काफी अरसा पूर्व आगरा में आर्य समाज क़े वार्षिक निर्वाचन में गोलियां खुल कर चलीं थीं.यह कौन सी अहिंसा है?जिस पर स्वामी जी ने सर्वाधिक बल दिया था. स्वभाविक है कि, यह सब नीति-नियमों की अवहेलना का ही परिणाम है,जबकि आर्य समाज में प्रत्येक कार्यक्रम क़े समापन पर शांति-पाठ का विधान है.यह शांति-पाठ यह प्रेरणा देता है कि, जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में विभिन्न तारागण एक नियम क़े तहत अपनी अपनी कक्षा (Orbits ) में चलते हैं उसी प्रकार यह संसार भी जियो और जीने दो क़े सिद्धांत पर चले.परन्तु एरवा कटरा में गुरुकुल चलाने वाले एक शास्त्री जी ने रेलवे क़े भ्रष्टतम व्यक्ति जो एक शाखा क़े आर्य समाज का प्रधान भी रह चुका था क़े भ्रष्टतम सहयोगी क़े धन क़े बल पर एक ईमानदार कार्यकर्ता पर प्रहार किया एवं सहयोग दिया पुजारी व पदाधिकारियों ने तो क्या कहा जाये कि, आज सत्यार्थ-प्रकाश क़े अनुयायी ही सत्य का गला घोंट कर ईमानदारी का दण्ड देने लगे हैं.यह सब धर्म नहीं है.परन्तु जन-समाज ऐसे लोगों को बड़ा धार्मिक मान कर उनका जय-जयकारा करता है.आज जो लोगों को उलटे उस्तरे से मूढ़ ले जाये उसे ही मान-सम्मान मिलता है.ऐसे ही लोग धर्म व राजनीति क़े अगुआ बन जाते हैं.ग्रेषम का अर्थशास्त्र में एक सिद्धांत है कि,ख़राब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है.ठीक यही हाल समाज,धर्म व राजनीति क़े क्षेत्र में चल रहा है.
दुनिया लूटो,मक्कर से.
रोटी खाओ,घी-शक्कर से.
एवं
अब सच्चे साधक धक्के खाते हैं .
फरेबी आज मजे-मौज उड़ाते हैं.
आज बड़े विद्वान,ज्ञानी और मान्यजन लोगों को जागरूक होने नहीं देना चाहते,स्वजाति बंधुओं की उदर-पूर्ती की खातिर नियमों की गलत व्याख्या प्रस्तुत कर देते हैं.राम द्वारा शिव -लिंग की पूजा किया जाना बता कर मिथ्या सिद्ध करना चाहते हैं कि, राम क़े युग में मूर्ती-पूजा थी और राम खुद मूर्ती-पूजक थे. वे यह नहीं बताना चाहते कि राम की शिव पूजा का तात्पर्य भारत -भू की पूजा था. वे यह भी नहीं बताना चाहते कि, शिव परमात्मा क़े उस स्वरूप को कहते हैं कि, जो ज्ञान -विज्ञान का दाता और शीघ्र प्रसन्न होने वाला है. ब्रह्माण्ड में चल रहे अगणित तारा-मंडलों को यदि मानव शरीर क़े रूप में कल्पित करें तो हमारी पृथ्वी का स्थान वहां आता है जहाँ मानव शरीर में लिंग होता है.यही कारण है कि, हम पृथ्वी -वासी शिव का स्मरण लिंग रूप में करते हैं और यही राम ने समझाया भी होगा न कि, स्वंय ही लिंग बना कर पूजा की होगी. स्मरण करने को कंठस्थ करना कहते हैं न कि, उदरस्थ करना.परन्तु ऐसा ही समझाया जा रहा है और दूसरे विद्वजनों से अपार प्रशंसा भी प्राप्त की जा रही है. यही कारण है भारत क़े गारत होने का. जैसे सरबाईना और सेरिडोन क़े विज्ञापनों में अमीन सायानी और हरीश भीमानी जोर लगते है अपने-अपने उत्पाद की बिक्री का वैसे ही उस समय जब इस्लाम क़े प्रचार में कहा गया कि हजरत सा: ने चाँद क़े दो टुकड़े कर दिए तो जवाब आया कि, हमारे भी हनुमान ने मात्र ५ वर्ष की अवस्था में सूर्य को निगल लिया था अतः हमारा दृष्टिकोण श्रेष्ठ है. परन्तु दुःख और अफ़सोस की बात है कि, सच्चाई साफ़ करने क़े बजाये ढोंग को वैज्ञानिकता का जामा ओढाया जा रहा है.
यदि हम अपने देश व समाज को पिछड़ेपन से निकाल कर ,अपने खोये हुए गौरव को पुनः पाना चाहते हैं,सोने की चिड़िया क़े नाम से पुकारे जाने वाले देश से गरीबी को मिटाना चाहते हैं,भूख और अशिक्षा को हटाना चाहते हैंतो हमें "ॐ नमः शिवाय च "क़े अर्थ को ठीक से समझना ,मानना और उस पर चलना होगा तभी हम अपने देश को "सत्यम,शिवम्,सुन्दरम"बना सकते हैं.आज की युवा पीढी ही इस कार्य को करने में सक्षम हो सकती है.अतः युवा -वर्ग का आह्वान है कि, वह सत्य-न्याय-नियम और नीति पर चलने का संकल्प ले और इसके विपरीत आचरण करने वालों को सामजिक उपेक्षा का सामना करने पर बाध्य कर दे तभी हम अपने भारत का भविष्य उज्जवल बना सकते हैं.काश ऐसा हो सकेगा?हम ऐसी आशा तो संजो ही सकते हैं.
(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
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