Friday, November 30, 2012

सांप्रदायिकता और धर्म निपेक्षता ---विजय राज बली माथुर


सांप्रदायिकता ---

सांप्रदायिकता का आधुनिक इतिहास 1857 की क्रांति की विफलता के बाद शुरू होता है। चूंकि 1857 की क्रांति मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के नेतृत्व मे लड़ी गई थी और इसे मराठों समेत समस्त भारतीयों की ओर से समर्थन मिला था सिवाय उन भारतीयों के जो अंग्रेजों के मित्र थे तथा जिनके बल पर यह क्रांति कुचली गई थी।ब्रिटेन ने सत्ता कंपनी से छीन कर जब अपने हाथ मे कर ली तो यहाँ की जनता को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने हेतु प्रारम्भ मे मुस्लिमों को ज़रा ज़्यादा  दबाया। 19 वी शताब्दी मे सैयद अहमद शाह और शाह वली उल्लाह के नेतृत्व मे वहाबी आंदोलन के दौरान इस्लाम मे तथा प्रार्थना समाज,आर्यसमाज,राम कृष्ण मिशन और थियोसाफ़िकल समाज के नेतृत्व मे हिन्दुत्व मे सुधार आंदोलन चले जो देश की आज़ादी के आंदोलन मे भी मील के पत्थर बने। असंतोष को नियमित करने के उद्देश्य से वाइसराय के समर्थन से अवकाश प्राप्त ICS एलेन आकटावियन हयूम ने कांग्रेस की स्थापना कारवाई। जब कांग्रेस का आंदोलन आज़ादी की दिशा मे बढ्ने लगा तो 1905 मे बंगाल का विभाजन कर हिन्दू-मुस्लिम मे फांक डालने का कार्य किया गया। किन्तु बंग-भंग आंदोलन को जनता की ज़बरदस्त एकता के आगे 1911 मे इस विभाजन को रद्द करना पड़ा। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन  एवं सर आगा खाँ को आगे करके मुस्लिमों को हिंदुओं से अलग करने का उपक्रम किया जिसके फल स्वरूप 1906  मे मुस्लिम लीग की स्थापना हुई और 1920 मे हिन्दू महासभा की स्थापना मदन मोहन मालवीय को आगे करके करवाई गई जिसके सफल न हो पाने के कारण 1925 मे RSS की स्थापना कारवाई गई जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करना था । मुस्लिम लीग भी साम्राज्यवाद का ही संरक्षण कर रही थी जैसा कि,एडवर्ड थाम्पसन ने 'एनलिस्ट इंडिया फार फ़्रीडम के पृष्ठ 50 पर लिखा है-"मुस्लिम संप्रदाय वादियों  और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों मे गोलमेज़ सम्मेलन के दौरान अपवित्र गठबंधन रहा। "

वस्तुतः मेरे विचार मे सांप्रदायिकता और साम्राज्यवाद सहोदरी ही हैं। इसी लिए भारत को आज़ादी देते वक्त भी ब्रिटश साम्राज्यवाद  ने पाकिस्तान और भारत  दो देश बना दिये। पाकिस्तान तो सीधा-सीधा वर्तमान साम्राज्यवाद के सरगना अमेरिका के इशारे पर चला जबकि अब भारत की सरकार  भी अमेरिकी हितों का संरक्षण कर रही है। भारत मे चल रही सभी आतंकी गतिविधियों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन अमेरिका का रहता है। हाल के दिनों मे जब बढ़ती मंहगाई ,डीजल,पेट्रोल,गैस के दामों मे बढ़ौतरी और वाल मार्ट को सुविधा देने के प्रस्ताव से जन-असंतोष व्यापक था अमेरिकी एजेंसियों के समर्थन से सांप्रदायिक शक्तियों ने दंगे भड़का दिये। इस प्रकार जनता को आपस मे लड़ा देने से मूल समस्याओं से ध्यान हट गया तथा सरकार को साम्राज्यवादी हितों का संरक्षण सुगमता से करने का अवसर प्राप्त  हो गया।

धर्म निरपेक्षता---

धर्म निरपेक्षता एक गड़बड़ शब्द है। इसे मजहब या उपासना पद्धतियों के संदर्भ मे प्रयोग किया जाता है । संविधान मे भी इसका उल्लेख इसी संदर्भ मे  है । इसका अभिप्राय यह था कि,राज्य किसी भी उपासना पद्धति या मजहब को संरक्षण नही देगा। जबकि व्यवहार मे केंद्र व राज्य सरकारें कुम्भ आदि मेलों के आयोजन मे भी योगदान देती हैं और हज -सबसीडी के रूप मे भी। वास्तविकता यह है कि ये कर्म धर्म नहीं हैं। धर्म का अर्थ है जो मानव शरीर और मानव सभ्यता को धारण करने के लिए आवश्यक हो। जैसे -सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। धर्म निपेक्षता की आड़ मे इन सद्गुणों का तो परित्याग कर दिया गया है और ढोंग-पाखण्ड-आडंबर को विभिन्न सरकारें खुद भी प्रश्रय देती हैं और उन संस्थाओं को भी बढ़ावा देती हैं जो ऐसे पाखंड फैलाने मे मददगार हों। इन पाखंडों से किसी भी  आम जनता का  भला  नहीं होता है किन्तु व्यापारी/उद्योगपति वर्ग को भारी आर्थिक लाभ होता है। अतः कारपोरेट घरानों के अखबार और चेनल्स पाखंडों का प्रचार व प्रसार खूब ज़ोर-शोर से करते हैं। 

एक ओर धर्म निरपेक्षता की दुहाई दी जाती है और दूसरी ओर पाखंडों को धर्म के नाम पर फैलाया जाता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि धर्म को उसके वास्तविक रूप मे समझ-समझा कर उस पर अमल किया जाए और ढोंग-पाखंड चाहे वह किसी भी मजहब का हो उसका प्रतिकार किया जाये। पहले प्रबुद्ध-जनों को समझना व खुद को सुधारना  होगा फिर जनता व सरकार को समझाना होगा तभी उदेश्य साकार हो सकता है। वरना तो धर्म निरपेक्षता के नाम पर सद्गुणों को ठुकराना और सभी मजहबों मे ढोंग-पाखंड को बढ़ाना जारी रहेगा और इसका पूरा-पूरा लाभ शोषक-उत्पीड़क वर्ग को मिलता रहेगा। जनता आपस मे सांप्रदायिकता के भंवर जाल मे फंस कर लुटती-पिसती रहेगी। 



