Sunday, May 20, 2018

सुरंग जोजिला से निकला प्लेटिनम का मलवा देश से बाहर तो नहीं जाएगा ? ------ विजय राजबली माथुर



कल दिनांक 19 मई 2018 को 14 km 200 m लंबी 'जोजिला सुरंग ' परियोजना का शिलान्यास हो गया है और इसके भूमि अधिग्रहण पर 1910 करोड़ रु . एवं निर्माण पर 4899 करोड़ रु .कुल मिलाकर 6809 करोड़ रु.व्यय होने का अनुमान घोषित किया गया है। इंदिराजी के प्रधानमंत्रित्व काल में एक कनाडाई फर्म ने न्यूनतम व्यय पर तथा एक जर्मन फर्म ने बिलकुल निशुल्क इस सुरंग निर्माण का प्रस्ताव किया था किन्तु उनकी शर्त थी कि, निकला हुआ सारा मलवा वे ले जाएँगे। मलवा देने की शर्त इंदिराजी को स्वीकार नहीं थी और वह बगैर मलवा दिये शुल्क देने को तैयार थीं किन्तु बगैर मलवा लिए वे फर्म्स सुरंग निर्माण हेतु तैयार न थी। तब तक हमारे देश में इस सुरंग निर्माण हेतु तकनीक उपलब्ध नहीं थी अतः यह सुरंग न बन सकी। 
अब भाजपा नीत  एन डी ए सरकार के पी एम साहब ने इसका शिलान्यास कर दिया है। दिये गए विवरण में यह उल्लेख नहीं है कि यह निर्माण भारतीय सेना करवा रही है अथवा किसी विदेशी फर्म को ठेका दिया जा रहा है। यदि विदेशी फर्म को ठेका दिया जा रहा है तब क्या मलवा भी दिया जा रहा है जो 'प्लेटिनम 'की प्रचुरता से युक्त है। प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण में भी होता है जिसका प्रयोग परमाणु ऊर्जा व परमाणु बम दोनों के निर्माण में हो सकता है।  कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम । 
इस संदर्भ में अपने एक पुराने लेख को यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ  ------
मंगलवार, 5 जुलाई 2011 आगरा/१९८०-८१(भाग १)/ एवं कारगिल-प्लेटिनम का मलवा : 
24  मई 1981  को होटल मुग़ल से पांच लोगों ने प्रस्थान किया। छठवें अतुल माथुर, मेरठ से सीधे कारगिल ही पहुंचा था। आगरा कैंट स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंचे और उसी ट्रेन से रिजर्वेशन लेकर जम्मू पहुंचे। जम्मू से बस   द्वारा श्री नगर गए जहाँ एक होटल में हम लोगों को ठहराया गया। हाई लैंड्स के मेनेजर सरदार अरविंदर सिंह चावला साहब -टोनी चावला के नाम से पापुलर थे, उनका सम्बन्ध होटल मौर्या, दिल्ली से था। वह एक अलग होटल में ठहरे थे, उन्होंने पहले 15  हजार रु.में एक सेकिंड हैण्ड जीप खरीदी जिससे ही वह कारगिल पहुंचे थे। 4- 5 रोज श्री नगर से सारा जरूरी सामान खरीद कर दो ट्रकों में लाद कर और उन्हीं ट्रकों से हम पाँचों लोगों को रवाना कर दिया। श्री नगर और कारगिल के बीच 'द्रास ' क्षेत्र में 'जोजीला ' दर्रा पड़ता है। यहाँ बर्फबारी की वजह से रास्ता जाम हो गया और हम लोगों के ट्रक भी तमाम लोगों के साथ 12 घंटे रात भर फंसे रह गए। नार्मल स्थिति में शाम तक हम लोगों को कारगिल पहुँच चुकना था। ( ठीक इसी स्थान पर बाद में किसी वर्ष सेना के जवान और ट्रक भी फंसे थे जिनका बहुत जिक्र अखबारों में हुआ था)। 

मलवा न देने का कारण : 

तमाम राजनीतिक विरोध के बावजूद इंदिरा जी की इस बात के लिए तो प्रशंसा करनी ही पड़ेगी कि उन्होंने अपार राष्ट्र-भक्ति के कारण कनाडाई, जर्मन या किसी भी विदेशी कं. को वह मलवा देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसमें 'प्लेटिनम 'की प्रचुरता है। सभी जानते हैं कि प्लेटिनम स्वर्ण से भी मंहगी धातु है और इसका प्रयोग यूरेनियम निर्माण में भी होता है। कश्मीर के केसर से ज्यादा मूल्यवान है यह प्लेटिनम। सम्पूर्ण द्रास क्षेत्र प्लेटिनम का अपार भण्डार है। अगर संविधान में सरदार पटेल और रफ़ी अहमद किदवई ने धारा '370 ' न रखवाई होती तो कब का यह प्लेटिनम विदेशियों के हाथ पड़ चूका होता क्योंकि लालच आदि के वशीभूत होकर लोग भूमि बेच डालते और हमारे देश को अपार क्षति पहुंचाते। धारा 370 को हटाने का आन्दोलन चलाने वाले भी छः वर्ष सत्ता में रह लिए परन्तु इतना बड़ा देश-द्रोह करने का साहस नहीं कर सके, क्योंकि उनके समर्थक दल सरकार गिरा देते, फिर नेशनल कान्फरेन्स भी उनके साथ थी जिसके नेता शेख अब्दुल्ला साहब ने ही तो महाराजा हरी सिंह के खड़यंत्र  का भंडाफोड़ करके कश्मीर को भारत में मिलाने पर मजबूर किया था । तो समझिये जनाब कि धारा 370  है 'भारतीय एकता व अक्षुणता ' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है -साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश। और यही वजह है कश्मीर समस्या की । साम्राज्यवादी शक्तियां नहीं चाहतीं कि भारत अपने इस खनिज भण्डार का खुद प्रयोग कर सके इसी लिए पाकिस्तान के माध्यम से विवाद खड़ा कराया गया है। इसी लिए इसी क्षेत्र में चीन की भी दिलचस्पी है। इसी लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु गठित आर.एस.एस.उनके स्वर को मुखरित करने हेतु 'धारा 370 ' हटाने का राग अलापता रहता है। इस राग को साम्प्रदायिक रंगत में पेश किया जाता है। साम्प्रदायिकता साम्राज्यवाद की ही सहोदरी है। यह हमारे देश की जनता का परम -पुनीत कर्तव्य है कि भविष्य में कभी भी आर.एस.एस. प्रभावित सरकार न बन सके इसका पूर्ण ख्याल रखें अन्यथा देश से काश्मीर टूट कर अलग हो जाएगा जो भारत का मस्तक है । 

