Wednesday, January 30, 2013

गांधी बलिदान/नकलियों से सावधान ---विजय राजबली माथुर

30 जनवरी 1948 की साँय गांधी जी को गोली मारे जाने के बाद तुरंत का चित्र देखे और सुने गांधी-गाथा 














भारतीय स्वाधीनता आंदोलन मे क्रांतिकारियों से कम नहीं था गांधीजी का योगदान। किन्तु साम्राज्यवादियों के हितचिंतक उन्हें बर्दाश्त न कर सके और सांप्रदायिकता की आड़ मे गांधी जी को शहीद कर दिया गया। आज भी भूखी-नंगी जनता का उद्धार करने मे गांधी जी की नीतियाँ सहायक हो सकती हैं। परंतु अब गांधीजी का गुण गाँन केवल निजी स्वार्थ हल करने मे किया जा रहा है। गांधी जी की नीतियों के विपरीत शोषण-उत्पीड़न के कारक 'पूंजीवाद' का संरक्षण करने वाले कारपोरेट लाबी के पुरोधा उन्ही का नाम लेकर जनता को दिग्भ्रमित कर रहे हैं। कभी गांधीवादी समाजवाद का नारा लगाने वाले लोग सेना के इस भगौड़े मे गांधी जी का विम्ब देख रहे हैं क्योंकि उनके स्वार्थ इसकी प्रतिगामी नीतियों से सिद्ध होते हैं।

आज गांधी जी का बलिदान हुये 65 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं लेकिन उनके विचार और दृष्टिकोण पर चल कर आज भी तमाम समस्याओं का निदान किया जा सकता है। गांधी जी को पूजनीय नहीं अनुकरणीय बना कर उनके बताए मार्ग पर चल कर ही जनता का समग्र विकास किया जा सकता है।

Wednesday, January 23, 2013

स्वतंत्रता दिलाने में नेताजी का योगदान-(जन्म दिवस पर एक स्मरण)-पुनर्प्रकाशन---विजय राजबली माथुर

 यह लेख इसी ब्लाग मे 23 जनवरी 2011 को प्रकाशित हो चुका है। 


 'नेताजी' का मतलब सुभाष चन्द्र बोस से होता था.(आज तो लल्लू-पंजू ,टुटपूंजियों क़े गली-कूंचे क़े दलाल भी खुद को नेताजी कहला रहे हैं) स्वतन्त्रता -आन्दोलन में भाग ले रहे महान नेताओं को छोड़ कर केवल सुभाष -बाबू को ही यह खिताब दिया गया था और वह इसके सच्चे अधिकारी भी थे.जनता सुभाष बाबू की तकरीरें सुनने क़े लिये बेकरार रहती थी.उनका एक-एक शब्द गूढ़ अर्थ लिये होता था.जब उन्होंने कहा "तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा" तब साधारण जनता की तो बात ही नहीं ब्रिटिश फ़ौज में अपने परिवार का पालन करने हेतु शामिल हुए वीर सैनिकों ने भी उनके आह्वान  पर सरकारी फ़ौज छोड़ कर नेताजी का साथ दिया था. जिस समय सुभाष चन्द्र बोस ने लन्दन जाकर I .C .S .की परीक्षा पास की ,वह युवा थे और चाहते तो नौकरी में बने रह कर नाम और दाम कमा सकते थे.किन्तु उन्होंने देश-बन्धु चितरंजन दास क़े कहने पर आई.सी.एस.से इस्तीफा  दे दिया तथा स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े.  जब चितरंजन दास कलकत्ता नगर निगम क़े मेयर बने तो उन्होंने सुभाष बाबू को उसका E .O .(कार्यपालक अधिकारी )नियुक्त किया था और उन्होंने पूरे कौशल से कलकत्ता नगर निगम की व्यवस्था सम्हाली थी.
वैचारिक दृष्टि से सुभाष बाबू वामपंथी थे.उन पर रूस की साम्यवादी क्रांति का व्यापक प्रभाव था. वह आज़ादी क़े बाद भारत में समता मूलक समाज की स्थापना क़े पक्षधर थे.१९३६ में लखनऊ में जब आल इण्डिया स्टुडेंट्स फेडरशन की स्थापना हुई तो जवाहर लाल नेहरु क़े साथ ही सुभाष बाबू भी इसमें शामिल हुये थे.१९२५ में गठित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उस समय कांग्रेस क़े भीतर रह कर अपना कार्य करती थी.नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,जवाहर लाल नेहरु तथा जय प्रकाश नारायण मिल कर कांग्रेस को सामाजिक  सुधार तथा धर्म-निरपेक्षता की ओर ले जाना चाहते थे.१९३८ में कांग्रेस क़े अध्यक्षीय चुनाव में वामपंथियों ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को खड़ा किया था और गांधी जी ने उनके विरुद्ध पट्टाभि सीतारमय्या को चुनाव लड़ाया था. नेताजी की जीत को गांधी जी ने अपनी हार बताया था और उनकी कार्यकारिणी का बहिष्कार करने को कहा था.तेज बुखार से तप रहे नेताजी का साथ उस समय जवाहर लाल नेहरु ने भी नहीं दिया.अंत में भारी बहुमत से जीते हुये (बोस को १५७५ मत मिले थे एवं सीतारमय्या को केवल १३२५ )नेताजी ने पद एवं कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया और अग्रगामी दल
(फॉरवर्ड ब्लाक) का गठन कर लिया.ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को नज़रबंद कर दिया.क्रांतिवीर विनायक दामोदर सावरकर क़े कहने पर नेताजी ने गुप-चुप देश छोड़ दिया और काबुल होते हुये जर्मनी पहुंचे जहाँ एडोल्फ हिटलर ने उन्हें पूर्ण समर्थन दिया. विश्वयुद्ध क़े दौरान दिस.१९४२ में जब नाजियों ने सोवियत यूनियन पर चर्चिल क़े कुचक्र में फंस कर आक्रमण कर दिया तो "हिटलर-स्टालिन "समझौता टूट गया.भारतीय कम्युनिस्टों ने इस समय एक गलत कदम उठाया नेताजी का विरोध करके ;हालांकि अब उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि यह भारी गलती थी और आज उन्होंने नेताजी क़े योगदान को महत्त्व देना शुरू कर दिया है.हिटलर की पराजय क़े बाद नेताजी एक सुरक्षित पनडुब्बी से जापान पहुंचे एवं उनके सहयोग से रास बिहारी बोस द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज (I .N .A .) का नेतृत्व सम्हाल लिया.कैप्टन लक्ष्मी सहगल को रानी लक्ष्मी बाई रेजीमेंट का कमांडर बनाया गया था. कैप्टन ढिल्लों एवं कैप्टन शाहनवाज़ नेताजी क़े अन्य विश्वस्त सहयोगी थे.

