Monday, February 28, 2011

चिकित्सा समाज सेवा है -व्यवसाय नहीं ------ विजय राजबली माथुर

 ब मैंने 'आयुर्वेदिक दयानंद मेडिकल कालेज,'मोहन नगर ,अर्थला,गाजियाबाद  से आयुर्वेद रत्न किया था तो प्रमाण-पत्र के साथ यह सन्देश भी प्राप्त हुआ था-"चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं".मैंने इस सन्देश को आज भी पूर्ण रूप से सिरोधार्य किया हुआ है और लोगों से इसी हेतु मूर्ख का ख़िताब प्राप्त किया हुआ है.वैसे हमारे नानाजी और बाबाजी भी लोगों को निशुल्क दवायें दिया करते थे.नानाजी ने तो अपने दफ्तर से अवैतनिक छुट्टी लेकर  बनारस जा कर होम्योपैथी की बाकायदा डिग्री हासिल की थी.हमारे बाबूजी भी जानने वालों को निशुल्क दवायें दे दिया करते थे.मैंने मेडिकल प्रेक्टिस न करके केवल परिचितों को परामर्श देने तक अपने को सीमित रखा है.इसी डिग्री को लेकर तमाम लोग एलोपैथी की प्रेक्टिस करके मालामाल हैं.एलोपैथी हमारे कोर्स में थी ,परन्तु इस पर मुझे भी विशवास नहीं है.अतः होम्योपैथी और आयुर्वेदिक तथा बायोकेमिक दवाओं का ही सुझाव देता हूँ.


एलोपैथी चिकित्सक अपने को वरिष्ठ मानते है और इसका बेहद अहंकार पाले रहते हैं.यदि सरकारी सेवा पा गये तो खुद को खुदा ही समझते हैं.जनता भी डा. को दूसरा भगवान् ही कहती है.आचार्य विश्वदेव जी कहा करते थे -'परहेज और परिश्रम' सिर्फ दो ही वैद्द्य है जो इन्हें मानेगा वह कभी रोगी नहीं होगा.उनके प्रवचनों से कुछ चुनी हुयी बातें यहाँ प्रस्तुत हैं-

उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.

बवासीर-बवासीर रोग सूखा  हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा के लिए समाप्त होगा.

सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
बिच्छू दंश-बिच्छू के काटने पर (पहले से यह दवा तैयार कर रखें) तुरंत लगायें ,तुरंत आराम होगा.दवा तैयार करने के लिये बिच्छुओं को चिमटी से जीवित पकड़ कर रेक्तीफायीड स्प्रिट में डाल दें.गलने पर फ़िल्टर से छान कर शीशी में रख लें.बिच्छू के काटने पर फुरहरी से काटे स्थान पर लगायें.

डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा निर्मित औषधियां  -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.

थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.

श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.
(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S  सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)

आज रोग और प्रदूषण वृद्धि  क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के -स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.

 नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन  प्राणियों  का  शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.

क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाटा था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.

क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप में चालक रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.


विश्व देव  के एक प्रशंसक के नाते मैं "टंकारा समाचार",७ अगस्त १९९८ में छपे मेथी के औषधीय गुणों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.अभी ताजी मेथी पत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं आप उनका सेवन कर लाभ उठा सकते हैं.मेथी में प्रोटीन ,वसा,कार्बोहाईड्रेट ,कैल्शियम,फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा  में पाया जाता है.यह भूख जाग्रत करने वाली है.इसके लगातार सेवन से पित्त,वात,कफ और बुखार की शिकायत भी दूर होती है.
पित्त दोष में-मेथी की उबली हुयी पत्तियों को मक्खन में तल  कर खाने से लाभ होता है.

गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.


प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.


कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.

आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.

पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.

बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.

मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.
मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.

मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.

आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.

कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.

रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.

गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र ,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के रूप में लाभ होता है.

आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.

Friday, February 25, 2011

इन्सान आज केन्ने जा रहल बा


श्रीमती पूनम माथुर

मार भईय्या जब रेल से घरे आवत रहलन तब ट्रेन में उनकर साथी लोगन कहलन कि हमनी के त बहुत तरक्की कर ले ले बानी सन.आज हमनी के देश त आजादी के बाद बहुत प्रगतिशील हो गइल बा.पहिले के जमाना में त घोडा गाडी ,बैल गाडी में लोग सफर करत रहलन लेकिन अब त पूरा महीना दिन में समूचा देश विदेश घूम के लोग घरे लौटी आवेला   .आजकल त This,That,Hi,Hello के जमाना बा. कोई पूछे ला कि how are you ?त जवाब मिले ला fine sir /madam कह दिहल जाला .कपड़ा ,लत्ता ,घर द्वार गाडी-घोडा फैशन हर जगह लोगन में त हमही हम सवार बा. आज त तरक्की के भर-मार बा.पर अपना पन से दूर-दराज बा.कोई कहे ला हमार फलनवा नेता बाडन त कोई कहे ला अधिकारी बाडन कोई प्राब्लम बा त हमरा से कहअ तुरन्ते सालव हो जाईल तनी चाय पानी के खर्चा लागी.बाकी त हमार फलनवा बडले बाडन निश्चिन्त रहअ  .खुश रहअ ,मस्त  रहअ  मंत्री,नेता अधिकारी बस जौन कहअ सब हमरे हाथे में बाडन .बात के सिलसिला अउर आगे बढित तब तक स्टेशन आ गईल .सब के गंतव्य आ गईल .अब के बतीआवेला सबे भागम्भागी में घरे जाय के तैयारी करत रहे अब बिहान मिलब सन .भाईबा त बात आगे बढ़ी आउर बतिआवल जाई सब कोई आपन आपन रास्ता नाप ले ले.रात हो गईल रहे सवारी मिले में  दिक्कत रहे हमार भइया धीरे धीरे पैदल घरे के ओरे बढ़त रहलन त देखलन  कि आर ब्लाक पर एगो गठरी-मोटरी बुझाई.औरु आगे बढ़लन त देखलन कि एगो आदमी गारबेज  के  पास बईठलबा थोडा औरु आगे उत्सुकता वश बढले त देखले कि ऊ आदमी त कूड़ा में से खाना बीन के खाता बेचारा भूख के मारल .अब त हमार भयीआ के आंखि में से लोर चुए लागल भारी मन से धीरे धीरे घरे पहुचलन दरवाजा हमार भौजी खोलली घर में चुपचाप बइठ गइला थोड़े देरे के बाद हाथ मुंह धो कर के कहलन की" आज खाना खाने का जी नही कर रहा है. आफिस में नास्ता ज्यादा हो गया है ,तुम खाना खा लो कल वही नास्ता कर लेंगे.भाभी ने पूछा बासी ,हाँ तो क्या हुआ कितनों को तो ऐसा खाना भी नसीब नहीं होता.हम तो सोने जा रहे हैं बहुत नींद आ रही है."
परन्तु बात त भुलाव्ते ना रहे कि आज तरक्की परस्त देश में भी लोगन के झूठन खाये के पड़ता आज हमार देश केतना तरक्की कइले बा .फिर एक सवाल अपने आप   में जेहन में उठे लागल कि भ्रष्टाचार ,बलात्कार,कालाबाजारी,अन्याय-अत्याचार ,चोरी-चकारी में इन्सान के 'मैं वाद' में पनप रहल बा .ई देश के नागरिक केतना आगे बढलबा अपने पूर्वज लोगन से?
भोरे-भोरे जब बच्चा लोगन उठल   अउर नास्ता के टेबुल पर बइठल  त कहे लागल "ये नहीं खायंगे वो नहीं खायेंगे"त ब हमार भइया रात के अंखियन देखल विरतांत कहलन  त लड़कन बच्चन सब के दिमाग में बात ऐसन बइठ गईल अउर सब सुबके लगलन सन .जे खाना मिले ओकरा प्रेम से खाई के चाही न नुकर ना करे के चाही .प्रेम से खाना निमको रोटी में भी अमृत बन जा ला.अब त लडकन सब के ऐसन आदत पडी गईल बा .चुप-चाप खा लेवेला अगर बच्चन सब के ऐसन आदत पड़जाई त वक्त-बे वक्त हर परिस्थिति के आज के नौजवान पीढी सामना कर सकेला .जरूरत बाटे आज सब के आँख खोले के मन के अमीर सब से बड़ा अमीर होला.तब ही देश तरक्की करी.इ पैसा -कौड़ी सब इहे रह जाई
एगो गीत बाटे -"कहाँ जा रहा है तू जाने वाले ,अपने अन्दर मन का दिया तो जला ले."
आज के इ  तरक्की के नया दौर में हमनी के संकल्प लिहीं कि पहिले हमनी के इन्सान बनब.-वैष्णव जन तो तेने कहिये .................................................................के चरितार्थ करब ..................................................................





