Monday, December 26, 2016

समय करे,नर क्या करे,समय बड़ा बलवान;असर ग्रह सब पर करें ,परिंदा-पशु-इंसान.------ विजय राजबली माथुर

एक विद्वान के कथन को इस लेख  ( प्रथम प्रकाशित Monday, July 18, 2011 ) का शीर्षक बनाने का उद्देश्य यह बताना है कि ,"Man is the product of his/her environment controlled by his/her Stars & Planets".

प्रस्तुत जन्मांग एक ऐसे व्यक्ति का है जो अपने जीवन के बारहवें वर्ष में गंभीर रूप से बीमार रहे तथा लगातार बयालीस दिनों तक बेहोश रहे और अंततः मौत को पछाड़ कर स्वस्थ हो गए.इनका मस्तिष्क तीव्र था और सदा कुशाग्र बुद्धि रहे.गणित सरीखे नीरस और उबाऊ विषय की जटिल से जटिल समस्याओं को यह पलक झपकते ही बिना कागज़ व कलम की सहायता के हल कर लिया करते थे.कितना अनोखा खेल खेला इनके जन्म कालीन ग्रहों व नक्षत्रों नें जैसा कि इनके जन्मांग से स्वतः स्पष्ट है.इनके जन्म के समय मंगल नीच राशि का होकर लग्न में स्थित था जो जातक को रोगी बना रहा है.साथ ही द्वादश भाव में लग्नेश चन्द्र की स्थिति तथा लग्न में द्वादशेश बुध की स्थिति भी जातक को रोग प्रदान कर रही है.परन्तु चन्द्र और बुध आपस में परिवर्तन योग भी बना रहे हैं.परिवर्तन योग चाहे जिन ग्रहों से बने शुभ होता है.बारवे वर्ष में जातक के मस्तिष्क पर व्यापक आघात पड़ा और वह लगातार बयालीस दिन तक बेहोशी की अवस्था में रहे.भाग्य स्थान में स्थित स्वग्रही गुरु की पूर्ण पंचम दृष्टि लग्न पर होने के कारण उनका जीवन अक्षुण रहाऔरवह स्वस्थ हो गए.

लग्न में बुध व शुक्र की उपस्थिति ने उनके मस्तिष्क को तीव्र मेधावी शक्ति प्रदान की और वह गणित विषय के कुशल मास्टर हो गए.गणित के सवालों को वह मौखिक ही हल कर देते थे.यदि वह अध्यापन के क्षेत्र में जाते तो सफल शिक्षक होते परन्तु वह सरकारी विभाग में अधिकारी बन गए और इस कारण अपनी विलक्षण क्षमता का स्वंय लाभ न उठा सके .गणित के विद्यार्थी उनके पास आ-आकर उनसे ज्ञानार्जन करते थे और वह निशुल्क उनकी समस्याओं का निदान करते थे.

बृहस्पति जो विद्या का ग्रह है अपनी पूर्ण नवम दृष्टि से इनके विद्या भाव को भी देख रहा है.यह भी इन्हें प्रतिभाशाली बनाने में सहायक रहा और इसी का परिणाम था कि इनके अपने सहपाठी भी इनसे गणित के सवाल हल करवाने में सहायता लेते थे ,उनमें से अधिकाँश उच्च पदों पर गए.कई आई.ए.एस.भी बने और एक तो बिहार के चीफ सेक्रेटरी के पद तक पहुंचे.इन पुरातन छात्रों ने  इन जातक को अपनी एसोसियेशन का सेक्रेटरी बना कर सदैव मान दिया और यह मृत्यु पर्यंत (२४ मई २००० ई.) उस पद पर ससम्मान रहे.

कुछ लोग इनकी इस प्रतिभा और सरल व सहयोगी व्यवहार से जलते भी थे और उन्हें क्षति पहुंचाने का प्रयास भी करते थे परन्तु कोई भी उन्हे हानि  पहुंचाने में कभी भी सफल न हो सका क्योंकि इनके शत्रु भाव में 'केतु'विराजमान था तथा उस पर 'राहू'की पूर्ण सप्तम दृष्टि पड़ रही थी .इन दो ग्रहों ने सम्पूर्ण जीवन में उन्हें शत्रुओं पर विजय भी प्रदान की.यद्यपि इन्होने कभी जाहिर तो नहीं किया परन्तु अपने गणित-ज्ञान के आधार पर यह ज्योतिष पर भी पकड़ रखते थे और लग्नस्थ 'शुक्र'इसमें सहायक था.आमतौर पर सिंह राशि के पुरुषों को पुरुष संतान नहीं होती परन्तु राजीव गांधी के सिंह राशि का होते हुए भी पुत्र-राहुल है जो एक अपवाद है और इस और यह हमेशा इंगित करते थे,जिसका ध्यान साधारण तौर पर लोग नहीं रख पाते हैं.

इस लेख के लेखक को उन्होंने 'ज्योतिष'को आजीविका का माध्यम बनाने का परामर्श दिया था जो कि उनके जीवन काल में पूर्ण नहीं किया जा सका .उनकी मृत्यु के उपरान्त छः माह के भीतर उसी वर्ष इस लेखक ने ज्योतिष को व्यवसाय के रूप में अपना लिया जो तब तक हाबी के रूप में चल रहा था.प्रारम्भ में उन्हीं की पुत्री के नाम पर जो कि लेखक की पत्नी हैं अपने प्रतिष्ठान का नाम 'पूनम ज्योतिष कार्यालय'रखा था और आगरा में कमलानगर के मकान से संचालित इस कार्यालय ने धनार्जन में तो सफलता प्राप्त नहीं की परन्तु ढोंग-पाखण्ड और ठगी पर सफल प्रहार करते हुए 'मानव जीवन को सुन्दर,सुखद व समृद्ध' बनाने का गंभीर प्रयास किया था. अब वही कार्य लखनऊ स्थित 'बली वास्तु एवं ज्योतिष कार्यालय'के माध्यम से किया जा रहा है.

यदि बाबूजी साहब ( स्व.बिलास पति सहाय ) स्वंय ज्योतिष को अपनाते तो अधिक सफल रहते क्योंकि गणित के सूत्रों को हल करना इनके लिए चुटकी बजाने का खेल था.उनकी प्रेरणा पर मैं ज्योतिष के क्षेत्र में कूद तो पड़ा हूँ परन्तु स्थापित ज्योतिष्यों की भांति क्लाइंट्स को दहशत में लाकर उन्हें उलटे उस्तरे से मूढ़ने का काम मैं नहीं करता हूँ इसलिए आर्थिक क्षेत्र में पिछडा हूँ,जबकि मान-सम्मान पर्याप्त प्राप्त हुआ है. मैं समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक -वैदिक आधार पर करता हूँ और इसी कारण जन्मकालीन ब्राह्मण वर्ग के प्रो.डा.वी.के.तिवारी,प्रिसिपल एम्.एल.दिवेदी,पं.सुरेश पालीवाल,डा.बी.एम्.उपाध्याय ,इंज.एस.एस.शर्मा आदि ने अपने घरों पर वास्तु हवन एवं ग्रहों की शांति आगरा में मुझसे करवाई है.कायस्थ सभा,आगरा और अखिल भारतीय कायस्थ सभा ,आगरा के अध्यक्षों समेत अनेकों कायस्थ परिवारों ने मुझ से ज्योतिषीय परामर्श लिए हैं.पहले अखबारों के माध्यम से और अब ब्लॉग के माध्यम से मैं लगातार ढोंग-पाखंड पर प्रहार कर रहा हूँ और पूर्ण विशवास रखता हूँ कि एक न एक दिन सफलता मुझे अवश्य मिलेगी क्योंकि 'इन महान आत्मा' का आशीर्वाद मुझे प्राप्त है.