नेताजी ने बर्मा पर कब्ज़ा कर लिया था.आसाम में चटगांव क़े पास तक उनकी फौजें पहुँच गईं थीं."तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा"नारा इसी समय नेताजी ने दिया था. नेताजी की अपील पर देश की महिलाओं ने सहर्ष अपने गहने आई.एन.ए.को दान दे दिये थे,जिससे नेताजी हथियार खरीद सकें.नेताजी की फौजें ब्रिटिश फ़ौज में अपने देशवासियों पर बम क़े गोले नहीं तोपों से पर्चे फेंक्तीं थीं जिनमें देशभक्ति की बातें लिखी होती थीं और उनका आह्वान  करती थीं कि वे भी नेताजी की फ़ौज में शामिल हो जाएँ.इस का व्यापक असर पड़ा और तमाम भारतीय फौजियों ने ब्रिटिश हुकूमत से बगावत करके आई .एन .ए.की तरफ से लडाई लड़ी.एयर फ़ोर्स तथा नेवी में भी बगावत हुई.ब्रिटिश साम्राज्यवाद  हिल गया और उसे सन १८५७ की भयावह स्मृति हो आई.अन्दर ही अन्दर विदेशी हुकूमत ने भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया किन्तु दुर्भाग्य से जापान की पराजय हो गई और नेताजी को जापान छोड़ना पड़ा.जैसा कहा जाता है प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई जिसे अभी भी संदेहास्पद माना जाता है. (यहाँ उस विवाद पर चर्चा नहीं करना चाहता ).

