Sunday, May 29, 2011

कुछ लघु कथाएं .

एक ब्लागर साहब ने   जो चार लघु-कथाएं एवं आलेख आदि ३० .०५ २०११ तक  प्रेषित करने का ई. मेल बहुत पहले किया था जब  उन्हें २६ .०५ .२०११ को ई.मेल द्वारा प्रेषित किया गया तो  उसके  जवाब में उन्होंने सूचित किया वे पहले ही प्रेस को सामग्री भेज चुके अतः चारों लघु कथाएं   (१.-बादशाह की मूर्खता,२ .-झुकी मूंछ की कीमत,३.-फर्स्ट कौन?,४.-हैंग टिल डेथ ) एवं संक्षिप्त आलेख इसी ब्लाग पर सार्वजनिक कर रहे हैं-.



लघु कथा का महत्त्व 

जब से पृथ्वी पर मनुष्य का आविर्भाव हुआ 'कथा' या कहानी का भी प्रादुर्भाव हुआ है.पहले लेखन के ये साधन न थे तब लोग सुनाते और सुनते थे.इसलिए 'स्मृति' एवं 'श्रुति' के रूप में पुरानी कथाएं संगृहित हैं.विष्णु शर्मा का पञ्च-तंत्र विभिन्न लघु-कथाओं को समेटे हुए एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें दी गई शिक्षाएं आज भी ज्यों की त्यों लाभ-प्रद हैं.बचपन में अपने बड़ों से छोटी-बड़ी अनेकों कहानियां सुनते थे.आज का युग तीव्र-गामी युग है और आज लोगों के पास ज्यादा वक्त का आभाव है.अतः लम्बी-लम्बी कहानियों और कथाओं ने अब छोटा या 'लघु' रूप अपना लिया है.'सत्सैय्या' के दोहों की भांति ही ये लघु कथाएं  भी अपने में प्रभावकारी असर छोडती हैं.बच्चों ही नहीं बड़ों पर भी लघु कथाओं का व्यापक प्रभाव पड़ता है.अतः हम कह सकते हैं कि लघु-कथाएं आज समय की मांग हैं एवं इनका महत्त्व निरन्तर बढ़ता ही जाएगा.

(१)बादशाह की  मूर्खता 

कुछ सौ साल पहले हमारे देश में एक लोकप्रिय और जन-हितैषी बादशाह का शासन था. बादशाह ने जनता के हित में अनेकों कार्य किये थे. धार्मिक सहिष्णुता उनका प्रबल हथियार था. सभी प्रकार की प्रजा उनके राज्य में सुखी थी.मेल-जोल की प्रवृति अपनाने के कारण उन्हें युद्धों का भी कम सामना करना पड़ता था. एक बार राजपूताना के दो वीर किन्तु गरीब लोग बादशाह के दरबार में नौकरी मांगने गए. उन वीरों ने अपनी बहादुरी के अनेकों किस्से बादशाह को सुनाएँ और अपनी सेना में भर्ती कर लेने का अनुरोध किया.बादशाह यों तो बहुत काबिल था लेकिन पता नहीं उस वक्त उसके दिमाग में क्या सूझा जो उसने उन वीरों को अपनी वीरता दिखाने का हुक्म सूना दिया.

अब वीर बेचारे वीरता का और क्या सुबूत दिखाते .उन दोनों ने अपनी -अपनी तलवारें निकाल लीं और परस्पर दरबार में ही युद्ध करने लगे.दोनों सच में बहुत वीर थे,कोई भी कम या ज्यादा नहीं था.दोनों ने एक लम्बे संघर्ष में बराबर की टक्कर दी. लेकिन बादशाह को सुबूत तो वीरता का देना था,अतः अंत में दोनों ने एक-दुसरे के सीने में अपनी-अपनी तलवारें भोंक दीं.दोनों एक साथ वीर-गति को प्राप्त हो गए. यह उस महान बादशाह की मूर्खता नहीं तो और क्या थी? 

(२)झुकी मूंछ की की कीमत 

बात आजादी से पहले की है जब आज जैसी समानता की बातें प्रचालन में नहीं थीं.एक गाँव में एक दुकानदार बनिए ने अपनी दोनों मूंछें ऊंची कर लीं. गाँव के ही एक दबंग ठाकुर साहब को यह नागवार गुजरा.उन्होंने उस बनिए से कहा तुम मूंछ ऊंची नहीं रख सकते तुरंत नीची करो.बनिया तो दुकानदार था ,उसने तुरंत कहा ठाकुर साहब आप को इसकी कीमत अदा करनी पड़ेगी. ठाकुर साहब ने बनिए की तरफ दस का एक नोट उछल दिया और यह कहते हुए चले गए लो कीमत और मूंछें झुका लेना. 
उस बनिए ने अपनी एक और की मूंछ तो झुका ली और एक और की ऊंची ही रहने दी. ऐसे ही चलता रहा. एक दिन फिर वह ठाकुर साहब उधर से निकले तो यह देख कर हैरान हुए और पूंछा कि यह क्या तुम्हारी एक तरफ की मूंछ ऊंची क्यों है?बनिए ने कहा आपने दस रु. दिए थे इतने में तो एक ही तरफ की मूंछ नीचीहो सकती है. ठाकुर साहब ने दस का एक और नोट निकाल कर उस बनिए को दिया और उसने दूसरी भी मूंछ नीची कर ली.उसने मूंछ नीची करने की पूरी कीमत वसूल ली थी. 

