Wednesday, December 16, 2015

बांग्लादेश की आज़ादी किन्तु इतिहास से सबक नहीं ------ विजय राजबली माथुर

यह लेख 16 दिसंबर 2011 को लिखा व प्रकाशित हुआ था उसमें  23 फरवरी 2011 को लिखे एक और लेख के अंशों को जोड़ कर आज बांग्लादेश की 45 वीं वर्षगांठ के अवसर पर पुनर्प्रकाशित किया जा रहा है। 

 हम समस्त बांग्ला देशवासियों को उनके स्वतन्त्रता दिवस पर हार्दिक बधाई देते एवं मंगलकामनाएं करते है। एक समृद्ध,सुदृढ़ और सुरक्षित बांग्लादेश की अभिलाषा करते हैं। 

जब बांग्लादेश की आजादी का आंदोलन चल रहा था तो मेरठ कालेज,मेरठ मे 'समाज शास्त्र परिषद'की एक गोष्ठी मे  एकमात्र मैंने ही बांग्लादेश की निर्वासित सरकार को मान्यता देने का प्रबल विरोध किया था।  




http://vidrohiswar.blogspot.in/2011/02/blog-post.html


मुझे आज भी लगता है कि जिस उद्देश्य से 'बांग्लादेश'की स्थापना पाकिस्तान से प्रथक्क करके की गई थी वह अब तक पूरा नहीं हुआ है। 'बग-बंधु' शेख मुजीब का सपना 'सोनार बांग्ला' का था,क्या वैसा हो सका?कदापि नहीं। शेख मुजीब की सपरिवार (वर्तमान प्रधान मंत्री शेख हसीना ही एकमात्र वह सदस्य थीं जो रूस मे पढ़ाई करने के कारण जीवित बच सकीं) हत्या करके उनके बानिज्य मंत्री खोंडाकर मुश्ताक अहमद को उनके उत्तराधिकारी के रूप मे राष्ट्रपति बनाया गया था फिर उनकी भी हत्या कर दी गई और इस क्रम मे फौजी शासन ही वहाँ कायम हुआ जैसा पाकिस्तान मे होता आया था। फौजी शासन मे वैसे ही जुल्म ढाये गए जैसे पाकिस्तानी हुकूमत मे ढाये जाते थे। बांग्लादेश के 'मुक्ति आंदोलन'मे पाक फौजों से उत्पीड़ित होकर वहाँ के नागरिक भारत मे शरणार्थी बन कर आ गए थे तो आजाद बांग्ला देश की फौजी हुकूमत के अत्याचारों से त्रस्त होकर काफी नागरिक अपना वतन छोड़ कर भारत -भू पर आ बसे हैं और अधिकांश आज भी रिक्शा चला कर,मोहल्लों मे सफाई करके या मजदूरी करके अथवा भीख मांग कर गुजारा कर रहे हैं। 

बांग्लादेश 'आत्म-निर्भर' देश नहीं है । प्रारम्भ मे अमेरिका ने फिर चीन ने भी वहाँ की राजनीति को प्रभावित किया है और अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान ने भी। मुजीब की बेटी को भी आज भारत -हितैषी नहीं कहा जा सकता है। बांग्लादेश को आजाद कराने मे हिन्दुस्तानी फौज का बहुत बड़ा योगदान रहा है जिस कारण लगभग 90 हजार पाकिस्तानी फ़ौजियों को गिरफ्तार करके -POW के रूप मे भारत मे फौज की निगरानी मे रखा गया था। एक लंबे समय तक बंगला देश के नागरिकों का उत्पीड़न करने वाले फौजी भारत सरकार की आव-भगत मे मौज से रहे। इससे पूर्व जब अंधा-धुन्ध बांग्ला शरणार्थी भारत आ गए थे तो इंदिरा जी की सरकार ने एक अध्यादेश के जरिये RRF की स्थापना की थी। 10 पैसे के रेवेन्यू स्टैम्प के साथ 10 पैसे का ही 'शरणार्थी सहायता' का एक और रेवेन्यू स्टैम्प लागू करके इस कोश की स्थापना की गई थी ताकि शरणार्थियों  का खर्च वहन  किया जा सके। बांग्ला नागरिकों को रखना,खाना खिलाना,उनके लिए युद्ध लड़ना और जितवाना,फिर पाक बंदी फ़ौजयों को रखना और खाना खिलाना यह सब कुछ हम भारतीयों ने झेला। 

