Tuesday, November 30, 2010

वास्तु -दोष कुछ प्रैक्टिकल उदाहरण

मैंने ८ .११ .१० की पोस्ट -"तोड़ फोड़ और प्लास्टिक पिरामिड वास्तविक समाधान नहीं" द्वारा अपने पूर्व प्रकाशित लेख क़े माध्यम से बताया था की किस प्रकार हम अपने भवन क़े वास्तु दोषों से बच सकते हैं.कुछ पाठक ब्लागर्स ने जानकारी क़े प्रति कृतज्ञता  प्रकट की थी.उन सब की और अधिक जानकारी क़े लिए "अग्रमंत्र",आगरा में अगस्त ०४ से जन.०५ क़े दो त्रैमासिकों में प्रकाशित पूर्व लेखों को एक पाठक की व्यक्तिगत प्रतिक्रिया की स्कैन कापी समेत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.उम्मीद है की कुछ लोगों को इनसे लाभ उठाने का अवसर मिल जाएगा.सुप्रसिद्ध वास्तु शास्त्री पंकज अग्रवाल क़े विचार जो की राष्ट्रीय सहारा क़े २४ .८ .१९९९ क़े अंक में प्रकाशित हुए थे ,उनकी भी स्कैन कापी आप सब की जानकारी क़े लिए उपलब्ध करा रहा हूँ.:-

उत्तर की रसोई -गृहणी रोगिणी होई
सोई घर किसी भी भवन का मुख्य अंग है.यही वह स्थान है जहाँ से सम्पूर्ण परिवार का स्वास्थ्य सञ्चालन होता है.यह रसोई पकाने वाले पर निर्भर करता है कि वह सदस्यों को स्वस्थ एवं जीवंत रखने लायक भोजन उपलब्ध कराये.परन्तु रसोई की मालकिन गृहणी का स्वास्थ्य रसोई की दिशा  पर निर्भर करता है.वास्तु शास्त्र क़े अनुसार रसोई घर भवन की दक्षिण -पूर्व दिशा (S . E .) अर्थात आग्नेय कोण में स्थित होना चाहिए. ऐसे स्थान पर पकाया गया भोजन सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक होता है तथा गृहणी का स्वास्थ्य भी उत्तम रखता है.आग्नेय कोण दिशा का स्वामी शुक्र ग्रह होता है और शुक्र स्त्रियों का कारक ग्रह है.आजकल लोग वास्तु शास्त्र क़े अज्ञान से तथा अन्य कारणों से मन चाहे  स्थानों पर रसोई निर्मित करा लेते हैं परिणाम स्वरूप गृहणी पर उसका दुष्प्रभाव भी पड़ सकता है.

उत्तर दिशा धन क़े देवता कुबेर की होती है.इस स्थान पर रसोई घर बनाने से धन का अपव्यय होता है.उत्तर दिशा पुरुष कारक वाली है अतः स्त्री का स्वास्थ्य क्षीण होता है.उत्तर दिशा की रसोई वाली गृहणियां अल्पायु में ही वीभत्स रोगों का शिकार हो जाती हैं.३० -३५ आयु वर्ग की गृहणियां गम्भीर ऑपरेशनों  का सामना कर चुकी हैं. प्रौढ़ महिलाएं ,अल्सर /कैसर से पीड़ित हैं.जिन लोगों ने बाद में उत्तर दिशा में रसोई स्थानांतरित कर दी है उनमे से एक गृहिणी  आये दिन अस्पताल क़े चक्कर काटने लगी है. एक साधन सम्पन्न परिवार की गृहिणी  जिनके घर क़े  ईशान कोण (N E ) में शौचालय क़े कारण पुरुष वर्ग प्रभावित था ही उत्तर में रसोई कर दिए जाने क़े बाद कमर व घुटनों क़े दर्द तथा मानसिक अवसाद से पीड़ित रहने लगी है.
सारांश यह कि उत्तर की रसोई न केवल गृहणी हेतु वरन सम्पूर्ण परिवार क़े लिए हानिदायक होती है.

उदाहरण  एक अहंकारी का
 मारे प्राचीन ऋषी -मुनियों ने अपने असीम ज्ञान से भवन -निर्माण कला को प्रस्तुत किया था जो वास्तु कला क़े नाम से जानी जाती है.लगभग एक हज़ार वर्षों की गुलामी ने हमारी इस प्राचीन विद्या को विलुप्तप्राय सा कर दिया है. इधर दस बारह (अब तक १५ -१७ ) वर्षों से चीन से आयातित फेंगशुई और उसी की तर्ज़ पर वास्तु -शास्त्र का प्रचलन  बढ़ा है.परन्तु पाश्चात्य आर्किटेक्चर तथा चीन की फेंगशुई हमारी प्राचीन वास्तु कला क़े पर्यायवाची नहीं हैं और इनसे मनुष्य की न तो भौतिक समस्यायों का हल  निकल पा रहा है और न ही यह मोक्ष -प्राप्ति क़े मार्ग में सहायक है.वास्तु शास्त्र क़े नियमों की अवहेलना अथवा अधूरे परिपालन से आज का मानव किस प्रकार दुखी है किसी से छिपी बात नहीं है और बाज़ार में उपलब्ध वास्तु -शास्त्र की पुस्तकें तथा समाधान मात्र व्यावसायिक हैं उनसे मानव -कल्याण संभव नहीं है .अतः सत्य घटनाओं एवं काल्पनिक नामों क़े द्वारा हम निम्न -लिखित उदाहरण प्रस्तुत कर अपने पाठकों को वास्तु -दोषों क़े दुष्परिणामों से सचेत करना चाहते हैं.:-

रूरी सिंह एक मकान में किरायेदार क़े रूप में वर्षों से निवास कर रहा था .मकान में कोई वास्तु दोष न था.अतः उसके परिवार ने अच्छी खासी तरक्की कर ली .उसके बच्चे भी पढ़ाई में होशियार निकले .परन्तु अपने मकान -मालिक को नाजायज दबा कर यह मकान बहुत सस्ता खरीद लिया .मकान अपना निज का हो जाने क़े बाद गरूरी ने उसमें कुछ अतिरिक्त निर्माण कार्य कराये .ईशान कोण में गरूरी ने शौचालयों का निर्माण करा लिया.बस,यहीं से इस परिवार की बुद्धि का विनाश होता चला गया.सर्वप्रथम तो स्वंय गरूरी को दिल का हल्का दौरा पड़ा.बुद्धि क्षय का परिणाम यह हुआ कि उसने रसोई -घर को उत्तर दिशा में परिवर्तित करा लिया .इस प्रकार उसकी पत्नी घमंडना को भी ब्लड -प्रेशर की शिकायत हो गई.घुटनों व कमर में दर्द रहना प्रारम्भ हो गया तथा क्रोध की मात्रा बढ़ गई.चूंकि ईशान का शौचालय पुरुष वर्ग पर भारी होता है ,अतः साथ रहने वाला गरूरी का अनुज -पुत्र भी लगातार दो वर्षों तक एक ही कक्षा में अनुत्तीर्ण होता रहा.बुद्धि -विपर्याय का ही यह परिणाम था कि,गरूरी ने एक बार जो निर्माण कराया था उसे तुड़वाकर पुनः नये -सिरे से बनवाया (लेकिन कोई दोष मिटाया नहीं बल्कि दोषों को और बढ़ाया ही ).इसमें उत्तर की रसोई -जो व्ययकारी होती है - का भी योगदान रहा.१६  सितम्बर २००३  को सांय गरूरी और घमंडना में ज़बरदस्त वाकयुद्ध हुआ और पहले शान्त रहने वाली गृहणी घमंडना उत्तर की रसोई क़े प्रभाव से अत्यंत उत्तेजित हुयी जो दूर -दूर तक चर्चा का विषय बना.ईशान क़े शौचालय ने गरूरी की बुद्धी को नष्ट कर चरित्र भी गिरा दिया.सड़क छाप लोगों से मित्रता करके गरूरी एक क़े बाद एक गलतियों पर गलतियाँ करता चला जा रहा हैऔर अपने सच्चे हितैषियों को खोता चला जा रहा है. कुछ उत्तर की रसोई का प्रभाव है और कुछ ईशान क़े शौचालय का बुद्धि -विकार घमंडना भी अपने परिवार का हित -अहित सोचना भूल गई है.अब यह परिवार शनै : शनै :अपने विनाश की ओर बढ़ रहा है.इस परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने पैरों पर स्वंय ही कुल्हाड़ी चलाने लगा है .कुछ ही वर्षों क़े अंतराल पर दुनिया इस परिवार का शीराज़ा बिखरते देखेगी .गलत आचरण क़े लोगों से मित्रता करके यह परिवार शीघ्र ही उलटे उस्तरे से मूढा जाने वाला है उस पर भी तुर्रा यह कि जो कोई भी उनके हित की बात कहता है उससे इस परिवार क़े सदस्य सम्बन्ध तोड़ लेते हैं.सर्वप्रथम अपने उत्तर दिशा क़े पडौसी जिसे स्वंय गरूरी ने ही अपने पडौस में बसाया था सम्बन्ध ख़राब कर लिए उसके पश्चात पूर्व दिशा क़े पडौसी से सम्बन्ध तोड़ लिए.दक्षिण दिशा क़े पडौसी से तो सम्बन्ध कभी ठीक थे ही नहीं.आग्नेय क़े कबाड़ी परिवार से आजकल गरूरी की खूब छन रही है.एक और महानुभाव जिनकी भूमिका अपने छोटे भाई को विधायकी क़े चुनाव में हरवाने में प्रमुख थी गरूरी क़े शुभचिंतक बने हुए हैं.यह नैरत्य (S W ) दिशा  क़े पडौसी कहे जा सकते हैं.


उपरोक्त लेख छपने क़े तीन वर्ष बाद २००८ ई .की जन . में गरूरी की इ .बेटी ने गरूरी पर दबाव बना कर दूसरी जाति क़े अपने सहपाठी रहे इ . से विवाह कर लिया. परन्तु इससे पूर्व पूरा परिवार तनाव -अशान्ति और बाहरी हस्तक्षेप से गुज़रा.घमंडना को सीवियर   बी .पी .अटैक पड़ा,गरूरी को इलाज क़े लिए उत्तर की पडौसी और अपनी पुरानी शिष्या गायीनालोजिस्ट को ही बुलाना पड़ा जिनसे सम्बन्ध बिगाड़ लिए थे.पुत्र -पुत्रवधु लन्दन छोड़ कर आ ही नहीं रहे,अब समाज में उनकी दबी -छिपी चर्चा खूब होने लगी है.
बेहतर है कि ,दूसरों की गलतियों से सबक लेकर औरों को अपना बचाव पहले ही कर लेना चाहिए.विशेषज्ञ वास्तु -शास्त्री श्री पंकज अग्रवाल क़े विचार इस स्कैन कापी में देखें.;-


दि तोड़ -फोड़ व्यवहारिक न हो तो हमारी प्राचीन वास्तु -शास्त्र विद्या में वास्तु दोषों क़े निवारणार्थ हवन की विधि उपलब्ध है. जिसका प्रति वर्ष वास्तु -हवन कराकर लाभ उठाया और दोषों का शमन किया जा सकता है.परन्तु जब बद्धि ही न काम करे तब ?




