आजकल एक बार फिर से काश्मीर चर्चा मे है। 1947 मे साम्राज्यवादी विभाजन के समय काश्मीर भी ब्रिटेन से स्वतंत्र हो गया था और राजा हरी सिंह ने इसे स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था तथा ब्रिटेन व यू एस ए के इशारे पर पाकिस्तान ने कबाईलियों को आगे करके काश्मीर पर हमला करके एक चौथाई भाग पर कब्जा कर लिया था। काश्मीर मे स्थित 'प्लेटिनम' धातु के कारण इस पर यू एस ए,रूस,चीन,ब्रिटेन आदि सभी देशों की निगाहें हैं और पाकिस्तान को मोहरा बना कर वे यहाँ असंतोष बनाए रखते हैं जिसका खामियाजा यहाँ के निर्दोष नागरिकों को भुगतना पड़ता है।
सारू नदी के इस तरफ भारतीय क्षेत्र था और उस तरफ पाक
अधिकृत क्षेत्र। बीच मे रस्सों के पुल पर बैठ कर दोनों ओर के जवान तब 'ताश'
खेला करते थे। तब लद्दाख और कश्मीर मे कोई अलगाव वादी विचार देखने को
नहीं मिला था।
1980 मे RSS के समर्थन से इन्दिरा जी की सत्ता मे वापसी के बाद ही वहाँ आतंकवाद पनपा है।
'तुर्कमान गेट'कमांडर जब कश्मीर के राज्यपाल बन कर गए तो सेना के माध्यम से कश्मीरी पंडितों से घाटी क्षेत्र खाली करा लिया और अनावश्यक दमन का सहारा लिया। वस्तुतः वह साम्राज्यवादी शक्तियों का खेल पूरा करना चाहते थे। आज भी साम्राज्यवादियों ने अपनी चाल को 'सांप्रदायिकता' की चाशनी मे फैला रखा है।
(लेकिन RSS आदि विभाजनकारी तत्व कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए सांप्रदायिकता का साहरा लेकर मुस्लिम विरोध को बुलंद करते हैं और अब इस प्रक्रिया मे ब्यूरोक्रेट्स को भी शामिल कर लिया गया है )
प्रस्तुत है मेरे पूर्व लिखित लेखों के कुछ अंश जिनसे इस समस्या को समझने मे मदद मिल सकती है। ---
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२४ मई १९८१
को होटल मुग़ल से पांच लोगों ने प्रस्थान किया.छठवें अतुल माथुर,मेरठ से
सीधे कारगिल ही पहुंचा था.आगरा कैंट स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंचे
और उसी ट्रेन से रिजर्वेशन लेकर जम्मू पहुंचे.जम्मू से बस द्वारा श्री
नगर गए जहाँ एक होटल में हम लोगों को ठहराया गया.हाई लैंड्स के मेनेजर
सरदार अरविंदर सिंह चावला साहब -टोनी चावला के नाम से पापुलर थे,उनका
सम्बन्ध होटल मौर्या,दिल्ली से था.वह एक अलग होटल में ठहरे थे,उन्होंने
पहले १५ हजार रु.में एक सेकिंड हैण्ड जीप खरीदी जिससे ही वह कारगिल पहुंचे
थे.४-५ रोज श्री नगर से सारा जरूरी सामान खरीद कर दो ट्रकों में लाद कर और
उन्हीं ट्रकों से हम पाँचों लोगों को रवाना कर दिया.श्री नगर और कारगिल के
बीच 'द्रास'क्षेत्र में 'जोजीला'दर्रा पड़ता है.यहाँ बर्फबारी की वजह से
रास्ता जाम हो गया और हम लोगों के ट्रक भी तमाम लोगों के साथ १२ घंटे रात
भर फंसे रह गए.नार्मल स्थिति में शाम तक हम लोगों को कारगिल पहुँच चुकना
था.( ठीक इसी स्थान पर बाद में किसी वर्ष सेना के जवान और ट्रक भी फंसे थे
जिनका बहुत जिक्र अखबारों में हुआ था).
इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस के जवानों
ने अगले दिन सुबह बर्फ काट-काट कर रास्ता बनाया और तब हम लोग चल सके.सभी लोग
एकदम भूखे-प्यासे ही रहे वहां मिलता क्या?और कैसे?बर्फ पिघल कर बह रही थी
,चूसने पर उसका स्वाद खारा था अतः उसका प्रयोग नहीं किया जा सका .तभी इस
रहस्य का पता चला कि,इंदिरा जी के समक्ष एक कनाडाई फर्म ने बहुत कम कीमत पर
सुरंग(टनेल)बनाने और जर्मन फर्म ने बिलकुल मुफ्त में बनाने का प्रस्ताव
दिया था.दोनों फर्मों की शर्त थी कि ,'मलवा' वे अपने देश ले
जायेंगें.इंदिराजी मलवा देने को तैयार नहीं थीं अतः प्रस्ताव ठुकरा दिए.यदि
यह सुरंग बन जाती तो श्री नगर से लद्दाख तक एक ही दिन में बस द्वारा
पहुंचा जा सकता था जबकि अभी रात्रि हाल्ट कारगिल में करना पड़ता है.सेना
रात में सफ़र की इजाजत नहीं देती है.
