Tuesday, October 19, 2010

आपने दशहरा कैसे मनाया ?

परसों  आश्विन शुक्ल पक्ष  की दशमी थी जिसे विजया दशमी के रूप में मनाया जाता है .किसी ने रावण का पुतला फूंक कर ,किसी ने अखंड रामायण का पाठ बैठा कर ,आपने भी किसी तरह मनाया ही होगा ,वह तो आप ही बता सकते है ,हमने कैसे मनाया आपको बता देते हैं .हमने तो साधारण तरीके से हवन किया उसमे -अथर्ववेद कांड ३ के सूक्त १९ के मन्त्र १ से ८ एवं अ.वेद कांड ११ सूक्त ९ के मन्त्र १ से ३ कुल ग्यारह विशेष मन्त्रों से अतिरिक्त आहूतिया दी .हम तो किसी प्रकार के पाखण्ड का झमेला करते नहीं हैं ,हम जैसा कि मेरी श्रीमती जी ने इसी ब्लाग में "मानवता की सेवा " शीर्षक लेख में बताया है लोगो के भले के उपाय करते ,बताते और लिखते हैं .श्री दीनानाथ " दिनेश"जी ने सच्ची पूजा के बारे में कहा है ,प्रस्तुत है :-

   जाग-२ रे जीव  जगत में क्या न तुझे अब भी सूझा .
   उसे ह्रदय से लगा न जिसका कोई भी अपना दूजा ..
  सच्चा सेवा भाव इसी में शुद्ध भक्ति -भंडार भरा .
  प्राणी मात्र से प्रेम यही है अलख निरंजन की पूजा ..
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धरती पर सुख -शांती बढाओ ,देकर निज श्रम -शक्ति .
 मानवता का अर्थ यही है ,और यही प्रभु -भक्ति ..

आज कल धर्म और विज्ञान को लेकर तरह -२ की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं ;आत्मा -परमात्मा का मखौल उड़ाया जा रहा है .रयूमर  स्पीचउटेड सोसाईटी के लोग ब्लाग जगत में भी फ़ैल गए है वे जान-बूझ कर उल्टी -पुलटी बातें लिख कर गंभीर लोगो को उसी प्रकार आउट करते जा रहे हैं जिस प्रकार ख़राब मुद्रा ,अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है .उस पर तुर्रा यह कि इसे लोगों को 'तितली ,मधु -मक्खी और डरपोंक' की तरह भाग जाने की संज्ञा दी जा रही है .
जिन विषयों पर विस्तार से अपने इस ब्लाग में पहले भी लिख चुका हूँ और आगे लिखने के क्रम में है उन पर ख्वामख्वाह  की बहसें चलायी जा रहीं हैं .ऐसे लोग यह भूल रहे हैं कि सच्चाई छिप नहीं सकती लाख दबाने पर भी ,खैर अपनी -२ अक्ल से ही कोई भी चल सकता है .
अब दीपावली आ रही है ,अभी से आप सब को बहुत -२ शुभ -कामनाएं .

(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

2 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Ek tyonhar ki baat par bhi bahut sunder jeevan darshan saamne rakha aapne.... achha laga padhkar

डॉ टी एस दराल said...

आपके विचार श्रेष्ठ हैं । मैं भी किसी भी तरह के पाखण्ड से सरोकार नहीं रखता । पर्वों के मौसम की शुभकामनायें ।