(इस   ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)


Sunday, November 28, 2010

१८० दिन तथा इदं न मम

ब श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमार तुंगा ने अपनी माँ सिरीमावो भंडारनायके को प्रधान मंत्री पद की शपथ दिलाई थी तो मीडिया ने कहा था ,जिस माँ ने उंगली पकड़ कर चलना सिखाया उसी माँ को पुत्री ने शपथ दिलाई है.यह तो लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में हुआ था.कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ.मई क़े अंतिम सप्ताह में मैंने पुत्र को साइबर कैफे खुलवा दिया.पहली जून से उसने अपना ब्लाग "जो मेरा मन कहे" प्रारम्भ किया और उसी ने मुझे भी ब्लाग प्रारम्भ करने को प्रेरित किया. दो जून से मेरा ब्लाग "क्रांति स्वर" व दो माह बाद "विद्रोही स्वर" प्रारम्भ हुए.चूंकि  मैं कंप्यूटर सञ्चालन से अनभिज्ञ था ,अतः टाइपिंग से लेकर पब्लिकेशन  तक सम्पूर्ण मेरा कार्य उसी क़े जिम्मे था. तीन माह बाद टाईप तो मैं करने लगा परन्तु अभी भी शेष कार्य संपादन करना उसी द्वारा होता है.कुल ब्लाग -लेखन को प्रारम्भ हुए १८० दिन पूर्ण हो गये हैं.इसका पूर्णांक नौ है.नौ सबसे बड़ा अंक होता है और ज्योतिष में इसका बहुत महत्त्व है.कुल ब्रह्मांड (खगोलीय वृत्त ) -३६० डिग्री है और सूर्य की ६० कलाएं हैं.इस प्रकार :-
३६० गुणक ६० =२१६०० एवं सूर्य वर्ष में १४ जन .से १५ जूलाई  तक उत्तरायण तथा १६ जुलाई  से १३ जनवरी तक दक्षिणायन रहता है.अतः २१६०० भाग २ =१०८०० और बाद क़े शून्य का महत्त्व नहीं है.इसी लिए १०८ को बड़ी सं माना जाता है और माला में मनके भी १०८ ही रखे गये हैं.१२ राशियाँ और ९ ग्रह का गुणनफल भी १०८ है तथा २७ नक्षत्रों और इनके चार चरणों का गुणनफल भी १०८ ही है.३६० डिग्री का अर्धव्यास १८० डिग्री होता है और हम लोगों क़े ब्लाग लेखन क़े १८० दिन बीत गये है तो विचार आया कि क्यों न अपने अनुभवों को सार्वजनिक रूप से आप सब क़े साथ बाँट लिया जाये.


सर्व -प्रथम तो यह कि,यशवन्त तो जो उसके मन में आ जाता है उसकी भावाभिव्यक्ति कर देता है और विद्रोही स्वर में मेरे संघर्षों की कुछ झलक है."क्रन्तिस्वर "में व्यक्त विचार मेरे नहीं हैं -इदं न मम.मैंने अपने बुजुर्गों ,शिक्षकों ,विद्वानों आदि से जो सुना या पुस्तकों में जो पढ़ा और मुझे ठीक से याद रहा अपनी भाषा -शैली में व्यक्त कर देता हूँ.शब्द -विन्यास मेरे होते हुए भी भाव और विचार विद्वानों क़े होते हैं.मैं तो डाकिये की भांति उन विचारों को ब्लाग -लेखन क़े माध्यम से बाँट रहा हूँ जो मेरे नहीं हैं.या कह लीजिये विद्युत् तार में बहते करंट की तरह विद्वानों क़े विचारों का सम्प्रेषण मात्र कर रहा हूँ.मेरा उद्देश्य सिर्फ समाज में व्याप्त ढोंग व पाखण्ड का विरोध करके उनका उन्मूलन करना है.इसी लिए जिन ब्लाग्स पर उत्पीडन ,ढोंग व पाखण्ड का विरोध होता है चाहे वे पद्य में हों ,गद्य में हों या व्यंग्य में अपनी सहमति व समर्थन दर्ज करा देता हूँ.मेरे लिए टिप्णी करना लेन -देन नहीं है.फिर भी जो लोग मेरे ब्लाग पर समर्थन व्यक्त कर रहे हैं उनका मैं ह्रदय से आभारी हूँ.परन्तु खेद है कि बीच में माडरेशन की दीवार खडी करनी पड़ गई है क्योंकि पुष्कर ,राजस्थान क़े एक पोंगापंथी जी मेरे दोनों ब्लाग पर टिप्णी क़े रूप में अपना पूरा का पूरा पाखण्ड आलेख छाप गये थे -दोनों ब्लाग्स से उनके ढोंगी लेख को हटा कर तत्काल माडरेशन लागू करना पड़ा.मैं अपने ब्लाग को युद्ध का अखाड़ा बना कर एक -दूसरे पर छींटाकशी  नहीं करवाना चाहता था इसीलिये मजबूरन माडरेशन की बैसाखी थामनी पडी.


कानपुर की एक ब्लागर ने ब्लाग जगत पर धर्म -युद्ध की निंदा की है,मैंने उनका समर्थन कर दिया है.मैं उनके इसानियत क़े धर्म वाली बात से पूर्ण सहमत हूँ मेरी पत्नी पूनम ने भी "मानवता की सेवा "शीर्षक से इसी इंसानियत की अपील की है.अपने ब्लाग में सम्पूर्ण विश्व क़े मानव -कल्याण हेतु विचारों को ही अग्रसारित करता हूँ .कुछ ब्लागर्स की व्यक्तिगत समस्या पर उनके ई .मेल पर उन्ही की सहमति लेकर उनके हितार्थ वांछित स्तुति भी इसी उद्देश्य से भेज दीं कि सब का हित होना चाहिए."सब क़े भला में हमारा भला "


डा .दराल सा :ने अपने पिताजी क़े निधन क़े बाद एक महत्वपूर्ण समस्या समाज में कुरीतियों की उठाई-वहां भी मैंने न केवल ढोंग व पाखण्ड का विरोध किया वरन ज्योतिष क़े आधार पर उपलब्ध ज्ञान सार्वजनिक करने का प्रयास किया.मेरे  समान विचार वाले कम ही निकले,अधिकाँश "जो चलता है ,चलने दो "की मानसिकता क़े ही हैं.कुछ ने आर्थिक क्षमता या सामर्थ्य की बात सामने राखी.मेरा फ़र्ज़ बनता है कि बता दूँ -सूर्य की किरणें पशु,पक्षी ,मनुष्य में ही भेद नहीं करतीं,तो मनुष्यों में गरीब -अमीर का भेद भी नहीं करतीं ,वर्षा का जल भी गरीब -अमीर का भेद नहीं करता फिर समाज में गरीब और अमीर क़े लिए अलग -अलग मान्यताएं चलने का क्या औचित्य होगा ?जो गलत है वह गरीब क़े लिए भी गलत है और अमीर क़े लिए भी गलत है.गलत प्रथा का प्रचलन तो मानव मात्र  हित में समाप्त होना ही चाहिए हर हाल में और जल्दी से जल्दी ही. //


एक ब्लॉगर सा :ने मेरी एक पोस्ट पर विचारों का समर्थन तो किया लेकिन मेरी किसी भी पोस्ट से ताल्लुक न रखने वाला एक वाक्य -A make new friends but remember old ,New are silver old are gold - भी लिख दिया.इसका क्या आशय है वह ही जानें ;परन्तु निजी जीवन में मैंने किसी को मित्र नहीं बनाया है और शत्रु तो कोई भी बन जाये उसी क़े अनुरूप उससे व्यवहार हो सकता है.मित्र तो सुग्रीव और राम थे या फिर सुदामा और कृष्ण थे ,इनके अलावा कौन किसका मित्र था मेरे संज्ञान में नहीं है.जब कोई मेरा मित्र ही नहीं है तो नया या पुराना होने का प्रश्न भी नहीं है .फिर भी यदि किसी को मित्र बताना ज़रूरी ही हो तो मैं सिर्फ अपनी पत्नी पूनम (जो स्व बिलास्पति सहाय जी )की पुत्री हैं को ही बता सकता हूँ ,अन्य कोई मेरा मित्र नहीं हो सकेगा.यदि उन ब्लागर सा : का इशारा ब्लाग्स फालो /अनफौलो करने से हो तो इतना ही कहना चाहूँगा कि जो ब्लॉग अनफौलो  किया उसका कारण उस ब्लाग पर एक अभद्र टिप्णी जो अन्य टिप्णी कारों क़े बारे में एक काबिल -ए -आज़म टिप्णीकार ने मधुमक्खी ,तितली और डरपोक कह कर की उसका पुरजोर समर्थन उस ब्लागर ने खुद किया था;अतः उस ब्लाग से स्वंय को असम्बद्ध करना ही एक -मात्र विकल्प था.
पहले भी स्पष्ट कर चुका हूँ "स्वान्तः सुखाय ,सर्वजन हिताय "ब्लाग लेखन प्रारम्भ किया है ,उसी पर चलता रहूँगा.सहमति ,असहमति,समर्थन या विरोध से कोई फर्क नहीं है क्योंकि,मैं सिर्फ माध्यम हूँ,कोई विचार मेरे नहीं हैं.परमात्मा और प्रकृति प्रदत्त जो ज्ञान विद्वानों ने उपलब्ध कराया है,उसी में से चुन -चुन कर प्रस्तुत कर देता हूँ.आप चाहें तो यह भी कह लें -"कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा ,भानुमती ने कुनबा जोड़ा."
"जीवन परिचय " ब्लाग द्वारा यशवन्त ने ब्लाग -लेखकों से अपना -अपना जीवन -परिचय कि वे कैसे लेखन क्षेत्र में आये ?और उनके लेखन का उद्देश्य क्या है ?उस ब्लाग में लिखने की अपील की थी.मेरा आप सब से अनुरोध है कि ,यशवन्त क़े उत्साह -वर्धन हेतु उस ब्लाग पर अपने विचार प्रकाशित करने का कष्ट करें.


जो देता है ,वह देवता होता है.परमात्मा और प्रकृति मानव मात्र को निशुल्क सब कुछ देते हैं .हम जो मूल्य देते हैं वह एक मानव द्वारा दूसरे मानव को दिया जा रहा है,परमात्मा या प्रकृति को नहीं .परमात्मा और प्रकृति को उनके दिए हुए उपकार क़े बदले में देने क़े लिए "हवन "की वैज्ञानिक पद्धति को पुनः अपनाये जाने पर बार  -बार जोर देता हूँ .एक विद्वान क़े शब्दों को सुनें और समझें ;-





 (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

Friday, November 26, 2010

लड़का घर से भागा क्यों ?