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Sunday, November 25, 2012

सुख और दुःख ज्योतिष क़े आईने में (पुनर्प्रकाशन)---विजय राज बली माथुर


सोमवार, 17 जनवरी 2011


सुख और दुःख ज्योतिष क़े आईने में

सुख और दुःख परस्पर विरोधी अवस्थाओं का भान कराने वाले शब्द हैं.वैसे यदि दुःख न हो तो सुख की अनुभूति या उसे प्राप्त करने की इच्छा भी नहीं हो सकती.मर्यादा पुरुषोत्तम राम व जानकी माता तथा योगीराज श्री कृष्ण को भी दुखों का सामना करना ही पड़ा था.यहाँ एक ऐसे शख्स का उल्लेख कर रहे हैं,जिन्हें एक ही ग्रह मंगल ने सुख और दुःख दोनों अलग-अलग प्रकार से प्रदान किये.ऐसा न केवल उनके जन्म-कालीन ग्रहों क़े आधार पर हुआ बल्कि,गोचर-कालीन मंगल की कुद्रष्टि ने भी उन्हें पीड़ित किया.

उनके जन्मांग में चतुर्थ भावस्थ मंगल उनको भूमि व वाहन लाभ दिलाने में पूर्ण समर्थ रहा है,उनके कई अपने निजी मकान हैं और कई उत्तम वाहनों क़े भी वह स्वामी हैं;जहाँ इतनी सुख-सुविधाएं उन्हें मंगल ग्रह क़े कारण मिल रही हैं-वहीं यही मंगल उन्हें पीड़ा देने में भी अग्रणी है.पत्नी भाव का स्वामी होकर सुख भाव में प्रबल शत्रु-ग्रह शुक्र क़े साथ मंगल की उपस्थिति ही उनकी पत्नी क़े स्वास्थ्य को क्षीण करने का कारण बनी है.विवाह क़े बाद लगातार उनकी पत्नी कुछ न कुछ रुग्ण रही हैं और लगभग ७ वर्ष पूर्व उन्हें बड़ा आपरेशन कराना पड़ा है.ऐसा मंगल क़े गोचर-कालीन प्रभाव और जातक क़े जन्मांग में स्थिति  दोनों क़े फलस्वरूप घटित हुआ है.जातक को स्वंय २० जूलाई २००३ को दुर्घटना का शिकार होना पड़ा-पटना में रात्री पौने आठ क़े उपरान्त उनको बदमाशों ने किसी दूसरे क़े धोखे में गोली मार दी जो उनके पेट में घुस कर पीछे कमर से निकल गई.जातक को आपरेशन कराना पड़ा और लम्बे समय तक चिकित्सा-अवकाश पर रहना पड़ा.जातक क़े जन्मांग तथा गोचर काल में जब गोली उनको लगी  दोनों स्थितियों में शनि उनके शत्रुओं क़े लिये संहारक स्थिति में था.शनि मंगल का प्रबल शत्रु भी है,अतः स्पष्ट है कि,शनि ने मंगल क़े आघात से जातक की प्राण-रक्षा की है,परन्तु ऊँची दुकान फींका पकवान वाले पं.जी ने जातक को शनि ग्रह घातक बताया था और गोली लगने का हेतु भी शनि को बताया था.जबकि अध्ययन काल में भी जातक वाहन दुर्घटना का शिकार मंगल क़े प्रकोप से हो चुके थे और तब भी उन्हें शनि ग्रह ने ही बचाया था.अन्ततः जातक ने मुझसे संपर्क किया और तब मैंने उन्हें समझाया कि उन्हें मंगल ग्रह की शांति करानी चाहिए तथा जो रत्न उन पं.जी ने पहनाया है उन्हें उतार देना चाहिए .जातक ने मेरे बताये अनुसार वैसा ही किया और राहत प्राप्त की.उनके घर का माहौल भी पहले की अपेक्षा ठीक हो गया.जातक क़े जन्मांग में सिर्फ मंगल का ही कोप नहीं था,वरन जहाँ वह तब निवास कर रहे थे उस सरकारी मकान में ईशान में रसोई-घर बना हुआ था.जातक और उनकी पत्नी दोनों ही ब्लड प्रेशर से ग्रसित थे और इस वस्तु-दोष ने भी उन्हें दुर्घटना का शिकार बनाया .उन्हें वास्तु-दोष क़े निराकरण हेतु भी सुझाव व उपाय दिये जिन्हें उन्होंने स्वीकार व अंगीकार किया तथा उसका लाभ भी उन्हें मिला और जो भय व कष्ट उन्हें सता रहे थे उनसे राहत मिल गई.यह जातक रसायन शास्त्र(केमिस्ट्री)में पी. एच.डी.हैं.अतः इन्हें हवन की वैज्ञानिक पद्धति से उपचार की बात तर्क सांगत लगी और उन्होंने उसका सहारा लेकर लाभ भी प्राप्त किया.परन्तु ऐसे इंजीनियर परिवारों से भी साबका पड़ा जिन्हें विज्ञान-सम्मत तर्क समझ में नहीं आते और वे उन उपायों को करने की बजाये पोंगा-पंडितों क़े बताये उल-जलूल उपायों को ही अपनाते हैं.एक इं.सा :अपने घर क़े वास्तु-दोष क़े कारण अपनी बाईपास सर्जरी करा चुके थे. उनके पहले किरायेदार की मौत इसी दोष क़े कारण हो गई,तीसरे किरायेदार क़े बड़े पुत्र का दुर्घटना में दुखांत हो गया,उनके दूसरे और चौथे किरायेदार दिवालिया हो गये.पांचवां किरायेदार एक फ्राड था जो कुछ दिन रह कर भाग गया.लेकिन इंजीनियरी क़े नशे में उन साहब को अपने मकान क़े वास्तु-दोषों का निराकरण करने की आवश्यकता नहीं है.एक और परिवार में तीन सदस्य इंजीनियर हैं यह भी एक आधुनिक परिवार है इनके ईशान में शौचालय और उत्तर में रसोई बनी हुई है.तमाम वास्तु दोष इन्हें परेशान तो कर रहे हैं परन्तु ये लोग इस तथ्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं.वैज्ञानिक विधि क़े उपायों का भी उनकी निगाह में कोई महत्त्व नहीं है.इं दोषों का ही परिणाम था कि परिवार क़े मुखिया को हार्ट प्राब्लम का भी सामना करना पड़ा था और इसी परिवार में रहने वाले बालक को दो बार एक ही कक्षा में रुकना पड़ा और तीसरी बार प्रयास करना पड़ा.इस बालक को मेरे द्वारा जो उपाए बताये गये थे उन्हें इन लोगों ने नहीं माना और न ही अमल किया गया .इस बालक को भी मंगल ग्रह की शांति करने को कहा गया था,परन्तु साईंसदा परिवार ने वैज्ञानिक उपायों को ठुकरा दिया और इस प्रकार अपना ही अहित कर डाला.इस बुद्धि विपर्याय का कारण भी इस परिवार का वास्तु-दोष को ठुकरा कर उनका परिष्कार न करना ही है.जब ईशान में शौचालय होते हैं तो सबसे पहले बुद्धि ही भ्रष्ट होती है,उसके बाद धीरे-धीरे अन्य विकार जन्म लेते जाते है. वैसे ग्रहों ने धन-सम्पदा भी प्रदान की है जिसका वे दुरूपयोग ही करते हैं.एक अन्य परिवार जो धन-संपत्ति की दृष्टि से सम्पन्न है ऐसे निवास में रह रहा है जिसके नैरित्य(South West) में रसोई है और आग्नेय (South East) में शौचालय .इस परिवार क़े बच्चे व गृहणी रुग्ण चलते रहते हैं.परिवार क़े मुखिया उच्च शिक्षित ,उच्चाधिकारी और ठाकुर परिवार से सम्बंधित हैं.उन्होंने हमसे संपर्क किया ,उन्हें भी वैज्ञानिक विधि क़े उपाए बताये.उन्होंने सहर्ष समझा और स्वीकार ही नहीं किया वरन उन पर अमल भी शुरू कर दिया.वास्तु-दोष का निवारण तथा हवन-विधि से ग्रहों को शान्त कराया.स्वभाविक रूप से वैज्ञानिक उपायों क़े महत्त्व को समझा और सबसे पहले वास्तु-दोष का निरावरण कराया और लाभ उठाया.उनके विपरीत इंजीनियर सदस्यों वाले ठाकुर परिवार में वैज्ञानिक उपायों को दकियानूसी व बेकार का समझा गया,जिस कारण वे उनका लाभ उठाने से वंचित रहे.परिणाम स्वरूप बुद्धि-विभ्रम भी नहीं समझ सके-यही है ग्रहों का वैज्ञानिक खेल जो सुख और दुःख दोनों प्रदान कर रहा है.