मंगलवार, 5 जुलाई 2011 आगरा/१९८०-८१(भाग १)/ एवं कारगिल-प्लेटिनम का मलवा




अनुच्छेद 370 को समाप्त कराने की मांग उठाते रहे लोग जब सत्ता में मजबूती से आ गए हैं तब बिना पाकिस्तान के अस्तित्व के ही 'जोजीला'दर्रे में स्थित 'प्लेटिनम' जो 'यूरेनियम' के उत्पादन में सहायक है यू एस ए को देर सबेर हासिल होता दीख रहा है । 
 ~विजय राजबली माथुर ©
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Thursday, May 10, 2018

जालसाजी और रैकेट का पर्दाफाश करने का श्रेय लालू प्रसाद को मिलना चाहिए था ------ ए जे फिलिप (वरिष्ठ पत्रकार)

* दरअसल, इस जालसाजी और रैकेट का पर्दाफाश करने का श्रेय आपको मिलना चाहिए था। लेकिन विडम्बना देखिए कि इस रैकेट के सरगना होने का आरोप मढ़कर आपको ही जेल में डाल दिया गया । 
   * *  जिसने गुस्से से ज्या ।दा निराशा में भरकर लिखा था “हमें इस पूरे मामले को आभिजात्य पुलिस, बार और न्यायपालिका के जातिगत, वर्ग और समुदाय आधारित पूर्वाग्रह के हिसाब से देखना चाहिए। चारा घोटाले में जिन आईएएस अफसरों को दोषी करार दिया गया और जिन्हें लगभग पूरा जीवन जेल में बिताना पड़ा, वे सब निचली जातियों से ताल्लुक रखते थे। वित्त आयुक्त फूल सिंह कुर्मी (सब्जी उगाने वाली जाति) थे। बेक जूलियस अनुसूचित जनजाति से आते थे, और के. अरुमुगम एवं महेश प्रसाद अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे। तत्कालीन मुख्य सचिव विजय शंकर दुबे बेदाग पाये गये। चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त सजल चक्रवर्ती दोषी पाये गये लेकिन उन्हें जमानत मिली और वे झारखंड के मुख्य सचिव के ओहदे तक पहुंच गये। इस मामले में सह-अभियुक्त और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, जिनके काल में यह घोटाला शुरू हुआ, के साथ उनके सजातीय और सह-अभियुक्त आईएएस अफसर आर. एस. दुबे एवं कई पाठकों और मिश्राओं को उन्हीं मामलों में बरी कर दिया गया जिसमें लालू को दोषी करार देकर जेल भेज दिया गया।”
* * *आपकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए सीबीआई के वकील ने अदालत में क्या कहा?
उन्होंने तर्क दिया कि आप एनडीए सरकार के धुर विरोधी हैं और आप सरकार के खिलाफ जनमत उभार सकते हैं आदि। क्या ये सब जमानत याचिका ठुकराने का आधार हो सकते हैं? फिर भी, आपको जमानत नहीं दी गयी। अब जरा इस बारे में सोचिए कि एक केन्द्रीय मंत्री अपने आधिकारिक मशीनरी का उपयोग भगोड़ा क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी को ब्रिटेन से बाहर जाने में मदद के लिए करता है।


