Sunday, February 24, 2013

'ज्योतिष' को मीठा जहर/झूठा कहने वालों के मुंह पर प्रकृति का तमाचा ---विजय राजबली माथुर


रूस में उल्कापिंड के टुकड़े गिरने से 900 लोग घायल

 शुक्रवार, 15 फ़रवरी, 2013 को 17:03 IST तक के समाचार http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/02/130215_meteor_shower_injured_ss.shtml









http://krantiswar.blogspot.in/2013/01/blog-post_15.html

"04 जनवरी 2013 को शुक्र के धनु राशि मे प्रवेश से उसका वृष राशि के गुरु से 180 डिग्री का संबंध
बना जिसके फल स्वरूप सीमा पर विवाद-गोली चालन,सैनिकों की हत्या आदि घटनाएँ घटित हुईं।.................
28 जनवरी को शुक्र ग्रह मकर राशि मे सूर्य के साथ आएगा जो 12 फरवरी तक .... परिणाम स्वरूप शीत लहरें चलेंगी,हिम प्रपात,नभ-गर्जना के योग होंगे। जन-धन की क्षति होगी। 12 फरवरी से 03 मार्च 2013 तक सूर्य और मंगल कुम्भ राशि मे एक साथ होंगे जिसके परिणाम स्वरूप पूरी दुनिया मे भू-क्रंदन और आपदा के योग रहेंगे।"

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नोयडा मे कारपोरेट के गुंडों द्वारा आगजनी तथा हैदराबाद के साम्राज्यवादी/सांप्रदायिक बम विस्फोटों को ग्रहों के इन योगों के संदर्भ मे समझना ठीक होगा। 22-23 फरवरी को ओले /बिजली गिरना,फसलों को क्षति एवं 15 फरवरी को  रूस के बाद अब 23 फरवरी को  'कौशांबी' मे भी 'उल्का पिंडों के अवशेष गिरना'आदि को मौसम विभाग की इसी चेतावनी के परिप्रेक्ष्य मे लेना चाहिए तथा पूना प्रवासी ब्लागर के चमचे ज्योतिष विरोधी ब्लागर्स को जनता को गुमराह करने की अपनी गलती कुबूल कर लेनी चाहिए।
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Tuesday, February 19, 2013

संविधान का अनुच्छेद ३७० है 'भारतीय एकता व अक्षुणता' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है-साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश---विजय राजबली माथुर


आजकल एक बार फिर से काश्मीर चर्चा मे है। 1947 मे साम्राज्यवादी विभाजन के समय काश्मीर भी ब्रिटेन से स्वतंत्र हो गया था और राजा हरी सिंह ने इसे स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था तथा ब्रिटेन व यू एस ए के इशारे पर पाकिस्तान ने कबाईलियों को आगे करके काश्मीर पर हमला करके एक चौथाई भाग पर कब्जा कर लिया था। काश्मीर मे स्थित 'प्लेटिनम' धातु के कारण इस पर यू एस ए,रूस,चीन,ब्रिटेन आदि सभी देशों की निगाहें हैं और पाकिस्तान को मोहरा बना कर वे यहाँ असंतोष  बनाए रखते हैं जिसका खामियाजा यहाँ के निर्दोष नागरिकों को भुगतना पड़ता है।
सारू नदी के इस तरफ भारतीय क्षेत्र था और उस तरफ पाक अधिकृत क्षेत्र। बीच मे रस्सों के पुल पर बैठ कर दोनों ओर के जवान तब 'ताश' खेला करते थे। तब लद्दाख और कश्मीर मे कोई अलगाव वादी विचार देखने को नहीं मिला था। 
1980 मे RSS के समर्थन से इन्दिरा जी की सत्ता  मे वासी के बाद ही वहाँ आतंकवाद पनपा है। 
 'तुर्कमान गेट'कमांडर जब कश्मीर के राज्यपाल बन कर गए तो सेना के माध्यम से कश्मीरी पंडितों से घाटी क्षेत्र खाली करा लिया और अनावश्यक दमन का सहारा लिया। वस्तुतः वह साम्राज्यवादी शक्तियों का खेल पूरा करना चाहते थे। आज भी साम्राज्यवादियों ने अपनी चाल को 'सांप्रदायिकता' की चाशनी मे फैला रखा है। 
(लेकिन RSS आदि विभाजनकारी तत्व कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए सांप्रदायिकता का साहरा लेकर मुस्लिम विरोध को बुलंद करते हैं और अब इस प्रक्रिया मे ब्यूरोक्रेट्स को भी शामिल कर लिया गया है ) 
प्रस्तुत है मेरे पूर्व लिखित लेखों के कुछ अंश जिनसे इस समस्या को समझने मे मदद मिल सकती है। ---

