Hindustan-20/06/2011-page-3,Lucknow |
अर्थशास्त्र में ग्रेषम का एक सिद्धांत है ,'खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है'.यही सिद्धांत सभी क्षेत्रों में लागू होता है.लोग आजकल प्रचार,मार्केटिंग इत्यादि को महत्व देते हैं न कि वास्तविक ज्ञान को और उसी का नतीजा होते हैं -लखनऊ एवं गुडगाँव जैसे हादसे.इस ब्लॉग के माध्यम से मैं धर्म,ज्योतिष आदि की आड़ में फैले ढोंग-पाखण्ड के प्रति लोगों को लगातार आगाह करता आ रहा हूँ.कुछ चुने हुए विशेष आलेख इस प्रकार हैं---
१.-१० .०७ २०१० को 'धर्म के नाम पर अधर्म का बोलबाला' (१० .०४ २०११ को पुनर्प्रकाशन भी)
२.- १३ .०८.२०१० को 'समस्या धर्म को न समझना ही है'
३.-१४ .०९.२०१० को 'ढोंग,पाखण्ड और ज्योतिष'
४.-२३.०९.२०१० को 'ज्योतिष और हम'
५.-२४.०९.२०१० को 'प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है,यह दुनिया अनूठी है'
६.-१४.१०.२०१० को 'उठो जागो और महान बनो'
७.-२५.१०.२०१० को 'धर्म और विज्ञान'
८.-२८.१०.२०१० को 'पूजा क्या?क्यों?और कैसे?'
९.-११.११.२०१० को 'सूर्य उपासना का वैज्ञानिक दृष्टिकोण'
१०.-०६.१२.२०१० को 'श्रधा,विश्वास और ज्योतिष'
मेरा उद्देश्य यह था कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले सभी लोग पढ़े-लिखे और विद्वान हैं और वे किसी से गुमराह न हो सकें इसलिए वैज्ञानिक आधार पर सत्य को सब के समक्ष रख रहा था.किन्तु प्रतिगामी एवं निहित-स्वार्थी शक्तियों ने बजाए उनका लाभ उठाने के मेरे विरुद्ध अनर्गल प्रचार -अभियान चला दिया.ऐसे लोगों ने वैज्ञानिक निष्कर्षों को अधार्मिक ,मूर्खतापूर्ण,बे पर की उड़ान कह कर मखौल उड़ाया तथा आर.एस.एस. सम्बन्धी ब्लागर्स ने सुनियोजित तरीके से लोगों को गुमराह किया.ऐसे लोग खुद को धर्म का ठेकेदार समझते हैं और गर्व से खुद को 'हिन्दू'घोषित करते हैं.इस सम्बन्ध में 'लोक संघर्ष पत्रिका',जून २०११ के अंक में भिक्षु विमल कीर्ति महास्थविर (मो.-०७३९८९३५६७२)ने बहुत तर्क-संगत विचार प्रस्तुत किये हैं,उनका अवलोकन करने से वास्तविकता का आभास होगा-
"हिन्दू'शब्द मध्ययुगीन है.श्री रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में 'हिन्दू'शब्द हमारे प्राचीन साहित्य में नहीं मिलता है .भारत में इसका सबसे पहले उल्लेख ईसा की आठवीं सदी में लिखे गए एक 'तंत्र ग्रन्थ'में मिलता है.जहां इस शब्द का प्रयोग धर्मावलम्बी के अर्थ में नहीं किया गया जाकर,एक 'गिरोह' या'जाति के अर्थ में किया गया है.
गांधी जी भी 'हिन्दू'शब्द को विदेशी स्वीकार करते हुए कहते थे-हिन्दू धर्म का यथार्थ नाम,'वर्णाश्रमधर्म ' है.
हिन्दू शब्द मुस्लिम आक्रमणकारियों का दिया हुआ एक विदेशी नाम है.'हिन्दू'शब्द फारसी के 'गयासुललुगात'नामक शब्दकोष में मिलता है .जिसका अर्थ-काला,काफिर,नास्तिक,सिद्धांत विहीन,असभ्य,वहशी आदि है और इसी घ्रणित नाम को बुजदिल लोभी ब्राह्मणों ने अपने धर्म का नाम स्वीकार कर लिया है.