आत्मा अल्पज्ञ होती है और वह जन्म-जन्मान्तर क़े अपने कर्म -अकर्म को याद नहीं रख सकती,परन्तु उसके साथ चल रहे सूक्ष्म व कारण शरीर उसे उन कर्म -अकर्म क़े परिणामों से साक्षात्कार करते चलते हैं.याद रखें -आत्मा और शरीर का सम्बन्ध अन्धे और लंगड़े क़े समान है.आत्मा चैतन्य है लेकिन वह शरीर क़े बगैर लंगड़ा है और स्वतन्त्र रूप से कर्म नहीं कर सकता है. उसी प्रकार शरीर अचेतन होने क़े कारण बगैर आत्मा क़े कोई कर्म नहीं कर सकता.जब आत्मा का अपने पूर्व कर्मानुसार किसी शरीर में प्रवेश होता है तभी वह उस शरीर क़े अनुसार कर्म करने में सक्षम होती है. ज्योतिष ज्ञान क़े अनुसार उस व्यक्ति क़े जन्मकालीन ग्रह नक्षत्रों क़े आधार पर उसके भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है.यह अलग बात है कि,सम्बंधित व्यक्ति अथवा उसके परिवार क़े सदस्य ज्योतिष पर विश्वास न करते हों,पुनर्जन्म या पूर्व जन्म क़े सिद्धांतों को न मानते हों,परन्तु उन ग्रह -नक्षत्रों का प्रभाव हर हाल में उस पर पड़ेगा ही पड़ेगा और उसकी विचार -धरा व मान्यता का ग्रह -नक्षत्रों की चाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. समझिये ०२ .०८ १९८३ की सायं ०५ .१५ पर मुम्बई में जन्मे पुनीत क़े जन्मांग को और उस पर पड़े ग्रहों क़े चमत्कारिक प्रभाव को :-

जन्म लग्न -धनु है,,पंचम में मेष का चंद्रमा,षष्ठम में वृष का राहू ,सप्तम में मिथुन का मंगल अष्टम में कर्क का सूर्य ,नवम में सिंह क़े बुध और शुक्र ,एकादश में तुला  का शनि अर्थात उच्च का है;द्वादश में वृश्चिक का ब्रहस्पत और केतु भी जो गुरु -चांडाल योग बना रहा है.
१० .४ .१९९७ ई .को दोपहर १२ और १२ .३०  बजे क़े मध्य मुम्बई से अपने चाचा की मामूली फटकार पर घर से भाग गया और लगभग छ :वर्ष बाद सकुशल घर वापिस आ गया -परन्तु कैसे ? जैसा कि स्वभाविक था बालक क़े गायब होने क़े बाद उसके माता -पिता ने पुलिस /टी .वी .का तो सहारा लिया ही अनेक ज्योतिषियों व पंडितों की शरण में भी गये.ज्योतिष क़े नाम पर उलटे उस्तरे से मूढ्ने वालों ने जो उपाए बताये -उन्हें कर -कर क़े थक हार कर उसके माता -पिता ने भगवान् पर से  भरोसा उठा लिया .घर में रखे देवी -देवताओं क़े चित्र और मूर्तियाँ समुद्र में बहा दिए.वे यह मान कर बैठ गये कि यह सब ढोंग और पाखण्ड हैऔर उनका बेटा अब शायद जीवित भी नहीं होगा .
उस बालक क़े ताउजी ने २००१ ई . में आगरा में मुझसे संपर्क किया तब उन्हें स्थिति का वैज्ञानिक आंकलन करके कुछ सरल उपाए उन्हें दिए और यह भी आश्वस्त किया कि उनका भतीजा जीवित है और लौट आएगा.लेकिन समस्या यह उत्पन्न हो गई कि बालक क़े माता -पिता पहले ही इतने लुट -पिट और थक  गये थे कि उनमें अब कोई उपाय करने की हिम्मत भी नहीं थी और ललक भी ख़त्म हो गई थी.तब मैंने उसके ताउजी को ही कहा कि वह अपने भतीजे का संकल्प लेकर खुद वही उपाय करें.हालाँकि उन्होंने सब नहीं कुछ ही उपाय किये ,लेकिन पूरी श्रद्धा और विश्वास क़े साथ.उनके छ :माह उपाय करने क़े उपरान्त बालक क़े मन में हलचल होने लगी और घर वापसी की सोचने लगा.अन्तत: उस सोच क़े छ : माह बाद (उपाय करते हुए एक वर्ष होते -होते )वह वर्ष २००२ ई .की होली क़े पश्चात अपनी मौसी क़े घर अजमेर पहुँच गया जहाँ से उसके माता -पिता उसे मुम्बई ले आये .उसने आगे अपनी पढ़ाई भी पूरी की.प्रश्न यह उठता है कि वह भागा क्यों ?और लौट क्यों  आया ?

आइए इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करें.बालक का जन्म द्वि स्वभाव  राशि की धनु लग्न में हुआ था.उसके पंचम भाव में ही शत्रु -क्षेत्रीय चन्द्र भी स्थित है.चन्द्र मन का कारक होता है.अतः ऐसा बालक अपने लिए शत्रुतापूर्ण अर्थात मूर्खतापूर्ण कार्य करता है,और इस बालक ने यही तो किया.खुद की गलती क़े लिए मामूली सी फटकार पड़ने पर उसने घर छोड़ने का दुस्साहसिक निर्णय ले लिया.लग्नेश और सुख भाव क़े स्वामी ब्रहस्पति की व्ययेश भाव में स्थिति ने आग में घी का कम किया.जब यह बालक चौदहवें वर्ष में ब्रहस्पति की एक -चरण दृष्टि से युक्त था ,घर से भाग निकला.बारहवां ब्रहस्पति जातक को व्याभिचारी और रोगी बनता है.अब एक नज़र उसकी पलायन कुंडली पर डालें.

चैत्र शुक्ल चतुर्थी गुरूवार को आयुष्मान योग और कृतिका नक्षत्र में यह बालक घर छोड़ कर भगा था.उस समय की गोचर ग्रह -स्थिति क़े अनुसार राहू ने सुख में बढ़ा उपस्थित की तथा परिवार से बैर -भाव मन में ला दिया.अष्टम क़े ब्रहस्पति ने पीड़ा,दशम क़े शुक्र ने दुःख ,केतु ने शोक व शनि ने बाधाएं उपस्थित कीं.मन का कारक चन्द्र व्यय भाव में था परन्तु उच्च का था तथा पलायन दिस्वभाव की राशी की लग्न में (मिथुन )में हुआ था .दशमस्थ सूर्य सिद्धिदायक तथा मंगल साहस -पराक्रम को बनाने वाला तथा बुध लाभदायक स्थिति में था.इसी कारण बालक घर से भागने क़े बाद भी पुरुषार्थ द्वारा जीविकोपार्जन कर गुजारा चलाता रहा.कृतिका नक्षत्र क़े प्रभाव क़े कारण वह उत्तर दिशा -अहमदाबाद चला गया और अजमेर में जाकर प्रकट हुआ.

जन्मकालीन  चन्द्र व ब्रहस्पति की स्थिति -आयु खंड में क्रमशः दसवीं व तीसरी दृष्टि तथा गोचर कालीन  चन्द्र ,ब्रहस्पति,शुक्र ,शनि ,राहू व केतु क़े प्रभाव से बालक ने घर से भागने का दुस्साहसिक कदम उठा तो लिया.फिर वह लौटा कैसे ?देखिये ,जन्मकालीन राहू शत्रु भाव में शुक्र की राशि वृष में स्थित है जो उसे धैर्यवान बना रहा है.ऐसा राहू शत्रु का संहार भी करता है.अतः बालक निरापद ढंग से पूर्ण साहस व पराक्रम क़े साथ पुरुषार्थ में जुटा रहा . भाग्य भाव में सिंहस्थ बोध पिता को सुख पहुचाने वाला होता है.अब यदि यह बालक घर से भगा ही रहता तो पिता को सुख किस प्रकार पहुंचाता ?इसी हेतु इसके ताऊजी को आश्वस्त किया था मैंने कि ,बालक लौटेगा अवश्य और वह लौटा भी और पिता की इच्छानुसार पुनः पठन -पाठन  भी किया.

भले ही बालक क़े माता -पिता का ज्योतिष और ग्रह -नक्षत्रों से विश्वास पोंगा -पंथियों क़े भटकाव क़े कारण उठ गया हो ,परन्तु ग्रह -नक्षत्रों की चाल का उसके जीवन पर सटीक और भरपूर प्रभाव पड़ा है.ख़राब प्रभाव को उसके ताउजी द्वारा मन्त्रों क़े सस्वर पाठ से ग्रह -नक्षत्रों पर तरंगों (वायबरेशन) द्वारा ठीक किया गया था.हमारी प्रार्थना और सद्प्रयासों का अन्तरिक्ष पर पूरा प्रभाव पड़ता है.

आगे यह करेगा क्या ?-धन भाव का स्वामी शनि आय भाव में उच्च का होकर तुला राशि में स्थित है. दिव्तीय भाव में मकर राशि की उपस्थिति इसमें गज़ब की प्लानिंग -शक्ति दर्शाता है.पत्थर ,खान अथवा जल से सम्बंधित वस्तुओं क़े व्यापार में यह सफल रहेगा.उच्च वाहन सुख की प्राप्ति होगी.धनाढ्य रहेगा परन्तु या तो निसंतान रहेगा,अथवा पुत्री संतान ही होगी.पुत्र संतान से यह वंचित ही रहेगा.ऐसा संतान भाव में शत्रु -क्षेत्रीय चन्द्र की उपस्थिति तथा शनि की पूर्ण दृष्टि क़े कारण होगा.पत्नी भाव में ,प्रेम व व्यय भाव का स्वामी होकर मंगल भी शत्रु  क्षेत्रीय है;अतः इसकी दो पत्नियाँ होंगी और  उन दोनों का ही नाश होगा.पत्नी व संतान सुख से वंचित होकर यह जातक भारी ऐय्याश होगा और व्यभिचार में संलिप्त रहेगा .यदि इसे सही दिशा -निर्देश प्राप्त हो जाये और यह कुपित ग्रहों की विधानपूर्वक वैज्ञानिक पद्धति से शांति कराये,अरिष्टों क़े शमन हेतु स्तुति पाठ नियमित करे तो इसके जीवन में घटित होने वाले अनिष्ट का प्रकोप संभवतः कम हो जाएगा और इसकी श्रद्धा व विश्वास क़े अनुपात में वह क्षीण एवं समाप्त हो जाएगा.मनुष्य मननशील (विवेकशील )प्राणी है और अपने सत्कर्मों द्वारा अपने भाग्य को अपने अनुकूल मोड़ सकता है लेकिन क्या धन की प्रमुखता वाले समय मे ऐसा  हो सकेगा ?






