Saturday, October 27, 2012

प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-ये दुनिया अनूठी है (पुनर्प्रकाशन)

 (विशेष-मेरा यह आलेख मई २०१० में  लखनऊ के एक साप्ताहिक समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुका है,जन कल्याणार्थ इसे यहाँ भी प्रस्तुत किया जा रहा है.)
 

शुक्रवार, 24 सितम्बर 2010


प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-ये दुनिया अनूठी है 

--- विजय राज बली माथुर

 

एक समय हमारे देश में जगन मिथ्या का मिथ्या का पाठ पढाया जाने लगा था.मध्य अमेरिकी माया सभ्यता ने पहले पहल भविष्यवाणी की थी कि,21  दिसंबर 2012  को यह दुनिया समाप्त हो जाएगी.प्राचीन चीनी पुस्तक चाइनीज़ बुक  ऑफ चेंजेज़ एवं बाइबिल तथा कुछ पौराणिक ग्रन्थ भी ऐसी ही संभावना व्यक्त करते हैं.आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिका का येलो स्टोन नेशनल पार्क गर्म सोतों का क्षेत्र है जो दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी के ऊपर स्थित है.वैज्ञानिकों के अनुसार हर साड़े छः लाख वर्ष बाद यह ज्वालामुखी फटता है.वैसे यह समय निकल चुका है किन्तु भू-गर्भ वैज्ञानिक २०१२ में इसके फटने का अनुमान लगा रहे हैं.लन्दन की एक महिला ने 1970  के आस पास भविष्यवाणी की थी कि world  will  end  in  1991 .उन्नीस वर्ष बाद भी दुनिया अपनी जगह कायम है.फ्रांसीसी भविष्य वेत्ता नेस्त्रादम ने 1999 में चीन द्वारा अमेरिका पर आक्रमण किये जाने से तृतीय विश्व युद्ध होने की बात कही थी जो नहीं हुआ.वर्ष 2004 में बाबा जी पत्रिका में भविष्यवाणी छपी थी कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी 15 दिन के भीतर सत्ता में वापिस आ जायेंगे.आखिर सभी भविष्यवाणियाँ थोथी क्यों सिद्ध हुईं?बर्कले विश्वविद्यालय के भौतिकी वैज्ञानिकों समेत सभी की भविष्यवाणियाँ 2012 में प्रलय का खौफ पैदा कर सकती हैं परन्तु प्रलय लाने में कामयाब नहीं होंगी-आखिर क्यों?इस अनूठी दुनिया को समझने का  यथार्थ रहस्य हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने शुद्ध वैज्ञानिक आधार पर बहुत पहले ही खोज रखा है-आवश्यकता है बुद्धि का सही प्रयोग कर उसे समझने की.
किसी भी विषय के क्रमबद्ध एवं नियम बद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं और विज्ञान के नियमों में एक निश्चित अनुपात रहता है.उदाहरण के तौर पर -हाइड्रोजन के दो भाग और ऑक्सीजन का एक भाग मिलने से पानी बनेगा.अब यदि हाइड्रोजन के दो भाग के साथ ऑक्सीजन भी दो भाग मिला देंगे तो वह हाइड्रोजन पराक्साइड बनकर उड़ जायेगा.यजुर्वेद 40/5  के अनुसार तद दूरे तदवान्तक अथार्त सम्पूर्ण  ब्रह्मांड में विद्यमान होने के कारण परमात्मा दूर से भी दूर व पास से भी पास है.यजुर्वेद 31 -3 के अनुसार परमात्मा के 1 /4 भाग में यह ब्रह्मांड विद्यमान है अतः ब्रह्मांड के 3 /4 भाग में परमात्मा है.परमात्मा अथार्त ब्रह्मा का दिन और रात कितने समय का है वह इस गणना से स्पष्ट होगा:-
कलयुग-4 लाख 32 हज़ार वर्ष
द्वापर युग (कल*2 )-8 लाख 64 हज़ार वर्ष
त्रेता युग (कल*3 )-12 लाख 96 हज़ार वर्ष
सत युग (कल*4 )-17 लाख 28 हज़ार वर्ष
एक चतुर्युगी=43 लाख 20 हज़ार वर्ष
एक हज़ार चतुर्युगी=43 लाख 20 हज़ार*1000
अथार्त 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का ब्रह्मा का एक दिन और इतना ही समय रात का होता है.
दिन अथार्त सृष्टि और रात अथार्त प्रलय.
वर्तमान समय में इस सृष्टि का 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हज़ार 110 वां वर्ष चल  रहा है  अथार्त अभी भी २ अरब ३४ करोड़ ७० लाख ५० हज़ार ८९० वर्ष यह सृष्टी चलेगी उसी के बाद प्रलय होगी.अतः उससे पूर्व २०१२ या कभी भी प्रलय - भविष्य वाणी अवैज्ञानिक होने के कारण झूठी ही सिद्ध होगी.
मुंबई के श्री वेंकटेश्वर शताब्दी पञ्चांग (जो संवत 2100 तक का है) के अनुसार 21 दिसंबर 2012 को ग्रह स्थिति निम्न प्रकार होगी-
दिन-शुक्रवार
तिथी-नवमी
सूर्य-धनु राशी में
चन्द्रमा-मीन राशी में
मंगल-मकर राशी में
बुध-वृश्चिक राशी में
गुरु -वृष राशी में
शुक्र-वृश्चिक राशी में
शनि-तुला राशी में
राहू-वृश्चिक राशी में
केतु-वृष राशी में
हम और आप जिस दुनिया में रह रहे हैं वह अभी ख़तम होने वाली नहीं है,घबराइये नहीं और परमात्मा की कृति इस इस अनूठी दुनिया में अपने जीवन का भरपूर लुत्फ़ उठाइए.यह दुनिया है क्या और यह जीवन क्या है?यह सृष्टी यह दुनिया तीन तत्वों पर आधारित है-आत्मा,परमात्मा और प्रकृति.इनमे से एक को भी कम करदें तो यह सृष्टी नहीं चल सकती.परमात्मा और आत्मा सखा हैं अजर और अमर हैं,प्रकृति भी नष्ट नहीं होती है परन्तु उस का रूपांतरण हो जाता है.प्रकृति में समस्त पदार्थ ठोस,द्रव और गैस  हैं,ठोस रूप में वह बर्फ है,द्रव रूप में जल  और गैस रूप में हाइड्रोजन व् ऑक्सीजन के परमाणुओं में बदल जाता है.प्रकृति में सत रज और तम के परमाणुओं का सम्मिश्रण पाया जाता है और ये विषम अवस्था में होते हैं तभी सृष्टी का संचालन होता है.इन तीनों की सम अवस्था ही प्रलय की अवस्था है.प्रकृति में हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और कोई भी दो तत्व मिल कर तीसरे का सृजन करते हैं.उदाहरण के लिए गाय के गोबर और दही को एक सम अवस्था में  किसी मिटटी के बर्तन में वर्षा ऋतु में बंद कर के रख दें तो बिच्छू का उद्भव हो जायेगा जो घातक जीव है,जबकि गोबर और दही दोनों ही मानव के लिए कल्याणकारी हैं.अब यदि rectified sprit में बिच्छू को पकड कर डाल दें और जब स्प्रिट में उसका विलयन हो जाए तो फ़िल्टर से छान कर सुरक्षित रखने पर वही बिच्छू दंश उपचार हेतु सटीक औषधी  है.हम देखते हैं कि गोबर  और दही की क्रिया पर प्रतिक्रिया स्वरुप बिच्छू,और बिच्छू और स्प्रिट की क्रिया पर बिच्छू काटे में उपचार हेतु दवा प्राप्त हो जाती है.


