भारतीय स्वाधीनता आंदोलन मे क्रांतिकारियों से कम नहीं था गांधीजी का योगदान। किन्तु साम्राज्यवादियों के हितचिंतक उन्हें बर्दाश्त न कर सके और सांप्रदायिकता की आड़ मे गांधी जी को शहीद कर दिया गया। आज भी भूखी-नंगी जनता का उद्धार करने मे गांधी जी की नीतियाँ सहायक हो सकती हैं। परंतु अब गांधीजी का गुण गाँन केवल निजी स्वार्थ हल करने मे किया जा रहा है। गांधी जी की नीतियों के विपरीत शोषण-उत्पीड़न के कारक 'पूंजीवाद' का संरक्षण करने वाले कारपोरेट लाबी के पुरोधा उन्ही का नाम लेकर जनता को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। कभी गांधीवादी समाजवाद का नारा लगाने वाले लोग सेना के इस भगौड़े मे गांधी जी का विम्ब देख रहे हैं क्योंकि उनके स्वार्थ इसकी प्रतिगामी नीतियों से सिद्ध होते हैं।
आज गांधी जी का बलिदान हुये 65 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं लेकिन उनके विचार और दृष्टिकोण पर चल कर आज भी तमाम समस्याओं का निदान किया जा सकता है। गांधी जी को पूजनीय नहीं अनुकरणीय बना कर उनके बताए मार्ग पर चल कर ही जनता का समग्र विकास किया जा सकता है।