ए जे फिलिप
प्रिय श्री लालू प्रसाद यादव जी,
मैं भारी मन से आपको यह चिट्ठी लिख रहा हूं। मुझे यह तक नहीं मालूम कि यह चिट्ठी रांची जेल में, जहां आप अभी बंद हैं, आपको मिल भी पायेगी या नहीं। मेरी बड़ी इच्छा है कि यह चिट्ठी आपको मिले और आप इसे पढ़ें।
हम सिर्फ दो बार ही मिले हैं। पहली दफा जब बिहार के दौरे पर आये हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय देवीलाल का साक्षात्कार करने मैं अहले सुबह छह बजे पटना के राजकीय अतिथिगृह पहुंचा था। वह 1980 के दशक का वक्त था। शायद उस वरिष्ठ नेता के प्रति सम्मान की वजह से पूरे साक्षात्कार के दौरान आपने मेरे पीछे खड़ा रहना मुनासिब समझा था। आपको जरुर मुझसे खीझ हुई होगी क्योंकि उस दिन हरियाणा वो ताकतवर नेता पूरे रौ में था और मेरे सवालों का जवाब देते हुए आनंद महसूस कर रहा था। एक या दो बार आपने मुझे साक्षात्कार खत्म करके जाने का इशारा भी किया था ताकि आप लोग आपस में राजनीतिक विमर्श कर पायें।
दूसरा मौका था जब सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर आपकी पत्नी, राबड़ी देवी, को आवंटित आवास पर मैंने एक पूरा दोपहर बिताया था। उस दिन आप चारा घोटाला मामले में एक अदालत में हाजिरी के बाद लौटे ही थे।
उस साक्षात्कार के बाद मैंने “लालू के इलाके में दो दिन” शीर्षक से एक लेख लिखा था। इस लेख को प्रो. के सी यादव, जिन्होंने चारा घोटाले के खोखलेपन को उजागर किया था, द्वारा लिखी गयी किताब में भी शामिल किया गया था।
मैंने इंडियन एक्सप्रेस में भी “श्रीमान बिश्वास के लिए एक घर” शीर्षक से एक मुख्य लेख लिखा था जिसमें मैंने आपके खिलाफ जांच जारी रखने के लिए सीबीआई अधिकारी को साल दर साल सेवा विस्तार दिये जाने की मंशा पर सवाल उठाया था।
मुझे याद है कि आपने उस लेख का हिंदी में अनुवाद कराया था और उसकी लाखों प्रतियां राज्य के कोने-कोने में, विशेषकर गरीब रैली के दौरान, वितरित कराई थी। यहां तक कि हिंदुस्तान टाइम्स के पटना संस्करण ने मेरे लेख के लाखों लोगों तक पहुंचने को लेकर एक खबर बाक्स में छापी थी।
उस लेख का शीर्षक नोबल पुरस्कार विजेता वी एस नायपॉल के लिखे एक उपन्यास के शीर्षक पर आधारित था। उस लेख के छपने के बाद श्री विश्वास के कलकत्ता स्थित आवास को उत्तर-पूर्व के कुछ आतंकवादियों द्वारा छिपने के ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल करने की खबरें आयी थीं। संक्षेप में, खोजबीन में माहिर यह अधिकारी, जिसे आपके पीछे लगाया था, अपने घर को अपराधियों के एक गिरोह की शरणस्थली बनने से नहीं बचा सका। नहीं, किसी मृत व्यक्ति पर तोहमत मढ़ने की हमारी परंपरा नहीं है। ए के बिश्वास की आत्मा को शांति मिले।
हमारे यहां एक दूसरी परंपरा भी है जिसके तहत प्रत्येक राजनेता पर भ्रष्टचार का आरोप जड़ दिया जाता है, आयकर के ब्यौरे में अपनी आमदनी छुपाने में नहीं सकुचाया जाता या संपत्ति की खरीद/बिक्री के समय उसका मूल्य कम दर्शाने में संकोच नहीं किया जाता या फिर अपने बच्चों की शादी में दहेज लेते/देते नहीं हिचकिचाया जाता।
मैंने चारा घोटाले की राजनीति का अध्ययन किया है। कहानी यूं है कि कुछ भ्रष्ट सरकारी अधिकारी भ्रष्ट ठेकेदारों से साठगांठ करके फर्जी बिल के जरिए जिला कोषागार से पैसे निकाल रहे थे। ये सब जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू हुआ था और आपके मुख्यमंत्री बनने के समय यह चलन जारी था।
आपके मुख्यमंत्रित्व काल में एक नौकरशाह ने इस चलन को पकड़ा। दरअसल, इस जालसाजी और रैकेट का पर्दाफाश करने का श्रेय आपको मिलना चाहिए था। लेकिन विडम्बना देखिए कि इस रैकेट के सरगना होने का आरोप मढ़कर आपको ही जेल में डाल दिया गया।
मुझे वे दिन याद हैं, जब आप बिहार की राजनीति के बेताज बादशाह थे। आप आम जनता के चेहते थे और यहां तक कि राष्ट्रीय राजनीति को भी नियंत्रित कर रहे थे। एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसकी एक अपील पर लाखों लोग उसके राजनीतिक कार्यों के लिए कोई भी रकम जुटाने को तैयार हों, वो भला एक छोटे से जिले में जानवरों के चारा के आपूर्तिकर्ताओं से साठगांठ करने जैसी ओछी हरकत क्यों करेगा? इस किस्म की सोच ही हास्यास्पद है।
मैं जगन्नाथ मिश्र को जानता हूं लेकिन मैं यह मानने को हरगिज तैयार नहीं कि उन्होंने चारा आपूर्तिकर्ताओं को कोषागार से लाखों रूपए निकालने के लिए बढ़ावा दिया होगा। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी राज्य, मान लीजिए कि मणिपुर, के विकास कार्यों के लिए केंद्र द्वारा आवंटित राशि में राजनेता/नौकरशाह/ठेकेदार लॉबी द्वारा किये गये घपले के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया जाये।
या फिर ताजा उदहारण लीजिए। हीरा व्यापारी नीरव मोदी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ करोड़ों रूपए की धोखाधड़ी करके देश छोड़कर भाग गया। भागने के कुछ दिनों पहले, वह दावोस गया और प्रधानमंत्री मोदी के साथ लिए गए एक सामूहिक तस्वीर में जगह पा गया। नीरव मोदी की धोखाधड़ी के समय अरुण जेटली देश के वित्तमंत्री थे। जेटली का कहना है कि धोखाधड़ी यूपीए के शासनकाल में शुरू हुई थी।