2 टिप्‍पणियां:

  1. .

    Very informative and useful post.

    Regards to you and Yashwant ji.

    .
  2. Divya Ji,
    Thanks for your Positive Thinking.

    रविवार, 26 सितम्बर 2010


    प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-यह दुनिया अनूठी है--(अंतिम भाग)

    (पिछली पोस्ट से आगे....)

    प्रकृति में जितने भी जीव हैं उनमे मनुष्य ही केवल मनन करने के कारण श्रेष्ठ है,यह विशेष जीव ज्ञान और विवेक द्वारा अपने उपार्जित कर्मफल को अच्छे या बुरे में बदल सकता है.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म का फल अच्छा,दुष्कर्म का फल बुरा होता है.परन्तु सब से महत्वपूर्ण अ-कर्म होता है  जिसका अक्सर लोग ख्याल ही नहीं करते हैं.अ-कर्म वह कर्म है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.अक्सर लोगों को कहते सुना जाता है कि हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों होता है.ऐसे लोग कहते हैं कि या तो भगवान है ही नहीं या भगवान के घर अंधेर है.वस्तुतः भगवान के यहाँ अंधेर नहीं नीर क्षीर विवेक है परन्तु पहले भगवान को समझें तो सही कि यह क्या है--किसी चाहर दिवारी में सुरक्षित काटी तराशी मूर्ती या  नाडी के बंधन में बंधने वाला नहीं है अतः उसका जन्म या अवतार भी नहीं होता.भगवान तो घट घट वासी,कण कण वासी है उसे किसी एक क्षेत्र या स्थान में बाँधा नहीं जा सकता.भगवान क्या है उसे समझना बहुत ही सरल है--अथार्त भूमि,-अथार्त गगन,व्-अथार्त वायु, I -अथार्त अनल (अग्नि),और -अथार्त-नीर यानि जल,प्रकृति के इन पांच तत्वों का समन्वय ही भगवान है जो सर्वत्र पाए जाते हैं.इन्हीं के द्वारा जीवों की उत्पत्ति,पालन और संहार होता है तभी तो GOD अथार्त Generator,Operator ,Destroyer  इन प्राकृतिक तत्वों को  किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसलिए ये खुदा हैं.

    जब भगवान,गौड और खुदा एक ही हैं तो झगड़ा किस बात का?परन्तु झगड़ा है नासमझी का,मानव द्वारा मनन न करने का और इस प्रकार मनुष्यता से नीचे गिरने का.इस संसार में कर्म का फल कैसे मिलता है,कब मिलता है सब कुछ एक निश्चित प्रक्रिया के तहत ही होता है जिसे समझना बहुत सरल है किन्तु निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा जटिल बना दिया गया है.हम जितने भी सद्कर्म,दुष्कर्म या अकरम करते है उनका प्रतिफल उसी अनुपात में मिलना तय है,परन्तु जीवन काल में जितना फल भोग उसके अतिरिक्त कुछ शेष भी बच जाता है.यही शेष अगले जनम में प्रारब्ध(भाग्य या किस्मत) के रूप में प्राप्त होता है.अब मनुष्य अपने मनन द्वारा बुरे को अच्छे में बदलने हेतु एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा समाधान कर सकता है.यदि समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो सुफल परन्तु यदि ढोंग-पाखंड विधि से किया जाये तो प्रतिकूल फल मिलता है.

    प्रारब्ध को समझने हेतु जन्म समय के ग्रह-नक्षत्रों से गणना करते हैं और उसी के अनुरूप समाधान प्रस्तुत करते हैं.अधिकाँश लोग इस वैज्ञानिक नहीं चमत्कार का लबादा ओड़ कर भोली जनता को उलटे उस्तरे से मूढ़ते हैं.गाँठ के पूरे किन्तु अक्ल के अधूरे लोग तो खुशी खुशी मूढ़ते हैं लेकिन अभावग्रस्त  पीढित लोगों को भी भयाक्रांत करके जबरन मूढा जाता है जो कि ज्योतिष के नियमों के विपरीत है.ज्योतिष में २+२=४ ही होंगे किन्तु जब पौने चार या सवा चार बता कर लोगों को गुमराह किया जाए तो वह ज्योतिष नहीं ठगी का उदहारण बन जाता है .ज्योतिष जीवन को सही दिशा में चलाने के संकेत देता है.बस आवश्यकता है सही गणना करने की और समय को साफ़ साफ़ समझने और समझाने की.जिस प्रकार धूप या वर्षा को हम रोक तो नहीं सकते परन्तु उसके प्रकोप से बचने हेतु छाता और बरसाती का प्रयोग कर लेते हैं उसी प्रकार जीवन में प्रारब्ध के अनुसार आने वाले संकटों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे बचाव का प्रबंध किया जा सकता है और यही ज्योतिष विज्ञान का मूल आधार है.कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के कारण इस ज्योतिष का व्यापारीकरण करके इसके वैज्ञानिक आधार को क्षति पहुंचा देते हैं उन से बचने और बचाने की आवश्यकता है.मनुष्य अपने ग्रह-नक्षत्रों द्वारा नियंत्रित पर्यावरण की उपज है.

    पर्यावरण को शुद्ध रखना और ग्रह नक्षत्रों का शमन करना ज्योतिष विज्ञान सिखाता है.हम ज्योतिष के वैज्ञानिक नियमों का पालन कर के अनूठी दुनिया  का अधिक से अधिक लुत्फ़ उठा सकते हैं.आवश्यकता है सच को सच स्वीकार करने की और अपनी इस धरती को तीन लोक से न्यारी बनाने की. 

    1 टिप्पणी:

    विजय जी नमस्‍कार,

    अच्‍छा लगा आपको पढ़कर... धरती को न्‍यारी बनाने के इस काम में ब्‍लॉग की सहायता से आपने अच्‍छा कदम उठाया है। उम्‍मीद है लेखों का काफिला ऐसे ही जारी रहेगा।
     

Friday, October 19, 2012

ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं ?

