Monday, June 6, 2011

एक बिल्ली की याचना भरी पुकार

याचना वह बोली है जो किसी के समक्ष झुक कर उसका एहसान मानते हुए की जाती है.केवल मनुष्य ही नहीं जानवर भी जरूरत पड़ने पर ऐसा ही करते हैं.अभी गत माह हमारे कुछ रिश्तेदार आये थे उनके रहने के दौरान रात में बिजली गुल होने पर कुछ लेने हेतु सबसे ऊपर के कमरे को खोलते ही एक बिल्ली चुप-चाप दुबक गई होगी और वहीं छिपी बैठी रही.जब पता चला तो उसके निकलने हेतु द्वार खुला छोड़ दिया गया.परन्तु बिल्ली ने एक भूरा और एक काला बच्चा वही दे दिया अब वे उसी में उछल-कूद करते थे निकलते नहीं थे.एक दिन बिल्ली और उसका भूरा बच्चा बाहर था और जैसे ही काला वाला बहार निकला उस कमरे का द्वार बंद कर दिया तो उन सबने गैलरी में ही डेरा डाल लिया.तीन दिन पहले सुबह के समय बिली के साथ उसके दोनों बच्चे भी बाहर थे तब गैलरी का भी द्वार बंद कर दिया.अब उन सबको खुले आँगन में रहना पड़ रहा है.बिली के बच्चों को पीने का पानी दिया और श्रीमतीजी ने छोटे दीयों में रख कर दूध भी पीने को दिया, हमें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि,काला और भूरा दोनों बिल्ली बच्चे पहले उस दूध की इन्क्वायरी करने लगे और फिर एक साथ एक ही पात्र से ग्रहण किया. इंसान को जब जहाँ जो मिल जाता है बिना सोचे-समझे मुंह के हवाले कर देता है.एक बार झांसी में किसी मंदिर के सामने रोडवेज बस ड्राइवर ने रोक दी और किसी ने आकर प्रशाद के नाम पर कुछ बांटना शुरू कर दिया हमारे उन रिश्तेदार समेत लगभग सभी यात्रियों ने उसे मुंह में ठूंस लिया.चूंकि मैं ढोंग-पाखण्ड का विरोधी हूँ अतः मैंने एवं श्रीमतीजी ने उसे बस से उतरने पर एक वृक्ष के समक्ष रख दिया और ग्रहण नहीं किया था.



अक्सर बस और रेल में विषाक्त प्रशाद खा कर लुटने और जान गवां देने के किस्से अखबारों में छपते रहते हैं परन्तु इंसान गलती-दर-गलती करता जाता है.लेकिन इन बिल्ली के बच्चों से इंसान को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है कि चाहे भूखे भी हों जिस-तिस से मिली चीज मुफ्त में यों ही नहीं गटकते.जब बिल्ली  को पता चला कि उसके बच्चों पर रहम किया गया तो वह 'बेहद याचना'भरी बोली में मिमयाने लगी है,जैसे शायद वह कहना चाहती होगी कि उसके बच्चों के लिए कमरा या गैलरी खोल दिया जाए.हालांकि वे आँगन में ही हैं परन्तु उन बच्चों को दूध दो-तीन बार मुहैय्या करा देने से अब वे चौथी मंजिल पर बांस की   सीडी के जरिये चढ़ने-उतरने लगे हैं.हम लोग यही इंतज़ार  कर रहे हैं वे शीघ्र ताकतवर हो कर प्रस्थान कर जाएँ.

इसी दौरान दिल्ली के राम लीला मैदान में रामदेव ने भी एक याचना देश के नागरिकों से की और असंख्य लोग योग के नाम पर इकट्ठा करके अनशन प्रारंभ कर दिया. पहले तो झूठ बोल कर मैदान लिया गया फिर सरकार से सौदे बाजी की गई और जनता को मूर्ख बनाया गया.जब जनता के बीच सरकार ने वह चिट्ठी सार्वजानिक कर दी तो सरकार के विरुद्ध गर्जना कर दी.