सीबीआई ने भाजपा के नरेन्द्र मोदी और अरुण जेटली या कांग्रेस के पी. चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? और फिर, किंगफिशर एयरलाइन्स के कर्मचारियों के भविष्य निधि में घपला करने और कई भारतीय बैंकों के हजारों करोड़ रूपए डकारने के बाद दर्जनों सूटकेसों के साथ विजय माल्या देश से भाग गया। वो भी राज्यसभा का सदस्य रहते हुए। सत्ता में बैठे लोगों से साठगांठ के बिना क्या वो देश से भाग सकता था? संबंधित मंत्रियों के खिलाफ इस मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की गयी?
नहीं श्रीमान, आप एक अलग तरह के राजनेता हैं। मैंने गौर किया है कि सभी राजनीतिक दल, चाहे वो कांग्रेस हो या सीपीआई या सीपीएम या सपा या फिर बसपा हो, ने संघ परिवार के साथ गठजोड़ किया है, लेकिन आप इससे अछूते रहे। मुझे याद है जब आपने साहस दिखाते हुए एक खतरनाक मिशन में लगे एल के आडवाणी को बिहार में घुसते ही गिरफ्तार कर लिया था। उनकी रथयात्रा हिन्दू/मुस्लिम एकता के लिए खतरा बन रही थी. और उनको गिरफ्तार करके आपने निर्दोष लोगों का खून नाहक बहने से बचा लिया था।
आपको अंदाजा नहीं था कि आप एक ऐसे हाथी को घायल कर रहे हैं जो अपने चोट पहुंचाने वाले को कभी नहीं भूलता। उन्होंने चारा घोटाले को आपको निपटाने का सबसे मुफीद अस्त्र माना।
किसी भी समझदार आदमी को आपके खिलाफ लगाया गया आरोप अजूबा लगेगा क्योंकि लूट के माल में हिस्सेदारी के लिए किसी मुख्यमंत्री का एक अदने से चोर से हाथ मिलाने की बात कुछ जंचती नहीं। पूरी सरकारी मशीनरी को आपको घेरने में लगा दिया गया और इसके लिए उन्होंने क्या किया?
उन्होंने चारा घोटाला को कई मुकदमों में बांट दिया। आपके खिलाफ इस किस्म के कई मुकदमों को दायर हुए 25 से 30 साल हो गये हैं। सभी मामलों के फैसले अभी नहीं आये हैं। ऐसा एक खास मकसद से किया जा रहा है। भारत में, कई सजाओं के एक साथ चलने का प्रावधान है। लेकिन आपके मामले में, आपको प्रत्येक सजा को एक के बाद एक पूरा करना है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि आप अपने अंतिम समय तक जेल में बंद रहें।
हाल में, एक तस्वीर देखकर मैं चैंक गया जिसमें एम्स में इलाज कराने के लिए दिल्ली जाने के दौरान ट्रेन में आपको धकेल कर बिठाया जा रहा था। क्या आपको हवाई मार्ग से भेजा जाना संभव नहीं था?
मेरे एक मित्र हैं जो मुझे आपके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते रहते हैं। उनकी वजह से मैं यह जान पाया कि आपके गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे। आपको उच्च रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत है। मुझे यह भी मालूम है कि आपके दिल की तीन बार सर्जरी हो चुकी है।
आप ही वो शख्स थे जिसने भारतीय रेल को मुनाफे में ला दिया और गरीबों के लिए रेलगाड़ियां चलवायीं। आपने लाखों करोड़ों रूपए फिजूल में खर्च करके पटना और दिल्ली के बीच बुलेट ट्रेन चलवाने के बारे में नहीं सोचा। इन्हीं वजहों से आपको हारवर्ड के छात्रों को यह समझाने के लिए बुलाया गया था कि आखिर कैसे आपने मरणासन्न स्थिति में पहुंची भारतीय रेल को मुनाफा कमाने वाले एक संस्थान में तब्दील किया।
अब आप 70 वर्ष के हो चुके हैं, आपने कभी जमानत नहीं तोड़ी, कभी अदालत की सुनवाई से गैरहाजिर नहीं रहे, किसी भी अदालती आदेश का कभी उल्लंघन नहीं किया, लेकिन फिर भी आपको जमानत नहीं दी जाती। कानून के किस किताब में यह लिखा है कि एक “सजायाफ्ता” कैदी का इलाज सिर्फ किसी सरकारी अस्पताल में ही हो सकता है? आपने केरल के आर. बालकृष्ण पिल्लई के बारे में शायद सुना होगा। उन्हें भी भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया था और जेल भेजा गया था। बीमार पड़ने पर उन्हें तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था और एक वातानुकूलित कमरे में रखा गया था।
उनकी कैद की अवधि एक साल की थी, लेकिन उन्होंने जेल भीतर कितने दिन बिताये? महज कुछ हफ्ते. मुझे यह अंतर करने के लिए माफ कीजिए कि वे एक क्षत्रिय थे और आप एक यादव। मुझे उस मित्र को उद्धृत करने की इजाजत दीजिए जिसने गुस्से से ज्यादा निराशा में भरकर लिखा था “हमें इस पूरे मामले को आभिजात्य पुलिस, बार और न्यायपालिका के जातिगत, वर्ग और समुदाय आधारित पूर्वाग्रह के हिसाब से देखना चाहिए। चारा घोटाले में जिन आईएएस अफसरों को दोषी करार दिया गया और जिन्हें लगभग पूरा जीवन जेल में बिताना पड़ा, वे सब निचली जातियों से ताल्लुक रखते थे। वित्त आयुक्त फूल सिंह कुर्मी (सब्जी उगाने वाली जाति) थे। बेक जूलियस अनुसूचित जनजाति से आते थे, और के. अरुमुगम एवं महेश प्रसाद अनुसूचित जाति से संबंध रखते थे। तत्कालीन मुख्य सचिव विजय शंकर दुबे बेदाग पाये गये। चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त सजल चक्रवर्ती दोषी पाये गये लेकिन उन्हें जमानत मिली और वे झारखंड के मुख्य सचिव के ओहदे तक पहुंच गये। इस मामले में सह-अभियुक्त और बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, जिनके काल में यह घोटाला शुरू हुआ, के साथ उनके सजातीय और सह-अभियुक्त आईएएस अफसर आर. एस. दुबे एवं कई पाठकों और मिश्राओं को उन्हीं मामलों में बरी कर दिया गया जिसमें लालू को दोषी करार देकर जेल भेज दिया गया।” रिकार्ड को संतुलित दर्शाने के गरज से एक हालिया फैसले में जगन्नाथ मिश्र को दोषी करार दिया गया है।
