भारत क़े प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद की जयंती प्रतिवर्ष ०३ दिसंबर को धूम धाम से मनाई जाती है.आइये देखें इतनी विलक्षण क्षमता प्राप्त कर क़े वह कैसे इतना ऊपर उठ सके.
उनकी जन्म कुंडली से स्पष्ट है कि चन्द्रमा से केंद्र स्थान में बृहस्पति बैठकर गजकेसरी योग बना रहा है इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति अनेक मित्रों,प्रशंसकों व सम्बन्धियों में घिरा रहता है व उनके द्वारा सराहा जाता है.स्वभाव से नम्र,विवेकवान व गुणी होता है.तेजस्वी,मेधावी,गुणज्ञ,तथा राज्य पक्ष में प्रबल उन्नति प्राप्त करने,उच्च पद प्राप्त करने तथा मृत्यु क़े बाद भी अपनी यश गाथा अक्षुण रखने वाला होता है.ठीक ऐसे ही थे राजेन्द्र बाबू जिनका जन्म बिहार क़े छपरा जिले में जीरादेई ग्राम में हुआ था.एक किसान परिवार में जन्म लेकर अपने बुद्धि कौशल से राजेन्द्र बाबू ने वकालत पास की उस समय कायस्थ वर्ग सत्ता क़े साथ था परन्तु राजेन्द्र बाबू ने गोपाल कृष्ण गोखले क़े परामर्श से देश की आजादी क़े आन्दोलन में कूदने का निश्चय किया और कई बार जेल यात्राएं कीं.राजेन्द्र बाबू ने स्वंत्रता आन्दोलन क़े दौरान जेल में रहकर कई पुस्तकें लिखीं जिन में 'खंडित भारत' विशेष उल्लेखनीय है.इसमें राजेन्द्र बाबू ने तभी लिख दिया था कि यदि अंग्रेजों की चाल से देश का विभाजन हुआ तो क्या क्या समस्याएँ उठ खडी होंगी और हम आज देखते हैं कि दूर दृष्टि कितनी सटीक थी.डा.राजेन्द्र प्रसाद मध्यम मार्ग क़े अनुगामी थे और उन्हें नरम तथा गरम दोनों विचारधाराओं का समर्थन प्राप्त था.जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस महात्मा गांधी क़े उम्मीदवार डा.पट्टाभि सीता रमैया को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हो गये तो गांधी जी क़े प्रभाव से उनकी कार्यकारिणी में कोई भी शामिल नहीं हुआ और सुभाष बाबू को पद त्याग करना पडा.उस समय कांग्रेस की अध्यक्षता राजेन्द्र बाबू ने संभाली और स्वाधीनता आन्दोलन को गति प्रदान की.राजेन्द्र बाबू की कुडली क़े चतुर्थ भाव में मीन राशी है जिसके प्रभाव से वह धीर गंभीर और दार्शनिक बन सके.इसी कारण धार्मिक विचारों क़े होते हुए भी वह सदा नवीन विचारों को ग्रहण करने को प्रस्तुत रहे.राजेन्द्र बाबू ने एक स्थान पर लिखा है कि यदि जो कुछ पुरातन है और उससे कोई नुक्सान नहीं है तो उसका पालन करने में कोई हर्ज़ नहीं है लेकिन उनके इसी भाव में स्थित हो कर केतु ने उनको जीवन क़े अंतिम वर्ष में कष्ट एवं असफलता भी प्रदान की.पंडित नेहरु से मतभेद क़े चलते राजेन्द्र बाबू को तीसरी बार राष्ट्रपति पद नहीं मिल सका और इस सदमे क़े कारण ६ माह बाद उनका निधन हो गया.परन्तु इसी केतु ने उन्हें मातृ -पितृ भक्त भी बनाया विशेषकर माता से उन्हें अति लगाव रहा.एक बार माता की बीमारी क़े चलते बोर्ड परीक्षा में वह एक घंटा की देरी से परीक्षा हाल में पहुंचे थे और उनकी योग्यता को देखते हुए ही उन्हें परीक्षा की अनुमति दी गयी थी तथा राजेन्द्र बाबू ने उस परीक्षा को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था.षष्ठम भावस्थ उच्च क़े चन्द्र ने भी उन्हें हर प्रकार क़े सुख प्राप्त करने में सहायता की.नवम क़े बृहस्पति तथा दशम क़े राहू ने राजेन्द्र बाबू को राजनीति में दक्षता प्रदान की तो द्वादश क़े सूर्य ने शिक्षा क़े क्षेत्र में प्रसिद्धि दिला कर दार्शनिक बना दिया.
समय करे नर क्या करे,
समय बड़ा बलवान
असर ग्रह सब पर करे
परिंदा,पशु,इंसान.
हम देखते हैं कि विद्वान् कवि क़े ये उदगार राजेन्द्र बाबू पर हू ब हू लागू होते हैं.उनके जन्मकालीन ग्रह नक्षत्रों ने उन्हें स्वाधीन भारत क़े प्रथम राष्ट्रपति क़े पद तक पहुंचाया.आजादी से पूर्व वह संविधान निर्मात्री सभा क़े अध्यक्ष भी रहे.अपने पूर्वकालीन संस्कारों से अर्जित प्रारब्ध क़े आधार पर ग्रह नक्षत्रों क़े योग से डा.राजेन्द्र प्रसाद स्तुत्य बन सके.
(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
4 comments:
aadarniy sir
viae to main in jyotish shastro par kam ki vishwas karti hun aur karm ko pradhanta deti hun .lekin aapki baat bhi sahi lagti hai.kuchh to inka prabhau jaroor hota hoga par main bachpan se hi sunti aai hun ki karm karo so vahi baat man me gaanth ban kar rah gai hai.
par aapka aalekh bahut hi achha laga .
dhantvaad
poonam
bahut badhiya aalekh, visheshkar dr rajendra babu ko chunana bahut achhaa lagaa....main jyotish par viswas karataa hun lekin vigyaan nahi kalaa ke rup me..ise pramaanik nahi maanaa jaanaa chaahiye.
जानकारी पूर्ण आलेख ....राजेन्द्र प्रसाद जी बारे में में नए ढंग से जानकारी के लिए शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
पूनम जी ,अरविन्द जी ,केवल राम जी,
धन्यवाद आपके विचारों के लिए.मैं खुद काफी लम्बे अरसे तक ज्योतिष के खिलाफ था (कारण समाज में प्रचलित ढोंगी चलन से सख्त चिढ थी.बार्डर सेक्युरिटी फ़ोर्स से रिटायर्ड एक सब इन्स्पेक्टर सा : ने ज़बरदस्ती मेरा हाथ देख कर जो बातें बताईं थीं हूँ -ब -हूँ सही निकलीं.उसी के बाद सतत अध्यन द्वारा मैं ज्योतिष ज्ञान हासिल कर सका तब से लगातार पत्र -पत्रिकाओं ,मेग्जीन्स में लिख कर ढोंग व पाखण्ड का तीव्र विरोध करता तथा ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार समझाने का प्रयास करता हूँ ;जो लोग लाभान्वित हुए उसके लिए खुशी है,जो लोग नहीं समझना चाहते उन्हें हम भी ज़बरदस्ती नहीं समझाना चाहते.वैसे ज्योतिष मानव जीवन को सुन्दर ,सुखद और समृद्ध बनाने का विज्ञान है, न क़ि मनोवैज्ञानिक रूप से मनोरंजन करने की कला ,जैसा क़ि कुछ विद्वान सोचते हैं.
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