जय भारत !!


Hindustan-lucknow27/02/2011



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Wednesday, February 23, 2011

सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्..

यह हमारी वह वैदिक प्रार्थना है जिसमे संसार के प्रत्येक प्राणी -मात्र के कल्याण की कामना की गयी है,जैसा कि इसके भावानुवाद से स्पष्ट ही है-

सब का भला करो भगवान् ,सब पर दया करो भगवान् .
 सब पर कृपा करो भगवान् ,सब का सब विधि हो कल्याण..
 हे ईश सब सुखी हों ,कोई न हो दुखारी .
सब हों निरोग भगवन ,धन-धान्य के भंडारी..
सब भद्र भाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों.
दुखिया न कोई होवे ,सृष्टि में प्राण धारी..

अनादिकाल से हम भारतीय बिना किसी देश-काल के भेद-भाव के संसार के समस्त प्राणियों का भला चाहते रहे हैं.यह हमारी परंपरा बन गयी थी.मथुरा  के आर्य भजनोपदेशक श्री विजय सिंह जी यह प्रवचन देते रहे हैं-

जो निर्बल निर्धन भाई हैं,हरिजन मुस्लिम ईसाई हैं .
इस देश के सभी सिपाही हैं,सब एक राह के राही हैं..
                          समता का सूर्य उगाना है.
वेदों को पढ़े पढ़ाएंगे ,यज्ञों को करें करायेंगे.
तप, दान शील अपनाएंगे,ऋषियों के नियम निभायेंगे.
बन 'विजय'वीर दिखलाना है..

अब जरा गौर फरमाइए इस प्रोफाईल पर -



यह सज्जन उस भारत सरकार के उच्चाधिकारी हैं जिसके राष्ट्रीय संविधान में देश को 'धर्मनिरपेक्ष ' घोषित किया गया है.यह महाशय खुद को '...............' का अलमबरदार घोषित किये हुए हैं और निर्बाध सरकारी सेवा में डटे हुए हैं. कोई इनकी संविधान विरोधी घोषणा पर कारवाई करने वाला नहीं है.इनके विभाग की मंत्री धर्म-निरपेक्ष पार्टी की नेता हैं.यह सज्जन महिलाओं /नारियों के प्रति घोर उपेक्षा भाव रखते हैं,जैसा कि
इन्होने 'सीता का विद्रोह' पर अपनी टिप्पणी से उजागर किया है.इन्हें सीता का स्वाभिमान तथा राष्ट्र -भक्ति बुरी तरह से अखर गयी है जो इनकी शब्दावली से स्पष्ट है.यह पता नहीं किस संस्कृति की बात करते हैं जो इस देश की नहीं है.वैदिक संस्कृति में सारे  विश्व को एक माना गया है जबकि यह साम्राज्यवादी कुत्सित षड्यंत्र से ग्रसित दुर्भावना को सर-माथे पर बिठाए हुए हैं.ऐसे लोगों ने ही देश को धर्म,जाति,सम्प्रदाय आदि विभिन्न खेमों में बाँट रखा है और देशवासियों को शोषण,उत्पीडन ,भ्रष्टाचार ,मंहगाई आदि का शिकार बना रखा है.आज से चौबीस वर्ष पूर्व अर्थात २२फरवरी १९८७ के 'मुक्ति संघर्ष'में शमीम आजमी की यह कविता छपी थी-

"बचाओ भारत,बदलो भारत"
जात धर्म के नाम पे हमको दुश्मन ने ललकारा है 
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है .
          भ्रष्टाचार बढ़ा जाता है पूंजीवादी शासन में
         होती है सरे -आम मिलावट दूध और राशन में
        अगली सदी की बात है राजीव गांधी के भाषण में 
भ्रष्ट व्यवस्था ने जनता के पेट में घूँसा मारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.
       कितना लम्बा कितना मंहगा है इन्साफ अदालत का
      मुंसिफ को एहसास नहीं है मजबूरों की हालत का 
      क्या होगा इन्साफ यहाँ ,जब होगा काम तिजारत का

गर्दिश में इस देश का यारों जैसे आज सितारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.
      मंदिर-मस्जिद के बारे में आज भी होते झगडे हैं 
     भ्रष्ट व्यवस्था भ्रष्ट प्रशासन के यह सारे रगड़े हैं
    धर्म,सियासत है जिनकी,वो अक्ल से लूले लंगड़े हैं 
देश के टुकड़े-टुकड़े करने का यह कोई इशारा है 
 बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है 
खुशहाली के दुश्मन देखो सरहद के उस पार खड़े हैं
भारत को कमजोर बनाने की खातिर तैयार खड़े हैं
हमला करने की नीयत से लेकर वो हथियार खड़े हैं
लेकिन आंच न आने देंगे ,देश ये जान से प्यारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.
          भाई के हाथों भाई का खून न अब हम होने देंगे
         अब न किसी माँ की आँखों को हरगिज नम होने देंगे
        हमको इस धरती की कसम है अब न सितम होने देंगे
गौर से सुन लें अमन के दुश्मन,ये ऐलान हमारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है .
       आओ हम विश्वास जगायें,एक नया माहौल बनायें 
      देश की उन्नति कैसे होगी जनता को वह बात बताएं
     सीने में हर छात्र -युवा के परिवर्तन की आग जलाएं

देकर खून शहीदों ने कैसे धरती को संवारा है
बचाओ भारत बदलो भारत आज हमारा नारा है.


इस ब्लाग के माध्यम से भारतीय -राष्ट्रीय संस्कृति के तहत लोगों से जागरूक रह कर समता -आधारित समाज के निर्माण हेतु कार्य-व्यवहार की अपेक्षा की जाती रही है,इसी श्रंखला में पूर्व घोषित आश्वासन के अनुसार 'सीता का विद्रोह'जो ब्रह्मपुत्र समाचार ,आगरा के ३१ जूलाई-०६ अगस्त २००३ अंक में पूर्व प्रकाशित  था  (स्कैन कापी 'कलम और कुदाल' में)यहाँ प्रस्तुत किया गया था .उस का तीव्र विरोध करने वाले और उसे मूर्खता पूर्ण कथा कहने वाले सरकारी शल्य -चिकित्सक की विचार-धारा के लोग एक और जिस  बात  पर हो-हल्ला मचाते हैं वह भी देश-द्रोही है ,जानिये कैसे?:-


धारा ३७० का महत्त्व


जब-जब चुनाव होते हैं अथवा जब-जब मजहबी उन्माद उठता है कुछ ख़ास बुद्धिजीवी और राजनेता भारतीय संविधान की धारा३७० को समाप्त करने की बात करते हैं यह जानते हुए भी कि यह जम्मू-कश्मीर को भारत में बनाये रखने की एक-मात्र गारन्टी है .विश्व हिन्दू परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.कर्ण सिंह  के  पिता महाराजा हरी सिंह ने कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र (अंग्रेजों की शह पर)घोषित कर दिया था.तब उन्हीं के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला  (जो पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला के पिता थे और वर्तमान मुख्यमंत्री के बाबा).ने भारतीय उप-प्रधानमंत्री सरदार पटेल से सहायता प्राप्त कर महाराजा हरी सिंह को भारत में शामिल होने पर दबाव डाला था. उडीसा के वर्तमान मुख्यमंत्री के पिता श्री विजयेन्द्र उर्फ़ बीजू पटनायक हवाई जहाज चला कर ले गए थे और उसमें गए थे तत्कालीन गृह-सचिव किदवई सा :जो श्री रफ़ी अहमद किदवई के भाई थे.किदवई सा :और शेख अब्दुल्ला सा :के प्रयास से सरदार पटेल एवं हरी सिंह में बनी सहमती के आधार पर भारतीय संविधान में धारा ३७० का समावेश किया गया था जिसके अंतर्गत गैर-कश्मीरियों को कश्मीर में जमीन-जायदाद खरीदने से प्रतिबन्ध किया गया है और इसी प्रकार धारा ३६९ तथा ३७१ भी हिमाचल-प्रदेश तथा पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में लागू हैं.ब्रिटेन,अमेरिका आदि विदेशी शक्तियां पाकिस्तान को उकसा कर कश्मीर को विवादित बनाने का प्रयास करती हैं.भारत में उन विदेशी शक्तियों से प्रभावित लोग अपने आकाओं को खुश करने हेतु उनके मंसूबे पूरे करने हेतु धारा ३७० को हटाने का हो-हल्ला करते रहते हैं.