पुराने अखबारों का अवलोकन करते समय सुश्री ममता बनर्जी की यह जन्मपत्री दिखाई दे गई जिसमे सन 2002 तक का उनका भविष्य लेखक ने अपनी थ्यौरी से दिया था। उसके सही-गलत होने की विवेचना मैं नहीं कर रहा हूँ। मैंने विगत विधानसभा चुनावों से पूर्व अपने एक लेख द्वारा ममता जी की कटु राजनीतिक आलोचना भी की थी और पश्चिम बंगाल की जनता से आह्वान भी किया था कि वह ममता जी को सत्तारूढ़ न होने दे। परंतु ममता जी मुख्यमंत्री बनी और बड़ी शान से बनीं। इसलिए भी कौतूहल था उनका भविष्य जानने का और इसलिए भी कि दार्जिलिंग ज़िले के सिलीगुड़ी मे 8वी कक्षा से 10वी बोर्ड की परीक्षा पास करने तक रहने के कारण बंगाल की राजनीति मे दिलचस्पी सदा ही रही है। वहाँ से 10-15 किलोमीटर दूर ही है नक्सल बाड़ी जहां 1967 मे 'नक्सल बाड़ी से नल बाड़ी तक' आंदोलन हमारे रहते ही शुरू हुआ था। इस आंदोलन का सम्पूर्ण लाभ राजस्थान के मारवाड़ियों को हुआ था जिनको इंश्योरेंस क्लेम नुकसान से कहीं बहुत ज़्यादा मिला था। अपनी राजनीतिक विचारधारा के आधार पर आज भी मैं ममता जी का समर्थक नहीं हूँ,परंतु उनके ग्रह-नक्षत्र जो बोल रहे हैं उनको झुठलाया भी तो नहीं जा सकता। misuse of knowledge भी मैं नहीं कर सकता। अतः ममता जी की कुंडली का वैज्ञानिक निष्पक्ष  विश्लेषण प्रस्तुत करने मे कोई पूर्वाग्रह(IBN7 के प्रतिनिधि ब्लागर एवं उनकी  सहयोगी पूना प्रवासी ब्लागर की भांति जो ज्योतिष को मीठा जहर कहते हैं ) भी नहीं है। 

ममता जी की प्रस्तुत जन्मपत्री के अनुसार उनका जन्म लग्न-मकर है और---

द्वितीय भाव मे कुम्भ का 'मंगल'

पंचम भाव मे वृष का 'चंद्रमा'

षष्ठम भाव मे मिथुन का 'केतू'

सप्तम भाव मे कर्क का 'ब्रहस्पति'

दशम भाव मे तुला का 'शनि'

एकादश भाव मे वृश्चिक का 'शुक्र'

द्वादश भाव मे धनु के 'सूर्य','बुध' और 'राहू'

अखबारी विश्लेषण से अलग मेरा विश्लेषण यह है कि जन्म के बाद ममता जी की 'चंद्र महादशा' 07 वर्ष 08 आठ माह एवं 07 दिन शेष बची थी। इसके अनुसार 03 जूलाई 2010 से वह 'शनि'महादशांतर्गत 'शुक्र' की अंतर्दशा मे 03 सितंबर 2013 तक चलेंगी। यह उनका श्रेष्ठत्तम समय है। इसी मे वह मुख्य मंत्री बनी हैं। 34 वर्ष के मजबूत बामपंथी शासन को उखाड़ने मे वह सफल रही हैं तो यह उनके अपने ग्रह-नक्षत्रों का ही स्पष्ट प्रभाव है। 

इसके बाद पुनः 'सूर्य' की शनि मे  अंतर्दशा 15 अगस्त 2014 तक  उनके लिए अनुकूल रहने वाली है और लोकसभा के चुनाव इसी अवधि के  मध्य होंगे। केंद्र (दशम भाव मे )'शनि' उनको 'शश योग' प्रदान कर रहा है   
जो 'राज योग' है।

ममता जी को समयानुकूल सही बात कहने व उठाने का विलक्षण लाभ भी   उनके ग्रह प्रदान कर रहे हैं और इसी लिए FDI को मुद्दा बना कर उन्होने 'संप्रग-2' से अलगाव कर लिया है। उससे पूर्व राष्ट्रपति चुनावों के दौरान  प्रकट मे मुखर्जी साहब का विरोध करके उनको बामपंथियों के एक गुट -CPM का समर्थन दिला दिया फिर खुद भी उनका समर्थन कर दिया। मुखर्जी साहब ने मुलायम सिंह जी व ममता जी को वेंकट रमन साहब सरीखा आश्वासन दे रखा है जिसके अनुसार कांग्रेस का स्पष्ट बहुमत न आने पर वह 'तीसरे मोर्चे' को अवसर देंगे।देखें---


शनिवार, 28 जुलाई 2012


नए महामहिम ---केंद्र मे गैर कांग्रेस/भाजपा सरकार का रास्ता साफ

महामहिम प्रणब मुखर्जी साहब की शपथ कुंडली का विश्लेषण भी। 

http://krantiswar.blogspot.in/2012/07/blog-post_28.html 




ममता जी की कुंडली मे 'बुध-आदित्य'योग भी है वह भी 'राज योग' है। षष्ठम भाव का 'केतू' उनके शत्रुओं का संहार करने मे सक्षम है। सप्तम मे उच्च के 'ब्रहस्पति' ने जहां उनको अविवाहित रखा वहीं वह उनकी लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखने के कारण 'बुद्धि चातुर्य'प्रदान करते हुये सफलता कारक है। जहां दशम मे उच्च का शनि उनको राजनीति मे सफलता प्रदान कर रहा है वहीं यही शनि पूर्ण दृष्टि से उनके सुख भाव को देखने के कारण सुख मे क्षीणता प्रदान कर रहा है। द्वितीय भाव मे शनि क्षेत्रीय 'मंगल' होने के कारण ही उनकी बात का प्रभाव उनके विरोधियों के लिए 'आग' का काम करता है जबकि यही जनता को उनके पक्ष मे खड़ा कर देता है। 

ममता जी की जन्म कुंडली के मुताबिक उनको निम्न-लिखित पदार्थों का 'दान भूल कर भी नहीं' करना चाहिए। इंनका दान करने पर उनको हानि व पीड़ा ही मिलेगी --

1-  चांदी,मोती,चावल,दही,दूध,घी,शंख,मिश्री,चीनी,कपूर,बांस की बनी चीजें जैसे टोकरी-टोकरा,सफ़ेद स्फटिक,सफ़ेद चन्दन,सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद फूल,मछली आदि।
2-सोना,पुखराज,शहद,चीनी,घी,हल्दी,चने की दाल,धार्मिक पुस्तकें,केसर,नमक,पीला चावल,पीतल और इससे बने बर्तन,पीले वस्त्र,पीले फूल,मोहर-पीतल की,भूमि,छाता आदि। कूवारी कन्याओं को भोजन न कराएं और वृद्ध-जन की सेवा न करें (जिनसे कोई रक्त संबंध न हो उनकी )।किसी भी मंदिर मे और मंदिर के पुजारी को दान नहीं देना चाहिए।



3-सोना,नीलम,उड़द,तिल,सभी प्रकार के तेल विशेष रूप से सरसों का तेल,भैंस,लोहा और स्टील तथा इनसे बने पदार्थ,चमड़ा और इनसे बने पदार्थ जैसे पर्स,चप्पल-जूते,बेल्ट,काली गाय,कुलथी, कंबल,अंडा,मांस,शराब आदि।

अगले माह ममता जी यू पी मे अपनी रैली करने जा रही हैं और संभावना है कि वह इंदिराजी जैसा आक्रामक रुख अख़्तियार करके जनता को (खास कर जो पहले कांग्रेस समर्थक रही है)  अपने पक्ष मे मोड ले जाएंगी इसका भी लाभ तीसरे मोर्चे को ही मिलेगा क्योंकि मंहगाई से त्रस्त जो जनता कांग्रेस छोड़ कर भाजपा की ओर मुड़ती उसे ममता जी अपने साथ कर लेंगी। चुनाव बाद तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की दशा मे मुलायम सिंह जी व ममता जी मे जिनके ग्रह-नक्षत्र प्रबल होंगे वही अगले प्रधानमंत्री होंगे। फिलहाल ममता जी की कुंडली मे राज योग और उनके अनुकूल समय को देखते हुये उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। ज्योतिष को मीठा जहर बताने वाले IBN7 के कार्पोरेटी दलाल अवश्य ही ममता जी को पी एम बनने से रोकने की गंभीर साजिश करेंगे ,अब देखना है कि वे अपने मीठे जहर का प्रयोग कितना और कैसे करते हैं?

