कुछ तो किसी को कुछ समस्या परेशान किये हुये है.तेज जिन्दगी में खां-पान की ओर किसी का ध्यान नहीं है और अधिकाँश रोग उदर संबंधी हैं जिनसे फिर और नयी-नयी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं.एक प्रमुख समस्या है गैस बनने की जो घुटनों ,कमर,रीढ़ और यहाँ तक कि सिर दर्द का कारण भी बनती है. भोजन क़े उपरान्त ढाई- तीन मिनट की यदि कसरत कर ली जाये तो नियमित करने पर गैस रोग से मुक्ति मिल जाती है और गठिया रोग भी दूर भाग जाता है.इसमें भोजन क़े बाद और भोजन क़े मध्य जल न पीयें.भोजनोपरान्त घुटनों क़े बल इस प्रकार बैठें कि पंजों पर कूल्हे तिक जाएँ,कमर सीधी रखें दोनों हथेलियों को दोनों घुटनों पर उन्हें ढकते हुये टिकाएं .पानी भोजन क़े आधे घंटे बाद ही पियें.ऐसा करने पर जेलोसिल,गैसेक्स और गैस पिल्स सेवन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
अक्सर काम की अधिकता या अधिक बैठे रहने क़े कारण कमर में दर्द हो जाता है .कमर दर्द की कभी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए.इसके लिये छोटी सी कसरत दिन में कभी भी जब भोजन न किये हों अथवा भोजन किये हुये तीन -चार घंटे व्यतीत हो चुके हों तब ही करनी चाहिए .कमर सीधी करके दोनों पैर विपरीत दिशाओं में फैला लें.अब दायाँ हाथ फैला कर बायीं ओर तथा इसी प्रकार बयान हाथ फैला कर दायीं ओर ले जाएँ.
पांच -सात मिनट तक इस प्रक्रिया को दोहरायें.नियमित यह कसरत करने से कमर का दर्द स्वतः ठीक हो जाता है.शरीर में चुस्ती रहती है और आलस्य दूर होता है.परन्तु आवश्यकता है अपने शरीर पर ध्यान देने की,यह शरीर परमात्मा की अनुपम भेंट है और इसकी रक्षा करना भी परमात्मा की सेवा करने का ही अंग है.अतः तन की रक्षा करके दुःख को भी सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए.
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(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
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