श्री नगर से लेह जाने हेतु जोजीला दर्रे पर सुरंग बनाने का कनेडियन और जर्मन कम्पनियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रस्ताव किया था और एक ने नाम-मात्र मूल्य पर और दूसरी ने निशुल्क सुरंग मार्ग बनाने का वायदा किया था परन्तु उनकी शर्त 'मलवा' अपने देश ले जाने की थी,जिसे राष्ट्र के व्यापक हितों की रक्षा हेतु इंदिराजी ने स्वीकार नहीं किया था .यदि वह सुरंग मार्ग बन जाता तो श्री नगर से लेह सड़क मार्ग द्वारा मात्र छै घंटों में पहुंचा जा सकता था किन्तु मलवे में दबा पड़ा प्लेटिनम जो स्वर्ण से भी अधिक मूल्यवान है और युरेनियम निर्माण में सहायक है विदेशों में पहुँच जाता.यदि भारतीय संविधान में धारा ३७० का प्राविधान न किया गया होता तो कश्मीर में आज विदेशी कम्पनियों का प्रभुत्व होता और हमारी अमूल्य खनिज-सम्पदा विदेशों को पहुँच चुकी होती.


अतः राष्ट्र-भक्त लोगों को समझना चाहिए कि धारा ३७० हटाने की मांग करने वालों के मंसूबे वास्तव में क्या हैं?उन्हें पहचानना चाहिए और उनसे गुमराह हो कर राष्ट्र-द्रोही स्वर में स्वर कम से कम बुद्धिजीवियों को तो नहीं ही मिलाना चाहिए.राष्ट्रीय एकता ,अखंडता और कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने के लिए धारा ३७० भारत-हित में है और इसके विरोधी वस्तुतः मात्र राष्ट्र-द्रोही ही हो सकते हैं.


ऊपर वर्णित रेलवे के सरकारी शल्य-चिकित्सक द्वारा 'सीता का विद्रोह'पर अनर्गल विरोधात्मक टिप्पणी वस्तुतः उनकी साम्राज्यवाद -हितैषी मनोवृत्ति का परिचायक मात्र है.क्षुद्र मानसिकता और कुत्सित प्रवृत्ति के ऐसे लोग अपनी सोर्स तथा फ़ोर्स से सरकारी ओहदों पर काबिज होकर जन-विरोधी कार्यों में संलग्न रहते हैं और आम जनता सरकारों को कोसती रहती है.ये लोग अहम् से ग्रसित रहने के कारण दूसरों को तुच्छ समझते तथा उनकी तौहीन करने में आनंद की अनुभूति करते हैं.ऐसे लोग जन-विरोधी होते है तथा हर उस प्रयास का विरोध करते हैं जिनसे जनता के जागरूक होने का भय उन्हें सताता है.लेकिन हमारा दायित्व है -जनता को जागरूक करते रहना और हम वैसा करते भी रहेंगे.

['Hindustan'-Lucknow-24/02/2011 page-15]


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Saturday, February 19, 2011

सीता का विद्रोह ------





विद्रोह या क्रांति कोई ऐसी चीज़ नहीं होती जिसका विस्फोट एकाएक होता हो,बल्कि इसके अनन्तर अन्तर क़े तनाव को बल मिलता रहता है और जब यह अन्तर असह्य हो जाता है तभी इसका विस्फोट हो जाता है.अयोध्यापति राम क़े विरुद्ध सीता का विद्रोह ऐसी ही एक घटना थी.परन्तु पुरुष-प्रधान समाज ने इतनी बड़ी घटना को क्षुद्र रूप में इस प्रकार प्रचारित किया कि,एक धोबी क़े आक्षेप करने पर राम ने लोक-लाज की मर्यादा की रक्षा क़े लिये महारानी सीता को निकाल दिया.कितना बड़ा उपहास है यह वीरांगना सीता का जिन्होंने राम क़े वेद-विपरीत अधिनायकवाद का कडा  प्रतिवाद किया और उनके राज-पाट को ठुकरा कर वन में लव और कुश दो वीर जुड़वां बेटों को जन्म दिया.सीता निष्कासन की दन्त-कथायें नारी-वर्ग और साथ ही समाज में पिछड़े वर्ग की उपेक्षा को दर्शाती हैं जो दन्त-कथा गढ़ने वाले काल की दुर्दशा का ही परिचय है.जबकि वास्तविकता यह थी कि,साम्राज्यवादी रावण क़े अवसान क़े बाद राम अयोद्ध्या क़े शासक क़े रूप में नहीं विश्वपति क़े रूप में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे.सत्ता सम्हालते ही राम ने उस समय प्रचलित वेदोक्त-परिपाटी का त्याग कर ऋषियों को मंत्री मण्डल से अपदस्थ कर दिया था.वशिष्ठ मुनि को हटा कर अपने आज्ञाकारी भ्राता भरत को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया.विदेशमंत्री पद पर सुमन्त को हटा कर शत्रुहन को नियुक्त कर दिया और रक्षामंत्री अपने सेवक-सम भाई लक्ष्मण को नियुक्त कर दिया था.राम क़े छोटे भाई जानते हुये भी गलत बात का राम से विरोध करने का साहस नहीं कर पाते थे और अपदस्थ मंत्री अर्थात ऋषीवृन्द कुछ कहते तो राम को खड़यन्त्र  की बू आने लगती थी.महारानी सीता कुछ कहतीं तो उन्हें चुप करा देते थे.राम को अपने विरुद्ध कुछ भी सुनने की बर्दाश्त नहीं रह गई थी.उन्होंने कूटनीति का प्रयोग करते हुये पहले ही बाली की विधवा तारामणि से सुग्रीव क़े साथ विवाह करा दिया था जिससे कि,भविष्य में तारा अपने पुत्र अंगद क़े साथ सुग्रीव क़े विरुद्ध बगावत न कर सके.इसी प्रकार रावण की विधवा मंदोदरी का विवाह विभीषण क़े साथ करा दिया था कि,भविष्य में वह भी विभीषण क़े विरुद्ध बगावत न कर सके.राम ने तारा और मंदोदरी क़े ये विवाह वेदों में उल्लिखित "नियोग"विधान क़े अंतर्गत ही कराये थे अतः ये विधी-सम्मत और मान्य थे."नियोग विधान"पर सत्यार्थ-प्रकाश क़े चौथे सम्मुल्लास में महर्षि दयानंद ने विस्तार से प्रकाश डाला है और पुष्टि की है कि,विधवा को दे-वर अर्थात दूसरा वर नियुक्त करने का अधिकार वेदों ने दिया है.सुग्रीव और विभीषण राम क़े एहसानों तले दबे हुये थे वे उनके आधीन कर-दाता राज्य थे और  इस प्रकार उनके विरुद्ध संभावित बगावत को राम ने पहले ही समाप्त कर दिया था.इसलिए राम निष्कंटक राज्य चलाना चाहते थे.
महारानी सीता जो ज्ञान-विज्ञान व पराक्रम तथा बुद्धि में किसी भी प्रकार राम से कम न थीं उनकी हाँ में हाँ नहीं मिला सकती थीं.जब उन्होंने देखा कि राम उनके विरोध की परवाह नहीं करते हैं तो उन्होंने ऋषीवृन्द की पूर्ण सहमति एवं सहयोग से राम-राज्य को ठुकराना ही उचित समझा.राम क़े अधिनायकवाद से विद्रोह कर सीता ने वाल्मीकि मुनि क़े आश्रम में शरण ली वहीं लव-कुश को जन्म दिया और उन्हें वाल्मीकि क़े शिष्यत्व में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया.राम क़े भ्राता और विदेशमंत्री शत्रुहन यह सब जानते थे परन्तु उन्होंने अपनी भाभी व भतीजों क़े सम्बन्ध में राजा राम को बताना उचित न समझा क्योंकि वे सब भाई भी राम की कार्य-शैली से दुखी थे परन्तु मुंह खोलना नहीं चाहते थे.ऋषि-मुनियों का भी महारानी सीता को समर्थन प्राप्त था.लव और कुश को महर्षि वाल्मीकि ने लोकतांत्रिक राज-प्रणाली में पारंगत किया था और अधिनायकवाद क़े विरुद्ध लैस किया था.
                          
एक छत्र राजा बनने को रामचंद्र-हुंकारे.
                          प्रजातंत्र पर राजतंत्र क़े मणिधारी फुन्कारे..
                                                                              ---"भूमिजा "से

इसलिए जब राम ने अश्वमेध्य यज्ञ को विकृत रूप में चक्रवर्ती सम्राट बनने हेतु सम्पन्न कराना चाहा तो सीता-माता क़े संकेत पर लव और कुश नामक नन्हें वीर बालकों ने राम क़े यज्ञ अश्व को पकड़ लिया.
                       