आगरा/१९८०-८१(भाग १)/एवं कारगिल-प्लेटिनम का मलवा

 http://vidrohiswar.blogspot.in/2011/07/blog-post.html
२४ मई १९८१ को होटल मुग़ल से पांच लोगों ने प्रस्थान किया.छठवें अतुल माथुर,मेरठ से सीधे कारगिल ही पहुंचा था.आगरा कैंट स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंचे और उसी ट्रेन से रिजर्वेशन लेकर जम्मू पहुंचे.जम्मू से बस   द्वारा श्री नगर गए जहाँ एक होटल में हम लोगों को ठहराया गया.हाई लैंड्स के मेनेजर सरदार अरविंदर सिंह चावला साहब -टोनी चावला के नाम से पापुलर थे,उनका सम्बन्ध होटल मौर्या,दिल्ली से था.वह एक अलग होटल में ठहरे थे,उन्होंने पहले १५ हजार रु.में एक सेकिंड हैण्ड जीप खरीदी जिससे ही वह कारगिल पहुंचे थे.४-५ रोज श्री नगर से सारा जरूरी सामान खरीद कर दो ट्रकों में लाद कर और उन्हीं ट्रकों से हम पाँचों लोगों को रवाना कर दिया.श्री नगर और कारगिल के बीच 'द्रास'क्षेत्र में 'जोजीला'दर्रा पड़ता है.यहाँ बर्फबारी की वजह से रास्ता जाम हो गया और हम लोगों के ट्रक भी तमाम लोगों के साथ १२ घंटे रात भर फंसे रह गए.नार्मल स्थिति में शाम तक हम लोगों को कारगिल पहुँच चुकना था.( ठीक इसी स्थान पर बाद में किसी वर्ष सेना के जवान और ट्रक भी फंसे थे जिनका बहुत जिक्र अखबारों में हुआ था).

इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस के जवानों ने अगले दिन सुबह बर्फ काट-काट कर रास्ता बनाया और तब हम लोग चल सके.सभी लोग एकदम भूखे-प्यासे ही रहे वहां मिलता क्या?और कैसे?बर्फ पिघल कर बह रही थी ,चूसने पर उसका स्वाद खारा था अतः उसका प्रयोग नहीं किया जा सका .तभी इस रहस्य का पता चला कि,इंदिरा जी के समक्ष एक कनाडाई फर्म ने बहुत कम कीमत पर सुरंग(टनेल)बनाने और जर्मन फर्म ने बिलकुल मुफ्त में बनाने का प्रस्ताव दिया था.दोनों फर्मों की शर्त थी कि ,'मलवा' वे अपने देश ले जायेंगें.इंदिराजी मलवा देने को तैयार नहीं थीं अतः प्रस्ताव ठुकरा दिए.यदि यह सुरंग बन जाती तो श्री नगर से लद्दाख तक एक ही दिन में बस  द्वारा पहुंचा जा सकता था जबकि अभी रात्रि हाल्ट कारगिल में करना पड़ता है.सेना रात में सफ़र की इजाजत नहीं देती है.