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Friday, December 23, 2016

नोटबंन्दी का डिजास्टर स्ट्रोक : राष्ट्रहित के खिलाफ है एक संदिग्ध कंपनी को भारतीय वित्त व्यवस्था से जोड़ना ........... गिरीश मालवीय


Girish Malviya
इस देश मे काला धन सिर्फ 6% ही नकद रूप मे बच पाता है क्योकि ब्यूरोक्रेट और बड़े पूंजीपति और व्यापारी अपना काला धन साल दर साल विदेशो मे अधिकृत रूप या अनाधिकृत रूप से भेजते रहे है..............
इस पोस्ट हम इन अधिकृत रूप और अनाधिकृत दोनों रूपो को समझने की कोशिश करेंगे ......और यह भी जानेंगे क़ि मोदी सरकार अपने ढाई वर्ष के कार्यकाल मे काले धन के बाहर भेजे जाने के प्रति कितनी गंभीर रही है..............
हम पहले काले धन के बाहर भेजे जाने के अधिकृत तरीके (यानी उपहार, दान, चिकित्सा आदि खर्च के रूप मे ) की चर्चा करेंगे..................
आप को यह जान कर बेहद आश्चर्य होगा क़ि मोदी जी काले धन के बाहर भेजे जाने के प्रति इतने उदार रहे है क़ि, मोदी सरकार ने सत्ता मे आते ही सबसे पहले यह काम किया कि विदेश मे पैसा भेजने की लिमिट बढ़ा दी...........
सरकार ने अपने शुरूआती समय में ही विदेशों को धन भेजने की योजना से राशि सीमा सवा लाख डॉलर तक कर दी। लेकिन इतने से ही इनका मन नहीं भरा तो 26 मई 2015 को मोदी सरकार ने इसकी सीमा और आगे बढाकर ढाई लाख डॉलर कर दी...........
इसका परिणाम यह हुआ क़ि मोदी सरकार आने के बाद भारत से विदशों में भेजी जाने वाली राशि में 130 फीसदी की बढ़ोतरी हुई
जहाँ मनमोहन सिंह के दौर में साल 2013 में इन रास्तों से विदेश भेजी जाने वाली राशि 10,400 करोड़ थी वहीँ अब यह राशि 2015 -16 में बढ़कर 30 हजार करोड़ पुहंच गयी
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों की माने तो मोदी सरकार के दौर में ही साल 2016 की बात करें तो अब तक देश से 4.6 बिलियन डॉलर की रकम को विभिन्न तरीकों से देश से बाहर भेजा गया
यानी काला धन बाहर भेजने वालो ने इस छूट का भरपूर लाभ उठाया.........
यह तो रही अधिकृत तरीके की बात अब जरा अनधिकृत तरीके से काला धन विदेश भेजे जाने की चर्चा कर ली जाये........
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने 2015 की शुरुआत मे एक बड़े मामले की जांच शुरू की थी आरोप था कि 6,172 करोड़ रुपये की राशि बैंक आफ बड़ौदा से हांगकांग भेजी गई। यह राशि काजू, दलहन और चावल निर्यात के रूप में भेजी गई, जबकि वास्तव में निर्यात हुआ ही नहीं था............
कांग्रेस नेता आर एन सिंह ने इस वक्त यह आरोप लगाया था कि 59 कंपनियों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ बड़ौदा में खाते खुलवा करके काजू, चावल तथा दालें खरीदने के लिय यह पैसा हांगकांग भिजवाया गया। घोटाले की यह प्रक्रिया डेढ़ साल से चल रही थी और केंद्र सरकार की नाक के नीचे यह सब कुछ होता रहा लेकिन उन्हें रोका नहीं गया.............
इसी प्रकार ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स की गाजियाबाद स्थित शाखा के माध्यम से भी 550 करोड रूपए हांगकांग भेजे गए
इन मामलो मे कार्यवाही के नाम पर बैंक अधिकारियों का निलंबन जैसी कार्यवाही कर कर्तव्य की इति श्री कर ली गयी
इसी संदर्भ में प्रसिद्ध पनामा पेपर लीक को भी याद कीजिये जहाँ
पनामा की एक कानूनी फर्म मोसेक फोंसका के कुछ दस्तावेज उजागर हुए थे जिसमें कई भारतीयों द्वारा कागजी कंपनी स्थापित करने एवं बैंक खाता खोलने के मामले सार्वजनिक हुए हैं ..........और ऐसे ही निजी और सार्वजनिक बैंकों के अनेक मामले अब नोटबंदी के बाद खुल कर सामने आये है..........
कहने का तात्पर्य बस इतना है कि ऐसा नहीं है कि कांग्रेसी सरकार के समय काला धन विदेशो मे नहीं भेजा गया होगा पर मोदी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल मे भी इस प्रकार की मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने की कोई कार्यवाही नहीं की गयी बल्कि बढ़ावा दिया गया यदि यह खेल पहले दिन से रोक दिया जाता तो मोदी जी का नोटबंन्दी का डिजास्टर स्ट्रोक खेलने की कोई जरुरत ही नहीं होती................
Girish Malviya
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Girish Malviya

पेटीएम कंपनी का स्वामित्व किसके पास है यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस कंपनी के साथ भारत सरकार ने जियो की तरह सभी देशवासियों के आधार कार्ड के डाटा को साझा किया है, और इसी डाटा से कंपनी ने कई ग्राहक की बायोमेट्रिक पध्दति से e-kyc को कंप्लीट किया है ...........
पेटीएम को irctc यानि रेलवे के टिकटों की खरीदी बिक्री से सीधे जोड़ा गया है इसके लिए सिर्फ इसी कंपनी का पेमेंट गेटवे यूज़ किये जाने की खबर है,और तो और नैशनल हाईवे अथॉरिटी के चेयरमैन राघव चंद्रा ने माना है कि पेटीएम ने ऑटोमेटिक टोल कलेक्शन के कॉन्ट्रेक्ट को हासिल कर लिया है ...................
सरकार दिनप्रतिदिन इसे सरकारी योजनाओं से जोड़े जा रही है,मेट्रो के टिकट, बिजली बिल का भुगतान , आदि सेवाओ से paytm को पहले से ही जोड़ लिया गया है........... 
भारत में होने वाले क्रिकेट मैच के टिकट को बेचने का पहला अधिकार भी इसी कम्पनी के पास है,...............
यानी यह कंपनी बड़े पैमाने पर बिना स्पष्ट बैंकिंग लाइसेंस लिए भारत के नागरिकों के धन का आरहण और वितरणं कर रही है और रिजर्व बैंक ने इसे मात्र डिजिटल वालेट खोलने की अनुमति दी है तो इसके स्वामित्व को लेकर प्रश्न खड़े किये जाना सामयिक ही नहीं बल्कि अति महत्वपूर्ण विषय है.................
विजय शेखर शर्मा जिन्हें इस कंपनी का मालिक बताया जाता है उनकी इस कम्पनी मे भागीदारी मात्र 20% की है यह सिर्फ २०% का हिस्सेदार को पूरी कम्पनी की कमान इसलिए सोपी गयी है ताकि इस कम्पनी के भारतीय अधिपत्य की कहानी से लोगो को बहलाया जा सके................... 
41% की भागीदारी चीन कीअलीबाबा कम्पनी के पेमेन्ट गेटवे अलीपे की है, कहते है कि रतन टाटा की एक छोटी सी हिस्सेदारी इस कम्पनी मे है कितनी है यह किसी को नहीं मालूम ...........
यानि बचे हुए 39% पर अँधेरा बरक़रार है लेकिन इस अँधेरे पर प्रतिष्ठित पत्रिका बिजनेस स्टैण्डर्ड का 30 नवम्बर 2016 का अंक रोशनी डालता है इस खबर के मुताबिक "पेटीएम कंपनी के डॉक्यूमेंट बताते है कि पिछले कुछ महीनो मे केमन आइलैंड की एक कंपनी व्दारा पेटीएम को 600000 शेयर के बदले 60 मिलियन डॉलर यानि भारतीय मुद्रा मे 402 करोड़ का भुगतान किया गया है...................... और चाइनीज भागीदारी के अतिरिक्त इस बात को भी आरएसएस को भी संज्ञान में लेना चाहिए"..........................
(खबर का लिंक कॉमेंट बॉक्स मे है).....................
कैमेंन आइलैंड टैक्स हेवेन कंट्री मे शुमार किया जाता है जैसा क़ि पनामा भी है और यह भी माना जाता है कि बड़े पैमाने पर दुनिया भर के भ्रष्ट राजनेता और ब्यूरोक्रेट का धन इन कंपनियों मे लगाया जाता है, और इन ऑफशोर कम्पनियो के मालिकों के हितों उस टैक्स हेवन देशों की सरकारें करती है...............
अगर यह खबर सच है तो आप खुद अंदाजा लगा सकते है कि देश मे इस कंपनी से किसके हित जुड़े हुए है और इन टैक्स हेवन देशों के जरिये कोन अपना कालधन सफ़ेद कर रहा है.............
लेकिन कुछ भी हो एक संदिग्ध कंपनी को भारतीय वित्त व्यवस्था से जोड़ना राष्ट्रहित के खिलाफ है...........