                       उधर शस्त्र थे और इधर थे-
                         बालक सीना ताने.
                      निर्माणों की रक्षा क़े हित
                       आगे   थे     परवाने..
                                                       
                          ---"भूमिजा" से


राम की सेना का मुकाबला करने क़े लिये लव-कुश ने अपने नेतृत्व में बाल-सेना को सबसे आगे रखा ,उनके पीछे महिलाओं की सैन्य-टुकड़ी थी और सबसे पीछे चुनिन्दा पुरुषों की टुकड़ी थी.
राम की सेना बालकों और महिलाओं पर आक्रमण करे ऐसा आदेश तो रक्षामंत्री लक्ष्मण भी नहीं दे सकते थे,फलतः बिना युद्ध लड़े ही उन्होंने आत्म-समर्पण कर दिया और इस प्रकार लव-कुश विजयी हुये एवं राम को पराजय स्वीकार करनी पडी.
                  राम!तुम्हारे ही ये बेटे,
                राम !तुम्हारी सीता.
                खेतों क़े पीछे रोती है-
              राम !बिचारी सीता..
           ---           *              *   --- 
      युद्ध सरल है,किन्तु युद्ध का है परिणाम भयंकर.
     इतने मत हुंकारों जिससे -जाग उठे प्रलयंकर ..
                                                              "भूमिजा"से


जब महर्षि वाल्मीकि ने लव-कुश का सम्पूर्ण परिचय दिया तो राम भविष्य में वेद -सम्मत लोकतांत्रिक पद्धति से शासन चलाने पर सहमत हो गये तथा लव-कुश को अपने साथ ही ले गये.परन्तु सीता ने विद्रोह क़े पश्चात पुनः राम क़े साथ लौट चलने का आग्रह स्वीकार करना उपयुक्त न समझा क्योंकि वह पति की पराजय भी न चाहतीं थीं.अतः उन्होंने भूमिगत परमाणु विस्फोट क़े जरिये स्वंय की इह-लीला ही समाप्त कर दी.सीता वीरांगना थीं उन्हें राजा राम ने निष्कासित नहीं किया था उन्होंने वेद-शास्त्रों की रक्षा हेतु स्वंय ही विद्रोह किया था जिसका उद्देश्य मानव-मात्र का कल्याण था.अन्ततः राम ने भी सीता क़े दृष्टिकोण को ही सत्य माना और स्वीकार तथा अंगीकार किया.अतः सीता का विद्रोह सार्थक और सफल रहा जिसने राम की मर्यादा की ही रक्षा की.
*                             *                                *                                                                        
विशेष -मेरे निष्कर्षों एवं दृष्टिकोण का लोगों द्वारा मखौल बनाने पर मैंने अपने माता-पिता से कहा था--एक दिन लोग इन पर डाक्टरेट हासिल करेंगें.मेरी छोटी बहन श्रीमती शोभा माथुर(पत्नी श्री कमलेश बिहारी माथुर,अवकाश-प्राप्तफोरमैन,बी.एच.ई.एल.,झाँसी) ने अपनी संस्कृत क़े राम विषयक नाटक की थीसिस में मेरे 'रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना 'को उधृत किया है.इस प्रकार माता-पिता क़े  जीवन काल में ही मेरे लेखों को आगरा विश्वविद्यालय से   डाक्टरेट हासिल करने में बहन ने प्रयोग कर लिया और मेरा अनुमान सही निकला.
सत्य,सत्य होता है और इसे अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता.एक न एक दिन लोगों को सत्य स्वीकार करना ही पड़ेगा तथा ढोंग एवं पाखण्ड का भांडा फूटेगा ही फूटेगा.राम और कृष्ण को पूजनीय बना कर उनके अनुकरणीय आचरण से बचने का जो स्वांग ढोंगियों तथा पाखंडियों ने रच रखा है उस पर प्रहार करने का यह मेरा छोटा सा प्रयास था.
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फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी :
28-11-2015 

Wednesday, February 16, 2011

आप कितने सुखी रहेंगे?





प्रत्येक मनुष्य जीवन में उत्तरोत्तर सुख की कामना करता है और कोई भी प्राणी स्वतः दुःख नहीं उठाना चाहता,परन्तु फिर भी संसार में दुःख है और यह सर्वव्यापक है.यदि आपको यह मालुम हो जाये कि आपके जीवन में कितना दुःख है और कब तक है तो आप उसका निराकरण करके सुख की प्राप्ति कर सकते हैं.इस बार आपको यह बताया जा रहा है कि आपकी कुंडली का चतुर्थ भाव ज्योतिष में सुख भाव कहलाता है और इस भाव पर जिन-जिन ग्रहों की दृष्टि पड़ती है उनके अनुसार उनके अनुपात में आपको सुख प्राप्त होता है नीचे  प्रत्येक  ग्रह  की  चतुर्थ  भाव  पर  दृष्टि  का  फल  प्रस्तुत  किया  जा  रहा  है ,आप  अपनी  जनम -पत्रिका  क़े  अनुसार  मिलान कर  सकते  हैं -


सूर्य-चतुर्थ भाव को यदि सूर्य देख रहा हो तो जातक क्रोधी स्वभाव का होता है तथा विशेष व्यय करता है धन प्राप्ति क़े मार्ग में रुकावटें पड़ती हैं तथा घर में सम्बन्धी बीमार रहते हैं.
यदि जातक नौकरी करता है या राजनीति में है तो शीघ्र उन्नत्ति करता है और प्रशासकीय अधिकारी बनता है.
चन्द्रमा -चतुर्थ भाव पर चन्द्र की दृष्टि से जातक सौम्य,सरल एवं उन्नत्त विचारों वाला होता है उसका घरेलू जीवन सुखी और सानिध्य्य व्यतीत होता है यदि चन्द्रमा क़े साथ गुरु भी हो तो जातक क़े गजटेड अधिकारी बनने क़े योग रहते हैं.यदि मंगल व चन्द्र दोनों एक साथ चतुर्थ भाव को देखते हों तो जातक को जीवन में किसी भी प्रकार धन  का अभाव नहीं रहता है.
मंगल-यदि चतुर्थ भाव को मंगल देख रहा होता है तो यह योग शुभ नहीं रहता,भाग्य साथ नहीं देता,कठोर श्रम करना पड़ता है और यदि यह मंगल लग्नस्थ हुआ तो जातक क्रोधी,दुखी और चिडचिडे स्वभाव का होता है बचपन में ही मातृ सुख से वंचित रहता है.
इस सब क़े बावजूद जातक अपने पिता और कुल का नाम रोशन करता है तथा समाज को ऊंचा उठता है.
बुध-यदि चतुर्थ भाव पर बुध की दृष्टि हो तो जातक विख्यात कवि व लेखक हो सकता है आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न तथा शान्त स्वभाव का होता है.
गुरु-चतुर्थ भाव पर गुरु की दृष्टि व्यक्तित्व को शान्त बना देती है.यदि गुरु अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक रोगी होता है और मानसिक रूप से परेशान होता है उसके जीवन में उत्साह व उमंग का अभाव रहता है और भाग्य भी उसका साथ नहीं देता.दशम भाव में गुरु की उपस्थिति भाग्यशाली बनाती है.तो द्वादश भाव में धन-लोलुप.
शुक्र-चतुर्थ भाव को यदि शुक्र देख रहा हो तो जातक संगीत अध्यापक या ड्राईंग मास्टर बन सकता है.परन्तु जातक को पत्नी सुख काम मिलता है और पत्नी तथा संतान से मतभेद रहते हैं.प्रेम क़े क्षेत्र में विविध स्त्रियों से लाभ मिलता है.
शनि-यदि चतुर्थ भाव को धन भाव से देख रहा हो तो आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है यदि सप्तम भाव से देख रहा हो तो विख्यात होता है व विदेश भ्रमण करता है.
राहू-चतुर्थ भाव पर राहू की दृष्टि भाग्यहीन बनाती है.खर्च की अधिकता से परेशान रहता है.उसकी पत्नी मूर्ख,रोगी व क्रोधी होती है.
केतु-चतुर्थ भाव को केतु देख रहा हो तो बचपन से ही बीमार रहता है.स्वभाव में झल्लाहट व चिडचिडापन रहता है,बाधाओं का सामना करना पड़ता है.धन की चिंता में कठोर श्रम करना पड़ता है
योगीराज श्रीकृष्ण
प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष  की अष्टमी को सम्पूर्ण भारत तथा अन्यत्र भी कृष्ण जन्माष्टमी पर्व विशेष धूम-धाम से मनाया जाता है.ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो श्री कृष्ण क़े चतुर्थ भाव पर मंगल अपनी दशम दृष्टि डाल रहा है जिस कारण उन्हें जन्मते ही माता देवकी क़े सुख से वंचित होना पड़ा.बचपन से ही गोकुल में कठोर श्रम करना पड़ा.लेकिन इसी मंगल क़े प्रभाव से उन्होंने पिता वासुदेव व पितृ कुल का नाम रोशन किया कंस,शिशुपाल आदि का संहार कर जनता को त्रास से मुक्ति दिलाकर समाज को ऊंचा उठाया.
इसी प्रकार चन्द्रमा अपनी चतुर्थ दृष्टि से चतुर्थ भाव को देख रहा है जिस कारण श्री कृष्ण का स्वभाव सौम्य,सरल व उन्नत्त विचारों वाला रहा.उनका घरेलू जीवन सुखी व सानन्द रहा.पत्नी रुकमनी उनकी सहायिका रहीं तो पुत्र प्रद्युम्न तो उनकी छाया कृति ही कहे जा सकते हैं.मंगल और चन्द्र दोनों ही ग्रहों का श्रीकृष्ण की कुंडली क़े चतुर्थ भाव को देखने का ही परिणाम था कि श्री कृष्ण सर्व ऐश्वर्य सम्पन्न द्वारिकापुरी की स्थापना कर सके.
स्वाधीन भारत
१५ अगस्त १९४७ को आजाद होने क़े ६४ वें वर्ष में हम चल रहे हैं.६३ वर्षों की आजादी क़े बाद भी हमारा देश समृद्ध नहीं हो सका तो इसका कारण है कि हमारे देश की स्वाधीनता की कुंडली क़े चतुर्थ भाव पर मंगल की तृतीय दृष्टि जिसने आजादी की शैशवावस्था में ही आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में देश को रुग्ण बना दिया.साथ ही चतुर्थ भाव पर केतु की भी दशम दृष्टि पड़ रही है पुनः यह आजादी की शैशवावस्था में रुग्णता को ही बढ़ा रही हैं.पडौसी राष्ट्रों का असहयोग तथा राष्ट्र को बाधाओं का सामना भी चतुर्थ भाव पर इसी केतु की दृष्टि का परिणाम रहा है.इसी केतु की दृष्टि का प्रभाव है कि आज भी हमारा देश ऋण जाल में फंसा हुआ है.भारत क़े मित्र समझे जाने वाले राष्ट्र भी इसका हित सम्पादन नहीं करते हैं.केतु की चतुर्थ दृष्टि का ही परिणाम है कि भारत का भाल(सिर)कश्मीर पर गहरी चोट पडी है.वह आज भी समस्याग्रस्त है.