फिर भी 'बांग्ला देश' भारत का बफर स्टेट कभी न बन सका और इसी वजह से तब मैंने उसे मान्यता दिये जाने की खिलाफत की थी जबकि सभी साथी छत्रों ने और सभी अध्यापकों ने चाहे वे जनसंघ ,चाहे सोशलिस्ट, चाहे कांग्रेस समर्थक थे एक-स्वर से बांग्लादेश को मान्यता दिये जाने का समर्थन किया था। मै आज उन सभी लोगों से यह जानना चाहता हूँ कि 'बंगला देश' को पाक से प्रथक्क करके और मान्यता देकर कौन सा लाभ अर्जित किया गया इसका खुलासा करें। मानवीय और आर्थिक कुर्बानी जो दी गई वह मेरे निगाह मे निरर्थक गई। यही नहीं इस्स कारण हमे जो क्षति हुई सो अलग। 

1971 मे पाकिस्तान के राष्ट्रपति जेनरल याहिया खान की पुकार पर अमेरिकी प्रेसिडेंट रिचर्ड निकसन ने अपना 7 th Fleet हिन्द महासागर मे रवाना कर दिया था जिसका मुक़ाबला करने हेतु इंदिरा जी ने आनन-फानन मे 20 वर्षीय 'भारत-सोवियत शांति-सहयोग की मैत्री "  नामक संधि कर ली और ठीक 20 वर्ष बाद 1991 मे सोवियत रूस से 'साम्यवाद' का सफाया हो गया। CIA ने रूसी कम्यूनिस्ट पार्टी मे घुसपैठ करके उसे अंदर से खोखला कर दिया था और इसके लिए आर्थिक भ्रष्टाचार का सहारा लिया था। वही अमेरिकी प्रशासन आज भारत मे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अपने 'पिछलगुवे' को मोहरा बना कर चलवा रहा है जो भ्रष्टाचार का जनक है। 

1971 की भारतीय सेना की जीत को इन्दिरा जी की जीत बताया गया था और तत्काल विपक्षी 'जनसंघ'के नेता (अब पूर्व प्रधानमंत्री) अटल बिहारी बाजपाई साहब ने इंदिरा जी को 'दुर्गा' कह कर माल्यार्पण किया था। एक कवि ने लिखा था-"लोग इतिहास बदलते रहे,तुमने भूगोल बदल डाला" इसके बाद मध्यावधि चुनाव मे इंदिरा जी को प्रचंड बहुमत मिला था जिसके बल पर संविधान मे संशोधन करके 'लोकसभा' का कार्यकाल छै वर्ष कर दिया गया था ,यह अलग बात है कि गुप्तचर बलों से गुमराह होकर फिर पाँच वर्ष बाद लोकसभा भंग कर मध्यावधि चुनाव करा दिये जिसमे इन्दिरा सरकार अपनी 'एमेर्जेंसी' की ज़्यादतियों के कारण सत्ताच्युत्त हो गई। यह एमेर्जेंसी भी 1971 मे मिली पाक पर जीत के बदले लोकसभा  मे मिले प्रचंड बहुमत के घमंड मे  थोपी गई थी। जनता सरकार ने पुनः संविधान संशोधन द्वारा 5 वर्ष का लोकसभा का कार्यकाल निश्चित करा दिया था। 

1977 की चुनावी हार को इंदिरा जी ने आर एस एस के सहयोग से 'जनता सरकार' को तोड़ कर बदला लेकर चुकता किया। 1980 के मध्यावधि चुनाव मे आर एस एस का गुप्त समर्थन प्राप्त कर इंदिरा जी पुनः सत्तारूढ़ हुई। बांग्लादेश के निर्माण का बदला पाकिस्तान ने अमेरिकी शह से पंजाब मे 'खालिस्तान' और 'काश्मीर' मे आतंकवादी आंदोलन खड़ा करके लिया और इसी का शिकार खुद इंदिरा जी भी हुई और उनकी हत्या कर दी गई। राजीव गांधी उनके उत्तराधिकारी बने और अपनी माँ द्वारा शह दिये गए श्रीलंका के 'लिट्टे' संघर्ष मे कूद पड़े तथा श्रीलंका मे बंदूक की बट से घायल होकर लौटे और अंततः 1991 के चुनाव के दौरान  'लिट्टे'उग्रवादियों द्वारा मार दिये गए। 