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Monday, October 15, 2012

उठो जागो और महान बनो(पुनर्प्रकाशन)



बृहस्पतिवार, 14 अक्तूबर 2010


उठो जागो और महान बनो

प्रस्तुत शीर्षक स्वामी विवेकानंद द्वारा युवा शक्ति से किया गया आह्वान है .आज   देश के हालात कुछ  वैसे हैं :-मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों -२ दवा की .करम खोटे हैं तो ईश्वर  के गुण गाने से क्या होगा ,किया  परहेज़ न कभी  तो दवा खाने से क्या होगा.. आज की युवा शक्ति को तो मानो सांप   सूंघ  गया है वह कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है और हो भी क्यों ? जिधर देखो उधर ओसामा बिन लादेन बिखरे पड़े हैं, चाहें वह ब्लॉग जगत ही क्यों न हो जो हमारी युवा शक्ति को गुलामी की प्रवृत्तियों से चिपकाये रख कर अपने निहित स्वार्थों की पूर्ती करते रहते हैं.अफगानिस्तान हो ,कश्मीर हो ,देश भर में फैले नक्सलवादी हों या किसी भी तोड़ -फोड़ को अंजाम देने वाले आतंकवादी हों सब के पीछे कुत्सित मानसिकता वाले बुर्जुआ लोग ही हैं .वैसे तो वे बड़े सुधारवादी ,समन्वय वादी बने फिरते हैं,किन्तु यदि उनके ड्रामा को सच समझ कर उनसे मार्ग दर्शन माँगा जाये तो वे गुमनामी में चले जाते हैं,लेकिन चुप न बैठ कर युवा चेहरे को मोहरा बना कर अपनी खीझ उतार डालते हैं .
ऐसा नहीं है कि यह सब आज हो रहा है.गोस्वामी तुलसीदास ,कबीर ,रैदास ,नानक ,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद जैसे महान विचारकों को अपने -२ समय में भारी विरोध का सामना करना पड़ा था .१३ अप्रैल २००८ के हिंदुस्तान ,आगरा के अंक में नवरात्र की देवियों के सम्बन्ध में किशोर चंद चौबे साहब का शोधपरक लेख प्रकाशित हुआ था ,आपकी सुविधा के लिए उसकी स्केन प्रस्तुत कर रहे हैं :




 बड़े सरल शब्दों में चौबेजी ने समझाया है कि ये नौ देवियाँ वस्तुतः नौ औषधियां  हैं जिनके प्राकृतिक संरक्षण तथा चिकित्सकीय प्रयोग हेतु ये नौ दिन निर्धारित किये गए हैं जो सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन रहते दो बार सार्वजानिक रूप से पर्व या उत्सव के रूप में मनाये जाते हैं लेकिन हम देखते हैं कि ये पर्व अपनी उपादेयता खो चुके हैं क्योकि इन्हें मनाने के तौर -तरीके आज बिगड़ चुके हैं .दान ,गान ,शो ,दिखावा ,तड़क -भड़क ,कान -फोडू रात्रि जागरण यही सब हो रहा है जो नवरात्र पर्व के मूल उद्देश्य से हट कर है .पिछले एक पोस्ट में मधु गर्ग जी के आह्वान  का उल्लेख किया था जिस पर तालिबान स्टाइल युवा चेहरे की ओर से असहमति प्रकट की गयी है



'क्रन्तिस्वर' में प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है .डा .राम मनोहर लोहिया स्त्री -स्वातंत्र्य  के प्रबल पक्षधर  थे ,राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजों पर दबाव डाल कर विधवा -पुनर्विवाह का कानून बनवाया था .स्वामी दयानंद ने कोई १३५ वर्ष पूर्व मातृ - शक्ति को ऊपर उठाने का अभियान चलाया था :-

झूठी रस्मों को जिस दिन नीलाम कराया जायेगा .....वीर शहीदों के जिस दिन कुर्बानी की पूजा होगी ......

मथुरा के आर्य भजनोपदेशक विजय सिंह जी के ओजपूर्ण बोलों का अवलोकन करें ---

हमें उन वीर माओं की कहानी याद  आती है .
मरी जो धर्म की खातिर कहानी याद आती है ..
बरस चौदह रही वन में पति के संग सीताजी .
पतिव्रत धर्म मर्यादा निभानी याद आती है ..
कहा सरदार ने रानी निशानी चाहिए मुझको .
दिया सिर काट रानी ने निशानी याद आती है ..
हजारों जल गयीं चित्तोड़ में व्रत  धर्म का लेकर .
चिता पद्मावती तेरी सजानी याद आती है ..
कमर में बांध कर बेटा लड़ी अंग्रेजों से डट कर .
हमें वह शेरनी झाँसी की रानी याद आती है ..


आज के 'हिंदुस्तान' में टी .वी .पत्रकार विजय विद्रोही  जी ने "आँगन से निकलीं मार लिया मैदान" शीर्षक से लेख की शुरुआत इस प्रकार की है --"दिल्ली में कामन वेल्थ खेलों का प्रतीक शेरा था ,लेकिन ये खेल उन शेरनियों के लिए याद किये जायेंगे जिन्होंने मेडल पर मेडल जीते".उन्होंने इस क्रम में नासिक की कविता ,हैदराबाद की पुशूषा मलायीकल ,रांची की दीपिका  ,राजस्थान में ब्याही हिसार की कृष्णा पूनिया ,हरवंत कौर ,सीमा अंतिल ,भिवानी की गीता ,बबीता और अनीता बहनों का विशेष नामोल्लेख  किया है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों  से संघर्ष  करके देश का नाम रोशन किया है .  


 इन नवरात्रों में नारी -शक्ति के लिए सड़ी -गली गलत (अवैज्ञानिक )मान्यताओं को ठुकरा कर वैज्ञानिक रूप से मनाने हेतु विद्वानों के विचार संकलित कर प्रस्तुत किये हैं .लाभ उठाना अथवा वंचित रहना पूरी तरह मातृ-शक्ति पर निर्भर करता है . 


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सारगर्वित प्रस्तुति....आभार

  2. .

    सुन्दर प्रस्तुति....आभार !!!

  3. बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति.....

  4. आपने तो बहुत सुंदर बातें कहीं ...

    नवरात्री की शुभकामनायें .... जय माता की

  5. बेहद सुन्दर गौरवशाली परंपरा को अभिव्यक्त करता अति सुन्दर आलेख ..सादर !!