सुख और दुःख -स्वास्थ्य क़े पैमाने से -
             
              सुख की इच्छा करने से ,सुख न पावे कोय.
                 तन की रक्षा करने से,दुःख भी सुखमय होय..

A  Healthy Mind In a Healthy Body

विद्वानों क़े ये कथन निरर्थक नहीं हैं .हमारे यहाँ पहले एक प्रार्थना प्रचलित थी 'जीवेम शरदः शतम' जो अब विलुप्त प्राय हो गई है और यही कारण है कि अब हमारे यहाँ स्वस्थ मनुष्य नहीं हैं.किसी को कुछ तो किसी को कुछ समस्या परेशान किये हुये है.तेज जिन्दगी में खांन -पान की ओर किसी का ध्यान नहीं है और अधिकाँश रोग उदर संबंधी हैं जिनसे फिर और नयी-नयी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं.एक प्रमुख समस्या है गैस बनने की जो घुटनों ,कमर,रीढ़ और यहाँ तक कि सिर दर्द का कारण भी बनती है. भोजन क़े उपरान्त ढाई- तीन मिनट की यदि कसरत कर ली जाये तो नियमित करने पर गैस रोग से मुक्ति मिल जाती है और गठिया रोग भी दूर भाग जाता है.इसमें भोजन क़े बाद और भोजन क़े मध्य जल न पीयें.भोजनोपरान्त घुटनों क़े बल इस प्रकार बैठें कि पंजों पर कूल्हे टिक जाएँ,कमर सीधी रखें दोनों हथेलियों को दोनों घुटनों पर उन्हें ढकते हुये  टिकाएं .पानी भोजन क़े आधे घंटे बाद ही पियें.ऐसा करने पर जेलोसिल,गैसेक्स और गैस पिल्स सेवन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.

अक्सर काम की अधिकता या अधिक बैठे रहने क़े कारण कमर में दर्द हो जाता है .कमर दर्द की कभी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए.इसके लिये छोटी सी कसरत दिन में कभी भी जब भोजन न किये हों अथवा भोजन किये हुये तीन -चार घंटे व्यतीत हो चुके हों तब ही करनी चाहिए .कमर सीधी करके दोनों पैर विपरीत दिशाओं में फैला लें.अब दायाँ हाथ फैला कर बायीं ओर तथा इसी प्रकार बायाँ हाथ फैला कर दायीं ओर ले जाएँ.

पांच -सात मिनट तक इस प्रक्रिया को दोहरायें.नियमित यह कसरत करने से कमर का दर्द स्वतः ठीक हो जाता है.शरीर में चुस्ती रहती है और आलस्य दूर होता है.परन्तु आवश्यकता है अपने शरीर पर ध्यान देने की,यह शरीर परमात्मा की अनुपम भेंट है और इसकी रक्षा करना भी परमात्मा की सेवा करने का ही अंग है.अतः तन की रक्षा करके दुःख को भी सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए.


