N.D. TV के ASOCIATE एडिटर श्री रविश कुमार ने अपनी ब्लॉग वार्ता में शनि की वेब साईट का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कुछ मंत्रालयों में शनिधाम बनाने का आग्रह किया है.ग्रेषम ने अर्थशास्त्र में एक नियम का उल्लेख किया हैकि, ख़राब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है.ठीक इसी प्रकार धार्मिक छेत्र में भी आज अधर्मी लोगों का बोलबाला हो गया है और धर्म की सच्ची बात करने वाले भी पीछे धकेले जा रहे हैं.श्री रविश कुमार सरीखे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग जब अधार्मिक बातों की पैरवी करेंगे तो आम जनता तो गुमराह होगी ही. धर्म को आज एक उद्योग के रूप में चलाया जा रहा है और यह धन कमाने का साधन मात्र बनकर रहगया है. इसी का परिणाम है की देश –विदेश सब जगह अशांति और मारा-मरी फ़ैल गयी है.एक विद्वान का कहना है —
शुद्ध रहे व्यवहार नहीं,अच्छे आचार नहीं
इसिस्लिये तो आज देख लो सुखी कोई परिवार नहीं..
वास्तव में धर्म वह है जो शारीर को धारण करने के लिए आवश्यक है. शारीर में वाट,पित्त,काफ,एक नियमित मात्रा में रहते हैं.तो शारीर को धारण करने करने के कारन धातु कहलाते हैं,जब उनमे किसी कारन विकार आजाता है और वे दूषित होने लगते हैंतो दोष कहलाते हैं और दोष जब मलिन होकर शारीर को कष्ट पहुचाने लगते हैं तब उन्हें मल कहा जाता है और उनका त्याग किया जाता है.वाट-वायु और आकाश से मिलकर बनता है.काफ-भूमि और जल से मिलकर बनता है ततः पित्त-अग्नि से बनता है.प्रकृति के ये पञ्च तत्व :-भूमि,गगन,वायु,अनल और नीर मिलकर (इनके पहले अक्षरों का संयोग)भगवान् बनता है जो G-GENERATOR,O-OPERATOR,D-DESTROYER अथार्त god भी कहलाता है और चूँकि प्रकृति के ये पञ्च तत्व वैज्ञानिक आधार पर खुद ही बने हैं इन्हें किसी ने बनाया नहीं है इसलिए ये खुदा भी हैं.हमें मानव जाती तथा सम्पूर्ण सृष्टि के हित में भगवान्(GOD या खुदा) की रक्षा करनी चाहिए उनका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए परन्तु आज धर्म के ठेकेदार धर्म का दुरूपयोग कर सम्पूर्ण सृष्टि को नुक्सान पहुंचा रहे हैं.परिणाम यह है की कहीं ग्लोबल वार्मिंग ,कहीं बाढ़,कहीं सूखा कहीं दुर्घटना कहीं आतंकवाद से मानवता कराह रही है.धर्म के ठेकेदार जनता को त्याग,दान के भ्रमजाल में फंसा कर खुद मौज कर रहे हैं.गरीब किसान,मजदूर,कहीं अपने हक़ हुकूक की मांग न कर बैठें इसलिए भाग्य और भगवान् के झूठे जाल में फंसा कर उनका शोषण कर रहे हैं तथा साम्राज्यवादी साजिश के तहत पूंजीपतियों के हितैषी उन गलत बातों का महिमा मंदन कर रहे हैं.
पंचशील के नाम पर शांति के पुरोधा ने जब देशवासियों को गुमराह कर रखा था तो १९६२ में देश को चीन के हाथों करारी हार का सामना पड़ा था. हमारा काफी भू-भाग आज भी चीन के कब्जे में ही है.तब १९६४ में “चित्रलेखा”फिल्म में साहिर लुधियानवी के गीत पर लता मंगेशकर ने यह गा कर धर्म के पाखंड पर प्रहार किया था:--
संसार से भागे फिरते हो ,भगवान् को तुम क्या पाओगे
इस लोक को भी अपना न सके ,उस लोक में भी पछताओगे
ये पाप हैं क्या ,ये पुण्य हैं क्या,रीतों पर धर्म की मोहरें हैं
हर युग में बदलते धर्मों को, कैसे आदर्श बनाओगे
ये भोग भी एक तपस्या है,तुम त्याग के मारे क्या जानो,
अपमान रचेता का होगा,रचना को अगर ठुकराओगे
हम कहते हैं ये जग अपना है,तुम कहते हो झूठा सपना है
हम जनम बिताकर जाएँगे,तुम जनम गवां कर जाओगे..
यह सत्य है की जो लोग जनता को गुमराह कर रहे हैं पक्के तौर पर काफी नुकसान उठाएंगे ही परन्तु आज उनको अभी अहंकार में डूबे होने के कारन इसका एहसास नहीं है.वैज्ञानिक आधार पर भगवान् प्रकृति के पंचतत्व ही हैं और उनकी पूजा का साधन हवन ही है बाकी सब ढोंग- ढकोसला, पाखंड ही है,चाहे उसका प्रचारक कितना भी बड़ा ओहदेदार ही क्यों न हो.हमें धर्म के नाम पर हो रहे अधर्म के बोलबाले पर नहीं जाना चाहिए वर्ण मानव के हित में विश्वबंधुत्व की सर्वे भवन्तु सुखिनः वाली उक्ति पर चलना चाहिए.