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Wednesday, October 10, 2012

संसार का मूलाधार है---त्रैतवाद ------ विजय राजबली माथुर

 इस संसार ,इस सृष्टि का नियंता और संचालक परम पिता परमात्मा है। परमात्मा के संबंध मे हमारे देश मे अनेकों मत और धारणाये प्रचलित हैं। इनमे से प्रमुख इस प्रकार हैं---

अद्वैतवादी- सिर्फ परमात्मा को मानते हैं और प्रकृति तथा आत्मा को उसका अंश मानते हैं जो कि गलत तथ्य है क्योंकि यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो बुरे कर्म नहीं करता और प्रकृति भी चेतन होती जड़ नही।

द्वैतवादी -परमात्मा (चेतन)और प्रकृति (जड़)तो मानते हैं परंतु ये भी आत्मा को परमात्मा का ही अंश मानने की भूल करते हैं;इसलिए ये भी मनुष्य को भटका देते हैं।

त्रैतवादी-परमात्मा,आत्मा और प्रकृति तीनों का स्वतंत्र अस्तित्व मानना यही 'त्रैतवाद 'है और 'वेदों' मे इसी का वर्णन है। अन्य किसी तथ्य का नहीं।

वेद आदि ग्रंथ हैं---प्रारम्भ मे ये श्रुति व स्मृति पर आधारित थे अब ग्रंथाकार उपलब्ध हैं। अब से लगभग दो अरब वर्ष पूर्व जब हमारी यह पृथ्वी 'सूर्य' से अलग हुई तो यह भी आग का एक गोला ही थी। धीरे-धीरे करोड़ों वर्षों मे यह पृथ्वी ठंडी हुई और गैसों के मिलने के प्रभाव से यहाँ वर्षा हुई तब जाकर 'जल'(H-2 O)की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी के उस भाग मे जो आज 'अफ्रीका' कहलाता है ,उस भाग मे भी जो 'मध्य एशिया' और 'यूरोप'के समीप है तथा तीसरे उस स्थान पर जो 'त्रिवृष्टि'(तिब्बत)कहलाता है परमात्मा ने 'युवा-पुरुष' व 'युवा-स्त्री' रूपी मनुष्यों की उत्पत्ति की और आज की यह सम्पूर्ण मानवता उन्ही तीनों  पर उत्पन्न मनुष्यों की संतति हैं।

त्रिवृष्टि मे उत्पन्न मनुष्य अधिक विवेकशील  हुआ और कालांतर मे दक्षिण स्थित 'आर्यावर्त'की ओर प्रस्थान कर गया। 'आर्यावर्त'मे ही वेदों की रचना हुई। वेद सृष्टि=इस संसार के संचालन हेतु 'विधान' प्रस्तुत करते हैं। वेदों के अनुसार ---(1 )परमात्मा,(2 )आत्मा और (3 )प्रकृति इन तीन तत्वों पर आधारित इस संसार मे प्रकृति 'जड़' है और स्वयं कुछ नहीं कर सकती जो तीन तत्वों के मेल से बनी है---(1 )सत्व,(2 )रज और (3 )तम। ये तीनों जब 'सम' अवस्था मे होते हैं तो कुछ नहीं होता है और वह 'प्रलय' के बाद की अवस्था होती है। आत्मा -सत्य है और अमर है यह अनादि और अनंत है। 'परमात्मा' ='सत्य' और 'चित्त'के अतिरिक्त 'आनंदमय' भी है---सर्व शक्तिमान है,सर्वज्ञ है और अपने गुण तथा स्वभाव के कारण आत्माओं के लिए प्रकृति से 'सृष्टि' करता है ,उसका पालन करता है तथा उसका संहार कर प्रलय की स्थिति ला देता है,पुनः फिर सृष्टि करता है और आत्माओं को पुनः प्रकृति के 'संयोजन'से 'संसार' मे भेज देता है=G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय)। ये सब कार्य वह खुद ही करता (खुदा ) है।

'सृष्टि' के नित्य ही 'संसर्ग' करने अर्थात 'गतिमान' रहने के कारण ही इसे 'संसार' कहा गया है। 'आत्मा' ,'परमात्मा' का अंश नहीं है उसका स्वतंत्र अस्तित्व है और वह भी 'प्रकृति' तथा 'परमात्मा' की भांति ही कभी भी 'नष्ट नहीं होता है'। विभिन्न कालों मे विभिन्न रूपों मे (योनियों मे )'आत्मा' आता-जाता रहता है और ऐसा उसके 'कर्मफल' के परिणामस्वरूप होता है।
'मनुष्य'=जो मनन कर सकता है उसे मनुष्य कहते हैं। 'परमात्मा' ने 'मानव जीवात्मा' को इस संसार मे 'कार्य-क्षेत्र' मे स्वतन्त्रता दी है अर्थात वह जैसे चाहे कार्य करे परंतु परिणाम परमात्मा उसके कार्यों के अनुसार ही देता है अन्य योनियों मे आत्मा 'कर्मों के फल भोगने' हेतु ही जाता है। यह उसी प्रकार है जैसे 'परीक्षार्थी' परीक्षा भवन मे कुछ भी लिखने को स्वतंत्र है परंतु परिणाम उसके लिखे अनुसार ही मिलता है जिस पर परीक्षार्थी का नियंत्रण नहीं होता। इस भौतिक शरीर के साथ आत्मा को सूक्ष्म शरीर घेरे रहता है और भौतिक शरीर की मृत्यु के बाद भी वह 'सूक्ष्म शरीर' आत्मा के साथ ही चला जाता है। मनुष्य ने अछे या बुरे जो भी 'कर्म' किए होते हैं वे सभी 'गुप्त' रूप से 'सूक्ष्म शरीर' के 'चित्त' मे अंकित रहते हैं और उन्ही के अनुरूप 'परमात्मा' आगामी फल प्रदान करता है---इसी को 'चित्रगुप्त' कहा जाता है।

मनुष्य को उसके कर्मों का जो फल उसी जीवन मे नहीं मिल पाता है वह संचित रहता है और यही आगामी जीवन पर 'प्रारब्ध (भाग्य )'बन जाता है। परंतु 'जीवन' मे 'मनुष्य' 'मनन' द्वारा अच्छे कर्मों को सम्पन्न कर 'संचित प्रारब्ध' के बुरे कर्मों के फलों को 'सहन' करने की 'शक्ति' अर्जित कर लेता है। जो मनुष्य नहीं समझ पाता वही इस 'संसार' मे दुखी होता है और जो समझ लेता है वह 'सुख-दुख' को एक समान समझता है और विचलित नहीं होता है तथा 'शुभ कर्मों' मे ही लगा रहता है। प्रायः यह दीखता है कि 'बुरे कर्म' करने वाला 'आनंद' मे है और 'अच्छे कर्म' वाला 'कष्ट' मे है ऐसा 'पूर्व कर्मफल ' के अनुसार ही है। परमात्मा अच्छी के अच्छे व बुरे के बुरे फल प्रदान करता है। इस जन्म के बुरे कर्म देख कर परमात्मा पूर्व जन्म के अच्छे फल नहीं रोकता;परंतु इस जन्म के बुरे कर्म उस मनुष्य के आगामी जीवन का 'प्रारब्ध' निर्धारित कर देते हैं। परंतु अज्ञानी मनुष्य समझता है कि परमात्मा बुरे का साथी है ,या तो वह भी बुरे कार्यों मे लीन होकर अपना आगामी प्रारब्ध बिगाड़ लेता है या व्यर्थ ही परमात्मा को कोसता   रहता है। परंतु बुद्धिमान मनुष्य अब्दुर्रहीम खानखाना की इस उक्ति पर चलता है---

"रहिमन चुप हुवे  बैठिए,देख दिनन के फेर। 
जब नीके दिन आईहैं,बनात न लागि है-बेर। । "