मलवा न देने का कारण
तमाम राजनीतिक विरोध के बावजूद
इंदिरा जी की इस बात के लिए तो प्रशंसा करनी ही पड़ेगी कि उन्होंने अपार
राष्ट्र-भक्ति के कारण कनाडाई,जर्मन या किसी भी विदेशी कं. को वह मलवा देने
से इनकार कर दिया क्योंकि उसमें 'प्लेटिनम'की प्रचुरता है.सभी जानते हैं
कि प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण
में भी होता है.कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम.सम्पूर्ण
द्रास क्षेत्र प्लेटिनम का अपार भण्डार है.अगर संविधान में सरदार पटेल और
रफ़ी अहमद किदवई ने धारा '३७०' न रखवाई होती तो कब का यह प्लेटिनम
विदेशियों के हाथ पड़ चुका होता क्योंकि लालच आदि के वशीभूत होकर लोग भूमि
बेच डालते और हमारे देश को अपार क्षति पहुंचाते.धारा ३७० को हटाने का
आन्दोलन चलाने वाले भी छः वर्ष सत्ता में रह लिए परन्तु इतना बड़ा
देश-द्रोह करने का साहस नहीं कर सके,क्योंकि उनके समर्थक दल सरकार गिरा
देते,फिर नेशनल कान्फरेन्स भी उनके साथ थी जिसके नेता शेख अब्दुल्ला साहब
ने ही तो महाराजा हरी सिंह के खड़यंत्र का भंडाफोड़ करके काश्मीर को भारत
में मिलाने पर मजबूर किया था .तो समझिये जनाब कि धारा ३७० है 'भारतीय एकता व
अक्षुणता' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग
है-साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश.और यही वजह है काश्मीर समस्या की
.साम्राज्यवादी शक्तियां नहीं चाहतीं कि भारत अपने इस खनिज भण्डार का खुद
प्रयोग कर सके इसी लिए पाकिस्तान के माध्यम से विवाद खड़ा कराया गया है.इसी
लिए इसी क्षेत्र में चीन की भी दिलचस्पी है.इसी लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद
की रक्षा हेतु गठित आर.एस.एस.उनके स्वर को मुखरित करने हेतु 'अनुच्छेद ३७०'
हटाने का राग अलापता रहता है.इस राग को साम्प्रदायिक रंगत में पेश किया
जाता है.साम्प्रदायिकता साम्राज्यवाद की ही सहोदरी है.यह हमारे देश की जनता
का परम -पुनीत कर्तव्य है कि भविष्य में कभी भी आर.एस.एस. प्रभावित सरकार न
बन सके इसका पूर्ण ख्याल रखें अन्यथा देश से काश्मीर टूट कर अलग हो
जाएगा जो भारत का मस्तक है .
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ऊपर के चित्र मे होटल हाई लैण्ड्स,कार्गिल के रेस्टोरेन्ट मे हरबंस सिंह सेखो के साथ 1981 मे एवं नीचे के चित्र मे होटल के पीछे 'सारू'नदी के तट पर चट्टानों पर बैठे हुये अग्रिम पंक्ति मे सत्य पाल सिंह के साथ ,पिछली पंक्ति मे हैं-अतुल माथुर और हरबंस सिंह सेखो |
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उस क्षेत्र की लद्दाखी भाषा में
कारगिल का अभिप्राय सेब (एपिल) से है.वहां बहुतायत में सेब के बाग़
हैं.खुमानी भी वहां प्रचुरता से पाई जाती है.उस समय तक वहां के लोग किसी भी
व्यक्ति के तोड़ कर फल खाने पर आपत्ति नहीं करते थे.यदि कोई चुरा कर ले
जाने लगता तभी पकड़ते थे और उसका दंड लगाते थे.वहाँ तब तक बहुत ईमानदारी और
सरलता थी ,यदि बिना ताला लगाए सामान छोड़ कर चले जाएँ तो कोई भी चोरी
नहीं करता था. सुनते तो यह भी थे किसी का गहना भी रास्ते में गिर जाए तो वह
भी सुरक्षित मिल जाता है.हाँ चोरी दो चीजों की होती थी-एक जलाने वाली
लकड़ी और दुसरे पीने वाला पानी .इन दो आवश्यक साधनों का वहाँ बेहद अभाव था.
खैर हमारा होटल हाई लैंड्स तो 'सरू'नदी के तट पर बारू नामक स्थान पर
था.पिछली पहाड़ी से काट कर लाई गयी नहर से होटल की टंकी में पानी भरा जाता
था जिससे कमरों में ,किचेन में पहुंचाया जाता था. पीने हेतु पानी को
फ़िल्टर करना पड़ता था क्योंकि बालू बहुत आती थी.'सरू' संस्कृत का शब्द है
जिसका अर्थ है-शीतल ,यह शब्द उस क्षेत्र में हमारी प्राचीन संस्कृति का
अद्भुत प्रमाण है.वैसे लद्दाख के बौध -क्षेत्र से काट कर बना मुस्लिम बहुल
जिला है कारगिल.वहाँ शिया लोगों का बहुमत है जो सुन्नियों को अछूत मानते
थे और उनके साथ बैठ कर खाते पीते नहीं थे बल्कि सभी गैर शियाओं के साथ यही
नियम था.पुस्तकों में पढ़ा हुआ तिब्बती 'याक'बैल भी वहाँ प्रत्यक्ष
देखा.मूल रूप से वहाँ तिब्बत्ति प्रभाव था और श्री नगर से बहुत भिन्न
स्वभाव के लोग वहाँ थे.
सम्पूर्ण
विकास और भौतिक प्रगति का श्रेय वहाँ तैनात सेना को है.मनोरंजन हेतु
सिनेमा भी तब तक सेना का ही था.सेना की जीप ही नागरिकों को सिनेमा बदलने की
सूचना देती थी.सेना के क्वार्टर मास्टर हवलदार साहब से टोनी चावला जी ने
मेल-जोल स्थापित कर लिया था.उनके जरिये मिट्टी का अतिरिक्त तेल उपलब्ध कर
लेते थे जो होटल का मुख्य ईंधन था.
13-01-2016 ------
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