शिकार बने आईएएस अफसरों में एक, श्री अरुमुगम, से एक बार मिलने का अवसर मुझे मिला। पटना में उनका दफ्तर मेरे कार्यालय के निकट था। मैं उन्हें हमारे चर्च के एक समारोह में आमंत्रित करने के लिए उनके पास गया था। तब उन्हें यह इल्हाम नहीं था कि जल्द ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जायेगा। मेरे समुदाय की एक महिला, जिन्हें मैं जानता हू, अदालत जाकर यह आदेश ले आयीं कि किसी भी सजायाफ्ता को सत्ता में नहीं रहने दिया जायेगा और उसे हटा दिया जायेगा। हर किसी ने उस महिला की तारीफ की क्योंकि उक्त आदेश का पहला शिकार आप थे।
मैंने एक कॉलम में उक्त आदेश की आलोचनात्मक समीक्षा की थी और यह पाया कि उस याचिका को दाखिल करने का आधार ही गलत था। कोई भी संवेदनशील राज्य आपको जमानत दे देता ताकि आपके परिजन आपका सही तरीके से इलाज करा पायें।
अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर इलाज के लिए अमेरिका जा सकते हैं, तो आपके परिवार को भी इलाज के लिए आपको वहां ले जाने से रोकने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए। लेकिन आपकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए सीबीआई के वकील ने अदालत में क्या कहा?
उन्होंने तर्क दिया कि आप एनडीए सरकार के धुर विरोधी हैं और आप सरकार के खिलाफ जनमत उभार सकते हैं आदि। क्या ये सब जमानत याचिका ठुकराने का आधार हो सकते हैं? फिर भी, आपको जमानत नहीं दी गयी। अब जरा इस बारे में सोचिए कि एक केन्द्रीय मंत्री अपने आधिकारिक मशीनरी का उपयोग भगोड़ा क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी को ब्रिटेन से बाहर जाने में मदद के लिए करता है।
मैं वाकई बहुत दुखी हुआ जब मैंने 25 अप्रैल को आपके बेटे तेजस्वी यादव का ट्वीट पढ़ा “ एक लंबे अरसे के बाद दिल्ली स्थित एम्स में अपने पिता से मिला। उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हूं। ज्यादा सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखे। इस उम्र में, उन्हें लगातार देखभाल और उनके महत्वपूर्ण संकेतकों की निरंतर निगरानी की जरुरत है।”
फिर भी, केंद्र ने आपको रांची वापस भेज दिया क्योकि आपके स्वास्थ्य में कथित रूप से सुधार है। ऐसा लगता है कि वे आपको जेल बाहर नहीं आने देना चाहते। उन्हें डर है कि अगर आप बाहर आये तो बिहार सरकार के गिर जाने का खतरा है। बर्फ की जिस पतली सतह पर नीतीश कुमार फिसल रहे हैं, उसका खुलासा उस समय हो गया जब भाजपा/जद (यू) गठबंधन को हालिया उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
यह सही है कि आप चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन 2019 के आम चुनावों के प्रचार में आपकी मौन उपस्थिति भी भाजपा को भारी पड़ सकती है। यही वजह है कि आपको सलाखों के पीछे रखा जा रहा है। वे आपके बेटे/बेटियों के खिलाफ उनके जन्म से पहले हुए अपराधों के लिए भी मुकदमा करने में समर्थ हैं। और इस मामले में उनका अपना रिकार्ड कैसा है? भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ एक मुकदमे में, गवाहों की तो छोड़िए, मामले की सुनवाई करने वाले जज की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी।
उत्तर प्रदेश में, मुख्यमंत्री ने अपने और अपने पार्टी के लोगों के खिलाफ दायर मुकदमे वापस ले लिए। इन मामलों में हत्या से लेकर लूटपाट और उपद्रव तक के आरोप थे। विडम्बना देखिए कि ये सभी मुकदमे “वापस लिए जाने लायक” थे, जबकि आपके खिलाफ दर्ज 32 मामले कहीं ज्यादा पवित्र थे। आपको विवेक का कैदी बुलाने का मेरा विचार मौलिक नहीं है।
इस पदबंध का इस्तेमाल हमने डॉ. विनायक सेन, सोनी सोरी और इरोम शर्मीला के लिए किया है। यह आप पर भी सही उतरता है क्योंकि आप सिर्फ इसलिए जेल में बंद हैं कि आप अकेले शख्स हैं जिसने सत्ता के हुक्मरानों से समझौता नहीं किया और जिससे संघ परिवार खौफ खाता है।
मैं सिर्फ यही उम्मीद कर सकता हूं कि इस चिट्ठी के पहुंचने तक आपका स्वास्थ्य बेहतर हो जाये। आपको अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने वाले देखभाल और पोते/पोतियों के साथ की जरुरत है ताकि आप खुश रह सकें। मुझे उम्मीद है कि आपकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति सत्ता में बैठे लोगों को आपको जमानत देने के लिए प्रेरित करेगी।
ऐसे बहुत लोग हैं जो आपको भ्रष्ट मानते हैं, लेकिन उन्हें आपकी अहमियत का पता आपके जाने के बाद चलेगा। मुझे उम्मीद है कि ऐसा न होगा और आप सार्वजनिक जीवन में लौटेंगे। फिलहाल, मेरा यह रुदन जंगल में रोने जैसा दिखाई दे सकता है।
मेरे कुछ मित्र मुझ से आपके दोष सिद्धी के बारे में सवाल कर सकते हैं, लेकिन मैं उनसे सिर्फ यही कह सकता हूं कि ईसा मसीह को भी दोषी करार दिया गया था।
शुभकामनाओं एवं प्रार्थना सहित
आपका
ए जे फिलिप
(लेखक अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार है। हिन्दुस्तान टाइम्स समेत दूसरे लोकप्रिय समाचार पत्रों में संपादक रह चुके हैं।)
(द सिटिजन से साभार)
साभार : 