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  • चला बिहारी ब्लॉगर बनने 2 years ago


    माथुर साहब! आपके ज्ञान का लोहा मानता हूँ! बहुत ही वैज्ञानिक तौर पर आपने समझाया सबकुछ!!



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    सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 2 years ago


    bahut achchhi jankari deta hai apka jyotish lekh.



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    Vijai Mathur 2 years ago


    ईशान =उ.पू.-N .E .
    आग्नेय =द.पू.-S .E .
    वाव्य =उ.प.-N .W .
    नैरित्य =द .प .-S .W .
    अरविन्द जी ,मोनिका जी,पूनम जी आप सब को धन्यवाद.
    पू.,प.,उ.,द .इन चार मुख्य दिशाओं के अलावा चरों कोनो की चार दिशाओं को ईशान,आग्नेय,वाव्य,नैरित्य कहते हैं.ऊपर-आकाश तथा नीचे -पाताल इस प्रकार कुल दस दिशाएं होती हैं.रावण इन दासों दिशाओं का ज्ञाता था जिस कारण दशानन कहलाता था. इसी लिए राम ने लक्ष्मण को उससे उपदेश लेने भेजा था.रावन का साथी और साईबेरिया का शासक कुम्भकर्ण महँ वैज्ञानिक एवं खगोलविद था उसने आज से नौ लाख वर्ष पूर्व ही प्रमाणित कर दिया था कि.मंगल राख और चट्टानों का ढेर है,हमारे आज के आधुनिक और महँ वैज्ञानिक वृथा मंगल पर सर खपा रहे हैं.



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    डॉ॰ मोनिका शर्मा 2 years ago


    बहुत ही सुंदर और प्रभावी आलेख...... आपके हर लेख से कुछ नयी और विचारणीय बातें सामने आती हैं.... धन्यवाद



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    JHAROKHA 2 years ago


    aadarniy sir
    aapka pura lekh padh liya par ishan ka arth mujhe samajh me nahi aaya .mere khayal se yah purb -disha ka suchak hai ,par puri tarah se nahi pata .
    yah lekh vastav me bahut se jankariyo ka bhandar hai jise padh kar ham thoda bahut bhi samajh sake v prayas karen to kaffi labh prad hoga .vaise ye sach hai ki main bhi in baato ko jyda nahi manti par kabhi kabhi aisa lagta hai ki kahin na kahin ye grah -naxhtr hamaare jivan ko prabhavit karte hain..maine hamesha apne jivan me karm ko hi pradhanta di hai baaki ishwar par chhod deti hun.
    aapka yah jyotishhhshastra ki jankari deta lekh bahut hi gyan -vardhak aur man me iske prati vishwas ko jagata hai.
    bahut bahut dhanyvaad
    poonam

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Sunday, November 11, 2012

मानसिक शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली ही दीवाली है

आज धनतेरस अर्थात धन्वन्तरी जयंती है आज से पाँच दिनों तक स्वस्थ्य रक्षा के पर्व प्रारम्भ हैं किन्तु बाज़ार जनता को अस्वस्थ बनाने का सामान जुटाये हुये हैं जिनसे बचना ही खुशियाँ मनाना होगा ---

मंगलवार, 2 नवम्बर 2010


धन तेरस ---धन्वन्तरी जयंती


 दीपावली पर्व धन तेरस से शुरू होकर भाई दूज तक पाँच दिन मनाया जाता है .इस पर्व को मनाने क़े बहुत से कारण एवं मत हैं .जैन मतावलम्बी महावीर जिन क़े परिनिर्वाण तथा आर्य समाजी महर्षि दयानंद सरस्वती क़े परिनिर्वाण दिवस क़े रूप में दीपावली की अमावस्या को दीप रोशन करते हैं .शेष अवधारणा यह है कि चौदह वर्षों क़े वनवास क़े बाद श्री राम अयोध्या इसी दिन लौटे थे ,इसलिए दीपोत्सव करते हैं .

हमारा भारत वर्ष कृषि -प्रधान था और अब भी है .हमारे यहाँ दो मुख्य फसलों रबी व खरीफ क़े काटने पर होली व दीपावली पर्व रखे गए .मौसम क़े अनुसार इन्हें मनाने की विधि में अंतर रखा गया परन्तु होली व दीवाली हेतु वैदिक आहुतियों में ३१ मन्त्र एक ही हैं .दोनों में नए पके अन्न शामिल किये जाते हैं .होली क़े हवन में गेहूं ,जौ,चना आदि की बालियों को आधा पका कर सेवन करने से आगे गर्मियों में लू से बचाव हो जाता है .दीपावली पर मुख्य रूप से धान और उससे बने पदार्थ खील आदि नये गन्ने क़े रस से बने गुड खांड ,शक्कर आदि क़े बने बताशे -खिलौने आदि हवन में शामिल करने का विधान था .इनके सेवन से आगे सर्दियों में कफ़ आदि से बचाव हो जाता है .


आज भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक अवनति  क़े युग में होली और दीवाली दोनों पर्व वैज्ञानिक पद्धति से हट कर मनाये जा रहे हैं .होली पर अबीर ,गुलाल और टेसू क़े फूलों का स्थान रासायनिक रंगों ने ले लिया है जिसने इस पर्व को विकृत कर दिया है .दीपावली पर पटाखे -धमाके किये जाने लगे हैं जो आज क़े मनुष्य की क्रूरता को उजागर करते हैं .मूल पर्व की अवधारणा सौम्य और सामूहिक थी .अब ये दोनों पर्व व्यक्ति की सनक ,अविद्या ,आडम्बर आदि क़े प्रतीक बन गए हैं .इन्हें मनाने क़े पीछे अब समाज और राष्ट्र की उन्नति या मानव -कल्याण उद्देश्य नहीं रह गया है.