मूल बात यह है कि,१९४७ में प्राप्त हमारी आज़ादी केवल गांधी जी क़े अहिंसक आन्दोलन से ही नहीं वरन नेताजी की "आज़ाद हिंद फ़ौज " की कुर्बानियों,एयर फ़ोर्स तथा नेवी में उसके प्रभाव से बगावत क़े कारण मिल सकी है और अफ़सोस यह है कि इसका सही मूल्यांकन नहीं किया गया है.आज़ादी क़े बाद जापान सरकार ने नेताजी द्वारा एकत्रित स्वर्णाभूषण भारत लौटा दिये थे;ए.आई.सी.सी.सदस्य रहे सुमंगल प्रकाश ने धर्मयुग में लिखे अपने एक लेख में रहस्योदघाटन किया था कि वे जेवरात कलकत्ता बंदरगाह पर उतरने तक की खबर सबको है ,वहां से आनंद भवन कब और कैसे पहुंचे कोई नहीं जानता.आज आज़ादी की लडाई में दी गई नेताजी की कुर्बानी एवं योगदान को विस्मृत कर दिया गया है.क्या आज क़े नौजवान नेताजी का पुनर्मूल्यांकन करवा सकेंगे?उस समय नेताजी तथा अन्य बलिदानी क्रांतिकारी सभी नौजवान ही थे.यदि हाँ तभी प्रतिवर्ष २३ जनवरी को उनका जन्म-दिन मनाने की सार्थकता है,अन्यथा थोथी रस्म अदायगी का क्या फायदा ?


इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। 

Tuesday, January 15, 2013

ज्योतिष वह विज्ञान है जो मनुष्य क़े अंधविश्वास रूपी अन्धकार का हरण करके ज्ञान का प्रकाश करता है---विजय राजबली माथुर


ज्योतिष=ज्योति+ष=प्रकाश +ज्ञान =


 ज्योतिष वह विज्ञान है जो मनुष्य क़े अंधविश्वास रूपी अन्धकार का हरण करके ज्ञान का प्रकाश करता है.

लेकिन फैशन या प्रगतिशीलता या साईन्स के नाम पर 'ज्योतिष' का विरोध करके विद्वजन जनता को अंधकार मे डुबोए रख कर सत्ता और व्यापार जगत को शोषण-उत्पीड़न के अवसर उपलब्ध कराते रहते हैं।

 मैंने शनिवार, 4 दिसम्बर 2010 को इसी ब्लाग मे प्रकाशित लेख "ज्योतिष और अंधविश्वास" द्वारा यह बताया था-
पिछले कई अंकों में आपने जाना कि,ज्योतिष व्यक्ति क़े जन्मकालीन ग्रह -नक्षत्रों क़े आधार पर भविष्य कथन करने वाला विज्ञान है और यह कि ज्योतिष कर्मवादी बनाता  है -भाग्यवादी नहीं. इस अंक में आप जानेंगे कि ,अंधविश्वास ,ढोंग व पाखण्ड का ज्योतिष से कोई सरोकार नहीं है.

कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने ज्योतिष -विज्ञान का दुरूपयोग करते हुए इसे जनता को उलटे उस्तरे से मूढ्ने का साधन बना डाला है.वे लोग भोले -भाले एवं धर्म -भीरू लोगों को गुमराह करके उनका मनोवैज्ञानिक ढंग से दोहन करते हैं और उन्हें भटका देते हैं.इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति ज्योतिष को अंधविश्वास मानने लगता है और इससे घृणा करनी शुरू कर देता है.ज्योतिष -ज्ञान क़े आधार पर होने वाले लाभों से वंचित रह कर ऐसा प्राणी घोर भाग्यवादी बन जाता है और कर्म विहीन रह कर भगवान् को कोसता रहता है.कभी -कभी कुछ लोग ऐसे गलत लोगों क़े चक्रव्यूह में फंस जाते हैं जिनके लिए ज्योतिष गम्भीर विषय न हो कर लोगों को मूढ्ने का साधन मात्र होता है.इसी प्रकार कुछ कर्मकांडी भी कभी -कभी ज्योतिष में दखल देते हुए लोगों को ठग लेते हैं.साधारण जनता एक ज्योतषीऔर ढोंगी कर्मकांडी में विभेद नहीं करती और दोनों को एक ही पलड़े पर रख देती है .इससे ज्योतिष विद्या क़े प्रति अनास्था और अश्रद्धा उत्पन्न होती है और गलतफहमी में लोग ज्योतिष को अंध -विश्वास फ़ैलाने का हथियार मान बैठते हैं .जब कि सच्चाई इसके विपरीत है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाना ही वस्तुतः ज्योतिष का अभीष्ट है

इसी प्रकार कान्वेंट शिक्षा प्राप्त लोग प्रतीक चिन्हों का उपहास उड़ाते हैं जबकि छोटा सा चिन्ह भी गूढ़ वैज्ञानिक रहस्यों को समेटे हुए है.उदाहरण स्वरूप इस स्वास्तिक चिन्ह को देखें और इस मन्त्र का अवलोकन करें :-
            (कृपया स्कैन को इनलार्ज कर पढ़ें इसी आलेख का भाग है )