जो बुद्धिहीन मनुष्य यह समझते हैं कि अच्छा या बुरा सब परमात्मा की मर्ज़ी से होता है ,वे अपनी गलती को छिपाने हेतु ही ऐसा कहते हैं। आत्मा के साथ परमात्मा का भी वास रहता है क्योंकि वह सर्वव्यापक है। परंतु आत्मा -परमात्मा का अंश नहीं है जैसा कु भ्रम लोग फैला देते हैं। जल का परमाणु अलग करेंगे तो उसमे जल के ,अग्नि का अलग करेंगे तो उसमे अग्नि के गुण मिलेंगे। जल की एक बूंद भी शीतल होगी तथा अग्नि की एक चिंगारी भी दग्ध करने मे सक्षम होगी। यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो वह भी सचिदानंद अर्थात सत +चित्त +आनंद होता। जबकि आत्मा सत और चित्त तो है पर आनंद युक्त नहीं है और इस आनंद की प्राप्ति के लिए ही उसे मानव शरीर से परमात्मा का ध्यान करना होता है। जो मनुष्य संसार के इस त्रैतवादी रहस्य को समझ कर कर्म करते हैं वे इस संसार मे भी आनंद उठाते हैं और आगामी जन्मों का भी प्रारब्ध 'आनंदमय' बना लेते हैं। आनंद परमात्मा के सान्निध्य मे है ---सांसारिक सुखों मे नहीं। संसार का मूलाधार है त्रैतवाद अर्थात परमात्मा,प्रकृति और आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार करना तथा तदनुरूप कर्म-व्यवहार करना।       

Friday, October 5, 2012

ब्लागर सम्मेलन मे श्रेष्ठ वक्ता के विचार



कामरेड राकेश ,महासचिव इप्टा,उत्तर प्रदेश (फोटो संतोष त्रिवेदी जी से साभार )


सोमवार,27 अगस्त 2012 को लखनऊ के राय उमनाथ बली प्रेक्षागृह मे अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन सम्पन्न हुआ था। कुछ स्वार्थी-ज्वलनशील ब्लागर्स ने इस आयोजन की कड़ी निंदा की है। इस उठा-पटक मे काफी महत्वपूर्ण बातों की चर्चा प्रकाश मे आने से वंचित रही। यों तो लगभग सभी वक्ताओं ने बहुत अच्छी -अच्छी बातों पर प्रकाश डाला था ,किन्तु डॉ राकेश ,डॉ वीरेंद्र यादव एवं मुद्रा राक्षस जी ने आम आदमी से संबन्धित मुद्दों को उस ब्लागर सम्मेलन मे मजबूत तर्कों के साथ रखा था जिन पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए थी। मुद्रा राक्षस जी ने कहा था कि हमारे देश मे अभी करोड़ों लोगों ने रेल गाड़ी की ही शक्ल नहीं देखी है उन पर ब्लाग-लेखन क्या प्रभाव डालेगा इस पर भी विचार होना चाहिए। वीरेंद्र यादव जी ने ग्रामीण पृष्ठ-भूमि और किसानों को ब्लाग-लेखन मे महत्व दिये जाने की चर्चा की थी।

मुझे इप्टा,उत्तर प्रदेश के महासचिव डॉ राकेश के विचार श्रेष्ठ एवं उत्तम लगे क्योंकि उन्होने तमाम प्रकार की चिंताओं को दरकिनार करते हुये बताया कि 'इन्टरनेट' हमारे देश के लिए नई चीज़ नहीं है। पहले भी यह ज्ञान हमारे देश मे रहा है जो किन्ही कारणों से विलुप्त हो गया था और अब पुनः पश्चिम की मार्फत हम तक पहुंचा है। राकेश जी ने बताया कि 'Read, Re read &Unread' की प्रक्रियाएं सतत चलनी चाहिए जिससे ज्ञान प्राप्ति उसका परिमार्जन एवं परिष्करण होता रहे। ऐसा न होने पर ज्ञान कुंठित होकर समाप्त या विलुप्त हो जाता है। इसी कारण हमारा प्राचीन ज्ञान विलुप्त हुआ था कि हमारे पूर्वज इस सतत प्रक्रिया का सम्यक निर्वहन न कर सके थे।

राकेश जी ने बताया कि महाभारत युद्ध की घटना का विवरण संजय द्वारा धृत राष्ट्र को सजीव सुनाया जाना इसी इन्टरनेट और टेलीविज़न के माध्यम से संभव हुआ था। उस समय तक हमारा ज्ञान-विज्ञान उन्नत दशा मे था। बाद मे धीरे-धीरे पतन होता गया और ज्ञान-विज्ञान का क्षरण होता गया।अब हमने पुनः इस ज्ञान को अर्जित किया है तब इसका लाभ समस्त जनता को मिल सके ऐसी व्यवस्था किए जाने की आवश्यकता है।

विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि दूसरे बामपंथी-साम्यवादी विद्वानों की तरह राकेश जी संकीर्ण दृष्टिकोण मे नहीं बंधे व उन्होने स्पष्ट स्वीकार किया कि आधुनिक विज्ञान से अधिक समृद्ध था हमारा प्राचीन विज्ञान और जहां तक अभी भी आधुनिक विज्ञान पहुँच ही नहीं पाया है।

मैं तो एक लंबे अरसे से इस ब्लाग के माध्यम से ऐसे ही विचारों को व्यक्त करता रहा था। 'साम्यवाद' के संबंध मे भी मेरा दृष्टिकोण सुदृढ़ है कि यह हमारे प्राचीन 'समष्टिवाद' का आधुनिक पाश्चात्य रूप है। परंतु उसी रूप मे जैसा समष्टिवाद हमारे यहाँ था पाश्चात्य साम्यवाद न होना ही वह कारण रहा कि सोवियत रूस से साम्यवादी व्यवस्था छिन्न -भिन्न हो गई। रूस मे विदेशी पूंजीपति नहीं आ गए बल्कि पूर्व के भ्रष्ट नेता और अधिकारी ही आज के सम्पन्न उद्योगपति-पूंजीपति हैं। इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड जितेंद्र रघुवंशी जी ने रूस के वर्तमान राष्ट्रपति 'पुतिन' से संबन्धित एक पुस्तक का ब्यौरा शेयर किया था उसे हम नीचे उद्धृत कर रहे हैं जिससे यह बात आसानी से समझ आ जाएगी। - 

31 अगस्त 2012 के जितेंद्र रघुवंशी जी के टाईम लाईन से-




। खुलासा ।

कम ही राष्ट्रपति ऐसे होंगे जिसके विमान में 47,000 पाउंड का टॉयलेट लगा हो। व्लादिमीर पुतिन उनमें से एक हैं। डैमनिंग न्यू रिपोर्ट के अनुसार रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अकूत संपत्ति के मालिक हैं। इनकी संपत्ति में शानदार पैले
स और लग्जरी यॉट के शामिल हैं। इसके अलावा इनके पास मंहगी असेसरीज हैं। पुतिन की संपत्ति का ये खुलासा रूस के पूर्व डिप्टी प्रधानमंत्री बोरिस नेमसोव ने किया है। बेरोस पुतिन के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। बेरोस के अनुसार पुतिन के शाही पैलेस, जेट विमानों और गाड़ियों का सालाना मेंटेनेंस का खर्च ही 1.6 बिलियन पाउंड है।
बेरोस द्वारा जारी की गई 32 पेजों की किताब में पुतिन की संपत्ति से संबंधित चौंकाने वाली जानकारियां हैं। इसमें बताया गया है कि पुतिन के पास 58 विमान और हेलीकॉप्टर हैं। इसके अलावा पुतिन की संपत्ति में 20 शाही घर भी शामिल हैं। पुतिन के पास 11 बेहद मंहगी घड़ियां भी हैं, जिनकी कीमत उनकी सालाना सैलरी से कई गुना ज्यादा है। 'द लाइफ ऑफ ए गैलरी स्लेव' नामक इस किताब में रूसी राष्ट्रपति के संपत्ति के बारे में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं।