दीपावली का प्रथम दिन अब धन -तेरस क़े रूप में मनाते हैं जिसमे  नया बर्तन खरीदना अनिवार्य बताया जाता है और भी बहुत सी खरीददारियां की जाती हैं .एक वर्ग -विशेष को तो लाभ हो जाता है शेष सम्पूर्ण जनता ठगी जाती है. आयुर्वेद जगत क़े आदि -आचार्य धन्वन्तरी का यह जनम -दिन है जिसे धन -तेरस में बदल कर विकृत कर दिया गया है .इस बार उदय तिथि की त्य्रोदाशी गुरूवार ४ नव .को पड़ रही है .अतः धन्वन्तरी जयंती ४ नोव . को ही मनाई जायेगी परन्तु एक दिन पूर्व ही धनतेरस माना ली जायेगी क्योंकि उसका ताल्लुक मानव -स्वास्थ्य क़े कल्याण से नहीं चमक -दमक ,खरीद्दारीसे है.


मानव स्वास्थ्य क़े चिन्तक ४ नव .की प्रातः हवनादि द्वारा आचार्य -धन्वन्तरी की जयंती मनाएंगे .उस दिन त्रियोदशी तिथि दोप .०३ :५७ तक ही है और उसके बाद भद्रा लग रही है तथा दोप .०१ :३० से ०३ : ०० तक राहू काल भी होगा अतः हवन दोप .०१ .३० से पूर्व ही करना चाहिए .
आचार्य -धन्वन्तरी आयुर्वेद क़े जनक थे .आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है .इस चिकित्सा -पद्धति में प्रकृति क़े पञ्च -तत्वों क़े आधार पर आरोग्य किया जाता है .
भूमि +जल =कफ़
वायु +आकाश = वात
अग्नि  = पित्त

पञ्च -तत्वों को आयुर्वेद में वात ,पित्त ,कफ़ तीन वर्गों में गिना जाता है .जब तक ये तत्व शरीर को धारण करते हैं धातु कहलाते हैं ,जब शरीर को दूषित करने लगते हैं तब दोष और जब शरीर को मलिन करने लगते हैं तब मल कहलाते हैं .कलाई -स्थित नाडी पर तर्जनी ,मध्यमा और अनामिका उँगलियों को रख कर अनुमान लगा लिया जाता है कि शरीर में किस तत्व की प्रधानता या न्यूनता चल रही है और उसी क़े अनुरूप रोगी का उपचार किया जाता है .(अ )तर्जनी से वात ,(ब )मध्यमा से पित्त तथा (स )अनामिका से कफ़ का ज्ञान किया जाता है .

ज्योतिष में हम सम्बंधित तत्व क़े अधिपति ग्रह क़े मन्त्रों का प्रयोग करके तथा उनके अनुसार हवन में आहुतियाँ दिलवा कर उपचार करते हैं .साधारण स्वास्थ्य -रक्षा हेतु सात मन्त्र उपलब्ध हैं और आज की गंभीर समस्या सीजेरियन से बचने क़े लिए छै विशिष्ट मन्त्र उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से सम्यक उपचार संभव है .एक प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य (और ज्योतिषी  ) जी ने पंजाब -केसरी में जनता की सुविधा क़े लिए बारह बायोकेमिक दवाईओं को बारह राशियों क़े अनुसार प्रयोगार्थ एक सूची लगभग तेईस वर्ष पूर्व दी थी उसे आपकी जानकारी क़े लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ .सूर्य की चाल पर आधारित इस राशि क्रम  में बायोकेमिक औशाद्धि का प्रयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है और रोग होने पर उस रोग की दवाई क़े साथ इस अतिरिक्त दवाई का प्रयोग जरनल टॉनिक क़े रूप में किया जा सकता है :-
       
बायोकेमिक दवाईयां होम्योपैथिक स्टोर्स पर ही मिलती हैं और इनमे कोई साईड इफेक्ट  या रिएक्शन नहीं होता है ,इसलिए स्वस्थ व्यक्ति भी इनका सेवन कर सकते हैं .इन्हें 6 x  शक्ति में 4 T D S ले सकते हैं .
अंग्रेजी  कहावत है -A healthy  mind  in  a healthy body  लेकिन मेरा मानना है कि "Only  the healthy  mind will keep the body healthy ."मेरे विचार की पुष्टि यजुर्वेद क़े अध्याय ३४ क़े (मन्त्र १ से ६) इन छः  वैदिक मन्त्रों से भी होती है . इन मन्त्रों का पद्यात्माक भावानुवाद  श्री ''मराल'' जी ने किया है आप भी सुनिये और अमल कीजिए :-
  




आप क़े मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली ही हमारी दीवाली है .आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .

सोमवार, 28 फरवरी 2011


चिकित्सा समाज सेवा है -व्यवसाय नहीं

 ब मैंने 'आयुर्वेदिक दयानंद मेडिकल कालेज,'मोहन नगर ,अर्थला,गाजियाबाद  से आयुर्वेद रत्न किया था तो प्रमाण-पत्र के साथ यह सन्देश भी प्राप्त हुआ था-"चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं".मैंने इस सन्देश को आज भी पूर्ण रूप से सिरोधार्य किया हुआ है और लोगों से इसी हेतु मूर्ख का ख़िताब प्राप्त किया हुआ है.वैसे हमारे नानाजी और बाबाजी भी लोगों को निशुल्क दवायें दिया करते थे.नानाजी ने तो अपने दफ्तर से अवैतनिक छुट्टी लेकर  बनारस जा कर होम्योपैथी की बाकायदा डिग्री हासिल की थी.हमारे बाबूजी भी जानने वालों को निशुल्क दवायें दे दिया करते थे.मैंने मेडिकल प्रेक्टिस न करके केवल परिचितों को परामर्श देने तक अपने को सीमित रखा है.इसी डिग्री को लेकर तमाम लोग एलोपैथी की प्रेक्टिस करके मालामाल हैं.एलोपैथी हमारे कोर्स में थी ,परन्तु इस पर मुझे भी विशवास नहीं है.अतः होम्योपैथी और आयुर्वेदिक तथा बायोकेमिक दवाओं का ही सुझाव देता हूँ.