(३)फर्स्ट कौन?

जिन्ना साहब काफी दुबले पतले थे और खेल-कूद से दूर रहते थे.एक बार एक व्यायाम शिक्षक ने जबरदस्ती जिन्ना साहब को भी उनकी क्लास के बच्चों के साथ दौड़ में भाग लेने पर मजबूर कर दिया. टीचर ने सिर्फ दूरी बताई थी और दिशा नहीं.सारे बच्चे जिस दिशा में दौड़े उसकी ठीक उल्टी दिशा में दौड़ कर जिन्ना साहब आये.उन्होंने शिक्षक से उन्हें फर्स्ट घोषित करने का दावा किया जबकि शिक्षक उस छात्र को फर्स्ट घोषित कर चुके थे जो सबके साथ दौड़ कर सबसे पहले आया था.
जिन्ना साहब ने हेड मास्टर साहब से अपील की .हेड मास्टर साहब ने गेम्स टीचर से पूंछा आपने किस दिशा में दौड़ने को कहा था. टीचर ने ईमानदारी से कहा दिशा का नाम नहीं लिया था. हेड मास्टर साहब ने टीचर की गलती मानते हुए जिन्ना साहब को भी दुसरे छात्र के साथ फर्स्ट घोषित कर दिया.यही जिन्ना साहब मशहूर वकील बने और पाकिस्तान के संस्थापक भी.

(४)हैंग टिल डेथ 

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खाँ के पुत्र सैय्यद महमूद बहुत काबिल वकील थे और कोई केस नहीं हारते थे. लेकिन वह जबरदस्त पीने वाले थे और पीते वक्त किसी से कोई बात नहीं करते थे.एक बार पंजाब की किसी रियासत के राज कुमार को फांसी की सजा हो चुकी थी और उसके अभिभावक किसी के कहने पर उनके पीते समय पहुँच गए और उनके पाँव पकड़ कर उसे बचा लेने की गुहार करने लगे. पहले तो उन्होंने उनको खूब डबटा फिर उस केस को हाथ में ले लिया और कोई अपील वगैरह नहीं की.आखिर फंसी देने का वक्त आ गया.वह अपने मुवक्किल को बचने का आश्वासन लगातार देते रहे.
फंसी स्थल पर जैसे ही उस राज कुमार के गले में रस्सी खींची गई सैय्यद महमूद साहब ने अपनी गुप्ती निकाल कर रस्सी काट दी.राज कुमार फंदा बंधे हुए गड्ढे में गिर पड़ा.उन्होंने दुबारा फंदा नहीं लगाने दिया. उन पर सरकारी कार्य में बढ़ा डालने का भी मुकदमा चला.

महमूद साहब ने कोर्ट में कहा हैंग का आर्डर था और हैंग किया जा चूका है वह नहीं मारा तो दुबारा फांसी नहीं दी जा सकती.एक वकील के नाते उनका काम अपने मुवक्किल को बचाना था सो उन्होंने बचा लिया और किसी सरकारी कार्य में बाधा नहीं डाली क्योंकि उसे हैंग तो किया ही गया था.महमूद साहब दोनों मुकदमें जीत गए ,परन्तु तभी से 'हैंग टिल डेथ' लिखने की परिपाटी शुरू हो गई.

8 comments:

SANDEEP PANWAR said...

चारों लघु कथाएं बढिया लगी,

Sunil Kumar said...

चारों लघु कथाएं रोचक और ज्ञानवर्धक है पढ़वाने के लिए आभार

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर हैं चारो लघु कथाएँ| धन्यवाद|

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

रोचक कथाएं !

मनोज कुमार said...

बहुत ही प्रेरक प्रसंग और कथाएं।

वीना श्रीवास्तव said...

हां ये कहानियां सुनते आ रहे हैं....झुकी मूंछ की कीमत छोड़कर.. फिर भी बहुत अच्छा लगा दोबारा से पढ़कर...
बहुत अच्छी लघु कथाएं......

डॉ टी एस दराल said...

आखिरी लघु कथा में बड़ी अच्छी जानकारी मिली ।
आपने कुछ हट कर लिखा , अच्छा लगा ।
विषय बदलते रहने से पोस्ट में दिलचस्पी बढती है ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

प्रेरणादायी हैं चारों लघुकथाएं ....