इस प्रकार हम देखते हैं कि कुंडली का चतुर्थ भाव जो सुख भाव है न केवल सामान्य मनुष्य वरन सफल राजनेता योगीराज श्रीकृष्ण तथा स्वाधीन भारत राष्ट्र पर भी ग्रहों का व्यापक प्रभाव पड़ा है.देश  की प्रगति  व विकास हेतु और स्वाधीन भारत की कुंडली क़े आधार पर मंगल व केतु ग्रहों क़े दुष्प्रभाव से बचाव क़े उपाए हमारे शासकों को करने ही पड़ेंगे तभी हम अपने देश को ऋण जाल से मुक्त कराने और कश्मीर समस्या का समाधान कराने में सफल हो सकेंगे अन्यथा जो जैसे चल रहा है,चलता ही रहेगा;चाहे जितना व्यंग्य कर लें तथा कितना ही शोर मचा लें -ग्रहों का प्रभाव अमिट है और उनकी शांति ही एकमात्र उपाए है.  






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(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

Monday, February 14, 2011

श्रीमद भागवत -"नयी रोशनी में"

श्रीमद देवी भागवत की वैज्ञानिक व्याख्या जिस अंक में छपी थी उसे देख -पढ़ कर एक कथावाचक ने मुझसे संपर्क किया और अपने बारे में बताया जिसे मैंने उसी अखबार में छपवा दिया था परन्तु महान  विचारों वाले वह कथावाचक करनी में बिलकुल फर्क दिखे इसलिए उस साक्षात्कार को ज्यों का त्यों 'कलम और कुदाल'में नहीं दे रहे हैं.पहले उनसे हुए प्रश्नोत्तर पर गौर करें फिर उनके चरित्र पर प्रकाश डालेंगे.


प्रश्न -आपको धार्मिक क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?
उ.-पूर्व-जन्म के संस्कार और कुछ प्रारब्ध,धार्मिक माता-पिता का प्रभाव और कुछ हनुमान जी की विशेष कृपा.ईश्वर ने हर कार्य के लिए कोई न कोई व्यक्ति ढूंढ रखा है.यह मेरा सौभाग्य है ,ईश्वर ने इस कार्य हेतु मुझे चुना.                                        


प्रश्न- आप अन्य प्रवाच्कों से अलग किन्तु सही व्याख्या करते हैं इस सम्बन्ध में कुछ बताएं?
उ.-स्वंय को शिष्य मान कर निरंतर गूढ़ अध्ययन एवं सज्जनशील चिंतन शैली.


प्रश्न-आपका श्रीमद भागवत कथा-वाचन का प्रथम प्रयास पूर्ण सफल रहा है,क्या आगे भी आप ऐसे और कार्यक्रम करेंगे?
उ.-जिसका जीवन ही गीता,भागवत और धर्म के प्रचार के लिए समर्पित हो,वह कैसे चुप बैठ सकता है?क्या ऐसे व्यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए?
कथावाचक जी के प्रवचन में जो नयी बातें सामने आयीं उन्हें जन-हित में प्रस्तुत किया जा रहा है.---------


"श्रीमद भागवत"में प्रयुक्त "श्री"शब्द का अर्थ है-ऐश्वर्य संपन्न भगवान,"मद"शब्द स्वंय भगवान ने अपने लिए मेरा के अर्थ में प्रयोग किया है और भागवत शब्द में पंचमहाभूतों का संकेत है.भागवत=भ.अ.ग.व्.त.=भ.का अभिप्राय भूमि से,अ.का अग्नि से,ग.का गगन(आकाश)से,व.का वायु से और त.का तोर अर्थात जल से है.इसी प्रकार भगवान् में प्रयुक्त शब्दों का अभिप्राय है इसमें न शब्द का अर्थ नीर अर्थात जल है.इस प्रकार भगवान् से आशय उस शक्ति से है जो पंचमहाभूतों से निर्मित सृष्टि का नियंता है और श्रीमदभागवत से आशय उस सर्वशक्ति सम्पन्न द्वारा पञ्च महाभूतों क़े कल्याण हेतु कहे गये वचनामृत से है.कथावाचक जी ने भागवत क़े प्रयुक्त शब्दों का सूक्ष्म विवेचन करते हुए उनका भाव स्पष्ट किया.उन्होंने बताया कि,ज्ञान और वैराग्य की माँ "भक्ति"है.भक्ति का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि ये ढाई अक्षर तीन अलग -अलग भावोंको प्रदर्शित करते हैं."भ"शब्द भजन हेतु है."क"शब्द कर्म का प्रतीक है.कर्म दो प्रकार क़े होते हैं.सकाम और निष्काम.इसमें सिर्फ निष्काम कर्म की ही महत्ता है अतः 'क'शब्द आधा ही लिया गया है और "ति"शब्द त्याग की भावना दर्शाता है.अस्तु निष्काम कर्म करते हुए त्याग की भावना से जो भजन किया जाता है उसे ही भक्ति कहते हैं और भक्ति ही परमात्मा अथवा भगवान् को प्राप्त करने का माध्यम है.


श्रीमदभागवत में उल्लिखित राजा उत्तानपाद ,रानी सुरुचि और सुनीति,ध्रुव और उत्तम की व्याख्या भी कथावाचक जी ने की और स्पष्ट किया कि प्रत्येक जीवात्मा उत्तानपाद है और यह कथानक प्रत्येक जीवात्मा हेतु एक सन्देश है उन्होंने बताया कि उत्तान का अर्थ है ऊपर और पाद का अर्थ है चरण से .प्रत्येक जीवात्मा गर्भ में ऊपर पैर किये रहता है और वैसे ही ऊपर पैर किये हुए उसका जन्म होता है.प्रसव में पहले सिर बाहर आता है फिर शरीर और सबसे बाद में पैर.इस प्रकार जन्म से प्रत्येक जीवात्मा उत्तानपाद हुआ.उसकी दो पत्नियाँ सुरुचि और सुनीति का अर्थ हुआ उसमें अच्छी और बुरी दोनों प्रवृत्तियों का पाया जाना.सुरुचि का सिंहासन पर बैठना दर्शाता है कि जीवात्मा रुचिकर कार्यों को ही अपनाता है और नीति युक्त बातों को भुला देता है अर्थात सुनीति का वनवास.वनवास=वन+अवास=जिसका एकल वास हो.नीतिगत बातें व्यवहार में न चलने का अभिप्राय ही सुनीति क़े वनवास से है.उत्तम शब्द उद+तम क़े योग से बना है.उद का अर्थ है ईश्वर और तम अर्थात अज्ञान-अन्धकार है.इस प्रकार ईश्वर क़े प्रति अज्ञान ही उत्तम है और लोगों को वही प्रिय होता है.ध्रुव का अर्थ है अटल या अडिग रहना.भक्ति मार्ग पर चलने वाले जीव ध्रुव कहलाते हैं और उन्हें पग-पग पर कष्टों का सामना करना पड़ता है परन्तु वे भगवान् का सान्निध्य प्राप्त करने में सफल रहते हैं.