१ .चित्रा-२७ नक्षत्रों में मध्यवर्ती तारा है जिसका स्वामी इंद्र है ,वही इस मन्त्र में प्रथम निर्दिष्ट है.
२ .रेवती -चित्रा क़े ठीक अर्ध समानांतर १८० डिग्री पर स्थित है जिसका देवता पूषा है.नक्षत्र विभाग में अंतिम नक्षत्र होने    क़े कारण इसे मन्त्र में विश्ववेदाः (सर्वज्ञान युक्त )कहा गया है.
३ .श्रवण -मध्य से प्रायः चतुर्थांश ९० डिग्री की दूरी पर तीन ताराओं से युक्त है.इसे इस मन्त्र में तार्क्ष्य (गरुण )है.
४ .पुष्य -इसके अर्धांतर पर तथा रेवती से चतुर्थांश ९० डिग्री की दूरी पर पुष्य नक्षत्र है जिसका स्वामी बृहस्पति है जो मन्त्र क़े पाद में निर्दिष्ट हुआ है.

  इस प्रकार हम देखते हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों में स्वास्तिक निर्माण व स्वस्ति मन्त्र का वाचन पूर्णतयः ज्योतिष -सम्मत है.धर्म का अर्थ ही धारण करना है अर्थात ज्ञान को धारण करने वाली प्रक्रिया ही धर्म है.इस छोटे से स्वस्ति -चिन्ह और छोटे से मन्त्र द्वारा सम्पूर्ण खगोल का खाका खींच दिया जाता हैअब  जो लोग इन्हें अंधविश्वास कह कर इनका उपहास उड़ाते हैं वस्तुतः वे स्वंय ही अन्धविश्वासी लोग ही हैं जो ज्ञान (Knowledge ) को धारण नहीं करना चाहते.अविवेकी मनुष्य इस संसार में आकर स्वम्यवाद अर्थात अहंकार से ग्रस्त हो जाते हैं.अपने पूर्व -संचित संस्कारों अर्थात प्रारब्ध में मिले कर्मों क़े फलस्वरूप जो प्रगति प्राप्त कर लेते हैं उसे भाग्य का फल मान कर भाग्यवादी बन जाते हैं और अपने भाग्य क़े अहंकार से ग्रसित हो कर अंधविश्वास पाल लेते हैं.उन्हें यह अंधविश्वास हो जाता है कि वह जो कुछ हैं अपने भाग्य क़े बलबूते हैं और उन्हें अब किसी ज्ञान को धारण करने की आवश्यकता नहीं है.जबकि यह संसार एक पाठशाला है और यहाँ निरंतर ज्ञान की शिक्षा चलती ही रहती है.जो विपत्ति का सामना करके आगे बढ़ जाते हैं ,वे एक न एक दिन सफलता का वरन कर ही लेते हैं.जो अहंकार से ग्रसित होकर ज्ञान को ठुकरा देते हैं,अन्धविश्वासी रह जाते हैं.

अब सवाल उस संदेह का है जो विद्व जन व्यक्त करते हैं ,उसके लिए वे स्वंय ज़िम्मेदार हैं कि वे अज्ञानी और ठग व लुटेरों क़े पास जाते ही क्यों हैं ? क्यों नहीं वे शुद्ध -वैज्ञानिक आधार पर चलने वाले ज्योत्षी से सम्पर्क करते? याद रखें ज्योतिष -कर्मकांड नहीं है,अतः कर्मकांडी से ज्योतिष संबंधी सलाह लेते ही क्यों है ? जो स्वंय भटकते हैं ,उन्हें ज्योतिष -विज्ञान की आलोचना करने का किसी भी प्रकार हक नहीं है. ज्योतिष भाग्य पर नहीं कर्म और केवल कर्म पर ही आधारित शास्त्र है.
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फेसबुक पर एक विद्वान लिखते हैं-
देश मे जीतने ज्योतिषी हैं सभी को पकड़ के जेल मे डाल देना चाहिए ये .बेईमान देश को बेवकूफ़ बनाते हैं २०१३ मे सब अच्छा होगा बक रहे थे ..पाकिस्तान क्रिकेट मे मार गया सीमा पर गर्दन काट रहा है .आतंकी और नक्सली जीना हराम किए हैं ,बलात्कारी अपने सबाब पर हैं ..आज इंगलैंड ने भी दो दिया ये चोर इसको अच्छा कहा रहे हैं ..इन पर इनकम टैक्श का छापा पड़ना चाहिए .ये सब रामदेव के वनसाज हैं .टेलीविज़न पर इतना आतंक मचारखा है की पीड़ा होने लगी .