~विजय राजबली माथुर ©

Wednesday, May 9, 2018

धर्म आधारित राष्ट्र लोकतंत्र विरोधी अवधारणा है ------ अफलातून अफ़लू / सांप्रदायिकता है साम्राज्यवाद की प्रहरी ------ विजय राजबली माथुर

 * किसी धर्म आधारित राष्ट्र में लोकतंत्र कभी पनप नहीं सकता । संविधान , न्यायपालिका , और प्रेस का हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर अपमान कट्टरपंथियों के लोकतंत्र विरोधी रुख की ही बानगी है । गोलवलकरपंथी राष्ट्रतोड़क ‘राष्ट्रवादियों’ के चंगुल में में देश चला गया तो यह उसके अस्तित्व के लिए घातक होगा । इसलिए समय रहते इनके हिटलरी मंसूबों को उजागर करें और इनके खिलाफ़ चौतरफ़ा ढंग से सक्रिय हों ।
** एडवर्ड थाम्पसन ने 'एनलिस्ट इंडिया फार फ़्रीडम के पृष्ठ 50 पर लिखा है-"मुस्लिम संप्रदाय वादियों  और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों मे गोलमेज़ सम्मेलन के दौरान अपवित्र गठबंधन रहा। "
*** अफलातून साहब की इस चेतावनी " गोलवलकरपंथी राष्ट्रतोड़क ‘राष्ट्रवादियों’ के चंगुल में मे देश चला गया तो यह उसके अस्तित्व के लिए घातक होगा । इसलिए समय रहते इनके हिटलरी मंसूबों को उजागर करें और इनके खिलाफ़ चौतरफ़ा ढंग से सक्रिय हों ।" के मद्देनजर देश की जागरूक जनता और देश हितैषी दलों की मनसा - वाचा - कर्मणा एकता की महती आवश्यकता है।
Aflatoon Afloo
Varanasi
राष्ट्र की हिटलरी कल्पना फासीवाद के नाम से कुख्यात है । हिटलर ने ‘नस्ल’ की कथित शुद्धता और यहूदी विद्वेष की विक्षिप्तता को फैलाकर जर्मनी को भीषण बर्बरता और रक्तपात में डुबो दिया और विश्व भर की लांछना का पात्र बना दिया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का धर्म आधारित राष्ट्र भी उसी प्रकार का एक बर्बर उद्देश्य है । हिटलर से तुलना करके या हिटलर का उदाहरण देकर हम संघ-परिवार पर कोई काल्पनिक आरोप नहीं लगा रहे हैं । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गौरव-पुरुष गुरु गोलवलकर ने खुद १९३९ में लिखी अपनी पुस्तक ‘ वी ऑर आवर नेशनहुड डिफाइन्ड ‘ ( हम या हमारी राष्ट्रीयता परिभाषित ) ( अब उनके चेले अधिकृत रूप से कहने लगे हैं कि यह उनकी लिखी किताब नहीं है , उनका अनुवाद है ) में कहा था –

” नस्ल और इसकी संस्कृति की पवित्रता को बनाए रखने के लिए जर्मनी ने यहूदियों से अपने देश को रिक्त कर दुनिया को स्तम्भित कर दिया । नस्ल का गर्व यहाँ अपनी उच्चतम अभिव्यक्ति पाता है। जर्मनी ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि संस्कृतियों और नस्लों के फर्क जो बुनियाद तक जाते हैं , एक संपूर्ण इकाई में जज़्ब नहीं किए जा सकते । हम भारतीयों के लिए यह एक अच्छा सबक है जिससे लाभ उठाना चाहिए । “

यह सचमुच बड़े शर्म की बात है कि जिस विद्वेष और क्रूरता के लिए हिटलर का जर्मनी पूरी दुनिया में लांछित हुआ , गोलवलकर ने उसी की प्रशंसा की और भारत के लिए उसी हिटलरी रास्ते की सिफारिश की । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गुरु गोलवलकर के बताए हुए फासीवाद के रास्ते पर चल रहा है । वह जिस हिन्दू राष्ट्र की बात करता है , वह सिर्फ मुस्लिम विद्वेष तक सीमित नहीं है । स्त्रियों और शूद्र कही जाने वाली जातियों , जिन्हें सबसे अधिक धर्माचार्यों द्वारा अनुमोदित क्रूर प्रथाओं और परम्परागत ऊँच-नीच का शिकार होना पड़ा है , की दुर्दशा कम होने के बजाए , धर्म आधारित राष्ट्र में काफ़ी बढ़ जाएगी । सती प्रथा और बाल-विवाह पर रोक सम्बन्धी कानून हटाने और वर्ण व्यवस्था को स्थापित करने की मांग धर्म-संसद के प्रस्तावों में होने लगी थीं । स्त्रियों को सम्पत्ति में हक देने वाले हिन्दू कोड बिल का भी गोलवलकर ने विरोध किया था ।

इसलिए यदि आप कूप मंडूकता , धर्मान्धता , स्त्री उत्पीड़न और दलितों तथा पिछड़ों की सामाजिक दुर्दशा को देश की नियति नहीं बनाना चाहते तो हिन्दू राष्ट्र के नारे से सतर्क रहे। हम किस प्रकार पूजा पाठ करें , त्योहार किस ढंग से मनाएं , धार्मिक प्रतीकों का क्या अर्थ ग्रहण करें और दूसरे धर्म के अनुयायियों के साथ क्या व्यवहार करें , इन बातों को संघ परिवार और महंत मठाधीश नियंत्रित करने  की कोशिश करते हैं । इनके चलते हमारे धार्मिक आचरण की स्वाधीनता सुरक्षित नहीं है । ऐसे तत्वों को धार्मिक मान्यता और राजनैतिक समर्थन देना बन्द करें नहीं तो ये हमें एक अन्धी सुरंग में पहुंचा देंगे ।