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Thursday, November 25, 2010

ज्वलंत सामाजिक समस्या-अशांति

समाज वह व्यवस्था है जिसमे रहने वाले लोग परस्पर संबंधों क़े आधार पर एक -दूसरे पर अन्योन्याश्रित  रहते हैं .समाज में शांति व व्यवस्था बनाए रखने क़े लिए ,उस समाज द्वारा कुछ नियम व मर्यादाएं निरूपित की जाती हैं जिनका पालन उसमे रहने वाले लोग स्वेच्छा से करते हैं और सुखी जीवन व्यतीत करते हैं .लेकिन आज यों तो अशांति एक विश्व -व्यापी समस्या बन चुकी है परन्तु भारतीय समाज क़े सन्दर्भ में यह विकराल रूप धारण किये हुए खडी है. क्या बच्चे ,क्या बूढ़े और क्या नौजवान सभी किसी न किसी समस्या से ग्रस्त अशांत जीवन जीने को बाध्य है.प्राचीन काल में विश्व गुरु और सोने की चिड़िया नामों से विभूषित हमारे भारतीय समाज को आज क्या हो गया है जो आज हमें सर्वत्र अशांति क़े ही दर्शन होते हैं .वैज्ञानिक प्रगति ,आर्थिक विकास ,शोध -अनुसंधान किसी भी क्षेत्र में हम विश्व क़े किसी भी अन्य समाज से कतई पीछे नहीं हैं .जहाँ हम कभी सुई का भी आयात करते थे ,आज न केवल वायुयान और राकेट बना रहे हैं बल्कि निर्यात क़े क्षेत्र में भी कदम बढ़ा चुके हैं .कभी हम अमेरिकी पी .एल .चार सौ अस्सी की बैसाखी क़े सहारे अपने समाज की क्षुधा शान्त कर रहे थे ,आज हम न केवल अन्न क़े निर्यातक हैं बल्कि प्राद्योगिकी तक का निर्यात कर रहे हैं.हर क्षेत्र में अपनी अग्रणी पताका फहराने क़े बावजूद हम जिस एक समस्या से ग्रसित हैं वह है चतुर्दिक अशांति और इसका निदान बड़े -बड़े समाजशास्त्री ,राजनेता ,धर्म गुरु ,समाज सुधारक आदि कोई भी नहीं कर पा रहे हैं .प्रातः काल आँख खुलने से रात्रि में सोते समय तक प्रायः हर मनुष्य किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होकर अशांत हैं,बल्कि इसी अशांति क़े चलते कईयों की तो रात की नींद और दिन का चैन तक उड़ चुका है .छोटे -छोटे संस्कारों पर भी भव्य प्रीती -भोज तो आयोजित किये जा रहे हैं परन्तु लोगों में प्रीत -भाव का सर्वथा अभाव हैएक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ और अपने अहं की तुष्टि में ही गौर्न्वावित होना आज का सामाजिक चलन हो गया है. आज क्या ज्ञानी क्या पंडित सभी हाय -पैसा ,हाय -पैसा करते घूम रहे हैं .फिर चाहे यह पैसा वैध -विधि से हासिल हो या अनीति द्वारा सारे प्रवचन पर -उपदेश कुशल बहुतेरे सिद्ध हो रहे हैं.एक ओर भीषण बेरोजगारी है और परिवार क़े परिवार भूखे मरने को बाध्य हैं तो दूसरी ओर एक परिवार क़े पति -पत्नी और कहीं -कहीं उनके बच्चे भी ऊँची सोर्स से रोजगार संपन्न हैं.कहीं इलाज क़े लिए पैसा भी नहीं है और कहीं करोड़ों रूपये फूंक कर फाईव स्टार होटलों सरीखे अस्पतालों में इलाज चल रहा है.कोई दहेज़ न होने क़े कारण अपनी लडकी की शादी में विलम्ब से अशान्त है तो कोई लड़के की बेरोजगारी क़े कारण पुत्र -वधु लाने से वंचित हो रहा है.भूख से व्याकुल तड़पते परिवार अशान्त हैं तो गोदामों भरा अनाज सड़ाकर फेंका जा रहा है और व्यापारी इस घाटे क़े कारण अशान्त है.एक ओर कुपोषण क़े कारण करोड़ों बच्चों का भविष्य अधर में है और दूसरी ओर साधन -सम्पन्न और समृद्ध परिवारों में रक्तचाप ,ह्रदय ,मधुमेह ,गुर्दा आदि रोगों क़े कारण भोजन प्रतिबन्धित और नियन्त्रित हो रहा है.आखिर क्या है इस अशान्ति का कारण और इसे कैसे दूर किया जा सकता है ? उत्तर सरल है भारतीय समाज द्वारा अपनी पुराणी संस्कृति का विस्मरण किया जाना ही सर्वत्र अशान्ति का हेतु है और इसका निदान प्राच्य संस्कृति को अपनाने में ही है.
बहुत देख लिया आधुनिक सभ्यता और संस्कृति को जहाँ नग्न -नृत्य क़े अलावा और धरा ही क्या है ?अब तो अगर हम शान्ति चाहते हैं और दिल से सच्ची शान्ति की चाह है तो फिर देर किस बात की ? अपनी पुराणी संस्कृति को अपनाना ही होगा क्योंकि OLD is GOLD आज क़े बुजुर्ग आज की समस्याओं क़े लिए पूरी तरह उत्तरदायी हैं ,अतः नौजवानों को ही अब आगे आना होगा और अपनी पुराणी संस्कृति को गले लगाना होगा जो ----"सर्वे सन्तु निरामयः "वाली है ,"वसुधैव कुटुम्बकम "ही जिसका अभीष्ट है.सम्पूर्ण विश्व और उसके परम -पिता से प्यार करना ही अशान्ति का निदान करना है.

परम पिता से प्यार नहीं ,शुद्ध रहे व्यवहार नहीं.
इसीलिये तो आज देख लो ,सुखी कोई परिवार नहीं..
फल और फूल अन्न इत्यादि ,समय समय पर देता है.
लेकिन है अफ़सोस यही बदले में कुछ नहीं लेता है..
करता है इनकार नहीं ,भेद भाव तकरार नहीं.
ऐसे दानी का ओ बन्दे ,करो जरा विचार नहीं..
परम पिता से प्यार नहीं ,शुद्ध रहे व्यवहार नहीं.
इसी लिए तो आज देख लो ,सुखी कोई परिवार नहीं..

कविवर नरदेव जी की सीख को अपनाएँ हम और परम -पिता से प्यार रखते हुए हवन की वैज्ञानिक पद्धति को पुनः अपनाएँ हम तो कोई कारण नहीं कि ,अशान्ति दूर होकर सर्वत्र शान्ति स्थापित न हो.


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Tuesday, November 23, 2010

"आँगन तुलसी ,द्वारे नीम -फिर क्यों आये वैद्य -हकीम "

(Imege:Google Search)
यह शीर्षक उस स्लोगन से लिया गया है जिसका प्रयोग एन .सी .ई .आर .टी .,पटना में कार्य -काल क़े दौरान मेरी श्रीमतीजी (पूनम ) ग्रामीणों को समझाने में अपने ग्रुप क़े साथ करती थीं.यह बात बिलकुल ठीक है कि नीम स्वंय हकीम है .नीम न केवल पर्यावरण शुद्ध करता है,बल्कि यह एक उच्च कोटि का रक्तशोधक भी है.त्वचा और वायु -प्रकोप में तो नीम राम -बाण औषधी ही है.इस सम्बन्ध में अपने आयुर्वेद -रत्न अध्यन में आये एक किस्से का वर्णन करना प्रासंगिक रहेगा.६०० ई .पूर्व हमारे देश क़े सुप्रसिद्ध वैद्य सुश्रुत (जो कि दिवोदास जी क़े शिष्य और सुश्रुत संहिता क़े रचयिता थे )की परीक्षा उनके समकालीन यूनानी हकीम पाईथागोरस ने अद्भुत तरीके से लेनी चाही. पाईथागोरस ने एक यात्री( जो भारत आ रहा था ) से कहा कि ,वहां  जा कर सुश्रुत को मेरा सन्देश दे देना.जब उस यात्री ने सन्देश पूछा तो पाईथागोरस ने कह दिया कि कुछ नहीं ,बस तुम जाते समय रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना. उस यात्री ने ऐसा ही किया और सुश्रुत से जब मिला तो उनसे कहा पाईथागोरस ने आपके लिए सन्देश देने को कहा है पर कुछ बताया नहीं है. सुश्रुत ने पूछा कि फिर भी क्या कहा था ,उस यात्री ने जवाब दिया कि उन्होंने कहा था कि रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना और मैंने वैसा ही किया है.यह सुन कर सुश्रुत ने कहा कि ठीक है अब तुम लौटते में रोजाना नीम क़े पेड़ क़े नीचे सोते हुए जाना. उस यात्री ने अब वैसा ही किया.पाईथागोरस ने जब उस यात्री से सुश्रुत क़े बारे में पूंछा तो उसने कहा कि उन्होंने भी कुछ नहीं कहा सिवाए इसके कि लौटते में नीम क़े नीचे

(Photo:Google Imege Search)
सोते हुए जाना.

पाईथागोरस ने सुश्रुत का लोहा मान लिया. कारण स्पष्ट है कि इमली क़े पेड़ क़े नीचे सोने से उस व्यक्ति में वात का प्रकोप हो गया था.लौटते में नीम क़े नीचे सोने से वह वात -प्रकोप नष्ट हो गया.सिर्फ वात -प्रकोप ही नहीं अनेक रोगों का इलाज नीम से होता है. :-
डायबिटीज़ -नीम,जामुन और बेल -पत्र की तीन -तीन कोपलें मिला कर प्रातः काल शौचादि क़े बाद मिश्री मिलकर चबाते रहने से डायबिटीज़ रोग जड़ से समाप्त हो जाता है.
बवासीर -नीम की निम्बोली पकी होने पर गुठली समेत साबुत निगल लें.प्रातः काल ३ से शुरू करके २१ तक ले जाएँ पुनः घटाते हुए तीन पर लायें .इस प्रयोग से बवासीर रोग जड़ से समाप्त हो जाता है.
रोग अनेक -औषद्धि एक -वात व पित्त क़े प्रकोप से होने वाले रोग ,बिगड़े हुए घाव ,कृमि जान रोग ,बवासीर तथा श्वास -कास सभी रोगों में 'नीम ' मिश्रित घृत (घी )लाभ करता करता ही है कुष्ठ रोग दूर करने में भी सहायक है इसे पञ्च तिक्त घृत क़े नाम से बाजार से भी खरीद सकते हैं.
निर्माण विधि -(१)नीम की छाल ,पटोल पत्र ,कटेरी पंचांग ,वासा का पंचांग ,गिलोय इन पाँचों को ५० -५० ग्रा .की मात्रा में लें और मोटा -मोटा कूट कर उबालें पानी लीटर लें.जब चौथाई भाग अर्थात ७४० मि .ली .बचे तो उतार कर कपडे से छान लें.
(२ )अब इसमें गाय का घी १५० ग्रा .और त्रिफला चूर्ण २० ग्रा .की मात्रा में मिला कर पुनः तब तक उबालें जब तक कि समस्त पानी जलकर मात्र घी न बच जाये.
(३ )एक चम्मच घृत मिश्री मिला कर चाटें और गुनगुना गर्म दूध पीयें.
पहले सड़कों क़े किनारे जो छायादार वृछ लगाये जाते थे उनमे नीम प्रमुख था ,तब वातावरण इसी कारण शुद्ध रहता था .क्या हम फिर उसी परंपरा को नहीं अपना कर सुखी रहने का अवसर खोते जा रहे हैं ?