इस चुनाव के बाद भूतपूर्व आर एस एस कार्यकर्ता पी वी नरसिंघा राव साहब प्रधानमंत्री बने जिनहोने वर्तमान पी एम को वित्तमंत्री बनाया था जिनकी नीतियों को अमेरिका जाकर एल के आडवाणी साहब ने उनकी नीतियों का चुराया जाना घोषित किया था। आज आर एस एस,मनमोहन गुट ,अमेरिकी और भारतीय कारपोरेट घराने तथा अमेरिकी प्रशासन के सहयोग से 'अन्ना आंदोलन'चल रहा है जिसका लक्ष्य कारपोरेट घरानों की लूट,शोषण और भ्रष्टाचार को संरक्षण प्रदान करना है। नरसिंघा राव जी ने पद छोडने के बाद अपने उपन्यास THE-INSIDER मे कुबूल किया है कि-"हम स्वतन्त्रता के भ्रमजाल मे जी रहे हैं"।

बांग्लादेश और पाकिस्तान मे तो फौज के माध्यम से अमेरिका अपने पसंद के लोगों का नेतृत्व थोपने मे कामयाब हो जाता है परंतु भारत मे उसे काफी कसरत करनी पड़ती है-कभी इंदिराजी की हत्या करवाई जाती है तो कभी राजीव जी की । सन 2014 के चुनावों के लिए अमेरिकी संस्थाओं ने नरेंद्र मोदी /राहुल गांधी के मध्य संघर्ष का लक्ष्य रखा है। उसी पृष्ठ-भूमि मे 'अन्ना-आंदोलन' चल रहा है। 

हिंदुस्तान ,लखनऊ,12 दिसंबर 2011 
 पाकिस्तान की 'सार्व-भौमिकता' का उल्लंघन करके ओसामा बिन लादेन को मारना ,पाकिस्तानी फौजी टुकड़ियों पर हमला करना अमेरिका के बाएँ हाथ का खेल है। साम्राज्यवादियों का पृष्ठपोषक आर एस एस और उसके सहयोगी इन कृत्यों पर खुशी मनाते हैं। अफगान युद्ध मे भूमिका खत्म होने पर पाक प्रेसीडेंट जिया-उलल-हक के विमान को रिमोट  विस्फोटक से उड़वा दिया गया। कभी बेनजीर कभी नवाज शरीफ को समर्थन देकर नेतृत्व हासिल करा दिया। कभी परवेज़ मुशर्रफ का समर्थन किया तो उन्हे हटवा कर बेनजीर के पति आसिफ जरदारी का,अब उन्हें हटवा कर पूर्व क्रिकेटर इमरान खान को बैठाने की तैयारी है

मीडिया चाहे प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक आम जनता को सच्चाई से वाकिफ नहीं करा रहा है वह केवल कारपोरेट इशारे पर 'अन्ना' का महिमा-मंडन करता आ रहा है। आम जनता अपनी भूख से व्याकुल है उसे 'आजादी' का मतलब मालूम नहीं चल पता है। हमारे इंटरनेटी विद्वान खाते-पीते समृद्ध लोग हैं उन्हें आम जनता से क्या लेना-देना?देश आजाद रहे या गुलाम उनकी समृद्धि तो बढ़नी ही है तो वे क्यों जाग्रत करें जनता को ?'क्रांतिस्वर' का लेखन तो नक्कार खाने मे तूती की आवाज की तरह खो जाता है। लेकिन फर्ज अदायगी तो हम अपनी तरफ से करते ही रहेंगे,चाहे जिसे जो बुरा लगता रहे। 


'हिंदुस्तान मे आज प्रकाशित इस लेख से भी उपरोक्त लेख की पुष्टि होती है-


(हिंदुस्तान-लखनऊ-16/12/2011 )

4 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

इंटरनेटी विद्वान :) बिलकुल सही .... जनता की तो मूलभूत आवश्यकताएं ही पूरी नहीं हो पा रही हैं..... सच है कहाँ सबक लिया है इतिहास से....

डॉ टी एस दराल said...

कल से हम भी इन्ही यादों में खोये हैं । याद आ रहा है वो जीत का जश्न । साथ ही पाकिस्तान द्वारा बंगला देश में किये गए अत्याचार । कोई कैसे भूल सकता है ।
लेकिन ज़ुल्मी को मूंह की खानी ही पड़ी । जयहिंद !

Maheshwari kaneri said...

ये घटनाए कहाँ भूलाई जा सकती है ? ..बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Pallavi saxena said...

बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति मोनिका जी की बात से सहमत हूँ।