Hindustan-Lucknow-05/06/2011


फिर औरताना वेश-भूषा धारण करके औरतों के झुण्ड में छिप कर भागने की कोशिश और पकडे जाने पर दहशत में आ जाना -ये सब किस संन्यास-धर्म के लक्षण हैं?लेकिन अफ़सोस कि अखबार और ब्लाग्स इस ढोंगी और पाखंडी के समर्थन में भरे पड़े हैं.मुलायम सिंह यादव यह जानते हुए भी कि यह आर.एस.एस. का खेल था रामदेव के यादव होने के कारण समर्थन में प्रेस-कान्फरेन्स करने लगे तो कुछ इनके हरियाणवी होने के कारण समर्थन करने लगे.किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि सन्यासी महाराज का यह खर्चा आया कहां से?-
Hindustan-Lucknow-06/06/2011
Hindustan-Lucknow-04/06/2011

Hindustan-06/06/2011




Hindustan-Lucknow-4 June-2011
रामदेव ने कहा है कि अन्ना हजारे के अनशन -आन्दोलन पर हुए खर्च को 'हिन्दुस्तान लीवर लि.'ने उठाया था.उनका इतना खर्च किसने उठाया ?२००९ के लोकसभा चुनावों में भाजपा को नौ लाख का चेक रामदेव ने चंदे के रूप में दिया था वह धन कहाँ से आया था?

लूट के बंटवारे का झगडा

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने एक कहानी में बताया है कि दूध में पानी की मिलावट पर जब नौकर के ऊपर पहरा बैठाया तो दूध वाले ,नौकर के साथ उस पहरेदार का हिस्सा शामिल होने के कारण पानी की मात्रा और बढ़ गई.अतः ज्ञातव्य है कि अन्ना हजारे और रामदेव जनता को मूर्ख बना कर मूल समस्या को छिपाने में सरकार की मदद कर रहे हैं.एक सरकार की कमेटी में शामिल है और दूसरा उससे सौदेबाजी करता है.दोनों में से एक भी धार्मिक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहा है जो कि आर्थिक भ्रष्टाचार की जननी है.जब तक मजारों पर चादर चढ़ाना और मंदिरों में प्रशाद चढ़ाना जारी रहेगा सरकारी दफ्तरों में नजराना चढ़ाना भी रोका नहीं जा सकता.अन्ना ,रामदेव या कोई भी इन धार्मिक भ्रष्टाचारों के विरुद्ध आवाज उठाना ही नहीं चाहता केवल आर्थिक भ्रष्टाचार की बात करना थोथी लफ्फाजी है.

एक ग्रह-जनित दोष के निवारणार्थ एक नेता,एक अभिनेता और एक उद्योगपति मिल कर डेढ़ करोड़ रुपया एक मंदिर में चढाते हैं क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है?किसने इसके विरुद्ध आवाज उठायी ?मंदिर में दान देने से ग्रहों के दोष नहीं मिटते हैं उनका वैज्ञानिक उपचार करना चाहिए था जो कर्मकांडी,ढोंगी-पाखंडी नहीं करवाते हैं.उनका ध्येय -'मेरा पेट हाउ मैं न जानूं काऊ'होता है.ऐसे लोग ही भ्रष्टाचार के जनक होते हैं.जब तक आप मूल पर प्रहार नहीं करते हैं पत्तों -डालियों को छांटने का हल्ला मचाते रहिये कुछ भी सुधार होने वाला नहीं है.

काला धन सिर्फ वह ही नहीं है जो सरकारी टैक्स बचा कर एकत्रित किया गया है.बल्कि उत्पादक और उपभोक्ता का शोषण करके जमा किया गया धन भी काला धन ही है.किसानों  की जमीनें छीन कर उद्योगपतियों को सौंपना और फिर मजदूरों का शोषण करवाना भी भ्रष्टाचार ही है.इन्हीं भ्रष्ट उद्योगपतियों के चंदे से आन्दोलन करके भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने को दिखाना फैशन भर है.पूरी भ्रष्ट-व्यवस्था को बदलने हेतु गरीबों,मजदूरों और किसानों को एकत्र कर उन्हें जागरूक करने से ही भ्रष्टाचार दूर होगा -हो हल्ले से नहीं.

5 comments:

Shah Nawaz said...

सरकार हो या बाबा.... कोई किसी से कम नहीं है.

प्रेम रस

डॉ टी एस दराल said...

बिल्ली वाला प्रकरण प्रेरणादायक है ।

वीना श्रीवास्तव said...

आपने ठीक लिखा है वैसे राजनीति उनके बस की नहीं....झूठ बोलना राजनीतिज्ञों की पहली सीढ़ी है...सो उन्होंने भी किया....
बिल्ली का प्रसंग प्रेरणादायक है...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

समय बताएगा कौन सही है..... अभी तो बस इंतजार......

अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

यह कोई ऐसा ड्रामा नहीं जिसे लोग न समझतें हों, पर लाठी पटकाकर हीरो बना देने की क्या तुक है |