मलवा न देने का कारण

तमाम राजनीतिक विरोध के बावजूद इंदिरा जी की इस बात के लिए तो प्रशंसा करनी ही पड़ेगी कि उन्होंने अपार राष्ट्र-भक्ति के कारण कनाडाई,जर्मन या किसी भी विदेशी कं. को वह मलवा देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसमें 'प्लेटिनम'की प्रचुरता है.सभी जानते हैं कि प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण में भी होता है.कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम.सम्पूर्ण द्रास क्षेत्र प्लेटिनम का अपार भण्डार है.अगर संविधान में सरदार पटेल और रफ़ी अहमद किदवई ने धारा '३७०' न रखवाई होती तो कब का यह प्लेटिनम विदेशियों के हाथ पड़ चुका होता क्योंकि लालच आदि के वशीभूत होकर लोग भूमि बेच डालते और हमारे देश को अपार क्षति पहुंचाते.धारा ३७० को हटाने का आन्दोलन चलाने वाले भी छः वर्ष सत्ता में रह लिए परन्तु इतना बड़ा देश-द्रोह करने का साहस नहीं कर सके,क्योंकि उनके समर्थक दल सरकार गिरा देते,फिर नेशनल कान्फरेन्स भी उनके साथ थी जिसके नेता शेख अब्दुल्ला साहब ने ही तो महाराजा हरी सिंह के खड़यंत्र  का भंडाफोड़ करके काश्मीर को भारत में मिलाने पर मजबूर किया था .तो समझिये जनाब कि धारा ३७० है 'भारतीय एकता व अक्षुणता' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है-साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश.और यही वजह है काश्मीर समस्या की .साम्राज्यवादी शक्तियां नहीं चाहतीं कि भारत अपने इस खनिज भण्डार का खुद प्रयोग कर सके इसी लिए पाकिस्तान के माध्यम से विवाद खड़ा कराया गया है.इसी लिए इसी क्षेत्र में चीन की भी दिलचस्पी है.इसी लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु गठित आर.एस.एस.उनके स्वर को मुखरित करने हेतु 'अनुच्छेद ३७०' हटाने का राग अलापता रहता है.इस राग को साम्प्रदायिक रंगत में पेश किया जाता है.साम्प्रदायिकता साम्राज्यवाद की ही सहोदरी है.यह हमारे देश की जनता का परम -पुनीत कर्तव्य है कि भविष्य में कभी भी आर.एस.एस. प्रभावित सरकार न बन सके इसका पूर्ण ख्याल रखें अन्यथा देश से काश्मीर टूट कर अलग हो जाएगा जो भारत का मस्तक है .

ऊपर के चित्र मे होटल हाई लैण्ड्स,कार्गिल के रेस्टोरेन्ट मे हरबंस सिंह सेखो के साथ 1981 मे एवं नीचे के चित्र मे होटल के पीछे 'सारू'नदी के तट पर चट्टानों पर बैठे हुये अग्रिम पंक्ति मे सत्य पाल सिंह के साथ ,पिछली पंक्ति मे हैं-अतुल माथुर और हरबंस सिंह सेखो

आगरा/१९८०-८१ (कारगिल अवशिष्ट भाग)

http://vidrohiswar.blogspot.in/2011/07/blog-post_8469.html

उस क्षेत्र की लद्दाखी भाषा में कारगिल का अभिप्राय सेब (एपिल) से है.वहां बहुतायत में सेब के बाग़ हैं.खुमानी भी वहां प्रचुरता से पाई जाती है.उस समय तक वहां के लोग किसी भी व्यक्ति के तोड़ कर फल खाने पर आपत्ति नहीं करते थे.यदि कोई चुरा कर ले जाने लगता तभी पकड़ते थे और उसका दंड लगाते थे.वहाँ तब तक बहुत ईमानदारी और सरलता थी ,यदि बिना ताला लगाए सामान  छोड़ कर चले जाएँ तो कोई भी चोरी नहीं करता था. सुनते तो यह भी थे किसी का गहना भी रास्ते में गिर जाए तो वह भी सुरक्षित मिल जाता है.हाँ चोरी दो चीजों की होती थी-एक जलाने वाली लकड़ी और दुसरे पीने वाला पानी .इन दो आवश्यक साधनों का वहाँ बेहद अभाव था. खैर हमारा होटल हाई लैंड्स तो 'सरू'नदी के तट पर बारू नामक स्थान पर था.पिछली पहाड़ी से काट कर लाई गयी नहर से होटल की टंकी में पानी भरा जाता था जिससे कमरों में ,किचेन में पहुंचाया जाता था. पीने हेतु पानी को फ़िल्टर करना पड़ता था क्योंकि बालू बहुत आती थी.'सरू' संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है-शीतल ,यह शब्द उस क्षेत्र में हमारी प्राचीन संस्कृति का अद्भुत प्रमाण है.वैसे लद्दाख के बौध -क्षेत्र से काट कर बना  मुस्लिम बहुल जिला है कारगिल.वहाँ शिया लोगों का बहुमत है जो सुन्नियों को अछूत मानते थे और उनके साथ बैठ कर खाते पीते नहीं थे बल्कि सभी  गैर शियाओं के साथ यही नियम था.पुस्तकों में पढ़ा हुआ तिब्बती 'याक'बैल भी वहाँ प्रत्यक्ष देखा.मूल रूप से वहाँ तिब्बत्ति प्रभाव था और श्री नगर से बहुत भिन्न स्वभाव के लोग वहाँ थे.