Girish Malviya


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~विजय राजबली माथुर ©

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Monday, December 19, 2016

देश देखते देखते नयी गुलामी की तरफ बढ़ता चला जायेगा........ गिरीश मालवीय



Girish Malviya
आज आपको पेटीएम की वो असलियत बता रहा हूँ, जो वास्तव मे हर भारतीय को जान लेना चाहिए .....मै चाहूंगा कि हफ़्तों की मेहनत से लिखे गए इस लेख को आप पूरा पढ़े .....और सहमत हो तो शेयर भी करे.......
एक बात तो आप सभी मानेंगे कि नोटबंदी से सबसे अधिक फायदा पेटीएम को ही पुहंचा है.......पेटीएम से रोजाना 70 लाख सौदे होने लगे हैं जिनका मूल्य करीब 120 करोड़ रपये तक पहुंच गया है,पेटीएम हर ट्रांसिक्शन मे मोटा कमीशन वसूल रही हैं......सौदों में आई भारी तेजी से कंपनी को अपने पांच अरब डॉलर मूल्य की सकल उत्पाद बिक्री (जीएमवी) लक्ष्य को तय समय से चार महीने पहले ही प्राप्त कर लिया है.........
पर पेटीएम कंपनी है क्या?.........
एक वक्त था जब पेटीएम एक भारतीय स्टार्ट अप कंपनी हुआ करती थी पर आज यह कंपनी चीन के उद्योगपति जैक मा के हाथों का खिलौना बन चुकी है .........पर यह तो सभी जानते है कि अलीबाबा की पेटीएम मे हिस्सेदारी है पर यह आधा सच है............
पूरी कहानी समझने के लिए थोड़ा फ्लैश बैक मे जाना होगा जब जैक मा ने 1998 में अलीबाबा नामक ई कामर्स कंपनी की स्थापना की तो उनको बहुत सी बाधाओं का सामना करना पड़ा। पहले तीन सालों तक इस ब्रैंड से उनको कोई लाभ नहीं हुआ। कंपनी की सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि इसके पास भुगतान के रास्ते नहीं थे और बैंक इसके साथ काम करने को तैयार नहीं थे...........
मा ने अलीपे के नाम से खुद का पेमेंट प्रोग्राम शुरू करने का निर्णय किया। इसके तहत अंतरराष्ट्रीय खरीदारों और विक्रेताओं के बीच अलग-अलग करंसीज के पेमेंट्स को ट्रांसफर किया जाता है........
पूरा सच यह है कि अलीबाबा का अलीपे ही पेटीएम का सबसे बड़ा हिस्सेदार है दरअसल चीन या चीन के उद्योगपति भारत के व्यवसाय की "सेवा उन्मुख व्यवसाय आपूर्ति श्रंखला"(सप्लाई चेन)को तोड़ना चाहते है, ताकि वह आसानी से अपना माल भारत के बड़े बाजार मे खपा सके ......
इसके लिए उन्हें अपने नियंत्रण वाली खुद की एक सुरक्षित रसद श्रृंखला (लॉजिस्टिक्स चेन) शुरू करना है........ और चीन के विक्रेता चीन के ही किसी पेमेंट गेटवे का इस्तेमाल कर भारत मे माल बेचने मे अपने आपको सहज महसूस करेंगे ......
जो पेटीएम उन्हें उपलब्ध करा रहा है.........
पेटीएम का मूल उद्देश्य अलीबाबा और चीनी उद्योगपतियों के लिए रास्ता साफ करना है,अलीबाबा के ग्लोबल मैनेजिंग डायरेक्टर के गुरु गौरप्पन को पिछले महीने पेटीएम के बोर्ड में एडिशनल डायरेक्टर के तौर पर शामिल किया गया है ............और नोट बंदी के ठीक 4 दिन पहले अलीबाबा के सारे टॉप मैनेजर पेटीएम के नोएडा ऑफिस मे कमान सँभाल चुके थे............
अलीबाबा को चीन का पहला प्राइवेट बैंक खोलने की अनुमति मिल गयी है और भारत मे अलीबाबा के पेटीएम को भी पेमेंट बैंक खोलने की अनुमति रिजर्व बैंक ने दे दी है........
यानी एक ही कंपनी अलीबाबा ने दोनों देशों मे खुद का बैंक और खुद का पेमेंट गेटवे खोल लिया है ...
नोट बंदी के बाद 1 महीने मे छोटे और मध्यम उद्योग धंधो की जो बर्बादी हो रही है उस पुरे वैक्यूम को चीनी सामानों ला लाकर भारतीय बाजार मे पाट दिया जायेगा.........
और देश देखते देखते नयी गुलामी की तरफ बढ़ता चला जायेगा........
जो व्यापार से जुड़े लोग है वह तुरंत समझ जाएंगे क़ि यह खेल क्या है..........
आप को अब भी शायद लग रहा है कि पेटीएम इतनी बड़ी कंपनी नहीं है चलिये ये भ्रम भी आपका दूर कर देते है ...............
पेटीएम ने दुनिया की सबसे बड़ी कैब टैक्सी कंपनी उबर से हाथ मिला लिया है दिल्ली और मुंबई मेट्रो के टिकट पेटीएम के मार्फ़त ख़रीदे बेचे जा रहे है Irctc यानि रेलवे के टिकट पेटीएम से ख़रीदे बेचे जा रहे हैआईआरसीटीसी ने पेमेंट गेटवे के लिए पेटीएम के साथ साझेदारी की है और पेटीएम देश की सबसे बड़ी ट्रैवल बुकिंग प्लैटफॉर्म बनने के लिए पूरी तरह से तैयार है.........
पेटीएमने बीसीसीआई से भारत में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलू मैचों के 2015 से 2019 तक के लिए क़रीब 84 अंतरराष्ट्रीय मैचों का क़रार किया गया है।...अब रणजी ट्राफी भी पेटीएम के नाम से खेली जायेगी........
इतना ही नहीं मीडिया को भी अपने शिकंजे मे लेने की पूरी तैयारी की गयी है एनडीटीवी के गैजेट्स 360° के लिए पेटीएम की मालिक कंपनी, वन97 कम्युनिकेशंस ने पूरा निवेश किया है.........
सुबह शाम न्यूज़ चैनलों को मन भर के विज्ञापन दिए जा रहे है और तो और सरकारी न्यूज चैनल डी डी न्यूज़ भी पेटीएम का प्रचार कर रहा है............
खुदरा क्षेत्र के फ्यूचर समूह ने पेटीएम के साथ समझौता किया है। इसके तहत फ्यूचर समूह पेटीएम के मंच का प्रयोग बिग बाजार के सामान को ऑनलाइन बेचने के लिए करेगा। इस समझौते में पेटीएम के मार्केटप्लेस पर बिग बाजार एक प्रमुख स्टोर बन जाएगा..........
सरकार खुद बड़े करेंसी नोट के डीमॉनेटाइजेशन के बाद जनकल्याणकारी योजनाओं के जरिए फंड ट्रांसफर के लिए पेटीएम से हाथ मिलाने को तैयार बैठी है..........
सरकार किस हद तक पेटीएम का समर्थन कर रही है उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है पेटीएम से की गई मात्र सवा छः लाख की धोखाधड़ी की जांच सीधी सीबीआई से करायी जा रही है..............
ऐसा भी नहीं है कि इस और किसी का ध्यान नहीं है 
आरएसएस की आर्थिक शाखा भी पेटीएम के चीनी संबंध पर बारीक नजर रखे हुए है। आरएसएस से जुड़ा स्वेदशी जागरण मंच (एसजेएम) चीनी उत्पाद और निवेश के खिलाफ लंबे समय से आंदोलन चला रहा है लेकिन इस बार सरकार खुद आगे बढ़कर देश को कैशलेस बनाकर चीनी उद्योगपतियों के खतरनाक मंसूबो को कामयाब बना रही है .............
बाड़ ही खेत हड़प रही है भारत की कैशलेस व्यवस्था को जब चीनी कंपनियां नियंत्रित करेंगी, तब आप खुद सोचिये अंजाम क्या होगा.........
याद रखिए पार्टी के प्रति निष्ठा या किसी नेता की भक्ति से कही अधिक बड़ा देश का हित होता है.............