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Saturday, November 20, 2010

तुलसी की महत्ता---विजय राजबली माथुर

कार्तिक मास की पूर्णिमा को तुलसी का जन्म -दिवस और कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी-शालिग्राम विवाह क़े रूप में पुराणों द्वारा प्रचारित किया गया है तथा अंध -विश्वास क़े कारण जनता द्वारा भी ऐसे ही मनाया जाता है.लेकिन वास्तविकता क्या है यही बताने का प्रयास इस आलेख क़े माध्यम से किया जा रहा है,यह जानते हुए भी कि ,सच्चाई को बहुत कम लोग ही स्वीकार करेंगे और मानेंगे तो बिलकुल ही नहीं.    ब्रज  की पहचान वृन्दावन से होती है और वृंदा तुलसी को कहते हैं.इस क्षेत्र में तुलसी की अधिकता क़े कारण ही योगीराज श्री कृष्ण की कर्मस्थली का नाम वृन्दावन पड़ गया है. हम जब  आगरा में थे ,हमारे घर क़े खाली क्षेत्र में तुलसी क़े अनेक पौधे थे.आगरा ब्रज -क्षेत्र में होने क़े कारण वहां की जल -वायु तुलसी क़े अनुकूल है. तुलसी क़े पौधों की देख -भाल मेरी पत्नी पूनम करती थीं :
(यह फोटो जब आगरा में थे तब का है)
 जिस कारण आस -पास जब गर्मी या सर्दी क़े प्रकोप से तुलसी का क्षय  हो जाता था ;सिर्फ हमारे यहाँ ही तुलसी उपलब्ध रहती थी.वैज्ञानिक विश्लेषणों क़े अनुसार हमारे देश में पायी जाने वाली तुलसी की प्रजातियाँ इस प्रकार हैं:-

  • आसीमम अमेरिकेनम -इसे काली तुलसी,गंभीरा या भामरी कहते हैं.
  •  आसीमम वेसोलिकम -मरुआ तुलसी,मुजरिकी या सुरसा भी कहते हैं.
  •  आसीमम ग्रेटिसिकम -राम तुलसी ,वन तुलसी भी कहलाती है.
  •  आसीमम किलिमंडचर्रिकम-कर्पूर तुलसी कहलाती है.
  • आसीमम सैंटकम  -यह प्रधान या पवित्र तुलसी है .इसकी भी दो प्रधान जातियां हैं -(अ )श्री तुलसी जिसकी पत्तियां हरी होती हैं तथा (ब )कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियां निलाभ कुछ बैंगनी रंग लिए हुए होती हैं.इसे श्यामा  तुलसी भी कहते हैं.
  • असीमम विरीडि -यह थोडा कम  मात्रा में पायी जाती है.
रासायनिक विश्लेषणों -से ज्ञात हुआ है कि तुलसी क़े पत्तों में एक पीलापन लिए हुए हरे  रंग का तेल होता है,जो हवा में उड़ता है.कुछ देर रखने पर उसमे दानेदार रवे से जम जाते हैं जिसे तुलसी कपूर की संज्ञा दी जाती है.छाया में पैदा होने वाली तुलसी में यह तेल अधिक होता है.श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षित घनत्व भी कुछ अधिक होता है. तेल क़े अतिरिक्त पत्तियों में लगभग ८३ मि.ग्रा .विटामिन "सी "एवं २ .५ मि .ग्रा .प्रतिशत केरोटिन होता है.
(फोटो साभार:गूगल इमेज सर्च)
                    
 तुलसी एक गुण अनेक

शरीर की विद्युतीय संरचना -को तुलसी सीधे प्रभावित करती है .तुलसी काष्ठ क़े दानों की माला गले में पहनने से शरीर में विद्युत्  शक्ति का प्रभाव बढ़ता है तथा जीवकोषों द्वारा उनको धारण करने की सामर्थ्य में वृद्धि होती है.इसके प्रभाव से अनेकों रोग आक्रमण करने से पूर्व ही समाप्त हो जाते हैं और आयु में वृद्धि होती है.फिर भी यदि कोई माला न धारण कर सके तो तुलसी क़े निम्न -लिखित प्रयोगों द्वारा व्याधियों का शमन तो कर ही सकता है:-
चंद्रोदय ग्रन्थ क़े अनुसार
आँतों क़े अन्दर तुलसी पत्र स्वरस का प्रभाव कृमिनाशक एवं वातनाशक होता है.इसके प्रयोग से वमन(उल्टी )बंद होता है और पुराना कब्ज दूर होता है.दाद पर रस चुपड़ने से ठीक हो जाता है.वृणों (फोड़ों )पर स्वरस से मर्जित करने पर उनमे संक्रमण नहीं बढ़ता तथा वे जल्दी ठीक हो जाते हैं.
तुलसी बीज का चूर्ण - मूत्र दाह व विसर्जन में कठिनाई होने तथा ब्लड प्रेशर की सूजन होने व पथरी में तुरन्त लाभ करता है.
राजयक्ष्मा (T .B .)-में तुलसी जीवनी शक्ति बढ़ा कर T .B .क़े जीवाणुओं को पलने नहीं देती.
मलेरिया -तुलसी एन्टी मलेरिया है.घर क़े आस -पास लगाने से मच्छर समीप नहीं आते .इसके स्वरस का लेप करने से वे काटते नहीं तथा मुख द्वारा ग्रहण किये जाने पर उन्हें इसके सक्रिय संघटक नष्ट कर देते हैं.परन्तु याद रखें तुलसी पत्र दांतों से न चबाएं क्योंकि तुलसी में पारा (MERCURRY )होता है जो दांतों की पालिश को नष्ट कर डालता है.तुलसी पत्र स देव निगलें या जल में लें.
गर्भ -निरोधक -तुलसी पत्र क़े क्वाथ (काढ़े )की यदि एक प्याली प्रतिमास रजोदर्शन क़े बाद तीन दिन तक नियमित रूप से सेवन कराएं तो गर्भ की स्थापना नहीं होती .
बालकों क़े रोग -श्वेत तुलसी उष्ण व पाचक होने क़े कारण बालकों क़े रोगों में प्रयुक्त करते हैं.
कफ़ ज्वर -काली तुलसी ,काली मिर्च और अदरक का काढ़ा बना कर सोते समय पिलाने से कफ़ व ज्वर का नाश होता है.
काढ़ा बनाने क़े लिए तुलसी पत्र ३ ,५ ,७ , ९ ,११ आदि विषम क्रम में लें और छोटे टुकड़े कर लें व   ऐसे ही काली मिर्च लें तथा अंदाज़ से अदरक लेकर साथ में  कूट लें -इस सब को एक कप पानी में भिगोएँ और सोते समय पकाकर जब शश चौथाई कप रह जाये तो मीठा मिलाकर पिलायें.
सईनोसाईटिस -पीनस रोग में तुलसी क़े सूखे पत्तों का चूर्ण प्रयोग किया जाता है.
कर्ण शूल -तुलसी से सिद्ध किया हुआ तेल कान -दर्द में डालें तो तुरन्त आराम होता है.
कमजोरी -तुलसी की जड़ का चूर्ण प्रातः -साँय घी क़े साथ लें तो ओज व बल बढ़ता है.
प्रवाही पदार्थों में तुलसी पत्र डालकर पीने से उनकी जीवनी शक्ति में विशेष वृद्धि हो जाती हैऔर हानिप्रद कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. इसी लिए शास्त्रों में विधान बनाया गया है कि ,पंचामृत ,चरणामृत में तुलसी दल अवश्य डालें और इसी लिए कार्तिक मास में तुलसी क़े पुष्पित होने पर इसकी पूजा ,अनुष्ठान,उदयापन,अर्चन किया जाता है.तुलसी मानव जीवन क़े लिए अमृत है.
हमारे ऋषी -मुनियों का आशय तुलसी पूजा से यह था कि हम मनुष्य अपनी मानव -जाति क़े लिए बहुउपयोगी इस औषद्धि का संरक्षण,संवर्धन करें न कि आज प्रचलित ढोंग -पाखण्ड से  था;कि वृक्ष  का पत्थर से विवाह कराकर व्यर्थ पैसा और समय बर्बाद करके फिर उसे सड़ने ,पाले में गलने क़े लिए खुले आसमान में छोड़ दें.तुलसी को कपडे से ढक कर पाले से उसकी रक्षा  करना था न कि चुनरी किसी ढोंगी को दान करके नाहक भक्त कहलाना था.काश हम अपने पूर्वजों की भावना को समझ कर अपना कल्याण कर सकें ?
मैं जानता हूँ अधार्मिक लोग इस सच्चाई का मखौल उड़ायेंगे और ढोंग व पाखण्ड को तिलांजली नहीं देंगे.फिर भी अपना कर्त्तव्य पूर्ण किया.


(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
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Sunday, November 14, 2010

लखनऊ क़े अपने मकान में एक वर्ष

हालाँकि २३ सित.०९ को आगरा क़े अपने मकान की रजिस्ट्री क्रेता क़े पक्ष में करा दी  थी परन्तु १५ दिन अधिक रह कर ०८ अक्तू .को वहां से प्रस्थान करके ०९ अक्तू .को लखनऊ पहुँच गए थे और ०९ .१० २०१० को लिखी पोस्ट में बहुत सी बातों का विवरण दे दिया था .०४ .११ ०९ को अपने मकान की लखनऊ में रजिस्ट्री करने क़े बाद १४ .११ ० ९ को गृह-प्रवेश करके रहने आ गए थे और आज इस मकान में रहते हुए एक वर्ष पूर्ण हो गया है .


(गृह प्रवेश क़े वक़्त)



इस एक वर्ष में तमाम संघर्षों में उलझे रहने क़े बावजूद  दो उपलब्धियां भी हासिल हुईं -एक तो "क्रांति -स्वर" व " विद्रोही स्व स्वर में "ब्लाग्स क़े माध्यम से कई विद्व -जनों से संपर्क .दूसरी और सबसे बड़ी बात यह रही है कि जिस मकान क़े लिए भस्मासुर इ .सा :ने हमारा रु .एडवांस करा क़े फंसवा दिया था उसके असली मालिक की कानूनी जीत में हमारी ज्योतिषीय राय का भी योगदान रहा .जिस व्यक्ति की वह जायदाद थी उसी क़े पास रही ,हमारा एडवांस वापिस मिल गया और हम एक अलग कालोनी में एक अलग मकान में रहने लगे .उस मकान की सं .भी वही थी जो हमारे इस मकान की है ,वहां भी सामने पार्क था -यहाँ भी सामने पार्क है ;ये समानताएं देख कर उस मकान क़े वास्तविक मालिक हैरान थे .लेकिन यह सब तो गृहों का तमाशा है.