एलोपैथी चिकित्सक अपने को वरिष्ठ मानते है और इसका बेहद अहंकार पाले रहते हैं.यदि सरकारी सेवा पा गये तो खुद को खुदा ही समझते हैं.जनता भी डा. को दूसरा भगवान् ही कहती है.आचार्य विश्वदेव जी कहा करते थे -'परहेज और परिश्रम' सिर्फ दो ही वैद्द्य है जो इन्हें मानेगा वह कभी रोगी नहीं होगा.उनके प्रवचनों से कुछ चुनी हुयी बातें यहाँ प्रस्तुत हैं-

उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.

बवासीर-बवासीर रोग सूखा  हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा के लिए समाप्त होगा.

सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
बिच्छू दंश-बिच्छू के काटने पर (पहले से यह दवा तैयार कर रखें) तुरंत लगायें ,तुरंत आराम होगा.दवा तैयार करने के लिये बिच्छुओं को चिमटी से जीवित पकड़ कर रेक्तीफायीड स्प्रिट में डाल दें.गलने पर फ़िल्टर से छान कर शीशी में रख लें.बिच्छू के काटने पर फुरहरी से काटे स्थान पर लगायें.

डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा निर्मित औषधियां  -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.

थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.

श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.
(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S  सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)

आज रोग और प्रदूषण वृद्धि  क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के -स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.

 नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन प्रनिओं का शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.

क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाता  था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.

क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप में चला  रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.


विश्व देव  के एक प्रशंसक के नाते मैं "टंकारा समाचार",७ अगस्त १९९८ में छपे मेथी के औषधीय गुणों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.अभी ताजी मेथी पत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं आप उनका सेवन कर लाभ उठा सकते हैं.मेथी में प्रोटीन ,वसा,कार्बोहाईड्रेट ,कैल्शियम,फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा  में पाया जाता है.यह भूख जाग्रत करने वाली है.इसके लगातार सेवन से पित्त,वात,कफ और बुखार की शिकायत भी दूर होती है.
पित्त दोष में-मेथी की उबली हुयी पत्तियों को मक्खन में तल  कर खाने से लाभ होता है.

गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.


प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.


कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.

आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.

पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.

बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.

मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.
मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.

मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.

आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.

कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.

रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.

गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र ,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के रूप में लाभ होता है.

आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.



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Saturday, November 3, 2012

धर्म,ज्योतिष और साम्यवाद (पुनर्प्रकाशन)


सोमवार, 21 नवम्बर 2011


धर्म,ज्योतिष और साम्यवाद 

---विजय राजबली माथुर 

'धर्म' के सम्बन्ध मे निरन्तर लोग लिखते और अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं परंतु मतैक्य नहीं है। ज़्यादातर लोग धर्म का मतलब किसी मंदिर,मस्जिद/मजार ,चर्च या गुरुद्वारा अथवा ऐसे ही दूसरे स्थानों  पर जाकर  उपासना करने से लेते हैं। इसी लिए इसके एंटी थीसिस वाले लोग 'धर्म' को अफीम और शोषण का उपक्रम घोषित करके विरोध करते हैं । दोनों दृष्टिकोण अज्ञान पर आधारित हैं। 'धर्म' है क्या? इसे समझने और बताने की ज़रूरत कोई नहीं समझता।

धर्म=शरीर को धारण करने के लिए जो आवश्यक है वह 'धर्म' है। यह व्यक्ति सापेक्ष है और सभी को हर समय एक ही तरीके से नहीं चलाया जा सकता। उदाहरणार्थ 'दही' जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है किसी सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। ऐसे ही स्वास्थ्यवर्धक मूली भी ऐसे रोगी को नहीं दी जा सकती। क्योंकि यदि सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को मूली और दही खिलाएँगे तो उसे निमोनिया हो जाएगा अतः उसके लिए सर्दी-जुकाम रहने तक दही और मूली का सेवन 'अधर्म' है। परंतु यही एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए 'धर्म' है।

मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाने के लिए जो प्रक्रियाएं हैं वे सभी 'धर्म' हैं। लेकिन जिन प्रक्रियाओं से मानव जीवन को आघात पहुंचता है वे सभी 'अधर्म' हैं। देश,काल,परिस्थिति का विभेद किए बगैर सभी मानवों का कल्याण करने की भावना 'धर्म' है।

ऋग्वेद के इस मंत्र को देखें-


सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया :
सर्वे भद्राणि पशयनतु मा कश्चिद दु : ख भाग भवेत। ।



इस मंत्र मे क्या कहा गया है उसे इसके भावार्थ से समझ सकते हैं-


सबका भला करो भगवान ,सब पर दया करो भगवान।

सब पर कृपा करो भगवान,सब का सब विधि हो कल्याण। ।

हे ईश सब सुखी हों ,कोई न हो दुखारी।

सब हों निरोग भगवान,धन धान्य के भण्डारी। ।

सब भद्र भाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों।

दुखिया न कोई होवे,सृष्टि मे प्राण धारी । ।



ऋग्वेद का यह संदेश न केवल संसार के सभी मानवों अपितु सभी जीव धारियों के कल्याण की बात करता है। क्या यह 'धर्म' नहीं है?क्या इसकी आलोचना करके किसी वर्ग विशेष के हितसाधन की बात नहीं सोची जा रही है। जिन पुरोहितों ने धर्म की गलत व्याख्या प्रस्तुत की है उनकी आलोचना और विरोध करने के बजाये धर्म की आलोचना करके शोषित-उत्पीड़ित मानवों की उपेक्षा करने वालों (शोषकों ,उत्पीड़को) को ही लाभ पहुंचाने का उपक्रम है।


भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)।
 क्या इन तत्वों की भूमिका को मानव जीवन मे नकारा जा सकता है?और ये ही पाँच तत्व सृष्टि,पालन और संहार करते हैं जिस कारण इनही को GOD कहते हैं  ...