अतः यदि हम 27 अगस्त को लखनऊ मे सम्पन्न हुये अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन मे व्यक्त श्रेष्ठ वक्ता राकेश जी के सुझाए विचारों को अपना कर उन पर अमल करें तो अपने ज्ञान-विज्ञान को न केवल समृद्ध कर सकेंगे वरन आम जनता का कल्याण भी 'ब्लाग-जगत' के माध्यम से कर सकेंगे। 27 तारीख का ब्लागर सम्मेलन जिस भवन मे हुआ था उसका नामकरण हमारे ही खानदानी राय उमानाथ बली के नाम पर हुआ है। इसलिए उस स्थल से भावनात्मक लगाव तो था ही आयोजकों मे से एक कामरेड रणधीर सिंह सुमन हमारे ही ज़िले बाराबंकी मे हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। उनका व्यक्तिगत आग्रह मेरे वहाँ उपस्थित रहने के बारे मे था। उन्होने इप्टा के प्रदेश महासचिव कामरेड राकेश जी को मुझसे ही स्मृति चिन्ह व पुष्प गुच्छ भेंट कराये थे।बाद मे उनका वक्तव्य और विचार ही मुझे सर्व-श्रेष्ठ प्रतीत हुये अतः उनको सार्वजनिक करना मैंने अपना कर्तव्य समझा । 


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Tuesday, October 2, 2012

गांधीजी/शास्त्रीजी के ग्रह-नक्षत्र (पुनर्प्रकाशन)

 गांधी-शास्त्री जयंती पर विशेष स्मरण 

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011


"गांधी को महात्मा बनाने वाले ग्रह -नक्षत्र"



यद्यपि  महात्मा गांधी ने सरकार में कोई पद ग्रहण नहीं किया;परन्तु उन्हें राष्ट्रपिता की मानद उपाधि से विभूषित किया गया है.गांधी जी क़े जन्मांग में लग्न में बुध बैठा है और सप्तम भाव में बैठ कर गुरु पूर्ण १८० अंश से उसे देख रहा है जिस कारण रूद्र योग घटित हुआ.रूद्र योग एक राजयोग है और उसी ने उन्हें राष्ट्रपिता का खिताब दिलवाया है.गांधी जी का जन्म तुला लग्न में हुआ था जिस कारण उनके भीतर न्याय ,दया,क्षमा,शांति एवं अनुशासन क़े गुणों का विकास हुआ.पराक्रम भाव में धनु राशि ने उन्हें वीर व साहसी बनाया जिस कारण वह ब्रिटिश सरकार से अहिंसा क़े बल पर टक्कर ले सके.


गांधी जी क़े सुख भाव में उपस्थित होकर केतु ने उन्हें आश्चर्यजनक ख्याति दिलाई परन्तु इसी क़े कारण उनके जीवन क़े अंतिम वर्ष कष्टदायक व असफल रहे.(राजेन्द्र बाबू को भी ऐसे ही केतु क़े कारण अंतिम रूप से नेहरु जी से मतभेदों का सामना करना पड़ा था.)एक ओर तो गांधी जी देश का विभाजन न रुकवा सके और दूसरी ओर साम्प्रदायिक सौहार्द्र  भी स्थापित न हो सका और अन्ततः उन्हें अंध -धर्मान्धता का शिकार होना पड़ा.

गांधी जी क़े विद्या भाव में कुम्भ राशि होने क़े कारण ही वह कष्ट सहने में माहिर बने ,दूसरों की भलाई और परोपकार क़े कार्यों में लगे रहे और उन्होंने कभी भी व्यर्थ असत्य भाषण नहीं किया.गांधी जी क़े अस्त्र सत्य और शास्त्र अहिंसा थे.गांधी जी क़े सप्तमस्थ  गुरु ने ही उन्हें विद्वान व राजा क़े तुल्य राष्ट्रपिता की पदवी दिलाई.

गांधी जी क़े भाग्य भाव में मिथुन राशि है जिस कारण उनका स्वभाव सौम्य,सरस व सात्विक बना रहा.धार्मिक सहिष्णुता इसी कारण उनमें कूट -कूट कर भरी हुई थी.उन्होंने सड़ी -गली रूढ़ियों व पाखण्ड का विरोध किया अपने सदगुणों और उच्च विचारों क़े कारण अहिंसक क्रांति से देश को आज़ाद करने का लक्ष्य उन्हें इसी क़े कारण प्राप्त हो सका.गांधी जी क़े कर्म भाव में कर्क राशि की उपस्थिति ने ही उनकी आस्था श्रम,न्याय व धर्म में टिकाये रखी और इसी कारण राजनीति में रह कर भी वह पाप-कर्म से दूर रह कर गरीबों की सेवा क़े कार्य कर सके.गांधी जी का सर्वाधिक जोर दरिद्र -नारायण की सेवा पर रहता था और उसका कारण यही योग है.गांधी जी क़े एकादश भाव में सिंह राशि एवं चन्द्र ग्रह की स्थिति ने उन्हें हठवादी,सादगी पसन्द ,सूझ -बूझ व नेतृत्व की क्षमता सम्पन्न तथा विचारवान बनाया.इसी योग क़े कारण उनके विचार मौलिक एवं अछूते थे जो गांधीवाद क़े नाम से जाने जाते हैं.अस्तु गांधी जी को साधारण इन्सान से उठ कर महात्मा बनाने में उनके जन्म-कालीन ग्रह व नक्षत्रों का ही योग है.



(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह जी , माथुर साहब बहुत खूब ! महात्मा गांधी की पूरी जन्मपत्री बांच डाली आपने ! बस, यही एक क्षेत्र है जिसमे हम गांधी से कोई प्रेरणा नहीं ले सकते,:) क्योंकि जन्मपत्री अथवा भाग्य बदला ही नहीं जा सकता ! हमारे पास जो है, सदा वही रहना है !
  2. डॉ. बी. वी. रामन की पुस्तक में पढ़ा था जब मैं ज्योतिष का अध्ययन कर रहा था!आपकी विवेचना प्रशंसनीय है!!
  3. बहुत गहरी और सुंदर विश्लेष्णात्मक विवेचना .....
  4. वाह..एकदम नवीन ढंग की विवेचना पढने को मिली यहाँ...

    बड़ा अच्छा लगा...

    आभार...
  5. ye janmpatriyan kabhi bhi hamari samajh me nahi aayi. :-(



    सोमवार, 10 जनवरी 2011


    शास्त्री जी प्रधान मंत्री कैसे बने ?