दुनिया के कई धर्म आधारित राष्ट्रों में जनता का उत्पीड़न और रुदन हमसे छिपा नहीं है। धर्म आधारित राष्ट्र के रूप में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के बारे में हम जानते हैं कि इस्लामियत के नाम पर कैसे कठमुल्लों , सामन्तों , फौजी अफसरों , भ्रष्ट नेताओं और असामाजिक तत्वों का वह चारागाह बन गया है । क्या हम भारत में भी उसी दुष्चक्र को स्थापित करना चाहता हैं ? धर्म आधारित राष्ट्र लोकतंत्र विरोधी अवधारणा है । किसी धर्म आधारित राष्ट्र में लोकतंत्र कभी पनप नहीं सकता । संविधान , न्यायपालिका , और प्रेस का हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर अपमान कट्टरपंथियों के लोकतंत्र विरोधी रुख की ही बानगी है । गोलवलकरपंथी राष्ट्रतोड़क ‘राष्ट्रवादियों’ के चंगुल में देश चला गया तो यह उसके अस्तित्व के लिए घातक होगा । इसलिए समय रहते इनके हिटलरी मंसूबों को उजागर करें और इनके खिलाफ़ चौतरफ़ा ढंग से सक्रिय हों ।
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सांप्रदायिकता का आधुनिक इतिहास 1857 की क्रांति की विफलता के बाद शुरू होता है। चूंकि 1857 की क्रांति मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर के नेतृत्व मे लड़ी गई थी और इसे मराठों समेत समस्त भारतीयों की ओर से समर्थन मिला था सिवाय उन भारतीयों के जो अंग्रेजों के मित्र थे तथा जिनके बल पर यह क्रांति कुचली गई थी।ब्रिटेन ने सत्ता कंपनी से छीन कर जब अपने हाथ मे कर ली तो यहाँ की जनता को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने हेतु प्रारम्भ मे मुस्लिमों को ज़रा ज़्यादा  दबाया। 19 वी शताब्दी मे सैयद अहमद शाह और शाह वली उल्लाह के नेतृत्व मे वहाबी आंदोलन के दौरान इस्लाम मे तथा प्रार्थना समाज,आर्यसमाज,राम कृष्ण मिशन और थियोसाफ़िकल समाज के नेतृत्व मे हिन्दुत्व मे सुधार आंदोलन चले जो देश की आज़ादी के आंदोलन मे भी मील के पत्थर बने। असंतोष को नियमित करने के उद्देश्य से वाइसराय के समर्थन से अवकाश प्राप्त ICS एलेन आकटावियन हयूम ने कांग्रेस की स्थापना कारवाई। जब कांग्रेस का आंदोलन आज़ादी की दिशा मे बढ्ने लगा तो 1905 मे बंगाल का विभाजन कर हिन्दू-मुस्लिम मे फांक डालने का कार्य किया गया। किन्तु बंग-भंग आंदोलन को जनता की ज़बरदस्त एकता के आगे 1911 मे इस विभाजन को रद्द करना पड़ा। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन  एवं सर आगा खाँ को आगे करके मुस्लिमों को हिंदुओं से अलग करने का उपक्रम किया जिसके फल स्वरूप 1906  मे मुस्लिम लीग की स्थापना हुई और 1920 मे हिन्दू महासभा की स्थापना मदन मोहन मालवीय को आगे करके करवाई गई जिसके सफल न हो पाने के कारण 1925 मे RSS की स्थापना कारवाई गई जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करना था । मुस्लिम लीग भी साम्राज्यवाद का ही संरक्षण कर रही थी जैसा कि,एडवर्ड थाम्पसन ने 'एनलिस्ट इंडिया फार फ़्रीडम के पृष्ठ 50 पर लिखा है-"मुस्लिम संप्रदाय वादियों  और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों मे गोलमेज़ सम्मेलन के दौरान अपवित्र गठबंधन रहा। "


वस्तुतः मेरे विचार मे सांप्रदायिकता और साम्राज्यवाद सहोदरी ही हैं। इसी लिए भारत को आज़ादी देते वक्त भी ब्रिटश साम्राज्यवाद  ने पाकिस्तान और भारत  दो देश बना दिये। पाकिस्तान तो सीधा-सीधा वर्तमान साम्राज्यवाद के सरगना अमेरिका के इशारे पर चला जबकि अब भारत की सरकार  भी अमेरिकी हितों का संरक्षण कर रही है। भारत मे चल रही सभी आतंकी गतिविधियों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन अमेरिका का रहता है। हाल के दिनों मे जब बढ़ती मंहगाई ,डीजल,पेट्रोल,गैस के दामों मे बढ़ौतरी और वाल मार्ट को सुविधा देने के प्रस्ताव से जन-असंतोष व्यापक था अमेरिकी एजेंसियों के समर्थन से सांप्रदायिक शक्तियों ने दंगे भड़का दिये। इस प्रकार जनता को आपस मे लड़ा देने से मूल समस्याओं से ध्यान हट गया तथा सरकार को साम्राज्यवादी हितों का संरक्षण सुगमता से करने का अवसर प्राप्त  हो गया। 
यू एस ए के इशारे पर भारत विभाजन को धार्मिक आधार इसलिए प्रदान किया गया जिससे  इसके पीछे के साम्राज्यवादी मंसूबों को छिपाए रखा जा सके। कश्मीर के राजा हरी सिंह ने बेवजह ही नहीं भारत और पाकिस्तान से अलग एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में रहने का निर्णय किया था बल्कि उनको यू एस ए , ब्रिटेन व आर एस एस का समर्थन प्राप्त था। 




कश्मीर की बाह्य भौगोलिक स्थिति ही नहीं वरन इसके लद्दाख क्षेत्र में जोजीला दर्रे के नीचे पाया जाने वाला प्लेटिनम का आकर्षण भी यू एस ए को ललचा रहा था। ज्ञातव्य है कि प्लेटिनम न केवल स्वर्ण से भी अधिक मूल्यवान धातु है बल्कि यह यूरेनियम के निर्माण में भी सहायक है। यूरेनियम सिर्फ परमाणु बम ही नहीं परमाणु ऊर्जा में भी प्रयोग होता है इसलिए स्वतंत्र कश्मीर के शासकों को बहका कर यू एस ए इस यूरेनियम को भी हासिल करना चाहता था। किन्तु नेहरू, पटेल और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने मिल कर हरी सिंह को भारत में विलय के लिए विवश कर दिया था और कश्मीर में बाहरी लोगों के भूमि - क्रय को प्रतिबंधित करने हेतु अनुच्छेद 370 का प्राविधान संविधान में रखवाया था। यही वजह है कि आर एस एस , हिंदूमहासभा, जनसंघ ( अब भाजपा ) आदि साम्राज्यवादियों के समर्थक दल भारतीय संविधान और इसके प्राविधान अनुच्छेद 370 का शुरू से ही विरोध कर रहे हैं। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के एक मंत्री भी संविधान बदलने की बात कह चुके हैं और अब सरकार से बाकायदा प्रस्ताव देकर मांग की जा रही है।  