Girish Malviya
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 ~विजय राजबली माथुर ©
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Monday, December 12, 2016

मेहनतकशों की व्यवस्था कैश पर चलती है लुटेरों की कैशलेस पर : सारा खेल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के ‘राज’ को स्थापित करने का है ! ------ -मंजुल भारद्वाज

नवम्बर 2016 को भारत में दिखा 'विकासका भयावह अमानवीय चेहरा राष्ट्र निर्माण के नाम परबहुराष्ट्रीय कम्पनी राज को स्थापित करने का खेल है !
-मंजुल भारद्वाज

नवम्बर 2016 भारत का 8/11 है जिससे “विकास” के भयावह अमानवीय चेहरा का उदय हुआ है . ये इतना भयावह है की कतार में खड़े होकर जनता जान दे रही है और सरकार प्लास्टिक मनी का ज्ञान दे रही है .. इस कदम से  भूखमरी बढ़ेगी , बेरोज़गारी बढ़ेगी .. जन संहार होगा .. हाहाकार होगा चारों तरफ ..और मुर्दों को कफ़न खरीदने के लिए प्लास्टिक कार्ड का उपयोग करना होगा जो सीधे बहुराष्ट्रीय कम्पनी को फ़ायदा पहुंचाएगा और सत्ताधीश “राष्ट्र निर्माण” के नाम पर “राष्ट्र भक्ति” का पाठ पढ़ायेगा और सेना राष्ट्र की सीमाओं की बजाए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की रखवाली कर रही होंगी ...देशवासियों यही आगामी सत्य है और नोट बंदी का असली खेल है .. ज़रा राष्ट्र को बचाने  के सत्ताधीश के जुमलों, नारों से बाहर निकलिए और ‘व्यक्ति भक्ति’ की अफ़ीम की गोली को फेंककर  इन प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए , विश्लेषित कीजिये और विचार कीजिये 
जब नवंबर को पीएम नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की तो अपने 30 मिनट के भाषण में इसके कारण बताने के लिए
-18 
बार ब्लैकमनी शब्द का इस्तेमाल किया
-5 
बार फेक करेंसी शब्द का इस्तेमाल किया
-0 
बार कैशलेश-डिजिटल इकोनोमी का जिक्र किया
दिसंबर को अपने भाषण में पीएम मोदी ने
-3 
बार ब्लैक मनी शब्द का इस्तेमाल किया
-3 
बार कैशलेश इकोनॉमी का जिक्र किया
-0 
बा फेक करेंसी शब्द का जिक्र किया

यानी धीरे धीरे नक़ाब उतरता गया .. आप सब को अब पता है की ब्लैक मनी का गुब्बारा फूट गया है 95 प्रतिशत पैसा बैंकों में जमा होने वाला है और प्लास्टिक मनी का दौर अवतरित हो चूका है . ये प्लास्टिक मनी को जारी करने वाली भारत सरकार नहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियां है जो हर शक्ल , आकार , और बैंकों के रूप में मौजूद हैं . यानी भारत में जो मौजूदा सत्ता है वो ‘जनता , गरीब’ की भलाई के नाम पर किसकी भलाई के लिए जनता को कतार में में लगा रखा है .

दावों , प्रतिदावों के बीच यो सामान्य सवाल नोट बंदी के बाद क्या किसी  बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की वस्तुओं के दाम गिरे ? फ्रीज , टीवी , मोबाइल , हवाई टिकट के भाव गिरे ? पर किसान और उसकी फ़सल, उसके उत्पाद का दाम गिरा .. सब्ज़ी, फल कौड़ियों के भाव से सस्ते पर है ... नयी फ़सल की बुआई चौपट है .. ब्याह शादियों का हाल बेहाल है .. दिहाड़ी मजदूर काम से बाहर है बाकी जनता कतार में है  और पे टी म और अन्य कम्पनियों का मुनाफ़ा चरम पर है .. सारा खेल ‘राष्ट्र’ निर्माण के नाम पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के ‘राज’ को  स्थापित करने का है !
अर्थव्यवस्था को चौपट करने की साज़िश है ये प्लास्टिक मनी का खेल ! 
प्लास्टिक मनी की गफ़तल पर ध्यान दीजिये डिज़िटल यानी कि पेट्रोलटिकटटैक्सीऑनलाइन ख़रीददारी तक तो ठीक है। उस पर वसूले जाने वाला टैक्स सरकार माफ़ कर रही है (पता नहीं कितने दिनों के लिए!) ...लेकिन आगे अब नीचे के बाज़ार की ओर देखिए। वहाँ अक्सर दुकानदार ग्राहक को नक़द भुगतान पर डिस्काउंट देते हैं। क्योंकि एक तो उन्हें तुरंत पैसा मिलता है और फिर कार्ड कम्पनी को जाने वाला से 3प्रतिशत कमीशन बच जाता है। उसी 'बचतको वे अपने ग्राहक को दे देते हैं। ग्राहक को वह डिस्काउंट अब कहाँ से मिलेगाक्या सरकार उसे भी दिलवा दिया करेगीग़ौर करेंकार्ड कम्पनियों के कमीशन पर सरकार की कोई नकेल नहीं जिनका धंधा सरकार की नोटबंदी के बाद ख़ूब चमकने लगा है।
कार्ड के इस्तेमाल के नाम पर घोषित रियायतों का सीधा बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। उसकी भरपाई सरकार कैसे करेगीदूसरे रास्ते से कोई नया टैक्स/सैस लगाकर? दरअसल , मझले व्यापारी ,खेतिहर और मजदूर की अन औपचारिक सहकारी अर्थव्यवस्था को चौपट करने की साज़िश है ये प्लास्टिक मनी का खेल !