निम्नाकित विचार भी उन विद्वानों के हैं जो खुद ज्योतिष के ज्ञाता होते हुये भी ज्योतिष की आलोचना प्रायः करते रहते हैं-
यद् पिण्डे तत्त्ब्रह्माण्डे, अर्थात जो कुछ भी स्थूल और सूक्ष्म रूप से इस शरीर में विद्यमान है, वही इस विराट ब्रह्माण्ड में स्थित है।
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एक वैज्ञानिक संस्था के उत्तर प्रदेश शाखा के अध्यक्ष ने ज्योतिष को अपने ब्लाग मे 100 प्रतिशत झूठा बताया है तो कारपोरेट चेनल IBN7 के कारिंदा और पूना प्रवासी भ्रष्ट-धृष्ट ब्लागर के खास-उल-खास चमचा ने अपने ब्लाग मे 'ज्योतिष एक मीठा जहर' लेख लिख कर जनता को गुमराह करने का दुष्कृत किया।

मैंने फेसबुक पर यह नोट दिया था और ब्लाग-'कलम और कुदाल' मे 26-12-2012 को-

वार पाँच गुरुदेव के,नीति न्याय अवरोध

शीर्षक से निम्नाकिंत तथ्य प्रकाशित किए थे---
चंड मार्तंड' निर्णय सागर पंचांग के पृष्ठ-46 पर स्पष्ट उल्लेख (29 नवंबर से 28 दिसंबर 2012 की अवधी के लिए)मिलता है----
"चार पाँच ग्रह का बने,युति चार गति चार। वर्षा अथवा द्वंद से आंदोलित संसार। ।
हिम प्रपात -पर्वत पतन,ऋतु कोप अधिचार। निर्णय गणना गोचरी ,लहर शीत संचार। ।
वार पाँच भ्रगुदेव के,भौतिक पंथ अपार। वस्तु सुगंधी-गंध की,भाव तेज उच्चार। ।
देश-दिशा पश्चिम विषय,विग्रह प्रांत विरोध। वार पाँच गुरुदेव के ,नीति न्याय अवरोध। ।
चक्रवात आंधी पवन,सागर देश विदेश । संहारक रचना गति ,जन धन मध्य विशेष। ।
संम सप्तक गुरु शुक्र का,वृषभ वृश्चिकी सार। भाषा मुद्रा न्याय हित ,नहीं सुखद संचार। ।
आरक्षण शिक्षण विषय ,शासन तंत्र प्रहार। आंदोलित जन साधना ,निर्णय कथन विचार। ।
चलन कलन गुरु मंद का,षडष्टाकी अभिसार। पद लोलुप नायक सभी,राज काज व्यापार। ।
शांति विश्व मे न्यूनता,कूटनीति विस्तार। संधि लेख की शून्यता ,अस्त्र शस्त्र प्रतिभार। । "  

11 दिसंबर 2012 को शुक्र के वृश्चिक राशि मे प्रवेश के साथ ही चार ग्रहों का जमावड़ा हो गया था जिसके परिणामस्वरूप 'आरक्षण' के पक्ष-विपक्ष मे आंदोलन चला। फिर 16 दिसंबर कांड के विरोध मे जनता आंदोलित रही। पाँच ब्रहस्तिवार के योग से दिल्ली व केंद्र सरकारें नीति-न्याय का पालन नहीं कर सकीं।

इसी पंचांग मे पृष्ठ-48 पर 29 दिसंबर 2012 से 27 जनवरी 2013 के समय हेतु  स्पष्ट किया गया है कि-
'युति योग राहू -शनि,नहीं सुखद संयोग। साख पाक मे न्यूनता,ऋतु जनित अभियोग। । 
खेती-खेत विपाक मे,कृषिगण चित्त प्रहार। अर्थ न्यूनता पक्ष से,चिंतन विविध प्रकार। । 
चलन कलन गुरु शुक्र का ,राशि वृष-धनु संचार। गोचर पंथ षडाश्ट्की,नहीं सुखद प्रतिचार। । 
नेता नायक आपदा,कूटनीति अभियोग। शांति सूत्र मे न्यूनता,पद प्रलोभ दुर्योग। । 
भू विवाद सीमा विषय,अस्त्र शस्त्र आदेश। व्यय प्रभार रचना बने,नायक कष्ट विशेष। । 
लहर शीत  नभ गर्जना,हिम प्रपात संसार। ऋतु कोप से आपदा,जन धन क्षति प्रहार। । 
षडाश्ट्की गुरु-मंद की,गोचर रचना दक्ष। त्रोटक संधि सूत्र की,देश विदेशी कक्ष। । 
वित्त को नव विश्व का ,असंतुलित परिवेश। राज काज व्यापार मे,चिंतन अर्थ विशेष। । ' 