अतएव अफलातून साहब की इस चेतावनी " गोलवलकरपंथी राष्ट्रतोड़क ‘राष्ट्रवादियों’ के चंगुल में देश चला गया तो यह उसके अस्तित्व के लिए घातक होगा । इसलिए समय रहते इनके हिटलरी मंसूबों को उजागर करें और इनके खिलाफ़ चौतरफ़ा ढंग से सक्रिय हों ।" के मद्देनजर देश की जागरूक जनता और देश हितैषी दलों की मनसा - वाचा - कर्मणा एकता की महती आवश्यकता है। 
~विजय राजबली माथुर ©

Sunday, May 6, 2018

प्रतिरोध की संस्कृति : कौशल किशोर का साहित्य संसार ------ विजय राजबली माथुर







लखनऊ,  06-05-2018 :
कल दिनांक 05 मई 2018 को यू पी प्रेस क्लब, हजरतगंज, लखनऊ में कवि और लेखक कौशल किशोर की दो पुस्तकों  ' वह औरत नहीं महानद थी ' ( कविता संग्रह ) एवं ' प्रतिरोध की संस्कृति ' ( लेखों का संग्रह ) का विमोचन - लोकार्पण तथा समीक्षा कार्यक्रम वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में श्याम अंकुरम के कुशल संचालन द्वारा सम्पन्न हुआ। 
* प्रारम्भ में कौशल किशोर द्वारा कुछ चुनी हुई कविताओं का पाठ और उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया। इनमें  'तानाशाह ' कविता आज की परिस्थितियों पर भी उतनी ही लागू होती है जितनी रचना के समय थी। 
' वह औरत नहीं महानद थी ' में 1977 से 2015 तक की कविताओं का संकलन किया गया है। शीर्षक कविता के संबंध में उन्होने बताया कि यह 08 मार्च 2010 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर निकले जुलूस में एक विकलांग महिला के जोश व साहस की गाथा है। 
* डॉ  चंद्रेश्वर ने अपने उद्बोधन में प्रकाश डाला कि, कौशल किशोर की कवित्त यात्रा आधी सदी की है किन्तु 1967 से 1976 तक की कविताओं को इस संग्रह में शामिल नहीं किया गया है। यह संग्रह तीन काल खंड की कविताओं को शामिल करता है। प्रथम काल 1977 से 1986 तक की कविताओं का है जिनमें आक्रोश, संवेग और व्यवस्था से टकराव का जुनून पाया जाता है। 
द्वितीय काल 1990- 91 की कविताओं का है जिनमें स्थिरता भाव है। लगभग 16-17 वर्ष कविता रचना का विश्राम काल रहा और फिर, 
तृतीय काल 2009 से 2015 तक की कविताओं का है जिनमें सांझी विरासत को बचाने की लालसा है । इनकी भाषा सहज, स्थिर और संवाद वृद्धि की है। 
* जनसंदेश टाईम्स के प्रधान संपादक सुभाष राय ने काव्य - संग्रह की दो कविताओं ' मुट्ठी भर रेत  ' और ' अनंत यात्रा ' का उल्लेख करते हुये बताया कि यह संग्रह कौशल किशोर को एक बड़े कवि के रूप में प्रतिष्ठित करता है। 
* लेखक, नाटककार राजेश कुमार ने बताया की ' प्रतिरोध की संस्कृति ' में एक पत्रकार, टिप्पणीकार के रूप में 2009 से लिखे लेखों को संकलित किया गया है। इनमें सरकारों द्वारा संस्कृति संबंधी विरोधाभासों की प्रतिक्रिया परिलक्षित होती है। 
* एक  अन्य विद्वान का मत था कि, समय और राजनीति का इतिहास है यह काव्य - संग्रह। 
* वरिष्ठ पत्रकार गिरीश चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि, बदलाव मनुष्य की चेतना को बदलने से आता है और इस कसौटी पर यह काव्य - संग्रह एक सफल प्रयास है। प्रथम कविता ' कैसे कह दूँ ' इनके कवि रूप को स्थापित करती है। इनके निष्कर्ष महत्वपूर्ण है जिनके द्वारा 1992 से बढ़े पूंजीवाद - निजीकरण  का प्रतिरोध किया गया है। 
* कहानीकार शिवमूर्ति ने ' सुजानपुर के लड़के नाटक खेल रहे हैं ' कविता का विशेष उल्लेख करते हुये काव्य - संग्रह को उपयोगी बताया। 
* इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा कि, कविता की पहचान यह है कि, उसे पढ़ - सुन कर क्लासिक चीजों की याद आ जाये तो कवि सफल है। इस संदर्भ में उनको कौशल किशोर की कविता से कैफी आजमी याद आ जाते हैं। उन्होने इस कार्यक्रम को कार्ल मार्क्स की 200 वीं जयंती के अवसर पर रखे जाने को ऐतिहासिक बताया। 
* अपने अध्यक्षीय उद्बोद्धन में नरेश सक्सेना ने काव्य संग्रह से उद्धृत कुछ कंठस्थ कविताओं की चर्चा की और संग्रह को एक यादगार संकलन बताया। उन्होने इंगित किया कि, कौशल किशोर के साहित्य के संबंध में एक - पृष्ठीय परिशिष्ट 05 मई के अंक में देने के लिए सुभाष राय का भी सम्मान किया जाना चाहिए था। 
भगवान स्वरूप कटियार ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुये आमत्रित विद्वानों व साहित्य - प्रेमी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। 
मंचस्थ विद्वान वक्ताओं के अतिरिक्त श्रोताओं में जिनकी उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही उनमें डॉ अनिता श्रीवास्तव, रोली शंकर, डॉ निर्मला सिंह, मंजू प्रसाद, दीपा पाण्डेय, राम किशोर, ओ पी सिन्हा, के के शुक्ल, शकील सिद्दीकी, राजीव यादव ,आदियोग,विजय राजबली माथुर  भी थे। 
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05 मई 2018 के जनसंदेश टाईम्स के पृष्ठ - 8 पर कौशल किशोर के साहित्य से संबन्धित रचनाएँ : 









~विजय राजबली माथुर ©
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