सरकार का विरोध = राष्ट्र द्रोह ,नोट बंदी की त्रासदी का विरोध = कालेधन के समर्थक आज की सरकार का राजनैतिक और लोकतान्त्रिक मन्त्र है . जनता ज़रा पूछो क्यों आपको ‘कालेधन’ के नाम पर कष्ट सहने के लिए कहा जा रहा है , जबकि सत्ताधारी पार्टी के खातों में धन बढ़ रहा है , आपको अपने पसीने की कमाई के एक एक रूपये के लिए घंटों लाइन में खड़े होकर पुलिस के डंडे खाने पड़ते हैं और पे टी म , क्रेडिट कार्ड / डेबिट कार्ड कम्पनियों का मुनाफा बढ़ रहा है . आपके संवैधानिक अधिकार का हनन करने वाली राजनैतिक पार्टी क्यों “आर टी आई” के दायरे से भाग रही है ?
 मेहनतकशों की व्यवस्था कैश पर चलती है लुटेरों की कैशलेस पर...
ज़रा गौर कीजिये की मूर्खतापूर्ण जनविरोधी फैसलों से राम राज आ जायेगा? अगर बहुत से लोगों को यह मुगालता है तो इसका कोई इलाज नहीं है . देशभर में गणेश जी को दूध पिलाने वाले इसी देश और समाज के थे बाहर के नहीं .इसलिए हैरानी भी नहीं होती .वे फिर दूध पिलाने जैसा ही सोच रहे हैं. जहाँ पहले से सबकैशलेस चलता है उनका खेल देखिये ... स्टोक मार्किट 100 प्रतिशत कैशलेस है ओनलाइन है और ज्यादातर अघोषित आय यानी काले पैसे पर चलता है..सट्टा बाज़ार 100 %कैशलेस। इसमे धन आये कहाँ से जाए कहाँ रे? मेहनतकशों की व्यवस्था कैश पर चलती है लुटेरों की कैशलेस पर... नोट बंदी कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नसबंदी है...
संसद में कोई बहस नहीं होगी .....संसद में अब कानून नहीं बनेगें,मेरी सनक अब कानून है.... जनशक्ति मेरे पास है ...के गुरुर को तोड़िए भारत के जन गण...

बहुराष्ट्रीय कम्पनियां ,पूंजीपति और अमीर लोग नया मध्यम वर्ग पहले ही डेबिट /क्रेडिट कार्ड का उपयोग करता है चेक से लेन देन करता है यानि पहले से कैशलेस है ..यानी सफेद धन का लेन देन और उनका पैसा सफेद है और नकदी का उपयोग करने वाले दिहाड़ी मजदूर गरीब किसान का पैसा काला है .. देशवासियों समझ आ गया कालेधन वाले कौन हैं ...वो कालेधन वाले हैं जो लाइन में / कतार में खड़े हैं ... वाह रे मतदाता अपने वोट से जिसको बहुमत देता है वही तुझे ठगता है ...चोर बनाता है ..देश निर्माण में जान की कुर्बानी मांगता है .. जागो ..वोट देने वालो जागो .... और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के राज को खत्म करो !


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 लेखक का संक्षिप्त परिचय -

थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैंजो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैंबल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।

एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।
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  ~विजय राजबली माथुर ©

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Sunday, November 27, 2016

"देश बुरे दौर से गुज़र रहा है" ............................. Sindhu Khantwal

  

Sindhu Khantwal
नोट बन्दी फ़ैसला:
"देश बुरे दौर से गुज़र रहा है" .....

पढ़िये..और अगर सहमत हैं तो शेयर कर
पहुँचाइये दिल्ली तक.. 

(न्यूज़ पोर्टल )

"ये दबदबा ये हुकूमत ये नश्शा ये दौलत
किरायेदार हैं सब घर बदलते रहते हैं..।"

मोहतरम प्रधान मंत्री साहब..

आपको याद होगा राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर और
तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का वाक़या
जब संसद की सीढ़ियों से उतरते हुये नेहरू के पैर फ़िसल जाने
पर उन्हें सँभालते हुये दिनकर जी ने कहा था..के सियासत के
क़दम जब जब भी लड़खड़ाये हैं...अदब और साहित्य ने उन्हें
संभाला है............आज उसी अदब और साहित्य का एक और
वंशज एक और बेटा देश की हक़ीक़त से आपको आगाह कर रहा है.....क्योंकि देश की बिकाऊ मीडिया आपके गुणगान और चाटुकारिता के अलावा शायद अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी को भूल चुकी है..।

नोट बंदी और कालेधन पर लगाम लगाने के लिये आपके इस फ़ैसले का देश एहतराम (सम्मान) करता है...क़ाबिले तारीफ़ क़दम..है आपका,

लेकिन हुज़ूर ..आपके पास सत्ता थी, आपके पास सिस्टम था, आपके पास ब्यूरोक्रेट्स से लेकर सरकारी मशीनरी का पूरा ज़खीरा था..और था नहीं अभी भी है....फ़िर आख़िर कैसे देश को इतनी बड़ी परेशानी, इतनी बड़ी मुसीबत में धकेल दिया...?

आप तो ऐसे डॉक्टर निकले जिसने बगैर दर्द का इंजेक्शन
दिये ही आपरेशन कर दिया...हुज़ूर एसी कमरों में बैठकर,
चार्टर्ड प्लेनों से सफ़र करते रहने से आम इंसान (जनता) का
दर्द नहीं महसूस किया जासकता, उसके लिये ज़मीनी हकीकत को समझना होगा...और ज़मीनी हकीकत ये है के..

आपके इस तुग़लकी फ़रमान से सबकुछ ठहर सा गया है..देश
की रफ़्तार थम सी गयी है..
एक बाप पैसे न होने की वजह से
अपनी बेटियों को ख़ुद फाँसी लगाकर मार देने और ख़ुद भी मर जाने के लिये बेबस है, ......एक माँ अपने नौनिहालों के दो घूँट दूध के पैसे के लिये पूरे दिन ATM और बैंकों के सामने लाइन में खड़ी होने के लिए मजबूर है,.... एक भाई अपनी जवान बहन के हाथ पीले करने के लिये शादी के पैसों के इंतज़ाम में सबके सामने हाथ फ़ैलाने को मजबूर है, एक किसान ख़ामोश और बदहवास है कि खेती के लिये खाद और बीज के पैसे कहाँ से लाये.....एक मरीज़ इलाज के पैसे न होने पर दम तोड़ने को मजबूर है, एक मज़दूर सुबह से शाम तक पसीना बहाने के बाद भी बिना मज़दूरी ख़ाली हाथ घर लौटने के लिये मजबूर है....
कोई सड़कों पर मर रहा है, कोई Atm और बैंक के सामने लगी लाइन में मर रहा है, कोई खेत की मेंड़ पर सदमें में मर रहा है, कोई अस्पताल की फ़र्श पर दवा के पैसे न होने की बजह से दम तोड़ रहा है, कोई घर में भूखे बच्चों के साथ आत्महत्या कर रहा है....

