दबाव से मुक्त हों संस्थाएं
पूर्व प्रधानमंत्री एच .डी देवेगौडा ने कहा है कि,लोकपाल विधेयक जल्दबाजी में नहीं बनना चाहिए.निर्णय लेने वाली संस्थाओं को इस तरह के राजनीतिक दबाव से मुक्त होना चाहिए.('हिंदुस्तान' लखनऊ में प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित)
पूर्व प्रधानमंत्री एच .डी देवेगौडा ने कहा है कि,लोकपाल विधेयक जल्दबाजी में नहीं बनना चाहिए.निर्णय लेने वाली संस्थाओं को इस तरह के राजनीतिक दबाव से मुक्त होना चाहिए.('हिंदुस्तान' लखनऊ में प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित)
देवगौड़ा जी के ब्यान को हलके में नहीं लेना चाहिए.जब वह प्रधानमंत्री थे तो उनके मंत्रीमंडल में का.इन्द्रजीत गुप्त और का.चतुरानन मिश्र के प्रभाव से पहली बार 'लोकपाल'विधेयक संसद में पेश हुआ था,उसके बाद कई प्रयास हुए परन्तु अभी तक पास होकर क़ानून नहीं बन सका है.सुप्रसिद्ध मजदूर नेता का.गुरुदास दास गुप्त एक लम्बे समय से भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने तथा विदेशों से काला धन वापिस करने की मांग करते आ रहे थे और जब केंद्र की सरकार में कम्युनिस्टों को भागीदारी मिली तो उनके प्रयास से सार्थक पहल हुयी थी.भाजपा ने कांग्रेस से मिल कर देवगौड़ा जी की सरकार गिरवा दी थी.
आज जब देवगौड़ा जी धैर्य रखने की बात कर रहे हैं तो उसके पीछे सार्थक कारण हैं.वस्तुतः यदि वास्तव में कम्युनिस्टों की पहल पर भ्रष्टाचार विरोधी कोई भी उपाय किया जाता है तो उससे आम जनता निश्चय ही लाभान्वित होगी परन्तु जो भ्रष्ट तत्व हैं वे ऐसा नहीं चाहते;उनका प्रयास है कि जनता को गुमराह करके एक थोथा लोकपाल बिल पास करा दिया जाये और उनका कार्य बदस्तूर जारी रह सके.इसी लिए कार्पोरेट घरानों ने स्पोंसर करके अन्ना हजारे और रामदेव को आगे खडा कर दिया है.इन दोनों द्वारा जिस प्रकार की गतिविधियाँ चल रही हैं उनसे लोकतंत्र पर संकट मंडराता दीख रहा है.एक तो वैसे ही यह लोकतंत्र मात्र दिखावे का है पर जो है उसे भी ख़त्म कर देना कौन सी अक्लमंदी है? डा. डंडा लखनवी जी ने अपनी पोस्ट 'लोकपाल होगा नहीं,होगा एप्रिल फूल' में इसी खतरे का जिक्र किया है.
धार्मिक भ्रष्टाचार ,आर्थिक भ्रष्टाचार की जननी है
अन्ना ,रामदेव आदि जिस प्रकार के लोकपाल की बात कर रहे हैं वह निरंकुश होगा तथा जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से भी ऊपर होगा.यदि ऐसा हो तो लोकतंत्र के क्या मायने हैं?वस्तुतः शोषण कारी ,पूंजीवादी शक्तियां जो साम्राज्यवादियों का खेल खेल रही हैं चाहती ही नहीं कि देश में लोकतंत्र रहे.उनका उद्देश्य अपने मुनाफे और लूट को बढ़ाना है.इसलिए अन्ना और रामदेव के आन्दोलन जनता का ध्यान वास्तविकता से हटाने हेतु चलवाए गए हैं न कि भ्रष्टाचार दूर करने हेतु.