सम्पूर्ण विकास और भौतिक प्रगति का  श्रेय वहाँ तैनात सेना को है.मनोरंजन हेतु सिनेमा भी तब तक सेना का ही था.सेना की जीप ही नागरिकों को सिनेमा बदलने की सूचना देती थी.सेना के क्वार्टर मास्टर हवलदार साहब से टोनी चावला जी ने मेल-जोल स्थापित कर लिया था.उनके जरिये मिट्टी का अतिरिक्त तेल उपलब्ध कर लेते थे जो होटल का मुख्य ईंधन था.

13-01-2016 ------

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Tuesday, February 12, 2013

धर्म का मर्म ---विजय राजबली माथुर

भारत को धर्म-प्राण देश कहा जाता है और सर्वाधिक अधर्म यहीं पर देखा जाता है। वस्तुतः व्यापारियों/उद्योगपतियों ने सामंतकालीन सत्ताधारी और शोषकों ने जिस प्रकार पुरोहितों/ब्राह्मणों को खरीद कर धर्म की अधार्मिक व्याख्या करवाई थी उसे ही मजबूत करने का उपक्रम कर रखा है जिस कारण समय-समय पर गरीब और निरीह जनता अकाल मौत का शिकार होती रहती है। 1954 के बाद इस बार फिर माघ की मौनी अमावस्या पर प्रयाग/अलाहाबाद मे भगदड़ से बेगुनाहों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। चंड  मार्तण्डपंचांग के पृष्ठ-50 पर 28 जनवरी 2013 से 25 फरवरी 2013 के काल खंड हेतु स्पष्ट किया गया है-
'नायक नेता आपदा आतंक द्वंद विस्तार। चौर्य कर्म रचना विपुल,हरण-कारण प्रस्तार। ।  रक्षा विषयक न्यूनता,लोक विश्व अभिसार।। 
 गति वक्र शनि देव की संज्ञा तुला विधान।चिंतन मुद्रा अर्थ की,गणना विश्व प्रधान। । '

04 जनवरी 2013 को शुक्र के धनु राशि मे प्रवेश से उसका वृष राशि के गुरु से 180 डिग्री का संबंध बना जिसके फल स्वरूप सीमा पर विवाद-गोली चालन,सैनिकों की हत्या आदि घटनाएँ घटित हुईं। 28 जनवरी को शुक्र ग्रह मकर राशि मे सूर्य के साथ आया था जो आज 12 फरवरी तक साथ रहेगा तब उसके परिणाम स्वरूप शीत  लहरें चली,हिम प्रपात,नभ-गर्जना  ओला-वृष्टि के योग घटित हुये। जन-धन की क्षति हुई और 'कुम्भ मेला'का हादसा भी इन ग्रह-योगों का ही परिणाम है क्योंकि तदनुरूप बचाव व राहत के उपाए नहीं किए गए थे।  12 फरवरी से 03 मार्च 2013 तक सूर्य और मंगल कुम्भ राशि मे एक साथ होंगे जिसके परिणाम स्वरूप पूरी दुनिया मे भू-क्रंदन और आपदा के योग रहेंगे।