हिंसया यो दूषयति अन्यानां मानांसी जात्यहंकार वृन्तिना सततं सो हिन्दू : से बना है ,जो जाति अहंकार के कारण हमेशा अपने पडौसी या अन्य धर्म के अनुयायी का,अनादर करता है,वह हिन्दू है.डा.बाबा साहब आंबेडकर ने सिद्ध किया है कि,'हिन्दू'शब्द देश वाचक नहीं है,वह जाति वाचक है.वह 'सिन्धु'शब्द से नहीं बना है.हिंसा से 'हिं'और दूषयति से 'दू'शब्द को मिलाकर 'हिन्दू'बना है.
अपने आपको कोई 'हिन्दू'नहीं कहता है,बल्कि अपनी-अपनी जाति बताते हैं."
परन्तु दुखद स्थिति यह है कि 'हिदू'अलंबरदारों ने जान बूझ कर मेरे वैज्ञानिक विश्लेषणों को जो अर्वाचीन ऋषि-मुनियों की खोजों पर आधारित थे को गलत करार दिया है.ग्रेषम के नियम के अनुसार गलत बातों का असर तेजी से होता है.नतीजा फिर चाहे लखनऊ के अलीगंज में प्रो.पुत्री के साथ ठगी हो चाहे गुडगाँव में हुयी वर्षों पूर्व ठगी हो धडाके से चलती रहती है.लोग ठोकर खा कर भी नहीं सम्हलते हैं,नहीं सम्हलना चाहते हैं.लुटना- ठगा जाना और मिटना लोगों को कबूल है,लेकिन सत्य को स्वीकारना मंजूर नहीं है.वर्ना इंटरनेट का प्रयोग करने वाले धर्म की आड़ में नहीं ठगे जा सकते थे.लगभग एक वर्ष से 'क्रन्तिस्वर'पर पढ़े-लिखे लोगों को ही आगाह किया जा रहा है और इसी का प्रभाव है कि अब दुसरे शहरोंके बामपंथी ब्लागर्स भी वैज्ञानिक ज्योतिषीय समाधान हेतु मुझ से संपर्क कर लाभ उठाने लगे हैं.परन्तु चूंकि वे बामपंथी होने के नाते समझदार हैं ,'हिन्दू' नासमझ नहीं हैं जो सही बात की मुखालफत करते फिरें.
लोग चमत्कार को नमस्कार करने के चक्कर में अपना तिरस्कार बखूबी करा लेते हैं ,जिसका ताजा-तरीन नमूना है प्रो.पुत्री का इस प्रकार ठगा जाना.यदि इसी शहर में रह कर भी कोई सस्ता वैज्ञानिक समाधान न कराये और बाहर के ठगों के जाल में धर्म और मंदिर के नाम पर फंसे तो इसे अपने पावों पर अपने आप कुल्हाड़ी चलाना ही कहा जाना चाहिए.
"हिन्दू'शब्द मध्ययुगीन है.श्री रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में 'हिन्दू'शब्द हमारे प्राचीन साहित्य में नहीं मिलता है .भारत में इसका सबसे पहले उल्लेख ईसा की आठवीं सदी में लिखे गए एक 'तंत्र ग्रन्थ'में मिलता है.जहां इस शब्द का प्रयोग धर्मावलम्बी के अर्थ में नहीं किया गया जाकर,एक 'गिरोह' या'जाति के अर्थ में किया गया है.
गांधी जी भी 'हिन्दू'शब्द को विदेशी स्वीकार करते हुए कहते थे-हिन्दू धर्म का यथार्थ नाम,'वर्णाश्रमधर्म ' है.