कुछ माह पहले हमारे घर के पास 'सत्य नारायण वेद प्रचार ट्रस्ट'के तत्वाधान में हुए एक कार्यक्रम में एक आर्यसमाजी उपदेशक महोदय बता रहे थे कि हमारे देश में जन्मते ही बच्चे को लेने की आदत डाल दी जाती है,देना तो सिखाया ही नहीं जाता.उन्होंने उदाहरण देकर बताया था कि,जन्म के समय बच्चे को सब हथौना देते हैं,फिर नामकरण,मुंडन ,कर्णछेदन ,अन्नप्राशन आदि आदि तमाम संस्कारों पर बच्चा लेता ही लेता है.बड़ा होने पर जन्म दिन,पढ़ाई शुरू करने,परीक्षा में उत्तीर्ण होने,विवाह होने सभी कार्यक्रमों में वह लेता आ रहा होता है.अतः नौकरी मिलने पर वह रिश्वत लेने लगता है,व्यापार करने पर टैक्स में हेर-फेर कर लेता है,उद्योगपति बन कर मजदूरों का हक़ हड़प लेता है.आर्यसमाजी उपदेशक महोदय ने बहुत जोर देकर कहा कि बच्चे को लेना ही लेना सिखाने वाला यह समाज और वे धार्मिक के नाम पर व्याप्त कुरीतियाँ ही आज के भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार हैं.
अभी २० जून को ही हिन्दुस्तान,लखनऊ ने एक धार्मिक भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए एक प्रो.पुत्री के ठगे जाने का विस्तृत समाचार छापा था.लखनऊ यूनिवर्सिटी के पास गोमती नदी पर बने पुल को हनुमान सेतु के नाम से अब जाना जाता है.१९६१ में हम लोगों ने जब लखनऊ छोड़ा था तब यह बन कर तैयार हो गया था.उससे पहले एक नीचा पुल था जो इससे थोडा पूर्व की और था और उसे तब मंकी ब्रिज कहा जाता था.उसके किनारे एक हनुमान मंदिर था.वह पुल टूट गया अब नया वाला ही है और यहाँ भी एक बड़ा हनुमान मंदिर स्थापित हो गया है.रोजाना भी और मंगल के दिन विशेष तौर पर यहाँ कारों,मोटर साईकिलों,स्कूटरों से आने वाले समृद्ध एवं प्राभावशाली लोग जिनमें तमाम प्राशसनिक और पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं ,प्रो.,डा.,वकील भी हैं,गरीब और साधारण लोगों की तो बात ही नहीं.क्या गजब तमाशा है-जिस इंसान ने (मजदूर ने)वह मूर्ती गढ़ दी वह तो उपेक्षित है परन्तु उसकी रचना यह मूर्ती पूजी जाती है.सब कुछ होता है उस दलाल के माध्यम से जो पूजने वाले और मूर्ती के बीच बिचौलिया है.ऐसे ही बिचौलिया सरकारी दफ्तरों में काम करवाने वाली जनता तथा काम करने वाले कर्मचारी एवं अधिकारी के मध्य दलाली करते हैं.अन्ना हजारे और रामदेव इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध जबान खोलने के लिए तैयार ही नहीं हैं फिर वे क्या ख़ाक भ्रषाचार दूर करेंगे?इसी प्रकार कितने मंदिर,मस्जिद,मजार आदि -आदि इस देश में हैं जहाँ भ्रष्टाचार पुष्पवित -पल्लवित होता है ;दान के नाम पर मजदूरों का खून चूस कर लूटा गया पैसा इन्हीं के माध्यम से पुण्य में परिवर्तित होता रहता है,उसके विरुद्ध कोई भी जबान नहीं खोलना चाहता है और भ्रष्टाचार दूर करने का नारा देने वाला मसीहा बन जाता है.
निर्वाचित प्रतिनिधियों की वापिसी
यदि सच में भ्रष्टाचार दूर करना है तो कानपूर की पत्रकार सुश्री कृति बाजपेयी द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को वापिस बुलाने वाली मांग जिसे १९७४ में लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने तब जोर शोर से उठाया था को अमली जामा पहनाया जाना चाहिए.यह एक लोकतांत्रिक मांग है और यह भ्रष्टाचार के राजनीतिक संस्करण पर रोक लगाने में सक्षम उपाय होगा.जब राजनीतिग्य पद जाने से भयभीत होकर भ्रष्टाचार से दूर रहेंगें तभी वे ब्यूरोक्रेट्स की भी लगाम कस सकेंगें एवं उनके विरुद्ध कड़ी कारवाई होगी.अन्ना और रामदेव की मांगों में ये बात शामिल नहीं हैं ,क्योंकि वे तो कारपोरेट घरानों द्वारा तय एजेंडे पर चल रहे हैं,जन-साधारण का हित उनकी मांगों में शामिल हो तो हो कैसे?