'धर्म' के सम्बन्ध मे निरन्तर लोग लिखते और अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं परंतु मतैक्य नहीं है। ज़्यादातर लोग धर्म का मतलब किसी मंदिर,मस्जिद/मजार ,चर्च या गुरुद्वारा अथवा ऐसे ही दूसरे स्थानों  पर जाकर  उपासना करने से लेते हैं। इसी लिए इसके एंटी थीसिस वाले लोग 'धर्म' को अफीम और शोषण का उपक्रम घोषित करके विरोध करते हैं । दोनों दृष्टिकोण अज्ञान पर आधारित हैं। 'धर्म' है क्या? इसे समझने और बताने की ज़रूरत कोई नहीं समझता।
धर्म=शरीर को धारण करने के लिए जो आवश्यक है वह 'धर्म' है। यह व्यक्ति सापेक्ष है और सभी को हर समय एक ही तरीके से नहीं चलाया जा सकता। उदाहरणार्थ 'दही' जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है किसी सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। ऐसे ही स्वास्थ्यवर्धक मूली भी ऐसे रोगी को नहीं दी जा सकती। क्योंकि यदि सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को मूली और दही खिलाएँगे तो उसे निमोनिया हो जाएगा अतः उसके लिए सर्दी-जुकाम रहने तक दही और मूली का सेवन 'अधर्म' है। परंतु यही एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए 'धर्म' है।
मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाने के लिए जो प्रक्रियाएं हैं वे सभी 'धर्म' हैं। लेकिन जिन प्रक्रियाओं से मानव जीवन को आघात पहुंचता है वे सभी 'अधर्म' हैं। देश,काल,परिस्थिति का विभेद किए बगैर सभी मानवों का कल्याण करने की भावना 'धर्म' है।
ऋग्वेद के इस मंत्र को देखें-
सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया :
सर्वे भद्राणि पशयनतु मा कश्चिद दु : ख भाग भवेत। ।

इस मंत्र मे क्या कहा गया है उसे इसके भावार्थ से समझ सकते हैं-

सबका भला करो भगवान ,सब पर दया करो भगवान।
सब पर कृपा करो भगवान,सब का सब विधि हो कल्याण। ।
हे ईश सब सुखी हों ,कोई न हो दुखारी।
सब हों निरोग भगवान,धन धान्य के भण्डारी। ।
सब भद्र भाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों।
दुखिया न कोई होवे,सृष्टि मे प्राण धारी । ।

ऋग्वेद का यह संदेश न केवल संसार के सभी मानवों अपितु सभी जीव धारियों के कल्याण की बात करता है। क्या यह 'धर्म' नहीं है? इसकी आलोचना करके किसी वर्ग विशेष के हितसाधन की बात नहीं सोची जा रही है। जिन पुरोहितों ने धर्म की गलत व्याख्या प्रस्तुत की है उनकी आलोचना और विरोध करने के बजाये धर्म की आलोचना करके शोषित-उत्पीड़ित मानवों की उपेक्षा करने वालों (शोषकों ,उत्पीड़को) को ही लाभ पहुंचाने का उपक्रम है।
भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)।
 क्या इन तत्वों की भूमिका को मानव जीवन मे नकारा जा सकता है?और ये ही पाँच तत्व सृष्टि,पालन और संहार करते हैं जिस कारण इनही को GOD कहते हैं  ...

GOD=G(generator)+O(operator)+D(destroyer)।
खुदा=और चूंकि ये तत्व' खुद ' ही बने हैं इन्हे किसी प्राणी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं। 'भगवान=GOD=खुदा' - मानव ही नहीं जीव -मात्र के कल्याण के तत्व हैं न कि किसी जाति या वर्ग-विशेष के।
पोंगा-पंथी,ढ़ोंगी और संकीर्णतावादी  तत्व (विज्ञान और प्रगतिशीलता के नाम पर) 'धर्म' और 'भगवान' की आलोचना करके तथा पुरोहितवादी 'धर्म' और 'भगवान' की गलत व्याख्या करके मानव द्वारा मानव के शोषण को मजबूत कर रहे हैं।
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Wednesday, February 6, 2013

अनुत्तरित प्रश्नों का पागलपन और समाधान ---विजय राजबली माथुर





1959 मे बनी 'सुजाता' फिल्म मे बचपन के दिनों को कितना सुहाना बताया गया था लेकिन आज -----




हिंदुस्तान,लखनऊ,04 फरवरी,2013






http://www.livehindustan.com/



"अनुत्तरित प्रश्न"http://alpana-verma.blogspot.in/2013/02/blog-post.html

 पर 'अल्पना वर्मा जी' ने एक 30 वर्षीय युवती जो 12 वर्षीय पुत्र की माँ थी द्वारा आत्म-हत्या किए जाने पर कुछ प्रश्न उठाए थे जिन पर डॉ दराल साहब ने आत्म-हत्या को अपनी टिप्पणी मे 'कायरपन'कहा है जो कि पागलपन है। ऊपर पहले फोटो से ज्ञात होता है कि,एक और 30 वर्षीय युवती जो 12 वर्षीय पुत्र तथा 09 एवं 04 वर्षीय पुत्रियों कुल तीन बच्चों की माँ थी ने भी आग लगा कर आत्म-हत्या कर ली जिसे बचाने के प्रयास मे उसका 35 वर्षीय पति भी मृत हो गया और बच्चे माँ-बाप विहीन हो गए। प्रथम-द्रष्ट्या तो ये और ऐसे ही मामले पागलपन ही प्रतीत होते हैं। 