ये है आपके तुग़लकी फ़रमान की हकीकत..जो मीडिया आपको न ही बतायेगी और न ही दिखाएगी.......अब तो ऐसा लगता है उसका सिर्फ़ एक काम है आपकी जयजयकार करना...
आप देश से 50 दिन माँग रहे हो....ये बहुत छोटी बात है...देश की जनता आपको 50 के बदले 500 दिन देने के लिये तैयार है लेकिन .....आप देश को दर्द का इंजेक्शन0 देकर आपरेशन करो...क्योंकि कहीं ऐसा न हो दर्द हद से बढ़ जाये और लोग इस दर्द का इलाज ख़ुद ढूँढने सड़कों पर उतर आयें.जैसा के आपको बार बार देश की इंटिलिजेंस और ख़ुफ़िया एजेंसियाँ आगाह कर रही हैं ।

जागो हुज़ूर जागो नींद से
इससे पहले के हालात बेक़ाबू होजायें,
क्योंकि देश इस वक़्त बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा है..।

साभार :
Sindhu Khantwal
https://www.facebook.com/taanya871/posts/1277330322330927

~विजय राजबली माथुर ©

Friday, November 11, 2016

बड़े आराम से ‘अकूत’ नोट सोने में बदल गया और बीमार व्यक्ति के लिए दवाई लेने वाली महिला दुकानदार से रात भर झगडती रही ------मंजुल भारद्वाज

नोट बदलने का खेल एक शुद्ध राजनैतिक छलावा !
-मंजुल भारद्वाज

काला धन, काला धन, काला धन ... ये संकल्पना ही सिरे से गलत है . दरअसल राजनैतिक पैतरे बाज़ी का यही कमाल है और बाबु किस्म के जीव इस पैतरे बाज़ी में अपना करियर चुनते हैं जिसे प्रोफेशन कहते हैं और उन बाबुओं को प्रोफेशनल . साफ़ और सच बात ये है कि पैसा घोषित होता है या अघोषित होता है ..काला या सफेद नहीं होता . लेकिन सारे के सारे जनता को काले पैसे के नाम पर गुमराह कर रहे हैं और बहुमत वाली सरकार उस काले धन को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध और देश भक्त है ..बाकी सब इस बहुमत वाली सरकार की नज़र में क्या है? ये अब कहने की जरूरत नहीं ...
दरसल बहुमत वाली सरकार की सबसे बड़ी दिक्कत ये है की वो “कुछ” करते हुए दिखना चाहती है पर असल में “कुछ” करना नहीं चाहती  और उपर से उद्घोषणा का ग्रांड स्टाइल व्यक्तिवादी तरीका ...जैसे गोया एक तानाशाह की सरकार हो .. ना मंत्री मंडल .. ना सलाहकार ना कोई मन्त्रणा ..बस एक सनक की उठे और  त्यौहार में विलुत्प होती अपनी चर्चा को धमाके से सुर्ख़ियों में लाना ... और ऐलान करना देखो मैं हूँ और ... अब से मेरे हिसाब से चलो ..सुबह लाइन लगाना ..दूध ..सब्जी ..दवाई .. आटा यानी रोज़मर्रा की सारी चीज़ें खरीदते हुए मेरे नाम की माला जपना ...  ऐलान में कहा गया किसी को पता नहीं है की ये निर्णय लिया जा रहा है .. पर पूंजीपतियों ने तो पहले ही 30 दिसम्बर तक का ऐलान कर रखा है अपने मोबाइल और इन्टरनेट नेटवर्क का जिसकी पब्लिसिटी स्वयं “उद्घोषक” कर रहे हैं .
दावा “काला धन” खत्म ..बहुमत वाली सरकार के मुखिया ने कहा “बहनों , भाइयो .. बोरों में पैसे भरके रखें  हैं ..बात सही है ..ख़बरों में ..बोल चाल में .. सामान्य व्यवहार में ये देखने , सुनने में आता है कि राजनेताओं और  सरकारी बाबुओं के घर में ... “बोरों और बक्सों में नोट मिलते हैं”  .. अब इन बक्सों में नोट रखने वाले चंद लोगों के लिए 125 करोड़ जनता की फजीहत . क्योंकि गुड गवर्नेंस , आयकर विभाग , एमनेस्टी स्कीम सब टांय टांय फिस्स ! जरा विश्लेष्ण करें की ये बक्सों में नोट भरकर रखने वाले ... इतने नोट लाते कहाँ से हैं ..उनके पास वो कौन से तरीके हैं जिससे इतना धन उनके पास आता है ? क्या सरकर ने उन तरीकों को बंद किया ? मात्र नोट बदलने से क्या इन बक्सों वालों को फर्क पड़ेगा . जिन लोगों ने पहले वाले नोट दिए थे वही लोग इनको बड़े आराम से नये ‘वाले नोट” पुराने नोटों के बदले दे देंगें . इन अकूत नोट रखने वालों को जल्दबाजी तो है नहीं .. रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए तो उन्होंने ये ‘अकूत’ नोट रखे नहीं हैं . और जैसे ही ‘नोट’ बदलने की घोषणा हुई ..इन ‘अकूत’ नोट रखने वालों ने तुरंत ‘सोना’ खरीद लिया .. रातों रात सोने की और गहनों की दुकान खुली रहे ..बड़े आराम से ‘अकूत’ नोट सोने में बदल गया और बीमार व्यक्ति के लिए दवाई लेने वाली महिला दुकानदार से रात भर झगडती रही .. सरे आम  दलालों के वारे न्यारे .. बस्तियों में, स्टेशन पर .. टोल नाकों पर 500 रुपये के पुराने नोट के बदले ब्लैक में 400 रूपये देने का काम खुलम खुल्ला चला और जिनके पास खाते नहीं है उनके  साथ चल रहा है .. ये आम लोग फिर ठगे गये ...  बहुमत सरकार के गृह राज्य में सरे आम 1500 ( तीन पुराने 500 के नोट)  रूपये के बदले 1000 ( सौ रूपये के 10 नोट) देने का कारबार चला ...दलालों की चांदी ही चांदी...अब आप समझ गए .. आज सुबह बैंक का कर्मचारी अपने ग्राहक से कह रहा था , साहब ये सब चोर चोर मौसेरे भाई हैं ..नोट भी बदल गए और उनकी कीमत भी  ‘सोने’ से और बढ़ गयी .. और आप लोग भीड़ में एक दुसरे पर लाल – पीले हो रहे हो !
ये ‘अकूत’ नोट वाले ‘मेंढक’ की तरह है यानी विषम परिस्थतियों में  हाइबरनेशन में चले जाते हैं . ये नई सरकार आने तक या इसी सरकार की नीति बदलने तक पुराने नोटों को दबा के रख सकते हैं . मज़े की बात ये है कि... बात नोट बदलने की थी तो उसके लिए ‘आपात कालीन’ घोषणा करने की क्या ज़रूरत थी? ये काम तो पहले भी होता रहा है और बैंक करते रहे हैं ! ‘अकूत नोट वालों के पास बेनामी या नामी कारें , बंगलो , फ्लैट , आदि सम्पति होती है उसका क्या? जब नोट बंद करने हैं तो 500 और 2000 के नोट पुनः जारी करने की क्या ज़रूरत है .क्योंकि ऐलान में तर्क दिया गया कि आज 500 और 1000 के नोट का उपयोग 85 प्रतिशत लेन  देन  में हो रहा है . अरे  भाई जान लेना मंहगाई में जहाँ 500 रूपये में दाल और दूध नहीं आता ..वहां 100 रूपये के नोट की क्या औकात ? और दो महीने के बाद 2000 के नोट रखने में ‘बक्से’ कम लगेगें ! सरकार को जब 500 और 1000 के नोट बंद करने थे तो हमेशा के लिए करने थे ..नए नोट ज़ारी करने की क्या ज़रूरत .. अपने ही तर्क को अपने आप सरकार ने खारिज कर दिया है नए 500 और 2000 के नोट जारी कर ! दरअसल ‘कुछ” लोग अर्थ व्यवस्था को ‘आयकर नियमों’ के आईने में  समझ रहे हैं . वो ये भूल गए हैं की ‘अर्थ व्यवस्था’ के व्यापक आयाम हैं और उसमें मनोविज्ञान एवम सामजिक संरचना भी अहम है .
असल बात ये है की बहुमत वाली सरकार के मुखिया ‘अल्प ज्ञान , सतही समझ , गैर समझ , आधी अधूरी समझ और जनता में फैले कनफूजन को बड़ी कुशलता से अपने राजनैतिक फायदे के लिए उपयोग करने में माहिर है . उसने देश भक्ति के नाम पर यही किया है . जैसे जनता में ये आम समझ है की जो पैसा बैंक में है वो सफेद .. और जो हाथ में है वो काला.. अब सारे आम नागरिकों ने अपने 500 और 1000 रुपये के नोटों को  बाकयदा धक्का मुक्की करके ..पसीना बहाकर .. घंटों लाइन में खड़े होकर बैंक से ‘सफेद’ कर लिया . देश वासियों ने बड़ा त्याग किया और बहुमत वाली सरकार के मुखिया ने छलावा ! बहुत जल्द यूपी की चुनाव सभा में ये कहा जाएगा  “ भाइयो , बहनों .. हमने काले धन को बदल दिया .. आप सब ने साथ दिया .. आप सब खुद शामिल हुए ... वैगहरा वैगहरा” जबकि हकीक़त में बदला ‘कुछ’ नहीं ! ये है जुमले बाज़ी !
अब थोडा बात करें की पैसा काला या सफेद नहीं होता .. वो घोषित या अघोषित होता है .. और जनता ये भी समझ ले की नकद पैसा भी सफेद है और बैंक में रखा भी ... क्योंकि एक योग को हथियाए बाबा ‘स्विस बैंक’ में जमा काले धन को लाने की बात कर रहे थे पिछले लोकसभा चुनाव में .. बैंक में भी होता है काला धन .. यानी सरकार के नियमों के अनुसार अघोषित पैसा .. चाहे  वो बैंक में हो या नकद हाथ में .. अब इस नव उदारवाद काल में जब स्वयं ‘विश्व बैंक” एक लुटेरे की तरह काम कर रहा हो .. हमारे अपने बैंक घाटे में चल रहे हों .. बैंकों से अरबो रूपये का  क़र्ज़ लेकर पूंजीपति सरकार के सामने विदेशों में फ़रार हो रहे हों तो क्या जनता को बैंकों पर विश्वास करना चाहिए ? क्या ‘जनता’ को ये बात नहीं समझनी चाहिए की ये सिर्फ राजनैतिक चालबाज़ी है और उसको परेशान करने का एक सरकारी मुखिया का आदेश ! 
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 लेखक का संक्षिप्त परिचय -