पंचांगों की गणना काफी पहले ग्रह-नक्षत्रों की चाल के आधार पर की जाती है और आगाह कर दिया जाता है फिर महा-विद्वानों द्वारा ज्योतिषियों को जेल मे डालने,ज्योतिष को 100 प्रतिशत झूठा तथा मीठा जहर कहने के पीछे औचित्य क्या है?निश्चय ही ऐसे लोग पोंगापंथियों को लाभ पहुंचाने,लुटेरे कारपोरेट की जेबें भरने और जनता को ठगने वालों की सहायता कर रहे हैं । जनता इन पर विश्वास करके ज्योतिष और ज्योतिषियों से दूर रहती है,सरकारें भी नहीं मानती हैं लेकिन साथ ही साथ जनता व सरकारें ढोंगियों-पाखंडियों के आगे नत -मस्तक होकर जन-सामान्य का नुकसान झेलते हैं। 

जब आप यह स्वीकार करते हैं कि-"यद् पिण्डे तत्त्ब्रह्माण्डे, अर्थात जो कुछ भी स्थूल और सूक्ष्म रूप से इस शरीर में विद्यमान है, वही इस विराट ब्रह्माण्ड में स्थित है।"तब आप ज्योतिष जो इस ज्ञान को उद्घाटित करने वाला विज्ञान है को क्यों ठुकराने की बातें करते हैं?

उपरोक्त पंचांग के पृष्ठ-50 पर 28 जनवरी 2013 से 25 फरवरी 2013 के काल खंड हेतु स्पष्ट किया गया है-

'नायक नेता आपदा आतंक द्वंद विस्तार। चौर्य कर्म रचना विपुल,हरण-कारण प्रस्तार। । 
रक्षा विषयक न्यूनता,लोक विश्व अभिसार।। 
 गति वक्र शनि देव की संज्ञा तुला विधान।चिंतन मुद्रा अर्थ की,गणना विश्व प्रधान। । '

04 जनवरी 2013 को शुक्र के धनु राशि मे प्रवेश से उसका वृष राशि के गुरु से 180 डिग्री का संबंध बना जिसके फल स्वरूप सीमा पर विवाद-गोली चालन,सैनिकों की हत्या आदि घटनाएँ घटित हुईं। यह स्थिति अभी 27 जनवरी तक बनी रहने की है। आतंकवाद का प्रकोप व रक्षा विषयक न्यूनता बनी रह सकती है। 
28 जनवरी को शुक्र ग्रह मकर राशि मे सूर्य के साथ आएगा जो 12 फरवरी तक साथ रहेगा तब उसके परिणाम स्वरूप शीत  लहरें चलेंगी,हिम प्रपात,नभ-गर्जना के योग होंगे। जन-धन की क्षति होगी।  12 फरवरी से 03 मार्च 2013 तक सूर्य और मंगल कुम्भ राशि मे एक साथ होंगे जिसके परिणाम स्वरूप पूरी दुनिया मे भू-क्रंदन और आपदा के योग रहेंगे। 

 अब न तो जनता ही और न ही धर्म निरपेक्ष सरकारें ही ग्रह-नक्षत्रों की शांति हेतु 'हवन' का सहारा लेती हैं तब फिर समाधान हो तो कैसे?हालांकि ये धर्म निरपेक्ष सरकारें ही हज सबसीडी भी देती हैं और कुम्भ सरीखे ढ़ोंगी आयोजनों पर भी करोड़ों रुपए फूँक देती हैं। कुम्भ मेले मे अरबों रुपयों का व्यापार होने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे आयोजन व्यापारिक ही हैं न कि धार्मिक परंतु उनको धार्मिक कह कर सराहा जाता है। यह है आधुनिक प्रगतिशील ज्ञान?तब परिणाम भी वैसे ही होंगे। इस मे कुछ भी संशय नहीं।

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Tuesday, January 8, 2013

सोने की चिड़ियाँ कहाँ उड़ गईं?---विजय राजबली माथुर




इस लेख के माध्यम से कुछ पोंगा-पंथी ,शोषक-उत्पीड़क ब्लागर्स की अवैज्ञानिक और धूर्ततापूर्ण टिप्पणियों को आधार बना कर भारत क़े उज्जवल भविष्य हेतु कुछ प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है .