भुना चना -परमल खा -खा कर आगरा वाले मकान की किश्तें पूरी की थीं क्योंकि मुझे जाब-विहीन कर दिया गया था .दुकान -दुकान नौकरी करके गुजारा कर रहे थे .इस तरह हासिल उस बड़े मकान को बेच कर यहाँ छोटा मकान लेना भी हमारे निकटतम व घनिष्ठतम रिश्तेदारों को बुरा लगा है .ज्यादातर को हमारा वापिस लखनऊ आना ही नहीं सुहाया है .पहले मेरी पत्नी पूनम पर शक किया गया कि उनके रिश्तेदार यहाँ होंगे इस लिए लखनऊ पसंद किया होगा .हकीकत यह है कि पूनम पटना क़े श्रीवास्तव परिवार की हैं जिनका कोई रिश्तेदार न आगरा में था न लखनऊ में है .जब यह लगा कि यशवन्त की ख्वाहिश लखनऊ आने की थी तो उसके विरुद्ध हो गए -यहाँ तक कि गत वर्ष जब वह कानपुर   में जाब कर रहा था और वहां अकेला था उसको जनम -दिन की बधाई नहीं दी गई उन लोगों द्वारा भी जिनके खुद क़े ही नहीं उनके बच्चों और बच्चों क़े भी बच्चों क़े जनम -दिन पर हम बिला नागा मुबारकवाद देते हैं .मेरे लिए तो इस बात का कोई महत्त्व नहीं था परन्तु खुद यशवन्त को थोडा अटपटा लगा ;अब वह इस वर्ष हम लोगों क़े साथ है और उसका कहना है कि यदि इस बार वे जनम -दिन पर संपर्क करेंगे तो उस पर मैं उन लोगों से बात करने का दबाव न डालूं क्योंकि पूरे एक वर्ष उन लोगों ने उसका हाल-चाल तक न पूंछा है .हमारी बउआ की एक रिश्तेदार जिन्होंने १९७३ में मुझे अपने माता -पिता से अलग होने को कहा था और मैंने उन्हें ससम्मान ऐसा करने से इनकार कर दिया था . (१९७८ से मृत्यु पर्यंत १९९५ तक बउआ -बाबूजी मेरे साथ ही रहे )संभवतः उन्ही ने अपने न्यू हैदराबाद क़े संपर्कों क़े आधार पर एक ब्लागर को भरमाकर यशवन्त को मेरे विरुद्ध करने का प्रयास किया ;उन्हें कामयाबी मिली या नाकामयाबी इसे वे लोग ही जाने .मै इतना ही बताना चाहता हूँ कि हमारी  माँ क़े विरुद्ध अभियान चलाने वाली और हमारे भाई को हमारे विरुद्ध करने वाली उन रिश्तेदार की अपनी छोटी पुत्र -वधु उनके पौत्र को लेकर अलग हो गई है और उन पर मुकदमा चला दिया है ; उन्ही क़े एक देवर ने बताया था .परमात्मा और पृकृति क़े न्याय का ढंग बेहद अनूठा होता है जिसे "मानव " प्राणी समझ ही नहीं पाता है और ठोकरें खा कर भी गलती पर गलती करता जाता है क्योंकि वह अहंकार में अपने को सदा सही ही समझता रहता है .खैर गलतियां करना और गालियाँ देना तो आज क़े बड़े (समृद्ध )लोगों का दस्तूर है.

हमारे इर्द -गिर्द भस्मासुर इ .सा :की मेहरबानी से मेरे ही नहीं मेरे पुत्र क़े भी पोफेशन क़े विरुद्ध दुष्प्रचार करने वालों की कमी नहीं है.मेरी श्रीमती जी को यह सब बहुत कचोटता है .मुझे फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि मैं इस सब क़े होने वाले अंजाम का अंदाजा रखता हूँ .लखनऊ नगर क़े ही एक और अच्छे ब्लागर सा :से सपर्क हुआ और फोन वार्ता भी लेकिन अब नाम सार्वजनिक नहीं कर रहा हूँ .स्थानीय लोग हमें मूर्ख समझते हैं जबकि ब्लाग -जगत में यशवन्त को तथा कुछ हद तक मुझे भी विद्वजनो की प्रशंसा व समर्थन मिल रहा है. पत्रकार स्व .शारदा पाठक ने स्वंय अपने लिए जो पंक्तियाँ लिखी थीं ,मैं भी अपने ऊपर लागू समझता हूँ :-


लोग कहते हम हैं काठ क़े उल्लू ,हम कहते हम हैं सोने क़े .
इस दुनिया में बड़े मजे हैं  उल्लू   होने   क़े ..


ऐसा इसलिए समझता हूँ जैसा कि सरदार पटेल क़े बारदौली वाले किसान आन्दोलन क़े दौरान बिजौली में क्रांतिकारी स्व .विजय सिंह 'पथिक 'अपने लिए कहते थे मैं उसे ही अपने लिए दोहराता रहता हूँ :-

यश ,वैभव ,सुख की चाह नहीं ,परवाह नहीं जीवन न रहे .
इच्छा है ,यह है ,जग में स्वेच्छाचार  औ दमन न रहे ..

अपनी क्षमता व सामर्थ्य क़े अनुसार अपने ब्लाग क़े माध्य्यम से लोगों को जागरूक करने और पाखण्ड से हटाने का प्रयास करता रहता हूँ .यदि कोई एक भी इनसे लाभ उठा सका तो वह मेरे लिए बोनस है ;वर्ना मै तो अपना कर्त्तव्य समझ कर लिखता जा रहा हूँ ,उसका फल तो उसे ही मिलेगा जो उसका पालन करेगा ,मुझे तो उतना ही फल मिलेगा जितने का मै पालन करता हूँ .दीपावली पर कुछ अन्य ब्लागर्स ने भी पटाखा,कृत्रिम रोशनी आदि आडम्बरों क़े विरुद्ध अपने आलेख लिखे जिन्हें पढ़ कर खुशी हुयी और यह एहसास भी हुआ कि सिर्फ मै ही अकेला नहीं हूँ .मैंने पटाखों को मानवीय क्रूरता का द्योतक बताया था तो उसकी पुष्टी एक अन्य ब्लागर क़े आलेख से हो जाती है जिसमे उन्होंने बताया है कि ,सिवाकासी में लगभग एक लाख बच्चे आतिशबाजी क़े धंधे में लगे हैं और अक्सर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.विदेशियों ने उन पर फीचर फिल्म तैयार की है और हमारे देशवासी उनकी ओर से मुंह मोड़े हुए हैं .ऐसे ब्लागर्स का समर्थन करना मेरा फ़र्ज़ था अतः मैंने उनके यहाँ अपनी अनुकूल टिप्पणियाँ दीं हैं .जैसा कुछ ब्लागर्स ने लिखा है कि टिपणी लिखना लेन -देन है (एक अच्छे ब्लागर सा :ने दीवाली गिफ्ट से तुलनात्मक व्यंग्य किया वह अलग बात है )मैं उनसे सहमत नहीं हो सकता  . ठीक बात है तो हमारा नैतिक दायित्व है कि हम उनका समर्थन करें और यह उम्मीद मैं नहीं करता हूँ कि बदले में वे भी आकर मेरे ब्लाग पर जवाबी टिप्पणी करें .मैं तो स्वान्तः सुखाय ,सर्वजन -हिताय लिखता हूँ और लिखता रहूँगा .मेरी तो ख्वाहिश यह है कि पाठक ब्लॉगर बजाये मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने क़े अपने जीवन में उन बातों से जो लाभ उठा सकते हैं -अवश्य उठायें .



(दीवाली हवन क़े फोटो)
 हम तो अक्सर ही हवन करते हैं .समस्त शुभ कार्यों ,जनम -दिवस ,शादी की सालगिरह आदि (बहन ,भाई ,भांजियों व उनके बच्चों ,भतीजी तथा श्रीमतीजी क़े भी निकटतम घनिष्ठ्त्तम लोगों क़े )हम हवन ही करते हैं.हमने चाहा था कि कालोनी क़े लोगों को "हवन -विज्ञान "की ओर मोड़ा जाये लेकिन ज्यादा पढ़े -लिखे ,समृद्ध -पैसे वालों को ढोंग -पाखण्ड से कैसे दूर किया जाये इसकी कला न जानने क़े कारण असफल रहे.वे लोग कान -फोडू भोंपू बजा -बजा कर भगवद ,रामायण का तमाशा करते हैं और राम व कृष्ण क़े जो हवन क़े अनुगामी थे का अनुसरण नहीं करते .हम बेबस होकर देखते रह जाते हैं और ब्लाग पर लिख कर तसल्ली कर लेते हैं क्योकि अकबर इलाहाबादी ने कहा है :-
न खींचो तीर -कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो .

"क्रांति -स्वर " व "विद्रोही स्व -स्वर में" दो अखबार निकालना चाहते थे ,आर्थिक व व्यवसायिक क्षमता नहीं थी इसलिए बेटे क़े व्यवसाय का इस्तेमाल कर इसी नाम क़े दो ब्लॉग आप लोगों की सेवा में प्रस्तुत किये हैं .आप लोगों का यदि कुछ भी भला हो सके तो वही मेरी सफलता है.मैं तो नन्द लाल जी द्वारा बताई आत्मिक -शक्ति का पालन करता हूँ ,आप भी चाहें तो सुन सकते हैं. :-





(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

Monday, November 8, 2010

तोड़-फोड़ और प्लास्टिक पिरामिड वास्तविक समाधान नहीं

भारतीय भवन की निर्माण विधि ही वास्तु -कला है जो संसार -प्रसिद्द रही है .लेकिन चीन  की फेंगशुई से प्रभावित वर्तमान वास्तु -शास्त्र महज एक पाखण्ड क़े रूप में सामने आया है .आज क़े वास्तु -शास्त्री या तो तोड़ -फोड़ का सहारा ले रहे हैं या समाधान क़े रूप में प्लास्टिक क़े बने पिरामिडों या विशेष मिरर का प्रयोग करवा कर लोगों को उलटे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं.आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग भी ऐसे ही पम्प एन्ड शो वैज्ञानिकों क़े द्वार खटखटाते हैं फिर चाहे वे ऊंची दुकानऔर फीका पकवान ही क्यों न निकलें .याद रखिये मानव जीवन अमूल्य है और यह ५० प्रतिशत भाग्य अर्थात प्रारब्ध तथा ५० प्रतिशत वास्तु पर निर्भर करता है.यदि भवन -कला में वास्तु का ध्यान न रक्खा जाये तो वह शून्य होती है और आज की सिविल इंजीनियरिंग तथा आर्किटेक्ट ऐसी ही विधाएं हैं.वास्तु -शास्त्र में धर्म तथा ज्योतिष का ध्यान रक्खा जाता है जबकि इंजीनियरिंग व आर्किटेक्ट में इन दोनों को  कोई स्थान नहीं दिया जाता है .आज की इंजीनियरिंग ,आर्किटेक्ट और फेंगशुई विधाएं विदेशों से आयी हैं और इनके प्रति लोगों में तीव्र ललक है .अपने देश की गरिमामय और श्रेष्ठत्तम वास्तु कला को बहुत कम लोग जानते व महत्त्व देते हैं .पंजाब की एक प्रसिद्द लोक कहावत है -
ने ड़ो तीर्थ गाँव गुरु ,गलियों हंदा देव .
इत्तरा ही महिमा नहीं ,संत भाखै सहदेव ..