सुश्री कृति ने अपनी एक और पोस्ट में 'भारत,पकिस्तान एवं बांग्लादेश'के एकीकरण अथवा संघ निर्माण की बात भी कही है.यदि ऐसा हो तो तीनों देशों का रक्षा खर्च बचे जो वहां की जनता पर कल्याणार्थ खर्च हो सकता है.अधिकाँश रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार की गूँज सुनायी दी है और बोफोर्स काण्ड में तो राजीव गांधी को अपनी सरकार ही गवानी पड़ गयी थी.युद्धक सामान बनाने वाली कम्पनियाँ जिन पर अमेरिका का अस्तित्व टिका है कभी विश्व में शांति नहीं चाहतीं ,वे ऐसा होने नहीं देंगीं.भारत विभाजन ही साम्राज्यवाद (साम्प्रदायिकता उसी की सहोदरी है)की घिनौनी साजिश का परिणाम है.अमेरिकी कार निर्माता क.'फोर्ड'ने बाकायदा 'फोर्ड फाउंडेशन'के माध्यम से विश्व हिन्दू परिषद् को दान दिया था.ईसाइयत के अनुयायिओं ने हिन्दू संगठन को दान धार्मिक आस्था से नहीं साम्राज्यवादी कूटनीति के तहत दिया था,जिसका परिणाम दंगों और असंख्य बेगुनाहों की मौत के रूप में सामने आया था.
थोथी बातें करके वाहवाही लूटना अलग बात है और ठोस तथा वास्तविक चिंतन करके समस्या का वास्तविक निदान करना दूसरी बात.धमकी देकर अपनी मनमानी करवाने की कोशिशों को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता.अन्ना एवं रामदेव के आंदोलनों को इसी परिप्रेक्ष में देखा जाना चाहिए और जैसा भी लोकतंत्र है उसे बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
अभी २० जून को ही हिन्दुस्तान,लखनऊ ने एक धार्मिक भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए एक प्रो.पुत्री के ठगे जाने का विस्तृत समाचार छापा था.लखनऊ यूनिवर्सिटी के पास गोमती नदी पर बने पुल को हनुमान सेतु के नाम से अब जाना जाता है.१९६१ में हम लोगों ने जब लखनऊ छोड़ा था तब यह बन कर तैयार हो गया था.उससे पहले एक नीचा पुल था जो इससे थोडा पूर्व की और था और उसे तब मंकी ब्रिज कहा जाता था.उसके किनारे एक हनुमान मंदिर था.वह पुल टूट गया अब नया वाला ही है और यहाँ भी एक बड़ा हनुमान मंदिर स्थापित हो गया है.रोजाना भी और मंगल के दिन विशेष तौर पर यहाँ कारों,मोटर साईकिलों,स्कूटरों से आने वाले समृद्ध एवं प्राभावशाली लोग जिनमें तमाम प्राशसनिक और पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं ,प्रो.,डा.,वकील भी हैं,गरीब और साधारण लोगों की तो बात ही नहीं.क्या गजब तमाशा है-जिस इंसान ने (मजदूर ने)वह मूर्ती गढ़ दी वह तो उपेक्षित है परन्तु उसकी रचना यह मूर्ती पूजी जाती है.सब कुछ होता है उस दलाल के माध्यम से जो पूजने वाले और मूर्ती के बीच बिचौलिया है.ऐसे ही बिचौलिया सरकारी दफ्तरों में काम करवाने वाली जनता तथा काम करने वाले कर्मचारी एवं अधिकारी के मध्य दलाली करते हैं.अन्ना हजारे और रामदेव इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध जबान खोलने के लिए तैयार ही नहीं हैं फिर वे क्या ख़ाक भ्रषाचार दूर करेंगे?इसी प्रकार कितने मंदिर,मस्जिद,मजार आदि -आदि इस देश में हैं जहाँ भ्रष्टाचार पुष्पवित -पल्लवित होता है ;दान के नाम पर मजदूरों का खून चूस कर लूटा गया पैसा इन्हीं के माध्यम से पुण्य में परिवर्तित होता रहता है,उसके विरुद्ध कोई भी जबान नहीं खोलना चाहता है और भ्रष्टाचार दूर करने का नारा देने वाला मसीहा बन जाता है.