 सबसे पहली बात
एक  ब्लागर सा: ने एक  आचार्यजी का उल्लेख करते हुये 'हवन' की आलोचना की  है  लेकिन उन आचार्य जी की उपलब्धि भारत में पाखण्ड और ढोंग की पुनर्स्थापना करना ही है .१८५७ की क्रान्ति में सक्रिय भाग लेने क़े १७ -१८ वर्ष बाद महर्षि दयानंद सरस्वती ने १८७५ ई .में आर्य समाज की स्थापना कर पाखण्ड -खंड्नी पताका फहरा दी थी .लोग जागरूक होने लगे थे और दस वर्ष बाद स्थापित इंडियन नेशनल कांग्रेस क़े इतिहास क़े लेखक डा .पट्टाभीसीतारमैय्या ने लिखा है कि आज़ादी क़े आन्दोलन में भाग लेने वाले कांग्रेसियों में ९० प्रतिशत आर्य समाजी थे .उक्त आचार्यजी ने आर्य समाज की रीढ़ तोड़ दी ,उन्होंने गायत्री मन्त्र को मूर्ती में बदल डाला ;उनके अनुयाइयों  ने वेदों की भी मूर्तियाँ बना डालीं .उन आचार्यजी और उनकी श्रीमतीजी की समाधि पर क़े चढ़ावे को लेकर उनके पुत्र और दामाद में घमासान चल रहा है .उनका संगठन प्रारंभिक हवन समिधाएँ ४ रखता है -धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष  हेतु .जबकि परमात्मा ,आत्मा और प्रकृति क़े निमित्त तीन ही खडी समिधाएँ लगाई जाती हैं और तीन ही समिधाओं की प्रारम्भिक आहुतियाँ दी जाती हैं .जब आप नियमानुसार हवन कर ही नहीं रहे तब परिणाम क़े अनुकूल होने की अपेक्षा  क्यों ?


                         दूसरी बात यह है

योगीराज श्री कृष्ण ने गीता में १६ वें अध्याय क़े १७ वें श्लोक में कहा है -

"आत्मसम्भावितः स्तब्धा धन मान मदान्वितः .
यजन्ते नाम यज्ञेस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम."

अर्थात अपनी स्तुति आप करने वाले ,अकड्बाज़ ,हठी, दुराग्रही ,धन तथा मान क़े मद में मस्त होकर ये पाखण्ड क़े लिए शास्त्र की विधि को छोड़ कर अपने नाम क़े लिए यज्ञ (हवन )किया करते हैं .
स्वभाविक है कि जो हवन अवैज्ञानिक होंगे उनका कोई प्रभाव नहीं हो सकता .अतः आवश्यकता है सही वैज्ञानिक विधि से हवन करने की न कि व्यर्थ भटक कर हवन को कोसने की या मखौल उड़ाने की .

तीसरी बात फिर विदेशियों से


"परोपकारी" पत्रिका क़े अनुसार भोपाल क़े उपनगर (१५ कि .मी .दूर )बेरागढ़ क़े समीप माधव आश्रम में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक मिसेज पेट्रिसिया हेमिल्टन ने बताया कि "होम -चिकित्सा " अमेरिका ,चिली ,और पोलैंड में प्रासंगिक हो रही है .राजधानी वाशिंगटन में "अग्निहोत्र -विश्वविद्यालय "की स्थापना हो चुकी है .
बाल्टीमोर में ४ सित .१९७८ से अखंड अग्निहोत्र चल रहा है .जर्मनी की एक कंपनी ने अग्निहोत्र की भस्म से सिर -दर्द ,जुकाम ,दस्त ,पेट की बीमारियाँ ,पुराने ज़ख्म व आँखों की बीमारियाँ दूर करने की दवाईंया बनाना प्रारम्भ कर दिया है .