किन्तु हिंदुस्तान,लखनऊ,दिनांक 04 फरवरी,2013 को 'ऋतु सारस्वत जी'ने अपने लेख के माध्यम से उन परिस्थितियों एवं कारणों पर प्रकाश डाला है जिनके कारण बच्चे अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं और उन्होने अपनी तरफ से इसके निदान हेतु पुरातन 'संयुक्त परिवार' प्रणाली को अपनाए जाने का भी सुझाव दिया है । साथ ही साथ माँ-बाप द्वारा बच्चों पर अधिक व्यक्तिगत ध्यान दिये जाने की भी आवश्यकता बतलाई है। 

ऊपर जो गाना आप लोगों ने सुना उसमे 'बचपन' को 'स्वर्ग'की भांति बताया गया है और आज का सच भी आँखों के सामने है। 'ऋतु सारस्वत' जी का आंकलन तो सही है ही साथ-साथ यह भी एक हकीकत है कि आज केवल 'धनार्जन' पर ध्यान दिया जा रहा है और मानवीय गुणों की अवहेलना लगातार की जा रही है। किसी -किसी परिवार मे माँ-बाप दोनों कमाई कर रहे हैं तो कहीं दोनों ही बेरोजगार हैं। आर्थिक असमानता तो है किन्तु बच्चों के सामने व्यवहारिक 'अन्तर'उनको उद्वेलित कर देता है और 'बाल अपराध' भी बढ़ गया है। 

आज 'धर्म' के नाम पर तरह-तरह के 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को मान्यता मिली हुई है और वास्तविक 'धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य' को अफीम कह कर ठुकरा दिया गया है अथवा तथाकथित 'आस्था' के नाम पर भुला दिया गया है। 'हवन' पद्धति को ठुकरा कर काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा को धर्म बताया जा रहा है। इन सब खुराफ़ातों का ही स्व्भाविक परिणाम हैं इस प्रकार की 'दुर्घटनाएँ'। 

'हवन' मे 'भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)'की वास्तविक पूजा हो जाती थी। डाली गई जड़ी-बूटियों की आहुतियाँ बोले गए मंत्रों की शक्ति से 'भगवान'के पांचों देवताओं तक वायु द्वारा पहुंचा दी जाती थीं जिनको अग्नि द्वारा अणुओं=ATOMS मे विभाजित किया गया था,यह 'पदार्थ विज्ञान'=material science पर आधारित पद्धति पूर्णता : 'शुद्ध' और सही थी।'देवता' वह होता है जो देता है और लेता नहीं  है ----जैसे-वृक्ष,वायु,अग्नि,आकाश,भूमि,जल(नदी,तालाब,समुद्र,कुआं आदि)। इंसान के गढ़े हुये पत्थर के टुकड़े न देवता हैं न ही भगवान।  किन्तु आज IBN7 के कारिंदा जो 'भ्रष्ट-धृष्ट-निकृष्ट'पूना प्रवासी ब्लागर का चमचा है 'ज्योतिष एक मीठा जहर' कह कर 'हवन' की कटु आलोचना करके लोगों को इससे वंचित रखने का अभियान चलाये हुये है। यू पी की एक वैज्ञानिक संस्था का अध्यक्ष ज्योतिष को 100 प्रतिशत झूठा बता कर लोगों को बचाव के उपायों से दूर रहने को प्रेरित कर रहा है PP ब्लागर के ही मंसूबों को पूरा करना उसका भी अभीष्ट है। 

ऐसी परिस्थितियों मे प्रश्नों का अनुत्तरित रहना और समाज मे पागलपन का दौर चलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जब आप वास्तविक समाधान नहीं अपनाएँगे तो रोने-गाने से कुछ होने वाला नहीं है।


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