कथावाचक जी ने बताया कि श्रीमदभागवत में वर्णित रास-लीला कोई काम-लीला नहीं है,यह जीवात्मा क़े परमात्मा क़े साथ एकाकार होने की साधना है उन्होंने गोपी शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि "गो"का अर्थ होता है ज्ञान और वैराग्य,पी का अर्थ है पीना अर्थात जिसने ज्ञान और वैराग्य को पी लिया है वही जीवात्मा गोपी है और इसमें स्त्री-पुरुष का कोई भेद नहीं है."कृष्ण" का अर्थ है जो सब को आकर्षित कर ले वही कृष्ण है अर्थात परमात्मा का ही नाम कृष्ण है .कृष्ण क़े विभिन्न नामों गोपाल,गोविन्द,मोहन की भी व्याख्या उन्होंने प्रस्तुत की है."गो" का अर्थ बताया इन्द्रियाँ और पाल का अर्थ पालन करने वाला परमात्मा ही गोपाल है."विन्द" का अर्थ है घेरे में लेना अर्थात जीवात्मा की इन्द्रियों को घेरे में लेने वाला उनका संयमन करने वाला गोविन्द ही परमात्मा है."मोहन" शब्द दिवर्थी है-मोहन =मोह +न अर्थात जिसमें इस संसार क़े प्रति मोह न हो वह सृष्टि नियंता ही मोहन है."मो" का अर्थ अहंकार होता है और "हन" का अर्थ हरण करने वाला अर्थात अहंकार का हरण करने वाला मोहन ही परमात्मा है.


"राधा"का अर्थ बताया कि यह जीवात्मा है.प्रत्येक जीवात्मा ही राधा है और राधा ,कृष्ण की प्रेमिका है कहने का तात्पर्य है कि,परमात्मा,को प्रत्येक जीवात्मा प्रिय होती है वह प्रत्येक का कल्याण चाहता है. 

विशेष-कथावाचक जी हिन्दी और अंगरेजी में एम.ए.होने क़े साथ-साथ संगीतग्य भी हैं.धन का लोभ और अपने ज्ञान का दुरूपयोग करने में भी माहिर हैं जिस कारण उनका नाम नहीं उजागर किया है.राम ने तो लक्ष्मण को रावण से ज्ञान प्राप्त करने हेतु भेजा था ,हम भी कथावाचक जी क़े केवल ज्ञान का ही सार्वजनिक लाभ उठाना चाहते हैं.रंजना जी ने अपने ब्लाग पर श्री कृष्ण क़े चरित्र रक्षा हेतु तर्क-संगत उत्कृष्ट पोस्ट पहले ही दी है.उनका प्रयास सराहनीय है उन्होंने भी महेंद्र वर्मा जी और डा.मोनिका शर्मा जी क़े साथ-साथ मेरे ब्लाग पर ऐसी पोस्ट देने की चाहत की थी.सलिल वर्मा जी (चला बिहारी वाले...)तो इस प्रकार क़े विश्लेषण देने क़े लिये मुझे बहुत अधिक मान देने लगे हैं.परन्तु मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैंने तो अर्जित ज्ञान को सार्वजनिक मात्र किया है जनता क़े कल्याण हेतु.मैं केवल माध्यम बना हूँ क्योंकि अतीत में इस प्रकार क़े ज्ञान को कंजूस क़े धन की भांति छिपा कर रखने से ही पौराणिकों ने राधा,गोपी,रास,आदि को लेकर जो चट्कारेदार बातें गढ़ीं हैं उनसे जन-मानस का कल्याण नहीं मात्र मनोरंजन हुआ है और ढोंग-पाखण्ड का व्यर्थ प्रचलन हुआ है,आगे ऐसा न हो यही मेरे लेखन का अभीष्ट है.पी.सी.गोदियाल सा :ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि,ढोंग-पाखण्ड अर्ध-शिक्षित लोगों द्वारा किया गया है.यही तो समस्या है कि उससे आम-लोग तो गुमराह हो कर अपना अनिष्ट कर डालते हैं.पौराणिक प्रतीकों की वैज्ञानिक व्याख्या बहुत जटिल है तथा साधारण -जन क़े लिये सम्भव भी नहीं है.इसी लिये संत कबीर ,महर्षी स्वामी दयानंद आदि ने पुराणों की कड़ी आलोचना की है.दूसरी तरफ जन-मानस में पुराणों की गहरी पैठ विकृत रूप से है. अतः समन्वयात्मक  दृष्टिकोण से पुराणों का बचाव करने का प्रयास प्रबुद्ध-जन करते रहते हैं,वे चाहते हैं किसी प्रकार जनता को लुटने से बचाया जाये.उनके विचारों को विभिन्न माध्यमों से प्रचारित करके मैं भी छोटा सा योगदान करना चाहता हूँ.




 
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 (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

Saturday, February 12, 2011

पंडित विद्वान होता है पुजारी क़े रूप में वकील नहीं.

 श्रीमद देवी भागवत की वैज्ञानिक व्याख्या पर टिप्पणी क़े रूप में डा.मोनिका शर्मा ने इसी क्रम को जारी रखने की बात की तो रंजना जी ने व्याख्याकार आचार्य जी का संपर्क सूत्र ही हासिल कर लिया.महेंद्र वर्मा जी ने तो इस प्रकार लिखने का सुझाव दिया ही था और अब रंजना ने भी मेल पर इस प्रकार की अधिकाधिक सामग्री देने को कहा है.आप सब क़े उत्साह को बनाये रखने हेतु २००५ की शिव-रात्री  क़े अवसर पर दिये गये आचार्य रामरतन शास्त्री क़े प्रवचन जिन्हें मैं १७ मार्च २००५ को प्रकाशित करा चुका था (ज्यों का त्यों कलम  और कुदाल में देख सकते हैं.)क़े आधार पर ७ दिनों का सार प्रस्तुत कर रहा हूँ.-


शाहपुर ब्राह्मन,बाह -आगरा क़े मूल निवासी आचार्य रामरतन शास्त्री जी ने लोनावाला (महाराष्ट्र)से पधार कर अपने सरस,सरल,सुगम और बोधगम्य प्रवचनों क़े द्वारा प्रचलित ढोंग वादी शैली से हट कर वैज्ञानिक आधार पर शिव कथाओं का विश्लेषण किया .उनकी शैली समन्वयात्मक है.पोंगापंथियों ने पुराणों की जो विकृत व्याख्या प्रस्तुत की थी उसका प्रबल विरोध प्रगतिशील धर्माचार्यों द्वारा किया गया है.आचार्य रामरतन जी द्वारा पौराणिक कथाओं की व्याख्या इं दोनों का समन्वय हैउनका कहना है जब मनुष्य का बौद्धिक स्तर समृद्ध नहीं रहा जो वैदिक मन्त्रों क़े सही अर्थों को समझ सकता हो विद्वानों ने इन कथाओं क़े माध्यम से वेद की बातों को प्रस्तुत किया है.हमें इन कथाओं क़े मर्म को समझना चाहिए न कि,कथाओं क़े कथानक में में उलझ कर भटकना चाहिए.प्रथम दिवस ही व्यास-पीठ पर बैठ कर आचार्य प्रवर ने ब्राह्मणों क़े पोंगा-पंथ पर प्रहार किया और देश क़े चारित्रिक पतन क़े लिये उन्हें उत्तरदायी ठहराया.उन्होंने कहा पंडित विद्वान होता है पुजारी क़े रूप में वकील नहीं,उनका आशय था कि भक्त को स्वंय ही भगवान् से तादात्म्य स्थापित करना चाहिए और किसी मध्यस्थ या बिचौलियों क़े बगैर भगवान् से स्तुति,प्रार्थना,पूजा,हवन,यग्य करना चाहिये.


पश्चाताप का अर्थ बताते हुये आचार्य जी ने बताया कि गलती हो जाने पर उसे स्वीकार करना चाहिए और उस दुःख क़े ताप में तप कर फिर उसे न दोहराने का संकल्प ही पश्चाताप है.दुखों से न घबराने का सन्देश शिव-पुराण में भरा पड़ा है इन कथाओं द्वारा बताया गया है कि पांडवों,अनिरुद्ध सटी,पार्वती आदि ने बाधाओं से विचलित हुये बगैर सत्मार्ग पर डटे रह कर सफलता प्राप्त की है.आचार्य जी का दृढ मत है कि,'वीर -भोग्या वसुंधरा'क़े अनुसार शक्तिशाली की मान्यता है-कमजोर को कोई नहीं पूछता है.इसलिए विपत्ती आने पर भी निडरता पूर्वक परिस्थितियों से संघर्ष करना और उन पर विजय हासिल करना चाहिये.


