Thursday, February 11, 2016

ज्योतिष को विकृत व बदनाम किया है ब्राह्मण पुजारियों ने ------ विजय राजबली माथुर


ज्योतिष वह विज्ञान है जो मानव जीवन को सुंदर, सुखद व समृद्ध बनाने 

हेतु चेतावनी व उपाय बताता है। लेकिन आज इस विज्ञान को स्वार्थी व 

धूर्त लोगों ने पेट-पूजा का औज़ार बना कर इसकी उपादेयता को गौड़ कर 

दिया व इसे आलोचना का शिकार बना दिया है।
http://krantiswar.blogspot.in/2016/01/blog-post_31.html


हिंदुस्तान, लखनऊ , दिनांक 11 फरवरी, 2016 में विभिन्न कर्मकांडी पुजारियों ने ज्योतिषी होने का दावा करते हुये 'बसंत पंचमी' पर्व 12 व 13 फरवरी दो दिन होने की घोषणा की है। कुछ ने तो 13 फरवरी 2016 की प्रातः 10 : 20 तक पंचमी घोषित कर दी है। 

प्रस्तुत स्कैन से स्पष्ट हो जाएगा कि, 12 फरवरी 2016 की प्रातः 09 : 16 तक ही चतुर्थी तिथि है और उसी दिन रात्रि 30 :29 अर्थात घड़ी के हिसाब से 13 तारीख की सुबह 06 : 29 पर  पंचमी तिथि समाप्त होकर षष्ठी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी अर्थात सूर्योदय समय 07 : 20 पर षष्ठी तिथि लग चुकी होगी। अतः बसंत पंचमी केवल 12 फरवरी 2016 को ही है लेकिन धंधेबाजों ने जनता को गुमराह करके अपनी पेट पूजा के लिए गलत घोषणाएँ की हैं जिनको प्रतिष्ठित अखबार ने अपने विज्ञापनीय कारोबार के लिहाज से प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है। इन सबका उद्देश्य अधिकाधिक धनोपार्जन है 'जन -कल्याण ' नहीं। इसी कारण जनता व सरकारें गुमराह होती हैं और मानवता को अनर्थ का सामना करना पड़ता है, ज्योतिष विज्ञान नाहक बदनाम होता है जिसके लिए ये ब्राह्मण पुजारी शत-प्रतिशत उत्तरदाई हैं।  


चंड - मार्तण्ड पंचांग, नीमच , पृष्ठ-53 

गुमराह करती अखबारी सूचना : 


सरकार ने कुतर्क को सही माना 


चंड - मार्तण्ड पंचांग, नीमच  की  ये पूर्व घोषणाएँ  घटित हो चुकी हैं  : 




पृष्ठ 52 पर वर्णित स्थिति 23-01-2016 से 22-02-2016 तक के लिए है और इसी दौरान ही सियाचिन का ग्लेशियर कांड घटित हुआ जिसमें दस सैनिकों का जीवन बलिदान हो गया। यह सब कुछ ग्रहों की स्थिति के कारण ही घटित हुआ परंतु सावधानी न बरती गई क्योंकि जनता व सरकार इन ब्राह्मण पुजारियों की गलत व्याख्याओं में ही उलझे रहते हैं। यदि चेतावनी पर ध्यान देते हुये अग्रिम सावधानी बरती जाती तो जन-क्षति को बचाया जा सकता था। 

लखनऊ में ही कल 10 फरवरी का वकील-तांडव और उसके जरिये हुये नुकसान से भी बचा जा सकता था यदि सावधानी बरतते तो। 





इसी प्रकार सरस्वती को ब्रह्मा की पुत्री बताना और पौराणिक गलत आख्यानों के आधार पर पूजा करवाना एक ऐसा घिनौना खेल है जिसने भारत में चारित्रिक पतन  ला दिया है। 'वेदों' में  'सरस्वती', 'गोमती' आदि  शब्दों के व्यापक अर्थ हैं न कि संकुचित जैसा कि इन ब्राह्मणों ने पुरानों में लिख डाला है और पुरानों को वेद आधारित बताने का कुचक्र रच रखा है। वस्तुतः पुराण वेदों में निहित उद्देश्यों से जनता को भटकाने हेतु ब्राह्मणों ने बड़ी चालाकी से गढ़े हैं। 'नास्तिक' संप्रदाय अपने गलत कदमों से इन ढ़ोंगी ब्राह्मणों की चालों को और मजबूत करता रहता है। जनता के सामने बचाव के बजाए भुगतने का ही विकल्प इस प्रकार बचा रह जाता है। इसी वजह से अब भी कोई एहतियात नहीं बरती जाएगी और आपको आगे भी दुखद घटनाओं के समाचार सुनने-पढ़ने को मिलते रहेंगे। 



 ~विजय राजबली माथुर ©
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