हिन्दू शब्द मुस्लिम आक्रमणकारियों का दिया हुआ एक विदेशी नाम है.'हिन्दू'शब्द फारसी के 'गयासुललुगात'नामक शब्दकोष में मिलता है .जिसका अर्थ-काला,काफिर,नास्तिक,सिद्धांत विहीन,असभ्य,वहशी आदि है और इसी घ्रणित नाम को बुजदिल लोभी ब्राह्मणों ने अपने धर्म का नाम स्वीकार कर लिया है.
हिंसया यो दूषयति अन्यानां मानांसी जात्यहंकार वृन्तिना सततं सो हिन्दू : से बना है ,जो जाति अहंकार के कारण हमेशा अपने पडौसी या अन्य धर्म के अनुयायी का,अनादर करता है,वह हिन्दू है.डा.बाबा साहब आंबेडकर ने सिद्ध किया है कि,'हिन्दू'शब्द देश वाचक नहीं है,वह जाति वाचक है.वह 'सिन्धु'शब्द से नहीं बना है.हिंसा से 'हिं'और दूषयति से 'दू'शब्द को मिलाकर 'हिन्दू'बना है.
अपने आपको कोई 'हिन्दू'नहीं कहता है,बल्कि अपनी-अपनी जाति बताते हैं."
परन्तु दुखद स्थिति यह है कि 'हिदू'अलंबरदारों ने जान बूझ कर मेरे वैज्ञानिक विश्लेषणों को जो अर्वाचीन ऋषि-मुनियों की खोजों पर आधारित थे को गलत करार दिया है.ग्रेषम के नियम के अनुसार गलत बातों का असर तेजी से होता है.नतीजा फिर चाहे लखनऊ के अलीगंज में प्रो.पुत्री के साथ ठगी हो चाहे गुडगाँव में हुयी वर्षों पूर्व ठगी हो धडाके से चलती रहती है.लोग ठोकर खा कर भी नहीं सम्हलते हैं,नहीं सम्हलना चाहते हैं.लुटना- ठगा जाना और मिटना लोगों को कबूल है,लेकिन सत्य को स्वीकारना मंजूर नहीं है.वर्ना इंटरनेट का प्रयोग करने वाले धर्म की आड़ में नहीं ठगे जा सकते थे.लगभग एक वर्ष से 'क्रन्तिस्वर'पर पढ़े-लिखे लोगों को ही आगाह किया जा रहा है और इसी का प्रभाव है कि अब दुसरे शहरोंके बामपंथी ब्लागर्स भी वैज्ञानिक ज्योतिषीय समाधान हेतु मुझ से संपर्क कर लाभ उठाने लगे हैं.परन्तु चूंकि वे बामपंथी होने के नाते समझदार हैं ,'हिन्दू' नासमझ नहीं हैं जो सही बात की मुखालफत करते फिरें.
लोग चमत्कार को नमस्कार करने के चक्कर में अपना तिरस्कार बखूबी करा लेते हैं ,जिसका ताजा-तरीन नमूना है प्रो.पुत्री का इस प्रकार ठगा जाना.यदि इसी शहर में रह कर भी कोई सस्ता वैज्ञानिक समाधान न कराये और बाहर के ठगों के जाल में धर्म और मंदिर के नाम पर फंसे तो इसे अपने पावों पर अपने आप कुल्हाड़ी चलाना ही कहा जाना चाहिए.
6 comments:
रहा अंधविशवास का, विज्ञानों से बैर।
कदम बढ़ाता ज्ञान तो, ढ़ोंग खीचता पैर॥
तरह- तरह के लोग मौजूद हैं इस दुनिया में .
....
इस घटना को पढ़कर बहुत अफ़सोस हुआ .
बहुत दुखद हैं ऐसी घटनाएँ...... बहुत अच्छा विषय लिए आपने.....
पढ़े-लिखे लोग ज्यादा फ़ंसते है।
bahut bade sachchaai ko khol k rakh diya aapne....krantikaari post.
धर्म और आस्था के नाम पर समाज में बहुत भ्रांतियां हैं । मासूम लोग इन धूर्त बाबाओं के शिकार बन ही जाते हैं ।
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