व्यक्ति का नहीं भक्ति का नाम नारद -आचार्य जी ने कहा कि नारद किसी व्यक्ति-विशेष का नहीं बल्कि यह देश -काल से परे भगवद-भक्ति का नाम है.भक्त कभी स्थान-विशेष से बंधता नहीं है.बल्कि वह तो जहाँ उसकी जरूरत होती है वहीं पहुँच जाता है.ऐसे ऐसे गुण चरित्र वाले किसी भी व्यक्ति को नारद कहा जाता है.


भक्ति- शब्द  ढाई अक्षरों क़े मेल से बना है जिसमे भ -का अर्थ  भजन से है ति -शब्द त्याग का परिचायक है और (आधा)क यह बतलाता है कि निष्काम कर्म ही भगवान् तक पहुँचने में सहायक है सकाम कर्म नहीं.इसका आशय यह हुआ कि निष्काम कर्म करते हुए त्याग पूर्वक भजन किया जाये वही भक्ति है.


ज्ञान और भक्ति क़े बिना वैराग्य नहीं-ज्ञान वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सत्य और असत्य,नित्य और अनित्य,क्षर और अक्षर का बोध होता है.भक्ति में भजन प्रमुख है जिसका अर्थ है सेवा करना और यह भक्ति श्रवण कीर्तन आदि नौ प्रकार की होती है.भक्ति क़े द्वारा वैराग्य अर्थात पदार्थों क़े प्रति विरक्ति होती है.आचार्य जी ने बताया संसार में दृष्टा की भांति रहने से उससे मोह नहीं होता है और मोह का न होना ही सुख की स्थिति है.


दक्ष और बाणासुर -आचार्य जी कहते हैं की शिव महापुराण में वर्णित दक्ष और बाणासुर क़े कारण श्री कृष्ण और शिव में संघर्ष की घटनाएं अहंकार करने वालों का हश्र बताने बताने क़े लिये उल्लिखित हैं.सत्ता,धन और यश का अहंकार नहीं इनका संचय करना चाहिये और दूसरों क़े हित में इनका प्रयोग करना चाहिए.इसके विपरीत आचरण करने पर अहंकारी का पतन अवश्य ही होता है.


लिंग ब्रह्म में लीन होना है-आचार्य राम रतन  जी कहते हैं कि शिव की लिंग आराधना यह बताती है कि यह जो अखिल ब्रह्मांड है वह एक गोलाकार पिंड क़े समान है और सभी जीवों को उसी में फिर से मिल जाना है इस दृष्टिकोण से शिव क़े लिंग स्वरुप की कल्पना की गयी है.बारह लिंग विभिन्न शक्तियों क़े द्योतक हैं.देश  भर में फैले लिंग शक्ति पीठ राष्ट्र को एकीकृत रखने की अवधारणा क़े कारण विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित किये गये हैं.


शिवरात्रि-शिव विवाह-शिव ही परम सत्ता अर्थात परमात्मा हैं और पार्वती शिव हैं अर्थात परमात्मा की शक्ति शिव शक्ति द्वारा प्रकृति क़े संयोजन से सृष्टि करना ही शिव रात्री का पर्व है.लोक कल्याण और जन हित हेतु परमात्मा शिव ने पार्वती अर्थात प्रकृति से विवाह किया और इस प्रकार लोक मंगल किया.पार्वती को गिरिजा भी कहते हैं -पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने क़े कारण उन्हें यह नाम मिला है.पार्वती ही उमा हैं अर्थात समृद्धि का प्रतीक.शिवरात्रि का पर्व भारत भर में सुख समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है.


आचार्य रामरतन शास्त्री को लोना वाला से "शिव पुराण" पर प्रवचन हेतु ही बुलवाया गया था इस अवसर पर इन पंक्तियों क़े लेखक ने ब्रह्मा,वशिष्ठ,व्यास और भारद्वाज मुनियों द्वारा रचित स्तुतियों का पाठ कर क्षेत्रवासियों क़े कल्याण की कामना की.ढोंग,पाखण्ड और आडम्बर से दूर रहकर आचार्य जी ने समन्वयात्मक दृष्टिकोण अपनाकर जनता क़े समक्ष क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किये.जिनकी भूरी भूरी प्रशंसा पूर्व कुल सचिव (आगरा वि वि) एवं पूर्व प्राचार्य डाक्टर एस एन शर्मा तथा कायस्थ सभा आगरा क़े अध्यक्ष ने भी मुक्त कंठ से की.यह गौरव की बात है कि शाहपुर ब्राह्मण (बाह ) क़े मूल निवासी आचार्य राम रतन शास्त्री विश्व स्तरीय योग महा विद्यालय से संबद्द हैं और उनके छात्र विश्व भर में फैले हुए हैं यह सभी का फर्ज़ बनता है कि आचार्य प्रवर क़े विचारों से अन्य लोगों को भी ज्ञान प्राप्त कराएं.




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(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

Thursday, February 10, 2011

श्रीमद देवी भागवत -वैज्ञानिक व्याख्या

डा.महेंद्र वर्मा जी ने "रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना"पर अपनी टिप्पणी में सुझाव दिया है कि मैं अन्य पुराणों पर भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करूँ-




प्रस्तुत लेख सन २००३ में आगरा में ब्रह्मपुत्र समाचार क़े १६-२२ अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुआ था उसे ज्यों का त्यों तो 'कलम और कुदाल 'में देखा जा सकता है परन्तु १४ अक्टूबर २०१० को इसी ब्लाग में 'उठो जागो और महान बनो' शीर्षक से प्रस्तुत विचारों क़े साथ समन्वय करके डा. वर्मासा: को दिये आश्वासन को पूरा करने का प्रयास यहाँ कर रहा हूँ.
हमारे प्राचीन ऋषि -मुनी वैज्ञानिक आधार पर मनुष्य-मात्र को प्रकृति क़े साथ सामंजस्य करने की हिदायत देते थे.बदलते मौसम क़े आधार पर मनुष्य ताल-मेल बैठा सकें इस हेतु संयम-पूर्वक कुछ नियमों का पालन करना होता था.ऋतुओं क़े इस संधि-काल को नवरात्र क़े रूप में मनाने की बात थी. कोई ढोंग-पाखण्ड उन्होंने नहीं तय किया था,जिसे बाद में गुलाम भारत में कुरआन की तर्ज़ पर विदेशी शासकों द्वारा गढ़वाये गये पुराणों में जबरिया ठूंसा गया है ताकि मनुष्य का कल्याण न हो और वह दुश्चक्र में फंस कर गुलाम ही बना रहे. फिर भी उन पुराणों में भी यदि विवेक का इस्तेमाल करें तो हम वैज्ञानिक आधार सुगमता से ढूंढ सकते हैं जिन्हें पोंगा-पंथी सहजता से ठुकरा देते हैं.पोंगा-पंथ साम्राज्यवाद से ग्रस्त है वह जन-कल्याण की बात सोच भी नहीं सकता .पोंगा -पंथी तो मेरा पेट हाउ मैं न जानूं काऊ वाले सिद्धांत पर चलते हैं;वस्तुतः उनसे मनुष्यत्व की उम्मीद रखना है ही बेवकूफी.


ऋतुओं क़े आधार पर ऋषियों ने चार नवरात्र बताये थे,जिन्हें पौराणिक काल में घटा कर दो कर दिया गया.दो ज्योतिषियों एवं पुजारियों ने जनता से तो छिपा लिये परन्तु स्वंय अपने हक में पालन करते रहे.वे  चारों नवरात्र इस प्रकार हैं-
१ .चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक,
२ .आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक,
३ .आश्विन(क्वार)शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक,
४ .माघ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक .


इनमें से १ और ३ तो सार्वजनिक रखे गये जिनके बाद क्रमशः राम नवमी तथा विजया दशमी(दशहरा) पर्व मनाये जाते हैं.२ और ४ को गुप्त बना दिया गया.चौथा माघ वाला गुप्त नवरात्र अभी चल रहा है,बसंत-पंचमी उसी क़े मध्य पड़ती है.डा.महेंद्र वर्माजी ने इसी मध्य सुझाव दिया है अतः उस पर अमल भी इसी क़े मध्य करते हुए देवी भागवत को चुना है.