चौथी बात यह 

इस ब्लाग में पिछली कई पोस्ट्स क़े माध्यम से वैज्ञानिक हवन पद्धति पर विस्तार से लिख चुका हूँ अतः यहाँ अब और दोहराव नहीं किया जा रहा है .मुख्य प्रश्न यह है कि हमारा देश जब पहले समृद्ध था -सोने की चिड़िया कहलाता था तो फिर क्या हुआ कि आज हम I .M .F  और World Bank क़े कर्जदार हो गए हैं .विकास -दर की ऊंची -ऊंची बातें करने क़े बावजूद अभी यह दावा नहीं किया जा सकता कि हमने अपने पुराने गौरव को पुनः हासिल कर लिया है.
        पांचवीं बात वास्तु की

हमारा भारतवर्ष वास्तु शास्त्र क़े नियमों क़े विपरीत प्राकृतिक संरचना वाला देश है .वास्तु क़े अनुसार पश्चिम और दक्षिण ऊंचा एवं भारी होना चाहिए तथा पूर्व व उत्तर हल्का व नीचा होना चाहिए .हमारे देश क़े उत्तर से पूर्व तक हिमालय पर्वत है तथा दक्षिण एवं पश्चिम में गहरा समुद्र है .लेकिन प्राकृतिक प्रतिकूल परिस्थितियों क़े बावजूद आदि -काल से हमारे यहाँ वैदिक (वैज्ञानिक )पद्धति से हवन होते थे .न तो लोग हवन का मखौल उड़ाते थे न ही ढोंग -पाखण्ड चलता था;जैसा कि आज हवन क़े साथ हो रहा है और यह सब वे कर रहे हैं जो कि स्वयंभू ठेकेदार हैं भारतीय -संस्कृति क़े और जो दूसरों को भारतीय -संस्कृति का पाठ पढ़ा रहे हैं .

प्रत्येक शुभ कार्य से पहले सर्वप्रथम वास्तु -हवन होता था (१५ संस्कारों में ) सिर्फ अंतिम संस्कार को छोड़ कर ;उसके बाद फिर सामान्य -होम होता था .संस्कार विधि में महर्षि  स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी वास्तु- हवन का विस्तृत वर्णन किया है .लेकिन महाभारत -काल क़े बाद जब वैदिक -संस्कृति का पतन हुआ तब हवन पद्धति को विस्मृत किया जाने लगा उसी का यह नतीजा रहा कि हम हज़ार साल से ज्यादा गुलाम रहे और आज 65  वर्ष की आज़ादी क़े बाद भी हमारे बुद्धिजीवी तक गुलामी क़े प्रतीकों से चिपके रहने में खुद को गौरान्वित महसूस करते हैं .यही कारण है कि भारत की भाग्य लक्ष्मी रूठी है और तब तक रूठी ही रहेगी जब तक कि हम भारतवासी पुनः  अपने वैदिक -विज्ञान को अंगीकार नहीं कर लेते .
 
लेकिन एक और दुखद पहलू है कि महर्षि द्वारा स्थापित संगठन "आर्य -समाज " में आज रियुमर स्पिच्युटेड सोसाईटी की घुसपैठ हो गई है और वह इस संगठन को अन्दर से खोखला कर रही है ताकि ढोंग और पाखण्ड का निष्कंटक राज कायम रह सके और इस कार्य मे कारपोरेट चेनल्स आग मे घी का कार्य कर रहे हैं। IBN7 के कारिंदा और पूना प्रवासी भ्रष्ट-धृष्ट ब्लागर के सहयोगी द्वारा 'हवन' का अनर्गल विरोध इस प्रकार किया गया है-

आज हम चारों ओर अति वृष्टि,अनावृष्टि,अति शीत,प्रचंड ग्रीष्म आदि के प्रकोप से पीड़ित होते मानवता को देख रहे हैं। इन सबका मूल कारण अपनी प्राचीन 'हवन पद्धती' को भुला देना ही है। भारतीय संस्कृति जाति,धर्म,नस्ल आदि का विभेद किए बगैर सम्पूर्ण विश्व की मानवता ही नहीं समस्त प्राणी-जगत के कल्याण की कामना करती है। 

एक आर्यसमाजी विद्वान ने 'मानव' की निम्नलिखित पहचान बताई है।----- 

  "त्याग-तपस्या से पवित्र-परिपुष्ट हुआ जिसका 'तन'है,
भद्र भावना -भरा स्नेह-संयुक्त शुद्ध जिसका 'मन' है। 
होता व्यय नित-प्रति पर-हित मे, जिसका शुचि संचित 'धन'है,
वही श्रेष्ठ -सच्चा 'मानव'है,धन्य उसी का 'जीवन' है।"

यदि हम पुनः इन मूल्यों को स्थापित कर सकें तो पाएंगे कि हमारा देश आज भी 'सोने की चिड़िया' हो जाएगा।


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