“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।
एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।

Friday, October 21, 2016

पुलिस शहीद दिवस :21 अक्टूबर ------ वी के शेखर

 दूसरों की हिफाजत के लिए 24 घंटे सजग रहने वाले पुलिस कर्मियों की पीड़ाओं का भी आकलन होना चाहिए।
VK Shekhar

21 October 1959 का दिन पुलिस के लिए सर्वाधिक ऐतिहासिक महत्व का है,जब लद्दाख की सीमा पर स्थित भारतीय पुलिस के 20 जवानों की एक टुकडी पर चीन की सेना ने घात लगाकर हमला किया था जिसमें सीआरपीएफ के सब इन्स्पेक्टर करमसिंह और उसके साथियों ने पूरी बहादुरी से मुकाबला किया और 10 पुलिस के जवानों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी।
इसी स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए उनके शहादत को श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतू 21 अक्टूबर को पूरे देश मे पुलिस शहीद दिवस मनाया जाता है। 
21 Oct.1959 से आज तक लगभग 35000 से ज्यादा पुलिस कर्मी शहीद हुए है। 
पुलिस हमारी आंतरिक सुरक्षा की पहली दीवार है।जब भी कोई आतंकी या नक्सली हमला हो या संप्रदायिक दंगे या लूटपाट की घटनाएं, हिसंक भीड से जानमाल की हिफाजत की बात हो या हमला चाहे देश की संसद पर हो,पठानकोट और उड़ी के हमले हों या वीरप्पन की गोलियों से, स्वार्थी नक्सलियों पर लगाम लगाते समय न जाने कितने पुलिस वाले शहीद हुए हैं।
अगर आतंकवाद और नक्सलवाद पर देश की सेना और पुलिस ने अपनी बहादुरी से नियंत्रण रखा है तो इनका श्रेय सेना और पुलिस के जवानों को ही.... मिलना चाहिए। हर रोज ड्यूटी पर इस देश मे पुलिस कर्मी शहीद होते है, बहुत कम होती है वे आंखें, जो नम होती है। इस देश के लिए दी गयी शहादत कमतर नहीं है,और शहादत मे फर्क भी नहीं किया जाना चाहिए।
सरकारी कार्यालय मे मात्र पुलिस थाना ही ऐसा भवन है, जिसके नसीब मे न तो सुबह और न ही शाम को ताला होता है।
साल के 365 दिन 24 घंटे ड्यूटी पर माने जाने वाले पुलिस कर्मी के लिए न तो छुट्टी का दिन मुकर्रर है और न ही ड्यूटी के घंटे।पुलिस की दीवाली इसी में है कि लोगों के दियों की रोशनी न बुझे।
पुलिस की होली भी इसी में है कि लोगों के रंग में खलल न पडे।
किंतु शायद ही कहीं कोई थाने मे धन्यवाद देने आता हो।
अगर कहीं छोटी-सी भी घटना या दुर्घटना हो जाए तो लोग आसमान सिर पर उठा लेते हैं। पुलिस सर्वाधिक विषम परिस्थितियों मे काम करती है,लेकिन उसे बदले मे चारों तरफ से ताने, उपहास, अपमान और आलोचना ही झेलने पडते हैं।
दूसरों की हिफाजत के लिए 24 घंटे सजग रहने वाले पुलिस कर्मियों की पीड़ाओं का भी आकलन होना चाहिए।
''बंद हो थाने के पट,ऐसा कभी होता नहीं, शहर सोए चैन से,बस इसलिए सोता नहीं।कर्मपथ में है मिले, मुझको मगर कांटे बहुत, आदमी हूं कैसे कह दूं,मैं कभी रोता नहीं।''

शहीद पुलिस जन को सादर श्रद्धा सुमन अर्पण।
साभार :

https://www.facebook.com/shekhar.vk/posts/1467431093272318



 ~विजय राजबली माथुर ©

Monday, October 17, 2016

युवा अब सिर्फ़ जोश में नहीं पूरे होश में ------ -मंजुल भारद्वाज



भारत के निर्णायक,जोशीले ,देशभक्त और समग्र युवा चिंतन को नमन !
-मंजुल भारद्वाज

भारत देश दुनिया का युवा देश है . युवा होने का अर्थ है , जोश , सपनों , उमंगों और उर्जा से भरा . पिछले लोकसभा चुनाव में एक पार्टी ने देश के युवाओं को अपने ‘सियासी’ चक्रव्यूह में फंसाया . जिसका जरिया था सोशल मीडिया ...सोशल मीडिया के प्रभाव और युवाओं  के ‘राजनैतिक’ जुड़ाव  का सफल प्रयोग और परिक्षण किया गया “भ्रष्टाचार विरोधी अभियान’ से . इस अभियान में युवाओं ने पूरे जोश के साथ हिस्सा लिया . इस युवा जुड़ाव से ‘सत्ता’ परिवर्तन हुआ एक राज्य स्तर पर ... और दूसरा राष्ट्रीय स्तर पर . दोनों ही फ़ायदेमंद ‘सियासी’ पार्टियां अपने अपने ‘सत्ता’ के लक्ष का ‘मोक्ष’ पा गयीं पर देश का युवा ठगा,ठगा, उदास और बदहवास है .

युवा को ‘विकास’ का सपना बेचा गया था. रोजगार का सपना बेचा गया था. युवा की ये दोनों ‘तात्कालिक’ और बुनियादी ज़रूरते हैं ..इसलिए ‘युवाओं’ ने आँख मूंदकर ‘सोशल’ मीडिया की तकनीक के सहारे स्वयं को प्रोग्रेसिव समझते हुए बिना राजनैतिक पार्टियों की ‘वैचारिक’ प्रतिबद्धता को जाने ..धडा धड ‘विकास’ के जुमले को अपना लिया और एक दक्षिण पंथी पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत दिया . जिसका जश्न इस पार्टी ने यह कहकर मनाया की 1000 साल बाद देश में हिन्दुओं का राज आया है यानी संविधान सम्मत 1950 के बाद की सब सरकारें किसकी थी?

