03/12/2011 |
01/12/2011 |
04/12/2011 |
" पहले तो उनका दबाव था कि स्वामी जी अपना उत्तराधिकारी उन्हें घोषित करें। उत्तराधिकारी भी सिर्फ आश्रम या स्कूल कालेज का ही नही बल्कि राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बनना चाहतीं थीं। उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा भी चिन्मयानंद से जाहिर की। इस पर स्वामी जी भड़क गए। उन्हें लगा कि ये साध्वी अब उन पर हावी होने की कोशिश कर रही है, लिहाजा उन्होंने जमकर फटकार लगा दी"---यह कथन है टी वी चेनल के एक वरिष्ठ पत्रकार साहब का अपने ब्लाग मे ।
यदि पत्रकार साहब की खोज सही है तो कोमल गुप्ता उर्फ साध्वी के कदम की सराहना करनी चाहिए कि उन्होने छल और बल से स्थापित ढ़ोंगी सन्यासी के साम्राज्य को उसी छल और बल से हस्तगत करना चाहा जैसे ढ़ोंगी सन्यासी जी ने किया था। यदि पुरुष द्वारा किया कार्य ठीक था तो महिला द्वारा वही कार्य करने का प्रयास कैसे निंदनीय हो गया?
ढ़ोंगी सन्यासी द्वारा छात्रों को उकसा कर कोमल गुप्ता विरोधी आंदोलन चलवाने से वह पाक-साफ कैसे हो गए?जब वह केंद्रीय गृह राज्यमंत्री थे तो उनकी कार ने एक्सीडेंट मे एक निर्दोष पथिक की हत्या कर दी और वह सरपट कार ले गए। सन्यासी का चोला पहने गृह राज्यमंत्री के पद पर होते हुये भी उस व्यक्ति को बचाने का प्रयास उन्होने नहीं किया,अखबारों मे सुर्खियों मे छ्पा था।
कहा जाता है आज विज्ञान का युग है,प्रगतिशीलता का युग है। फिर इन ढोंगियों के पास अकूत संपत्ति कहाँ से आ जाती है?इन के शिष्य और दान-दाता बड़े -बड़े नामी-गिरामी डॉ,इंजीनियर,वैज्ञानिक,भी हैं और शोषक-उत्पीड़क उद्योगपति-पूंजीपति भी। पढे-लिखे प्रगतिशील विचारक भी इन लोगों के प्रति भक्ति रखते हैं। तभी तो इनको बेनकाब करने वाली महिला को दोषी ठहराने का प्रयास चल रहा है जबकि उसके साहस की सराहना और उसे समर्थन देना चाहिए था।
मै इसी ब्लाग पर लगातार ढोंगियों से सावधान रहने तथा वैज्ञानिक पूजा-पद्धति (हवन) अपनाने की अपीलें करता रहता हूँ परंतु इन ढोंगियों के समर्थक ब्लागर्स मेरे ऊपर ही कटाक्ष करते हैं बजाए एहितियात बरतने के।
हमारे ब्लागर्स बंधु जो बड़े सरकारी ओहदेदार भी हैं और विज्ञान क्षेत्र से संबन्धित भी हैं अपने-अपने ब्लाग्स मे ढोंग-पाखंड बढ़ाने के लेख,कविता आदि लिख कर जनता को गुमराह करते और वाहवाही लूटते रहते हैं। एक इंजीनियर साहब के सुझाव पर ही मैंने 'जनहित मे' स्तुतियाँ देना प्रारम्भ किया परंतु किसी को उनसे लाभ उठाने की जरूरत नहीं है जिसमे कोई खर्च भी नही होगा उन्हें तो भारी-भरकम रकम खर्च करके वैष्णोदेवी,बालाजी,बद्रीनाथ/केदारनाथ,कामाख्या देवी वगैरह-वगैरह घूम कर पनडे-पुजारियों के हाथ लुट कर आने मे आनंद आता है। पिसती और मारी जाती है गरीब और भोली जनता जो इन पैसे वालों का अंधानुकरण करती है। कहते हैं न कि 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' -और यही सब खेल चल रहा है जो इन ढोंगियों को ताकत देता है।