अर्थात अपने गाँव क़े नजदीकी तीर्थ का गाँव में कोई महत्त्व नहीं होता.अपनी जाति एवं गाँव क़े विद्वान का उसकी जाति एवं उसके गाँव में कोई महत्त्व नहीं होता .बहुत सटीक है यह पंजाबी कहावत जो मेरे निजी अनुभव में पूरी खरी उतरती है .मुझे -केमिस्ट्री में पी .एच .डी.किये हुए डा .उपाध्याय ,जूलाजी में पी .एच .डी .किये हुए डा .तिवारी ,मर्चेंट नेवी क़े अधिकारी श्री पालीवाल ,शिक्षक नेता और पी .सी .सी .सदस्य श्री द्विवेदी  क़े घरों पर हवन कराने का अवसर प्राप्त हुआ है जो उनकी पूर्ण संतुष्टि क़े साथ संपन्न हुए हैं और उन लोगों ने उनका भरपूर लाभ उठाया है जबकि अपनों क़े बीच स्थिति एक बेगाने जैसी है .
संक्षेप में वास्तु शास्त्र से सम्बंधित कुछ सूत्र बताना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ यदि जिनका पालन किया जाये तो लाभ प्राप्त हो सकता है ;जैसे -
जल -बोरिंग ईशान (N .E .),उत्तर (N .) ,पूर्व (E .),पश्चिम (W .) में तो कराना ठीक है .इसी प्रकार जल का कनेक्शन इन दिशाओं में ठीक है .आग्नेय (S .)में पत्नी का नाश ,वावव्य  (S .W .)में शत्रु द्वारा पीड़ा तथा घर क़े मध्य में कराने पर सग्रहित धन का नाश करता है .
पाट ,गाडर बीम -क़े नीचे बैठना मृत्यु को दावत देना ,आयु को क्षीण करना एवं अशुभ को आमंत्रित करना है.
मुख्य द्वार -यदि मुख्य द्वार सही है तो घर में ऋद्धी-सिद्धी सब प्रकार क़े मंगल कार्यों की वृद्धी होती है .घर क़े सदस्यों की रक्षा होती है एवं वंश बेल आगे बढ़ती है .निम्नलिखित तथ्य द्वार -वेध की श्रेणी क़े हैं जो विपरीत फल देते हैं ,यथा मुख्य द्वार खोलते ,बंद करते समय किसी प्रकार की अप्रिय आवाज़ का आना ,किसी पेड़ या पौधे का होना ,दीवार का कोना ,खम्बा ,खाई ,कुआँ ,कीचड ,गली ,मंदिर की छाया ,पीपल की छाया ,कब्र ,लम्बोतर गली ,किसी प्रकार का बंद होना द्वार वेध है .

आज कल बाज़ार में उपलब्ध वास्तु विद्या  क़े ग्रन्थ एवं उनके अनुसार लोगों को दिशा देने वाले लब्ध -प्रतिष्ठित  वास्तु वैज्ञानिक भारतीय वास्तु -शास्त्र क़े ज्ञान से अनभिज्ञ होने क़े कारण अथवा धन क़े लोभ में लोगों को भ्रमित कर रहे हैं.भारतीय वैदिक वास्तु -विज्ञान की कसौटी पर वही जीवन श्रेष्ठ होता है जो ग्रह स्वामी हेतु किसी भी परिस्थिति में अधिक सुरक्षा ,अधिक स्वस्थ वातावरण तथा अधिक सुविधा प्रदान करता है .ऐसे भवन में निवास करने वाले व्यक्ति सभी विपदाओं से मुक्त रहते हुए ,सुक्ख -पूर्वक शीघ्र ही जीवन क़े मुख्य उद्देश्य धर्म ,अर्थ ,काम एवं मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं .परन्तु इसके विपरीत इन तीनो गुणों  से विहीन व्यक्ति को शारीरिक ,मानसिक तथा प्राकृतिक पीडाओं से दुखी रहना पड़ता है .प्राचीन वास्तु विज्ञान क़े स्थान पर वर्तमान में प्रचलित पाखंडपूर्ण वास्तु विद्या  से ऐसी ही दुर्गति हो रही है .आज क़े वास्तु -विशेषज्ञ या तो तोड़ -फोड़ को वरीयता देते हैं अर्थात रसोई ,शौचालय आदि को तोड़ कर बदलने का सुझाव देते हैं अथवा प्लास्टिक क़े पिरामिड या विशेष मिरर लगाने को कहते हैं .तोड़ -फोड़ किसी समस्या का समाधान नहीं है .प्लास्टिक एक ताप कुचालक (Bad conductor of heat )है जो ग्रह -नक्षत्रों से आने वाली रश्मियों (Rays )को परावर्तित कर देता है अतः उसका प्रयोग करना अथवा न करना एक बराबर है .यदि आपके भवन में दोष है और उनका आसान विकल्प तोड़ -फोड़ नहीं है तो आप वास्तु दोष निवारणार्थ वास्तु यन्त्र  तथा वास्तु हवन का सहारा ले सकते हैं .हवन पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति है जिसमे डाले गए पदार्थों को अग्नि परमाणुओं (Atoms ) में विभक्त कर देती है और वायु उन परमाणुओं को बोले गए मन्त्रों की शक्ति से सम्बंधित ग्रह -नक्षत्रों तथा देवताओं तक पहुंचा देती है जो आपके वास्तु -दोषों का शमन कर आपको राहत देते हैं.अतएव हवन -पद्धति अपना कर आप तोड़ -फोड़ व कृत्रिम उपाय क़े निष्फल से बच सकते हैं.


नोट -यह लेख अग्र मन्त्र ,फरवरी २००४ में आगरा में छप  चुका है ,इसे ब्लॉग जगत क़े बुद्धिमान लोगों क़े भले हेतु पुनः प्रकाशित किया जा रहा है.


 (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

Friday, November 5, 2010

भारत की भाग्य लक्ष्मी क्यों रूठी ?



इसी शीर्षक से २२ -२३ वर्ष पूर्व नवभारत टाईम्स ,नयी दिल्ली क़े दीपावली अंक में वित्त -वार्ता पृष्ठ  पर श्री ललितेश्वर श्रीवास्तव का एक लेख छपा था जिसमे उन्होंने भारत की आर्थिक समस्यायों का विश्लेषण किया था .परन्तु यहाँ इस आलेख द्वारा प्रतिष्ठित ब्लॉगर श्री ब्रिज मोहन श्रीवास्तव सा :द्वारा मेरी पोस्ट "पूजा क्या ,क्यों और कैसे ?"पर की गई टिप्पणी क़े अंतर्गत हवन क़े सम्बन्ध में व्यक्त आशंका को आधार बना कर भारत क़े उज्जवल भविष्य हेतु कुछ प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है .

सबसे पहली बात

उक्त ब्लागर सा: ने जिन आचार्यजी का उल्लेख किया है उनकी उपलब्धि भारत में पाखण्ड और ढोंग की पुनर्स्थापना करना ही है .१८५७ की क्रान्ति में सक्रिय भाग लेने क़े १७ -१८ वर्ष बाद महर्षि दयानंद सरस्वती ने १८७५ ई .में आर्य समाज की स्थापना कर पाखण्ड -खंड्नी पताका फहरा दी थी .लोग जागरूक होने लगे थे और दस वर्ष बाद स्थापित इंडियन नेशनल कांग्रेस क़े इतिहास क़े लेखक डा .पट्टाभीसीतारमैय्या ने लिखा है कि आज़ादी क़े आन्दोलन में भाग लेने वाले कांग्रेसियों में ९० प्रतिशत आर्य समाजी थे .उक्त आचार्यजी ने आर्य समाज की रीढ़ तोड़ दी ,उन्होंने गायत्री मन्त्र को मूर्ती में बदल डाला ;उनके अनुयाइयों  ने वेदों की भी मूर्तियाँ बना डालीं .उन आचार्यजी और उनकी श्रीमतीजी की समाधि पर क़े चढ़ावे को लेकर उनके पुत्र और दामाद में घमासान चल रहा है .उनका संगठन प्रारंभिक हवन समिधाएँ ४ रखता है -धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष  हेतु .जबकि परमात्मा ,आत्मा और प्रकृति क़े निमित्त तीन ही खडी समिधाएँ लगाई जाती हैं और तीन ही समिधाओं की प्रारम्भिक आहुतियाँ दी जाती हैं .जब आप नियमानुसार हवन कर ही नहीं रहे तब परिणाम क़े अनुकूल होने की अपेक्षा  क्यों ?
                         दूसरी बात यह है

योगीराज श्री कृष्ण ने गीता में १६ वें अध्याय क़े १७ वें श्लोक में कहा है -

"आत्मसम्भावितः स्तब्धा धन मान मदान्वितः .
यजन्ते नाम यज्ञेस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम."

अर्थात अपनी स्तुति आप करने वाले ,अकड्बाज़ ,हठी, दुराग्रही ,धन तथा मान क़े मद में मस्त होकर ये पाखण्ड क़े लिए शास्त्र की विधि को छोड़ कर अपने नाम क़े लिए यज्ञ (हवन )किया करते हैं .
स्वभाविक है कि जो हवन अवैज्ञानिक होंगे उनका कोई प्रभाव नहीं हो सकता .अतः आवश्यकता है सही वैज्ञानिक विधि से हवन करने की न कि व्यर्थ भटक कर हवन को कोसने की या मखौल उड़ाने की .

तीसरी बात फिर विदेशियों से

"परोपकारी" पत्रिका क़े अनुसार भोपाल क़े उपनगर (१५ कि .मी .दूर )बेरागढ़ क़े समीप माधव आश्रम में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक मिसेज पेट्रिसिया हेमिल्टन ने बताया कि "होम -चिकित्सा " अमेरिका ,चिली ,और पोलैंड में प्रासंगिक हो रही है .राजधानी वाशिंगटन में "अग्निहोत्र -विश्वविद्यालय "की स्थापना हो चुकी है .
बाल्टीमोर में ४ सित .१९७८ से अखंड अग्निहोत्र चल रहा है .जर्मनी की एक कंपनी ने अग्निहोत्र की भस्म से सिर -दर्द ,जुकाम ,दस्त ,पेट की बीमारियाँ ,पुराने ज़ख्म व आँखों की बीमारियाँ दूर करने की दवाईंया बनाना प्रारम्भ कर दिया है .