GOD=G(generator)+O(operator)+D(destroyer)।

खुदा=और चूंकि ये तत्व' खुद ' ही बने हैं इन्हे किसी प्राणी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं।
'भगवान=GOD=खुदा' - मानव ही नहीं जीव -मात्र के कल्याण के तत्व हैं न कि किसी जाति या वर्ग-विशेष के।

पोंगा-पंथी,ढ़ोंगी और संकीड़तावादी तत्व (विज्ञान और प्रगतिशीलता के नाम पर) 'धर्म' और 'भगवान' की आलोचना करके तथा पुरोहितवादी 'धर्म' और 'भगवान' की गलत व्याख्या करके मानव द्वारा मानव के शोषण को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे  ही तथा-कथित प्रगतिशीलों का मखौल सुधीश पचौरी जी ने 'हिंदुस्तान,लखनऊ,के 20 नवंबर 2011 के इस लेख मे उड़ाया है जिसका स्कैन आप ऊपर देख रहे हैं।

'ज्योतिष'=वह विज्ञान जो मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध ' बनाने मे सहायक है। अखिल ब्रह्मांड मे असंख्य तारे,ग्रह और नक्षत्र हैं जिनसे निकलने वाला प्रकाश समस्त जीवधारियों तथा वनस्पतियों सभी को प्रभावित करता है। मानव जीवन पर इस प्रभाव का अध्यन करके लाभकारी स्थिति बताना 'ज्योतिषी' का कर्तव्य होता है और जो इस से हट कर गलत कार्य करता है वह ज्योतिषी नहीं है केवल उसी की आलोचना और विरोध होना चाहिए। परंतु प्रगतिशीलता के नाम पर ढ़ोंगी व्यक्ति का विरोध न करके ज्योतिष का विरोध करने का मतलब है 'मानव' को प्रकृति सुलभ ज्ञान से वंचित करना और यह भी उतना ही गलत और बुरा है जितना ज्योतिष के नाम पर ठगना।

'साम्यवाद'=समष्टिवाद है जिसमे व्यक्ति विशेष का नहीं समाज का सामूहिक कल्याण सोचा और किया जाता है। अतः साम्यवाद ही परम मानव-धर्म है। साम्यवाद के तत्व वेदों मे मौजूद हैं। ऋग्वेद के अंतिम सूक्त मे मंत्रों  द्वारा दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
'सं ....... वसून्या भर' अर्थात-

हे प्रभों तुम शक्तिशाली हो बनाते सृष्टि को ।
वेद सब गाते तुम्हें हैं कीजिये धन वृष्टि को। ।


'संगच्छ्ध्व्म ....... उपासते' अर्थात-


प्रेम से मिल कर चलें बोलें सभी ज्ञानी बने।

पूर्वजो की भांति हम कर्तव्य के मानी बने। ।


'समानी मंत्र : ....... हविषा जुहोमि' अर्थात-


हो विचार समान सबके चित्त मन सब एक हो।

ज्ञान पाते हैं बराबर भोग्य पा सब नेक हों। ।


'समानी व आकूति: ..... सुसहासति'

हो सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा।

मन भरे हो प्रेम से जिससे बढ़े सुख संपदा। ।


कोई भी प्रगतिशीलता के नाम पर यदि उपरोक्त मानव-कल्याण के संदेशों की उपेक्षा करता है और उससे दूर रहने की बात करता है तो स्पष्ट है कि वह समष्टिवादी-साम्यवादी नहीं है। 'साम्यवाद' मूलतः भारतीय अवधारणा है जिसका उल्लेख सम्पूर्ण वेदिक साहित्य मे है। जर्मनी के मैक्स मूलर साहब भारत आए 30 वर्ष यहाँ रह कर संस्कृत का अध्यन करके 'मूल पांडुलिपियाँ' लेकर जर्मनी रवाना हो गए और वहाँ जाकर उनका जर्मनी भाषा मे अनुवाद प्रकाशित करवाया। 'परमाणु विज्ञान' पर जर्मनी मे ही खोज हुई थी और द्वितीय महायुद्ध मे जर्मनी की पराजय पर उसके वैज्ञानिकों को रूस एवं अमेरिका अपने-अपने देश ले गए थे जिनहोने उन देशों को 'परमाणु बम' उपलब्ध करवाए थे -यह अभी 70 वर्ष ही पुरानी बात है।

इसी प्रकार मानव कल्याण के तत्वों को सहेज कर 'मानव-विज्ञानी' महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'दास कैपिटल' 'एवं 'कम्यूनिस्ट मेनीफेस्टो' नामक ग्रंथ दिये। उस समय जर्मनी और इंग्लैंड के समाज मे जैसा धर्म प्रचलित था उसका तीव्र विरोध महर्षि  मार्क्स ने किया है जो बिलकुल वाजिब है । वस्तुतः वह धर्म था ही नहीं वह तो पुरोहितवाद था किन्तु लोग उसे धर्म कहते थे इसलिए मार्क्स ने भी उसे धर्म कह दिया। इसका यह मतलब नहीं है कि मार्क्स ने मानव-कल्याण हेतु प्रतिपादित 'धर्म' का विरोध किया है। दुर्भाग्य से अहंकार ग्रस्त नेता लोग मार्क्स के मर्म को न समझ कर शब्दजाल मे उलझाना चाहते और मनुष्य कल्याण की धर्म की भावना का सतत विरोध करके अंततः शोषकों का ही हितसाधन करते हैं। यह तो शोषकों की ही चाल है कि उन्होने ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा हेतु RSS को धर्म का अलमबरदार बना कर खड़ा कर दिया जो 'धर्म' पर ही प्रहार करके 'ढोंग व पाखंड' को धर्म के नाम पर परोसता है। प्रगतिशील तथा साम्यवादी चिंतकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे 'धर्म' की वास्तविक अवधारणा से जनता को अवगत कराकर उन्हें शोषण और उत्पीड़न से बचाएं। किन्तु विज्ञान और प्रगतिशीलता का नाम लेकर वे धर्म का ही विरोध करते हैं और इस प्रकार पुरोहितवाद को संरक्षण प्रदान कर देते हैं। 

