वीर शिरोमणि झाँसी वाली रानी लक्ष्मी बाई (जिन्होंने १८५७ की क्रांति में साम्राज्यवादी ब्रिटिश सत्ता को ज़बरदस्त चुनौती दी थी )हों या उनसे भी पूर्व वीर क्षत्र साल की माँ रानी सारंधा हों (जिन्होंने विदेशी शत्रु के सम्मुख घुटने टेकने की बजाय अपने मरणासन पति राजा चम्पत राय को कटार भोंक कर स्वंय भी प्राणाहुति दे दी थी )या रानी पद्मावती और उनकी सहयोगी साथिने हों ऐसे अनगिनत विभूतिया हमारे देश में हुई हैं जो व्यवस्था से टकरा कर अमर हो गईं और एक मिसाल छोड़ गईं आने वाली पीढियो के लिए ,परन्तु खेद है कि आज हमारी मातृ शक्ति इन कुर्बानियों को भुला चुकी है . यों तो ऋतु परिवर्तन पर स्वास्थ्य रक्षा हेतु नवरात्र पर्व का सृजन हुआ है और उपवास स्त्री -पुरुष सभी के लिए बताया गया है परन्तु करवा चौथ जैसे भेद -भाव मूलक उपवास स्त्री को दंड से अधिक कुछ नहीं हैं ,उसका कोई औचित्य नहीं है .नवरात्रों का उपवास हमारे स्थूल ,कारण और सूक्ष्म शरीर की शुद्धि करता है.लोग भ्रम वश इसे व्रत कहते हैं जबकि व्रत का मतलब संकल्प से होता है.जैसे कोई सिगरेट,शराब आदि बुरी आदतें छोड़ने का संकल्प ले तो यह व्रत होगा .
श्री श्री रवि शंकर कहते हैं -उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थों से मुक्त हो जाता है ,मौन द्वारा वचनों में शुद्धता आती है और बातूनी मन शांत होता है और ध्यान के द्वारा अपने अस्तित्व की गहराईयों में डूब कर हमें आत्म निरीक्षण का अवसर मिलता है .यह आंतरिक यात्रा हमारे बुरे कर्मों को समाप्त करती है.नवरात्र आत्मा अथवा प्राण का उत्सव है जिसके द्वारा ही महिषासुर (अर्थात जड़ता ),शुम्भ -निशुम्भ (गर्व और शर्म )और मधु -कैटभ (अत्यधिक राग -द्वेष )को नष्ट किया जा सकता है .जड़ता ,गहरी नकारात्मकता औरमनोग्रंथियां (रक्त्बीजासुर ),बेमतलब का वितर्क (चंड -मुंड )और धुंधली दृष्टि (धूम्र लोचन )को केवल प्राण और जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठा कर ही दूर किया जा सकता है .
आज जनता इन विद्वानों का मान तो करती है परन्तु उनके द्वारा बताई बातों को मानने को कतई तैयार नहीं है .हमारे ब्लॉग जगत के एक विद्वान कमेन्ट करने में बहुत माहिर हैं ,मैंने उनसे इस समस्या पर मार्ग दर्शन माँगा तो वह पलायन कर गए .खैर सुनिये एक और दुर्गा स्तुति :-
1 comment:
माफ़ कीजिये विजय माथुर जी आपकी बात से एक जगह असहमत हूँ...करवाचौथ एक पर्व है श्रद्धा का, एक विश्वास का यह कोई मजबूरी नहीं है...यह तो महिलाएं खुद रखती है..... अब आप बोलेंगे सिर्फ महिलाएं ही उपवास क्यूँ रखें तो ऐसे ना जाने कितने क्यूँ का जवाब हमारे पास नहीं...यह तो हिन्दू संस्कृति है..पुरुष भी बहुत कुछ करते हैं अपनी पत्नियों के लिए...लेकिन उन्हें नज़रअंदाज कर दिया जाता है..
वैसे भी यह प्रथाएं अपने आखिरी दौर में हैं...शायद हमारी पीढ़ी ही आखिरी हो जिसमे यह सब कुछ होगा....आप माने या ना माने यह कुछ प्रथाएं ऐसी हैं जो वैवाहिक रिश्ते को मजबूत बनाती हैं...वरना भारत में भी अमेरिका वाला हाल होगा ..शादी कम और तलाक ज्यादा...
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