7 comments:
" पहले तो उनका दबाव था कि स्वामी जी अपना उत्तराधिकारी उन्हें घोषित करें। उत्तराधिकारी भी सिर्फ आश्रम या स्कूल कालेज का ही नही बल्कि राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बनना चाहतीं थीं। उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा भी चिन्मयानंद से जाहिर की। इस पर स्वामी जी भड़क गए। उन्हें लगा कि ये साध्वी अब उन पर हावी होने की कोशिश कर रही है, लिहाजा उन्होंने जमकर फटकार लगा दी"---यह कथन है टी वी चेनल के एक वरिष्ठ पत्रकार साहब का अपने ब्लाग मे ।
आज आपसे थोड़ी असहमति है क्योंकि मुझे यह बात सही लग रही है ... क्योंकि साध्वीजी को इतने बरसों बाद ख्याल क्यों आया की उनका शोषण हो रहा है ... साथ ही स्वामीजी तो गलत हैं ही ये मैं भी मानती हूँ इतनी धन सम्पदा उन्होंने एक साधु सन्यासी होकर जुटा रखी है ....पर साध्वी जी भी दुनिया का मोह त्याग दीक्षा ले चुकी हैं उन्हें ये विरासत क्यों चाहिए .... ?
एक-से-एक ढोंगी आ गए हैं इस क्षेत्र में। यह व्यवसाय आजकल खूब फाल-फूल भी रहा है। हां, बीच-बीच में एकाध बेनकाब भी हो रहे हैं, पर जितना होना चाहिए उसके लिहाज से बहुत कम।
ऐसे में आपकी मुहिम सच में बहुत प्रेरक है।
डॉ मोनिका शर्मा जी -धन्यवाद आपकी असहमति के लिए । अपने पत्रकार भाई का बचाव करना आपका प्रोफेशनल धर्म भी है।
मै आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि,इससे मिलते-जुलते मामले मे विधायक की हत्या करने वाली शिक्षिका-रूपंम के समर्थन मे आपने एक पोस्ट लिखी थी और मैंने उसका लिंक अपने उस लेख मे लगाया है जिसका लिंक "यदि पत्रकार साहब की खोज सही है"के साथ दिया है। अब एक जैसे मामले मे आपने दृष्टिकोण बादल लिया है। मेरा इसमे भी वही दृष्टिकोण है।
'लाल-बाल-पाल'कहा करते थे कि,छल और बल से स्थापित ब्रिटिश-साम्राज्य का उन्मूलन भी छल और बल से ही किया जा सकता है और यही प्रयास किया कोमल गुप्ता ने। जैसे साधू उसके गुरु थे वैसी ही साध्वी वह फिर केवल उसे ही दोष क्यों?क्यों नहीं गुरु घनटाल ही असली मुलजिम?
आज कल सब तरफ यही हाल है.. आपकी मुहिम सच में बहुत प्रेरक है।
इन ढोंगी बाबा , साधु , भगवान आदि से दूर रहना ही सही है । आखिर कोई मनुष्य भगवान कैसे हो सकता है ।
मैं गुरु घंटाल को सही नहीं मान रही हूँ ये मैंने पहले भी लिखा है और न पत्रकार के बचाव की सोच है, न ही एक विषय में दो तरह से सोच रही हूँ..... बस इस बात का दुःख होता है और एक सोची समझी चाल लगता है की ऐसे पाखंडी लोगों के साथ बरसों रहकर बाद में उनके गुरु के चेले मुंह क्यों खोलते हैं..... ? उन्हें भगवान का दर्जा दिलवाने में इन चेलों की भूमिका भी कम नहीं होती .....
सच तो सामने आना ही चाहिए फिर जो भी हो जिसका भी हो ... सार्थक प्रयास है आपका ...
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