श्री किशोर चन्द्र चौबे ने मार्कंडेय चिकित्सा -पद्धति क़े आधार पर नव-रात्र की नौ देवियों क़े असली औषधीय रूप का विषद विवेचन किया है जिसे आप 'उठो जागो और महान बनो'में देख सकते हैं,फिर भी यहाँ संक्षिप्त उल्लेख करना उचित समझता हूँ.:-
१.हरड-इसे प्रथम शैल पुत्री क़े रूप में जाना जाता है.
२.ब्राह्म्मी-दिव्तीय ब्रह्मचारिणी ..........................
३.चंद्रसूर-तृतीय चंद्रघंटा ...................................
४.पेठा-चतुर्थ कूष्मांडा ....................................
५.अलसी -पंचम स्कन्द माता .............................
६.मोइया -षष्ठम कात्यायनी ..................................
७.नागदौन -सप्तम कालरात्रि ...............................
८.तुलसी-अष्टम महागौरी ...................................
९.शतावरी-नवम सिद्धिदात्री ......................................


स्पष्ट है कि बदलते मौसम में इन चुनी हुई मानवोपयोगी औषधियों  का सेवन करके और निराहार रह कर मानव-स्वाथ्य की रक्षा करने का प्राविधान हमारे ऋषियों ने किया था.लेकिन आज पौराणिक कर क्या रहें हैं करा क्या रहें हैं -केवल ढोंग व पाखण्ड जिससे ढोंगियों की रोजी तो चल जाती है लेकिन मानव-कल्याण कदापि सम्भव न होने क़े कारण जनता ठगी जाती है.गरीब जनता का तो उलटे उस्तरे से मुंडन है यह ढोंग-पाखण्ड.


रक्त-बीज ---मार्कंडेय चिकित्सा-पद्धति में कैंसर को रक्त-बीज कहते हैं.चंड रक्त कैंसर है और मुंड शरीर में बनने वाली गांठों का कैंसर है.


कालक---यह माईक रोग है जिसे आधुनिक चिकित्सा में AIDS कहते हैं.
चौबे जी क़े उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि,जिन खोजों को आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक अपनी नयी खोजें बताते हैं उनका ज्ञान बहुत पहले हमारे ऋषियों-वैज्ञानिकों को था.इन सब का प्राकृतिक उपचार नियमित नवरात्र पालन में अन्तर्निहित था.परन्तु हमारे पाखंडी पौराणिकों ने अर्थ का अनर्थ करके जनता को दिग्भ्रमित कर दिया और उसका शोषण करके भारी अहित किया है.अफ़सोस और दुःख की बात यह है कि आज सच्चाई को मानने हेतु प्रबुद्ध बुद्धीजीवी तक तैयार नहीं है.


मैं पौराणिकों क़े कार्यक्रमों में शामिल नहीं होता हूँ.२६ सितम्बर से ०४ अक्टूबर २००३ में कमला नगर,आगरा में शाहपुर(ब्राह्मन) ,बाह निवासी और लोनावाला (पुणे)में योग शिक्षक आचार्य श्री राम रतन शास्त्री का देवी भगवत पर प्रवचन हुआ था.हमारे पिताजी क़े परिचित और कालोनी वासी अवकाश-प्राप्त सीनियर सुप्रिटेनडेंट पोस्ट आफिसेस - बाबूराम गुप्ता जी ने उन्हें सुना था तथा मुझे आकर कहा कि, वह पोंगा पंथ से भिन्न मत रखते हैं, गुप्ता जी ने जो बताया उसे मैंने लिख कर अख़बार में छपवा दिया था.पेशेवर कर्मकांडियों क़े विपरीत रामरतन शास्त्री जी ने पुराणों में वर्णित पात्रों की सम्यक और तर्क सांगत व्याख्या की, जैसे उन्होंने बताया कि शुम्भ और निशुम्भ और कुछ नहीं मनुष्य-मात्र में व्याप्त राग और द्वेष हैं इनका संहार करने से तात्पर्य है कि,मनुष्य अपने अन्दर व्याप्त मोह -माया और ईर्ष्या की प्रवृति का त्याग करे तभी देवी माँ का साक्षात्कार कर सकता है.इसी प्रकार उन्होंने बताया कि महिषासुर वध का आशय है कि मनुष्य में व्याप्त अहंकार का शमन करना.यह सहज स्वभाविक प्रवृति है कि,मनुष्य जिनसे कुछ हित-साधन की अपेछा करता है उनसे मोह और ममत्व रखता है और उनके प्रति गलत झुकाव भी रख लेता है और इस प्रकार दुष्कृत्यों क़े भंवर में फंस कर अन्ततः अपना ही अहित कर डालता है.इसके विपरीत मनुष्य जिन्हें अपना प्रतिद्वन्दी समझता है उनसे ईर्ष्या करने लगता है और उन्हें ठेस पहुंचाने का प्रयास करता है और इस प्रकार बुरे कर्मों में फंस कर अपने आगामी जन्मों क़े प्रारब्ध को नष्ट करता जाता है.मनुष्य में राग और द्वेष क़े समान ही अहंकार भी एक ऐसा दोष है जो उसी का प्रबल शत्रु बन  जाता है.संसार में सर्वदा ही अहंकारी का विनाश हुआ है अतः उत्तम यही है कि मनुष्य स्वंय ही स्वेच्छा से अपने अहंकार को नष्ट कर डाले तभी देवी माँ की सच्ची पूजा कर सकता है.श्रीमद देवी भगवत क़े कथा प्रसंग में रामरतन जी ने स्पष्ट किया कि हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप कोई व्यक्ति-विशेष नहीं थे,बल्कि वे एक चरित्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पहले भी थे और आज भी हैं और आज भी उनका संहार करने की आवश्यकता है.संस्कृत भाषा में हिरण्य का अर्थ होता है स्वर्ण और अक्ष का अर्थ है आँख अर्थात वह जो केवल अपनी आँखें स्वर्ण अर्थात धन पर गड़ाये रखता है हिरण्याक्ष कहलाता है.ऐसा व्यक्ति केवल और केवल धन क़े लिये जीता है और साथ क़े अन्य मनुष्यों का शोषण करता रहता है.आज क़े सन्दर्भ  में हम कह सकते हैं कि,उत्पादक और उपभोक्ता का शोषण करने वाला व्यापारी ही हिरण्याक्ष हैं.कश्यप का अर्थ संस्कृत में बिछौना अर्थात बिस्तर से है.जिसका बिस्तर सोने का हो इसका आशय यह हुआ कि जो धन क़े ढेर पर सो रहा है अर्थात आज क़े सन्दर्भ में काला व्यापर करने वाला व्यापारी और घूस खोर अधिकारी हिर्नाकश्यप हैं.वराह अवतार से तात्पर्य शास्त्री जी ने बताया कि,वर का अर्थ है अच्छा और अह का अर्थ है दिन अर्थात वराह अवतार का मतलब हुआ अच्छा दिन अर्थात समय अवश्य हीआता है.प्रहलाद का अर्थ हुआ प्रजा का आह्लाद अर्थात जनता की खुशी .इस प्रसंग में बताया गया है कि जब जनता जागरूक हो जाती है तो अच्छा समय आता  है और हिरण्याक्ष व हिरण्यकश्यप   का अंत हो जाता है.रक्त-बीज की घटना यह बताती है कि,मनुष्य क़े भीतर जो कामेच्छायें हैं उनका अंत कभी नहीं होता,जैसे ही एक कामना पूरी हुई ,दूसरी कामना की इच्छा होती है और इसी प्रकार यह क्रम चलता रहता है.देवी द्वारा जीभ फैला कर रक्त सोख लेने का अभिप्राय है कि मनुष्य अपनी जिव्हा पर नियन्त्रण करके लोभ का संवरण करे तभी रक्त-बीज अर्थात अनन्त  कामेच्छओं का अंत हो सकता है.


अखबार में छपवाकर मैंने गुप्ता जी को भेंट कर दिया था जिन्होंने आयोजक महोदय को दे दिया और आयोजक जी ने शास्त्री जी को डाक से भेज दिया.शास्त्री जी ने इस ताज्जुब क़े साथ कि बगैर आये  -सुने मैंने उनके विचारों को ज्यों का त्यों लिपिबद्ध कर दिया आयोजक महोदय द्वारा धन्वाद ज्ञापन किया तथा पुनः आगरा आगमन पर मेरे घर मुझ से मिलने आये.तब से मेरे आगरा रहने तक उनके कार्यक्रमों का मुहूर्त आयोजक महोदय मुझसे निकलवाते रहे और मैं उनके कार्यक्रमों को सुनता रहा जिन्हें अख़बार में छपवाता भी रहा.डा.महेंद्र वर्मा जी की इच्छा एवं सुझाव क़े अनुसार समय समय पर  यहाँ प्रस्तुत करता रहूँगा.




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 (इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)