निर्वाचित प्रतिनिधियों की वापिसी
यदि सच में भ्रष्टाचार दूर करना है तो कानपूर की पत्रकार सुश्री कृति बाजपेयी द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को वापिस बुलाने वाली मांग जिसे १९७४ में लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने तब जोर शोर से उठाया था को अमली जामा पहनाया जाना चाहिए.यह एक लोकतांत्रिक मांग है और यह भ्रष्टाचार के राजनीतिक संस्करण पर रोक लगाने में सक्षम उपाय होगा.जब राजनीतिग्य पद जाने से भयभीत होकर भ्रष्टाचार से दूर रहेंगें तभी वे ब्यूरोक्रेट्स की भी लगाम कस सकेंगें एवं उनके विरुद्ध कड़ी कारवाई होगी.अन्ना और रामदेव की मांगों में ये बात शामिल नहीं हैं ,क्योंकि वे तो कारपोरेट घरानों द्वारा तय एजेंडे पर चल रहे हैं,जन-साधारण का हित उनकी मांगों में शामिल हो तो हो कैसे?
सुश्री कृति ने अपनी एक और पोस्ट में 'भारत,पकिस्तान एवं बांग्लादेश'के एकीकरण अथवा संघ निर्माण की बात भी कही है.यदि ऐसा हो तो तीनों देशों का रक्षा खर्च बचे जो वहां की जनता पर कल्याणार्थ खर्च हो सकता है.अधिकाँश रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार की गूँज सुनायी दी है और बोफोर्स काण्ड में तो राजीव गांधी को अपनी सरकार ही गवानी पड़ गयी थी.युद्धक सामान बनाने वाली कम्पनियाँ जिन पर अमेरिका का अस्तित्व टिका है कभी विश्व में शांति नहीं चाहतीं ,वे ऐसा होने नहीं देंगीं.भारत विभाजन ही साम्राज्यवाद (साम्प्रदायिकता उसी की सहोदरी है)की घिनौनी साजिश का परिणाम है.अमेरिकी कार निर्माता क.'फोर्ड'ने बाकायदा 'फोर्ड फाउंडेशन'के माध्यम से विश्व हिन्दू परिषद् को दान दिया था.ईसाइयत के अनुयायिओं ने हिन्दू संगठन को दान धार्मिक आस्था से नहीं साम्राज्यवादी कूटनीति के तहत दिया था,जिसका परिणाम दंगों और असंख्य बेगुनाहों की मौत के रूप में सामने आया था.
थोथी बातें करके वाहवाही लूटना अलग बात है और ठोस तथा वास्तविक चिंतन करके समस्या का वास्तविक निदान करना दूसरी बात.धमकी देकर अपनी मनमानी करवाने की कोशिशों को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता.अन्ना एवं रामदेव के आंदोलनों को इसी परिप्रेक्ष में देखा जाना चाहिए और जैसा भी लोकतंत्र है उसे बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
8 comments:
sabse pahale to mujhe apni post mai jagah dene ke liye bahut bahut dhanyavaad sir . rahi baat bhrashtachar ki to vo kahan nahi hai. shyad aapne bhi dekha ho ek prasidh tea ke vigyapan mai ek vyang bahut hi zabardast tha ki, " log ghoos kyun khate hain kyunki ham khilate hai." sahi to hai, lihaza pahale khud ko sudhare samaj khud-b-khud sudhar jayega. mera vote mangane ki baat kahana bhi meri isi baat ka samarthan karta hai. taki ham apni un purani galatiyon ko fir na dohara saken.aur agar kahi se galati ho bhi gayi to use sudhara ja sake.kyun ki direct ya indirect desh ki har samasya ki jadh kahi na kahi bhrashtachar hi to hai.
Keep it up.
एक विचारोत्तेजक आलेख।
काफ़ी शोध के बाद आपने यह आलेख लिखा है। आपके तर्कों को नकारा नहीं जा सकता।
माथुर जी!
आपने समस्या के मर्म को समझा और उस पर बेबाकी से अपने विचार रखे। सारगर्भित पोस्ट के लिए बधाई।
बने तब ना।
समसामयिक चिंतन ...सभी मिलकर सोचना होगा....
आपका चिंतन वाजिब है.
अभी परिदृश्य स्पष्ट नहीं है...
अन्ना के आशय पर शक करना तो उचित नहीं लगता । लेकिन यह सही है कि सोच समझ कर कदम उठाने की ज़रुरत है । भावनाओं में बहकर कोई काम नहीं करना चाहिए जिसे बाद में संभाला न जा सके ।
लोकपाल बिल भी एक ऐसा ही कदम है जिस पर संयम रखना आवश्यक है ।
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