    एक उच्च कोटि क़े विद्वान् का कथन है कि,मनुष्य और पशु क़े बीच विभाजन रेखा उसका विवेक है.जहाँ यह विवेक छूता है ,वहां मनुष्य और पशु में कोई भेद नहीं रह जाता है.१९६५ क़े भारत-पाक संघर्ष क़े दौरान जब लिंडन जॉन्सन ने शास्त्री जी को पाकिस्तानी क्षेत्र में न बढ़ने की चेतावनी दी तो शास्त्री जी ने अमेरिकी पी.एल.४८० को ठुकरा दिया था और जनता से सप्ताह में एक दिन सोमवार को सायंकाल क़े समय उपवास रखने का आह्वान  किया था ;जनता ने सहर्ष शास्त्री जी की बात को शिरोधार्य कर क़े उस पर अमल किया था.यह दृष्टांत शास्त्री जी की लोकप्रियता को ही दर्शाता है और यह शास्त्री जी क़े स्वाभिमान का भी प्रतीक है.

    सब की सुनने वाले -शास्त्री जी जितने दबंग थे और गलत बात को कभी भी किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करते थे ,उतने ही विनम्र और सब की सुनने वाले भी थे.जब शास्त्री जी उ.प्र.क़े गृह मंत्री थे तो क्रिकेट मैच क़े दौरान पुलिस ने स्टेडियम में छात्रों पर लाठी चार्ज कर दिया था.उस समय पुलिस की टोपी लाल रंग की हुआ करती थी.लखनऊ विश्वविद्यालय क़े छत्र संघ क़े अध्यक्ष क़े नेतृत्व में छात्रों का एक प्रतिनिधिमंडल शास्त्री जी से मिला और पुलिस  को हटाने क़े सम्बन्ध में आग्रह किया और कहा -मंत्री जी कल से लाल टोपी खेल क़े मैदान में नहीं दिखाई देनी चाहिए.शास्त्री जी ने नम्र भाव से उत्तर दिया ठीक है ऐसा ही होगा.शास्त्री जी ने लखनऊ क़े सारे दर्जियों को लगा कर रात भर में खाकी टोपियाँ सिलवा  दीं और जब अगले दिन छत्र पुनः शिकवा लेकर शास्त्री जी से मिले तो शास्त्री जी ने सहज भाव से कहा -तुम लोगों ने लाल टोपी न दिखने की बात कही थी,हमने उन्हें हटा कर खाकी टोपियाँ सिलवा दीं हैं.
     
    नितांत गरीबी व अभावों में पल-बढ़ कर शास्त्री जी इतने बुलंद कैसे हुए और ऊपर कैसे उठते गये ,आईए जाने उनके ग्रह  -नक्षत्रों से. शास्त्री जी की हथेली में मणिबंध से प्रारम्भ और शनि तथा बृहस्पति पर द्विविभाजित भाग्य रेखा ने लाल बहादुर शास्त्री जी को उच्च पद पर पहुँचाया और निर्भीक, साहसी,लोकप्रिय व देशभक्त बनाया,जिसकी पुष्टि उनके जन्मांग से स्पष्टतः
    हो जाती है.

     शास्त्री जी की कुंडली में बुध अपनी राशी में राज्य-भाव में बैठा है और भद्र-योग निर्मित कर रहा है.इस योग का फल यह होता है कि,इसमें उत्त्पन्न मनुष्य सिंह क़े समान पराक्रमी और शत्रुओं का विनाश करने वाला होता है .शास्त्री जी ने सन१९६५ ई.क़े युद्ध में पहली बार शत्रु की धरती पर धावा बोला और पाकिस्तान से सरगोधा व सियालकोट छीन लिये थे तथा लाहौर में प्रवेश करने ही वाले थे जब रूस क़े अनुरोध पर युद्ध -विराम करना पड़ा.भद्र-योग रखने वाला व्यक्ति पेचीदा से पेचीदा कार्य भी सहजता से कर डालता है.यह शास्त्री जी की ही सूझ-बूझ का परिणाम था कि,विश्व-व्यापी विरोध क़े बावजूद भारत शत्रु क़े पांव बांध सका.बुध क़े द्वारा निर्मित भद्र-योग क़े कारण ही शास्त्री जी -प्रधान मंत्री  पद जितना ऊंचा उठ सके तभी तो कन्हैय्या  लाल मंत को गाना पड़ा :-


    दहल उठे इस छोटे कद से बड़े-बड़े कद्दावर भी,
    ठहर उठे रण-हुंकारों से बड़े-बड़े हमलावर भी.
    दुश्मन ने समझा,भारत की मिट्टी में गर्मायी है,
    सत्य,अहिंसा क़े हामी ने भी तलवार उठाई है..


    (२८ सितम्बर,१९६९ ई. ,दैनिक हिंदुस्तान में छपी कविता से ये पंक्तियाँ उद्धृत हैं.)



     (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

    6 टिप्‍पणियां:

    1. एकमात्र बेदाग प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी के यशस्वी जीवन से संबंधित प्रसंग पढ़कर गौरव की अनुभूति हुई।

      आज के राजनीतिज्ञों को शास्त्री जी के जीवन और व्यक्तित्व से प्रेरणा लेनी चाहिए।

      ज्योतिषीय विश्लेषण से ज्ञानवृद्धि हुई।
    2. श्रद्धावनत हो उस सच्चे सपूत के चरणों की वंदना करता हूँ, जिनका त्याग, बलिदान, पराक्रम, ईमानदारी आदि गुण आज इतिहास का अंग हो चुके हैं, कदाचित् लुप्तप्राय!
      इस सपूत का जन्मदिन तो किसी को याद नहीं होता, पुण्यतिथि पने याद दिलाई यही क्या कम है!!
    3. छोटे कद के लाल बहादुर शास्त्री ऊंचे चरित्र और आत्मविश्वास वाले व्यक्ति थे । उनका जीवन किसी भी गरीब और गाँव में रहने वाले युवक के लिए एक उदाहरण हो सकता है ।
      आज शहर में रहकर हम अपनी मूल वास्तविकता को भूलकर भ्रष्टाचार में लिप्त ऐसे महापुरुषों को भुला दे रहे हैं ।
      सार्थक और समसामयिक लेख के लिए बधाई एवम आभार स्वीकारें ।
    4. आज तक भारत मे एक ही प्रधानमंत्री हुये हे, जिन पर हम गर्व कर सकते हे,शिक्षा ले सकते हे, ओर वो हे...मेरे सब से प्रिय स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी, उन्हे प्रणाम
    5. वहा क्या बात है। देशभकत क्या होती है ये कोई शास्त्री जी से सीखें। पर क्या करे चाय के प्यालों में तूफान उठाते-उठाते हकीकत के धरातल से इतना दूर हो चुका है हमारा राजनेतुत्व की कुछ भी कहना मुहाल है। आशा फिलहाल किसी नेता में नहीं दिखती।
    6. बढ़िया प्रस्तुती ! इसमें यह बात भी देखने लायक है कि एक वो शास्त्री थे जिन्होंने देश में साधनों की कमी की वजह से लोगो का आव्हान किया था कि हफ्ते में एक दिन भूखे रहकर हम अपनी कमजोर और पाकिस्तान के साथ युद्ध की वजह से गिरती अर्थव्यवस्था को सुधारेंगे, उन्होंने यह भी कहा था कि दस साल से कम उम्र के बच्चों को उपवास के लिए न कहें , फिर भी लोगों ने खुसी-खुसी अपने बच्चो को भी हफ्ते में एक दिन के उपवास पर रखा था! और एक ये आज के अर्थशास्त्री है मन मोहन सिंह जी , जो देश में साधनों की भरमार होते हुए भी जबरन लोगो को भूखों मरने पर विवश कर रहे है !


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