हिन्दु राज :

“1000 साल बाद देश में हिन्दुओं का राज” इस ऐलान से ‘युवाओं’ का माथा ठनका लेकिन अपने उदार भाव और जोश में उसने परवाह नहीं की .. पर जैसे जैसे उसके ‘बेरोज़गारी’ का वक्फा बढ़ा उसकी बैचैनी भी बढ़ी ... जिससे ‘सत्ताधारी’ पार्टी को सोचना पड़ा .. अपने भारत विजय रथ पर सवार पार्टी ने जब ‘लोकसभा’ चुनावी वादों को ‘जुमला’ करार दिया तब ‘युवाओं ने उसके विजय रथ को ‘दिल्ली’ और ‘बिहार’ में रोक दिया. युवाओं का ये  क़दम  ‘सत्ताधारी’ पार्टी  को नागवार गुजरा ..उसने  युवाओं से बदला लेना शुरू किया . इस बदले के आयाम है १. संस्थान २ स्कोलरशिप ३ राष्ट्रभक्ति 4 आरक्षण . इस चार सूत्री कार्यक्रम के तहत ‘यूनिवर्सिटी’ में युवाओं के दमन का सिलसिला शुरू हुआ , उनको अलग अलग खेमों में बांटा गया , उनकी आज़ादी की अभिव्यक्ति को ‘राष्ट्रद्रोह’ से नवाज़ा गया . उनकी स्कोलरशिप पर प्रहार किया गया .. यानी जिस युवा के कंधों पर बैठकर ये पार्टी ‘सत्ता’ में आई थी उन्ही का ‘दमन’ किया . उनके  इस दमन के षड्यंत्र में ‘रुपर्ट मर्डोक’ के दर्शन पर चलने वाला मुनाफाखोर मीडिया भी लिप्त है ..जिसके  करोड़ों रूपये की सैलरी पाने वाले टीवी एंकर या ‘खबर बेचू’ प्राणियों ने ‘देश भक्ति का ज़ोरदार ‘तड़का’ मारा और ‘युवाओं’ को देशद्रोही बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी !

दरअसल डब्लू टी ओ के माध्यम से लागू होने वाली नव उदारवादी आर्थिक ‘नीतियों’ की अंधभक्त है ये सरकार ..यानी पिछली सरकार से एक क़दम आगे ..   नव उदारवादी आर्थिक ‘नीतियों’ के फलस्वरूप सरकारी नौकरियाँ विलुप्त हो रही हैं .. और प्राइवेट नौकरियाँ पहले से ही ऊंट के मुंह में जीरे वाली बात है ..उपर से बेइंतिहा  शोषण .. ऐसे में डब्लू टी ओ के हिमायतियों ने ‘लोकतान्त्रिक व्यवस्था’ वाले देशो के ‘पत्रकारिता’ के किल्ले पर हमला कर उसको ध्वस्त किया और ‘मीडिया शॉपस यानी मीडिया की दुकानों का उदय किया . इन दुकानों को ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के नाम पर वैधता दी गयी  और इस वैधता को पूंजी से खरीद लिया गया . और जुमला चला ‘जो बिकेगा वो छपेगा या जो बिकेगा वो दिखाया जाएगा’ यही है ‘रुपर्ट मर्डोक’ डॉक्ट्रिन !
‘भ्रष्टाचार ' और ‘युद्ध’ :

इसलिए ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ का  मसीहा मीडिया आज ‘देशभक्ति’ की धुन गा रहा है .. रूठे युवाओं  को बहलाने के लिए उसे एक निश्चित दुश्मन को दिखा ‘युद्ध’ जितने का जोश भर रहा है . दिन रात ‘मीडिया की अदालतें लगती हैं’ जहाँ से देशभक्ति के प्रमाण पत्र बांटे जाते हैं . पर देश का युवा अब सजग हो रहा है . वो अब सोशल मीडिया का विश्लेष्णात्मक उपयोग कर रहा है . अपना पेट भरने वाले फ़िल्मी सत्ता लोलुपों की देशभक्ति उसको समझ आ रही .. ये युवा उनको कह रहा है ..आपकी देशभक्ति आधी है ..कलाकारों को हड्काने वाले फ़िल्मी सत्ता लोलुपों ज़रा ‘इस देश के उधोगपतियों’ को भी देशभक्ति का पाठ पढाओ.. उनको भी टीवी पर करोड़पति ‘खबर बेचूं’ सत्ता दलालों के साथ ललकारो ..की दुश्मन देश से व्यापार बंद करो ... देश का युवा आज जान रहा है की 30 रूपये की झालर बेचने वाले ठेले वाले का धंधा उजाड़ना चीन को सबक सिखाना है और तीन हज़ार करोड़ की ‘सरदार पटेल’ की मूर्ति चीन से बनवाना देश भक्ति !

सामाजिक ताना -  बाना तार तार :

इस ‘सत्ताधारी’ पार्टी ने इस देश के सामाजिक ताने बाने को तार तार करने में अपने सारे संगठन को झोंक रखा है . सारी  मर्यादाओं को तोड़कर “सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का’ के मन्त्र को अमल में ला रहे हैं . सवर्ण युवाओं को रोज़गार नहीं देकर ‘आरक्षण’ के नाम पर बरगलाना की तुम्हारा रोजगार ‘आरक्षण’ वालों ने छिन लिया . गौ रक्षा के नाम पर दलितों पर अत्याचार .... हर सवाल पूछने वाले को दुश्मन देश का एजेंट बताना .... कश्मीर में आग लगवाना ... याद रहे दिसम्बर 2015 तक कश्मीर ( छुट पुट घटनाओं ) के बावजूद शांत था .. पर तब से आज कश्मीर की हालात क्या हो गयी है  .. जब की वहां तथाकथित ‘राष्ट्रवादियों’ की गठबंधन सरकार है .::
 फ़ौज .. फ़ौज है .. उसे फ़ौज ही रहने दें  :

जो हमारे देश को बुरी नज़र से देखेगा ..हमारी फ़ौज उसको बर्दाश्त नहीं करेगी और देश की जनता, देश का युवा ‘फ़ौज’ के साथ है .. पर ‘विकास’ के जुमले वाली सरकार अब ‘सेना’ का उपयोग अपनी  देशभक्ति की भट्टी में कर रही है ... पैड मीडिया की मदद से रोज़ देशभक्ति के हवन में ‘सेना’ अपनी आहुति दे रही है  .. देश के युवाओं  का आज स्पष्ट मत है ...वो राष्ट्र की सुरक्षा के लिए फ़ौज को नमन करता है  ! फ़ौज की आड़ लेकर राजनीति के गिरते स्तर पर है उसकी नज़र है  .. ये राजनैतिक पार्टियों के पतन के कफन में और एक कील है ..... फ़ौज .. फ़ौज है .. उससे फ़ौज ही रहने दें तो अच्छा है इसी में  राष्ट्र और राजनैतिक बिरादरी की भलाई है ... 

जोश  नहीं  होश :

इस गिरते राजनैतिक स्तर और माहौल में ये युवा अब सिर्फ़ जोश में नहीं पूरे होश में अपने नए ‘राजनैतिक विकल्प’ खोज रहा है. एक ऐसा ‘राजनैतिक विकल्प’ जो इस देश के संविधान के मूल्यों को जतन से संभाले और उसके आदर्शों के आईने में उसके सपनों को पूरा करे .ये देश सही में विकसित  और खुशहाल हो ! भारत के ऐसे निर्णायक,जोशीले ,देशभक्त और समग्र युवा चिंतन को नमन !
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संक्षिप्त परिचय -

“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।




एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।


  ~विजय राजबली माथुर ©