1857 की क्रांति विफल होने पर 1875 मे महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा 'आर्यसमाज' की स्थापना जनता को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध जाग्रत करने हेतु की गई थी और शुरू-शुरू मे इसके केंद्र छावनियों मे स्थापित किए गए थे। इसकी सफलता से भयभीत होकर रिटायर्ड ICS एलेन आक्टावियन हयूम (A .O. HUME) की सहायता से W.C.(वोमेश चंद्र) बनर्जी की अध्यक्षता मे इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना कराई गई जो प्रारम्भ मे ब्रिटिश साम्राज्य हेतु 'सेफ़्टी वाल्व' का काम करती थी। स्वामी दयानन्द के निर्देश पर आर्यसमाजियों ने राजनीतिक रूप से कांग्रेस मे प्रवेश करके इसे स्वाधीनता आंदोलन की ओर मोड दिया। खुद पट्टाभिसीता रमईय्या ने 'कांग्रेस का इतिहास' पुस्तक मे स्वीकार किया है कि स्वाधीनता आंदोलन मे जेल जाने वाले सत्याग्रहियों मे 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे। कांग्रेस के द्वारा आजादी की मांग करने पर 1906 मे मुस्लिम लीग और  1920 मे कुछ कांग्रेसी नेताओं को लेकर हिन्दू महासभा का गठन कांग्रेस को कमजोर करने हेतु ब्रिटिश साम्राज्य ने करवाया था। मुसलिम लीग की भांति हिन्दू महासभा शासकों के अनुकूल कार्य न कर पाई तब RSS का गठन 1925 मे करवाया गया जिसने विदेशी शासकों को खुश करने हेतु मुस्लिम लीग की तर्ज पर विद्वेष की आग को खूब भड़काया (जिसकी अंतिम परिणति देश विभाजन के रूप मे हुई)।

1925 मे ही राष्ट्र वादी कांग्रेसियों ने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करने हेतु की थी। किन्तु 1930 मे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना भारत मे कम्यूनिस्ट आंदोलन को रोकने हेतु करवा दी गई। लेनिन और बाद मे स्टालिन की सलाह को ठुकराते हुये उस समय के कम्यूनिस्ट नेताओं ने हू- ब-हू सोवियत रूस की तर्जपर पार्टी को चलाया जिसका परिणाम यह हुआ कि वे जनता की नब्ज पर अपनी उंगली न रख सके। सोवियत रूस मे भी 'धर्म' की अवधारणा के आभाव मे साम्यवाद का वह स्टाईल असफल हो गया और चीन मे भी जो चल रहा है वह मूल साम्यवाद नहीं है। हमारे देश मे अभी भी कुछ दक़ियानूसी विद्वान 'धर्म' और 'साम्यवाद' मे अंतर मानते हैं क्योंकि वे पुरोहितवाद को ही धर्म मानने की गलती छोडना नहीं चाहते । कुल मिला कर नुकसान शोषित-पीड़ित जनता का ही है। धर्म के नाम पर उसे मिलता है पोंगावाद जो उसके शोषण को ही मजबूत करता है। पाखंडी तरह तरह से जनता को ठगते हैं और जन-हितैषी कहलाने वाले कम्यूनिस्ट धर्म -विरोध के नाम पर अडिग रहने के कारण 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या बताने से परहेज करते हैं। चूंकि मै सत्य को समझाने का प्रयास करता हूँ इसलिए कुछ बड़े विद्वान अपने अहम के कारण उसका विरोध करते हैं और प्रकारांतर से 'साम्यवाद' विरोधियों का ही पृष्ठ-पोषण करते हैं। पश्चिम बंगाल के ऐसे ही नेताओं के कारण 34 वर्ष का बामपंथी शासन समाप्त हो गया क्योंकि उन्होने 'पश्चिम बंगाल के बंधुओं से एक बेपर की उड़ान' की ओर ध्यान ही नहीं दिया। सी पी एम के लोग अपने व्यक्तिगत मामलों का ज्योतिषीय समाधान मुझ से करवाते हैं और अपने बड़े नेताओं को उकसा कर 'ज्योतिष' एवं 'धर्म' पर कटाक्ष भी करवाते हैं यह दोहरी नीति 'जनहित' की विरोधी है और साम्यवाद की अवधारणा से जनता को दूर करने वाली है।


5 टिप्‍पणियां:

  1. वे मुतमइन हैं कि पत्‍थर पिघल नहीं सकता
    मैं बेक़रार हूं आवाज़ में असर के लिए...

    जानिए कि परम धर्म क्या है ?

    जो इंसान ख़ामोश चीज़ों तक की जबान जानता हो, वह इतना बहरा कैसे हो जाता है कि धर्म की उन हज़ारों ठीक बातों को वह कभी सुनता ही नहीं, जिनका चर्चा दुनिया के हरेक धर्म-मत के ग्रंथ में मिलता है लेकिन अपना सारा ज़ोर उन बातों पर लगा देता है जिन पर सारी दुनिया तो क्या ख़ुद उस धर्म-मत के मानने वाले भी एक मत नहीं हैं।
    यह कैसा अन्याय है ?
    यह कैसा अंधापन है ?
    कैसे मूर्ख हैं वे, जो इन अंधों को अपना साथी और अपना गुरू बनाते हैं ?
    अपने अंधेपन को ये जानते तक नहीं हैं और कोई बताए तो मानते भी नहीं हैं।
    जो आंख वाले हैं, उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि वे अंधों को मार्ग दिखाएं।
    अंधों को मार्ग दिखाना परोपकार है, धर्म है बल्कि परम धर्म है।
    कौन है जो इस धर्म की आलोचना कर सके ?
    शुभकामनायें !
  2. आपसे बहुत कुछ सीखने को है मुझे।

    मेरी भी कुछ व्य्कतिगत समस्या का समाधान कर देंगे क्या?
  3. मनोज जी
    आप निसंकोच अपनी समस्या मुझे मेल कर दीजिये मै समाधान करने का अवश्य ही प्रयास करूंगा और जवाब आपको मेल कर दूंगा।
  4. आपने बहुत ही सरल शब्दों में बहुत बढ़िया वर्णन किया है। आभार .... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
  5. ऋग्वेद का यह संदेश न केवल संसार के सभी मानवों अपितु सभी जीव धारियों के कल्याण की बात करता है।

    सच है ...और प्रगतिशीलता के नाम ऐसे विचरों की अवहेलना सच में दुखद है .....
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