चौथी बात यह 

इस ब्लाग में पिछली कई पोस्ट्स क़े माध्यम से वैज्ञानिक हवन पद्धति पर विस्तार से लिख चुका हूँ अतः यहाँ अब और दोहराव नहीं किया जा रहा है .मुख्य प्रश्न यह है कि हमारा देश जब पहले समृद्ध था -सोने की चिड़िया कहलाता था तो फिर क्या हुआ कि आज हम I .M .F  और World Bank क़े कर्जदार हो गए हैं .विकास -दर की ऊंची -ऊंची बातें करने क़े बावजूद अभी यह दावा नहीं किया जा सकता कि हमने अपने पुराने गौरव को पुनः हासिल कर लिया है.
        पांचवीं बात वास्तु की

हमारा भारतवर्ष वास्तु शास्त्र क़े नियमों क़े विपरीत प्राकृतिक संरचना वाला देश है .वास्तु क़े अनुसार पश्चिम और दक्षिण ऊंचा एवं भारी होना चाहिए तथा पूर्व व उत्तर हल्का व नीचा होना चाहिए .हमारे देश क़े उत्तर से पूर्व तक हिमालय पर्वत है तथा दक्षिण एवं पश्चिम में गहरा समुद्र है .लेकिन प्राकृतिक प्रतिकूल परिस्थितियों क़े बावजूद आदि -काल से हमारे यहाँ वैदिक (वैज्ञानिक )पद्धति से हवन होते थे .न तो लोग हवन का मखौल उड़ाते थे न ही ढोंग -पाखण्ड चलता था;जैसा कि आज हवन क़े साथ हो रहा है और यह सब वे कर रहे हैं जो कि स्वयंभू ठेकेदार हैं भारतीय -संस्कृति क़े और जो दूसरों को भारतीय -संस्कृति का पाठ पढ़ा रहे हैं .
प्रत्येक शुभ कार्य से पहले सर्वप्रथम वास्तु -हवन होता था (१५ संस्कारों में ) सिर्फ अंतिम संस्कार को छोड़ कर ;उसके बाद फिर सामान्य -होम होता था .संस्कार विधि में महर्षि  स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी वास्तु- हवन का विस्तृत वर्णन किया है .लेकिन महाभारत -काल क़े बाद जब वैदिक -संस्कृति का पतन हुआ तब हवन पद्धति को विस्मृत किया जाने लगा उसी का यह नतीजा रहा कि हम हज़ार साल से ज्यादा गुलाम रहे और आज ६३ वर्ष की आज़ादी क़े बाद भी हमारे बुधीजीवी तक गुलामी क़े प्रतीकों से चिपके रहने में खुद को गौरान्वित महसूस करते हैं .यही कारण है कि भारत की भाग्य लक्ष्मी रूठी है और तब तक रूठी ही रहेगी जब तक कि हम भारतवासी पुनः  अपने वैदिक -विज्ञान को अंगीकार नहीं कर लेते .
 
लेकिन एक और दुखद पहलू है कि महर्षि द्वारा स्थापित संगठन "आर्य -समाज " में आज रियुमर स्पिच्युटेड सोसाईटी की घुसपैठ हो गई है और वह इस संगठन को अन्दर से खोखला कर रही है ताकि ढोंग और पाखण्ड का निष्कंटक राज कायम रह सके.आज दीपावली का पावन पर्व है और महर्षि का निर्वाण -दिवस भी.आइये एक बार फिर इस महान आत्मा द्वारा किये कार्यों को याद कर लें और उनकी सीख को मान कर भारत की रूठी भाग्य -लक्ष्मी को साधने का प्रयास करें .

कविवर "शंकर"जी ने मूल -शंकर अर्थात स्वामी दयानंद जी क़े बारे में जो रचना की उसे सुनने का कष्ट करें :-


स्वामी जी कैसा भारत चाहते थे ,भजनोपदेशक "विजय सिंह " जी की रचना से जानिये :-



हमारे उपरोक्त विचारों की पुष्टि -"हिंदुस्तान" लखनऊ क़े आज सम्पादकीय में व्यक्त विचारों से भी होती है.आप स्वयं देखें-

Tuesday, November 2, 2010

धन तेरस ---धन्वन्तरी जयंती


 दीपावली पर्व धन तेरस से शुरू होकर भाई दूज तक पाँच दिन मनाया जाता है .इस पर्व को मनाने क़े बहुत से कारण एवं मत हैं .जैन मतावलम्बी महावीर जिन क़े परिनिर्वाण तथा आर्य समाजी महर्षि दयानंद सरस्वती क़े परिनिर्वाण दिवस क़े रूप में दीपावली की अमावस्या को दीप रोशन करते हैं .शेष अवधारणा यह है कि चौदह वर्षों क़े वनवास क़े बाद श्री राम अयोध्या इसी दिन लौटे थे ,इसलिए दीपोत्सव करते हैं .

हमारा भारत वर्ष कृषि -प्रधान था और अब भी है .हमारे यहाँ दो मुख्य फसलों रबी व खरीफ क़े काटने पर होली व दीपावली पर्व रखे गए .मौसम क़े अनुसार इन्हें मनाने की विधि में अंतर रखा गया परन्तु होली व दीवाली हेतु वैदिक आहुतियों में ३१ मन्त्र एक ही हैं .दोनों में नए पके अन्न शामिल किये जाते हैं .होली क़े हवन में गेहूं ,जौ,चना आदि की बालियों को आधा पका कर सेवन करने से आगे गर्मियों में लू से बचाव हो जाता है .दीपावली पर मुख्य रूप से धान और उससे बने पदार्थ खील आदि नये गन्ने क़े रस से बने गुड खांड ,शक्कर आदि क़े बने बताशे -खिलौने आदि हवन में शामिल करने का विधान था .इनके सेवन से आगे सर्दियों में कफ़ आदि से बचाव हो जाता है .


आज भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक अवनति  क़े युग में होली और दीवाली दोनों पर्व वैज्ञानिक पद्धति से हट कर मनाये जा रहे हैं .होली पर अबीर ,गुलाल और टेसू क़े फूलों का स्थान रासायनिक रंगों ने ले लिया है जिसने इस पर्व को विकृत कर दिया है .दीपावली पर पटाखे -धमाके किये जाने लगे हैं जो आज क़े मनुष्य की क्रूरता को उजागर करते हैं .मूल पर्व की अवधारणा सौम्य और सामूहिक थी .अब ये दोनों पर्व व्यक्ति की सनक ,अविद्या ,आडम्बर आदि क़े प्रतीक बन गए हैं .इन्हें मनाने क़े पीछे अब समाज और राष्ट्र की उन्नति या मानव -कल्याण उद्देश्य नहीं रह गया है.

दीपावली का प्रथम दिन अब धन -तेरस क़े रूप में मनाते हैं जिसमे  नया बर्तन खरीदना अनिवार्य बताया जाता है और भी बहुत सी खरीददारियां की जाती हैं .एक वर्ग -विशेष को तो लाभ हो जाता है शेष सम्पूर्ण जनता ठगी जाती है. आयुर्वेद जगत क़े आदि -आचार्य धन्वन्तरी का यह जनम -दिन है जिसे धन -तेरस में बदल कर विकृत कर दिया गया है .इस बार उदय तिथि की त्य्रोदाशी गुरूवार ४ नव .को पड़ रही है .अतः धन्वन्तरी जयंती ४ नोव . को ही मनाई जायेगी परन्तु एक दिन पूर्व ही धनतेरस माना ली जायेगी क्योंकि उसका ताल्लुक मानव -स्वास्थ्य क़े कल्याण से नहीं चमक -दमक ,खरीद्दारीसे है.


मानव स्वास्थ्य क़े चिन्तक ४ नव .की प्रातः हवनादि द्वारा आचार्य -धन्वन्तरी की जयंती मनाएंगे .उस दिन त्रियोदशी तिथि दोप .०३ :५७ तक ही है और उसके बाद भद्रा लग रही है तथा दोप .०१ :३० से ०३ : ०० तक राहू काल भी होगा अतः हवन दोप .०१ .३० से पूर्व ही करना चाहिए .
आचार्य -धन्वन्तरी आयुर्वेद क़े जनक थे .आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है .इस चिकित्सा -पद्धति में प्रकृति क़े पञ्च -तत्वों क़े आधार पर आरोग्य किया जाता है .
भूमि +जल =कफ़
वायु +आकाश = वात
अग्नि  = पित्त

पञ्च -तत्वों को आयुर्वेद में वात ,पित्त ,कफ़ तीन वर्गों में गिना जाता है .जब तक ये तत्व शरीर को धारण करते हैं धातु कहलाते हैं ,जब शरीर को दूषित करने लगते हैं तब दोष और जब शरीर को मलिन करने लगते हैं तब मल कहलाते हैं .कलाई -स्थित नाडी पर तर्जनी ,मध्यमा और अनामिका उँगलियों को रख कर अनुमान लगा लिया जाता है कि शरीर में किस तत्व की प्रधानता या न्यूनता चल रही है और उसी क़े अनुरूप रोगी का उपचार किया जाता है .(अ )तर्जनी से वात ,(ब )मध्यमा से पित्त तथा (स )अनामिका से कफ़ का ज्ञान किया जाता है .

ज्योतिष में हम सम्बंधित तत्व क़े अधिपति ग्रह क़े मन्त्रों का प्रयोग करके तथा उनके अनुसार हवन में आहुतियाँ दिलवा कर उपचार करते हैं .साधारण स्वास्थ्य -रक्षा हेतु सात मन्त्र उपलब्ध हैं और आज की गंभीर समस्या सीजेरियन से बचने क़े लिए छै विशिष्ट मन्त्र उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से सम्यक उपचार संभव है .एक प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य (और ज्योतिषी  ) जी ने पंजाब -केसरी में जनता की सुविधा क़े लिए बारह बायोकेमिक दवाईओं को बारह राशियों क़े अनुसार प्रयोगार्थ एक सूची लगभग तेईस वर्ष पूर्व दी थी उसे आपकी जानकारी क़े लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ .सूर्या की चाल पर आधारित इस राशि क्रम  में बायोकेमिक औशाद्धि का प्रयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है और रोग होने पर उस रोग की दवाई क़े साथ इस अतिरिक्त दवाई का प्रयोग जरनल टॉनिक क़े रूप में किया जा सकता है :-
       
बायोकेमिक दवाईयां होम्योपैथिक स्टोर्स पर ही मिलती हैं और इनमे कोई साईड इफेक्ट  या रिएक्शन नहीं होता है ,इसलिए स्वस्थ व्यक्ति भी इनका सेवन कर सकते हैं .इन्हें 6 x  शक्ति में 4 T D S ले सकते हैं .
अंग्रेजी  कहावत है -A healthy  mind  in  a healthy body  लेकिन मेरा मानना है कि "Only  the healthy  mind will keep the body healthy ."मेरे विचार की पुष्टि यजुर्वेद क़े अध्याय ३४ क़े (मन्त्र १ से ६) इन छः  वैदिक मन्त्रों से भी होती है . इन मन्त्रों का पद्यात्माक भावानुवाद  श्री ''मराल'' जी ने किया है आप भी सुनिये और अमल कीजिए :-
     

आप क़े मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली ही हमारी दीवाली है .आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .


(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)